पेट्रोल 55 और डीजल 50 रुपए लीटर मिलेगा: गडकरी


केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमारा पेट्रोलियम मंत्रालय एथेनॉल बनाने के लिए पांच प्लांट लगा रहा है, एथेनॉल लकड़ी और नगर निगम के कचरे से बनाया जाएगा’


पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बायोफ्यूल के उपयोग का तरीका सुझाया है. गडकरी ने कहा, मैं 15 वर्षों से कह रहा हूं कि किसान और आदिवासी बायोफ्यूल बना सकते हैं. जिससे हवाई जहाज तक उड़ सकता है. हमारी नई तकनीक से बनी गाड़ियां किसानों और आदिवासियों द्वारा बनाए गए एथेनॉल से चल सकती हैं.

इसी के साथ उन्होंने पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों का भी जिक्र किया. सोमवार को एक सभा को संबोधित करते हुए नितिन गडकरी ने कहा, हम पेट्रोल और डीजल के आयात पर 8 लाख करोड़ रुपए खर्च करते हैं. पेट्रोल की कीमत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. डॉलर की तुलना में रुपए की कीमत घट रही है.’

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ANI

एथेनॉल है पेट्रोल-डीजल का विकल्प

केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमारा पेट्रोलियम मंत्रालय एथेनॉल बनाने के लिए पांच प्लांट लगा रहा है. एथेनॉल लकड़ी और नगर निगम के कचरे से बनाया जाएगा. इसके बाद डीजल की कीमत 50 रुपए प्रति लीटर और पेट्रोल का विकल्प 55 रुपए प्रति लीटर पर उपलब्ध होगा.’

दरअसल पिछले कुछ दिनों से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है. और फिलहाल पेट्रोल और डीजल के दाम अब तक के सबसे उच्चतम कीमत पर पहुंच गए हैं. इसके चलते सोमवार को कांग्रेस ने बंद का आयोजन भी किया था.

Receiving no good response to Bandh, Congress workers attack school bus, private vehicles, throw stone at trains attacking passengers!

 

The Congress and few of its allies had called for Bharat Bandh today to protest against the fuel price and the central government. However, the bandh call has not been successful as people felt it was a gimmick of the Congress party to utilize the situation for their benefits. It is well known that in 2013, the petrol prices under Congress had reached Rs 84 and then PM Manmohan Singh had vaguely said that they were unable to control the price because of global crisis.

But what congress has forgotten is, it was Modi government who has repaid the credit value of over 2 Lakh crore to the oil companies which were due since 5 years. This information was clarified 2 months back by the Petroleum minister himself.

And the real reason for fuel hike is the unimaginable debts which were created by Congress during their tenure.

The Congress which is responsible for this huge mess is today pretending to be saints and are creating disruption in the name of Bharat Bandh and Protest. Rahul Gandhi should be reminded that in 10 years of Congress rule, there was a whopping RS 47 hike in petrol prices. But in Modi government’s rule, there has been Rs 4-5 hike in 4.5 years.

But this was not the end, the Congress workers have targeted private vehicles of common citizens with stones and sticks just to create panic and project the Bandh was successful

There were also reports on attack on trains by Congress workers who were seen throwing stones targeting innocent passengers.

The worst part was, the so called protestors have attacked a school bus in Mumbai. It is unfortunate that in our country these goons destroy public property in the name of protests and bandhs. Only criminals can go to an extent of attacking school buses of innocent children and claim it to be freedom of speech and expression.

This is the real scenario of how these Bandh and protests are misused by political parties. The ultimate sufferers are only innocent people and common man who have to bear these criminals and goons.

The court will have to take suo moto action against the unruly behavior of Congress party workers or anyone who destroys public property and troubles commoners for their political gimmicks.

अग्रवाल समाज के व्यक्ति विवाह-शादियों में पहली मिलनी महाराजा अग्रसैन जी के नाम पर ले – बजरंग गर्ग 

पंचकूला :

अग्रोहा विकास ट्रस्ट अग्रोहा धाम के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष व व्यापार मंडल के प्रांतीय अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने वैश्य समाज के प्रतिनिधियों की बैठक लेने के उपरांत अग्रवाल भवन में पत्रकार वार्ता में कहा कि अग्रवाल विकास ट्रस्ट द्वारा पंचकूला में 4 नवंबर 2018 को उत्तरी भारत का 13 वां युवक-युवती परिचय सम्मेलन का भव्य आयोजन संस्था के प्रधान सत्यनारायण गुप्ता के नेतृत्व में किया जाएगा। जिसमें हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, दिल्ली, यूपी, राजस्थान व उत्तराखंड के अलावा देश भर से अग्रवाल युवक-युवती परिवार सहित भारी संख्या में भाग लेंगे। युवक-युक्तियों के परिचय फार्म भरवाने के लिए हर राज्य में अलग-अलग स्थान बनाए गए है। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने कहा कि परिचय सम्मेलन के माध्यम से युवक-युवतियों को एक ही मंच पर मनचाहा वर-वधु मिलने में आसानी होती है। जबकि पंचकूला में परिचय सम्मेलन के माध्यम से लगभग अब तक 5000 परिवारों के रिश्ते हो चुके हैं। इतना ही नहीं इन रिश्तो के माध्यम से फजूल खर्चों पर रोक लगती है। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने समाज के व्यक्तियों से अपील की है कि वह विवाह- शादियों में पहली मिलनी महाराजा अग्रसेन जी के नाम की ली जाए व मिलनी चांदी व सोने की बजाए पहले की तरह कागज के रुपए की ले। श्री गर्ग ने कहां की देश की विकास व तरक्की में अहम भूमिका वैश्य समाज की है। जिन्होंने राष्ट्रीय व जनता के हित में मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल, गौशाला, धर्मशाला, मंदिर, स्कूल, पियाऊ आदि संस्थाएं देश के गांव व शहरों में बना कर सेवा कार्यों में जुटा हुआ है। इतना ही नहीं केंद्र व प्रदेश की हर सरकारों को चलाने व देश के विकास कार्यों के लिए भी सबसे ज्यादा धन टैक्स के रूप में राजस्व देकर सरकार को पूरा सहयोग कर रहा है। मगर जो सहयोग केंद्र व प्रदेश की सरकारों से वैश्य समाज को मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा हैं। जिसके कारण आज देश का वैश्य समाज का परिवार रात-दिन व्यापार में पिछड़ता जा रहा है। जो समाज के साथ-साथ देश के हित में नहीं है। क्योंकि वैश्य समाज व्यापार व उद्योग के माध्यम से लाखों बेरोजगारों को रोजगार देकर बेरोजगारी को काफी हद तक कम करने में अपनी अहम भूमिका पूरे देश में निभा रहा हैै। राष्ट्रीय कार्यकारिणी अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने कहा कि केंद्र व प्रदेश सरकार को देश की तरक्की, वैश्य समाज व व्यापारियों के हित में नई-नई योजना बनाकर ज्यादा से ज्यादा सुविधा व रियायते देनी चाहिए। ताकि देश में पहले से ज्यादा व्यापार व उद्योग को बढ़ावा मिल सके। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने कहा कि बिना राजनीति के सामाजिक व धार्मिक कार्य पूरे करने में बड़ी भारी दिक्कतें समाज में आती है। श्री गर्ग ने कहा कि समाज के युवाओं से समाज व राष्ट्र के हित में आगे आकर ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक में भागीदारी सुनिश्चित करें। इस मौके पर अग्रवाल विकास ट्रस्ट जिला प्रधान सत्यनारायण गुप्ता, संरक्षक कुसुम गुप्ता, उप प्रधान मनोज अग्रवाल, मनोज कुमार अग्रवाल, आनंद अग्रवाल, वरिष्ठ उपप्रधान प्रमोद जिंदल, सेक्रेटरी बी एम गुप्ता, राकेश गोयल, रामनाथ अग्रवाल, सचिव विपिन बिंदल, नरेंद्र जैन, वीरेंद्र गर्ग, कृष्ण गोयल, नरेश सिंगला, रामचरण सिंगला, विवेक सिंगला, राजेश जैन, इंद्र गुप्ता, सेक्रेटरी सचिन अग्रवाल, महिला अग्रवाल विकास ट्रस्ट प्रधान उषा अग्रवाल, कोषाध्यक्ष स्नेह लता गोयल, पी आर ओ रोहित आदि प्रतिनिधी भारी संख्या में मौजूद थे।

