तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं: अनिल विज

 

 

अम्बाला- जैन मुनि तरुण सागर जी के निधन पर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने व्यक्त किया शोक।

अम्बाला- विज ने कहा समाज को सही दिशा दिखाने में हमेशा याद किया जायेगा तरुण सागर जी का योगदान।

अम्बाला- विज ने कहा- तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं।

झज्जर हादसे में 4 की मौत

 

दिल्ली के जहांगीरपुरी से गये खाटू श्याम और सालासर धाम से वापस आ रहे भक्तों का भयंकर रोड एक्सीडेंट ।

इको कार में सवार से सभी भक्तों रोहतक के झज्जर में हुआ ये बड़ा हादसा ।

सभी भक्त जहांगीरपुरी के रहने वाले मिली जानकारी के अनुसार
4 की मौत बाकी घायल ।

सभी घायलों को रोहतक हॉस्पिटल ले जाया गया जहाँ डॉक्टरों ने 4 को म्रत घोषित किया ।

फिलहाल पुलिस मौके पर पहुँच कर पूरे मामले की जाँच में जुटी ।

2013 में घातक तो अब बेचारा कैसे हुआ शहरी नक्स्ल्वाद

राहुल तत्कालीन गृह मंत्री चिदम्बरम के साथ


साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट में यूपीए सरकार ने कोर्ट को बताया कि किस तरह से शहरों और कस्बों में रहने वाले माओवादी विचारक और समर्थक एक सुनियोजित प्रोपेगेंडा के जरिये सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार कर माहौल बना रहे हैं और झूठ फैलाकर राज्य की छवि खराब कर रहे हैं


महाराष्ट्र पुलिस ने 28 अगस्त को पांच वामपंथी विचारकों को गिरफ्तार किया था. इन वामपंथी विचारकों पर शहरी-नक्सलवाद फैलाने का आरोप था. इन पर भीमा-कोरेगांव हिंसा भड़काने, नक्सली विचाराधारा फैलाने और पीएम मोदी की हत्या की साजिश से जुड़े होने का आरोप लगा.

इन विचारकों की गिरफ्तारी पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तुरंत ही ट्वीट किया और कहा कि देश में अगर कोई भी विरोध करे तो उसे गोली मार दो. यही है न्यू इंडिया.


Rahul Gandhi

@RahulGandhi

Welcome to the new India.


राहुल ने पांच सामाजिक कार्यकर्तोओं की नक्सलवादी विचाराधारा फैलाने के आरोप में हुई गिरफ्तारी का विरोध किया. लेकिन नक्सली विचारकों के साथ केंद्र सरकार का ये रुख बीजेपी की विचारधारा का रूप नहीं है.

बीजेपी विरोध में राहुल ये भूल रहे हैं कि शहरी नक्सलवाद और शहरों में मौजूद बुद्धिजीवियों के नक्सल कनेक्शन को लेकर खुद उनकी यूपीए सरकार ने ही सबसे पहले सामाजिक कार्यकर्ताओं और विचारकों के खिलाफ मोर्चा खोला था. मीडियाके पास कांग्रेस सरकार का वो काउंटर एफिडेविट है जिसमें नक्सल विचाराधारा को फैलाने वाले शहर में मौजूद बुद्धिजीवियों को पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी से ज्यादा खतरनाक बताया है.

साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका क्रमांक 738/2013 के मुताबिक केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि किस तरह से शहरों और कस्बों में रहने वाले माओवादी विचारक और समर्थक एक सुनियोजित प्रोपेगेंडा के जरिये सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार कर माहौल बना रहे हैं और झूठ फैलाकर राज्य की छवि खराब कर रहे हैं.

