‘राफेल को लेकर पिछले छह महीनों में जो भी कहा गया है, अभी इस हाउस में जो कहा गया है, वो सब झूठ है.’

2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अब सभी दल पूरी तैयारी में लग गए हैं. राफेल के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सरकार को राहत मिलने के बाद विपक्ष के हाथ से बड़ा मुद्दा निकल गया है.

नए साल में पहले दिन अवकाश के बाद जब संसद की कार्यवाही शुरू हुई तो लोकसभा में एक बार फिर राफेल सौदे का मुद्दा उठ गया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल सौदे में गड़बड़ी की बात दोहराते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार को सवालों के घेरे में ला दिया. उन्होंने राफेल सौदे का जिक्र करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने डेढ़ घंटे के इंटरव्यू में पांच मिनट भी राफेल सौदे पर बात नहीं की.

कांग्रेस अध्यक्ष ने एक बार फिर से राफेल सौदे में अपने पुराने आरोपों की झड़ी लगा दी. राहुल गांधी ने अपनी तरफ से फिर सवाल खडा किया कि जब भारत को तत्काल इन विमानों की जरूरत है तो भी अभी तक एक भी विमान भारत की जमीन पर क्यों नहीं उतरा है.

राहुल के आरोपों के बाद अब बारी अरुण जेटली की. लोकसभा में तो रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण भी मौजूद थीं, लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देने के लिए मोर्चा संभाला वित्त मंत्री अरुण जेटली ने. जेटली ने एक-एक कर राहुल गांधी के सारे सवालों का जवाब भी दिया और कांग्रेस के साथ-साथ यूपीए सरकार के इतिहास के कार्यकाल में चर्चा में आए ‘घोटालों’ का जिक्र कर दिया.

जेटली ने राहुल की बातों का जवाब देते हुए लोकसभा में कहा, ‘राफेल को लेकर पिछले छह महीनों में जो भी कहा गया है, अभी इस हाउस में जो कहा गया है, वो सब झूठ है.’

जिस तथाकथित ऑडियो टेप का जिक्र कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लोकसभा के भीतर कर रहे थे, उस पर भी जेटली ने कहा कि ‘गोवा के मंत्री विश्वजीत पी. राणे ने गोवा के सीएम को लेटर लिखकर कहा है कि राफेल पर कांग्रेस ने जो ऑडियो टेप जारी किया है, वह फर्जी है. इस मामले में जांच करनी चाहिए.’

राहुल गांधी की तरफ से एक बार फिर राफेल सौदे में विमान की कीमत को लेकर सवाल पूछा गया था. अरुण जेटली ने इस पर भी हमला बोलते हुए कहा कि ‘इस देश में कुछ परिवार हैं जिन्हें सिर्फ पैसे का तर्क समझ में आता है लेकिन देश की सुरक्षा का तर्क समझ में नहीं आता.’

जेटली ने जेम्स बॉन्ड फिल्म का जिक्र करते हुए कहा, ‘अगर कोई चीज एकबार होती है तो यह सामान्य है. दो बार कोई चीज होती है तो वह संयोग हो सकता है. लेकिन अगर कोई चीज तीन बार होती है तो यह षड्यंत्र है. कांग्रेस अपनी डील में बार-बार ऐसा करती है.’

जेटली को ठीक करने के उत्साह में राहुल को क्या कह गए डेरेक ओ ब्रायन

अरुण जेटली ने कहा कि करगिल युद्ध के दौरान हमारी सेना ने राफेल की मांग की थी. 2007 में जब राफेल के लिए बिड मंगाई गई तो दो लोगों को फाइनल किया गया. यह उनके कार्यकाल में हुआ. उस वक्त सबसे मिनिमम बिड राफेल की थी. राफेल की एयरक्राफ्ट 2012 में उस वक्त के डिफेंस मिनिस्टर की मेज पर गया. उन्होंने कहा, कांग्रेस डील को टालने के लिए मशहूर है. तब के रक्षा मंत्री को यह बात समझ में आई कि सेना इसकी मांग कर रही है.

वित्त मंत्री की तरफ से उस वक्त के एक कार्यक्रम का जिक्र करते हुए लोकसभा में जेटली ने कहा, बीबीसी पर एक कार्यक्रम आता था यस मिनिस्टर. इसमें कहा गया है कि सबसे नाकाबिल प्रशासन वह होता है जो फैसला ना ले पाए. तब के समय इकोनॉमिस्ट में लिखा था A prime minister in office but not in Power.