फोटो बाबत – अग्रोहा विकास ट्रस्ट अग्रोहा धाम व व्यापार मंडल के प्रान्तीय अध्यक्ष के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग पत्रकार वार्ता करते हुए।

स्वर्णों के लिए कांग्रेस ओर भाजपा एक समान


स्वर्णों ने दिग्विजय को सत्ताच्युत किया था अब शिवराज उर्फ भाजपा की बारी है , नोटा की तैयारी है

स्वर्णों को अपनी मलकीयत समझने वाली भाजपा ने अपना जनाधार खो दिया 


मध्यप्रदेश में सवर्ण समाज द्वारा बुलाया गया भारत बंद का व्यापक असर देखने को मिला. चंबल संभाग में सवर्णों ने पुलिस की गाड़ियों पर पथराव किया. एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ हुए इस बंद की सबसे ज्यादा हलचल भारतीय जनता पार्टी में देखी गई. भिंड में बीजेपी विधायक नरेन्द्र सिंह कुशवाह के पुत्र पुष्पेन्द्र सिंह बंद को सफल बनाने के लिए सवर्ण समाज के साथ सड़क पर उतर आए. रैली निकालने की कोशिश में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

वहीं रीवा में वरिष्ठ नेता लक्ष्मण तिवारी ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. बंद की व्यापक सफलता को भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है. राज्य में सवर्णों की नाराजगी को उभारने के पीछे पार्टी के असंतुष्टों का हाथ भी देखा जा रहा है. दो माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में सवर्ण आक्रोश का असर देखने को मिल सकता है. प्रदेश में सवर्णों ने सड़क पर अपनी ताकत का प्रदर्शन पहली बार किया है. लेकिन,2003 के विधानसभा चुनाव में वह अपने वोट से तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को वनवास दे चुकी है.

शिवराज को याद आया राजधर्म कहा, वंचित वर्ग उनकी प्राथमिकता में है

शिव राज कुर्सी की राजनीति में मई के लाल को भूल बैठे

2 अप्रैल के दलित आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा को देखते हुए ग्वालियर-चंबल संभाग में सुरक्षा के बड़े पैमान पर इंतजाम किए गए थे. इस संभाग के अशोकनगर, गुना, भिंड और मुरैना में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव की छिटपुट घटनाएं हुईं. अशोकनगर में प्रदर्शनकारियों ने रेल की पटरी पर बैठकर पटरी जाम करने की कोशिश की. जबलुपर में भी इस तरह की कोशिश सफल नहीं हुई.

उज्जैन जिले में दो वर्ग जरूर आमने-सामने आ गए. राज्य के गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह लगातार हालात पर नजर रखे हुए थे. प्रदर्शनकारियों ने भूपेन्द्र सिंह के बंगले का भी घेराव किया गया था. गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि बंद के दौरान कोई अप्रिय स्थिति कही निर्मित नहीं हुई है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी जनआशीर्वाद यात्रा के तहत खंडवा जिले में सभाएं कर रहे थे. मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के दौरान भी कोई व्यधान की घटना नहीं है. सीएम के यात्रा मार्ग पर सवर्णों ने अपने घर पर एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ बैनर लगा रखे थे.

कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया मैहर में परिवर्तन रैली कर रहे थे. वहां भी सभा और रोड शो में सवर्णों के बंद का असर नहीं दिखा. एट्रोसिटी एक्ट का सवर्णों द्वारा किए जा रहे विरोध के बारे में पूछे गए सवाल पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया.

उन्होंने कहा कि सबके मन की बात सुनकर, सबके हित की बात की जाएगी. जब उनसे माई के लाल वाले बयान के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि संबल योजना हर वर्ग के लिए है. मुख्यमंत्री ने कहा कि वे राजधर्म का पालन करेंगे. वहीं भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय चौहान ने विट्टन मार्केट स्थित अपनी फूलों की दुकान भी नहीं खोली. बुधवार को दमोह में सवर्णों की नाराजगी का शिकार हुए प्रहलाद पटेल ने सफल बंद के बाद कहा कि जरूरी हुआ तो कानून में संशोधन किया जाएगा.

पुलिस के लचीले रवैये के कारण बनी रही शांति

भारत बंद के आह्वान के चलते सीबीएसई और एमपी बोर्ड से मान्यता प्राप्त स्कूलों में छुट्टी का एलान कर दिया गया था. कॉलेज भी बंद रहे. बंद के चलते राज्य के तीस से अधिक जिलों में धारा 144 लागू की गई थी. इसके बाद भी कई स्थानों पर सैकड़ों प्रदर्शनकारी सड़कों पर दिखाई दिए. जलूस की शक्ल में अधिकारियों को ज्ञापन देने गए. पुलिस प्रशासन को डर इस बात का था कि यदि प्रदर्शनकारियों पर किसी तरह का बल प्रयोग किया गया तो पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर हिंसा फैल सकती है. इंटेलिजेंस इनपुट यह भी था कि भीम अर्मी प्रतिक्रिया स्वरूप सड़कों पर आ सकती है. इस कारण पुलिस ने प्रदेश भर में अंबेडकर प्रतिमा की सुरक्षा बढ़ा दी थी.