सरकार के काउंटर एफिडेविट में में ये साफ-साफ लिखा है कि सही मायने में माओवाद को जिंदा रखने वाले बौद्धिक रूप से मजबूत विचारक हैं जो कई मायनों में पीपुल लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी से भी ज्यादा खतरनाक हैं. इतना ही नहीं, काउंटर एफिडेविट में ये भी कहा गया है कि ये माओवादी विचारक ‘मास ऑर्गेनाइजेशन’ या फिर ‘फ्रंट ऑर्गेनाइजेशन’ के जरिये शहरी आबादी के खास लक्षित वर्ग को मोबलाइज करने का काम करते हैं. ये मास ऑर्गेनाइजेशन मानवाधिकार संस्थाओं की आड़ में काम करते हैं.

इनका नेतृत्व और संचालन माओवादी विचारक करते हैं जिनमें बुद्धिजीवी और समाजिक कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं. ये मास ऑर्गेनाइजेशन मानवाधिकार से जुड़े मामलों को जमकर भुनाते हैं और सुरक्षा बलों की कार्रवाई के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने में माहिर होते हैं. साथ ही राज्य की संस्थाओं के खिलाफ प्रोपेगेंडा और दुष्प्रचार के जरिए राज्य सरकारों की छवि खराब करते हैं. सुप्रीम कोर्ट में तत्कालीन कांग्रेस की केंद्र सरकार ने जिस तरह से शहरी नक्सलवाद को लेकर बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं को चिन्हित किया था वही रिपोर्ट गृहमंत्रालय की भी है.

P CHIDAMBARAM

ऐसे में सवाल उठता है कि साल 2013 में शहरी नक्सलवाद और माओवादी विचारकों के रूप में बुद्धिजीवी वर्ग के प्रति कांग्रेस का नजरिया पांच साल में कैसे बदल गया? जब तक कांग्रेस सत्ता में रही तो उसने नक्सलियों को मिटाने के लिये ऑपरेशन ग्रीन हंट किया. यहां तक कि तत्कालीन गृहमंत्री चिदंबरम नक्सली प्रभावित इलाकों में एयर स्ट्राइक के भी पक्षधर थे. खुद यूपीए सरकार में पीएम मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था.

ऐसे में वर्तमान केंद्र सरकार अगर उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है तो फिर कांग्रेस के लिए लोकतंत्र पर हमला बताना राजनीतिक रोटियां सेंकने से ज्यादा कुछ और कैसे हो सकता है..?

क्या कांग्रेस के शासनकाल में शहरी नक्सलवाद पर उनके गंभीर विचार मोदी सरकार में मानवाधिकार और लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन का मामला बन गए? अगर साल 2013 में शहरी इलाकों में मौजूद माओवादी विचारक पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी से ज्यादा खतरनाक थे तो फिर 2019 में कांग्रेस के लिए वैसे लोग मानवाधिकार के प्रचारक कैसे हो गए! ये सवाल कई निष्पक्ष लोगों की जुबान पर है जिनका किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है.

सवाल ये जरूर उठता है कि शहरी-नक्सलवाद के मामले में कार्रवाई में इतना वक्त क्यों लगा? क्या इस कार्रवाई की एकमात्र वजह ये रही कि भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में जांच में जुटी महाराष्ट्र पुलिस ने माओवादियों का वो पत्र बरामद किया जिसमें पीएम मोदी की हत्या की साजिश की बात लिखी गई थीं? दरअसल, नक्सलवाद के खिलाफ कार्रवाई में कांग्रेस बीजेपी से कम आक्रामक नहीं रही है. हां इसमें दो धड़े हमेशा से रहे हैं. एक गरम तो दूसरा नरम. लेकिन गृहमंत्री के रूप में चिदंबरम नक्सल के खिलाफ बेहद आक्रामक थे. बंगाल में कांग्रेस के बड़े नेता सिद्धार्थ शंकर रे नक्सल के खिलाफ कार्रवाई के लिए जाने जाते हैं. 70 के दशक में उन्होंने नक्सल की कमर तोड़ने में कोई कोताही नहीं बरती थी. पीएम मनमोहन और चिंदबरम ने ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाकर नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए सख्त कदम भी उठाए थे.

