ताल भी सकता है राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव


राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव को लेकर सबकी नजर इस पर है कि क्या बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टियों को मना पाएगी या उनके सामने झुकेगी वहीं दूसरी तरफ विपक्षी एकता के दावे की भी परीक्षा है


भारतीय संसद के उच्च सदन के उपसभापति की जगह खाली है और फिलहाल उस जगह को भरने की संभावना दिख नहीं रही है. वर्तमान उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो चुका है और उनकीजगह नए उपसभापति की चयन प्रक्रिया संसद के आगामी सत्र के बीच में होनी है. लेकिन समस्या ये है कि इस सदन में सत्तारूढ़ दल बीजेपी के पास बहुमत नहीं है और ना ही विपक्षी दलों के पास सही आंकड़े हैं.

यही वजह है कि उपसभापति के चयन को लेकर मामला फंसा हुआ है. कांग्रेस नेता और राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल जब समाप्त हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें दोबारा मनोनीत नहीं किया है. बीजेपी की कोशिश है कि उच्च सदन का उपसभापति उनकी पार्टी का हो. लेकिन दोनों ही दलों को पास बहुमत नहीं है और यही वजह से वो पार्टी के किसी सदस्य के नाम को आगे नहीं कर पा रहे हैं. आमतौर से उपसभापति के कार्यकाल समाप्त होने के बाद आगामी संसद सत्र में चुनाव करा दिया जाता है. फिलहाल मानसून सत्र 18 जुलाई से शुरू होकर 10 अगस्त तक चलेगा.

भारत में संसद के दो सदन होते हैं, एक लोकसभा और दूसरा राज्यसभा. लोकसभा के सदस्यों को जनता मतदान करके चुनती है जबकि राज्यसभा के सदस्यों को राज्यों के चुने गए विधायक निर्वाचित करते हैं. ऐसे में राष्ट्रीय कानूनों और बिल में राज्यों की भी अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी बन जाती है.

राज्यसभा का उपसभापति

राज्यसभा की अध्यक्षता देश के उपराष्ट्रपति करते हैं. अभी वैंकेय्या नायडू उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के अध्यक्ष हैं. उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य मिलकर करते हैं. अध्यक्ष ही सभापति होते हैं और एक उपसभापति भी होते हैं, जिसे राज्यसभा के सदस्य मिलकर चुनते हैं.

सभापति के ना होने पर उपसभापतिराज्यसभा का कार्यभार संभालते हैं. अध्यक्ष या उपसभापति सदन की अध्यक्षता करता है, उसका काम नियमों के हिसाब से सदन को चलाना होता है. किसी भी बिल को पास कराने के लिए वोटिंग हो रही है तो उसकी देखरेख भी ये ही करते हैं. ये किसी भी राजनीतिक पार्टी का पक्ष नहीं ले सकते हैं. सदन में हंगामा होने या किसी भी और कारण से सदन को स्थगित करने का हक अध्यक्ष या उपसभापति को ही होता है. किसी सदस्य के इस्तीफा को मंज़ूर या नामंज़ूर करने का अधिकार अध्यक्ष का उपसभापति को ही होता है. नामंज़ूर करने की स्थिति में वो सदस्य सदन से इस्तीफा नहीं दे सकता है.

राज्यसभा में संख्या का गणित

राज्यसभा में 67 सांसदों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन बदले हालात में तेलगु देशम पार्टी का उससे नाता तोड़ने और शिव सेना के साथ रिश्ते खराब होने के बाद बीजेपी के लिए उपसभापति पद के चुनाव का सामना कर पाना आसान नहीं रह गया.

कांग्रेस पार्टी की सदस्य संख्या 51 रह गई है. लेकिन विपक्षी एकता के बदले हालात में तृणमूल कांग्रेस के 13, समाजवादी पार्टी के 6, टीडीपी 6, डीएमके के 4, बीएसपी के 4, एनसीपी के 4 सीपीएम के 4, सीपीआई के 1 और अन्य गैर बीजेपी पार्टियों की सदस्य संख्या को मिला दें तो वे बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं. हालांकि 13 सदस्यों वाली एआईएडीएमके बीजेपी के साथ जाएगी. ऐसे आसार हैं लेकिन 9 सदस्यों वाला बीजू जनतादल और शिव सेना समेत कुछ और दल अगर तटस्थता बनाए रखते हैं तो इससे विपक्षी पलड़ा भारी होना तय है.

अभी तक कांग्रेस के उम्मीदवार ही राज्यसभा के उपसभापति बनते थे. सिर्फ एक बार ये पद विपक्षी दल के पास गया था. अभी पिछले 41 सालों से कांग्रेस के पास डिप्टी स्पीकर का पद है और पिछले 66 सालों में से 58 सालों तक यह पद उसी के पास रहा है.

लेकिन बीजेपी की कोशिश है कि इस बार उपसभापति का पद उनकी पार्टी के पास जाए. बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी भी इस पद पर बीजेपी का उम्मीदवार का चयन चाहते हैं. उपसभापति के चुनाव के मुद्दे पर दोनों पार्टियों में बैठकों का दौर जारी है. हाल फिलहाल राज्यसभा में सदन के नेता अरुण जेटली के घर पर इस मुद्दे को लेकर बैठक भी बुलाई गई, जिसमें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित वरिष्ठ नेताओं ने भी शिरकत की.

इसी बैठक में सुझाव आया कि एनडीए के किसी घटक दल से उपसभापति का नाम आगे किया जाए और उसपर आम सहमति बनाने की कोशिश की जाए. हालांकि शिरोमणि अकाली दल के सदस्य नरेश गुजराल के नाम पर चर्चा की गई. मगर उनके नाम पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच सहमति नहीं बन पाई है.

वहीं कांग्रेस की तरफ से केरल से ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पीसी चाको का नाम उछला है. कांग्रेस का कहना है कि पीसी चाको से ज्यादा अनुभवी उम्मीदवार विपक्ष में नहीं हैं. चाको पहले भी राज्यसभा पैनल के सदस्य रहे हैं. मनमोहन सरकार के कार्यकाल में वे टूजी घोटाले की जांच के लिए बनी संसदीय समिति के चेयरमैन रहे चुके हैं. इस बात के संकेत हैं कि राहुल गांधी उन्हें उपसभापति पद का दावेदार बनाने के लिए उन्हें केरल से पार्टी की ओर से राज्यसभा उम्मीदवार घोषित कर दें.

21 जून को केरल की तीन राज्यसभा पर चुनाव होना है इनमें पीजे कुरियन भी शामिल हैं जो सदस्यता से रिटायर हो जाएंगे. 140 सदस्यों वाली केरल विधानसभा में केरल में मौजूदा समीकरणों के हिसाब से 22 सदस्यों वाली विपक्षी कांग्रेस पार्टी आईयूएमएल, केरल कांग्रेस (मणि) और केरल कांग्रेस (जे) के साथ मिलकर एक ही सदस्य को राज्यसभा में भेज सकती है.

