मेक इन इंडिया के तहत सैमसंग भारत में लाये दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फ़ैक्टरि


पढ़िए दुनिया की सबसे बड़ी फैक्ट्री का उद्धघाटन करते वक्त प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा


सोमवार को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली से सटे नोएडा पहुंंचे. नोएडा में दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फैक्ट्री का उद्धघाटन करने पहुंचे मोदी ने लोगों को संबोधित भी किया. पढ़िए उनके भाषण की पांच मुख्य बातें.

–  पांच हज़ार करोड़ रुपए का ये निवेश ना सिर्फ सैमसंग के भारत में व्यापारिक रिश्तों को मजबूत बनाएगा, बल्कि भारत और कोरिया के संबंधों के लिए भी अहम सिद्ध होगा.

–  पीएम मोदी ने कहा, पिछले चार वर्षों में फैक्ट्रियों की संख्या 2 से बढ़कर 120 हो गई हैं, जिसमें 50 से ज्यादा तो यहां नोएडा में ही हैं. इससे 4 लाख से अधिक नौजवानों को सीधा रोजगार मिला है.

–  आज भारत में लगभग 40 करोड़ स्मार्टफोन उपयोग में है, 32 करोड़ लोग ब्रॉडबैंड इस्तेमाल कर रहे हैं. बहुत कम दर पर इंटरनेट डेटा उपलब्ध है, देश की एक लाख से अधिक ग्राम पंचायतों तक फाइबर नेटवर्क पहुंच चुका है. ये सारी बातें, देश में हो रही डिजिटल क्रांति का संकेत हैं.

–  पीएम मोदी ने कहा, सस्ते डेटा और सस्ते स्मार्टफोन से बिजली-पानी का बिल भरना, स्कूल-कॉलेज में एडमिशन, PF हो या पेंशन, लगभग हर सुविधा ऑनलाइन मिल रही है.

–  नरेंद्र मोदी ने कहा, मुझे प्रसन्नता है कि इस पहल को आज दुनियाभर से सहयोग मिल रहा है. मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग की बात करें तो आज भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर पहुंच गया है.

अन्तरिक्ष में भारत के खिलाफ पाकिस्तान की आँख बन रहा चीन


उपग्रह पीआरएसएस-1 और पाकटीईएस-1 ए को पश्चिमोत्तर चीन में जिउकान उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से पूर्वाह्न 11 बजकर 56 मिनट पर प्रक्षेपित किया गया.


चीन ने पाकिस्तान के लिए सोमवार को दो दूर संवेदी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया. तकरीबन 19 साल के दौरान लॉन्ग मार्च -2 सी रॉकेट का यह पहला अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक प्रक्षेपण है.

उपग्रह पीआरएसएस-1 और पाकटीईएस-1 ए को पश्चिमोत्तर चीन में जिउकान उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से पूर्वाह्न 11 बजकर 56 मिनट पर प्रक्षेपित किया गया.

पीआरएसएस -1 पाकिस्तान को बेचा गया चीन का पहला ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपग्रह है और किसी विदेशी खरीदार के लिये चाइना एकेडमी ऑफ स्पेस टेक्नोलॉजी (सीएएसटी) द्वारा विकसित 17 वां उपग्रह है.

पाकिस्तान द्वारा विकसित वैज्ञानिक प्रयोग उपग्रह पाकटीईएस-1 ए को उसी रॉकेट से उसकी कक्षा में भेजा गया. सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2011 में संचार उपग्रह पाकसैट -1 आर के प्रक्षेपण के बाद से चीन और पाकिस्तान के बीच एक और अंतरिक्ष सहयोग हुआ है.

पीआरएसएस-1 का इस्तेमाल जमीन और संसाधन के सर्वेक्षण, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, कृषि अनुसंधान, शहरी निर्माण और सीमा एवं सड़क क्षेत्र के लिए रिमोट सेंसिंग सूचना उपलब्ध कराने के लिए किया जायेगा.

सोमवार का यह प्रक्षेपण लॉन्ग मार्च रॉकेट श्रृंखला का 279 वां अभियान और करीब दो दशक के बाद पहला अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक प्रक्षेपण है. 1999 में इसने मोटोरोला के इरिडियम उपग्रह का प्रक्षेपण किया था.

आतंकियों ने माँ को मार बेटे की पढ़ाई लूट ली


अब्‍दुल माजिद अपने बड़े बेटे का दाखिला जम्‍मू-कश्‍मीर से बाहर मेडिकल काजेल में कराना चाहते थे. शायद आतंकियों को यही बात बुरी लग गई. जिसके चलते रविवार रात आतंकियों ने अब्‍दुल माजिद के घर में धावा बोल दिया.