इतना ही नहीं कांग्रेस सरकार के काउंटर एफिडेविट से साफ है कि तत्कालीन सरकार भी शहरों में माओवादी विचारधारा फैलाने वाले वामपंथी विचारकों के खिलाफ मुखर थी. उनका मानना था कि ये प्रबुद्ध लोग मानवाधिकारों का इस्तेमाल कर राज्य सरकार की छवि खराब करने में माहिर हैं और ये कानूनी धाराओं का इस्तेमाल कर सुरक्षा बलों की कार्रवाई और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को कमजोर करने का काम करते रहे हैं.

इस काउंटर एफिडेविट में ये तक बताया गया है कि किस तरह से नक्सल प्रभावित इलाकों में कलेक्टर का अपहरण किया जाता रहा है. साथ ही ये भी बताया गया है कि किस तरह से हजारों आदिवासियो को पुलिस का मुखबिर बता कर मौत के घाट उतारा गया है.

बहरहाल, ये सोचने वाली बात है कि पांच वामपंथी माओवादी विचारकों की गिरफ्तारी पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी यूपीए सरकार के दौर में सुप्रीम कोर्ट में उनकी पार्टी की सरकार द्वारा दायर वो काउंटर एफिडेविट क्यों नहीं याद आया जिसने शहरी नक्सलवाद  को सबसे पहले परिभाषित किया और उससे होने वाले गंभीर परिणाम की तरफ अगाह भी किया.

तत्कालीन यूपीए सरकार खुद ये मानती रही है कि माओवादी शहरों में अपनी जड़े मजबूत करने में जुटे हुई हैं और इनको शहरी क्षेत्रों से सामाजिक कार्यकर्ता और वामपंथी विचारकों से भरपूर समर्थन मिल रहा है. ये बुद्धिजीवी माओवादी विचाराधारा के प्रति अपनी सहानुभूति के जरिए ही देश के अलग राज्यों के मुख्य शहरों में सरकार और सिस्टम के खिलाफ किसी न किसी रूप में हिंसात्मक आंदोलन को हवा दे रहे हैं. महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव की हिंसा इसी मास ऑर्गेनाइजेशन की रणनीति का ही उदाहरण है.

यूपीए सरकार द्वारा काउंटर एफिडेविट में इस बात का साफ विवरण है कि फ्रंट ऑर्गेनाइजेशन दरअसल किसी न किसी मानवाधिकार संस्था का मास्क पहन कर काम करते हैं. जिसका असली मकसद बड़ी संख्या में लोगों को एकजुट करने का होता है. केवल उसी वर्ग को लक्षित किया जाता है जो कि माओवादी विद्रोही विचाराधारा पर भरोसा करता हो.

अरुण फ़र्रेरा

राज्य सरकार के खिलाफ ही ये सरकारी मशीनरी का भी इस्तेमाल कर माहौल बनाते और बिगाड़ते हैं. बुद्धिजीवी वर्ग के जरिए झूठ का प्रोपेगेंडा करने में आसानी भी रहती है.

लेकिन अब जब केन्द्र सरकार उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है तो वही राजनीतिक दल आड़े आने आने का काम कर रहे हैं जो पांच साल पहले इन्हें नक्सलियों का समर्थक और देश का सबसे बड़ा दुश्मन बता रहे थे. अब सही और गलत का फैसला तो अदालत करेगी. पुलिस की कार्रवाई उन पांच लोगों के खिलाफ जायज है या नजायज ये लंबे ट्रायल के बाद साबित हो पाएगा. लेकिन कांग्रेस सरकार में कुछ और और विपक्ष में बिल्कुल उसके उलट बयानबाजी कर पूरी तरह घिरती नजर आ रही है.

