पटाखों के शोर को दबाने के लिए ‘शमी’ के नाम पर खेल रहे मुस्लिम कार्ड

हिंदुस्तान पर पाकिस्तान ने एक छोटी सी जीत क्या हासिल की कि भारत में पाकिस्तान परास्त लोग और मीडिया मुखर हो उठा, कुछ कलाम से तो कुछ पटाखों से। इस सब में खिलाड़ियों कि मनोदशा कोई जानने कि कोशिश कर रहा है। बेटी आई• सी• यू• मे थी, बाप ने कहा पहले भारत को मैच जितवा लूंगा तब उसे देखने जाऊंगा , 6 विकेट निकाल कर अकेले मैच जितवाकर फिर बेटी से मिलने जाता है! क्यूंकी उसके लिए देश पहले था! और आज उसी मोहम्मद शमी को पाकिस्तान भेजा जा रहा है। यह वह जाहिल हैं जिनके बाप- दादा ने कभी गेंद और बल्ला भी नही पकड़ा होगा! 2021 जून विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल याद है ना ? पूरी टीम मे सिर्फ यही अकेला लड़ रहा था! प्रदर्शन के नाम पर नही धर्म के नाम पर निशाना बनाया जा रहा है। मोहम्मद शमी की बेटी आयरा की सरस्वती पूजा करते हुए तस्वीर देख कर इस्लामी कट्टरपंथियों ने उन पर निशाना साधा था। पत्नी के साथ तस्वीर पर उनका मुस्लिम होने का सर्टिफिकेट रद्द किया गया था। शिवलिंग की तस्वीर लगाने पर कट्टर मुस्लिमों ने ही उन्हें ट्रोल किया था। एकदिन खामोश रहने वाले भी इसकी जद मे आयेंगे।

राजविरेन्द्र वसिष्ठ, स्पोर्ट्स डेस्क – चंडीगढ़ :

क्रिकेट में हिंदुस्तान कि हार के बाद आए पाकिस्तानी मंत्री के ब्यान ” यह इस्लाम कि गैर इस्लामी मुल्क पर फतेह है” के बाद तो भारत के कई हिस्सों में पटाहे फोड़े गए मानो पाकिस्तान ने सच्म्च हिंदस्तान पर फतह हासिल कर ली है ओर अब यहाँ (भारत में) इस्लामी राज आ गया है। भारत के कई हिस्सों में इस्लामी कट्टरपंथियों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। देर रात पटाखे फोड़े गए। राष्ट्रीय राजधानी में भी आतिशबाजी हुई। पूर्व सलामी बल्लेबाजों वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर ने इसकी आलोचना की। लेकिन, लिबरल गिरोह विशेष मोहम्मद शमी को ढाल बना कर ले आया और कहने लगा कि मुस्लिम होने की वजह से उन्हें ‘गद्दार’ कहा जा रहा है।इन पाकिस्तान परस्तों पर तंज़ करते हुए पूर्व क्रिकेटर सहवाग और गौतम गंभीर ने तीखे तंज़ किए जिससे यहाँ का लिबरल मीडिया बौखला गया।

मोहम्मद शमी को किसने निशाना बनाया? कितने लोगों ने उनकी आलोचना की? ये कोई नहीं बता रहा। सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा आलोचना कप्तान विराट कोहली की हुई है, मैच हारने के बाद से। रोहित शर्मा भी निशाने पर रहे हैं। तो इसका मतलब क्या है कि विराट और रोहित को हिन्दू होने की वजह से निशाना बनाया गया? लिबरल गिरोह के लॉजिक में दम नहीं है। पटाखों का शोर दबाने के लिए मोहम्मद शमी का नाम लाया गया है।

अभी तो भला मोहम्मद शमी राष्ट्रीय टीम का हिस्सा हैं और उन्हें प्लेयिंग इलेवन में भी जगह मिली। वहीं एक अन्य तेज़ गेंदबाज शार्दुल ठाकुर बाहर बैठे हुए हैं। लेकिन, एक समय ऐसा भी था जब पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर मोईन खान ने 2015 विश्व कप के समय आरोप लगाया था कि मजहब की वजह से मोहम्मद शमी को श्रीलंका के विरुद्ध प्लेयिंग इलेवन से बाहर कर दिया गया। उस मैच में यजुवेंद्र चाहल को भी आराम दिया गया था।

