डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति आज उनकी जयंती है

डॉ. राजेंद्र प्रसाद 

Dr Rajendra Prasad भारतीय लोकतंत्र के पहले राष्ट्रपति थे। साथ ही एक भारतीय राजनीती के सफल नेता, और प्रशिक्षक वकील थे। भारतीय स्वतंत्रता अभियान के दौरान ही वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हुए और बिहार क्षेत्र से वे एक बड़े नेता साबित हुए। महात्मा गांधी के सहायक होने की वजह से, प्रसाद को ब्रिटिश अथॉरिटी ने 1931 के नमक सत्याग्रह और 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में जेल में डाला।

राजेन्द्र प्रसाद ने 1934 से 1935 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भारत की सेवा की। और 1946 के चुनाव में सेंट्रल गवर्नमेंट की फ़ूड एंड एग्रीकल्चर मंत्री के रूप में सेवा की। 1947 में आज़ादी के बाद, प्रसाद को संघटक सभा में राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया।

1950 में भारत जब स्वतंत्र गणतंत्र बना, तब अधिकारिक रूप से संघटक सभा द्वारा भारत का पहला राष्ट्रपति चुना गया। इसी तरह 1951 के चुनावो में, चुनाव निर्वाचन समिति द्वारा उन्हें वहा का अध्यक्ष चुना गया।
राष्ट्रपति बनाने के बाद वह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से काम करना चाहते थे अत: उन्होने कांग्रेस पार्टी से सन्यास ले लिया।

राष्ट्रपति बनते ही प्रसाद ने कई सामाजिक भलाई के काम किये, कई सरकारी दफ्तरों की स्थापना की और उसी समय उन्होंने कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया। राज्य सरकार के मुख्य होने के कारण उन्होंने कई राज्यों में पढाई का विकास किया कई पढाई करने की संस्थाओ का निर्माण किया और शिक्षण क्षेत्र के विकास पर ज्यादा ध्यान देने लगे।

उनके इसी तरह के विकास भरे काम को देखकर 1957 के चुनावो में चुनाव समिति द्वारा उन्हें फिर से राष्ट्रपति घोषित किया गया और वे अकेले ऐसे व्यक्ति बने जिन्हें लगातार दो बार भारत का राष्ट्रपति चुना गया।

एक नजर में  डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जानकारी 

  • 1906 में राजेंद्र बाबु के पहल से ‘बिहारी क्लब’ स्थापन हुवा था। उसके सचिव बने।
  • 1908 में राजेंद्र बाबु ने मुझफ्फरपुर के ब्राम्हण कॉलेज में अंग्रेजी विषय के अध्यापक की नौकरी मिलायी और कुछ समय वो उस कॉलेज के अध्यापक के पद पर रहे।

  • 1909 में कोलकत्ता सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र इस विषय का उन्होंने अध्यापन किया।
  • 1911 में राजेंद्र बाबु ने कोलकता उच्च न्यायालय में वकीली का व्यवसाय शुरु किया।
  • 1914 में बिहार और बंगाल इन दो राज्ये में बाढ़ के वजह से हजारो लोगोंको बेघर होने की नौबत आयी। राजेंद्र बाबु ने दिन-रात एक करके बाढ़ पीड़ितों की मदत की।
  • 1916 में उन्होंने पाटना उच्च न्यायालय में वकील का व्यवसाय शुरु किया।
  • 1917 में महात्मा गांधी चंपारन्य में सत्याग्रह गये ऐसा समझते ही राजेंद्र बाबु भी वहा गये और उस सत्याग्रह में शामिल हुये।
  • 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में वो शामील हुये। इसी साल में उन्होंने ‘देश’ नाम का हिंदी भाषा में साप्ताहिक निकाला।
  • 1921 में राजेंद्र बाबुने बिहार विश्वविद्यालय की स्थापना की।
  • 1924 में पाटना महापालिका के अध्यक्ष के रूप में उन्हें चुना गया।
  • 1928 में हॉलंड में ‘विश्व युवा शांति परिषद’ हुयी उसमे राजेंद्र बाबुने भारत की ओर से हिस्सा लिया और भाषण भी दिया।
  • 1930 में अवज्ञा आंदोलन में ही उन्होंने हिस्सा लिया। उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। जेल में बुरा भोजन खाने से उन्हें दमे का विकार हुवा। उसी समय बिहार में बड़ा भूकंप हुवा। खराब तबियत की वजह से उन्हें जेल से छोड़ा गया। भूकंप पीड़ितों को मदत के लिये उन्होंने ‘बिहार सेंट्रल टिलिफ’की कमेटी स्थापना की। उन्होंने उस समय २८ लाख रूपयोकी मदत इकठ्ठा करके भूकंप पीड़ितों में बाट दी।
  • 1934 में मुबंई यहा के कॉग्रेस के अधिवेशन ने अध्यपद कार्य किया।
  • 1936 में नागपूर यहा हुये अखिल भारतीय हिंदी साहित्य संमेलन के अध्यक्षपद पर भी कार्य किया।
  • 1942 में ‘छोडो भारत’ आंदोलन में भी उन्हें जेल जाना पड़ा।
  • 1946 में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार स्थापन हुवा। गांधीजी के आग्रह के कारन उन्होंने भोजन और कृषि विभाग का मंत्रीपद स्वीकार किया।
  • 1947 में राष्ट्रिय कॉग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुना गया। उसके पहले वो घटना समिती के अध्यक्ष बने। घटना समीति को कार्यवाही दो साल, ग्यारह महीने और अठारह दिन चलेगी। घटने का मसौदा बनाया। 26 नवंबर, 1949 को वो मंजूर हुवा और 26 जनवरी, 1950 को उसपर अमल किया गया। भारत प्रजासत्ताक राज्य बना। स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति होने का सम्मान राजेन्द्रबाबू को मिला।
  • 1950 से 1962 ऐसे बारा साल तक उनके पास राष्ट्रपती पद रहा। बाद में बाकि का जीवन उन्होंने स्थापना किये हुये पटना के सदाकत आश्रम में गुजारा।