सूत्रों का कहना है कि अगर एनडीए संख्याबल जुटाने में विफल रहता है, तो चुनाव को अगले शीतकालीन सत्र के लिए टाला जाए जा सकता है. हालांकि विपक्ष सत्र की शुरूआत में ही नए उपसभापति के चुनाव की मांग उठा सकता है.

चुनाव को अगले सत्र के लिए टालने के पीछे बीजेपी की दलील है कि संविधान में भी नए उपसभापति के चुनाव को लेकर कोई तय समय सीमा नहीं है. यह उपराष्ट्रपति यानी सभापति के विवेक पर निर्भर करता है. सूत्रों का कहना है कि यूपीए दौर में डा. रहमान खान के अवकाश प्राप्त करने के चार महीने बाद चुनाव हुआ था. खान दो अप्रैल को रिटायर हुए थे, लेकिन चुनाव के लिए मानसून सत्र का इंतजार किया गया था. उस समय 8 अगस्त को सत्र बुलाया गया था और उपसभापति का चुनाव 21 अगस्त को हुआ था.

लोकसभा चुनाव अगले साल होने वाले हैं. ऐसे में हर संसद और राज्य के हर चुनाव को सरकार की कार्यशैली और कूटनीति की परीक्षा के रूप में देखा जाता है. एक तरफ सबकी नजर इस पर है कि क्या बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टियों को मना पाएगी या उनके सामने झुकेगी वहीं दूसरी तरफ विपक्षी एकता के दावे की भी परीक्षा है. क्या कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के लिए ये पद छोड़ देगी और सालों से चली आ रही परंपरा को तोड़ देगी. मामला यहीं पर अटका है. राज्यसभा में सीटों का गणित किसी के भी पक्ष में नहीं है इसलिए पेंच फंसा हुआ है.

अगली लोकसभा के गठन के बाद संसद के नए भवन के निर्माण के प्रस्ताव पर अमल हो सकेगा: सुमित्रा महाजन


संसद भवन के लिए स्थान भी सुझाए गए हैं. इनमें से एक वर्तमान संसद परिसर में ही प्लॉट नंबर 118 है


सुमित्रा महाजन ने कहा, ‘संसद के नए भवन के निर्माण के विषय पर शहरी विकास मंत्रालय के साथ दो बैठक हुई हैं. हमने नए भवन के लिए कुछ वैकल्पिक स्थलों के बारे में भी सुझाव दिया है.’

उन्होंने कहा कि अब तो चुनावी साल में प्रवेश कर गए हैं. लोकसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं बचा है. ‘उम्मीद करते हैं कि अगली लोकसभा के गठन के बाद संसद के नए भवन के निर्माण के प्रस्ताव पर अमल हो सकेगा.’

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि आवश्यकताओं के अनुरूप वर्तमान संसद भवन छोटा पड़ रहा है. सदस्यों ने भी कहा है कि उन्हें बैठने में दिक्कत होती है, लेकिन इस भवन में सीटों की संख्या नहीं बढ़ा सकते. उन्होंने कहा कि अगली जनगणना के बाद अगर सदस्यों की संख्या बढ़ाने का विषय आया, तो इस पर अमल में समस्या आएगी.

सुमित्रा महाजन ने कहा कि संसद भवन 100 साल पुराना हो चुका है, इसकी मरम्मत कराने में भी डर लगता है. हालांकि रखरखाव और मरम्मत के काफी कार्य हुए हैं. अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने नौ दिसंबर 2015 को तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एम वैंकेया नायडू को पत्र लिखा था.

उन्होंने लिखा था कि वर्तमान भवन ग्रेड 1 हेरिटेज बिल्डिंग है और यह पुराना हो रहा है. मरम्मत में बाधाएं आने के साथ ही स्टाफ के काम में भी दिक्कत आने लगी है. इसके चलते नए भवन की जरूरत महसूस की जा रही है .

संसद भवन के लिए स्थान भी सुझाए गए हैं. इनमें से एक वर्तमान संसद परिसर में ही प्लॉट नंबर 118 है. हालांकि यहां नए भवन के निर्माण पर कुछ सुविधाओं और सेवाओं को स्थानांतरित करना पड़ेगा. दूसरा स्थान राजपथ के दूसरी ओर है.

संसद भवन का निर्माण साल 1921 में शुरू हुआ था. निर्माण पूरा होने के बाद यहां वर्ष 1927 से कामकाज शुरू हुआ. उस समय सुरक्षाकर्मियों, कर्मचारियों और मीडियाकर्मियों की संख्या और संसदीय गतिविधियां सीमित थीं, लेकिन समय के साथ इनमें इजाफा हुआ है.

CRIKC & CIIC to be developed soon

 

 

Dr Pramod Kumar, while speaking on the future of Chandigarh had that  “Chandigarh is emerging as the satellite town of Delhi. It has a potential to develop as a global destination in terms of culture, trade, knowledge exchange. It can locate a diplomatic enclave to realise this potential. The main focus should be to reach out to the people and influence policy planning institutions like CRIKC (Chandigarh Region Innovation and Knowledge Cluster) to be strengthened besides setting up an institution like India International Centre, Delhi.”

Both CM seconded the idea and also promised to contribute to turn the idea into reality.

It has been learnt that the proposed site of CIIC likely to be in one of the posh sectors of Chandigarh.

Here are some of the suggested features of the proposed CIIC

The underlying vision of CIIC will be aimed to have a vibrant space for preservation and dissemination of knowledge. The purpose is to make people’s contribution central in global processes through generation, dissemination and sharing of knowledge.

CIIC will try to support Chandigarh in its journey to emerge as an international city with number of knowledge imparting and disseminating institutions. To consolidate and reinforce its capacity to become a knowledge hub, CIIC shall make an effort to, preserve cultural impulse of the north-western region, promote spirit of enquiry to reinforce scientific temper and sustain dialogue. Chandigarh being a modern city with unique architecture will be used as an example to shape and influence process and pattern of urban development in the region in terms of people-centric growth of planned cities etc.

Chandigarh India International Centre will be a non-government institution, non-commercial in nature and carried out its activities in the spirit of public service. Its basic character and predisposition would be to remain non-aligned, non-governmental and non-affiliate to any political, economic or religious formations.

The aims and objectives of the proposed centre include:

  • To develop a place where statesmen, diplomats, policymakers, intellectuals, scientists, jurists, writers, artists and members of civil society meet to initiate the exchange of new ideas and knowledge in the spirit of international cooperation.
  • To promote dialogical tradition of lokayata  through lectures, seminars, workshops and conferencing etc.
  • To create a world class library fully equipped with modern technological facilities. It will have not only printed material, but also video and audio collections.
  • To invite cultural leaders, scholars, scientists and creative artists, who may or may not be members of the society, to exchange of new ideas, knowledge, art, skills and creativity.
  • To undertake, facilitate and provide for the publication of newsletters, research papers, and books, and of a journal for the exposition of cultural patterns and values prevailing in different parts of the world.