पुलिस बल में भी आंदोलन को लेकर दो विचार धाराएं देखने को मिल रही थीं. राज्य के मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह ने सुरक्षा इंतजामों की समीक्षा के दौरान इस बात की ओर इशारा करते हुए पुलिस अधीक्षकों से कहा था कि प्राथमिकता कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने में दी जाना चाहिए. शहडोल की घटना को पुलिस बल में विपरीत विचारधाराओं के टकराव के तौर पर देखा जा रहा है.

शहडोल में धारा 144 लागू नहीं थे. लोग गांधी चौक पर जमा थे. अचानक लाठी चार्ज हो गया. शहडोल एसपी कुमार सौरभ पर इरादतना हिंसा फैलाने के उद्देश्य से लाठी चार्ज कर गायब हो जाने का आरोप सपाक्स ने लगाया है. शहडोल एसपी हटाए जाने की मांग को लेकर सवर्ण समाज के लोगों ने नेशनल हाईवे जाम कर दिया. कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव ने मामले की जांच मजिस्ट्रेट से कराने का आश्वासन दिया. इसके बाद ही स्थिति कुछ सामान्य हुई.

2003 में दिग्विजय सिंह को सत्ता से बाहर करने में थी सवर्णों की भूमिका

मई के लालों ही ने डिग्गी राजा को सत्ता से बाहर किया था

वर्ष 1998 में लगातार दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में राज्य में लगातार दूसरी बार कांग्रेसी सरकार बनी थी. सरकार बनने के बाद दिग्विजय सिंह ने अपनी सरकार की नीतियों के जरिए सवर्णों की उपेक्षा करना शुरू कर दिया था. वर्ष 2000 तक छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था. राज्य में विधानसभा की कुल 320 सीटें थीं. इसमें 75 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं. कुल 43 सीटें दलित वर्ग के लिए आरक्षित. 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की बड़ी वजह आरक्षित सीटों को ही माना जाता था. दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2003 के चुनाव का एजेंडा 1998 के नतीजों के बाद से ही तय करना शुरू कर दिया था.

दलित एजेंडा के जरिए उन्होंने सवर्णों के एकाधिकार को समाप्त करने की सरकारी कोशिश तेज कर दी थी. सरकारी सप्लाई और सरकारी ठेके देने में भी आरक्षण लागू कर दिया था. यह व्यवस्था अभी भी जारी है. दिग्विजय सिंह निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करना चाहते थे. संवैधानिक मजबूरियों के चलते वे इसे लागू नहीं कर पाए थे. दिग्विजय सिंह को अपने दलित एजेंडा पर इतना भरोसा था कि उन्होंने एक कार्यक्रम में उत्साहित होकर यहां तक कह दिया कि उन्हें सवर्णों के वोटों की जरूरत नहीं है.

वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव हारने के कुछ समय बाद दिग्विजय सिंह ने अपने इस बयान पर सफाई देते हुए कहा था कि जो मैने कहा नहीं था, उसे अखबारों ने हेडलाइन बनाकर छाप दिया. दिग्विजय सिंह के दलित एजेंडा को आदिवासी वर्ग ने भी मान्यता नहीं दी थी. आदिवासी खुद को दलित के साथ जोड़े जाने से नाराज थे. चुनाव नतीजों में दिग्विजय सिंह का दलित एजेंडा कहीं नहीं दिखा था. कांग्रेस अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों को भी नहीं बचा पाई थी. आदिवासी इलाकों में भी करारी हार का सामना करना पड़ा था. सवर्णों ने खुलकर बीजेपी का साथ दिया था.

बीजेपी और शिवराजके लिए मुसीबत बन गया है ‘कोई माई लाल’

सवर्णों को अपने पक्ष में बांधे रखने के लिए शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में दिग्विजय सिंह सरकार के दिनों की याद वोटरों को दिलाती है. बीजेपी लगातार तीन चुनाव दलित एजेंडा के डर को दिखाकर जीतती रही है. भाजपा की चौथी जीत के रास्ते में बड़ी रुकावट, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का अति उत्साह में कहा गया शब्द कि कौन माई का लाल है जो पदोन्नति में आरक्षण को रोक दे? बना हुआ है.

शिवराज सिंह चौहान ने यह चुनौती अनुसूचित जाति,जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संगठन (अजाक्स) के कार्यकम में दी थी. पहले तो यह माना जा रहा था कि सवर्ण संगठित होकर इसका जवाब नहीं दे पाएंगे. सवर्णों ने धीरे-धीरे संगठित होना शुरू किया. मैं हूं माई का लाल लिखी हुई टोपी लगाकर शिवराज सिंह चौहान का विरोध शुरू करना शुरू कर दिया. स्थिति वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव के जैसी ही बन गई हैं. दिग्विजय सिंह का बयान सवर्णों के वोट नहीं चाहिए और शिवराज सिंह चौहान का बयान कौन माई का लाल है जो पदोन्नति में आरक्षण रोक दे, सवर्णों को एक समान ही लग रहे हैं.

सवर्ण जातियों का विरोध झेलतीं राजनैतिक पार्टियां


अब सवर्णों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी को सवर्णों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. हिंदी भाषी राज्यों में अपनी जड़े जमाने वाली बीजेपी इस तबके के वोटरों को लेकर सशंकित भी है और चिंतित भी


एससी-एसटी एक्ट में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने वाले सरकार के कदम का विरोध तेज हो रहा है. मध्यप्रदेश के ग्वालियर के फूलबाग मैदान में जुटे करीब दर्जन भर संगठनों की तरफ से इस मुद्दे पर हल्लाबोल शुरू किया गया है. मध्यप्रदेश में सवर्ण संगठनों ने विरोध ज्यादा तेज कर दिया है.

क्षत्रिय महासभा, गुर्जर महासभा, परशुराम सेना जैसे सवर्ण जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों की ओर से विरोध का बिगुल फूंका गया है. 6 सितंबर को इस मुद्दे पर भारत बंद का आह्वान भी किया जा रहा है. इनकी नाराजगी बीजेपी और कांग्रेस दोनों के खिलाफ है. लेकिन, निशाने पर बीजेपी के नेता और केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री ज्यादा हैं. क्योंकि सरकार बीजेपी की ही है.

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एससी-एसटी एक्ट से जुड़े मामले में किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज होने से पहले उस पर आरोपों की जांच की जाएगी. इसी के बाद देशभर में एसएसी-एसटी तबके की तरफ से विरोध तेज हो गया था. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों और बीजेपी के सहयोगी दलों की तरफ से भी इस मुद्दे पर सरकार से हस्तक्षेप की मांग की गई थी.