हम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में याद करते है लेकिन इसके साथ ही उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता अभियान में भी मुख्य भूमिका निभाई थी और संघर्ष करते हुए देश को आज़ादी दिलवायी थी।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद में भारत का विकास करने की चाह थी। वे लगातार भारतीय कानून व्यवस्था को बदलते रहे और उपने सहकर्मियों के साथ मिलकर उसे और अधिक मजबूत बनाने का प्रयास करने लगे। हम भी भारत के ही वासी है हमारी भी यह जिम्मेदारी बनती है की हम भी हमारे देश के विकास में सरकार की मदद करे। ताकि दुनिया की नजरो में हम भारत का दर्जा बढ़ा सके।

NDA का साथ छोड़ने के मुद्दे पर RSLP में अकेले ही न रह जाएं उपेंद्र कुशवाहा


आरएलएसपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगवान सिंह कुशवाहा ने कहा, ‘हमारा मानना है कि कुशवाहा जी को यूपीए में एनडीए जितनी इज्जत नहीं मिलेगी’


राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए छोड़ने के कयासों के बीच बिहार में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. आरएलएसपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगवान सिंह कुशवाहा के एक बयान से इसमें नया ट्विस्ट आता दिख रहा है. उन्होंने कहा कि कुशवाहा को एनडीए ने बहुत इज्जत दी है और उन्हें एनडीए में ही रहना चाहिए. भगवान सिंह के इस बयान से उपेंद्र कुशवाहा एनडीए छोड़ने के मुद्दे पर अपनी ही पार्टी में अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं.

भगवान सिंह ने कहा कि रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी के छह सांसद होने के बावजूद एक ही मंत्री बनाया. जबकि आरएलएसपी के तीन ही सांसद थे, तब भी एक मंत्री पद दिया गया. उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि कुशवाहा जी को यूपीए में एनडीए जितनी इज्जत नहीं मिलेगी. हम दिल की गहराई से आग्रह करते हैं कि आरएलएसपी एनडीए मे ही बना रहे.’

आरएलएसपी के नेता चाहते हैं एनडीए में बने रहना

आरएलएसपी के सांसद राम कुमार शर्मा भी एनडीए में ही रहने के संकेत दे चुके हैं. इसके साथ ही पार्टी के दोनों विधायक, सुधांशु शेखर और ललन पासवान ने भी एनडीए में ही बने रहने के संकेत दिए थे. वे 27 नवंबर को बीजेपी विधानमंडल दल की बैठक में शामिल भी हुए थे. इससे पहले 10 नवंबर को इन्ही दोनों विधायकों ने जेडीयू में जाने का संकेत दिया था.

आरएलएसपी के सांसद राम कुमार शर्मा भी एनडीए में ही रहने के संकेत दे चुके हैं. इसके साथ ही पार्टी के दोनों विधायक, सुधांशु शेखर और ललन पासवान ने भी एनडीए में ही बने रहने के संकेत दिए थे. वे 27 नवंबर को बीजेपी विधानमंडल दल की बैठक में शामिल भी हुए थे. इससे पहले 10 नवंबर को इन्ही दोनों विधायकों ने जेडीयू में जाने का संकेत दिया था.

अपनी बात से पलटे सिद्धू या राहुल

कल तक कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की कप्तानी नकारने वाले और हर जगह अपनी मर्ज़ी चलाने वाले सिद्धू ने आज फिर पलटी मारी, कल तक वह जो बात कैमरे के सामने ठोक कर बोल रहे थे उसी बात को पलटने के लिए उन्हे आज टिवीटर का सहारा लेना पड़ा।


Navjot Singh Sidhu

@sherryontopp

Get your facts right before you distort them,
Rahul Gandhi Ji never asked me to go to Pakistan.
The whole world knows I went on Prime Minister Imran Khan’s personal invite.


Jalandhar

अभी तो पंजाब में सिद्धू ख़िलाफ़ बगावत को लेकर एक दो ब्यान ही आए थे कि गुरु अभी ही ‘खटैक ‘ कर बात ख़त्म कर गए। राहुल गाँधी के आशीर्वाद के बाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने जैसा कांग्रेसी समझने की भूल करने वाले शैरी अब टॉप से धरातल पर आ गए है। पाकिस्तान दौरे को लेकर पार्टी प्रधान राहुल गाँधी की इज़ाज़त मिलने के ब्यान से सिद्धू मुकर गए हैं। ट्वीट के ज़रिये उन्होंने पलटी मारते हुए लिखा है कि आप अपने ज्ञान में सुधार लाएं ,राहुल गाँधी जी ने मुझे कभी भी  पाकिस्तान जाने के लिए नहीं कहा बल्कि वह इमरान खान द्वारा भेजे गए निजी आमंत्रण पर पाकिस्तान गए थे।

सिद्धू की ‘रिवर्स स्वीप’ का कारण हाईकमान की घुड़की माना जा रहा है क्यूंकि सिद्धू को लेकर पाकिस्तान के साथ लिंक जोड़ते हुए विपक्षी दल राहुल गाँधी की पाकिस्तान से सांठगांठ के इल्ज़ाम लगा रहे थे। अब हालात यह बन गए हैं कि सिद्धू का पंजाब में भी विरोध हो रहा है और दिल्ली दरबार से भी दबी आवाज़ में ‘क्लास ‘ लग गयी है।

सिद्धू के पाकिस्तान दौरे से पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह चिढ़े हुए हैं

सिद्धू के पाक दौरे से पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह चिढ़े हुए हैं, उन्होंने कहा था कि अपने मंत्रिमंडल के सदस्य सिद्धू को उन्होंने अमृतसर में एक धार्मिक कार्यक्रम पर ग्रेनेड हमले में 3 लोगों के मारे जाने के बाद पाकिस्तान जाने से रोकने की कोशिश की थी. लेकिन उन्होंने इसे अनसुना कर दिया. सिंह ने इस हमले के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को जिम्मेदार बताया था.

