विशेषः आज पश्चिम दिशा की यात्रा न करें। शुक्रवार को अति आवश्यक होने पर सफेद चंदन, शंख, देशी घी का दान देकर यात्रा करें।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/11/Hindu-Panchang-1.jpg388997Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-18 00:46:522019-01-18 00:46:54आज का पांचांग
‘फ्लू का तो उपचार है लेकिन कांग्रेस नेता की मानसिक बीमारी का उपचार मुश्किल है.’ गोयल इस प्रकार के बयान कांग्रेस नेतृत्व के निराशा को भी दिखाते हैं: राठौड़ यह विचारों को दीवालियापन है और नैतिक मूल्यों की कमी है: जी वी एल नरसिम्हा राव
नई दिल्ली: बीजेपी ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के ‘स्वाइन फ्लू’ पर कांग्रेस नेता बी के हरिप्रसाद के तंज पर गंभीर रुख अपनाते हुए कहा कि फ्लू का इलाज है लेकिन विपक्षी दल के नेता के मानसिक स्वास्थ्य का इलाज मुश्किल है.
बीजेपी ने कांग्रेस से हरिप्रसाद को पार्टी से बर्खास्त करने और घृणित बयान के लिए सरेआम माफी मांगने की मांग की है. बीजेपी ने दावा किया कि इन बयानबाजियों पर विपक्षी दल की चुप्पी यह दर्शाती है कि इस प्रकार के सभी ‘जहरीले’ विचारों को नेतृत्व से मंजूरी मिली हुई है.
दरअसल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बी के हरिप्रसाद ने बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के खराब स्वास्थ्य पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि उन्हें स्वाइन फ्लू इसलिए हुआ क्योंकि उनकी पार्टी ने कर्नाटक में कांग्रेस और जेडी(एस) सरकार को कथिततौर पर अस्थिर करने की कोशिश की है.
बीजेपी नेताओं ने व्यक्त की तीखी प्रतिक्रिया केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा,‘कांग्रेस सांसद बी के हरिप्रसाद ने बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ जिस प्रकार की घृणित और अभद्र टिप्पणी की है वह कांग्रेस के स्तर को दिखाती है. फ्लू का तो उपचार है लेकिन कांग्रेस नेता की मानसिक बीमारी का उपचार मुश्किल है.’ गोयल के अलावा राज्यवर्धन सिंह राठौड़, मुख्तार अब्बास नकवी तथा पार्टी के अन्य नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
नकवी ने कहा, ‘यह पूरी तरह से घृणित और भद्दा बयान है. इनमें इतनी शालीनता भी नहीं है कि किसी की बीमारी पर किस प्रकार से प्रतिक्रिया देते हैं.’ वहीं राठौड़ ने इस बयान पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि वह यह देख का जरा भी अचंभित नहीं हुए कि कांग्रेस के नेताओं ने शालीनता और मर्यादा को एकदम त्याग दिया है. इस प्रकार के बयान कांग्रेस नेतृत्व के निराशा को भी दिखाते हैं.
वहीं बीजेपी प्रवक्ता जी वी एल नरसिम्हा राव ने कहा कि हरिप्रसाद का बयान कांग्रेस के नैतिक पतन को दिखाता है. यह विचारों को दीवालियापन है और नैतिक मूल्यों की कमी है.
पार्टी के अन्य प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने हरिप्रसाद के बयान को शर्मनाक बताया और कहा कि यही कांग्रेस का वास्तिव चेहरा है. उन्होंने कहा कि शाह ने खुद ही अपनी बीमारी लोगों को बताई है ऐसे में कांग्रेस नेता के बयान से जनता को दुख पहुंचेगा.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/as-e1523272124202-768x499.jpg499768Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 17:21:302019-01-17 17:21:32घृणा भरी बयानबाजियों पर कांग्रेस की चुप्पी यह दर्शाती है कि इस प्रकार के सभी ‘जहरीले’ विचारों को नेतृत्व से मंजूरी मिली हुई है: बीजेपी
4:22 pm सीबीआई स्पेशल कोर्ट के जज द्वारा फैसला पढ़ना शुरू कर दिया गया है
खबर है की वादी ने राम रहीम की सुरक्षा पर हो रहे खर्चे का भी ब्योरा मांगा है, साथ ही पीड़ित परिवार को एक मुश्त मुआवज़े की बात भी उठाई गयी है
3:33 pm विडियो कोंफेरेंसिंग के जरिये हो रही बहस समाप्त हो चुकी है, सीबीआई के वकीलों ने अपने पक्ष को बहुत गंभीरता से रखा गया है और बचाव पक्ष के वकीलों ने राम रहीम के पुराने दोष को इसलिए नज़रअंदाज़ करने की बात कही गयी कि उसमें वह पहले ही से सज़ा काट रहे हैं। अब थोड़ी ही देर में सज़ा सुनवाई जाएगी
2:45 pm आज दोपहर 2 बजे से सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के जज जगदीप सिंह की कोर्ट में दोषियों को विडियो कोंफेरेंसिंग के जरिये कार्यवाही जारी है।जहां छत्रपति के परिवार की मांग सख्त से सख्त सज़ा की है वहीं दोषी राम रहीम के वकील उनके सामाजिक कार्यों और उनके आध्यात्मिक पैठ और करोड़ों समर्थकों का हवाला दे कर सज़ा कम करवाने की मांग कर रहे हैं।
10: 30 am पंचकुला में आज फिर धारा 144 लागू है, कारण आज सीबीआई स्पेशल कोर्ट पंचकुला द्वारा पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति की हत्या के दोषियों को सज़ा सुनाएँगे। पंचकुला प्रशासन ने पिछले दंगों से सबक लेते हुए आज पंचकुला को छावनी में तब्दील कर दिया है। हालांकि आज की कार्यवाही विडियो कनफेरेंसिंग से की जा रही है दोषी राम रहीम और 3 अन्य आरोपी विडियो द्वारा ही अपनी कार्यवाही में हाजिर रहेंगे।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/Chhatrapati-Murder-Case-latest-News.png570806Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 12:04:302019-01-17 12:57:08छत्रपति हत्याकांड में राम रहीम को उम्र कैद की सज़ा, अपडेट
इस साल सरकार के सामने बड़ी चुनौती ये है कि सरकार के जीएसटी वसूली के लक्ष्य अधूरे रहे हैं
वित्त मंत्री अरुण जेटली 1 फरवरी 2019 को अंतरिम बजट पेश करेंगे. इस बार के बजट में वित्त मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कि सरकार मौजूदा वित्त वर्ष (2018-19) में अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रित रखने का लक्ष्य हासिल कर ले.