‘राज्य में वे 15 वर्ष सत्ता में रहे हैं’ इसीलिए लोकसभा चुनावों में तन – मन “धन” से जुटें: खडगे


भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस साम दाम दंड भेद सब लगाकर जीत सुनिश्चित करना चाहती है


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने महाराष्ट्र में पार्टी नेताओं से कहा कि ‘राज्य में वे 15 वर्ष सत्ता में रहे हैं’ और 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिये सभी नेता एकजुट हों और ‘तन-मन-धन’ से जुट जाएं.

महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार के आने से पहले 2014 तक राकांपा के साथ मिलकर कांग्रेस करीब 15 साल तक लगातार सत्ता में रही. महाराष्ट्र के प्रभारी महासचिव खड़गे ने ‘जन संघर्ष यात्रा’ के आरंभ के मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण और अन्य नेताओं की मौजूदगी में यह बात कही. खड़गे ने कहा कि अगर कांग्रेस नेता एकजुट हो जाएं तो सत्तारूढ़ भाजपा के लिए जीत पाना असंभव होगा.

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देश में माहौल खराब करने और एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का आरोप लगाया. पार्टी कार्यकर्ताओं के समूह को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम इस मंच पर एक दूसरे का हाथ थामे और उसे ऊपर उठाए खड़े हैं. लेकिन हमें तन-मन-धन लगाने की जरूरत है. तन-मन-धन लगाना होगा क्योंकि आपने भी 15-20 साल शासन किया है. आप सत्ता में रहे हैं. सभी को सहयोग करना चाहिए.’

‘भय मुक्त’ और ‘भाजपा मुक्त’ भारत का आह्वान करते हुए महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख अशोक चव्हाण ने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी समय चुनाव का सामना करने को तैयार है. चव्हाण ने आरोप लगाया कि भाजपा शासन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरा है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कोई भी कदम उठाने से नहीं डरी है.

खड़गे ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पनसारे के हत्यारों को बचा रही है.

यादव परिवार विवाद सीज़न 2

 

 

यूपी के यादव परिवार में एक बार फिर आपसी रार शुरू हो गई है. विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी की कमान को लेकर पहली खींचतान हुई थी. मौजूदा विवाद पार्टी में रसूख को लेकर उठा है. शिवपाल यादव ने अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव को दो दिन में कोई फैसला लेने की मोहलत दी है.

मान-सम्मान न मिलने की पीड़ा जाहिर की थी

मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव ने पार्टी में मान-सम्मान न मिलने को लेकर सार्वजनिक तौर पर अपनी पीड़ा जाहिर की थी. उसके ठीक बाद ही ‘समाजवादी सेक्युलर मोर्चा’ का विवाद सामने आ गया. सूत्रों की मानें तो शिवपाल यादव को मनाने की हर कोशिश नाकामयाब हो चुकी है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अपनी बात पर अड़े हुए हैं. वह वक्त आने पर शिवपाल को कोई पद देने की बात कह रहे हैं.

मुलायम का रुख साफ नहीं

वहीं कई मौकों पर शिवपाल दोबारा मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की बात पर सब कुछ सामान्य हो जाने की बात कह चुके हैं. बड़ी बात ये है कि 2016 से लेकर ताजा विवाद होने तक मुलायम सिंह का रुख साफ नहीं हुआ है. किसी भी मौके पर उन्होंने न तो अखिलेश यादव के समर्थन में कोई संकेत दिया है और न ही कभी शिवपाल यादव के लिए खुलकर बोले हैं.

सैफई में बड़े कार्यक्रम की तैयारी

सूत्रों का कहना है कि शिवपाल यादव इस बार आरपार के मूड में हैं. मुलायम सिंह अपनी स्थिति शुक्रवार और शनिवार तक साफ कर दें, ये संकेत भी शिवपाल दे चुके हैं. कुछ इन्हीं कारणों के चलते उन्होंने लखनऊ और सैफई छोड़ दिल्ली में डेरा डाल दिया है. हालांकि वह मुजफ्फरनगर में एक कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं. सूत्रों की मानें तो मुलायम सिंह की हां-ना पर निर्भर रहने वाले एक बड़े कार्यक्रम की तैयारी सैफई में चल रही है.