सख्त तय समयसीमा के साथ पूर्वाञ्चल एक्सप्रेसस्वे का शिलानियास हुआ आज, 2021 तक होगा तैयार


सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए सख्त डेडलाइन तय की है. अनुमान है कि 2021 तक यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को आजमगढ़ में 23 हजार करोड़ के पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की नींव रखी. 354 किलोमीटर लंबा यह एक्सप्रेसवे लखनऊ से गाजीपुर को जोड़ेगा. एक्सप्रेसवे की वजह से 6 घंटे का रास्ता केवल साढे 4 घंटे का रह जाएगा.

अखिलेश यादव की सरकार में इस एक्सप्रेसवे का नाम समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेस रखा गया था. इसके जरिए 302 किमी लंबे लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे और 165 किमी लंबे यमुना एक्सप्रेसवे से भी जुड़ा जा सकेगा. एक्सप्रेसवे का कुल नेटवर्क 800 किलोमीटर का हो जाएगा.

एक्सप्रेसवे की शुरुआत आजमगढ़ से होगी जोकि समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का क्षेत्र है. हालांकि वाराणसी तक एक्सप्रेसवे को जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया है. योगी सरकार ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पंजाब नेशनल बैंक से 12 हजार करोड़ का लोन पारित करा लिया है.

93 फीसदी जमीन खरीदने में खर्च हुए 6500 करोड़ रुपए

यूपी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी अवनीश अवस्थी ने बताया कि 6500 करोड़ रुपए 93 फीसदी जमीन को खरीदने में खर्च हुए. 11 जुलाई को राज्य सरकार ने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के लिए पांच बोलीदाताओं को 340 किलोमीटर के एक्सप्रेसवे के आठ हिस्सों के लिए अनुबंध सौंपकर टेंडर की प्रक्रिया पूरी की.

सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए सख्त डेडलाइन तय की है. अनुमान है कि 2021 तक यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा. अधिकारियों का कहना है कि वह 24 से 26 महीनों में प्रोजेक्ट को पूरा करने की कोशिश करेंगे.

हालांकि सपा और बीजेपी के बीच इस प्रोजेक्ट का श्रेय लेने की होड़ मची है. सपा इस प्रोजेक्ट से जुड़े फोटो शेयर कर रही है जिसमें 22 दिसंबर 2016 को अखिलेश यादव इस प्रोजेक्ट की नींव रख रहे हैं वहीं क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं ने आजमगढ़ में रैली लगाकर इस प्रोजेक्ट पर अपना दावा पेश किया.

वहीं इन्फ्रास्ट्रक्चर और इंडस्ट्री मामलों के मंत्री सताश महाना ने कहा कि 2016 में रखी गई नींव फर्जी थी. उन्होंने दावा किया कि पुरानी सरकार ने इस टेंडर को ऊंचे दामों में पास किया था.

राज्य सभा को मिले 4 मनोनीत सदस्य, बढ़ा भाजपा का आधार


राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोनल मान सिंह, राकेश सिन्हा, राम सकल और रघुनाथ महापात्रा का नाम राज्यसभा के नए सांसद के तौर पर मनोनीत किया है


 

राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति ने चार लोगों के नाम को मनोनित किया है. ये चारों लोग अलग-अलग क्षेत्र के हुनरमंद हैं. इनमें राकेश सिन्हा, राम सकल, रघुनाथ महापात्रा और सोनल मान सिंह का नाम शामिल है. संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए और प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति ने इन 4 नामों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है.

आइए जानते हैं इन चारों के बारे में…

राकेश सिन्हा

राकेश सिन्हा दिल्ली यूनिवर्सिटी के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में प्रोफेसर हैं और आरएसएस के विचारक हैं. लेकिन राकेश सिन्हा के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1980 में हुई थी. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए उन्होंने तय किया कि वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के उम्मीदवार के तौर पर छात्र संघ का चुनाव लड़ेंगे. सिन्हा ने एक अच्छा कैंपेन चलाया लेकिन वो जीत नहीं सके.

हिंदू कॉलेज में पढ़ने वाले कम ही छात्र इस प्रकार की महत्वकांक्षा रखते हैं. सिन्हा जब मैदान में थे बिहारी बनाम लोकल का मुद्दा अपने चरम था. ऐसे में उनका चुनाव लड़ने का निर्णय लेना एक महत्वपूर्ण कदम था.

एक छात्र और राजनीतिक की तरफ झुकाव रखने वाले एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में की गई उनकी कड़ी मेहनत का फल आने वाले सालों में उन्हें मिलने लगा. वो राइट विंग बुद्धिजीवियों के सबसे प्रसिद्ध चेहरों में से एक बन गए. ऐसा इसलिए नहीं था कि वे आरएसएस और उनके सहयोगियों को अच्छी तरह से जानते थे और उन्होंने आरएसएस संस्थापक केबी हेडगेवार पर अपना पोस्ट ग्रेजुएशन डिजर्टेशन लिखा था. बल्कि उन्होंने वामपंथी विचारधारा और राजनीतिक को समझने के लिए काफी समय और ऊर्जा खर्च की थी.

वाम दलों पर काफी रिसर्च किया है राकेश सिन्हा ने

राकेश सिन्हा ने हार्डकोर राइट विंगर होते हुए भी अपना एमफिल, नागरिक स्वतंत्रता आंदोलन पर करने को चुना. इसके बाद उन्होंने अपने पीएचडी रिसर्च के लिए सीपीआई (एम) के संगठनात्मक और विचाराधारात्मक परिवर्तन को चुना.

उनको पहली बार तब प्रसिद्धि हासिल हुई जब उन्होंने आरएसएस संस्थापक हेडगेवार पर किताब लिखी. इसे उस समय का हेडगेवार पर पहला प्रमाणिक जीवनी कहा गया. सिन्हा ने एक राइट विंग थिंक टैंक, इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन की भी स्थापना की.

एक समय जब आरएसएस अपने काम और दर्शन के बारे में बहुत चुनिंदा या लगभग गुप्त रहता था. यहां तक कि सार्वजनिक मंच पर खुद को बचाने में भी, खासकर समाचार चैनलों पर, तब सिन्हा ने संघ परिवार का अघोषित प्रवक्ता बनने की पहल की.

सिन्हा ने अपने दोस्तों के बीच कभी भी अपनी आकांक्षाओं को गुप्त नहीं रखा. वह खुले तौर पर संसद के ऊपरी सदन में एक सांसद के तौर पर जाने की अपनी बात को कहते थे और इस मंच से बहस करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते थे.