अरुण जेटली की तरफ से यूपीए सरकार के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री ए के एंटनी पर तंज कसा गया. दरअसल, अरुण जेटली यह दिखाना चाह रहे थे कि कैसे तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी फाइल लेकर बैठे रह गए और राफेल सौदे में देरी हुई.

हालाकि जब जेटली लोकसभा में राहुल गांधी का जवाब दे रहे थे तो उस वक्त कांग्रेस के कुछ सांसदों की तरफ से सदन में कागज की प्लेन बनाकर उड़ा रहे थे. इसपर लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कहा, आप बच्चे हैं क्या जो ये कर रहे हैं. इस पर जेटली ने चुटकी लेते हुए कहा कि आपके कहने के बाद भी ये लोग प्लेन उड़ा रहे हैं. शायद ये बोफोर्स की याद में कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के पैसले के बाद अब सरकार राहत की सांस ले रही है. एक बार फिर जेटली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी राफेल डील को ठीक ठहराया. 500 और 1600 की कोई तुलना नहीं है. एक दाम होता है एयरक्राफ्ट का. दूसरा दाम होता है हथियारों वाले एयरक्राफ्ट का. जेटली की तरफ से यह बताने की कोशिश की जा रही थी कि यूपीए सरकार के वक्त बिना हथियारों वाले सामान्य एयरक्राफ्ट का जिक्र था, लेकिन, एनडीए सरकार के वक्त हथियारों से लैस एयरक्राफ्ट का जिक्र है.

हालांकि एक बार फिर से उन्होंने साफ किया कि हथियारों वाले कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन होगा, अगर हम दाम बताएंगे. अरुण जेटली ने साफ किया कि बेसिक एयरक्राफ्ट का दाम 2016 में यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान तय किए गए दाम से 9 प्रतिशत कम था और हथियारों से लैस एयरक्राफ्ट का दाम 20 प्रतिशत तक कम था.अरुण जेटली ने अपने जवाब के दौरान बोफोर्स तोप सौदे का भी जिक्र कर कांग्रेस को उसी के हथियार से घेरने की पूरी कोशिश की.

2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अब सभी दल पूरी तैयारी में लग गए हैं. राफेल के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सरकार को राहत मिलने के बाद विपक्ष के हाथ से बड़ा मुद्दा निकल गया है. फिर भी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस मुद्दे को बार-बार सदन के अंदर औऱ बाहर उठाकर सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. कोशिश इस मुद्दे को 2019 के महासमर तक जिंदा रखने की है.

राहुल के सवाल पर ही राहुल घिर गए और विपक्ष के हाथों मज़ाक उड़वा बैठे

ऐसा पहली बार नहीं है जब ऑफसेट डील पर सवाल उठाए गए हैं. यह डील दुनिया में हर जगह विवादों में रही है

अरुण जेटली ने लोकसभा में राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए कहा कि उनकी जानकारी KG के बच्चे जितनी है. उन्हें ‘ऑफसेट’ का मतलब नहीं मालूम है. जेटली ने कहा, ‘राहुल गांधी का मानना है कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस राफेल जेट की मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है. उन्हें पता होना चाहिए कि रिलायंस ग्रुप सिर्फ ऑफसेट पार्टनर है.’

जेटली ने यह भी कहा कि राहुल गांधी को पहले किसी मामले की पूरी जानकारी जुटानी चाहिए उसके बाद ही उसपर बोलना चाहिए. जेटली ने राहुल को तो घेर लिया लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऑफसेट डील क्या है और क्यों इस पर इतना विवाद हो रहा है.

क्या है ऑफसेट डील?

ऑफसेट एग्रीमेंट को अगर आसान शब्दों में कहें तो यह चाय में चीनी की तरह है. यानी सरकार जब किसी कंपनी के साथ डील करती है तो कुछ दूसरी कंपनियों के साथ साइड डील भी होती है. ये ही ऑफसेट डील होती हैं. वैसे तो यह डील खासतौर पर सरकार और किसी डिफेंस कंपनी के साथ ही होती है. लेकिन कई बार सिविल कंपनियों के साथ भी ऐसी डील हो सकती है.