जम्मू : 

बेटे का मेडिकल कालेज में दाखिल कराने के लिए जम्‍मू कश्‍मीर के एक परिवार ने हाल में अपनी जमीन का एक टुकड़ा बेंचा था. यह दंपति अपने बेटे का दाखिला मेडिकल कालेज में करा पाता, इससे पहले आतंकियों को घर में मौजूद रुपयों की भनक लग गई. रविवार रात्रि हथियारों से लैस आतंकियों ने इस दंपति के घर में धावा बोल दिया. घर की मालकिन ने बेटे की पढ़ाई का वास्‍ता दिया तो आतंकियों का गुस्‍सा सातवें आसमान में पहुंच गया. झल्‍लाएं आतंकियों ने चाकू से इस महिला का गला रेत दिया. जिसके बाद खून से लथपथ महिला जमीन पर पड़ी तड़पती रही और आतंकी  घर मे लूटपाट करते रहे  आतंकियों के घर से जाने के बाद इस घर के मुखिया ने पड़ोसियों से मदद मांगी. किसी तरह इस महिला को अस्‍पताल तक ले जाया गया. जहां डाक्‍टरों ने महिला को मृत घोषित कर दिया.

यह दर्दनाक वारदात जम्मू – कश्मीर के बांदीपुरा के शाहगुंद गांव की है. दरअसल, अब्‍दुल माजिद अपनी पत्‍नी शकीला बेगम और चार बेटों के साथ इसी गांव में रहते थे. अब्‍दुल माजिद के बेटे ने हाल में 12वीं की परीक्षा पास की थी. अब्‍दुल माजिद चाहते थे कि उनका बेटा कश्‍मीर में फैले आतंकवाद से दूर जाकर अपना भविष्‍य बनाए. अपने बेटे का भविष्‍य बनाने के लिए उन्‍होंने कुछ दिनों पहले अपनी जमीन का एक टुकड़ा बेंचा था. वह अपने बेटे का दाखिला जम्‍मू-कश्‍मीर से बाहर मेडिकल काजेल में कराना चाहते थे. शायद आतंकियों को यही बात बुरी लग गई. जिसके चलते रविवार रात आतंकियों ने अब्‍दुल माजिद के घर में धावा बोल दिया. दो आतंकी घर के बाहर रुके, जबकि एक आतंकी घर के भीतर दाखिल हो गया. घर के भीतर घुसे आतंकी ने हथियारों के बल पर परिवार के सभी सदस्‍यों को बंधक बना लिया और लूटपाट करने लगे.

आतंकी घर में मौजूद पूरा रुपया और सोने के आभूषण अपने साथ ले जाना चाहते थे, जिससे अब्‍दुल माजिद अपने बेटे को जम्‍मू-कश्‍मीर से बाहर न भेज सके. अपने बेटे के बेहतर भविष्‍य के लिए बुने सपनों को बिखरता देख शकीला विफर पड़ी. उसने अपने बेटे की पढ़ाई का वास्‍ता देकर आतंकियों को रोकने की कोशिश की. इसी बात ने आतंकियों के गुस्‍से को सातवें आसमान में पहुंचा दिया. झल्‍लाए आतंकी ने अपनी जेब से छुरा निकाला और शकीला की गर्दन रेत दी. खून से लथपथ शकीला को वही पड़ा छोड आतंकी फिर लूटपाट में लग गए. घर में लूटपाट की वारदात को अंजाम देने के बाद आतंकी घर से फरार हो गए. जिसके बाद  अब्‍दुल माजिद अपनी पत्‍नी शकीला को लेकर श्रीनगर के एक हॉस्पिटल पहुंचे. जहां चिकित्‍सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

सूत्रों के अनुसार, मामले की छानबीन के लिए पहुंची पुलिस ने घर से कुछ दूरी पर लूटे गए रुपयों का एक हिस्‍सा पड़ा हुआ पाया. इससे यह साफ हो गया कि इस वारदात को रुपए हासिल करने के मकसद से नहीं बल्कि अब्‍दुल माजिद के बेटे की पढ़ाई रोकने के इरादे से अंजाम दिया गया था. प्रथम दृष्‍टया इस दर्दनाक वारदात के लिए लश्‍कर-ए-तैयबा को जिम्‍मेदार माना जा रहा है. वहीं बांदीपुरा पुलिस ने स्पेशल टीम का गठन कर मामले की छानबीन शुरू कर दी है.

 

 

 

आआपा अध्यक्ष के आरोप सिरे से गलत हैं : उपराज्यपाल


उपराज्यपाल अनिल बैजल ने ने यह प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस आरोप पर दी है कि उपराज्यपाल शीर्ष अदालत के फैसले को स्वीकार करने में ‘चुनिंदा’ रवैया अपना रहे हैं.


उपराज्यपाल अनिल बैजल ने सोमवार को कहा कि दिल्ली सरकार और केन्द्र के बीच सत्ता संघर्ष पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘ चुनिंदा तरीके से स्वीकार करने का ’ आरोप ‘ गलत ’ है और उनके बयान का ‘चुनिंदा’ तरीके से हवाला दिया गया. बैजल ने यह प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस आरोप पर दी है कि उपराज्यपाल शीर्ष अदालत के फैसले को स्वीकार करने में ‘चुनिंदा’ रवैया अपना रहे हैं.