सिन्हा को कई संस्थानों का नेतृत्व करने का प्रस्ताव मिला लेकिन उन्होंने इसे सवीकार नहीं किया. आज सिन्हा यह कह सकते हैं उन्हें जो चाहिए था, वह मिल गया है. इसके लिए वे अपने विचारधारात्मक परिवार का धन्यवाद भी कह सकते हैं.

राम सकल

इनके अलावा, उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले राम सकल किसान नेता हैं. दलित समुदाय के कल्याण और बेहतरी के लिए उन्होंने कई काम किए हैं. वो पूर्व में लगातार 3 बार रॉबर्टसगंज से बीजपी के सांसद भी रह चुके हैं. लेकिन 2004 में उन्हें टिकट नहीं मिला. आरएसएस से मजबूत संबंध रखने वाले राम सकल संघ के जिला प्रचारक थे. टिकट नहीं मिलने के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया. अब जब उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनित किया गया है, तो एक बार फिर भारतीय संसद में जाने के लिए तैयार हैं.

रघुनाथ महापात्रा

रघुनाथ महापात्रा अद्भुत प्रतिभा के धनी हैं. उनकी शिल्पकला का जादू देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी माना जाता है. साल 2013 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाज़ा गया था. इससे पहले उन्हें पद्म भूषण, शिल्प गुरु अवार्ड जैसे कई समान मिल चुके हैं.

अब तक उन्होंने लगभग 2000 छात्रों को ट्रेनिंग दी है. देश की पारंपरिक शिल्प कला को सहेजने में उनका बहुत बड़ा योगदान है. उनकी कला की खूबसूरती पुरी के जगन्नाथ मंदिर में देखने को मिलती है. उनके कई कामों को देश और विदेश में खूब ख्याति मिली. इसमें से एक संसद के सेंट्रल हॉल में लगी भगवान सूर्य की 6 फीट लंबी प्रतिमा है. उनके द्वारा बनाए गए लकड़ी के बुद्धा को पेरिस के बुद्धा मंदिर में रखा गया है.

सोनल मानसिंह

ओडिसी डांस के प्रमुख प्रदर्शकों में से एक सोनल मानसिंह प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक, शोधकर्ता, वक्ता, कोरियोग्राफर और शिक्षिका हैं. सोनल मानसिंह ओडिसी के अलावा, भरतनाट्यम में भी माहिर हैं. उन्होंने कई भारतीय पौराणिक कथाओं के माध्यम से कई नृत्य कलाएं बनाई हैं. सोनल मानसिंह को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. इनको 1992 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और वह सबसे कम उम्र में पद्म भूषण पाने वाली महिला हैं.

Result Of Indian Forest Service (Preliminary) Examination, 2018 Also Declared

 

 

New Delhi, July 14, 2018 :

UPSC has also declared the result of civil service (preliminary) examination, 2018 for admission in Indian forest service (main) examination, 2018

The following is the text of the official release of UPSC :

Result of civil service (preliminary) examination, 2018 for candidates who have qualified for admission in indian forest service (main) examination, 2018. On the basis of screening test held through Civil Service (Preliminary) Examination, 2018 on 03-6-2018, the candidates with the following Roll Numbers have qualified for admission to the Indian Forest Service (Main) Examination, 2018. The candidature of these candidates is provisional. In accordance with the Rules of the Examination, all these candidates have to apply again in the Detailed Application Form (DAF) for IFoS (Main) Examination, 2018 which would be available on the website of the Union Public Service Commission www.upsconline.nic.in. All the qualified candidates are advised to fill up the DAF-IFoS, make the payment of Fee (Where applicable) as per the prescribed mode i.e. ONLINE and submit the same ONLINE for admission to the Indian Forest Service (Main) Examination, 2018 to be held from 2nd December 2018. The DAF will be available on the Commission website from 04-09-2018 to 18-09-2018 till 06.00 PM. important instructions (regarding filling up of the DAF-IFoS and submitting the same ONLINE to the Commission) would also be available on the website. The qualified candidates have to first get themselves registered on the relevant page of the website before filling up the ONLINE Detailed Application Form. The qualified candidates are further advised to refer to the Rules of the Indian Forest Service (Main) Examination, 2018, published in the gazette of India (Extraordinary) of Ministry of Environment Forests and Climate Change dated 07-02-2018. It may be noted that mere submission of application form does not, ipso facto, confer on any right for admission to the Main Examination. The E-Admit card alongwith the time table of the Main Examination will be uploaded on the Commission’s website for the eligible candidates 3 weeks before the commencement of the Examination. Changes, if any, in the postal address or e-mail address or mobile number after submission of the DAF may be communicated to the Commission at once. Candidates are also informed that marks, cut off marks and answer keys of screening test held through CS(P) Examination, 2018 will be uploaded on the Commission web site i.e., www.upsconline.nic.in only after entire process of the IFoS Examination, 2018 is over i.e. after the declaration of final result of IFoS Examination, 2018. The Union Public Service Commission has a Facilitation Counter near the Examination Hall Building in its Campus. Candidates may obtain any information/clarification regarding their result of the above mentioned examination on all working days between 10.00 Hrs. to 17.00 Hrs. in person or on Tel. No. 011-23385271, 011-23098543 or 011-23381125 from this Facilitation Counter. Candidates can also obtain information regarding their result by accessing Union Public Service Commission Website www.upsconline.nic.in. The result of Roll Number 1048940 has been withheld as the issue regarding the candidature is subjudice:

Click at pdf to get details and list of successful candidates.

Civil Services (Preliminary) Exmination, 2018 Result Declared

New Delhi, July 14, 2018 :

UPSC has declared the result of result of the Civil Services (Preliminary) Examination, 2018.

The following is the text of the official release of UPSC:  On the basis of the Examination, 2018 held on 03/06/2018, the candidates with the following Roll Numbers have qualified for admission to the Civil Services (Main) Examination, 2018.

The candidature of these candidates is provisional. In accordance with the Rules of the Examination, all these candidates have to apply again in the Detailed Application Form, DAF (CSM), for Civil Services (Main) Examination, 2018, which would be available on the website of the Union Public Service Commission www.upsconline.nic.in. All the qualified candidates are advised to fill up the DAF (CSM) online and submit the same ONLINE for admission to the Civil Services (Main) Examination, 2018 to be held from Friday the 28.09.2018. The DAF (CSM) will be available on the website of the Commission from 23/07/2018 to 06/08/2018 till 6.00 P.M.

Important instructions for filling up of the DAF (CSM) and for submitting the completely filled application form ONLINE to the Commission, would also be available on the website. The candidates who have been declared

successful have to first get themselves registered on the relevant page of the website before filling up the ONLINE

DAF. The qualified candidates are further advised to refer to the Rules of the Civil Services Examination, 2018

published in the Gazette of India (Extraordinary) of Department of Personnel and Training Notification dated 07.02.2018.