कार्यक्रम शिवपाल यादव के स्वागत समारोह की तैयारी में किया जा रहा है. समारोह शिवपाल यादव का शक्ति प्रदर्शन भी माना जा रहा है. डॉ. बीआर आंबेडकर विश्वविद्वालय, आगरा में प्रोफेसर और राजनीति के जानकार मोहम्मद अरशद का कहना है कि मुलायम सिंह अगर किसी के भी पक्ष में बोलते हैं तो उससे नुकसान पार्टी को ही होगा.

मुलायम पर करता है सब निर्भर

अखिलेश के समर्थन में जाते हैं तो शिवपाल परिवार की डोर से मुक्त हो जाएंगे और खुलकर निर्णय लेने के लिए आज़ाद होंगे. वहीं अगर बेटे का साथ नहीं देंगे तो सपा कमजोर पड़ जाएगी और विरोधियों के हाथ अखिलेश को घेरने का नया हथियार मिल जाएगा. मालूम हो कि दिसंबर 2016 से फरवरी 2017 तक यादव परिवार का विवाद पार्ट-1 हुआ था. माना जाता है कि इस विवाद की वजह से समाजवादी पार्टी को यूपी विधानसभा चुनाव में काफी नुकसान हुआ. इसलिए पूरा यादव परिवार चाहता है कि विवाद का पार्ट-2 इतना ज्यादा न बढ़ जाए कि उसकी कीमत 2019 के लोकसभा चुनाव में भुगतनी पड़े.

“ हम कांग्रेस से पूछना चाहते हैं कि वह चीन में किन-किन नेताओं से मिलेंगे और उनसे क्या चर्चा करेंगे।” संबित पात्रा


भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए रवाना होने पर शुक्रवार को कहा कि कांग्रेस को यह बताना चाहिए कि इस दौरान वह चीन में किस-किस से मिलने वाले हैं।


भाजपा प्रवक्ता संवित पात्रा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि श्री गांधी हर समय किसी न किसी बहाने चीन का नाम लेते हैं और अक्सर भारत की तुलना से चीन से करते हैं। वह भारतीय हैं , ‘चीनी गांधी’नहीं फिर वह इस तरह की बातें क्यों करते हैं। उन्होंने कहा, “ हम कांग्रेस से पूछना चाहते हैं कि वह चीन में किन-किन नेताओं से मिलेंगे और उनसे क्या चर्चा करेंगे।”

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था कि चीन हर रोज 50 हजार युवाओं को रोजगार देता है जबकि भारत एक दिन में 450 युवाओं को ही रोजगार दे पाता है। आखिर उन्हें यह जानकारी कहां से मिली। वास्तव में श्री गांधी भारत के नजरिए को समझना ही नहीं चाहते हैं। वह सिर्फ चीन का प्रचार करते रहते हैं।

पात्रा ने कहा जिस समय डोकलाम में तनाव था तो श्री गांधी बिना किसी को विश्वास में लिए चीन के राजदूत के साथ बैठक कर रहे थे। जब यह बात लोगों के सामने आयी तो कांग्रेस ने इससे इन्कार कर दिया हालांकि बाद में उसे यह बात स्वीकार करनी पड़ी। गांधी आज ही कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए यहां से काठमांडू रवाना हुए हैं।

Supreme Court defers hearing to January for Article 35A


Article 35A is a presidential order that defines “permanent residents of Jammu and Kashmir”, and bars non-locals from buying and owning land in the state.


The Supreme Court on Friday deferred the hearing on Article 35A in Jammu and Kashmir to the second week of January 2019. The court was hearing a clutch of petitions challenging the constitutional validity of Article 35A.

Article 35A is a presidential order that defines “permanent residents of Jammu and Kashmir”, and bars non-locals from buying and owning land in the state.