पिछले साल एक फरवरी को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के लिए वित्तीय घाटे का लक्ष्य 6,24,276 करोड़ यानी जीडीपी का 3.3 तक हासिल करने का टारगेट रखा था. वित्तीय घाटा, सरकार की आमदनी और खर्च के बीच का फर्क होता है.
जीएसटी वसूली का लक्ष्य अधूरा
इस साल सरकार के सामने बड़ी चुनौती ये है कि सरकार के जीएसटी वसूली के लक्ष्य अधूरे रहे हैं. ये बड़ी चिंता का विषय है. सरकार को उम्मीद थी कि वो जीएसटी से इस वित्तीय वर्ष में 6,03,900 करोड़ रुपए जुटा लेगी. लेकिन, अप्रैल से लेकर दिसंबर 2018 तक सरकार ने केंद्रीय जीएसटी के तौर पर 3,41,146 करोड़ रुपए ही जुटाए हैं. मतलब ये कि सरकार को अगर जीएसटी वसूली का लक्ष्य हासिल करना है, तो उसे इस वित्तीय वर्ष के बाकी के तीन महीनों में 2,62,754 करोड़ रुपए वसूलने होंगे. यानी सरकार को जीएसटी से हर महीने 87,585 करोड़ रुपए जमा करने होंगे, ताकि गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स से आमदनी के लक्ष्य को हासिल किया जा सके.
सरकार ने अब तक किसी एक महीने में जो सबसे ज्यादा जीएसटी वसूला है, वो जुलाई 2018 में 57,893 करोड़ रुपए था. इससे साफ है कि वित्तीय वर्ष की आखिरी तिमाही में सरकारी जीएसटी से आमदनी का अपना लक्ष्य शायद ही पूरा कर सके. मौजूदा दर के हिसाब से टारगेट और जीएसटी की असल वसूली के बीच करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए का फासला रह जाने की आशंका है.
सवाल ये है कि आखिर जीएसटी को लेकर सरकार का अनुमान इतना गलत कैसे साबित हुआ है?
इस सवाल का जवाब है जीएसटी नहीं जमा करने वालों की संख्या और तादाद वित्तीय वर्ष 2018-19 में बढ़ी है.
टारगेट के पास पहुंचने के लिए क्या करेंगे वित्त मंत्री?
हाल ही में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि अप्रैल 2018 में 88.2 लाख नियमित टैक्स देनदारों में से 15.44 फीसद ने अपना जीएसटी रिटर्न नहीं दाखिल किया. नवंबर 2018 के आते-आते 98.5 लाख नियमित जीएसटी देने वालों में से 28.8 ने अपना रिटर्न नहीं दाखिल किया था. वहीं, कम्पोजीशन स्कीम के तहत आने वाले टैक्स देनदारों को, जिन्हें हर तीन महीने में अपना रिटर्न दाखिल करना होता है, उन कुल 17.7 लाख कारोबारियों में से 19.3 फीसद ने अपना रिटर्न दाखिल नहीं किया और ये तादाद जून 2018 तक की है. सितंबर 2018 में खत्म हुई तिमाही तक 17.7 लाख कम्पोजीशन स्कीम कारोबारियों में से 25.4 प्रतिशत ने अपना टैक्स रिटर्न नहीं जमा किया था. इन आंकड़ों से साफ है कि वित्तीय वर्ष 2018-2019 में बड़ी तादाद में कारोबारियों ने अपना जीएसटी रिटर्न और टैक्स नहीं जमा किया. इसी वजह से जीएसटी की वसूली उम्मीद से बहुत कम रही है.
इस हालत में बड़ा सवाल ये है कि आखिर वित्त मंत्री अरुण जेटली किस तरह से वित्तीय घाटे का वो लक्ष्य हासिल करेंगे जो उन्होंने फरवरी 2018 में तय किया था. आखिर वो उस टारगेट के इर्द-गिर्द भी पहुंचने के लिए आखिर क्या करेंगे? इसका एक तरीका तो ये हो सकता है कि खाद्य और उर्वरक की सब्सिडी देने में सरकार देर करे. पहले के कई वित्त मंत्री ऐसा कर चुके हैं. सरकार के खाते नकदी पर चलते हैं, अनुमानों पर नहीं. इसका ये मतलब है कि सरकार जब पैसे खर्च करती है, तभी वो व्यय के हिसाब में आता है, न कि सिर्फ अनुमान के आधार पर.