केजरीवाल ने उपराज्यपाल को लिखे पत्र में कहा था , ‘आप इस निर्णय को लेकर चयनात्मक कैसे हो सकते हैं. इस मामले में आपको अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए कि या तो आप सभी मामले को किसी नियमित पीठ के समक्ष रखेंगे , और इसलिए आप आदेश का कोई हिस्सा स्वीकार नहीं करेंगे. या आपको इस निर्णय को पूरा स्वीकार करना चाहिए और इसे लागू करना चाहिए. ’’

केजरीवाल ने पत्र में कहा , ‘आप कैसे कह सकते हैं कि आप आदेश का यह पैरा स्वीकार करेंगे , लेकिन उसी आदेश का वह पैरा नहीं स्वीकार करेंगे. ’

बैजल ने मुख्यमंत्री पर मीडिया को अपना पत्र लीक करने का भी आरोप लगाया. उन्होंने केजरीवाल को जवाब दिया , ‘आपका पत्र मेरे कार्यालय में पहुंचने से पहले यह सोशल और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पास पहुंच चुका है.’

उपराज्यपाल कार्यालय के बयान के अनुसार , बैजल ने कहा कि मुख्यमंत्री ने छह जुलाई के उनके पत्र का ‘ चुनिंदा तरीके से हवाला ’ दिया और उच्चतम न्यायालय के चार जुलाई के फैसले को चयनित तरीके से स्वीकार करने का उनका आरोप ‘‘ गलत ’’ है.

हम पैट्रोलियम मंत्रालय की दया पर नहीं है : सर्वोच्च न्यायालय


पीठ ने यह टिप्पणियां उस वक्त कीं जब शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि इस मंत्रालय ने रविवार को ही पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे से अवगत कराया है


सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक इकाइयों में पेट कोक के इस्तेमाल से संबंधित मामले में नाराजगी के साथ फटकार लगाई कि क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय खुद को भगवान या सुपर सरकार मानता है. और सोचता है कि बेरोजगार जज उसकी दया पर हैं. जस्टिस मदन बी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने यह तीखी टिप्पणियां उस वक्त कीं जब शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि इस मंत्रालय ने रविवार को ही पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे से अवगत कराया है. यह कोक औद्योगिक ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता है.

शीर्ष अदालत ने इस रवैये पर कड़ा रूख अपनाते हुए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय पर इस लापरवाही के लिए 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. अदालत दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर पर्यावरणविद् अधिवक्ता महेश चन्द्र मेहता द्वारा 1985 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था.

शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार पर भी एक लाख रूपए का जुर्माना किया क्योंकि उसने राजधानी में अनेक रास्‍तों पर यातायात अवरूद्ध होने की समस्या को दूर करने के लिए कोई समयबद्ध स्थिति रिपोर्ट पेश नहीं की. पीठ ने कहा कि दस मई के अदालत के आदेश के अनुसार दिल्ली सरकार को छह सप्ताह के भीतर इस बारे में हलफनामा दाखिल करना था लेकिन उसने न तो ऐसा किया और न ही उसकी ओर से कोई वकील उपस्थित हुआ. पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार इन आदेशों के प्रति गंभीर नहीं है.

पीठ ने पेट्रोलियम एंव प्राकृतिक गैस मंत्रालय के खिलाफ ये तल्ख टिप्पणियां उस वक्त कीं जब अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने उसे सूचित किया कि इस मंत्रालय से उसे कल ही जवाब मिला है. इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुये पीठ ने कहा, ‘क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय भगवान है? क्या वे भगवान हैं? उनसे कह दीजिये कि वे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की बजाए अपना नाम बदल कर भगवान कर लें.’

पीठ ने कहा, ‘क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय सुपर सरकार है? क्या वह भारत सरकार से ऊपर है? हमें बताएं कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की क्या हैसियत है? वे किसी भी आदेश का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं?’

नाडकर्णी ने जब यह कहा कि उनका हलफनामा तैयार है और इसे आज ही दाखिल कर दिया जाएगा तो जस्टिस लोकुर ने पलट कर कहा, ‘यदि वे (पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय) आदेशों पर अमल नहीं करना चाहते हैं तो वे पालन नहीं करें. और क्या वे सोचते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के बेरोजगार जज उन्हें समय देंगे. क्यों हमें उनकी दया पर रहना होगा.’

पीठ ने अतिरिक्त् सालिसीटर जनरल को दिन में हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देते हुए कहा, ‘हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को जवाब भेजने के लिए अपने हिसाब से वक्त लगाने के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के रवैये से आश्चर्यचकित हैं. यह विलंब सिर्फ पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ‘सुस्ती’ के कारण हुआ है.’

पीठ ने इस मंत्रालय पर 25 हजार रुपए लगाते हुए कहा कि यदि जुर्माने की राशि सुप्रीम कोर्ट सेवा प्राधिकरण में 13 जुलाई तक जमा नहीं कराई गई तो वह जुर्माने की राशि बढ़ा देगी. अदालत इस मामले में अब 16 जुलाई को आगे सुनवाई करेगा.

इससे पहले, संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रही वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने तथा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के बारे में जवाब देना था.

मुफ्त यात्रा के जरिये 2019 पार लगाएगी आआपा


दिल्ली सरकार के इस योजना के शुरुआत के साथ ही इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है. हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हज यात्रा पर जाने वाले हाजियों को सब्सिडी देने पर रोक लगा दी थी.


दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना की मंजूरी दे दी है. अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना की मंजूरी दे दी. इस योजना की मंजूरी मिलने के साथ ही दिल्ली की हर विधानसभा से 1100 वरिष्ठ नागरिकों को अब योजना का लाभ मिलेगा.