इससे पहले गुरुवार को भारत आने के बाद सिद्धू ने कहा था कि दोनों देशों के बीच दुश्‍मनी खत्‍म होनी चाहिए.

बता दें कि खालिस्तान समर्थक नेता गोपाल चावला के साथ सिद्धू की तस्वीरें वायरल होने के बाद देश में राजनीति तेज हो गई है. इस पर जवाब देते हुए सिद्धू ने कहा था, ‘पाकिस्तान में मेरी 5-10 हजार तस्वीरें खींची गईं, मुझे नहीं पता गोपाल चावला कौन है.’

मामा शिवराज सिंह चौहान को पार लगा रही हैं महिला वोटर?


पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत तीन फीसदी बढ़ा है.


पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत  तीन फीसदी बढ़ा है. राज्य के लगभग 47 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत ज्यादा है. महिलाओं के वोटिंग प्रतिशत में हुई वृद्धि से बीजेपी अपने पक्ष में चुनाव नतीजे आने की उम्मीद लगाए बैठी है.

विंध्य क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर महिलाओं ने की है ज्यादा वोटिंग

विधानसभा के इस चुनाव में महिलाओं ने सबसे ज्यादा वोटिंग विंध्य इलाके में की है. विंध्य में विधानसभा की कुल तीस सीटें हैं. वर्तमान में कांग्रेस के कब्जे में सिर्फ बारह सीटें हैं. बसपा दो सीटों पर चुनाव जीती थी. बीजेपी के खाते में सोलह सीटें आईं थीं. पिछले विधानसभा चुनाव में भी विंध्य क्षेत्र में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों की तुलना में ज्यादा रहा था.

इस बार इलाके की दो दर्जन से अधिक सीटों पर महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा है. खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर पिछले चुनाव की तुलना में इस बार दस प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. बसपा के कब्जे वाली रैगांव सीट पर इस चुनाव में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 74.97 फीसदी रहा है. जबकि पिछले चुनाव में 64.62 फीसदी महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.

इस विधानसभा क्षेत्र में पिछले चुनाव की तुलना में 8 प्रतिशत ज्यादा डाला गया है. जबकि पिछले चुनाव में बसपा लगभग तीन प्रतिशत वोट ज्यादा लाकर चुनाव जीत गई थी. मनगंवा की सीट बसपा ने मात्र 275 वोटों से जीती थी. इस सीट पर पिछली बार महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 59.05 था जो इस चुनाव में बढ़कर 61.81 प्रतिशत हुआ है.


ब्यौहारी की सीट कांग्रेस ने लगभग दस प्रतिशत वोटों के अंतर से जीती थी. ब्यौहारी में इस बार महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में दो फीसदी कम हुआ है. महिला और पुरुषों के वोटिंग में भी मामूली अंतर है. पिछले विधानसभा चुनाव में जहां भी महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत बढ़ा था, वहां ज्यादा फायदा भारतीय जनता पार्टी को हुआ था.


विधानसभा के इस चुनाव में कांग्रेस को विंध्य क्षेत्र से बड़ी उम्मीदें हैं. कांग्रेस 18 सीट जीतने की उम्मीद लगाए हुए है. विंध्य कभी कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था. अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज नेता इसी क्षेत्र से आते थे. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव के बाद इस क्षेत्र में कांग्रेस कमजोर हुई है. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का भी असर इस क्षेत्र में बढ़ने से कांग्रेस को नुकसान हुआ है. इस बार भी कांग्रेस की राह में मुश्किल इन दोनों दलों के कारण खड़ी दिखाई दे रही है.

महाकौशल के आदिवासी इलाकों में भी ज्यादा है महिला पोलिंग परसेंट

विंध्य की तुलना में ग्वालियर एवं चंबल क्षेत्र की 34 विधानसभा सीटों पर महिलाओं का पोलिंग परसेंट में खास बड़ा अंतर दिखाई नहीं दे रहा है. यह कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाला क्षेत्र है. इलाके की पांच सीटें ऐसी हैं जहां महिलाओं का पोलिंग परसेंट पुरुषों की तुलना में ज्यादा है.

ये विधानसभा क्षेत्र विजयपुर, सबलगढ़,जौरा, अटेर और भिंड हैं. इनमें दो सीट विजयपुर और अटेर पर कांग्रेस का कब्जा है. इस इलाके में भी बसपा और सपा की मौजूदगी चुनावी समीकरण को बिगाड़ रही है. इसके विपरीत महाकौशल के कई आदिवासी इलाकों में भी महिलाओं का वोटिंग परसेंट बढ़ा है.

कांग्रेस की कब्जे वाली मंडला विधानसभा सीट पर पुरुषों की तुलना में लगभग एक परसेंट ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले हैं. पिछले चुनाव की तुलना में इस विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं का वोट परसेंट चार से भी ज्यादा बढ़ा है. बालाघाट जिले की बैहर, लांजी, परसवाड़ा वारासिवनी, कटंगी में भी महिलाओं का पोलिंग परसेंट ज्यादा रहा है.

सिवनी और छिंदवाड़ा जिले की भी कुछ विधानसभा सीटों पर महिलाओं के वोट ज्यादा पड़े हैं. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ छिंदवाड़ा संसदीय सीट से चुनाव लड़ते हैं. यह उनके प्रभाव वाला इलाका है. राज्य के सबसे समृद्ध माने जाने वाले मालवा-निमाड़ इलाके में इस तरह का वोटिंग पैटर्न दिखाई नहीं दिया है. पुलिस फायरिंग में किसानों की मौत के बाद चर्चा में आया मंदसौर इसी मालवा का हिस्सा है.