सब्सिडी का वित्तीय वर्ष में जोड़-तोड़
भारतीय खाद्य निगम की ही मिसाल लीजिए. एफसीआई, किसानों से सीधे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चावल और गेहूं खरीदता है. वो ये खरीदारी एक खास वित्तीय वर्ष में करता है. फिर खाद्य निगम इसी चावल और गेहूं को हर साल बाजार से बहुत कम दरों पर सरकारी राशन की दुकानों के जरिए बेचता है. सरकार को खरीद और फरोख्त के बीच के फर्क की रकम एफसीआई को सब्सिडी के तौर पर देनी होती है. ये सब्सिडी आम जनता के नाम पर दी जाती है. तो, कई बार सरकार किसी खास वित्तीय वर्ष में एफसीआई को भुगतान न करके, इस सब्सिडी को अगले वित्तीय वर्ष में भी दे सकती है.
अब चूंकि मौजूदा वित्तीय वर्ष में सरकार के खाते से रकम खर्च नहीं होती, तो इसकी गिनती सरकार के खर्च में नहीं होती. हालांकि ये अनुमानित खर्च जरूर होता है. सब्सिडी को सरकार को दे देना चाहिए, लेकिन, सरकार ऐसा नहीं करके अपने खर्च के बोझ को अगले वित्तीय वर्ष तक टाल देती है.
इस दौरान भारतीय खाद्य निगम सरकारी बैंकों से कर्ज लेकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करता रहता है. इस कर्ज के बदले में खाद्य निगम सरकारी बैंकों को कम अवधि के सरकारी बॉन्ड जारी करता है. सरकारी बैंक इन बॉन्ड को अगले वित्तीय वर्ष में भुना सकते हैं. सरकारी बैंक, एफसीआई को कर्ज इसलिए देते हैं कि ये कर्ज सरकार को दिया हुआ कर्ज माना जाता है, जिसके डूबने की आशंका नहीं होती. भले ही ये ज्यादा कर्ज खाद्य निगम के खाते में दर्ज होता है. लेकिन, हकीकत में ये कर्ज सरकार के खजाने पर होता है, जिसे आखिर में सरकार को भरना पड़ता है. पर, वित्त मंत्री ये कह सकते हैं कि ये हमारे जमा-खर्च में शामिल नहीं है.
भारत के महालेखा निरीक्षक यानी सीएजी ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में जमा-खर्च के इस गुल्ली-डंडे वाले खेल का जिक्र किया था. वित्तीय वर्ष 2016-2017 की मिसाल लीजिए. भारतीय खाद्य निगम को सरकार ने खाद्य सब्सिडी के लिए 78,335 करोड़ रुपए दिए थे. जबकि इससे ज्यादा रकम यानी 81,303 करोड़ रुपए का कर्ज अगले वित्तीय वर्ष तक सरका दिया गया था. मजे की बात ये है कि पिछले साल के कर्ज को आगे बढ़ाने का ये बोझ वित्तीय वर्ष 2011-2012 में केवल 23, 427 करोड़ था. लेकिन, वित्तीय वर्ष 2016-2017 के बीच ये बढ़कर 81,303 करोड़ हो गया. वजह ये कि सरकार उस कहावत पर चल रही थी, जो ग्रामीण क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है, यानी ‘बैसाख के वादे पर’. किस्सा मुख्तसर ये कि सरकार पर कर्ज तो इसी वित्तीय वर्ष का था, मगर, वो अपने हिसाब-किताब में इस कर्ज को अगले साल के खर्च के तौर पर दिखाकर अपना वित्तीय घाटा कम करके पेश कर रही थी.
अब इसका मतलब क्या हुआ?
मतलब ये कि सरकार को पिछले वित्तीय वर्ष में भारतीय खाद्य निगम को 1,59,638 करोड़ रुपए का भुगतान करना चाहिए था. इनमें से 78,335 करोड़ इस साल के बकाया थे, तो बाकी की रकम यानी 81,303 करोड़ पिछले वित्तीय वर्ष के थे. पूरी रकम दे देने पर सरकार के ऊपर एफसीआई का कुछ भी बकाया नहीं रह जाता. लेकिन, सरकार ने कुल बकाया रकम में से खाद्य निगम को आधे से भी कम का भुगतान किया. बाकी के कर्ज को ‘बैसाख के वादे पर’ छोड़ दिया. यानी सरकार ने खाद्य निगम से कहा कि वो बाकी कर्ज बाद में देगी. ऐसा करके सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष का अपना खर्च 81,303 करोड़ रुपए कम कर लिया.
इसी तरह 2016-2017 में सरकार ने उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी के तौर पर 70,100 करोड़ रुपए का भुगतान किया था. इन कंपनियों को सब्सिडी के तौर पर दी जाने वाली बाकी की रकम यानी 39,057 करोड़ रुपए अगले वित्तीय वर्ष में देने का वादा सरकार ने किया. इसीलिए, 2016-2017 के वित्तीय वर्ष में सरकार का ‘बैसाख के वादे’ का कर्ज यानी अगले वित्तीय वर्ष के वादे पर लिया गया कर्ज 1,20,360 करोड़ था. अगर ये खर्च सरकार अगले वित्तीय वर्ष तक नहीं टालती, तो असली वित्तीय घाटा घाटा जीडीपी का 4.3 प्रतिशत होता, न कि 3.5 प्रतिशत, जो सरकार ने दिखाया था.