आज मोहम्मद शमी का नाम लेकर ‘मुस्लिम कार्ड’ खेला जा रहा है, ताकि देश के कई हिस्सों में भारतीय टीम की हार के जश्न में पटाखों से जो आतिशबाजी हुई है, उसकी चर्चा न हो। लेकिन, इन्हीं इस्लामी कट्टरपंथियों ने कभी मोहम्मद शमी का मुस्लिम होने का सर्टिफिकेट रद्द कर दिया था। उनकी बेटी आयरा की सरस्वती पूजा करते हुए तस्वीर देख कर इस्लामी कट्टरपंथियों ने उन पर निशाना साधा था और मूर्तिपूजा से दूर रहने को कहा था।

इस्लामिक कट्टरपंथियों ने इस तस्वीर को देख शिकायत किया था कि भारत के मुस्लिम उनके जैसे मुस्लिमों के कारण धीरे-धीरे हिंदू बन रहे हैं। शमी से पूछा गया था कि जब वे मुस्लिम हैं, तो आखिर उनकी बेटी हिंदू कैसे हो गई। इसके अलावा उनसे उनके नाम के आगे से मोहम्मद हटाने की सलाह भी दी गई थी। 2018 में शमी को नए साल की शुभकामनाएँ देने के लिए शिवा लिंगम की तस्वीर लगाने पर घेरा था। साथ ही उन्हें उनकी पत्नी के साथ फोटो खिंचवाने और सोशल मीडिया पर डालने के लिए भी ट्रोल किया जा चुका है।

गाली तो वीरेंद्र सहवाग को दी जा रही है, क्योंकि उन्होंने भारत की हार का जश्न मनाने वालों और पटाखे फोड़ने वालों से एक सवाल पूछ दिया कि दीवाली पर पटाखों के प्रतिबंध का ढोंग क्यों रचा जाता है? इतनी सी बात पर उन्हें ‘नाजी गंदगी, भाजपा का मॉडल, घृणा फैलाने वाला कीड़ा’ और न जाने क्या-क्या कहा गया। प्रशंसकों के निशाने पर तो पूरी भारतीय टीम है, केवल मोहम्मद शमी नहीं। विराट कोहली की तो लगातार आलोचना हो रही है।

घर के लिए वास्तु टिप्स

दीवान हेमंत किंगर:

वास्तु शास्त्र में न केवल जीवन में पैदा होने वाल वास्तु दोषों के बारे में वर्णन किया गया है। बल्कि इसमें इन वास्तु दोष को दूर करने के समाधान भी दिए गए हैं। तो आइए जानते हैं वास्तु दोष से पैदा होने वाले समस्याओं व उनके राहत पाने के लिए क्या समाधान करने चाहिए।

  • अपने वंश की उन्नति के लिए घर के मुख्य द्वार पर अशोक के वृक्ष दोनों तरफ लगाएं।
  • यदि आपके मकान में उत्तर दिशा में स्टोररूम है तो उसे यहां से हटा दें। इस स्टोर रूम को अपने घर के पश्चिम भाग या नैऋत्य कोण में स्थापित करें।
  • यदि आपके घर का मुख्य द्वार दक्षिणमुखी है तो यह भी मुखिया के लिए हानिकारक होता है। इसके लिए मुख्य द्वार पर श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए।
  • अपने घर के ईशान कोण में स्थित पूजा-घर में अपनी बहुमूल्य वस्तुएं नहीं छिपानी चाहिए।
  • पूजाकक्ष की दीवारों का रंग सफेद हल्का पीला अथवा हल्का नीला होना चाहिए।
  • यदि आपके रसोई घर में रैफ्रिजरेटर नेऋत्य कोण में रखा है तो इसे वहां से हटाकर उत्तर या पश्चिम में रखें।
  • यदि घर में जल निकालने का स्थान/बोरिंग गलत दिशा में हो तो भवन में दक्षिण-पश्चिम की ओर मुख किए हुए पंचमुखी हनुमान जी की तस्वीर लगाएं।
  • यदि आपके भवन के ऊपर से विद्युत तरंगे (उच्च संवेदी) तार गुजती हों तो इन तारों से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा का घर से निकलने वाली ऊर्जा से प्रतिरोध होता है। इस प्रकारके भवन में ङ्क्षनबुओं से भरी प्लास्टिक पाइप को फर्श से सटाकर या थोड़ा जमीन में गाड़कर घर के इस पार से उस पार बिछा दें। निंबुओं से भरी पाइप दोनों और कम से कम तीन फुट बाहर निकलती रहे।
  • यदि भवन में प्रवेश करते ही सामने खाली दीवार पड़े तो उस पर भावभंगिमापूर्ण गणेश जी की तस्वीर लगाएं या स्वास्तिक यंत्र का प्रयोग करके घर के ऊर्जा वृत्तों को बढ़ाया जा सकता है।
  • अगर टायलट घर के पूर्वी कोने में है तो टॉयलट सीट इस प्रकार लगवाएं कि उस पर उत्तर की ओर मुख करके बैठ सकें या पश्चिम की ओर।
  • इस प्रकार घर की नकारात्मक ऊर्जा की जगह सकारात्मक ऊर्जा ले लेगी और सारे वास्तु दोष भी दूर हो जाएंगे। फिर आप जिस कार्य में हाथ डालेंगे, आपको सफलता निश्चित रूप से मिलेगी। वास्तु के अनुसार निम्र बातों का ध्यान भी अवश्य रखें:
  • घर के प्रवेश द्वार पर स्वस्तिक की आकृति लगाने से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  • जिस भूखंड या मकान पर मंदिर की पीठ पड़ती है, वहां रहने वाले दिन-ब-दिन आर्थिक व शारीरिक परेशानियों में घिरते रहते हैं।
  • समृद्धि की प्राप्ति के लिए नार्थ-ईस्ट दिशा में पानी का कलश अवश्य रखना चाहिए।
  • अशुद्ध वस्त्रों को घर के प्रवेश द्वार के मध्य में नहीं रखना चाहिए।
  • वास्तु के अनुसार रसोईघर में देवस्थान नहीं होना चाहिए।
  • घर में देवस्थान की दीवार से शौचालय की दीवार का सम्पर्क नहीं होना चाहिए।