Supreme Court

राजनीतिक दबाव में केंद्र की बीजेपी सरकार ने इस मामले में संसद के मॉनसून सत्र में कानून पास कराकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. अब एक बार फिर से पुराने ढर्रे पर ही एससी-एसटी कानून के तहत कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त हो गया है. यानी इस एक्ट में फिर से बिना जांच के भी मुकदमा दायर करने और गिरफ्तारी का रास्ता साफ हो गया है.

एससी-एसटी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए पिछले 2 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया था, जिसमें काफी हिंसक झड़पें भी हुई थीं. मध्यप्रदेश समेत देश भर में बंद का असर भी दिखा था. सरकार को लगा कि इस तबके को मनाने और विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने वाला कानून पास कराना होगा. सरकार ने ऐसा  कर भी दिया. लेकिन, अब यह मुद्दा उसके गले की हड्डी बनता जा रहा है.

बीजेपी के खिलाफ सवर्ण हो रहे लामबंद:

अब सवर्ण संगठनों का विरोध सरकार और बीजेपी के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है. सबसे ज्यादा विरोध मध्यप्रदेश में दिख रहा है, जहां, दो महीने के भीतर विधानसभा का चुनाव होना है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस वक्त राज्य भर का दौरा कर रहे हैं. लेकिन, उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी नेता प्रभात झा, नरेंद्र सिंह तोमर जैसे कई दूसरे नेताओं को भी सवर्ण संगठनों की तरफ से घेरा जा रहा है. उनसे जवाब मांगा जा रहा है. लेकिन, बीजेपी के इन सवर्ण नेताओं के लिए उन्हें समझा पाना मुश्किल हो रहा है.

विरोध की आग मध्यप्रदेश से आगे भी पहुंच रही है. बिहार और यूपी समेत दूसरे प्रदेशों में एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर विरोध हो रहा है. बिहार के बेगूसराय, गया, नालंदा और बाढ़ जिलों में सवर्ण संगठनों ने बंद भी बुलाया. कई जगह पर नेशनल हाईवे भी जाम किया और जमकर विरोध किया.

File photo of protests over SC/ST (Prevention of Atrocities) Act

File photo of protests over SC/ST (Prevention of Atrocities) Act

विरोध बीजेपी और कांग्रेस दोनों के खिलाफ दिख रहा है. लेकिन, इससे सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को होता दिख रहा है. इन सवर्ण संगठनों की तरफ से विरोध के क्रम में अगले चुनाव में नोटा दबाने की अपील की जा रही है. इनकी तरफ से बार-बार यही कहा जा रहा है कि नोटा के जरिए हम बीजेपी और कांग्रेस दोनों का विरोध करेंगे.

दरअसल, बीजेपी को अबतक सवर्णों की पार्टी कहा जाता रहा है. ब्राम्हण –बनिया की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी ने धीरे-धीरे समाज के हर तबके में अपना विस्तार भी किया है. पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों के अलावा, एससी-एसटी तबके में भी बीजेपी का जनाधार पहले से कहीं ज्यादा बेहतर हुआ है. खासतौर से 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में कास्ट बैरियर टूट जाने के बाद बीजेपी के वोट शेयर में जबरदस्त इजाफा हुआ. अपने दम पर बीजेपी पहली बार सत्ता में आई.

लोकसभा में कितने हैं एससी-एसटी सांसद?

यहां तक कि लोकसभा में एससी-एसटी सांसदों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 131 है. जिसमें 84 एससी और 47 एसटी सांसदों की संख्या है. मौजूदा वक्त में बीजेपी के पास इस तबके के 67 सांसद हैं. ऐसे में बीजेपी किसी भी कीमत पर इस तबके की नाराजगी नहीं मोल लेना चाह रही थी. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने का फैसला किया गया.

लेकिन, अब सवर्णों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी को सवर्णों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. हिंदी भाषी राज्यों में अपनी जड़े जमाने वाली बीजेपी इस तबके के वोटरों को लेकर सशंकित भी है और चिंतित भी. तभी तो पार्टी नेताओं और मुख्यमंत्रियों को सवर्ण तबके को समझाने की जिम्मेदारी दी गई है कि आखिर यह फैसला क्यों करना पड़ा.

वजह जो भी हो, लेकिन, सवर्ण मतदाताओं के भीतर अब यह बात घर कर गई है कि एससी-एसटी तबके को साधने के लिए सरकार ने उनके साथ अन्याय किया है. अब इस बात को लेकर उनका विरोध शुरू हो गया है. मंडल कमीशन लागू होने के बाद शायद यह पहला मौका है कि सवर्ण तबका भी अब खुलकर अपनी बात कर रहा है. चुनावी साल में राजनीतिक दल परेशान हैं. बीजेपी डरी है कहीं यह नाराजगी उस पर भारी न पड़ जाए ?

जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है


धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं


जनमाष्टमी यानी कृष्ण के जन्म का उत्सव. कृष्ण के जन्म से दो बिल्कुल कड़ियां अलग जुड़ती हैं. एक ओर मथुरा की काल कोठरी है जहां वासुदेव और देवकी जेल में अपनी आठवीं संतान की निश्चित हत्या का इंतजार कर रहे हैं. दूसरी तरफ गोकुल में बच्चे के पैदा होने की खुशियां हैं. कृष्ण के जन्म का ये विरोधाभास उनके जीवन में हर जगह दिखता है. धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं. और समय-समय पर उनके बारे में जो नई कहानियां गढ़ी गईं उन्हें समझना भी किसी समाजशास्त्रीय अध्ययन से कम नहीं है.

अब देखिए वृंदावन कृष्ण की जगह है, लेकिन वृंदावन में रहना है तो ‘राधे-राधे’ कहना है. ऐसा नहीं हो सकता कि आप अयोध्या में रहकर सिया-सिया, लुंबिनी में यशोधरा-यशोधरा या ऐसा कुछ और कहें. यह कृष्ण के ही साथ संभव है. कान्हा, मुरली और माखन के कथाओं में कृष्ण का बचपन बेहद सुहावना लगता है. लेकिन कृष्ण का बचपन एक ऐसे शख्स का बचपन है, जिसके पैदा होने से पहले ही उसके पिता ने उसकी हत्या की जिम्मेदारी ले ली थी. वो एक राज्य की गद्दी का दावेदार हो सकता था तो उसको मारने के लिए हर तरह की कोशिशें की गईं. बचपन के इन झटकों के खत्म होते-होते पता चलता है कि जिस परिवार और परिवेश के साथ वो रह रहा था वो सब उसका था ही नहीं.