The Centre and the state government have urged the top court to hear the matter only after local body elections, scheduled to begin in September, are over.

The state government told the court that any hearing on the matter now would create law and order issues in the local body elections.

“Any debate and discussion on Article 35 A has direct repercussions on law and order in Jammu and Kashmir. Local body polls will be held in 8 phases. They would begin in September and continue till December,” the state told the bench.

The provisions of Article 35-A bars people, who are not permanent residents of J&K, from seeking employment, settling in the state, acquiring immovable properties or undertaking any trade or business.

Activists had Maoist links, planned to end Modi-raj: Maharashtra police


Activists had Maoist links, planned to end Modi-raj: Maharashtra police


The Maharashtra Police said on Friday there were “clear links” between the five arrested activists and Naxals.

“When we were confident that clear links have been established then only we moved to take action against these people, in different cities. Evidence clearly establishes their roles with Maoists,” ADG (Law and Order), Maharashtra Police, Parambir Singh said at a press conference in Mumbai.

He added that letters exchanged between the activists point to the plotting of a “Rajiv Gandhi-like” incident.

“An email letter, between Rona Wilson and a CPI-Maoist leader, speaks of ending ‘Modi-raj’ with a ‘Rajiv Gandhi-type incident’,” Singh told reporters.

“Case was registered on 8 January about an incident of 31 December 2017 where hate speeches were delivered. Sections were imposed for spreading hatred. Investigation was conducted. Almost all the accused were associated with Kabir Kala Manch,” he was quoted as saying by ANI.

According to the Pune police, speeches made by some arrested activists at the Elgaar Parishad conclave, a day before the bicentennial celebration of the battle of Bhima Koregaon, were one of the triggers for the violence that was gripped Pune on 1 January 2018. The violence left one person dead and ended with Maharashtra shutdown on 3 January called by the Bharipa Bahujan Mahasangh, headed by Prakash Ambedkar, grandson of BR Ambedkar.

The senior police officer added that investigation revealed a big controversy being plotted by Maoist organisations.

“Police has seized “thousands of letters” exchanged between the overground and the underground of Maoists,” the senior police officer said.

“The accused were helping them to take their goals forward,” he said, adding that a terrorist organisation was also involved following which, on 17 May, sections under Unlawful Activities (Prevention) Act were imposed.

According to the police, the letter also sought money for procuring grenade launchers.

The police said that the Central Committee of Maoists never communicates directly with overground workers and instead chooses a network of couriers and password-protected devices to exchange messages.

The ADG said that the Pune police was able to crack the password-protected evidences obtained from the accused containing the messages exchanged between the overground workers and Maoists.

He added that the five activists arrested on Tuesday, 28 August, only after thorough analysis of the evidences over a period of two months.

At the press conference, the ADG also read out passages from the letters obtained from the accused.

House arrest of five activists

The five activists arrested are Varavara Rao (Telangana), Vernon Gonsalves and Arun Pereira (Mumbai), Sudha Bharadwaj (Chhattisgarh), Gautam Navlakha (Delhi).

On Wednesday, 29 August, the Supreme Court issued a notice to the Centre and the Maharashtra government asking them to explain the grounds on which five eminent human rights activists of the country were arrested in a coordinated operation conducted across states.

A three-judge bench comprising Chief Justice Deepak Misra, and Justices AM Khanwilkar and DY Chandrachud, also prevented the police from keeping the five activists into custody but said they can be kept under house arrest.

Hearing a petition filed by historian Romila Thapar, economist Prabhat Patnaik, Satish Deshpande, economist Devaki Jain and human rights activist Maya Daruwala, the apex court observed that “dissent is the safety valve of democracy. If dissent is not allowed then the pressure cooker may burst”.

The petitioners said that the arrests are an attempt “to silence dissent, stop people from helping the downtrodden and marginalised people across the Nation and to instil fear in minds of people”.

“The timing of this action leaves much to be desired and appears to be motivated to deflect people’s attention from real issues,” the petition read.