सरकार के पक्ष में पॉजेटिव वोट मान रही है बीजेपी

पिछले चुनाव की तुलना में महिला पोलिंग परसेंट बढ़ने से भारतीय जनता पार्टी उत्साहित है. पार्टी के मीडिया प्रभारी दीपक विजयवर्गीय कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं से जो भाई का रिश्ता बनाया है उसके कारण यह वोट परसेंट बढ़ा है. विजयवर्गीय ने दावा किया कि सरकार की महिला हितेषी नीतियों से भी बीजेपी को पॉजिटिव वोट मिल रहा है.


कांग्रेस प्रवक्ता जगदीप धनोपिया का दावा है कि बढ़ती महंगाई से नाराज होकर महिलाओं ने अधिक संख्या में घर से निकलकर कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया है.


चुनिंदा सीटों पर महिलाओं का वोटिंग परसेंट बढ़ने से राजीतिक प्रेक्षक भी हैरान हैं. लगभग सैंतालीस सीटों पर महिलाओं का पोलिंग परसेंट बढ़ने से सबसे ज्यादा चिंता कांग्रेस में दिखाई दे रही है.

कांग्रेस के एक नेता ने आकंडे़ सामने आने के बाद आशंका जाहिर की है कि विंध्य और महाकौशल क्षेत्र की सीटों पर महिलाओं का पोलिंग परसेंट बीजेपी के इलेक्शन मेनेजमेंट का हिस्सा हो सकता है. राज्य में सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है.

बीजेपी को पिछले चुनाव में 165 सीटें मिलीं थीं. कांग्रेस को 58 सीटों से संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस और बीजेपी के बीच वोटों का अंतर आठ प्रतिशत से भी अधिक रहा था. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य में लगातार चौथी बार बीजेपी की सरकार बनाने के लिए पिछले एक साल से महिला वोटरों को फोकस कर रहे थे.

चुनाव के ठीक पहले लागू की गई संबल योजना में महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने वाली कई योजनाएं लागू की हैं. वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव को जीतने में शिवराज सिंह चौहान की मदद लाडली लक्ष्मी योजना ने की थी. वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कन्यादान योजना की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी गई थी.

मनमोहन सरकार के दौरान हुई थी 3 सर्जिकल स्ट्राइक, लेकिन हमने नहीं उठाया फायदा- राहुल


राहुल गांधी ने कहा कि पीएम मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश चुनाव में किया क्योंकि वो हार रहे थे अचानक ही राजस्थान चुनाव में कांग्रेस सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगते मांगते मोदी को ही उसका लाभार्थी बता रही है।

जबकि सच तो यह है कि यदि कांग्रेस काल में कोई सर्जिकल स्ट्राइक हुई भी थी तो उसका श्रेय सेना को नहीं दिया गया, जबकि मोदी ने उसका श्रेय दोनों बार सेना ही को दिया वह तो इनके नेता संजय निरूपम, पी चिदम्बरम और अरविंद केजरीवाल  के सबूत मांगने के बाद इस स्ट्राइक का राजनीतिकरण हुआ था। 


राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आज यानी शनिवार को उदयपुर में थे. इस दौरान उन्होंने शहर के युवाओं, कारोबारियों और अन्य क्षेत्र के लोगों से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की वसुंधरा सरकार पर जमकर हमला बोला. राहुल ने सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी, जीएसटी, बेरोजगारी से लेकर तमाम मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला. राहुल ने कहा कि पीएम मोदी सर्जिकल स्ट्राइक को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं.

राहुल ने कहा कि क्या आपको पता है? मनमोहन सिंह ने तीन सर्जिकल स्ट्राइक कराए थे. जब आर्मी मनमोहन सिंह के पास गई और कहा कि हमें पाकिस्तान के खिलाफ बदले की कार्रवाई करनी है और इसे सिक्रेट रखना है. राहुल ने कहा कि मनमोहन सिंह ने आर्मी की बात मानी और सर्जिकल स्ट्राइक हुआ.

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि मनमोहन सिंह के पास आर्मी आई थी लेकिन नरेंद्र मोदी खुद आर्मी के पास गए और सर्जिकल स्ट्राइक को रचा और इसे राजनीतिक संपत्ति में बदल दिया जबकि यह मिलिट्री का डिसिजन था. राहुल ने कहा कि आर्मी को यह पसंद आता कि हम इसे करते और किसी को पता नहीं चलता कि हमने किया है. लेकिन मोदी जी यह नहीं करना चाहते थे. वह उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ रहे थे और हार रहे थे. इसलिए उन्होंने मिलिट्री की संपत्ति को राजनीति की संपत्ति में बदल दिया.

राहुल ने नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री इस बात से आश्वस्त हैं कि सेना को क्या करना है, वे उनसे बेहतर जानते हैं. वे विदेश मंत्री से बेहतर जानते हैं कि विदेश मंत्रालय में क्या करना है. कृषि मंत्री से बेहतर जानते हैं कि कृषि मंत्रालय में क्या करना है. पीएम को लगता है सारा ज्ञान उन्हीं के दिमाग से आता है.

राहुल गांधी ने यहां पर हिंदू धर्म पर भी बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म का सार क्या है? गीता में क्या है? ज्ञान हर किसी के पास है और आपके चारों ओर है. प्रत्येक के पास ज्ञान है. हमारे पीएम कहते हैं कि हम हिंदू हैं लेकिन वे हिंदू धर्म की नींव को नहीं समझते हैं. उन्होंने सवाल पूछा कि वह किस तरह के हिंदू हैं?