जब भी किसी देश की सरकार किसी विदेशी कंपनी को ऑर्डर देती है तो ऑफसेट एग्रीमेंट की मांग करती है. सरकार ऑफसेट डील की मांग इसलिए करती है ताकि डील की रकम का कुछ फायदा घरेलू कंपनियों को भी हो. अगर हम ‘ऑफसेट डील’ को राफेल के जरिए समझे तो वो कुछ इस तरह होगा.

भारत सरकार ने एयरक्राफ्ट के लिए राफेल के साथ डील की. दोनों के बीच ऑफसेट एग्रीमेंट हुआ. राफेल की ऑफसेट पार्टनर बना अनिल अंबानी का रिलायंस ग्रुप. ऑफसेट डील के मुताबिक, राफेल भारत के लिए जो भी इक्विपमेंट बनाएगी, उसकी वेंडर कंपनी रिलायंस ग्रुप होगी. रिलायंस उसकी लोकल सप्लायर के तौर पर काम करेगी. इसके जरिए टोटल डील की रकम का कुछ हिस्सा रिलायंस ग्रुप के जरिए भारत आएगा. दूसरी तरफ यहां कि कंपनी को ऑर्डर मिलने से रोजगार के मौके बढ़ेंगे. ऑफसेट डील की वैल्यू 50 फीसदी से लेकर 100 फीसदी तक हो सकती है. राफेल की टोटल डील 58000 करोड़ रुपए की है. इस डील की करीब 50 फीसदी रकम घरेलू कंपनी के पास आई है. 

विवादों में क्यों है ऑफसेट डील?

राफेल के साथ डील में जब से रिलायंस ग्रुप का नाम आया है तब से विवाद और बढ़ गया है. ऐसा पहली बार नहीं है जब ऑफसेट डील पर सवाल उठाए गए हैं. यह डील दुनिया में हर जगह विवादों में रही है.

इस डील का विरोध करने वाले ऑफसेट डील को रिश्वत की तरह मानते हैं. इसके खिलाफ यह दलील दी जाती है कि किसी भी देश की सरकार किसी खास कंपनी को फायदा देने के लिए यह डील करती है. यह भी माना जाता है कि इस डील के तहत सरकार कई बार ऐसे इक्विपमेंट की डील कर लेती है, जिसकी जरूरत नहीं होती है या फिर बेस्ट क्वालिटी या वैल्यू नहीं मिल पाती है.

गहलोत ने दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीरें सरकारी संस्थानों और फाइलों में नहीं दिखेंगी

अशोक गहलोत के कैबिनेट ने निर्देश दिया है कि सभी सरकारी दस्तावेजों और लेटर पैड्स पर से दीन दयाल उपाध्याय की फोटो हटाई जाए

राजस्थान में सरकार बदलते ही पुरानी सरकार के फैसलों को बदलने का दौर भी शुरू हो गया है. राज्य के सीएम अशोक गहलोत के कैबिनेट ने निर्देश दिया है कि सभी सरकारी दस्तावेजों और लेटर पैड्स पर से दीन दयाल उपाध्याय की फोटो हटाई जाए. राज्य सरकार ने ये निर्देश सभी विभागों के लिए जारी किया है.

दीन दयाल उपाध्याय RSS विचारक हैं. इससे पहले वसुंधरा राजे की सरकार ने यह फैसला किया था कि सभी सरकारी लेटरपैड और दस्तावेजों पर उपाध्याय की फोटो लगाई जाएगी.

ANI@ANI

Rajasthan cabinet directs removal of photographs of Deen Dayal Upadhyay from Govt documents and from letter pads. The direction has been issued to all the state govt departments53110:48 PM – Jan 2, 2019Twitter Ads info and privacy363 people are talking about thisTwitter Ads info and privacy

राजस्थान की सरकार ने बुजुर्गों के लिए मंथली पेंशन बढ़ाने का भी ऐलान किया है. बुजुर्गों को अब 500 रुपए की जगह 750 रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलेंगे. जिन्हें पहले ही 750 रुपए मासिक मिल रहे थे अब उन्हें इसके बदले 1,000 रुपए मिलेंगे.