कहानियां यहीं खत्म नहीं होतीं. मथुरा के कृष्ण के सामने अलग चुनौतियां दिखती हैं. जिस राज सिंहासन को वो कंस से खाली कराते हैं उसे संभालने में तमाम मुश्किलें आती हैं. अंत में उन्हें मथुरा छोड़नी ही पड़ती है. महाभारत युद्ध में एक तरफ वे खुद होते हैं दूसरी ओर उनकी सेना होती है. वो तमाम योद्धा जिनके साथ उन्होंने कई तैयारियां की होंगी, युद्ध जीते होंगे. अब अगर कृष्ण को जीतना है तो उनकी सेना को मरना होगा. इसीलिए महाभारत के कथानक में कृष्ण जब अर्जुन को ‘मैं ही मारता हूं, मैं ही मरता हूं’ कहते हैं तो खुद इसे जी रहे होते हैं.

महाभारत से इस्कॉन तक कृष्ण

अलग-अलग काल के साहित्य और पुराणों में कृष्ण के कई अलग रूप हैं. मसलन महाभारत में कृष्ण का जिक्र आज लोकप्रिय कृष्ण की छवि से बिलकुल नहीं मिलता. भारतीय परंपरा के सबसे बड़े महाकाव्य में कृष्ण के साथ राधा का वर्णन ही नहीं है. वेदव्यास के साथ-साथ श्रीमदभागवत् में भी राधा-कृष्ण की लीलाओं का कोई वर्णन नहीं है. राधा का विस्तृत वर्णन सबसे पहले ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है. इसके अलावा पद्म पुराण में भी राधा का जिक्र है. राधा के शुरुआती वर्णनों में कई असमानताएं भी हैं. कहीं दोनों की उम्र में बहुत अंतर है, कहीं दोनों हमउम्र हैं.

इसके बाद मैथिल कोकिल कहे जाने वाले विद्यापति के पदों में राधा आती हैं. यह राधा विरह की ‘आग’ में जल रही हैं. 13वीं 14वीं शताब्दी के विद्यापति राधा-कान्हा के प्रेम के बहाने, शृंगार और काम की तमाम बातें कह जाते हैं. इसके कुछ ही समय बाद बंगाल से चैतन्य महाप्रभु कृष्ण की भक्ति में लीन होकर ‘राधे-राधे’ का स्मरण शुरू करते हैं. यह वही समय था जब भारत में सूफी संप्रदाय बढ़ रहा था, जिसमें ईश्वर के साथ प्रेमी-प्रेमिका का संबंध होता है. चैतन्य महाप्रभु के साथ जो हरे कृष्ण वाला नया भक्ति आंदोलन चला उसने भक्ति को एक नया आयाम दिया जहां पूजा-पाठ साधना से उत्सव में बदल गया.

अब देखिए बात कृष्ण की करनी है और जिक्र लगातार राधा का हो रहा है. राधा से शुरू किए बिना कृष्ण की बात करना बहुत मुश्किल है. वापस कृष्ण पर आते हैं. भक्तिकाल में कृष्ण का जिक्र उनकी बाल लीलाओं तक ही सीमित है. कृष्ण ब्रज छोड़ कर जाते हैं तो सूरदास और उनके साथ बाकी सभी कवि भी ब्रज में ठहर जाते हैं. उसके आगे की कहानी वो नहीं सुनाते हैं. भक्तिकाल के कृष्ण ही सनातन परंपरा में पहली बार ईश्वर को मानवीय चेहरा देते हैं. भक्तिकाल के बाद रीतिकाल आता है और कवियों का ध्यान कृष्ण की लीलाओं से गोपियों और राधा पर ज्यादा जाने लगता है. बिहारी भी जब श्रृद्धा के साथ सतसई शुरू करते हैं, तो ‘मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोए’ ही कहते हैं. इन सबके बाद 60 के दशक में इस्कॉन जैसा मूवमेंट आता है जो उस समय दुनिया भर में फैल रहे हिप्पी मूवमेंट के साथ मिलकर ‘हरे कृष्णा’ मूवमेंट बनाता है.

ईश्वर का भारतीय रूप हैं कृष्ण

कृष्ण को संपूर्ण अवतार कहा जाता है. गीता में वे खुद को योगेश्वर भी कहते हैं. सही मायनों में ये कृष्ण हैं जो ईश्वर के भारतीय चेहरे का प्रतीक बनते हैं. अगर कथाओं के जरिए बात कहें तो वे छोटी सी उम्र में इंद्र की सत्ता और शोषण के खिलाफ आवाज उठाते हैं. जीवन भर युद्ध की कठोरता और संघर्षों के बावजूद भी उनके पास मुरली और संगीत की सराहना का समय है. वहीं वह प्रेम को पाकर भी प्रेम को तरसते रहते हैं. यही कारण है कि योगेश्वर कृष्ण की ‘लीलाओं’ के बहाने मध्यकाल में लेखकों ने तमाम तरह की कुंठाओं को भी छंद में पिरोकर लिखा है. उनका यह अनेकता में एकता वाला रूप है जिसके चलते कृष्ण को हम बतौर ईश्वर अलग तरह से अपनाते हैं.

तमाम जटिलताएं

इसमें कोई दो राय नहीं कि कृष्ण की लीलाओं के नाम पर बहुत सी अतिशयोक्तियां कहीं गईं हैं. बहुत कुछ ऐसा कहा गया है जो, ‘आप करें तो रास लीला…’ जैसे मुहावरे गढ़ने का मौका देता है. लेकिन इन कथाओं की मिलावटों को हटा देने पर जो निकल कर आता है वो चरित्र अपने आप में खास है. अगर किसी बात को मानें और किसी को न मानें को समझने में कठिनाई हो तो एक काम करिए, कथानकों को जमीन पर जांचिए. उदाहरण के लिए वृंदावन और मथुरा में कुछ मिनट पैदल चलने जितनी दूरी है. मथुरा और गोकुल या वृंदावन और बरसाने का सफर भी 2-3 घंटे पैदल चलकर पूरा किया जा सकता है. इस कसौटी पर कसेंगे तो समझ जाएंगे कि कौन-कौन सी विरह की कथाएं कवियों की कल्पना का हिस्सा हैं.