आज देश के बैंकिंग सिस्टम में 12 लाख करोड़ का एनपीए

उन्होंने कहा कि आज हिंदुस्तान के बैंकिंग सिस्टम में 12 लाख करोड़ का एनपीए है. पिछले 3-4 साल में मोदी जी ने, उनकी सरकार ने 3 लाख 50 हजार करोड़ रुपए कर्ज माफ किया है.

राहुल ने कहा कि ये जो कर्ज हैं वो देश के मात्र 15 से 20 लोगों के हैं. अनिल अंबानी पर 45 हजार करोड़ का कर्ज है. राहुल ने कहा कि एक साल के लिए मनरेगा योजना में 35 हजार करोड़ रुपए लगते हैं. नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या जैसे लोगों ने लाखों करोड़ रुपए लेकर देश से भाग गए.


राहुल गांधी यह जताने की कोशिश में है की मेहुल चौकसी, नीरव मोदी और मल्लाया 2014 के बाद ऋण से लाभान्वित हुए थे और मोदी ने साढ़े तीन लाख करोड़ के कर्जे माफ कर दिये, हैरानी तो यह है की जितना पैसा एक साल में कांग्रेस नीत मानरेगा में लगता है इन तीनों का कर्ज़ तो उससे आधा भी नहीं पड़ता और उसमें से भी लगभग आधे की सम्पत्तियों की कुर्की हो चुकी है। 


उन्होंने कहा कि ये लोग तो पैसे लेकर चले गए, जो रही सही कसर थी उसे गब्बर सिंह टैक्स (जीएसटी) और नोटबंदी ने पूरी कर दी. राहुल ने कहा कि इन दोनों से देश के असंगठित क्षेत्र की कमर टूट गई. उन्होंने कहा कि असंगठित क्षेत्र में काफी लोगों को रोजगार मिलता है और यह बैकबोन है. राहुल ने कहा कि इनफॉर्मल सेक्टर को नोटबंदी और जीएसटी से सरकार ने इसलिए तोड़ा क्योंकि इसमें देश के चंद उद्योगपतियों अंदर घुसने का रास्ता मिले.

राहुल ने कहा कि यह एक प्रकार का झूठ है कि देश के निजी शिक्षण संस्थान अच्छे हैं. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के लिए हम सरकारी संस्थान के बगैर देश नहीं चला सकते. राहुल ने कहा कि राजस्थान और केंद्र की सरकार सोचती है कि सबकुछ प्राइवेट से हो जाएगा, मगर ऐसा संभव नहीं है.

प्लॉट आवंटन मामले में आज पंचकूला विशेष सीबीआई कोर्ट में सीबीआई ने दाखिल की चार्जशीट


AJL प्लॉट आवंटन मामला : पूर्व CM भूपेंद्र हुड्डा और मोती लाल वोरा के खिलाफ की गई चार्जशीट दाखिल

  • गलत तरीके से जमीन आवंटित करने के मामले में सीबीआई ने दायर की चार्जशीट

  • हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा हैं आरोपी

  • हुड्डा पर पद का दुरुपयोग करते हुए पंचकूला में जमीन आवंटित करने का आरोप है

  • मौजूदा बीजेपी सरकार ने साल 2016 में मामला सीबीआई को सुपुर्द किया था


सीबीआइ ने नेशनल हेराल्‍ड के स्‍वामित्‍व वाली कंपनी एजेएल कंपनी को प्‍लॉट आवंटन के मामले में शनिवार को अदालत में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और वरिष्‍ठ कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दिया। सीबीआइ ने चार्जशीट पंचकूला की विशेष अदालत में दाखिल किया। हुड्डा पर एजेएल को पंचकूला में प्लॉट आवंटन में हुई गड़बड़ी में शा‍मिल होने का अारोप है।

पूरा मामला

24 अगस्त 1982 को पंचकूला सेक्टर-6 में 3360 वर्गमीटर का प्लॉट नंबर सी -17 तब के सीएम चौधरी भजनलाल ने अलॉट कराया। कंपनी को इस पर 6 माह में निर्माण शुरू करके दो साल में काम पूरा करना था। लेकिन, कंपनी 10 साल में भी ऐसा नहीं कर पाई। 30 अक्टूबर 1992 को हुडा ने अलॉटमेंट कैंसिल करके प्लॉट को रिज्यूम कर लिया।

26 जुलाई 1995 को मुख्य प्रशासक हुडा ने एस्टेट ऑफिसर के आदेश के खिलाफ कंपनी की अपील खारिज कर दी। 14 मार्च 1998 को कंपनी की ओर से आबिद हुसैन ने चेयरमैन हुडा को प्लॉट का अलॉटमेंट बहाली के लिए अपील की। 14 मई 2005 को चेयरमैन हुडा ने अफसरों को एजेएल कंपनी के प्लॉट अलॉटमेंट की बहाली की संभावनाएं तलाशने को कहा। लेकिन, कानून विभाग ने अलॉटमेंट बहाली के लिए साफ तौर पर इनकार कर दिया।

18 अगस्त 1995 को फ्रेश अलॉटमेंट के लिए आवेदन मांगे गए। इसमें एजेएल कंपनी को भी आवेदन करने की छूट दी गई। 28 अगस्त 2005 को हुड्डा ने एजेएल को ही 1982 की मूल दर पर प्लॉट अलॉट करने की फाइल पर साइन कर लिए। साथ ही कंपनी को 6 माह में निर्माण शुरू करके 1 साल में काम पूरा करने को भी कहा गया। सीए हुडा ने भी पुरानी रेट पर प्लॉट अलॉट करने के आदेश दिए।

एसोसिएटड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) के अखबार नेशनल हेराल्ड के लिए पंचकूला में नियमों के खिलाफ जमीन आवंटन का आरोप है। इस मामले में सतर्कता विभाग ने मई 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर केस दर्ज किया गया है। यह मामला हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) की शिकायत पर दर्ज हुआ है। चूंकि मुख्यमंत्री हुडा के पदेन अध्यक्ष होते हैं। यह गड़बड़ी हुड्डा के कार्यकाल में हुई, इसलिए उनके खिलाफ यह मामला दर्ज हुआ है। हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (हुडा) को करीब 62 लाख रुपए का नुकसान पहुंचाए जाने का आरोप है।

पाक प्रेम या मानसिक विक्षिप्तता???