मध्यप्रदेश में भी नया फरमान

इसके दूसरी तरफ मध्यप्रदेश सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर मीसाबंदियो को दी जाने वाली पेंशन इस महीने से अस्थाई तौर पर बंद कर दिया है और बैंकों को भी इस संबंध में निर्देश जारी कर दिये गए हैं. मीसाबंदी पेंशन को लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि के नाम से भी जाना जाता है. इस संबंध में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने गत 29 दिसंबर को सर्कुलर जारी कर मीसाबंदी पेंशन योजना की जांच के आदेश दिए. सरकार ने बैंकों को भी मीसाबंदी के तहत दी जाने वाली पेंशन जनवरी 2019 से रोकने के निर्देश जारी किए हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान साल 1975 से 1977 के बीच लगे आपातकाल में जेल में डाले गए लोगों को मीसाबंदी पेंशन योजना के तहत मध्य प्रदेश में करीब 4000 लोगों को 25,000 रुपए मासिक पेंशन दी जाती है.

वंदे मातरम विवाद का हल ढूँढने में जुटी कांग्रेस्स

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सॉफ्ट हिन्दुत्व की नीति पर चल रही मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार मंत्रालय में वंदेमातरम का गायन रोक कर एक अनचाहे विवाद में फंस गई है।

 हिन्दुत्व पर साफ्ट होने कार्थ राष्ट्र से मुख मोड़ना नहीं है यह बात शायद कांग्रेस को जल्दी ही समझ आ जाएगी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सॉफ्ट हिन्दुत्व की नीति पर चल रही मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार मंत्रालय में वंदेमातरम का गायन रोक कर एक अनचाहे विवाद में फंस गई है. मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को बैठे-बैठाए सरकार को घेरने का एक मुद्दा भी हाथ लग गया है. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस राजनीतिक विवाद को भांपकर विपक्ष पर हमलावर होते हुए कहा है कि मंत्रालय में वंदेमातरम का गायन को जल्द ही नए रूप में प्रस्तुत किया जाएगा.

बाबूलाल गौर के कार्यकाल में शुरू हुआ था वंदेमातरम का गायन

राज्य मंत्रालय में वंदे मातरम गायन की व्यवस्था लगभग चौदह साल पूर्व बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्रित्व काल में शुरू हुई थी. इस व्यवस्था के तहत हर माह की पहली तारीख को मंत्रालय और विभागाध्यक्ष कार्यालयों में तैनात अधिकारी एवं कर्मचारी कार्यालय शुरू होने के समय सुबह साढ़े दस बजे वंदे मातरम का सामूहिक गान करते थे. माह की पहली तारीख को अवकाश होने पर अगले कार्यालयी दिवस में वंदेमातरम का कार्यक्रम आयोजित किया जाता था.

पिछले चौदह साल में मुख्यमंत्री ने यदाकदा ही इस कार्यक्रम में रस्मी तौर पर हिस्सा लिया. कभी-कभी कोई मंत्री भी भूले-भटके इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पहुंच जाता था. राज्य मंत्रालय और विभागाध्यक्ष कार्यालयों में बीस हजार से अधिक अधिकारी एवं कर्मचारी तैनात हैं. इसके बाद भी वंदे मातरम के सामूहिक गान कार्यक्रम में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की उपस्थिति कभी भी एक हजार का आकंडा नहीं छू पाई.

पिछले कुछ सालों से लगातार वंदे मातरम के गायन को वरिष्ठ अधिकारियों ने भी गंभीरता से लेना बंद कर दिया था. राज्य के मुख्य सचिव इस सामूहिक गायन में आमतौर पर मौजूद रहते थे. पिछले कुछ माह में इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले कर्मचारियों की संख्या भी तेजी से घटी. इसकी वजह मंत्रालय के कर्मचारियों का समय पर कार्यालय न पहुंचना रहा है.

उमा भारती की तिरंगा यात्रा का जवाब माना जाता था वंदे मातरम

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के लिए वंदे मातरम का गायन हमेशा ही राष्ट्र भक्ति साबित करने का बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है. बाबूलाल गौर ने मंत्रालय में वंदे मातरम गायन का निर्णय उन दिनों लिया था, जब उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाए जाने की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी थीं. गौर को अगस्त 2004 में राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था.

गौर, साध्वी उमा भारती के स्थान पर मुख्यमंत्री बनाए गए थे. कर्नाटक के हुबली में दर्ज एक आपराधिक मामले के चलते उमा भारती को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. यह आपराधिक मामला राष्ट्र ध्वज तिरंगा के कथित अपमान से जुड़ा हुआ था.