The apex court has scheduled the next hearing for Thursday, 6 September, by which time both the Centre and the Maharashtra government will have to file their responses.

Who else has been arrested?

The police had also arrested prominent human rights activists like Surendra Gadling, Mahesh Raut, Shoma Sen, Rona Wilson, Sudhir Dhawale besides raiding Harshali Potdar, Jyoti Jagtap, Ramesh Gaychor and Sagar Gorke in June.

The same month Pune police had allegedly recovered a letter mentioning a plan to assassinate Prime Minister Narendra Modi from the house of one of the five persons arrested in connection with the Bhima Koregaon violence.

It also referred to requirement of Rs 8 crore to purchase an M-4 rifle and four lakh rounds to execute the plot. The letter reportedly mentioned Varvara Rao’s name.

अनिल विज ने राहुल गांधी को नक्सलियों की पैरवी करने से चेताया

 

अम्बाला:

देश विरोधी ताकतों के हाथों मौत के घाट उतार दी गईं देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके सुपुत्र पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या को लेकर हरियाणा के कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने दिया बड़ा बयान।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को आतंकवादी और नक्सली विचारधारा रखने वाले लोगों की पैरवी न करने की दी सलाह ।

अनिल विज ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन को यदि कहीं पर भी खतरा हो तो तुरंत सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

विज ने कहा कि किसी को भी बक्शा नहीं जाना चाहिए। हम पहले ही दो प्रधानमंत्री खो चुके हैं

नहीं चला हस्पताल – जेल का लालू खेल

 

भयंकर बीमारी के नाम पर अस्पताल में रहकर ‘खेल’ करने का लालू यादव का सपना कोर्ट ने तोड़ दिया. अब खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे के मोड में आकर राजद सुप्रीमो पीएम नरेन्द्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार पर अंधाधुंध शब्द बाण चला रहे हैं. साथ ही भविष्यवक्ता की भूमिका में आकर कहना शुरू कर दिया है, ‘2019 में बीजेपी का राज समाप्त हो जाएगा. चुनाव परिणाम के बाद बैठकर हमलोग 5 मिनट में पीएम चुन लेंगे’.

बहरहाल, अपने ताजा बयान से बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव ने एक मुद्दा क्लीयर कर दिया है कि वो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पीएम की उम्मीदवारी को नहीं मानते हैं. रांची में पत्रकारों से बातचीत करते हुए पूर्व रेल मंत्री ने कहा,‘बहुत बड़ा विपक्ष मोर्चा बन रहा है. कई दल साथ आएंगे. दलों का नाम बताना अभी ठीक नहीं होगा. सीएम नीतीश आरएसएस की गोदी में खेलते रह जाएंगे और हमलोग मोदी को हटाकर केन्द्र में सरकार बना लेंगे’.

दूसरी तरफ कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता राजद चीफ के बुधवार के बयान को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं. नाम नहीं छापने की शर्त पर एक नेता ने कहा कि ‘लालू यादव ने तो मैडम सोनिया को वचन दिया है कि राहुल गांधी को बतौर अगला पीएम प्रोजेक्ट किया जाएगा. मुकरने का सवाल नहीं है. वैसे लालू यादव का बयान उनके ट्रैक रिकार्ड के अनुरूप है. क्योंकि वादों से पलटना और सियार की तरह रंग बदलना राजद प्रमुख के स्वभाव में है’.