स्त्री : पूजनीय बनाम सम्मानित

कार्येषु दासी, करणेषु मंत्री, भोज्येषु माता, शयनेषु रम्भा ।
धर्मानुकूला क्षमया धरित्री, भार्या च षाड्गुण्यवतीह दुर्लभा ॥

क्यों हम नारी के बारे में बात करते हैं तो हिंदू समाज की सभी देवियों को याद करते हैं ।हम चाहते हैं की खाना बनाने में वो माँ अन्नपूर्णा हो , सुंदरता उर्वशी के जैसी हो ,उसके अंदर प्रेम राधा जैसा हो ,धार्मिक मीरा जैसी हो ,बहु. लक्ष्मी जैसी हो ,पत्नी सीता जैसी हो ,ममता यशोधा जैसी ,धैर्य धरती माँ जैसा हो ,शीतलता गंगा की हो तो बुद्धि और बोली सरस्वती की हो और कभी उसका रौद्र रूप हो तो दुर्गा का हो । क्यों हम उसको एक सामान्य इंसान नहीं रहने देते । बल्कि उसमें देवी को देखना चाहतें हैं । हमने एक आदर्श नारी कि परिभाषा ही इतनी कठिन बनायी है कि शायद ही कोई नारी उस मापदंड में खरी उतर पायी है ।

रमन विज, नयी दिल्ली :

वरदान ? कभी देखो उस स्त्री की आँखों में जो मिट्टी की नहीं सजीव हैं ।गौर से देखो , घबराकर निगाहें मत फेरों कि उस सजीव स्त्री के साथ बलात्कार हुआ है ! देखो उसको भी जिसके साथ भयानक घरेलू हिंसा हुयी है और वहाँ तक भी जाओ जहां कोई मंडप या पंडाल नहीं सरे राह स्त्री का अपमान हो रहा है , उसके अधिकारों पर डाका डाला जा रहा है ।
वह माँ बनी , यह सम्मान का विषय नहीं , यह तो निखालिस प्राकृतिक विधान है ।हाँ अगर माँ न बन पायी तो इस बात को सामाजिक कलंक से जोड़ दिया , यह कोई भी स्त्री बर्दाश्त क्यों करे ? मगर यह समाज इसी मुद्दे पर स्त्री को कलंकित करता रहता है ।यदि उसका पति मर जाता है तो समाज में स्त्री की स्थिति ही बदल जाती है ।उसे फिर देवी की तरह सजने नहीं दिया जाता , लोग उस पर अपने रूप को उजाड़ने की अनिवार्यता लागू कर देते हैं ।

तब ठीक है आप उस स्त्री को ही स्वीकार करोगे जो तुम्हारे नियंत्रण में रहे ।इसलिये ही शक्तिशालिनी, दुर्जन संहारिणी और अष्टभुजा वाली स्त्री की ताक़त को पहचान कर उससे दूर दूर ही रहे ।पहचान नहीं दी , पूजा उपासना के बहाने उसको मिट्टी की मूर्ति बना दिया ।जब न तब पंडाल सजाते रहे ।हाथ जोड़कर मौन व्रती तुम उस मूर्ति से कौन से वरदान माँगते हो ?