कृष्ण के जीवन में बहुत सारे रंग हैं. कुछ बहुत बाद में जोड़े गए प्रसंग हैं जिन्हें सही मायनों में धार्मिक-सामाजिक हर तरह के परिवेश से हटा दिया जाना चाहिए. राधा के वर्णन जैसी कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो महाभारत और भागवत में नहीं मिलती मगर आज कृष्ण का वर्णन उनके बिना संभव नहीं है. इन सबके बाद भगवद् गीता है जो सनातन धर्म के एक मात्र और संपूर्ण कलाओं वाले अवतार की कही बात. जिसमें वो अपनी तुलना तमाम प्रतीकों से करते हुए खुद को पीपल, नारद कपिल मुनि जैसा बताते हैं. आज जब तमाम चीजों की रक्षा के नाम पर हत्याओं और अराजकता एक सामान्य अवधारणा बनती जा रही है. निर्लज्जता, झूठ और तमाम तरह की हिंसा को कथित धर्म की रक्षा के नाम पर फैलाया जा रहा है, ऐसे में कृष्ण के लिए अर्जुन का कहा गया श्लोक याद रखना चाहिए यतः सत्यं यतो धर्मो यतो ह्लीराजर्वं यतः. ततो भवति गोविंदो यतः कृष्णोस्ततो जयः यानी जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है. अंतिम बात यही है कि कृष्ण होना सरस होना, क्षमाशील होना, नियमों की जगह परिस्थिति देख कर फैसले लेना और सबसे ज़रूरी, निरंकुशता के प्रतिपक्ष में रहना है.

श्री कृष्ण के नामकरण पर पधारे महर्षि गर्ग ने कुंडली विचार जो भविष्यवाणियाँ कीं वह अक्षरश: सत्य थीं

जगत के पालनहार का कृष्ण अवतार विधि का विधान था और वे स्वयं दुनिया का भाग्य लिखते हैं, उनके भाग्य को कोई नहीं पढ सकता। लेकिन जैसे ही मानव योनि में अवतार आया तो वे संसार के बंधन में पड़ जाता है और इस कारण उसे दुनिया के लोकाचार को भी निभाना पडता है। जन्म से मृत्यु तक सभी संस्कार करने पडते हैं।

इन्हीं लोकाचारों में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर महर्षि गर्ग पधारे और उनका नामकरण संस्कार किया। उनका नाम कृष्ण निकाल कर उनके जीवन की अनेकों भविष्यवाणी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार की थी जो अक्षरशः सही रही। इस आधार पर श्रीकृष्ण की कुंडली में ग्रह क्या बोलते हैं का यह संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है।

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र के संयोग में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया। सोलह कला सम्पूर्ण महान योगी श्रीकृष्ण का नामकरण व अन्नप्राशन संस्कार गर्ग ऋषि ने कुल गुरू की हैसियत से किया तथा कृष्ण के जीवन की सभी भविष्यवाणियां की जो अक्षरशः सही रहीं। भाद्रपद मास की इस बेला पर हम गर्ग ऋषि को प्रणाम करते हैं।

अष्टमी तिथिि की मध्य रात्रि में जन्मे कृष्ण का वृषभ लग्न में हुआ। चन्द्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में बैठे व गुरू, शनि, मंगल, बुध भी अपनी-अपनी उच्च राशियों में बैठे थे। सूर्य अपनी ही सिंह राशि में बैठे।

योग साधना, सिद्धि एवं विद्याओं की जानकारी के लिए जन्म जन्म कालीन ग्रह ही मुख्य रूप से निर्भर करते हैं। अनुकूल ग्रह योग के कारण ही कृष्ण योग, साधना व सिद्धि में श्रेष्ठ बने। गुरू अष्टमेश बनकर तृतीय स्थान पर उच्च राशि में बैठ गुप्त साधनाओं से सिद्धि प्राप्त की तथा पंचमेश बुध ने पंचम स्थान पर उच्च राशि कन्या में बैठ हर तरह की कला व तकनीकी को सीखा।

चन्द्रमा ने कला में निपुणता दी। मंगल ने गजब का साहस व निर्भिकता दी। शुक्र ने वैभवशाली व प्रेमी बनवाया। शनि ने शत्रुहन्ता बनाया व सुदर्शन चक्र धारण करवाया। सूर्य ने विश्व में कृष्ण का नाम प्रसिद्ध कर दिया।

जन्म के ग्रहों ने कृष्ण को श्रेष्ठ योगी, शासक, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, चमत्कारी योद्धा, प्रेमी, वैभवशाली बनाया। श्रीकृष्ण की कुंडली में पांच ग्रह चन्द्रमा, गुरू, बुध, मंगल और शनि अपनी उच्च राशि में बैठे तथा सूर्य व मंगल अपनी स्वराशि में हैं।

रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाला बुद्धि और विवेक का धनी होता है। यही चन्द्रमा का अति प्रिय नक्षत्र और चन्द्रमा की उपस्थिति व्यक्ति को जातक मे आकर्षण बढा देती है। ऐसे व्यक्ति सभी को प्रेम देते हैं और अन्य लोगों से प्रेम लेते हैं। श्रीकृष्ण को इस योग ने सबका प्रेमी बना दिया और वे भी सबसे प्रेम करते थे।

जन्म कुंडली का पांचवा स्थान विद्या, बुद्धि और विवेक तथा प्रेम, संतान, पूजा, उपासना व साधना की सिद्धि का होता है। यहां बुध ग्रह ने उच्च राशि में जमकर इन क्षेत्रों में कृष्ण को सफल बनाया तथा राहू के संयोग से बुध ग्रह ने परम्पराओं को तुड़वा ङाला और भारी कूटनीतिकज्ञ को धराशायी करवा डाला।

स्वगृही शुक्र ने उन्हें वैभवशाली बनाया तो वहां उच्च राशि में बैठे शनि ने जमकर शत्रुओं का संहार करवाया। भाग्य व धर्मस्थान में उच्च राशि में बैठे मंगल ने उनका भाग्य छोटी उम्र में ही बुलंदियों पर पहुंचा दिया। मारकेश व व्ययेश बने मंगल ने धर्म युद्ध कराकर व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन कराया।

अष्टमेश गुरू को मारकेश मंगल ने देख उनके पांव के अगूठे में वार करा पुनः बैकुणठ धाम पहुंचाया। अष्टमेश और मारकेश का यह षडाष्ठक योग बना हुआ है और मारकेश मंगल ग्रह को पांचवी दृष्टि से राहू देख रहा। यह सब ज्योतिष शास्त्र के ग्रह नक्षत्रों का आकलन मात्र है। सत्य क्या था यह तो परमात्मा श्रीकृष्ण ही बता सकते हैं।

तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं: अनिल विज

 

 

अम्बाला- जैन मुनि तरुण सागर जी के निधन पर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने व्यक्त किया शोक।

अम्बाला- विज ने कहा समाज को सही दिशा दिखाने में हमेशा याद किया जायेगा तरुण सागर जी का योगदान।

अम्बाला- विज ने कहा- तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं।

नहीं चला हस्पताल – जेल का लालू खेल

 

भयंकर बीमारी के नाम पर अस्पताल में रहकर ‘खेल’ करने का लालू यादव का सपना कोर्ट ने तोड़ दिया. अब खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे के मोड में आकर राजद सुप्रीमो पीएम नरेन्द्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार पर अंधाधुंध शब्द बाण चला रहे हैं. साथ ही भविष्यवक्ता की भूमिका में आकर कहना शुरू कर दिया है, ‘2019 में बीजेपी का राज समाप्त हो जाएगा. चुनाव परिणाम के बाद बैठकर हमलोग 5 मिनट में पीएम चुन लेंगे’.