It may be noted that mere submission of application form DAF(CSM), either online or the printed copy thereof, does not, ipso facto, confer upon the candidates any right for admission to the Main Examination. The eAdmit card along with the time table of the Main Examination will be uploaded on the Commission’s Website to the eligible candidates around 3 weeks before the commencement of the examination. Changes, if any, in the postal address or email address or mobile number after submission of the DAF (CSM) may be communicated to the Commission at once.

Candidates are also informed that marks, cut off marks and answer keys of screening test held through CS (P) Examination, 2018 will be uploaded on the Commission website i.e., www.upsconline.nic.in only after the entire process of CS(M) Examination, 2018 is over i.e. after the declaration of final result of Civil Services Examination, 2018.

The Union Public Service Commission has a Facilitation Counter near the Examination Hall Building in its Campus at Dholpur House, Shahjahan Road, New Delhi. Candidates may obtain any information/clarification regarding their result of the above mentioned examination on all working days between 10.00 AM to 5.00 PM, in person or on Tel. No. 011-23385271, 011-23098543 or 011-23381125 from this Facilitation Counter.

Candidates can also obtain information regarding their result by accessing Union Public Service Commission Website www.upsconline.nic.in

The result of Roll Numbers 0420287, 0633049, 0888064, 1048940, 5902495 and 6609761 have been withheld as the issue regarding their Candidatures are sub-judice.

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आप खुद को दिल्ली का ‘सुपरमैन’ समझते हैं : सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने एलजी को फटकार लगाते हुए सख्त लहजे में पूछा है कि दिल्ली में कूड़ा प्रबंधन के लिए कौन जिम्मेदार है? आप खुद को दिल्ली का ‘सुपरमैन’ समझते हैं?


  1. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में कूड़ा प्रबंधन और निस्तारण में नाकाम रहने पर दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल को कड़ी फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने एलजी को फटकार लगाते हुए सख्त लहजे में पूछा है कि दिल्ली में कूड़ा प्रबंधन के लिए कौन जिम्मेदार है?
  2. सुप्रीम कोर्ट ने एलजी से पूछा कि आप खुद को दिल्ली का सुपरमैन समझते हैं. आपको लगता है कि आपको कोई छू नहीं सकता है. आप एक संवैधानिक पद पर बैठे हैं और आपके पास काम आता है तो आप सिर्फ पास कर देते हैं?
  3. आप अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही दूसरे पर टाल नहीं सकते. दिल्ली में कूड़े के ढेर की ऊंचाई कुतुब मीनार के बराबर पहुंच गई है. आप बताइए कि भलस्वा, गाजीपुर और ओखला में कूड़े के पहाड़ को कब तक हटाएंगे?
  4. सुप्रीम कोर्ट ने एलजी से सख्त लहजे में पूछा कि आप दिल्ली सरकार की किसी मीटिंग में भी नहीं जाते हैं. आप अपने स्वास्थ्य मंत्री को भी कुछ नहीं समझते. आप हर मामले को लेकर सीएम को घसीट लेते हैं. अब आपको सिंपल अंग्रेजी में बताना होगा कि दिल्ली में कूड़े का पहाड़ कब हटेगा?

अबतक आपने इस मसले पर क्या किया इससे हमारा कोई मतलब नहीं है. आप कूड़े के पहाड़ हटाने को लेकर एक टाइमलाइन और स्टेटस रिपोर्ट बुधवार तक कोर्ट को सौंपें. इस मामले की अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को खुद ही संज्ञान में लेते हुए दिल्ली में फैलते डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया को लेकर सुनवाई शुरू की है. पिछले मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में कूड़ा प्रबंधन को लेकर दिल्ली सरकार से पूछा था कि दिल्ली में कूड़ा प्रबंधन की जिम्मेदारी किसकी है? दिल्ली के सीएम की, दिल्ली के एलजी की या फिर केंद्र सरकार की?

एलजी के प्रति जवाबदेह है दिल्ली नगर निगम 

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि दिल्ली नगर निगम एलजी के प्रति जवाबदेह है. सुप्रीम कोर्ट में दो जजों न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने एलजी की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद को भलस्वा, गाजीपुर और ओखला से कूड़े के पहाड़ को हटाने के लिए एक निश्चित समय सीमा बताने को कहा.

एलजी की ओर से पेश पिंकी आनंद ने कोर्ट से कहा कि जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं और उचित निर्देश के बाद ही हम अदालत को समय सीमा बताएंगे. बता दें कि पिछली सुनवाई के दौरान अमाइकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजालिव्स ने अदालत को बताया था कि कूड़ा प्रबंधन को लेकर गुरुग्राम नगर निगम अच्छा काम रहा है.

गुरुग्राम नगर निगम की इस तकनीक को दिल्ली में भी लागू किया जाना चाहिए. इस पर अदालत ने गुरुग्राम नगर निगम के डिप्टी डायरेक्टर को कूड़ा प्रबंधन और निस्तारण के बारे में अदालत को बताने को कहा है. साथ ही एलजी को गुरुग्राम के डिप्टी डायरेक्टर से सलाह लेने को भी कहा है.

पिछली सुनवाई के दौरान ही एलजी की तरफ से अदालत को एक हलफनामा दाखिल किया गया था. इस हलफनामे में बताया गया था कि आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर मनोज दत्ता की अध्यक्षता वाली साइंटिकफिक एडवाइजरी कमेटी ने कूड़े के प्रबंधन और निस्तारण पर एक रिपोर्ट तैयार की है, जिस पर अमल होना शुरू हो गया है.

साथ ही दिल्ली में तीनों कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई पहले से कम करने की दिशा में कदम उठा लिए गए हैं. अगले कुछ महीनों में कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई को पांच से सात मीटर कम कर लिया जाएगा.

पिछले तीन-चार सालों से दिल्ली में उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच अक्सर तकरार की खबर आती रही है. एलजी और दिल्ली सरकार के बीच टकराव का खामियाजा दिल्ली की जनता को भुगतना पड़ रहा है. कई ऐसी योजनाएं और कई ऐसे फैसले दोनों के टकराव के कारण बाधित हो रखे हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का एलजी पर कड़ा रुख अख्तियार करना एक अलग ही कहानी बयां कर रहा है.

 

पहली बार एलजी को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार

पिछले तीन-चार सालों से ज्यादातर दिल्ली सरकार की ही आलोचना होती रही है. कोर्ट और राजनीतिक बयानों में भी केजरीवाल सरकार को ही दिल्ली के हर फैसले के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. शायद पिछले कुछ सालों में यह पहली बार हुआ होगा जब सुप्रीम कोर्ट ने एलजी को फटकार लगाई है.