देवी है कि स्त्री है , स्त्री है कि देवी ?
इन दिनों को नवरात्रि कहा जाता है ।इन दिनों लोग व्रत रख कर देवी की मूर्ति के सामने मन्दिर में या पंडाल में हाथ जोड़कर खड़े दिखाई देते हैं । ये सब देवी के भक्तों में शुमार हैं , उसी देवी के जो स्त्री के रूप में मूर्तिमान है ।स्त्री रूप की आराधना करने वालों तुम ही तो हो जो अपने घर की स्त्री सताने में कोर कसर नहीं छोड़ते । तुम ही हो जो स्त्री के यौनांगों से जोड़कर साथी पुरुष को गालियाँ देते हो ।तुम्हारी मान्यता के अनुसार मनुष्य जीवन में स्त्री दोयम दर्जे पर है ।परिवार और समाज की मान्यताऐं तुमने बनाई हैं जिन पर स्त्री को आँखें बन्द कर के चलने का नियम जारी है ।गौर से देखा जाये तो चारों ओर से स्त्री की गतिशीलता पर शिकंजा है।

अब सवाल यह है कि आप किस स्त्री रूपा देवी की पूजा अर्चना में उपवास किये खड़े रहते हैं ? यदि देवी माता स्त्री जैसी स्त्री है तो उसका नौ दिन ही पूजा पाठ क्यों हो ,ताजिन्दगी  सम्मान क्यों नहीं ? मालुम हो कि आप किसी देवी देवता के वरदान से पैदा नहीं हुये और न हो सकते थे , यह तो प्राकृतिक चक्र के वैज्ञानिक संयोग का परिणाम है जिसके आधार माता पिता हैं ।स्त्री को देवी बनाकर स्त्री से अलग कर दिया ! आख़िर ऐसा क्यों करना पड़ा ? इसलिये कि स्त्री के लिये अपमान ,हिंसा और उत्पीडन के रास्ते खुले रखने थे जो उसे दासता की ओर लेजा सकें ।
पूछने का मन करता है कि ये क़ायदे इसलिये तो नहीं कि ऐसी नृशंसताऐं ही आपको शासक बनाती हैं ।इसमें सन्देह नहीं कि यह विभाजन पितृसत्ता का सुनहरा जाल है ।

कैप्टन हुए पूर्व ‘ ‘, अब आगे…..

कैप्टन ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा। पंजाब में बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिल रही है। अटकलें हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह आज मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी दोनों से इस्तीफा देने जा रहे हैं। सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक अमरिंदर ने इसकी घोषणा अपने समर्थक विधायकों के साथ बैठक में की है। कांग्रेस आलाकमान के आदेश पर आज शाम 5 बजे विधायक दल की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में विधायक अपना नया नेता चुन सकते हैं। 

सारिका तिवारी, चंडीगढ़ :

राजनीति में विकल्प कभी भी विलुप्त नहीं होते। भविष्य में क्या करना है यह सब आपके हाथ में है। मैंने अपने विकल्प खुले रखे हैं। मेरी अगली रणनीति मैं अपने पुराने साथियों एवं समर्थकों के साथ मिल कर तय करूंगा”। राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने के बाद पत्रकारों के समूह के सामने कैप्टन ने अपने विचार रखे।

40 असंतुष्ट विधायकों के कॉंग्रेस आलाकमान को लिखे पत्र के पश्चात कल पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने अचानक ही विधायक दल की बैठक बुला ली थी। इससे आहत कैप्टन ने जब कॉंग्रेस अलाकमान सोनिया गांधी से शिकायत की तो आलाकमान द्वारा ऊना इस्तीफा मांग लिया गया। अमरेन्द्र सिंह ने विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। राजभवन से बाहर आते हुए कैप्टन आहत तो थे परंतु निराश बिलकुल नहीं। उनके मन में अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर कुछ तो चल रहा था जिसका उन्होने अपने सम्बोधन में भी ज़िक्र किया