हकीकत और भरम के बीच का ये बड़ा फासला है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली को आंकड़ों की ये बाजीगरी 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करते हुए फिर से दिखानी होगी, ताकि वो वित्तीय घाटे का पिछले साल का बजट पेश करते हुए निर्धारित किया गया लक्ष्य हासिल कर सकें क्योंकि वित्तीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने का और कोई जरिया वित्त मंत्री के पास है नहीं. उम्मीद से कम जीएसटी वसूली की भरपाई करने के लिए जेटली के पास इसके सिवा कोई और विकल्प नहीं.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/gst-anti-profit.jpg6671000Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 11:20:302019-01-17 11:20:35जीएसटी घाटा कैसे पूरा करेंगे वित्त मंत्री
महाधरना के बाद WJI ने देश की मीडियाकर्मियों की 28
मांगों का ज्ञापन PMO को सौंपा
WJI ने अपने सदस्यों को 3 लाख का दुर्घटना बीमा देने की घोषणा की
नई
दिल्ली / वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया ने 16 जनवरी अपने स्थापना दिवस के अवसर
पर मीडिया महा धरना का आयोजन किया।
पिछले
कुछ समय से पत्रकारों की मांगो को लेकर वर्किंग जर्नलिस्ट आफ इंडिया सम्बद्ध
भारतीय मजदूर संघ काफी सक्रिय रहा है।
देश
में पत्रकारों का शीर्ष संगठन है। यह
संगठन पत्रकारों के कल्याणार्थ समय समय पर रचनात्मक और प्ररेणादायक
कार्यक्रम और आंदोलन चलाता रहा है।इसको देश के विभिन्न राज्यों से आये पत्रकार
संगठन समर्थन दे रहे है।
वर्किंग
जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी और राष्ट्रीय महासचिव
नरेंद्र भंडारी ने
आज
के महाधरना में पत्रकार एकजुटता का दृश्य देखने को मिला।देश के 12 राज्यों के पत्रकार और कई पत्रकार
संगठन धरना में आकर सरकारों के प्रति आक्रोश व्यक्ति किया।पत्रकारों का खाना था
केंद्र सरकार तो नया मीडिया आयोग बना रही है और न ही ऑनलाइन मीडिया को मंदिर का दे
रही है जबकि पूरे देश में मीडिया कर्मी देश को मजबूत बनाने का काम करते हैं। महा
धरना के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी के नेतृत्व में WJI
प्रतिनिधिमंडल
pmo पहुंचा और वहां पर पत्रकारों की 28 मांगो का ज्ञापन सौंपा गया।
आज WJI ने
अपने स्थापना दिवस पर अपने सदस्य पत्रकारों के हित में 3 लाख दुर्घटना बीमा की घोषणा की।
माहौल
उस समय बहुत ही उत्साहवर्धक हो गया जब भारतीय मजदूर संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री
पवन कुमार, संगठन महामंत्री अनीश मिश्रा और संगठन मंत्री ब्रजेश कुमार धरना स्थल
पहुंचे। उन्होंने पत्रकारों की मांगों का समर्थन दिया।
वर्किंग
जर्नलिस्ट आफ India WJI प्रवक्ता उदय मन्ना ने बताया कि पत्रकारों में
जो आक्रोश भरा वो कोई भी दिशा ले सकता है। मीडियाकर्मी RJS स्टार सुरेंद्र आनंद के गीत ने माहौल
में जोश भर दिया।
वर्किंग जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों
द्वारा तैयार मांग पत्र जिसमे सरकार से मांग हैः-
वर्तमान
समय की मांगों पर ध्यान में रखते हुए वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में संशोधन किया
जाये।
कार्यकारी
पत्रकार अधिनियम में इलेक्ट्रानिक मीडिया, वेब
मीडिया, ई-मीडिया और अन्य सभी मीड़िया को
अपने
अधिकार क्षेत्र में लाया जाये।
भारत
की प्रेस काउंसिल के स्थान पर मीडिया काउंसिल बनाई जाये। जिससे पीसीआई के दायरे और
क्षेत्राधिकार
को बढ़ाया जाये।
भारत
के सभी पत्रकारों को भारत सरकार के साथ पंजीकृत किया जाये और वास्तविक मीड़िया
पहचान
पत्र जारी किया जायें।
जिन
अखबारों ने वेज कार्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया उन पर सरकारी विज्ञापन देने
पर
कोई
अनुशासत्मक प्रतिबंध हो।
केन्द्र
सरकार लघु व मध्यम समाचार पत्रों को ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन जारी करने के अपने
नियमों
को जल्द से जल्द परिवर्तित करे।
देश
में पत्रकार सुरक्षा कानून तैयार किया जाये।
तहसील
और जिला स्तर के संवाददाताओं एवं मीडिया व्यक्तियों के लिए 24 घंटे की हेल्पलाईन
सेवायें
उपलब्ध कराई जायें।
भारत
में सभी मीड़िया संस्थानों को वेज बोर्ड की सिफारिशों को सख्ती से लागू करवाने के
नियम बनाये जाये।
ड्यूटी
के दौरान अथवा किसी मिशन पर काम करते हुये पत्रकार एवं मीडियाकर्मी की मृत्यु होने
पर उसके परिजन को 15 लाख का मुआवजा और परिजनों को नौकरी दी
जाये।
सभी
पत्रकारों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन की सुविधा ओर सेवानिवृति की उम्र 64 वर्ष की जाये।