बता दें कि चाहे वह मोहल्ला क्लीनिक का मसला हो या दिल्ली के नाले की साफ-सफाई का मसला हो या फिर दरवाजे पर ही राशन डिलीवरी का मसला हो. दिल्ली सरकार लगातार आरोप लगाती रही है कि इन तमाम नीतिगत फैसलों पर एलजी जानबूझ कर अड़ंगा लटका रहे हैं.

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट के बाद यह लगने लगा था कि दिल्ली सरकार और एलजी के बीच अब सब कुछ ठीक हो जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और एलजी के अधिकारों के बीच एक लकीर खींचने का फरमान सुना दिया था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दिल्ली की जनता को लगा था कि अब दोनों के बीच तकरार खत्म हो जाएगी.

लेकिन, दिल्ली की जनता सुप्रीम कोर्ट के लकीर खींचने वाली जजमेंट के बाद भी एक-दो दिनों तक गलतफहमी में ही जीती रही. जिस तकरार की खत्म होने की खबर सुनकर दिल्ली की जनता एक-दो दिन चैन से सोती रही, उसके अगले ही दिन दोनों के बीच तकरार की खबर आ गई. ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर दोनों ने एक बार फिर से एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

पिछले तीन-चार सालों में शायद एक भी ऐसा दिन नहीं आया होगा जब दिल्ली की जनता को दोनों के बीच तकरार की खबर सुनने को नहीं मिली होगी. लेकिन, सवाल यह है कि दिल्ली में क्या इस तरह के टकराव पहले की सरकारों और एलजी के बीच भी हुआ करते थे? और अब सुप्रीम कोर्ट के एलजी पर सख्त रुख के बाद क्या दिल्ली सरकार और एलजी के बीच टकराव खत्म हो जाएंगे?


वैसे पूछ रहे हैं :

कूड़ा प्रबंधन कि, नियुक्ति- पदोन्नति एवं स्थानांतरण जवाबदेही एलजी की।

सड़कों स्कूलों सरकारी इमारतों के रख रखाव की जवाबदेही नगर निगम की।

राजधानी में पुलिस व्यवस्था सुरक्षा इत्यादि की जवाबदेही गृह मंत्रालय की।

तो फिर वह कौन है जो एलजी के घर जा कर सो जाता है, किसी आयोजन पर न बुलाये जाने से खफा हो कर दिल्ली की सड़कों पर लोटने लगता है हर समय  किसी न किसी को कोस्ता रहता है बिना मंत्रालय के दिल्ली मुख्तार है सबसे बड़ा सवाल वह है किस लिए?

आआपा प्रमुख को यादव में दिख रहीं हैं आपार संभावनाएं


राजनीति की पल-पल बदलती परिस्थिति में आज अरविंद केजरीवाल को योगेंद्र यादव में सार्थकता नजर आने लगी है, लेकिन इन्हीं अरविंद केजरीवाल ने विचारों में अंतर के कारण योगेंद्र यादव को पार्टी से निकाल दिया था.


दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में दो पुराने बिछड़े दोस्तों की फिर से मिलने की खबर से हलचल बढ़ गई है. यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि दो पुराने बिछड़े दोस्त एक बार फिर से एक होने जा रहे हैं. अरविंद केजरीवाल और योगेंद्र यादव के दिल जुड़ने को लेकर कयासों का बाजार गर्म है. हालांकि, इस खबर पर अब तक किसी भी तरफ से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं आई है लेकिन कुछ राजनीतिक घटनाक्रमों के बाद इतना तो तय हो गया है कि अरविंद केजरीवाल और योगेंद्र यादव के बीच जमी बर्फ अब कुछ-कुछ पिघलने लगी है. बर्फ पिघलने की सुगबुगाहट दोनों पार्टियों के अंदर देखी जा रही है.

बुधवार को स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने केंद्र सरकार पर उनके परिवार को तंग करने का आरोप लगाया था. यादव ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर मोदी सरकार पर अपने रिश्तेदारों को परेशान करने का आरोप लगाया था. योगेंद्र यादव का कहना था कि मोदी सरकार इनकम टैक्स विभाग का इस्तेमाल कर मेरी बहन और भांजे को फंसाने का काम कर रही है. योगेंद्र यादव ने ट्विटर पर लिखा था कि मोदी सरकार को अगर रेड करनी है तो मेरे घर रेड करे, मेरे परिवार को क्यों तंग कर रहे हो?

बता दें कि हरियाणा के रेवाड़ी में कलावती अस्पताल और कमला नर्सिंग होम्स पर बुधवार को आईटी विभाग की रेड पड़ी थी. ये दोनों अस्पताल योगेंद्र यादव की बहन पूनम यादव और नीलम यादव के हैं. इंकम टैक्स विभाग को रेड में रु 20,00,000.00  मिलने का दावा भी किया गया, जिस पर योगेन्द्र यादव की कोई टिप्पणी नहीं आई

योगेंद्र यादव के रिश्तेदारों के यहां आईटी विभाग के छापे के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं. इस मसले पर सबसे दिलचस्प प्रतिक्रिया दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की आई. अरविंद केजरीवाल अपने पूर्व सहयोगी और स्वराज इंडिया पार्टी के प्रमुख योगेंद्र यादव के परिवार के सदस्यों पर आईटी रेड का विरोध में उतर आए. अरविंद केजरीवाल ने इस मामले के बहाने पीएम मोदी पर जमकर निशाना साधा. केजरीवाल ने ट्वीट करते हुए कहा कि पीएम मोदी को बदले की राजनीति अब बंद कर देनी चाहिए.

बता दें कि केजरीवाल के कभी सहयोगी रहे और आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक योगेंद्र यादव हाल के दिनों में अपनी उपयोगिता को काफी मजबूती के साथ दर्शाया है. देश के कई राज्यों में स्वराज इंडिया पार्टी किसानों के समर्थन में किए गए अभियान की काफी तारीफ हुई है.

जानकारों का मानना है कि हाल के कुछ वर्षों में देश की सोशल मीडिया पर स्वराज इंडिया की तरफ से किसानों की समस्या को लेकर किए गए धरना और प्रदर्शन की काफी तारीफ हुई है. आईटी विभाग के द्वारा योगेंद्र यादव के रिश्तेदारों के यहां रेड को भी कहीं न कहीं इसी नजरिए से देखा जा रहा है. सोशल मीडिया पर स्वराज अभियान द्वारा जारी पदयात्रा को लेकर भी अब तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं.

दरअसल देश के कई राज्यों में किसानों की बेहतरी के लिए योगेंद्र यादव पदयात्रा कर रहे हैं. पिछले दिनों ही हरियाणा में स्वराज यात्रा निकाली गई. इस यात्रा को किसानों का अच्छा खासा समर्थन मिला था.

राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा आम है कि हरियाणा में स्वराज इंडिया का अच्छा-खासा जनाधार बढ़ा है. पार्टी के बढ़ते जनाधार को देखते हुए ही अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर से योगेंद्र यादव से नजदीकी बढ़ाने की दिशा में पहला कदम उठा दिया है.

हाल के कुछ दिनों में योगेंद्र यादव की पार्टी स्वराज इंडिया हरियाणा में आम आदमी पार्टी से ज्यादा सक्रिय नजर आ रही है. साल 2019 लोकसभा चुनाव को देखते हुए आम आदमी पार्टी भी हरियाणा में अपना वजूद तलाशने में लगी हुई है. आम आदमी पार्टी को चिंता इस बात की है कि दिल्ली की तरह हरियाणा में भी कहीं योगेंद्र यादव उसका नुकसान न कर दें.

पिछले साल दिल्ली के एमसीडी चुनाव में भी स्वराज इंडिया पार्टी को बेशक कुछ ज्यादा सफलता नहीं मिली थी, लेकिन पार्टी ने आम आदमी पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाई थी. नतीजा यह हुआ कि कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली नगर निगम चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. ऐसे में अगर स्वराज इंडिया पार्टी हरियाणा में उतरती है तो वह भले ही सरकार न बना पाए, लेकिन आम आदमी पार्टी को सत्ता में आने से रोक जरूर सकती है.

राजनीति की पल-पल बदलती परिस्थिति में आज अरविंद केजरीवाल को योगेंद्र यादव में सार्थकता नजर आने लगी है, लेकिन इन्हीं अरविंद केजरीवाल ने विचारों में अंतर के कारण योगेंद्र यादव को पार्टी से निकाल दिया था. इसके बाद ही योगेंद्र यादव ने स्वराज इंडिया पार्टी का निर्माण किया.

वर्तमान में स्वराज इंडिया से जुड़े और पूर्व में आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक प्रोफेसर आनंद कुमार ने अरविंद केजरीवाल और योगेंद्र यादव के साथ आने की संभावना पर बात की. आनंद कुमार ने कहा, ‘देखिए योगेंद्र यादव ने अपनी तरफ से तो अलगाव की कोशिश नहीं की थी, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने प्रशांत भूषण से टेलिफोन पर भी हेलो करने से मना कर दिया था. जब अरविंद केजरीवाल के पास इतना शिष्टाचार भी नहीं बचा था और इतना अहंकार आ गया था. तो अब फिर से साथ आने की पहल अरविंद केजरीवाल के निर्णय पर ही निर्भर करेगी. मुझे उम्मीद है कि वह (अरविंद केजरीवाल) सुधरेंगे. चुनाव सिर पर आ गया है. दिल्ली में नगर पालिका के चुनाव में भी आप का वोट प्रतिशत 54 से घटकर 27 प्रतिशत पर आ गया. अगर अरविंद केजरीवाल समझौते की बात करते हैं तो अच्छी बात है.’

आनंद कुमार आगे कहते हैं, ‘दिल्ली सरकार का कार्यकाल पूरा होने के बाद अरविंद केजरीवाल का क्या भविष्य होगा, वह खुद ही जानते हैं. जहां तक योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की बात है तो उन लोगों ने अपनी क्षमता दिखा दी है कि हमलोग देश में एक नया माहौल बना सकते हैं. सबकी मेहनत और कोशिश के बाद हमलोग राष्ट्रीय मंच पर आ गए हैं. मैं आपको बता दूं कि हमलोग अलग-अलग जरूर हो गए हैं, लेकिन सभी के मुद्दे तो एक ही हैं. हमलोग कोई प्रोफेशनल पॉलिटिक्स नहीं करते हैं. मैं अपनी भावनाओं के बारे में ही आपको बता सकता हूं कि हमलोग अरविंद केजरीवाल को अपना दुश्मन नहीं मानते हैं. हम तकलीफ महसूस करते हैं कि हमलोगों के पास एक अच्छा मौका था, जिसमें हमलोग राष्ट्रीय विकल्प बन सकते थे, लेकिन इन लोगों ने दिल्ली की सरकार को ही अपना अंतिम लक्ष्य मान लिया था. अगर ये लोग अपना दृष्टिकोण बदलेंगे और भारत के लिए सोचना शुरू करेंगे तो उनके लिए रास्ते बंद नहीं हुए हैं.’

वहीं अरविंद केजरीवाल और योगेंद्र यादव के साथ आने की संभावनाओं पर स्वराज इंडिया पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुपम बात की. अनुपम ने बताया, ‘सबसे पहले बता दूं कि आयकर विभाग की जो कार्रवाई हुई है, उसके पीछे साफ है कि योगेंद्र यादव किसानों और बेरोजगारी के मुद्दों पर केंद्र सरकार को जो लगातार घेर रहे थे, ये उसी का बदला है. इस कार्रवाई के बाद योगेंद्र यादव के सपोर्ट में कई पार्टियों के नेता सामने आए हैं. पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी ट्वीट कर इस कार्रवाई की निंदा की है. कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने भी इस पर अपनी नारजगी व्यक्त की है. रही बात अरविंद केजरीवाल के साथ आने की है तो हमलोगों ने कभी इस बात की चर्चा नहीं की है. मैं आपको बता दूं कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी लाइन बिल्कुल तय कर रखी है. देश में मोदी के समर्थन में या मोदी के विरोध में जो भी गठबंधन बन रहा है, उससे हमारा किसी भी तरह का कोई संबंध नहीं होगा.’

अनुपम आगे कहते हैं, ‘जहां तक अरविंद केजरीवाल के साथ आने की बात है तो ये लोग अलग-अलग मोर्चे पर पहले भी ये काम करते रहे हैं. कई चैनल्स के जरिए यह बात हमलोगों तक आती रही है. बीच में कई मौकों पर तो इन लोगों ने अपने कैडर में भी और बाकी जगहों पर भी भ्रम फैलाने का काम किया है. लेकिन, हमारे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में अभी तक इस बात पर कोई अंतर नहीं पड़ा है. हमलोगों में इस बात को लेकर पूरी तरह से स्पष्टता है कि वह क्या करेंगे. यह तो हाइपोथेटिकल बातें हैं कि हमलोग अरविंद केजरीवाल के साथ नजर आएंगे. आज की तारीख में पार्टी के अंदर साथ आने की कोई चर्चा नहीं है.’

कुलमिलाकर कह सकते हैं कि दोनों तरफ से गिले-शिकवे हैं जो अभी भी दूर नहीं हुए हैं, लेकिन ऐसे भी गिले-शिकवे नहीं है कि दूर नहीं किए जा सकते हैं. दोनों पार्टियों के अंदर भी कई तरह की बात चल रही हैं. इसके बावजूद राजनीति में कुछ संभावनाएं हमेशा जिंदा रहती हैं.