आज की इस घटना की नींव बहुत साल पहले ही रखी जा चुकी थी। कैप्टन ने प्रदेश की बागडोर तब संभाली जब कॉंग्रेस की ज़मीन हर तरफ ऊखड़ चुकी थी। देश भर में मोदी लहर थी और भाजपा एक के बाद एक राज्य जीतती जा रही थी। ऐसे में कैप्टन ने 2017 में प्रदेश कॉंग्रेस में एक नयी जान फूंकी। यह वह समय था जब कैप्टन की तूती बोलने लगी थी। पंजाब में कैप्टन ही कॉंग्रेस का पर्याय बन चुके थे। सूत्रों की मानें तो कॉंग्रेस के प्रथम परिवार को कैप्टन से डर लगने लगा था। पार्टी की बन्दिशों से मुक्त कप्तान अपनी मर्ज़ी के मालिक थे। ऐसे में कॉंग्रेस के प्रथम परिवार को नवजोत सिंह सिद्धू में आशा की किरण दिखाई पड़ी।

पंजाब में अपने आकाओं द्वारा हासिल कवच – कुंडल के कारण सिद्धू कैप्टन को उनही की ज़ुबान में जवाब देने लगे, बल्कि अधिक कठोरता से। सिद्धू ने मानो कैप्टन के खिलाफ एक जंग ही छेड़ दी थी। कई मौकों पर सिद्धू की उच्छृंखल ब्यानबाजी से आहत कैप्टन ने शीर्ष परिवार को गुहार भी लगाई। परंतु सिद्ध को तो इस शीर्ष परिवार ही ने प्रेषित किया था। सिद्धू की बढ़ती मनमानियाँ और आहात होते कैप्टन में ज़बान जंग तेज़ हो गयी जिसमें कैप्टन ने अपनी उम्र ओहदे और अपने संस्कारों का परिचय दिया।

पिछले कुछ महीनों में सिद्धू और कैप्टन से असंतुष्ट विधायकों ने खेमेबंदी कर ली थी। बार बार किए जा रहे आघातों से कैप्टन कई बार तो बच निकले पर उन्होने अपनी कमियों को दूर नहीं किया। आज की बैठक कैप्टन के लापरवाह रवैये का ही नतीजा थी।

अब बात करते हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह के अगले सियासी कदम क्या होगा?

आम आदमी पार्टी :

कैप्टन के राजनैतिक सलहकार रहे प्रशांत किशोर कुछ राजनैतिक कारणों से कॉंग्रेस को छोड़ गए थे। प्रशांत किशोर ने कॉंग्रेस के लिए अपनी सेवाएँ देनी बंद कर दीं थी लेकिन उनकी कैप्टन के साथ दोस्ती जस की तस है। अभी हाल ही में पता लगा है की प्रशांत किशोर आने वाले पंजाब चुनावों में आआपा के लिए राजनैतिक सलाहकार का काम संभालेंगे। तो क्या यह समझा जाये की कैप्टन अपना रुतबा रसूख पंजाब में आआपा को स्थापित करने में लगा देंगे? अभी यह कयास भर है। दूसरी ओर एक आलाकमान से आहत क्या कैप्टन दूसरे आलाकमान के लिए काम करेंगे? कहाँ कैप्टन का 52 साल का एक शानदार राजनैतिक जीवन और कहाँ आआपा की कॉंग्रेस जैसी ही अपरिपक्व राजनीति। आसार कम ही हैं।

भाजपा :

कैप्टन के लिए भाजपा एक बड़ा और शानदार विकल्प है। प्रधान मंत्री मोदी के साथ कैप्टन का समंजस्य बहुत बढ़िया है। केंद्र की सभी जनहित योजनाओं को कैप्टन ने पंजाब में यथावत लागू किया था। सीएए पर भी कैप्टन का केन्द्र के साथ पार्टी लाइन से हट कर दृढ़ता से खड़े होना भी दर्शाता है कि कैप्टन ने एक परिपक्व राजनेता और प्रशासक होने का परिचय दिया। कई मामलों में कैप्टन ने केंद्र से सामंजस्य बना कर भी कॉंग्रेस के शीर्ष परिवार की दुश्मनी मोल ली है। लेकिन विपक्ष भाजपा का किसान विरोधी चेहरा बनाने में सफल रही है। हालांकि आम जन इस विचार के हैं कि किसान आंदोलन को कॉंग्रेस और आम आदमी पार्टी का समर्थन खुले तौर पर प्राप्त है। लेकिन किसान विरोधी ठप्पे के कारण कैप्टन चाह कर भी भाजपा के साथ नहीं जा सकते।

अब आखिरी विकल्प कैप्टन अपनी पार्टी खड़ी करें। क्या वाई 6 महीनों में यह संभव है???