सभी
पत्रकारों को राज्य एवं केन्द्र सरकारों की तरफ से चिकित्सा सुविधा और बीमा सुविधा
दी जाये।
पत्रकारिता
नौकरियों में अनुबंध प्रणाली का उन्मूलन किया जाये।
कैमरामैन
समेत सभी पत्रकारों को सरकारी कार्यक्रमों को कवर करने के लिए कोई पांबदी नहीं
होनी चाहिए।
बेहतर
पारस्परिक सहयोग के लिए जिला स्तर पुलिस-पत्रकार समितियां गठित की जाये।
शुरूआती चरणों में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी द्वारा
पत्रकारों से संबंधित सभी मामलों की समीक्षा की जाये
और
पत्रकारों से जुड़े मामलों को जल्द से जल्द निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई
जाये।
मीड़िया
व्यक्तियों को देश भर में उनकी संस्थान के पहचान पत्र के आधार पर सड़क टोल पर
भुगतान
करने
से मुक्त किया जाये।
पत्रकारों
को बस और रेल किराये में कुछ रियायत प्रदान की जाये।
केन्द्रों
और राज्य सरकारें PIB-DIP
पत्रकारों की मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया को एकरूपता व सरल बनायें।
समाचार
पत्रों से GST खत्म की जाए।
विदेशी
मीडिया के लिए भारतीय मीडिया संस्थानों में विनिवेश की अनुमति ना दी जाये।
आनलाईन
मीडिया को मान्यता दी जाये उन्हें सरकारी विज्ञापन दिये जायें व उनका सरकारी
एक्रीडेशन किया जाये।
केन्द्र
सरकार अविलम्ब नये मीडिया आयोग का गठन करें।
संविधान
में मीडिया को चौथे स्तम्भ के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया जाये।
महिला
पत्रकारों के लिए होस्टल बनाये जायें।
पत्रकारों
की रिहायश के लिए सस्ती दरों पर भूखंड आबंटित किये जायें। अलग-अलग राज्यों से
पत्रकार और WJI पदाधिकारी भी उपस्थित रहे और संबोधन
दिया।
हरियाणा
भूपिंदर
सिंह
धर्मेंद्र
यादव
अमित
चौधरी
राजिंदर
सिंह
मोहन
सिंह
राज
कुमार भाटिया
उत्तर
खंड
सुनील
गुप्ता महा सचिव उत्तरखंड व कार्यकारिणी सदस्य
लखनऊ
पवन
श्रीवास्तव अध्यक्ष उत्तर प्रदेश व कार्यकारिणी
विशेष
Mr अशोक मालिक – राष्ट्रीय अध्यक्ष
नेशनल
यूनियन ऑफ जॉर्नलिस्ट
मनोहर
सिंह अध्यक्ष
दिल्ली
पत्रकार संघ
संजय
राठी अध्यक्ष
हरियाणा
यूनियन ऑफ जॉर्नलिस्ट
चंडीगढ़
से नेशनल मीडिया कन्फेडरेशन के उपाध्यक्ष सुरेंद्र वर्मा,
राष्ट्रीय
मीडिया फाउंडेशन मध्यप्रदेश के अध्यक्ष आशीष पाण्डेय,
दिल्ली
एनसीआर की टीम आरजेएस मीडिया
इसके
अलावा WJI की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के
उपाध्यक्ष संजय उपाध्याय,संजय सक्सेना
कोषाध्यक्ष
अंजलि भाटिया,
सचिव
अर्जुन जैन,विपिन चौहान आदि ने महाधरना को सफल
बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आशा
है पत्रकारों के संगठनों की एकजुटता का प्रयास सरकार का ध्यान आकर्षित करेगा।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/f4aef9d8-0beb-4bd0-8144-100e574a25bf.jpg5201040Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 06:02:402019-01-17 06:02:43WJI ने दिल्ली में अपना मांग पत्र PMO को सौंपा
चंडीगढ़:आम आदमी पार्टी (आप) के बागी विधायक बलदेव सिंह ने बुधवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर ‘‘अपनी मूल विचारधारा तथा सिद्धांतों को छोड़ने’’ और पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल पर ‘‘तानाशाही और अभिमानी’’ होने का आरोप लगाया. पंजाब के जैतो से विधायक ने केजरीवाल को अपना इस्तीफा सौंपा. वह भोलाथ से विधायक सुखपाल सिंह खैरा और एचएस फूलका के बाद पार्टी छोड़ने वाले तीसरे विधायक हैं. खैरा ने छह जनवरी को जबकि वरिष्ठ वकील एच एस फूलका ने तीन जनवरी को पार्टी और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
हालांकि खैरा ने विधायक के तौर पर त्यागपत्र नहीं दिया है . उन्होंने पार्टी नेतृत्व को चुनौती दी है कि वह उन्हें दल बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहरवाएं. केजरीवाल को लिखे पत्र में बलदेव सिंह ने कहा, ‘‘आप की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देते हुए काफी दुखी हूं क्योंकि पार्टी ने अपनी मूल विचारधारा और सिद्धांतों को पूरी तरह छोड़ दिया है.’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘आपकी तानाशाही, अभिमान और काम करने के निरंकुश तरीके की वजह से ही प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, मेधा पाटकर, किरण बेदी, डॉ गांधी, एच एस खालसा, सुचा सिंह छोटेपुर, गुरप्रीत घुग्गी, आशीष खेतान, आशुतोष, एच फूलका जैसे आप के दिग्गज नेताओं ने पार्टी छोड़ दी या उन्हें अपमानजनक तरीके से निकाल दिया गया.’’