बता दें कि दिल्ली सरकार ने अपने पिछले बजट में भी इस योजना का जिक्र किया था, लेकिन उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं मिलने के कारण यह योजना काफी दिनों से अटकी पड़ी थी.

दिल्ली सरकार योजना के शुरुआत में 5 रूट तय किए हैं. ये रूट मथुरा-वृदांवन, हरिद्वार-ऋषिकेश-नीलकंठ, पुष्कर-अजमेर, अमृतसर-बाघा-आनंतपुर साहिब, वैष्णो देवी-जम्मू हैं. योजना के तहत दिल्ली के 77 हजार वरिष्ठ नागरिकों को सरकार मुफ्त में तीर्थ यात्रा कराएगी. तीर्थयात्रा 3 दिन और 2 रात की होगी.

दिल्ली सरकार के राजस्व मंत्री कैलाश गहलोत ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फेंस कर इसकी जानकारी दी. कैलाश गहलोत ने मीडिया से बात करते हुए कहा,‘8 जनवरी 2018 को कैबिनेट ने इस योजना की मंजूरी दे दे थी, लेकिन दिल्ली के उपराज्यपाल की तरफ से इस पर आपत्ति लगा दी गई थी. इसी वजह से इस योजना को अब तक लागू नहीं किया गया. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली सरकार और एलजी के बीच चल रहे अधिकारों की लड़ाई में एक लकीर खींच दी थी. इसके बाद ही दिल्ली सरकार ने इस योजना को लागू करने का फैसला किया है.

इससे पहले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी ट्वीट कर इस योजना के बारे में जानकारी दी थी. मुख्यमंत्री तीर्थ योजना के तहत दिल्ली के हर विधानसभा से हर साल 1100 यात्रियों को तीर्थ यात्रा करवाई जाएगी. इस तीर्थयात्रा का पूरा खर्च दिल्ली सरकार उठाएगी. इस तरह हर साल 77 हजार वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त में पांच तीर्थस्थलों का भ्रमण कराया जाएगा.

इस योजना का लाभ पाने के लिए कुछ जरूरी बातों का भी ख्याल रखना होगा.

1- यात्रा करने वाला आदमी दिल्ली का नागरिक होना चाहिए

2- यात्रा करने वाले की उम्र 60 से अधिक होनी चाहिए.

3- इस योजना के लिए चयनित नागरिक अपने साथ एक 18 साल से अधिक उम्र के एक सहयोगी को भी ले जा सकेंगे, जिसका भी पूरा खर्च दिल्ली सरकार ही उठाएगी.

4- सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा.

5- इस योजना का लाभ उठाने वाले व्यक्ति को सेल्फ सर्टिफिकेशन से बताना होगा कि उसने सही सूचनाएं दी हैं और पहले कभी इस योजना का लाभ नहीं उठाया है.

6- तीर्थयात्रा के लिए चयनित व्यक्तियों को एक लाख का बीमा होगा.

7- तीर्थयात्री एसी बसों से तीर्थयात्रा पर जाएंगे. खाने-पीने की व्यवस्था भी दिल्ली सरकार के तरफ से ही की जाएगी.

8- सभी आवेदन पत्र ऑनलाइन भरे जाएंगे. आवेदन पत्र डिविजनल कमिश्नर ऑफिस, संबंधित विधानसभा के विधायक या फिर तीर्थ यात्रा कमेटी के ऑफिस से भरे जाएंगे.

9- लॉटरी से ड्रॉ तीर्थयात्रियों का चयन किया जाएगा

10- संबंधित विधायक सर्टिफाई करेंगे कि तीर्थयात्रा करने वाला व्यक्ति दिल्ली का नागरिक है.

बता दें कि पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार ताबड़तोड़ फैसले ले रही है. साल 2019 लोकसभा चुनाव को देखते हुए दिल्ली की केजरीवाल सरकार लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले ले रही है, जिसका संबंध सीधे आम जनता से जुड़ा हुआ है. मोहल्ला क्लिनिक का मामला हो या फिर घर-घर राशन डिलवरी का ये कुछ ऐसे फैसले हैं जो कि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की जनता से जोड़ने का काम करेगी.

दूसरी तरफ दिल्ली सरकार के इस योजना के शुरुआत के साथ ही इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है. हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हज यात्रा पर जाने वाले हाजियों को सब्सिडी देने पर रोक लगा दी थी. इसके बाद से ही कई धार्मिक यात्राओं पर भी सब्सिडी पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं. ऐसे में अरविंद केजरीवाल का यह फैसला विरोधियों को नागवार गुजर सकता है.

इसके बावजूद कई राज्य सरकारें धार्मिक यात्रा पर जाने वाले लोगों को सब्सिडी देती रही हैं. मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार ने साल 2012 में तीर्थयात्रियों के लिए एक योजना की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत शिरडी, अजमेर शरीफ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, जगन्नाथ पुरी, द्वारका, वैष्णो देवी जैसे कई और तीर्थस्थलों पर वरिष्ठ नागरिकों को भेजा जाता है.