बहरहाल, अपने ताजा बयान से बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव ने एक मुद्दा क्लीयर कर दिया है कि वो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पीएम की उम्मीदवारी को नहीं मानते हैं. रांची में पत्रकारों से बातचीत करते हुए पूर्व रेल मंत्री ने कहा,‘बहुत बड़ा विपक्ष मोर्चा बन रहा है. कई दल साथ आएंगे. दलों का नाम बताना अभी ठीक नहीं होगा. सीएम नीतीश आरएसएस की गोदी में खेलते रह जाएंगे और हमलोग मोदी को हटाकर केन्द्र में सरकार बना लेंगे’.

दूसरी तरफ कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता राजद चीफ के बुधवार के बयान को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं. नाम नहीं छापने की शर्त पर एक नेता ने कहा कि ‘लालू यादव ने तो मैडम सोनिया को वचन दिया है कि राहुल गांधी को बतौर अगला पीएम प्रोजेक्ट किया जाएगा. मुकरने का सवाल नहीं है. वैसे लालू यादव का बयान उनके ट्रैक रिकार्ड के अनुरूप है. क्योंकि वादों से पलटना और सियार की तरह रंग बदलना राजद प्रमुख के स्वभाव में है’.

दरअसल, लालू यादव का गेमप्लान था कि गंभीर बीमारी के नाम पर पटना आवास पर जमे रहे. स्वास्थ्य जांच के लिए कभी कभार मुंबई हॉस्पिटल को विजिट करते रहे और सबसे जरूरी टास्क 2019 लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन बनाने वास्ते दिशानिर्देश भी देते रहे. इन सब कार्य के अलावा अपने परिवार में चल रहे त्रिकोणीय सत्ता संघर्ष को भी सलटाने और परमानेन्ट समाधान ढूंढने का काम करते रहे

सच्चाई को बहुत दिन तक किसी भी यंत्र व तंत्र से छिपाया नहीं जा सकता है. अब जगजाहिर हो गया है कि लालू यादव की फैमिली में सत्ता के तीन बिंदु बन गए है. तेज प्रताप यादव, तेजस्वी यादव और मीसा भारती. संभावना बनी रहती है कि लालू प्रसाद के लगातार अनुपस्थिति से माहौल कभी भी विस्फोटक हो सकता है. लालू यादव दरबार के दरबारी भी हिंट देते हैं,‘घर अंदर ही अंदर खौल रहा है’.

लालू यादव को इलाज के लिए बेल मिला था. कोर्ट ने सख्त निर्देश दिया था कि लालू यादव जबतक बेल पर हैं किसी प्रेस वाले से बात नहीं करेंगे, राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेंगे और न ही कोई राजनीतिक बयान देंगे. अगर जांच एजेंसी राबड़ी देवी की आवास के फोन और राजद चीफ के करीबी मित्रों का कॉल डिटेल निकाल ले तो लालू यादव की ‘मौन व्रत’ की सच्चाई से रूबरू हो सकती है. मुंबई अस्पताल से लेकर पटना आवास तक मिलने वालों में कई चेहरे ऐसे हैं जो केवल राजनीति पर ही विचार विमर्श करने आते रहे. और कई ‘मित्रों’ का जमघट लगा रहता था.

जनता दल यूनाइटेड के एमएलसी और प्रवक्ता नीरज कुमार का आरोप है, ‘बीमारी को भुनाकर लालू यादव अपने को राजनीतिक कार्यों में व्यस्त रखते हैं. उन्हीं के निर्देश पर राजद के प्रवक्ता बयान देते हैं’. न्यायालय ने मेडिकल रिपार्ट देखकर फैसला लिया कि बेल रिजेक्ट की जाए. वैसे चर्चा जोरों पर है कि लगता है लालू यादव की तिकड़म और गेमप्लान की भनक माननीय झारखंड उच्च न्यायालय को लग गई थी तभी बेल को स्थगित करके सरेन्डर करने को कहा गया है.

लोग अच्छी तरह जानते हैं कि जेल में रहकर ‘खेल’ करने में लालू यादव को महारत हासिल है. 1997 में पहली बार चारा घोटाले में जेल जाने के कुछ दिन बाद बीएमपी के खूबसूरत गेस्ट हाउस को प्रिजन में कन्वर्ट कराके रहते थे. वहीं दरबार भी लगता था. गेस्ट हाउस के कैम्पस में एक तालाब था जिसमें लालू यादव बंसी से फीसिंग करते थे. रात में कभी तीतर, कभी बटेर, कभी घोंघा का लजीज मांसाहारी भोजन भी पकता था.

बतौर कैदी होकर यह सब ‘जायज’ कार्य करना इसलिए संभव था क्योंकि राज्य में अपनी सरकार थी. दिल्ली में भी दोस्त ही पावर के हेड थे. बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन जब झांरखंड के सीएम थे तब भी लालू यादव को रांची बिरसा मुंडा केन्द्रीय जेल के अंदर पेट भर नारियल पानी पीने को मिलता था. सैकड़ों लोग रोज मिलते थे. लालू यादव ने स्वयं अपने कई मित्रों से कहा था, ‘ यहां तो घर से भी ज्यादा आराम है’.

पहली बार लालू यादव को झटका लगा है. राजनीति के दिग्गज काफी परेशान इस बात को लेकर हैं कि महाभारत नजदीक है और युद्ध की तैयारी कौन करवाएगा? लेकिन उनको समझना चाहिए कि समय बदल गया है. समय के अनुसार व्यक्ति को अपनी आदतों में भी बदलाव लाना चाहिए. लेकिन लगता है लालू यादव ने प्रण कर लिया है कि ‘हम सुधरेंगे नहीं’.

ऐश्वर्या यादव के लिए राजनीति में आसान नहीं हैं राहें

क्या ऐश्वर्या राय अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगी? क्या ऐश्वर्या राय का बिहार के छपरा (सारण) सीट से 2019 में चुनाव लड़ने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा? सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल ऐसा ही लग रहा है. आरजेडी सूत्रों के मुताबिक, लालू यादव की बहू और बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की पत्नी ऐश्वर्या राय का अगला लोकसभा चुनाव लड़ना संभव नहीं हो सकता, क्योंकि कानूनी तौर पर उनकी उम्र अभी चुनाव लड़ने की नहीं हुई है.

लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार की उम्र 25 साल होना जरूरी है. लेकिन, सूत्रों के मुताबिक, ऐश्वर्या की उम्र अभी 23 साल है. अगले साल 10 फरवरी को उनकी उम्र 24 साल ही हो पाएगी. विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक, ऐश्वर्या राय की मैट्रिक के सर्टिफिकेट के मुताबिक, जन्म तिथि 10 फरवरी 1995 है. ऐसे में वो 10 फरवरी 2020 को 25 साल की हो रही हैं. लिहाजा उसके पहले उनके लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ना संभव ही नहीं है.

हालांकि राजनीतिक गलियारों में पिछले कई महीनों से उनके सारण (छपरा) लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने को लेकर कयास लगाए जाते रहे हैं. लेकिन, फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है.

दरअसल, लालू परिवार के भीतर पहले से ही सत्ता संघर्ष चल रहा है. परिवार में तीन ध्रुव बन गए हैं. लालू यादव के दोनों बेटों और बेटी मीसा भारती का. लालू यादव ने पहले ही अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर दिया है. पहले नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम और फिर सरकार से बाहर होने पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाकर तेजस्वी को लालू ने आगे कर दिया है. आरजेडी कार्यकर्ताओं और नेताओं के भीतर भी यह संदेश दे दिया गया है कि अगला चुनाव जीतने की सूरत में मुख्यमंत्री की कुर्सी तेजस्वी को ही मिलेगी.

लेकिन, दूसरी तरफ, लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव रह-रह कर अपनी नाराजगी का अपने ढंग से इजहार करते रहते हैं. तेजस्वी को अर्जुन और अपने-आप को कृष्ण (अर्जुन का सारथी) बताने वाले तेजप्रताप कभी-कभी पार्टी के भीतर अपनी उपेक्षा से नाराज हो जाते हैं. हकीकत तो यही है कि खुद लालू यादव भी पहले तेजप्रताप को राजनीति में नहीं उतारना चाहते थे. लेकिन, बाद में परिवार के भीतर दबाव के बाद उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त उन्हें मैदान में उतार दिया था. तेजप्रताप यादव नीतीश सरकार में मंत्री भी बने थे. फिलहाल विधायक हैं.

लेकिन, अब तेजप्रताप यादव की शादी भूतपूर्व मुख्यमंत्री दारोगा राय के परिवार में होने के बाद उनकी भी राजनीतिक हसरतें बढ़ने लगी हैं. खुद के बजाए उनकी पत्नी ऐश्वर्या राय की राजनीतिक एंट्री की संभावना के चलते परिवार के भीतर सत्ता संघर्ष बढ़ने लगा है.

हालांकि सूत्र यह भी बता रहे हैं कि आरजेडी विधायक और ऐश्वर्या राय के पिता चंद्रिका राय भी लालू यादव की बदौलत अब अपने-आप को राजनीति में जिंदा रखने की कोशिश में हैं. वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेल्लारी का भी मानना है कि ‘चंद्रिका राय ने खुद को राजनीति में अब स्थायी तौर पर स्थापित कर लिया है.’ उनका कहना है कि ‘अपनी बेटी ऐश्वर्या राय में चंद्रिका राय बहुत संभावना देख रहे हैं.’

आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की बहू ऐश्वर्या राय को लेकर सियासी चर्चा काफी पहले से ही हो रही है. इसी साल 12 मई को लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की ऐश्वर्या राय से शादी हुई है. शादी के बाद से ही उनके चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा हो रही है. आरजेडी नेता भी दबी जुबान से ही स्वीकार करते हैं कि ऐश्वर्या की राजनीति में एंट्री तो होगी ही.

ऐश्वर्या राय बिहार के सारण जिले के परसा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चंद्रिका राय की बेटी हैं. जबकि दादा दारोगा राय बिहार के मुख्यमंत्री भी थे. राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखने वाली ऐश्वर्या की शादी भी बिहार के दूसरे राजनीतिक परिवार में हुई तो अटकलों का बाजर गर्म हो गया था. आरजेडी के कई पोस्टर में उनकी तस्वीरों के सामने आने के बाद तो करीब-करीब साफ हो गया कि आज नहीं तो कल ऐश्वर्या राजनीति के मैदान में कदम तो रखेंगी ही.

लेकिन, ये 2019 में मुमकिन होता नहीं दिख रहा है. हालांकि इस सवाल पर आरजेडी के विधायक और ऐश्वर्या राय के पिता चंद्रिका राय कुछ भी बोलने से बचते नजर आ रहे हैं. फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान चंद्रिका राय ने कहा कि ‘चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने को लेकर फैसला तो राष्ट्रीय अध्यक्ष (लालू यादव ) को करना है.’ लेकिन, उम्र के सवाल पर उन्होंने कुछ भी बोलने से मना कर दिया.

कहा यह भी जा रहा है कि लालू यादव के बड़े बेटे और चंद्रिका राय के दामाद तेजप्रताप यादव को ‘गाइडेंस’ चंद्रिका राय की तरफ से भी मिल रहा है. सूत्रों के मुताबिक, तेजप्रताप यादव की चंद्रिका राय के यहां आना-जाना और राजनीतिक सलाह लेना खूब हो रहा है. परिवार के भीतर तेजप्रताप की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का बढ़ना और पत्नी ऐश्वर्या की राजनीति में आने की कोशिश के चलते परिवार में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है.

इसके अलावा बेटी मीसा भारती फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं. लेकिन, उनका भी मन दिल्ली से ज्यादा बिहार की सियासत में ही ज्यादा लगता है. लालू-राबड़ी संतान में सबसे बड़ी होने के चलते उन्हें भी विरासत पर हक ज्यादा बड़ा दिखता है.

लालू यादव को इस बात का एहसास है. सूत्रों के मुताबिक, तभी तो लालू फिलहाल जेल जाने से पहले भी परिवार के भीतर शांति का पाठ पढ़ा कर गए हैं. लेकिन, परिवार के भीतर महत्वाकांक्षा पर लालू का शांति-संदेश कितना कारगर होगा, इसको लेकर अभी प्रश्न-चिन्ह है. फिलहाल लालू परिवार की बड़ी बहू की राजनीतिक हसरत 2019 तक दबी-दबी सी दिख रही है. लेकिन, अगले विधानसभा चुनाव तक चुनाव लड़ने की उम्र होने पर लालू परिवार के भीतर सियासत के नए रंग-रूप देखने को मिल सकते हैं.