मणि शंकर अय्यर , दिग्विजय सिंह और राहुल ही काफी  नहीं थे कि नवजोत सिंह सिद्धु भी पाक प्रेमियों की सूची में शामिल हो गए । कल तक सिद्धू की मुखालफत करने वाले पार्टी के सरमाये दार सिद्धू के ब्यान के बाद सन्नाटे में हैं


Sareeka Tewari V

मणि शंकर अय्यर , दिग्विजय सिंह और राहुल ही काफी  नहीं थे कि नवजोत सिंह सिद्धु भी पाक प्रेमियों की सूची में शामिल हो गए । कल तक सिद्धू की मुखालफत करने वाले पार्टी के सरमाये दार सिद्धू के ब्यान के बाद सन्नाटे में हैं। सोच रहे हैं अब क्या कहें क्या न कहें। सिद्धू के खिलाफ बोलते हैं तो राहुल और कुछ गिने चुने कट्टरपंथी गुस्सा  सिद्धू के हक़ में बोलने से कैप्टन की नज़र में खटक सकते हैं। लेकिन हैरत की बात है कि राहुल ने किस आधार पर सिद्धू को पाकिस्तान जाने के लिए कहा होगा। कैप्टन कि अनदेखी और अनसुनी करने का अर्थ ये तो नहीं राहुल सिद्धू को पंजाब का सिंहासन सोंपने का वादा कर बैठे हैं और  2019 में प्रधान मंत्री बनवाने के लिए से सिफ़ारिश करने भेजा । आपको बता दें कि कुछ महीने पहले पाकिस्तान में अपने मणि शंकर अय्यर ने कहा था कि आप अगर राहुल गांधी को प्रधान मंत्री बनवा दें तो भारत पाक समस्या खत्म करने मे मदद होगी। मणि शंकर अय्यर कांग्रेस्स सरकार के समय विदेशी मामलों के मंत्री थे उससे पहले भारतीय विदेशी सेवा अधिकारी रहे हैं।

या तो ये राजनेता खुले तोर पर देश के हितों कि अनदेखी करते हैं या फिर विक्षिप्त मानसिकता के स्वामी हैं।

अब बात करते हैं नवजोत सिंह सिद्धू आपसे: 

आपका और विवादों का चोली दामन का साथ है, जबकि सार्वजनिक जीवन जीने वालों को जिन बातों से गुरेज करना चाहिए आप उन्ही बातों को नगाड़े की चोट पर कहते हैं, चाहे भाजपा नेत्री को ठोकने की बात हो या प्रधान मंत्री को चोर कहने की। अब दूसरी बार करतारपुर कॉरीडोर का नियोता मिला, भारत से कोई भी जाने के लिए तैयार नहीं था, भारत सरकार और आपकी पंजाब की प्रदेश सरकार ने भी इंकार किया और कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने आपको पुन: चेताया परंतु आप की आँखों पर न जाने कौन सी पट्टी चढ़ी थी की देखना सुनना तो दूर आपने तो सोचना भी बंद कर दिया।

भारत भूमि पर लगातार छद्म युद्ध थोप रहे पाकिस्तान के नव निर्वाचित प्रधान मंत्री इमरान खान ने भारत के कई नेताओं ओर क्रिकेट जगत के पुरोधाओं को न्योता भेजा था, सभी ने घाटी में फैले पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को ध्यान में रखते हुए समारोह में जाने से मना किया, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने भी पाकिस्तान के दोगले रवैये को देखते हुए जाने से इंकार किया और सिद्धु को भी नसीहत दी परंतु सिद्धु को इतना प्यार उमड़ा की वह पैदल ही समारोह में शिरकत करने चले गए। वहाँ शिरकत करना ही किसी को नहीं सुहाया ऊपर से इनहोने जन बाजवा को गलबाहियाँ दी।

मामला क्या है ? आप शक के दायरे में हैं।

गुरु कहीं सिखों को भारत से अलग करने कि पाक कि  नीति में मोहरा तो नहीं बन रहे। क्योंकि चाहे खालिस्तान समर्थक हों या काश्मीरी अलगाववादी या अब रेफेरेंड्म 20 के समर्थक सबके रोटी कपड़ा मकान का इंतजाम पाकिस्तान में ही है।

सनद रहे उनके सेनाध्यक्ष बाजवा वही  है जिस के इशारे पर पाकिस्तान भारत पर जगह जगह आतंकी वारदातों को अंजाम देता है और हमारी युवा शक्ति को लील जाता है। उस बाजवा को गलबहियाँ डालना और फिर वापिस आ कर आप बेशर्मी के साथ भारत के प्रधान मंत्री पर तंज़ कसते हैं कि आप शपथ ग्रहण समारोह में गए थे न की ‘राफेल डील‘ करने। आपको कई बार चेताया जा चुका है की आप जन भावनाओं को ‘कामेडी शो’ की तालियाँ न समझें।

राजनाथ सिंह बोले- आंध्र प्रदेश से अलग करके ‘तेलंगाना’ में कितना विकास हुआ?


तेलंगाना में विधानसभा चुनाव सात दिसंबर को होने वाले हैं और मतगणना 11 दिसंबर को होगी

‘अटलजी ने जिन 3 राज्यों को बनाया वो आज विकसित राज्यों की श्रेणी में हैं लेकिन क्या तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अलगाव के बाद कोई विकास हुआ है?’


गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आंध्र प्रदेश से अलग करके बनाए गए राज्य तेलंगाना पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने तेलंगाना के आसिफाबाद में कहा, ‘पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 3 नए राज्य बनाए थे. उन्होंने मध्य प्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ बनाया था, बिहार से अलग करके झारखंड बनाया था और उत्तर प्रदेश से अलग करके उत्तराखंड बनाया था.’

राजनाथ ने कहा, ‘अटलजी ने जिन 3 राज्यों को बनाया वो आज विकसित राज्यों की श्रेणी में हैं लेकिन क्या तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अलगाव के बाद कोई विकास हुआ है?’

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव सात दिसंबर को होने वाले हैं और मतगणना 11 दिसंबर को होगी. चुनावों को देखते हुए सभी दल अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं और एक दूसरे पर जमकर निशाना साध रहे हैं.

गौरतलब है कि तेलंगाना आंध्र प्रदेश से अलग होकर भारत का 29वां राज्य बना था. इसके लिए यह व्यवस्था की गई थी कि हैदराबाद को 10 साल के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की संयुक्त राजधानी बनाई जाएगी.

इस नए राज्य के लिए ड्राफ्ट बिल को 5 दिसम्बर 2013 को कैबिनेट ने मंजूरी दी थी और यह बिल 18 फरवरी 2014 को लोक सभा से पास हो गया था. दो दिनों के बाद इसे राज्यसभा में भी मंजूरी मिल गई थी.

“राहुल मेरे ‘कप्तान’ उनके कहने पर ही मैं पाकिस्तान गया” सिद्धु


डोकलाम विवाद के समय राहुल गांधी चीनी राजदूत से मिलते हैं ओर तस्वीरें जारी होने के बाद मुकर जाते हैं

‘हाफ़ीज़ साहब’ वाले ब्यान के बाद दिग्गी राजा भी ब्यान को तोड़ा मरोड़ा गया बताते हैं

मणि शंकर अइय्यर तो सारी हदें पार कर पाकिस्तान से भारत सरकार को पलटवाने की गुहार तक लगा देते हैं

वह मोदी को हारने पर काँग्रेस भवन में चाय का ठेला लगा देने की नसीहत तक दे डालते हैं

शशि थरूर मोदी को बिच्छू कह जाते हैं

इन सबसे अलग नवजोत सिद्धू पाकिस्तान जाते हैं ओर इमरान खान के कसीदे पढ़ते जाते हैं ओर मंच पर ही से और कासीदे काढ़ने के लिए समय की मांग भी रखते हैं 

बदले में इमरान आशा व्यक्त करते हैं की सिद्धू एक दिन भारत के प्रधान मंत्री बनेंगे ओर तब दोनों देशों में शांति स्थापित हो सकेगी

बाकी सब में और सिद्धू में एक फर्क है कि बाकी कांग्रेसी नेता मानते नहीं और सिद्धू ठोक कर, डंके कि चोट पर कहते हैं कि उन्हे राहुल ने ऐसा करने को कहा था वह पाकिस्तान राहुल के कहने से गए थे।  ठोको ताली:

सिद्धू ने सिख कौम (बक़ौल सिद्धू 12 करोड़ सिखों) कि मदद तो कर दी अब वह ज़रा भारत कि सुध भी लें, वह अपने मित्र इमरान ख़ान से दाऊद इब्राहिम और हफीज सईद समेत कुछ आतंकियों की मांग के साथ साथ इमरान को कश्मीर मुद्दे पर बड़ा दिल दिखाने को कहें ताकि भारत भी सिद्धू पर मान कर सके और इमरान ख़ान कि ख़्वाहिश भी जल्द से जल्द पूरी हो सके। 


करतारपुर कॉरिडोर मामले में कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने बयान दिया है. उन्होंने कहा, ‘मेरे कैप्टन राहुल गांधी हैं और उन्होंने मुझे हर जगह भेजा है.’ सिद्धू ने यह सफाई विपक्ष की उन टिप्पणियों के बाद दी है जिसमें कहा गया था कि पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह नहीं चाहते थे कि सिद्धू पाकिस्तान जाएं लेकिन वह फिर भी गए.’

इससे पहले सिद्धू ने कहा था कि जब मैं पहली बार पाकिस्तान गया था और करतारपुर कॉरिडोर के लिए उनसे वादा करने की बात की थी, तो आलोचकों ने मेरा मजाक उड़ाया था. मुझ पर हंसे थे और अब वही लोग अपना ही थूका हुआ चाट रहे हैं और अपनी बात से मुकर रहे हैं.

पाकिस्तान यात्रा के बारे में पंजाब के सीएम की मनाही का मुद्दा छिड़ा तो सिद्धू ने कहा कि मुझे कम से कम 20 कांग्रेसी नेताओं ने जाने के लिए कहा था. केंद्रीय नेताओं ने मुझे जाने के लिए कहा था. पंजाब के मुख्यमंत्री मेरे पिता समान हैं. मैंने उन्हें कहा था कि मैंने उन्हें वादा कर दिया है कि मैं जाउंगा।


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किसान मार्च राजनैतिक और मोदी विरोध ही है


दरअसल, किसान मुक्ति मार्च की पूरी कवायद से भी साफ लग रहा है कि विरोधी पार्टियां और संगठन मिलकर किसानों के मुद्दे पर भी मोदी विरोधी एक मंच तैयार करना चाहते हैं.


किसान मुक्ति मार्च के दूसरे दिन दिल्ली के रामलीला मैदान से संसद का घेराव करने के लिए सुबह-सुबह किसानों का जत्था निकल पड़ा. अलग-अलग प्रदेशों और क्षेत्रों से आए किसान अपनी अलग-अलग टोलियों में किसान एकता का नारा लगाते संसद मार्ग की तरफ बढ़ रहे थे, जिसके आगे जाकर संसद का घेराव करने की इजाजत नहीं दी गई थी.