साल 2012 में राज्य के 51 जिलों के 89 हजार वरिष्ठ नागरिकों ने इस योजना का लाभ उठाया था. यही नहीं राज्य की शिवराज सरकार ने पाकिस्तान में ननकाना साहेब और हिंगलाज माता मंदिर, मानसरोवर यात्रा, श्रीलंका में सीता मंदिर और अशोक वाटिका की यात्रा पर जाने वालों को भी 50 फीसदी खर्च उठाती है.

उत्तर प्रदेश सरकार भी मानसरोवर यात्रा और सिंधू दर्शन यात्रा के लिए सब्सिडी देती रही है. मानसरोवर यात्रा के लिए योगी सरकार ने पिछले साल ही 50 हजार रुपए राशि को बढ़ा कर एक लाख रुपए कर दिया.

देश में कई ऐसे राज्य हैं जो धार्मिक यात्रा पर जाने वाले लोगों को सब्सिडी देते हैं. गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, केरल, तमिलनाडु, ओडिशा और असम जैसे राज्यों में भी तीर्थ यात्रा के लिए विशेष सब्सिडी दी जाती है. हाल के दिनों में तीर्थाटन पर दी जा रही सब्सिडी को लेकर सवाल भी उठे हैं, जिसके बाद से कई राज्यों ने सब्सिडी में कटौती करना भी शुरू कर दिया है. ऐसे में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने गैर मुस्लिमों के लिए भी तीर्थ यात्रा की योजना शुरू कर इसको और हवा देने का काम किया है.

आपातकाल, सिख दंगों और मुस्लिम तुष्टीकरण को भुला दें तो सिर्फ पिछले 4 साल से ही लोकतन्त्र खतरे में है


खड़गे ने कहा है कि ‘एक चायवाला इसलिये देश का प्रधानमंत्री बन सका क्योंकि कांग्रेस ने लोकतंत्र को बचाए रखा’. वाकई खड़गे का ये खुलासा इस देश की स्वस्थ राजनीति और मजबूत लोकतंत्र का प्रतीक है.


मल्लिकार्जुन खड़गे लोकसभा में कांग्रेस की तरफ से नेता प्रतिपक्ष हैं. वो अपने बयानों और भाषणों से देश की सियासत में बड़ी अहमियत रखते हैं. हाल ही में उन्होंने बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने साल 2014 का चुनाव जीतकर नरेंद्र मोदी के पीएम बनने पर बड़ा खुलासा किया है. खड़गे ने कहा है कि ‘एक चायवाला इसलिये देश का प्रधानमंत्री बन सका क्योंकि कांग्रेस ने लोकतंत्र को बचाए रखा’. वाकई खड़गे का ये खुलासा इस देश की स्वस्थ राजनीति और मजबूत लोकतंत्र का प्रतीक है.

खड़गे ने जिस लोकतंत्र की दुहाई देते हुए एक चायवाले को देश का पीएम बनने का मौका दिया वो काबिल-ए-तारीफ है. लोकतंत्र को ही बचाने के लिये कांग्रेस ने यूपीए सरकार के वक्त अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को भी मौका दिया था तो साल 2014 में ये मौका मोदी को मिला. खड़गे के बयान के बाद लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है. इसी लोकतंत्र को बचाने के लिये ही कांग्रेस सिमटते-सिमटते 44 सीटों पर आ गई. इसके बावजूद ये पूछा जाता है कि कांग्रेस ने पिछले 70 साल में देश के लिये क्या किया?

खड़गे जिस लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस की पीठ थपथपा रहे हैं तो उसी पार्टी के सिपाही मणिशंकर अय्यर ने ही सबसे पहली आहुति भी दी थी. कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की पहल को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. कांग्रेस के सम्मेलन के वक्त ही मणिशंकर अय्यर ने सबसे पहले कहा था कि, ‘मोदी जी अगर चाय बेचना चाहें तो वो यहां आकर चाय बेच सकते हैं लेकिन एक चायवाला देश का पीएम नहीं बन सकता’.

मणिशंकर अय्यर की ही भावुक अपील ने देश की सियासत का नक्शा ऐसा बदला कि देश के कई राज्यों में कांग्रेस को ढूंढना पड़ गया. अय्यर ने ही नब्ज़ को टटोलते हुए जनता के भीतर एक चायवाले को लेकर सहानुभूति भरने का सबसे पहले काम किया. लोकसभा चुनाव के बाद अय्यर ने गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त भी लोकतंत्र को बचाने के लिये नया बयान दिया. बाद में उसी लोकतंत्र को ही बचाने के लिये कांग्रेस को अपने मजबूत सिपाही की राजनीतिक कुर्बानी भी देनी पड़ी. मणिशंकर अय्यर फिलहाल पार्टी से निलंबित चल रहे हैं. लेकिन लोकसभा और गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त उनका योगदान कांग्रेस कभी भूल नहीं सकेगी.

खड़गे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. उन्होंने दो लोकतंत्र एक साथ देखे हैं. एक कांग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र तो दूसरा देश के संविधान से सजा हुआ लोकतंत्र. आंतरिक लोकतंत्र के वो एक बड़े गवाह हैं. कर्नाटक में अच्छी पकड़ रखने वाले खड़गे के कर्नाटक का सीएम बनने की पूरी संभावना थी. विधानसभा चुनाव के नतीजों में उनकी धाक जमी थी. लेकिन खड़गे को सीएम बनने का मौका नहीं मिल सका. उनकी जगह सिद्धारमैया को सीएम बना दिया.