बलदेव सिंह ने कहा, ‘‘इन दुखद घटनाओं और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए. मैंने आप की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने का फैसला किया.’’ बलदेव सिंह के इस्तीफे से पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता के पद पर फिलहाल कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है. यह पद आप के पास है. विधानसभा में आप के 20 विधायक हैं जिनमें छह बागी भी शामिल हैं. 14 विधायक पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ हैं.
‘आप’ के सुखपाल सिंह खैरा को पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद से हटाए जाने के बाद बलदेव सिंह सहित कई नेता उनकी तरफ हो गए थे. उन्होंने खैरा के राजनीतिक दल पंजाबी एकता पार्टी के शुभारंभ कार्यक्रम में भी शिरकत की थी. उन्होंने केजरीवाल को लिखे पत्र में कहा, ‘‘ पंजाब में हम लोग तब स्तब्ध रह गए जब आप ने अचानक और अलोकतांत्रिक तरीके से एक ईमानदार सुखपाल सिंह खैरा को विपक्ष के नेता के पद से हटा दिया.
ऐसा करने के लिए आपने पंजाब के विधायकों को विश्वास में भी नहीं लिया.’’ उन्होंने मादक पदार्थ के मुद्दे पर अकाली दल नेता बिक्रम सिंह मजीठिया से माफी मांगने को लेकर भी केजरीवाल पर हमला किया.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/default-1.jpg450850Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 03:03:552019-01-17 03:03:58आम आदमी पार्टी के विधायक बलदेव सिंह ने बुधवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को सीने में जकड़न और सांस लेने में परेशानी की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है
नई दिल्ली: बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को स्वाइन फ्लू हो गया है. उन्हें इलाज के लिए बुधवार को एम्स में भर्ती कराया गया है. शाह ने ट्विटर पर इसकी जानकारी दी. उन्होंने ट्वीट किया, “मुझे स्वाइन फ्लू हुआ है, जिसका उपचार चल रहा है. ईश्वर की कृपा, आप सभी के प्रेम और शुभकामनाओं से शीघ्र ही स्वस्थ हो जाऊंगा.”
एम्स के सूत्रों के मुताबिक, भाजपा नेता को सीने में जकड़न और सांस लेने में परेशानी की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है. वह रात करीब नौ बजे अस्पताल पहुंचे थे और उन्हें पुराने निजी वार्ड में भर्ती किया गया है. उन्होंने बताया कि एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया की निगरानी में डॉक्टरों की एक टीम उनकी स्थिति पर नजर रख रही है.
इस जैसे ही यह खबर मीडिया में आई, गृहमंत्री राजनाथ सिंह का भी एक ट्वीट सामने आया. सिंह ने लिखा, “अमितभाई, आपके जल्द से जल्द स्वस्थ होने की मैं ईश्वर से कामना करता हूं.” उन्होंने यह भी लिखा, “अमित शाह जी से बात की जिन्हें स्वाइन फ्लू के चलते एम्स में भर्ती कराया गया है. उनका हालचाल जाना. उनके जल्द स्वस्थ होने की मैं ईश्वर से कामना करता हूं.”
केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने लिखा, “भगवान से प्रार्थना है कि आप शीघ्र स्वस्थ व निरोग हों और आपका अनुभवी मार्गदर्शन लगातार मिलता रहे.” गुजरात बीजेपी अध्यक्ष जीतू वघानी ने लिखा, “हम ईश्वर से आपके जल्द से जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना करते है, ताकी आप की उर्जा और शक्ति से आप हमारे जैसे करोड़ों कार्यकर्ताओं को फ़िर से मार्गदर्शित करें.”