नितीश – शाह कुछ तो है जो ‘सरकार’ बदले बदले से नज़र आते हैं


बीजेपी ने समय रहते लगता है नीतीश कुमार की नाराजगी को दूर कर दिया है


अपने एक दिन के बिहार दौरे में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सुबह नाश्ते पर जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मुलाकात की. बिहार दौरे की शुरुआत नीतीश के साथ मुलाकात से हुई. इस मुलाकात में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के अलावा बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी साथ थे.

मुलाकात के बाद बाहर निकलते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुस्कुराहट से बहुत कुछ साफ झलक रहा था. चेहरे की मुस्कुराहट और बॉडी लैंग्वेज बताने के लिए काफी थी कि दोनों दलों के बीच पिछले कुछ दिन से आ रही तनातनी खत्म हो गई है. हालांकि नाश्ते पर मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और अमित शाह ने कुछ भी नहीं कहा.

लेकिन, पटना के बापू सभागार में अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अमित शाह ने नीतीश के साथ बीजेपी के रिश्ते और विपक्षी दलों को लेकर अपना स्टैंड साफ कर दिया. शाह ने कहा ‘नीतीश जी अलग थे लेकिन, भ्रष्टाचार का साथ छोड़कर चले आए. अब बिहार में कुछ नहीं होने वाला. लार टपकाना बंद कर दो. बिहार में चालीस की चालीस सीट जीतेंगे.’

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Amit Shah
@AmitShah

बिहार प्रदेश के शक्ति केंद्र प्रभारियों के साथ बैठक की। भाजपा की शक्ति उसका बूथ का कार्यकर्ता है, 2019 में इन शक्ति केंद्रों से ही भाजपा के नेतृत्व वाली एक शक्तिशाली NDA सरकार केंद्र में बनेगी। और बिहार में NDA गठबंधन चालीस की चालीस लोकसभा सीटें जीतेगा, इसमें कोई संशय नहीं।

अमित शाह ने आगे कहा कि हमें साथियों का सम्मान करने आता है. हमें साथियों को संभालने आता है. आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़कर जाने पर तंज कसते हुए शाह ने एक बार फिर से नीतीश कुमार की तारीफ की. बीजेपी अध्यक्ष ने पार्टी कार्यकर्ताओं से पूछा कि चंद्रबाबू चले गए तो नीतीश कुमार हमारे साथ आ गए. अब आप ही बताइए नायडू के जाने का कोई फर्क पड़ेगा. इस पर कार्यकर्ताओं की तरफ से जवाब मिला ना.

बीजेपी अध्यक्ष के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू से गठबंधन को लेकर दिए गए इस बयान ने उन सभी अटकलों को खारिज कर दिया है, जिसमें दोनों दलों के रिश्तों में कड़वाहट के बाद एक बार फिर से अलग-अलग राह पर चलने की संभावना जताई जा रही थी.

हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि इस मुलाकात में सीट शेयरिंग समेत और भी कई मुद्दों पर चर्चा हुई है. चर्चा आने वाले लोकसभा चुनाव में मिलकर विपक्षी दलों को मात देने पर भी हुई है. चर्चा आने वाले दिनों में सरकार के बेहतर प्रदर्शन और केंद्र की तरफ से दिए जाने वाले सहयोग पर भी हुई है. संगठन और सरकार में सहयोग की भी बात हुई है.

सूत्रों के मुताबिक, दोनों ही दलों के बड़बोले नेताओं को सीट शेयरिंग के मुद्दे पर बयानबाजी बंद करने को भी कहा गया है. लेकिन, इस मुलाकात के बाद तय है कि अब विवादों को खत्म करने की कोशिश बीजेपी की तरफ से भी की गई है.

बीजेपी अध्यक्ष का सुबह-शाम दोनों वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ खाने पर बैठना इस बात का संकेत है कि बीजेपी नीतीश कुमार को कितना वजन दे रही है. लेकिन, ऐसा ही नजरिया नीतीश कुमार का भी रहा है.

पिछले कुछ दिनों में लगाए जा रहे तमाम कयासों के बावजूद जेडीयू की दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार की अगुआई में सारे नेताओं ने साफ-साफ लहजे में इस बात का ऐलान किया कि 2019 में लोकसभा चुनाव में जेडीयू एनडीए का ही पार्ट रहेगी.

दरअसल, हकीकत यही है कि अमित शाह के साथ नीतीश कुमार की मुलाकात का खांका भी पहले ही तैयार हो गया था. दोनों दलों के नेताओं के बीच पर्दे के पीछे बात कर एक बेहतर माहौल बना दिया गया था. बेहतर माहौल में मुलाकात का असर दिख भी रहा था.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए जो संदेश दिया उसमें नीतीश कुमार की अहमियत साफ-साफ दिख रही थी. अमित शाह ने बार-बार यह बताया कि कैसे अपने दम पर सत्ता में आने के बावजूद बीजेपी अपने सहयोगियों को भी साथ लेकर चल रही है. दो दिन पहले चेन्नई में भी अमित शाह ने इसी तरह का बयान दिया था, जिसमें उन्होंने मौजूदा सहयोगियों को सम्मान देकर नए साथियों की तलाश की बात कही थी.

फिलहाल, अमित शाह के पटना दौरे के बाद जेडीयू के साथ बीजेपी के हिचकोले खाते रिश्ते को लेकर लग रहे कयास खत्म होते दिख रहे हैं. सूत्र बता रहे हैं कि सीट शेयरिंग से लेकर हर मुद्दे पर नीतीश कुमार को बीजेपी नाराज नहीं करेगी. यानी रिश्ता बराबरी का होगा या फिर राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी भले ही बड़े भाई की भूमिका में रहे लेकिन, बिहार में चेहरा नीतीश कुमार का ही आगे रहेगा.

हालांकि अमित शाह ने दावा किया कि यूपी में मायावती, अखिलेश, अजीत सिंह और कांग्रेस मिलकर भी चुनाव लड़े तो उनको बीजेपी हरा देगी. दावा पूरे देश में जीत का किया जा रहा है, लेकिन, हकीकत यही है कि इस वक्त चंद्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़ने के बाद शिवसेना की तरफ से भी दबाव बढ़ा दिया गया है.

बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना ने अगला लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में नीतीश को साथ रखना बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है. बीजेपी ने समय रहते लगता है नीतीश कुमार की नाराजगी को दूर कर दिया है. वरना, 2010 में मोदी के साथ अपनी तस्वीरों वाले विज्ञापन के छपने के चलते बीजेपी नेताओं को दिया गया डिनर रद्द करने वाले नीतीश कुमार मोदी के सबसे भरोसेमंद चाणक्य के सम्मान में इस तरह डिनर के साथ-साथ नाश्ते पर सहज नहीं दिखते.