शायद यहां भी कांग्रेस ने लोकतंत्र को ही बचाने के लिये खड़गे से राजनीतिक त्याग मांगा. हालांकि बीजेपी कांग्रेस पर ये आरोप लगाती है कि कांग्रेस ने खड़गे के साथ इंसाफ नहीं किया और राहुल के करीबी माने जाने वाले सिद्धारमैया को कर्नाटक की कमान सौंपी. जबकि देखा जाए तो कांग्रेस ने खड़गे को कर्नाटक का सीएम न बना कर उनका कद ही बढ़ाया है. लोकसभा में खड़गे कांग्रेस के लिये सबसे बड़ी तोप भी हैं तो सबसे मजबूत ढाल भी. पीएम मोदी और बीजेपी के हमलों को वो ही सदन में बैठकर झेलते भी हैं और आरोपों का जवाब भी देते हैं. उनकी हिंदी पर पकड़ और हिंदी में धारा-प्रवाह भाषण की कला हिंदी पट्टी के नेताओं को शर्मिंदा कर जाती है.

लोकतंत्र को बचाने के लिये ही कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को संसद के लिये स्थायी तौर पर अपना सेनापति बनाया है ताकि कर्नाटक का मोह कहीं आड़े नहीं आए. लोकतंत्र बचाने के लिये ही इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बहुमत न मिलने के बावजूद कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन दे कर सरकार बनवाई है. हालांकि जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के पीडीपी से समर्थन वापस लेने के बाद कांग्रेस को लोकतंत्र खतरे में नहीं दिखा तभी उसने पीडीपी को सरकार बनाने के लिये समर्थन देने का कोई प्रस्ताव नहीं दिया.

कांग्रेस लगातार बीजेपी पर मार्गदर्शक नेताओं की अनदेखी और अवहेलना के आरोप लगाती है. कांग्रेस कहती है कि बीजेपी के भीतर आवाज दबा दी जाती है. जबकि इसके ठीक उलट कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र की तस्वीर आईने की तरह साफ है. यहां विरोध की कोई आवाज ही नहीं पनपती तो उसे दबाने का आरोप भी कोई नहीं लगा सकता.

कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र का ही ये नायाब मॉडल है कि यहां एक सुर में उपाध्यक्ष रहे राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को कोई और आवाज चुनौती नहीं दे सकी. ये न सिर्फ पार्टी का मजबूत आंतरिक लोकतंत्र है बल्कि अनुशासन भी! निष्ठा के साथ अनुशासन के कॉकटेल से कांग्रेस के लोकतंत्र को मजबूत होने में कई दशकों का समय लगा है.

यूपीए सरकार में जब डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया तो वो भी लोकतंत्र बचाने के लिये ही भावनात्मक और व्यावहारिक फैसला लिया गया था. मनमोहन सिंह राज्यसभा के नामित सदस्य थे. कभी चुनाव लड़ा नहीं था क्योंकि कभी सोचा भी नहीं था कि पीएम बनने का ऑफर इस तरह से आएगा. उस वक्त कांग्रेस के तमाम दिग्गज और पुराने चेहरों की निष्ठा और सियासी अनुभव पर मनमोहन सिंह का मौन आवरण भारी पड़ा था और वो सर्वसम्मति से पीएम बने थे. उस दौर में प्रणब मुखर्जी जैसे बड़े नाम भी लोकतंत्र को बचाने की रेस में दूर दूर तक नहीं थे. मनमोहन सिंह के नाम पर पीएम पद के प्रस्ताव को सर्वसम्मति, ध्वनिमत, पूर्ण बहुमत के साथ देश हित और लोकतंत्र बचाने के लिये अनुमोदित किया गया.

जब कभी पार्टी या देश का लोकतंत्र कांग्रेस ने खतरे में देखा तो उसने बड़े फैसले लेने में देर नहीं की. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी के हाथों में जब कांग्रेस और देश एकसाथ कमजोर दिखे और लोकतंत्र खतरे में महसूस हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें ‘उठाकर’ हटाने का फैसला ‘भारी मन’ से लेने में देर नहीं की. यहां तक कि देश को आर्थिक उदारवाद के रूप में प्रगति की नई राह दिखाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की आवाज भी ‘सम्मोहित’ नहीं कर सकी.

आज कांग्रेस की ही तरह देश के तमाम दिग्गज नेता अपनी अपनी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ लोकतंत्र बचाने में जुटे हुए हैं. लोकतंत्र को लेकर उनकी निष्ठा ही कांग्रेस के साथ महागठबंधन के आड़े आ रही है.

एनसीपी चीफ शरद पवार महागठबंधन की संभावनाओं को खारिज करते सुने जा सकते हैं तो टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी और टीआरएस नेता केसी राव लोकतंत्र बचाने के लिये तीसरे मोर्चे की तैयारी करते दिख रहे हैं.