गौरतलब है कि मकर संक्रांति पर 14 जनवरी को शाह गुजरात के दौरे पर थे. उन्होंने अपने नारायणपुरा में पतंग उत्सव में भी हिस्सा लिया था. शाह नारायणपुरा क्षेत्र से ही चुनाव लड़ते रहे हैं.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/06/634836-amit-shah-reuters.jpg7201280Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 02:25:232019-01-17 02:25:25अमित शाह स्वाइन फ्लू के चलते एम्स में
पिछले साल 12 जनवरी को जिस उद्देश्य से अभूतपूर्व संवाददाता सम्मेलन किया गया था उसकी पूर्ति नहीं हुई है. उसकी जगह सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम की कार्यप्रणाली समेत अन्य चिंताएं बढ़ी हैं : पूर्व सीजेआई आरएम लोढ़ा बार काउन्सिल ऑफ इंडिया ने इसे ‘मनमाना’बताते हुए कहा कि इससे वैसे न्यायाधीश अपमानित महसूस करेंगे और उनका मनोबल गिरेगा जिनकी वरिष्ठता की अनदेखी की गई है
नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने कई न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी को लेकर पैदा हुए विवाद को नजरअंदाज करते हुए बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति कर दी. एक सरकारी अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी की भी शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की. इन दो नियुक्तियों से शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की संख्या 28 हो गयी है. अब भी कोर्ट में तीन रिक्तियां हैं.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने गत 11 जनवरी को न्यायमूर्ति माहेश्वरी और न्यायमूर्ति खन्ना को शीर्ष अदालत में पदोन्नत करने की सिफारिश की थी. जस्टिस खन्ना की नियुक्ति ऐसे दिन में की गई है, जब उन्हें पदोन्नत करने की कॉलेजियम की सिफारिश के खिलाफ विरोध के स्वर और प्रबल हो गए. बार काउन्सिल ऑफ इंडिया ने इसे ‘मनमाना’बताते हुए कहा कि इससे वैसे न्यायाधीश अपमानित महसूस करेंगे और उनका मनोबल गिरेगा जिनकी वरिष्ठता की अनदेखी की गई है.
सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान न्यायाधीश संजय किशन कौल ने सीजेआई और कॉलेजियम के अन्य सदस्यों–न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को पत्र लिखकर राजस्थान और दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों क्रमश: प्रदीप नंदराजोग और राजेंद्र मेनन की वरिष्ठता की अनदेखी किये जाने का मुद्दा उठाया है.
सूत्रों ने बताया कि न्यायमूर्ति कौल की राय थी कि अगर दोनों मुख्य न्यायाधीशों को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत नहीं किया गया तो बाहर गलत संकेत जाएगा. दोनों न्यायाधीश वरिष्ठता क्रम में न्यायमूर्ति खन्ना से ऊपर हैं. न्यायमूर्ति खन्ना अखिल भारतीय आधार पर उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की संयुक्त वरिष्ठता सूची में 33वें स्थान पर आते हैं.
पूर्व सीजेआई आरएम लोढ़ा ने कहा कि गोगोई समेत सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चार वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा पिछले साल 12 जनवरी को जिस उद्देश्य से अभूतपूर्व संवाददाता सम्मेलन किया गया था उसकी पूर्ति नहीं हुई है.उसकी जगह सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम की कार्यप्रणाली समेत अन्य चिंताएं बढ़ी हैं. उन्होंने कहा, ‘‘तमाम प्रतिक्रिया और धारणा को देखते हुए अगर (खन्ना का मामला) वापस लिया जाता है और उस पर विस्तार से विचार किया जाता है तो बेहतर होगा, लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा.’
न्यायमूर्ति लोढा ने कहा, ‘‘चिंता बरकरार है. बल्कि, इस कवायद (हालिया सिफारिश) से यह बढ़ती प्रतीत होती है. मैं नहीं मानता कि कोई बदलाव है. कम से कम लोगों को नहीं दिख रहा है. इसने इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं की है क्योंकि हमने वो बदलाव नहीं देखे हैं, जिसके लिये संवाददाता सम्मेलन किया गया था.’’ दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने भी 14 जनवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर कॉलेजियम द्वारा कई न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी किये जाने पर चिंता जताई थी.
बीसीआई अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने एक बयान में कहा कि देश के कई वरिष्ठ न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी को लोग बर्दाश्त नहीं कर सकते और न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन के नाम की सिफारिश वापस लिये जाने को ‘मनमानी’ के तौर पर देखा गया. मिश्रा ने कहा, ‘‘वे सत्यनिष्ठा और न्यायिक योग्यता वाले लोग हैं. कोई भी व्यक्ति किसी भी आधार पर उन पर अंगुली नहीं उठा सकता. 10 जनवरी 2019 के फैसले से निश्चित तौर पर ऐसे न्यायाधीश और कई अन्य योग्य वरिष्ठ न्यायाधीश और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का अपमान होगा और उनका मनोबल गिरेगा.’’
बार निकाय ने कहा कि वह ‘‘भारतीय बार की जबर्दस्त नाराजगी और प्रतिक्रिया’’ को देख रहा है और बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम जनता की टिप्पणियों पर नजर रख रहा है ‘‘जो दर्शाता है कि हालिया अतीत में हमारी कॉलेजियम व्यवस्था के प्रति लोगों के भरोसे में अचानक से कमी आई है.’ बीसीआई इन मुद्दों को उठाने में लगी हुई है, वहीं उसने कहा कि दिल्ली बार काउन्सिल ने भी कॉलेजियम के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है.
बयान में कहा गया है कि कई अन्य राज्य बार काउन्सिलों, उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन और देश के अन्य बार एसोसिएशनों ने बीसीआई को पत्र लिखकर उससे इस मुद्दे को सरकार और कॉलेजियम के न्यायाधीशों के समक्ष उठाने का दबाव बनाया है. बीसीआई ने कहा, ‘‘ज्यादातर काउन्सिलों और एसोसिएशनों ने इस गंभीर मुद्दे पर विरोध जताने के लिये धरना और राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का प्रस्ताव दिया है.’’ बीसीआई ने कहा कि कॉलेजियम की हालिया प्रवृत्ति से बार और जनता का उसमें भरोसा कम हुआ है.