इस्तीफे के बाद उमा भारती ने तिरंगा यात्रा भी निकाली. तिरंगा यात्रा पूरी होने और हुबली मामले में कोर्ट से मिली राहत के बाद उमा भारती ने गौर को हटाने के लिए पार्टी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था. जवाब में गौर ने एक जुलाई 2005 से मंत्रालय में वंदे मातरम का गायन शुरू कर दिया. यद्यपि इसके बाद भी गौर अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए. उनके स्थान पर नवंबर 2005 में शिवराज सिंह चौहान राज्य के मुख्यमंत्री बना दिए गए.

वंदे मातरम के गायन कार्यक्रम में अधिकारी एवं कर्मचारी हिस्सा लें, इसका कोई बंधन सरकार की ओर से नहीं रखा गया था. वर्ष 2019 के पहले ही दिन मंत्रालय में वंदेमातरम का गायन न होने पर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने कहा कि इस बारे में मुख्यमंत्री कमलनाथ से बात करेंगे.

बीजेपी की कोशिश लोकसभा चुनाव से पहले गांव-गांव पहुंचे मुद्दा

एक जनवरी को मंत्रालय परिसर में वंदे मातरम का गायन कार्यक्रम न होने पर प्रदेश की राजनीति अचानक गर्म हो गई है. भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे के जरिए एक बार फिर राष्ट्रवाद के मुद्दे को हवा देने में लग गई है. बीजेपी के नेताओं ने सरकार के निर्णय का विरोध करते हुए बुधवार को मंत्रालय के समक्ष वंदे मातरम का सामूहिक गान किया.

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वंदेमातरम के गान को बंद करने के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कांग्रेस सरकार की राष्ट्र भक्ति पर सवाल खड़े किए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि देश भक्ति से ऊपर कुछ नहीं है. बीजेपी के विधायक छह जनवरी को मंत्रालय के समक्ष वंदे मातरम का सामूहिक गान करेंगे.

सात जनवरी से विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है. बीजेपी की योजना विधानसभा के भीतर भी सरकार को घेरने की है. बीजेपी इस मुद्दे के जरिए लोगों को यह बताना चाहती है कि कांग्रेस ने वंदे मातरम के गायन का फैसला अल्पसंख्यक वोटों के तुष्टिकरण के लिए लिया है.

तीन माह बाद लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. इससे पहले बीजेपी गांव-गांव तक इस मुद्दे को ले जाना चाहती है. हाल ही में हुए विधानसभा के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी बहुमत से कुछ कदम ही दूर रह गई थी. बीजेपी 109 सीटें ही जीत पाई थी. जबकि कांग्रेस को 114 सीटें मिली हैं.

बहुमत के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है. कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका ज्यादा सीटें जीतने के कारण मिला है. कांग्रेस को विधानसभा में मिली सीटों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपनी कई मौजूदा सीटों को गंवाना पड़ सकता है. वर्तमान में बीजेपी के पास लोकसभा की 29 में से 26 सीटें हैं. मुख्यमंत्री कमलनाथ पार्टी की सॉफ्ट हिन्दुत्व की नीति पर चलते हुए गाय रक्षा का एजेंडे का प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखे हुए हैं.

कमलनाथ ने अधिकारियों से साफ शब्दों में कहा है कि उन्हें सड़क पर गाय नहीं दिखना चाहिए. सरकार पंचायत स्तर पर गौशाला खोलने की तैयारी भी कर रही है. साधु-संतों को साधने के लिए आध्यात्म विभाग भी बनाया जा रहा है.

वंदे मातरम का गायन नहीं होगा,इसकी खबर सिर्फ चंद अफसरों को थी

वंदे मातरम के मुद्दे पर तेज हुई सियासत के बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि किसी की राष्ट्र भक्ति सिर्फ वंदे मातरम के गाने से तय नहीं की जा सकती. कमलनाथ ने बचाव में कहा कि वे वंदे मातरम के गान की परंपरा को नए रूप में जल्द ही शुरू करेंगे.

एक जनवरी को मंत्रालय में वंदे मातरम का गान नहीं होगा इसकी जानकारी सिर्फ चुनिंदा अफसरों को ही थी. सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने 29 दिसंबर को एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें एक जनवरी को वंदे मातरम के सामूहिक गान के कार्यक्रम की सूचना सभी कर्मचारियों की दी गई थी. सूचना जरूर जारी की गई लेकिन, कार्यक्रम की तैयारियां नहीं की गईं.