हिन्द में हिन्दी की त्रासदी — कब बनेगी हिन्दी, हिन्द के माथे की बिंदी ?

संविधान में वर्णित हिन्दी का इतिहास 

एस.के.जैन, पंचकुला:

एस.के.जैन 

आज हिंदुस्तान को आजाद हुए 74 वर्ष का एक लंबा अंतराल बीत चुका है। अखण्ड कहे जाने वाला हमारा देश 30 खंडों में बंटा हुआ है। यहाँ हर 20 कि.मी. के बाद बोलचाल की भाषा यानि (Dialect ) और हर 50 कि.मी. के बाद संस्कृति बदल जाती है।  याद करते हैं 14 सितंबर, 1949 का दिन।  उस दिन हिन्दी भाषा को “राजभाषा” का दर्जा दिया गया था।  भारतकोश के अनुसार हिन्दी को “राजभाषा” बनाने को लेकर संसद में 12 सितंबर से 14 सितंबर, 1949 को तीन दिन तक बहस हुई।  भारतकोश पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, संविधान सभा की भाषा विषयक बहस लगभग 278 पृष्ठों में मुद्रित हुई।  इसमें डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और गोपाल स्वामी आयंगर की अहम भूमिका रही थी।  भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1 ) में वर्णित किया गया कि भारत संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।  भारत संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा और अंग्रेजी भाषा का चलन आधिकारिक तौर पर 15 वर्ष बाद, प्रचलन से बाहर कर दिया जाएगा।  

 26 जनवरी, 1950 को जब हमारा संविधान लागू हुआ था तब देवनागरी लिपि में लिखी गई हिन्दी  सहित 14 भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं के रूप में आठवीं सूची में रखा गया था।  संविधान के अनुसार 26 जनवरी, 1965 को अंग्रेजी की जगह हिन्दी को पूरी तरह से देश की राजभाषा बनानी थी। लेकिन दक्षिण भारत के राज्यों में हिन्दी विरोधी आंदोलन के बीच वर्ष 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित किया गया था , जिसने 1965 के बाद अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में प्रचलन से बाहर करने का फैंसला पलट दिया था।  दक्षिण भारत के राज्यों विशेष रूप से तमिलनाडु (तब का मद्रास ) में आंदोलन और हिंसा का एक जबरदस्त ज़ोर चला और कई छात्रों ने आत्मदाह तक किया।  इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की कैबिनेट में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहीं इंदिरा गाँधी के प्रयासों से  समस्या का समाधान निकला, जिसके परिणाम स्वरूप 1967 को राजभाषा में संशोधन किया और यह माना गया कि अंग्रेजी देश की आधिकारिक भाषा रहेगी।  इस संशोधन के माध्यम से आज तक यह व्यवस्था जारी है। 

अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस और संयुक्त राष्ट्रसंघ :  

विश्व का पहला “अन्तर्राष्ट्रीय  हिन्दी सम्मेलन” 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ।  तत्पश्चात विश्व हिन्दी दिवस को हर वर्ष 10 जनवरी को मनाए जाने की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी ने  साल 2006 में की थी।  यानि इसे हर वर्ष आधिकारिक तौर पर मनाने में 31 साल लग गये, कारण आप सोच सकते हैं।  आज दुनिया के लगभग 170 देशों में हिन्दी किसी न किसी रूप में पढ़ाई व सिखाई जाती है।  संयुक्त राष्ट्र संघ बनते समय 4 राज भाषाएं यानि चीनी, अंग्रेजी, फ्रांसीसी और रूसी स्वीकृत की गई थीं।  जबकि 1993 में अरबी, स्पेनिश को जोड़ा गया लेकिन हिन्दी कहीं नहीं।  जो भाषाएं राष्ट्र संघ में आने के लिए मचल रहीं हैं उनमें बंगाली, मलय, पुर्तगाली, स्वाहिली और टर्किश भी कई सालों से दस्तक दे रही हैं। हिन्दी भाषा का दावा इसलिए सबसे मजबूत है क्योंकि हिन्दी दुनिया की चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।  

हिन्दी भाषा की त्रासदी : 