बयान में कहा गया है, ‘‘हमें न्यायमूर्ति खन्ना से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन वह अपनी बारी की प्रतीक्षा कर सकते हैं. देश के कई मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों की मेधा और वरिष्ठता की अनदेखी करके उन्हें पदोन्नत करने की कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिये.’’ बीसीआई ने कहा, ‘‘बार कॉलेजियम और सरकार से अनुरोध करेगा कि इस तरह वरिष्ठों की अनदेखी को बढ़ावा नहीं दे. वरिष्ठता के सिद्धांत की पूरी तरह अनदेखी करके नियुक्ति किये जाने को लेकर समाज के सभी हिस्सों से तीखी प्रतिक्रिया आई है.’’
न्यायमूर्ति माहेश्वरी और न्यायमूर्ति खन्ना को पदोन्न्त करने के फैसले को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर डाला गया. उसमें कहा गया है कि न्यायाधीशों को पदोन्नत करने के मुद्दे पर पिछले साल 12 दिसंबर को विचार किया गया था जब न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर कॉलेजियम के सदस्य थे. वेबसाइट के अनुसार, इस साल 5 और 6 जनवरी को व्यापक विचार-विमर्श के बाद नवगठित कॉलेजियम ने उपलब्ध अतिरिक्त सामग्री के आलोक में न्यायाधीशों को पदोन्नत करने के मुद्दे पर नये सिरे से विचार करना उचित समझा.
कॉलेजियम ने कहा, ‘न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के नाम की सिफारिश करते वक्त कॉलेजियम ने अखिल भारतीय स्तर पर उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और वरिष्ठ न्यायाधीशों की संयुक्त वरिष्ठता के साथ-साथ उनकी मेधा और सत्यनिष्ठा पर विचार किया.’ कॉलेजियम ने कहा कि उसने सभी उच्च न्यायालयों को यथासंभव उच्चतम न्यायालय में उचित प्रतिनिधित्व देने की जरूरत को भी ध्यान में रखा है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.png00Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 02:19:382019-01-17 02:19:41न्यायमूर्तियों को न्याय नहीं
कोलकाता : बीजेपी पश्चिम बंगाल में आगामी 20 जनवरी से रैलियों की तीन दिवसीय सीरीज की शुरूआत करेगी. इन रैलियों को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह संबोधित करेंगे. पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष ने यह घोषणा की. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को भगवा पार्टी को सार्वजनिक रैलियां और बैठकें करने की इजाजत देने के लिए कहा था.
भाजपा की प्रस्तावित रैलियों से एक दिन पहले 19 जनवरी को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में एक रैली आयोजित करेगी जिसमें शामिल होने के लिए देशभर के विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया गया है.
घोष ने कहा, ‘हम 20 जनवरी से सार्वजनिक रैलियां आयोजित करना शुरू करेंगे. अमित शाह 20 जनवरी को माल्दा में पहली रैली को संबोधित करेंगे.’ उन्होंने बताया कि 21 जनवरी को शाह बीरभूम जिले के सूरी और झारग्राम में दो रैलियों को संबोधित करेंगे. वह 22 जनवरी को नदिया जिले के कृष्णानगर और दक्षिण 24 परगना जिले के जयनगर में रैलियों को संबोधित करेंगे. शाह ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है.
घोष ने इससे पहले कहा था कि पार्टी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कुछ रैलियां आयोजित कराना भी चाहती है. उन्होंने कहा था कि वे प्रधानमंत्री की रैलियों के लिए केन्द्रीय नेता से बात कर रहे हैं. लेकिन अभी किसी भी बात की पुष्टि नहीं की गई है. पिछले कुछ वर्षों में पार्टी राज्य में मुख्य विपक्ष के रूप में उभरकर सामने आई है.
भाजपा ने राष्ट्रीय चुनावों में अपनी संभावनाओं को बढ़ाने के लिए ‘‘रथ यात्रा’’ की योजना बनाई थी जो राज्य के सभी लोकसभा क्षेत्रों से होकर गुजरने वाली थी. हालांकि राज्य सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी और तब से यह मामला कानूनी पचड़ों में फंसा हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल में भाजपा की प्रस्तावित ‘‘रथ यात्रा’’ पर अस्थायी रोक लगा दी थी और पार्टी से कहा था कि वह राज्य की ममता बनर्जी सरकार के समक्ष पुनरीक्षित प्रस्ताव देकर नए सिरे से मंजूरी मांगे. न्यायालय ने कहा था कि कानून-व्यवस्था से जुड़ी राज्य सरकार की आशंकाएं ‘‘पूरी तरह निराधार नहीं’’ हैं. घोष ने कहा कि उन्हें ‘रथ यात्रा’ पर अभी निर्णय लेना है और बंगाल इकाई केन्द्रीय नेताओं के साथ मामले पर विचार विमर्श करेगी.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/rally.jpg482660Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 01:12:302019-01-17 01:12:32भाजपा 20 जनवरी से रैलियों की तीन दिवसीय सीरीज की शुरूआत करेगी
विशेषः आज दक्षिण दिशा की यात्रा न करें। अति आवश्यक होने पर गुरूवार को दही पूरी खाकर और माथे में पीला चंदन केसर के साथ लगाये और इन्हीं वस्तुओं का दान योग्य ब्रह्मण को देकर यात्रा करें।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/11/Hindu-Panchang-1.jpg388997Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 00:58:552019-01-17 00:58:57आज का पांचांग
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