पुलिस बैंड को भी सूचित नहीं किया गया. कुछ अधिकारी कर्मचारी निर्धारित समय पर मंत्रालय परिसर में पहुंचे लेकिन, वहां तैयारी न देख अपनी सीट पर चले गए. मुख्यमंत्री कमलनाथ भोपाल से बाहर थे. वे अपने निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा से सीधे उज्जैन महाकाल के दर्शन करने के लिए चले गए थे. राज्य के नए मुख्य सचिव एसआर मोहंती ने भी नए साल के पहले दिन ही कार्यभार ग्रहण किया था.

जय भारत या जय हिन्द से होगी स्कूलों में हाजिरी, गुजरात शिक्षा मंत्री भूपेद्र सिंह चुदास्मा

मध्य प्रदेश में सूर्य नमस्कार और वंदे मातरम के बैन के बाद कांग्रेस को गुजरात में जा भारत या जय हिन्द से भी एतराज़

नई दिल्ली। गुजरात सरकार ने स्कूलों के भीतर दशकों से चली आ रही परंपरा को बदलने का फैसला लिया है। सरकार ने अब स्कूल में यस सर और प्रेजेंट सर की बजाए जय हिंद और जय भारत कहने का नोटिफिकेशन जारी किया है। सरकार के इस नोटिफिकेशन के बाद अब तमाम स्कूलों में बच्चों को क्लास में यस सर और प्रेजेंट सर नहीं कहना होगा। सरकार का यह नोटिफिकेशन आज यानि एक जनवरी से प्रदेशभर के हर स्कूल में लागू होगा।

रकार के नोटिफिकेशन के बाद स्कूल में होने वाली उपस्थिति के दौरान छात्रों को जय हिंद या जय भारत कहना होगा। इस नोटिफिकेशन को गुजरात सरकार की ओर से 31 दिसंबर को जारी किया गया था, जोकि कक्षा एक से कक्षा 8 और कक्षा 9 से लेकर कक्षा 12 तक सभी कक्षाओं में अनिवार्य होगा। सरकार का यह निर्देश ना सिर्फ सरकारी स्कूलों बल्कि प्राइवेट स्कूलों में भी लागू होगा। इस बाबत तमाम अधिकारियों को निर्देश दे दिए गए हैं कि वह इस नियम को स्कूलों में लागू करवाएं। डायरेक्टोरेट ऑफ प्राइमरी एजूकेशन, गुजरात सेकेंडरी एंड हायर सेकेंडरी एजूकेशन बोर्ड की ओर से यह निर्देश जारी किया गया है। जिसमे कहा गया है कि इस नियम को 1 जनवरी 2019 से सभी स्कूलों में लागू किया जाए। नोटिफिकेशन में कहा गया है कि यह फैसला गुजरात के शिक्षा मंत्री भूपेद्र सिंह चुदास्मा ने सोमवार को हुई समीक्षा बैठक के बाद लिया है।

कांग्रेस नीत राज्यों में वंदे मातरम का गान नहीं होगा और सूर्य नमस्कार भी किया बंद

राजनैतिक विद्वेष इतना गहरा है कि पहली तारीख को गया जाने वाला राष्ट्र गान बैन और तो और प्रात: विद्यालयों के व्यायाम सत्र में से सूरी नमस्कार को निषेध किया गया। यह कमाल नाथ के उसी कथन कि पुष्टि करता है जहां वह कहते दिक पड़ते हैं कि आप हमें वोट दो इन्हे तो हम निपट लेंगे

मध्य प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों के वंदेमातरम गाने पर रोक लगा दी है. सरकार ने फैसला लिया है कि हर महीने की पहली तारीख को राज्‍य सचिवालय में वंदे मातरम नहीं गाया जाएगा. कर्मचारियों के वंदे मातरम गाने पर रोक लगाते हुए कहा गया है कि वे जनता के कल्याण के कामों पर ध्यान दें. हालांकि कांग्रेस सरकार के इस फैसले से बीजेपी को निशाना साधने का मौका मिल गया है.

बीजेपी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कमलनाथ सरकार के राज में सरकारी कर्मचारियों के वंदे मातरम गाने पर रोक लगा दी गई है. यही वज‍ह रही कि हर महीने के पहले कामकाजी दिन में भोपाल स्थित मंत्रालय में होने वाला वंदे मातरम आज एक जनवरी को नहीं गाया गया. जबकि पिछली सरकार में ऐसा होता था.