किसान मुक्ति मार्च के नेताओं का दावा है कि इस मार्च में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक किसान पहुंचे थे. ऐसा दिख भी रहा था. तमिलनाडु से आए किसानों ने तो मंच के बिल्कुल नीचे होकर अपने शरीर के कपड़े उतारकर सरकार की किसान विरोधी नीतियों का विरोध किया. तमिलनाडु से आए किसान सुरेंद्र जैन ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान साफ तौर पर कहा कि सरकार न ही एमएसपी का डेढ़ गुना दाम दे रही है और न ही हमारा कर्ज माफ कर रही है.

इसी तरह बिहार के बाढ़ से आए शिवनंदन ने भी सरकार पर वादे से मुकरने का आरोप लगाया. फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान शिवनंदन का कहना था कि एमएसपी के डेढ़ गुना दाम देने की बात तो सरकार कहती है लेकिन, इसको लागू नहीं कर पा रही है. इनकी शिकायत है कि जमीन पर हालात इन दावों से अलग हैं. उनकी तरफ से भी सरकार से किसानों की कर्जमाफी की मांग की गई.

इसी तरह यूपी से लेकर मध्य प्रदेश तक, पंजाब से लेकर हरियाणा तक और महाराष्ट्र से लेकर राजस्थान तक के किसान इस मार्च में हिस्सा लेने पहुंचे थे. सबकी तरफ से एक ही नारा और एक ही मांग थी किसानों की मांगों को पूरी करो, वरना इसका अंजाम बुरा होगा.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देशभर के 200 से भी ज्यादा किसान संगठनों ने इस मार्च में हिस्सा लिया, जिसका नेतृत्व स्वराज इंडिया के संरक्षक योगेंद्र यादव ने किया था. किसानों की दो मांगें थीं, पहला किसानों की कर्जमाफी के लिए एक बिल को पास कराना और दूसरा लागत के डेढ़ गुना एमएसपी दिलाने के लिए बिल को पास कराना. संघर्ष समिति ने मंच से सरकार से किसानों के हक और हित में इन दो बिल को पास कराने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है.


पूरे किसान मार्च का नेतृत्व कर रहे योगेंद्र यादव ने भी इस मंच से मोदी सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जो पार्टी इस मंच से किसानों की इन दो मांगों के समर्थन में खड़ी पार्टियों को किसान हितैषी और इस रैली में शामिल नहीं होने वाली पार्टियों को किसान विरोधी तक कह डाला. किसान मुक्ति मार्च में कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसान विरोधी बताने की थी.


जब मंच पर इस तरह सरकार विरोधी बात हो और मंच के नीचे देश के अलग-अलग कोने से आए किसान और किसानों के संगठन के लोग हैं तो फिर विरोधी पार्टियां भला कैसे पीछे रह सकती हैं. देखते ही देखते किसानों के समर्थन में और सरकार के विरोध में सभी विपक्षी दलों का जमावड़ा लग गया.

लेफ्ट के नेता सीताराम येचुरी से लेकर डी. राजा तक और फिर एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, एलजेडी नेता शरद यादव, एसपी नेता धर्मेंद्र यादव, आप से संजय सिंह, एनसी के फारूक अब्दुल्ला, टीएमसी से दिनेश त्रिवेदी भी मंच पर पहुंचे. इसके अलावा टीडीपी और आऱएलडी के भी नेता इस मार्च में पहुंचे. सबने एक सुर में किसानों की मांगों का समर्थन किया.

लेकिन, अंत में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस आंदोलन में किसानों के सुर में सुर मिलाकर माहौल को और गरमा दिया. राहुल गांधी ने मोदी सरकार को किसान विरोधी बताते हुए कहा, ‘मोदी जी ने कहा था कि एमएसपी बढ़ेगी, पीएम ने बोनस का भी वादा किया था, लेकिन हालात पर नजर डालें, सिर्फ झूठे वादे किए गए थे और कुछ नहीं.’

राहुल गांधी ने कहा ‘आज हिंदुस्तान के सामने दो बड़े मुद्दे हैं. एक मुद्दा हिंदुस्तान में किसान के भविष्य का मुद्दा, दूसरा देश के युवाओं के भविष्य का मुद्दा. पिछले साढ़े चार साल में नरेंद्र मोदी ने 15 अमीर लोगों का कर्जा माफ किया है. अगर 15 अमीर लोगों का कर्जा माफ किया जा सकता है तो किसानों का कर्ज माफ क्यों नहीं किया जा सकता?’


राहुल गांधी के अलावा अरविंद केजरीवाल ने भी इस मंच पर आने के बाद सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. केजरीवाल ने सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते हुए कहा, ‘जिस देश के अंदर किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी, जिस देश का किसान खुद भुखमरी का शिकार हो.


ऐसा देश कभी तरक्की नहीं कर सकता. बीजेपी ने किसानों से जो वादे किए उससे वो मुकर गई. किसानों को 100 रुपए में से 50 रुपए मुनाफा देने की बात बीजेपी कह रही थी. सबसे पहले किसानों का जितना कर्ज है वो सारा कर्ज माफ होना चाहिए. दूसरी मांग किसानों को फसल का पूरा दाम मिलना चाहिए’

राहुल और केजरीवाल के अलावा लेफ्ट नेता सीताराम येचुरी और शरद पवार सहित सभी नेताओं ने किसानों की दोनों मांगों का समर्थन करते हुए मोदी सरकार को अगले चुनाव में नतीजे भुगतने की चेतावनी भी दी.

दरअसल, किसान मुक्ति मार्च की पूरी कवायद से भी साफ लग रहा है कि विरोधी पार्टियां और संगठन मिलकर किसानों के मुद्दे पर भी मोदी विरोधी एक मंच तैयार करना चाहते हैं. किसान मुक्ति मार्च भी किसानों की समस्या का दीर्घकालिक समाधान ढ़ूंढ़ने के बजाए मोदी विरोधी मंच बनकर रह गया.