बहरहाल खड़गे ने भी पीएम मोदी को ‘चायवाला’ कह कर देश की सियासत में चाय का उबाल ला दिया है. खड़गे से पूछा जा सकता है कि क्या वो देश के लोकतंत्र को बचाने के लिये साल 2019 में भी चायवाले को देश का पीएम बनने देंगे?

अगर एक बार कांग्रेस ‘देशहित’ में इतना बड़ा फैसला ले सकती है तो दूसरी बार भी लोकतंत्र की खातिर कांग्रेस को पीएम मोदी को दूसरा मौका देना चाहिये.

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये आरोप भी लगाया कि पिछले चार साल से देश में अघोषित आपातकाल है. खड़गे जी ने 1975 की घोषित इमरजेंसी भी देखी है. उनसे पूछा जाना चाहिये कि क्या अघोषित इमरजेंसी में जितनी बेबाकी से वो और तमाम सियासी-गैर सियासी लोग अपनी बात, अपना विरोध और मोदी हमला जारी रखे हुए हैं क्या वो 1975 की इमरजेंसी में संभव होता?

बहरहाल लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस के भीतर एक आवाज प्रियंका गांधी को भी लाने की काफी समय से गूंज रही है. लेकिन कांग्रेस फिलहाल इस आवाज को अनसुना कर रही है. लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस को अपने सारे ऑप्शन्स भी खुले रखने चाहिये.

आआपा ईडब्ल्यूएस कैटगरी में एडमिशन के लिए हर महीने दी जाने वाली राशि में प्रत्येक बच्चे पर 600 रुपए का इजाफा किया है

 


शिक्षा निदेशालय के अधिकारी ने कहा, ‘मौजूदा रकम को बढ़ाने का निर्णय लिया गया है, अगले शैक्षणिक सत्र से नर्सरी से पांचवीं कक्षा के छात्रों के लिए 2,242 रुपए और छठी से आठवीं के लिए 2,225 रुपए दिए जाएंगे’


आआपा  सरकार ने दिल्ली में सभी निजी स्कूलों को अगले शिक्षण सत्र में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कैटगरी में एडमिशन के लिए हर महीने दी जाने वाली राशि में प्रत्येक बच्चे पर 600 रुपए का इजाफा किया है.

उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को लगातार विभिन्न निजी स्कूलों से सरकार द्वारा ईडब्ल्यूएस श्रेणी के बच्चों को दाखिला दिए जाने के बदले मिलने वाली ‘मामूली रकम’ को लेकर शिकायतें मिल रही थी. इसके बाद इस रकम में बढ़ोतरी की गई है.

शिक्षा निदेशालय (डीओई) के अधिकारी ने कहा, ‘मौजूदा रकम को बढ़ाने का निर्णय लिया गया है, नर्सरी से पांचवीं कक्षा के छात्रों के लिए 2,242 रुपए और छठी से आठवीं के लिए 2,225 रुपए दिए जाएंगे. अब तक सरकार इस श्रेणी में दाखिले के बदले 1,598 रुपए देती थी.’

आआपा  सरकार स्कूलों को हर वर्ष पांचवीं कक्षा तक के छात्रों के यूनीफॉर्म के लिए 1,100 रुपए और आठवीं तक छात्रों के लिए 1400 रुपए भी देगी.

सिब्बल ने बैल गाड़ी पर लिञ्च पुजारी कहा मोदी सरकार को


नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले शनिवार को कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के जमानत पर बाहर होने का जिक्र करते हुए कांग्रेस पार्टी को ‘बैल गाड़ी’ कहा था


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार पर पलटवार करते हुए कहा कि लोग इस पार्टी को अब ‘लिंच पुजारी’ कहने लगे हैं.

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले शनिवार को कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के जमानत पर बाहर होने का जिक्र करते हुए कांग्रेस पार्टी को ‘बेल गाड़ी’ कहा था. पीएम मोदी के इस तंज के एक दिन बाद सिब्बल ने बीजेपी को ‘लिंच पुजारी’ कहा है.

सिब्बल ने ट्वीट कर कहा, ‘लिंचिंग के दोषी आठ आरोपियों को जब जमानत मिली तो जयंत सिन्हा ने माल्यार्पण कर उनका स्वागत किया. आपने गलत समझा है मोदीजी. वे कह रहे हैं कि आपकी सरकार लिंच पुजारी बन गई है.’

सिब्बल ने उस घटना का जिक्र किया है जब जब झारखंड के रामगढ़ लिंचिंग मामले में जमानत पर रिहा होने के बाद केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने कथित तौर पर इन आठ आरोपियों का स्वागत किया था.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, हाईकोर्ट ने इन दोषियों की उम्रकैद की सजा पर रोक लगाकर इन्हें जमानत दे दी थी और जमानत के बाद ये दोषी स्थानीय बीजेपी नेता के साथ जयंत सिन्हा के आवास पर पहुंचे थे. जयंत सिन्हा ने यह कहते हुए अपना बचाव किया है कि उनका देश की न्यायिक प्रणाली और कानून में पूरा विश्वास है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने शनिवार को ट्वीट किया कि वह इस बात से खुश नहीं हैं कि उनके बेटे जयंत सिन्हा ने झारखंड में रामगढ़ लिंचिंग केस के आठ दोषियों का माला पहनाकर स्वागत किया था. सिन्हा ने ट्वीट किया कि वह अपने बेटे के कदम से इत्तेफाक नहीं रखते हैं.