भीजेपी सरकार में मंत्री रहे उमा शंकर गुप्ता ने कहा, ‘जिस वंदे मातरम को लेकर आजादी की लड़ाई लड़ी गई उससे कांग्रेस को परहेज है तो मानसिकता समझ लीजिए. कामतानाथ जी के दर्शन करने से लेकर जनेऊ पहन लेने की जनता को दिखाने की प्रवृत्ति साफ होती जा रही है. सूर्य नमस्कार को दुनिया अपना रही है. यह योग है. उस पर पाबंदी लगा रहे हैं. नकारात्मक भावना से राजनैतिक विद्वेष से की शुरुआत र कांग्रेस अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रही है’.

ट्रिपल तालाक बिल राज्य सभा में मुंह के बल गिरेगा: कांग्रेस महासचिव

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि लोकसभा में जब यह विधेयक पेश किया गया था तब 10 विपक्षी दल इसके खिलाफ खुल कर सामने आए थे

शनिवार को कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल ने कहा कि उनकी पार्टी तीन तलाक विधेयक को इसके मौजूदा रूप में राज्यसभा में पारित नहीं होने देगी. वेणुगोपाल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि कांग्रेस अन्य दलों को साथ लेकर विधेयक को इसके मौजूदा रूप में पारित नहीं होने देगी.

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि लोकसभा में जब यह विधेयक पेश किया गया था तब 10 विपक्षी दल इसके खिलाफ खुल कर सामने आए थे. कांग्रेस नेता ने कहा कि यहां तक कि अन्नाद्रमुक और तृणमूल कांग्रेस ने भी इस विधेयक का खुल कर विरोध किया है. गौर करने वाली बात यह है कि अन्नाद्रमुक ने कई मुद्दों पर बीजेपी नीत सरकार का समर्थन किया है.

लोकसभा में पास हो चुका है बिल

उन्होंने कहा कि यह विधेयक महिलाओं को सशक्त करने में कोई मदद नहीं करेगा. गौरतलब है कि गुरुवार को लोकसभा में यह विधेयक पारित हुआ था. उम्मीद की जा रही है कि अगले सप्ताह राज्यसभा में इस पर विचार किया जा सकता है. कांग्रेस महासचिव का यह भी कहा है कि इस विधेयक को लेकर कांग्रेस नीत यूपीए या केरल में पार्टी नीत यूडीएफ में कोई भ्रम नहीं है.

संसद के निचले सदम में यह बिल ध्वनी मत से पास हो चुका है और अगर यह राज्यसभा में भी पास हो जाता है तो यह कानून बन जाएगा. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बीजेपी नेता और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि इस बिल पर राजनीति नहीं की जानी चाहीए. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि यह बिल किसी एक समुदाय के खिलाफ नहीं है.

‘The Accidental Prime Minister’ is BJP’s propaganda against our party, say Congress leaders

It’s a ‘riveting tale of how a family held the country to ransom for 10 long years,’ says BJP

“The Accidental Prime Minister”, a film starring Anupam Kher as Manmohan Singh, is BJP’s propaganda against their party, Congress leaders said on Friday as the former Prime Minister evaded comment on the growing controversy over the film on him.

The trailer of the film, based on the book of the same name by Sanjay Baru who served as Mr. Singh’s media advisor from 2004 to 2008, was released in Mumbai on Thursday.

The trailer shows Mr. Singh as a victim of the Congress’ internal politics ahead of the 2014 general election.

“Riveting tale of how a family held the country to ransom for 10 long years. Was Dr Singh just a regent who was holding on to the PM’s chair till the time heir was ready? Watch the official trailer of ‘TheAccidentalPrimeMinister’, based on an insider’s account, releasing on 11 January,” the BJP said on Thursday night.

Congress chief spokesperson Randeep Surjewala said on Twitter that such fake propaganda by the party would not stop it from asking the Modi government questions on “rural distress, rampant unemployment, demonetisation disaster, flawed GST, failed Modinomics, all pervading corruption.”

Asked by journalists to comment on the film at the Congress’s foundation day function at the party headquarters on Friday, Dr. Singh walked away without saying anything.

Truth shall prevail, says Gehlot

Congress leader and Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot said propaganda against the Congress and its leaders would not work and the truth shall prevail.

Mr. Gehlot’s party colleague PL Punia accused the BJP of evading answers on its ”misgovernance” after having ”failed” on all fronts.