दरअसल, लालू यादव का गेमप्लान था कि गंभीर बीमारी के नाम पर पटना आवास पर जमे रहे. स्वास्थ्य जांच के लिए कभी कभार मुंबई हॉस्पिटल को विजिट करते रहे और सबसे जरूरी टास्क 2019 लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन बनाने वास्ते दिशानिर्देश भी देते रहे. इन सब कार्य के अलावा अपने परिवार में चल रहे त्रिकोणीय सत्ता संघर्ष को भी सलटाने और परमानेन्ट समाधान ढूंढने का काम करते रहे

सच्चाई को बहुत दिन तक किसी भी यंत्र व तंत्र से छिपाया नहीं जा सकता है. अब जगजाहिर हो गया है कि लालू यादव की फैमिली में सत्ता के तीन बिंदु बन गए है. तेज प्रताप यादव, तेजस्वी यादव और मीसा भारती. संभावना बनी रहती है कि लालू प्रसाद के लगातार अनुपस्थिति से माहौल कभी भी विस्फोटक हो सकता है. लालू यादव दरबार के दरबारी भी हिंट देते हैं,‘घर अंदर ही अंदर खौल रहा है’.

लालू यादव को इलाज के लिए बेल मिला था. कोर्ट ने सख्त निर्देश दिया था कि लालू यादव जबतक बेल पर हैं किसी प्रेस वाले से बात नहीं करेंगे, राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेंगे और न ही कोई राजनीतिक बयान देंगे. अगर जांच एजेंसी राबड़ी देवी की आवास के फोन और राजद चीफ के करीबी मित्रों का कॉल डिटेल निकाल ले तो लालू यादव की ‘मौन व्रत’ की सच्चाई से रूबरू हो सकती है. मुंबई अस्पताल से लेकर पटना आवास तक मिलने वालों में कई चेहरे ऐसे हैं जो केवल राजनीति पर ही विचार विमर्श करने आते रहे. और कई ‘मित्रों’ का जमघट लगा रहता था.

जनता दल यूनाइटेड के एमएलसी और प्रवक्ता नीरज कुमार का आरोप है, ‘बीमारी को भुनाकर लालू यादव अपने को राजनीतिक कार्यों में व्यस्त रखते हैं. उन्हीं के निर्देश पर राजद के प्रवक्ता बयान देते हैं’. न्यायालय ने मेडिकल रिपार्ट देखकर फैसला लिया कि बेल रिजेक्ट की जाए. वैसे चर्चा जोरों पर है कि लगता है लालू यादव की तिकड़म और गेमप्लान की भनक माननीय झारखंड उच्च न्यायालय को लग गई थी तभी बेल को स्थगित करके सरेन्डर करने को कहा गया है.

लोग अच्छी तरह जानते हैं कि जेल में रहकर ‘खेल’ करने में लालू यादव को महारत हासिल है. 1997 में पहली बार चारा घोटाले में जेल जाने के कुछ दिन बाद बीएमपी के खूबसूरत गेस्ट हाउस को प्रिजन में कन्वर्ट कराके रहते थे. वहीं दरबार भी लगता था. गेस्ट हाउस के कैम्पस में एक तालाब था जिसमें लालू यादव बंसी से फीसिंग करते थे. रात में कभी तीतर, कभी बटेर, कभी घोंघा का लजीज मांसाहारी भोजन भी पकता था.

बतौर कैदी होकर यह सब ‘जायज’ कार्य करना इसलिए संभव था क्योंकि राज्य में अपनी सरकार थी. दिल्ली में भी दोस्त ही पावर के हेड थे. बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन जब झांरखंड के सीएम थे तब भी लालू यादव को रांची बिरसा मुंडा केन्द्रीय जेल के अंदर पेट भर नारियल पानी पीने को मिलता था. सैकड़ों लोग रोज मिलते थे. लालू यादव ने स्वयं अपने कई मित्रों से कहा था, ‘ यहां तो घर से भी ज्यादा आराम है’.

पहली बार लालू यादव को झटका लगा है. राजनीति के दिग्गज काफी परेशान इस बात को लेकर हैं कि महाभारत नजदीक है और युद्ध की तैयारी कौन करवाएगा? लेकिन उनको समझना चाहिए कि समय बदल गया है. समय के अनुसार व्यक्ति को अपनी आदतों में भी बदलाव लाना चाहिए. लेकिन लगता है लालू यादव ने प्रण कर लिया है कि ‘हम सुधरेंगे नहीं’.