यशवंत सिन्हा ने ट्वीट किया, ‘पहले मैं लायक बेटे का नालायक पिता था लेकिन रोल बदल चुके हैं. ऐसा ट्विटर पर लोग कह रहे हैं. मैं अपने बेटे के फैसले से इत्तेफाक नहीं रखता हूं. लेकिन मुझे पता है कि इसके बाद भी ट्विटर पर अपमान होगा. आप कभी जीत नहीं सकते.’

एक राष्ट्र एक चुनाव मे दुविधा में कांग्रेस्स


क्षेत्रीय पार्टियों ने आशंका जताई है कि एक साथ चुनाव कराने पर राष्ट्रीय पार्टियां और राष्ट्रीय मुद्दे चुनावी माहौल में ज्यादा हावी हो जाएंगे और इसका नुकसान छोटी पार्टियों को उठाना पड़ेगा


देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर गंभीर विचार-विमर्श जारी है. कई पार्टियों ने इसके समर्थन में हामी भरी है तो कांग्रेस और लेफ्ट जैसी पार्टियों ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव ने एकसाथ चुनाव कराए जाने का समर्थन किया है और इस बाबत विधि आयोग को पत्र भी लिखा है.

समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने भी अपना समर्थन जाहिर करते हुए कहा कि उनकी पार्टी एक देश-एक चुनाव के पक्ष में है लेकिन यह 2019 से शुरू होना चाहिए. यादव ने मांग की कि कोई जनप्रतिनिधि अगर पार्टी बदलता है या खरीद-फरोख्त में लिप्त पाया जाता है तो उसके खिलाफ एक हफ्ते में कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए.

तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई ओर डीएमके ने पुरजोर विरोध जताया है

इस बीच, क्षेत्रीय पार्टियों ने आशंका जताई है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने पर राष्ट्रीय पार्टियां और राष्ट्रीय मुद्दे चुनावी माहौल में ज्यादा हावी हो जाएंगे और इसका नुकसान छोटी पार्टियों को उठाना पड़ेगा. तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई ने विधि आयोग की बैठक में हिस्सा तो लिया लेकिन दोनों पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का जोरदार विरोध किया. दक्षिण की पार्टी डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन भी इसके विरोध में हैं. उनके मुताबिक एकसाथ चुनाव कराया जाना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

उधर, एनडीए की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन करते हुए कहा कि इससे पार्टियों के खर्च में कमी आएगी और विकास कार्यों को रोकने वाली आदर्श आचार संहिता की अवधि कम होगी. एसएडी का प्रतिनिधित्व पार्टी के राज्यसभा सदस्य नरेश गुजराल ने किया. उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने के लिए किसी विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाए जाने की स्थिति में राज्यसभा चुनावों पर पड़ने वाले प्रभाव का मुद्दा उठाया.

बीजेपी नेता सुब्रह्मणियम स्वामी ने एक साथ चुनाव कराए जाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है और कहा है कि यह विपक्षी पार्टियों के ऊपर है कि वे इसका समर्थन करते हैं विरोध.स्वामी ने कहा, यह कांग्रेस और सीपीएम पर निर्भर करता है कि वे इसका समर्थन करते हैं या नहीं. उन्होंने कहा, बार-बार चुनावों पर इतना ज्यादा पैसा खर्च करने का क्या मतलब.

टीएमसी और सीपीआई ने इस प्रस्ताव को ‘अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक’ बताया है

तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके ने कहा कि यदि जरूरी ही है तो एक साथ चुनाव 2024 में कराए जाएं और उससे पहले कतई नहीं. सूत्रों ने बताया कि पार्टी का यह भी मानना है कि तमिलनाडु विधानसभा को अपना कार्यकाल पूरा करने की इजाजत दी जानी चाहिए और लोकसभा चुनाव अपने कार्यक्रम के अनुसार कराए जाने चाहिए.

टीएमसी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को ‘अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक’ बताया है. सीपीआई, एआईडीयूएफ और गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने भी ऐसी ही राय जाहिर की है.

कांग्रेस ने कहा कि वह इस बाबत अपने कदम पर फैसला करने से पहले अन्य विपक्षी पार्टियों से विचार-विमर्श करेगी.

विधि आयोग का क्या है प्रस्ताव?

विधि आयोग के एक प्रस्ताव में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ कराने की सिफारिश की गई है लेकिन कहा गया है कि यह चुनाव दो चरणों में कराए जाएं और इसकी शुरुआत 2019 से हो. आयोग के दस्तावेज के मुताबिक, एक साथ चुनाव का दूसरा चरण 2024 में होना चाहिए. इस दस्तावेज में संविधान और जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि इस कदम को प्रभावी बनाने के लिए विधानसभाओं के कार्यकाल में विस्तार किया जाए या कमी की जाए.

पहले चरण में उन राज्यों को शामिल किया जाएगा जहां 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं. उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्य दूसरे चरण में शामिल होंगे. इन राज्यों में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने के लिए इनकी विधानसभाओं के कार्यकाल बढ़ाने होंगे.