“This is the handiwork of the BJP. They know that time has come to give answers after completion of five years and they are now trying to divert attention by raising such issues and evade answering to the public after its government failed on all fronts,” he said.

National Conference leader Omar Abdullah tweeted, saying, “Can’t wait for when they make The Insensitive Prime Minister. So much worse than being the accidental one.”

पर्याप्त सीटों के न मिलने पर गठबंधन का बहिष्कार कर सकती है ‘हम’

मांझी ने कुछ महीने पहले यह दावा किया था कि उनकी पार्टी राज्य में 20 लोकसभा सीटों पर बेहतरीन प्रदर्शन करने की स्थिति में है, राज्य में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं

बिहार में विपक्ष के महागठबंधन के साथी दल हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) ने बुधवार को धमकी दी है कि यदि उसे पर्याप्त सीटें नहीं मिली, तो वह अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करेगी. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाले ‘हम’ के प्रदेश अध्यक्ष वृषिण पटेल ने महागठबंधन में सीट बंटवारा समझौते के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में यह कहा.

पूर्व मंत्री पटेल ने कहा कि हर पार्टी को अपने लिए सर्वश्रेष्ठ सौदेबाजी करने का अधिकार है और जहां तक हमारी बात है हम सड़क पर खड़े हैं. जो लोग मुकम्मल मकानों में रह रहे हैं उन्हें एक उचित आकलन करना चाहिए. नहीं तो वे भी सड़क पर आ जाएंगे. मांझी की पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि यदि उसे पर्याप्त संख्या में सीटें नहीं मिली तो वह चुनावों में भाग नहीं लेगी. दरअसल, उनसे (पटेल से) यह पूछा गया था कि पार्टी कितनी संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है.

पार्टी का दावा 20 सीटों पर है मजबूत स्थिति में

खास बात यह है कि मांझी ने कुछ महीने पहले यह दावा किया था कि उनकी पार्टी राज्य में 20 लोकसभा सीटों पर बेहतरीन प्रदर्शन करने की स्थिति में है. राज्य में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं. उन्होंने बाद में स्पष्ट किया कि वह इतनी सीटों के लिए जोर नहीं दे रहे हैं और इसके बजाय जिन स्थानों पर पार्टी की अच्छी मौजूदगी है वह गठबंधन सहयोगियों को जीत हासिल करने में मदद करेगी.

गौरतलब है कि मांझी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और जेडीयू छोड़ने के बाद हम का गठन किया था. मांझी ने इस साल फरवरी में एनडीए छोड़ दिया और महागठबंधन में शामिल हो गए.

यूपी में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन कांग्रेस मुक्त होगा: सपा

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के इस बयान को मध्‍य प्रदेश में पार्टी के एकमात्र विधायक को कमलनाथ मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने से कांग्रेस के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी के रूप में देखा जा रहा है

2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में दरार दिखने लगा है. समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी के खिलाफ उत्‍तर प्रदेश में बनने वाले गठबंधन के गैर-कांग्रेस होने की बात कही है.

अखिलेश ने बुधवार को कहा, ‘बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन खड़ा करने में सभी पार्टियों को साथ लाने का प्रयास किया जा रहा है. मैं तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर को इस दिशा में प्रयास के लिए बधाई देता हूं. वो इसके लिए जुटे हैं. मैं उनसे मिलने हैदराबाद जाऊंगा.

उन्होंने यह भी कहा कि हम कांग्रेस का भी धन्यवाद देना चाहेंगे कि मध्य प्रदेश में हमारे विधायक को मंत्री नहीं बनाया. हम कांग्रेस और बीजेपी दोनों को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने कम से कम समाजवादियों का रास्ता साफ कर दिया. जबकि एसपी का विधायक मध्‍य प्रदेश में कांग्रेस को समर्थन दे रहा था.

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के इस बयान को मध्‍य प्रदेश में पार्टी के एकमात्र विधायक को कमलनाथ मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने से कांग्रेस के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी के रूप में देखा जा रहा है.

बता दें कि 11 दिसंबर को आए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस 114 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. वहीं बीजेपी के खाते में 109 सीटें आई थी.

बहुमत से दूर कांग्रेस को बाद में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के 2, समाजवादी पार्टी के 1 और 4 निर्दलीय विधायकों ने सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया था. जिसके बाद कांग्रेस को कुल 121 विधायकों का समर्थन हासिल है.