13 सितंबर, 1949 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने संसद में चर्चा के दौरान तीन प्रमुख बातें कहीं थी ; यथा – 1 ) किसी विदेशी भाषा से कोई भी राष्ट्र महान नहीं हो सकता। 2 ) कोई भी विदेशी भाषा  आमजन की भाषा नहीं हो सकती। 3 ) भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्म विश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिन्दी को अपनाना चाहिए।        कागज़ी तौर पर तो हिन्दी राजभाषा बनी रही लेकिन फलती- फूलती रही अंग्रेजी भाषा।  इसके बाद अंग्रेजी मजबूत होती गई।  “राष्ट्रभाषा प्रचार समिति” द्वारा प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर 1953 से हिन्दी दिवस का आयोजन किया जाता रहा और हिन्दी सिर्फ “14 सितंबर” तक ही सीमित होकर रह गई। यह कितना विसंगतिपूर्ण है कि हमारी कोई एक राष्ट्रभाषा नहीं है और देश का कोई एक सुनिश्चित नाम भी नहीं है।  भारतवर्ष, इंडिया, हिंदुस्तान नामों में पिछले 74 सालों से जंग जारी है।  विजय पताका अभी तक किसी को भी नहीं मिली।  

आज़ाद होने के बाद पूरे भारतवर्ष में एक भाषा और एक शिक्षा पद्धति की बातें उठी थीं।  लेकिन अफसोस प्रदेशवाद और जातिवाद के बोझ तले सब कुछ दबकर रह गया। दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों की अपनी एक राष्ट्रभाषा है।  वहाँ की शिक्षा प्रणाली, प्रशासन व न्यायपालिका के सभी काम उनकी अपनी भाषा में होते हैं।  वहाँ विद्यार्थियों के कंधों पर हमारे देश की तरह तीन-तीन भाषाओं का बोझ नहीं होता है।  मुझे यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हमारे देश के प्रसिद्ध समाचार पत्रों में ही करीब 30 प्रतिशत अंग्रेजी के शब्द देवनागरी में पढ़ने को मिलते हैं।  दूरदर्शन और समाचार पत्रों के विज्ञापनों में हिन्दी  शब्दों को रोमन लिपि में लिखा दिखाते हैं।  कहने का तात्पर्य यह है कि अगर समाचार पत्रों और टी.वी. चैनलों में हिन्दी की यह दुर्दशा है तो कैसे बनेगी हिन्दी, हिन्द के माथे की बिन्दी।  केंद्र व राज्य सरकारों की 9 हज़ार के लगभग वेबसाइट्स हैं , जो पहले अंग्रेजी के खुलती हैं फिर इनका हिन्दी विकल्प आता है।  यही हाल हिन्दी में कंप्यूटर टाइपिंग का है।  टाइप करते वक्त उसे रोमन लिपि में टाइप किया जाता है और बाद में उसे देवनागरी में बदला जाता है।  इसमें भी कई फॉन्ट होते हैं।  कई फॉन्ट तो कई कम्प्यूटरों में खुलते ही नहीं।  यह हिन्दी के साथ घोर अन्याय है।  चीन, रूस, जापान, फ़्रांस, यू.ए.ई. यहां तक की पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित बहुत से दूसरे देश कम्प्यूटर पर अपनी एक भाषा और एक फॉन्ट में काम करते हैं। 

हम किसी भी प्रान्त, जाति, धर्म के हों, लेकिन जब बात एक देश की हो तो भाषा व लिपि भी एक ही जरूरी है।  तभी हिन्दी के अच्छे दिन आएंगे। अभी  हाल ही में अरब अमीरात ने एक ऐतिहासिक फैंसला लेते हुए अरबी व अंग्रेजी के बाद हिन्दी को अपनी तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल कर लिया है। यह हमारे लिए बहुत ही गर्व की बात है और एक हम हैं कि 74 सालों में हिन्दी को वह दर्जा नहीं दे सके जो इसे देना चाहिए।  एक समाचार के मुताबिक तीन साल पहले हिन्दीभाषी उत्तरप्रदेश बोर्ड की परीक्षा में करीब 10 लाख बच्चे हिन्दी में  अंउत्तीर्ण   हो गए थे। यह हमारे लिए बहुत ही शर्म की बात है।  सोचिए अगर उत्तर भारत में  हिन्दी   का यह हाल है तो भारत के दूसरे प्रांतों का क्या हाल होगा।  इसका सबसे बड़ा कारण है कि कई दशकों से विद्यार्थियों को तमाम माध्यमों द्वारा यह बात सिखाई गई है कि जीवन में अगर कुछ करना है तो अंग्रेजी सीखों और उसी पर ध्यान दो। 

उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी अंग्रेजी में पूछे गए सवालों का जवाब हिन्दी में देते हैं।  हम इसे राष्ट्रवाद कहेंगे।  इसके विपरीत दक्षिण भारत से काँग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा था कि  हिन्दी   हम पर लादी जा रही है।  वह अंग्रेजी के विद्वान माने जाते हैं और उन्होंने कई अंग्रेजी में पुस्तकें लिखी हैं।  मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि आपने जब अंग्रेजी सीखी तो तब आप पर क्या वह लादी गई थी तो तब आपने इसका विरोध क्यों नहीं किया ? अंग्रेजी साम्राज्य के चलते अगर हम अंग्रेजी सीख सकते हैं तो क्या कारण है कि आज़ादी के बाद हम अपने ही देश में आज़ाद रहते  हुए अपनी भाषा  हिन्दी  नहीं सीख सकते।  इसका एक ही सबसे बड़ा कारण समझ में आता है और वह है कमज़ोर प्रजातंत्र यानि loose democracy , ऐसा मेरा मानना है।  

 कब तक शापित रहेगी हिन्दी  :

स्वतंत्रता के सूर्योदय के साथ जिस हिन्दी को भारत माँ के माथे की बिन्दी बनना चाहिए उस हिन्दी की हालत आज़ादी के 74 वर्षों के बाद भी गुलामी के 200 वर्षों से बदतर सिद्ध हो रही है।  जिस  हिन्दी  को आगे बढ़ाने के लिए अहिन्दी भाषी बंगाली राजा राम मोहन राय, ब्रह्म समाज के नेता केशवचन्द्र, सुभाष चंद्र बोस और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने आस्था के दीये जलाए, वही हिन्दी आज अपने ही घर में बिलख रही है।  आज हिन्दी अपनों से हारी है अब  हिन्दी  अस्मिता की पहचान नही है। आजादी मिलते ही हम पूरे गुलाम हो गये। अब अंग्रेजी मम्मी-डैडी की संस्कृति गाँव के चौपाल तक पहुँच गई है।  पिता जी के अलावा बाकी सब अंकल हो गए है। जहां तक कि पालतू कुत्तों का भी अंग्रेजीकरण हो गया है।  कालू, झबरु, मोती अब टाइसन, बुलैट, वगैरा हो गए हैं । कुकरमुत्ते की तरह उगते अँग्रेजी स्कूल ग्रामीण भारतीय संस्कृति को विनष्ट करने पर तुले हैं।  जिस देश के लिए न जाने कितने जवानों ने स्वयं को बलिदान कर दिया , उस देश के लिए हमे मातृभाषा के प्रति मोहभंग करना पड़े तथा थोड़ी सी परेशानी उठानी पड़े तो उन जवानों के त्याग की तुलना में हमारा त्याग बहुत कम होगा।  हमें यह त्याग करना पड़ेगा क्योंकि राष्ट्र की एकता आज हमारे लिए सर्वोपरि है। 

वैसे तो हिंदी विदेशों में मारीशस, फिज़ी, सूरीनाम जैसे देशों में पल्लवित व पुष्पित है।  हॉलेंड में इसका तो पढ़ाई के साथ -साथ शोध कार्य भी हो रहा है।  परन्तु आज हिन्दीअपने ही घरों, में अंग्रेजी के आगे हार गई है।  इतने हिन्दी भाषियों के रहते आखिर कब तक अभिशप्त रहेगी हिन्दी ?

विदेशी हिन्दी सेवियों के अवदान : 

इस  हिन्दी  दिवस के महान अवसर पर  हिन्दी  के विद्वानों, लेखकों, साहित्कारों, आदि की बातें तो होंगी ही।  इनमें लगभग सभी हिन्दी पट्टी के ही होंगे।  क्या ही अच्छा हो कि इस अवसर पर हम उन हिन्दी सेवियों के अवदान को भी रेखांकित करें जो मूलत: भारतीय नहीं हैं।  उनकी मातृभाषा भी  हिन्दी  नहीं हैं, बावजूद इसके उन्होंने हिन्दी सीखी, आगे की पीढ़ी को भी पढ़ाया और अपनी रचनाओं से हिन्दी भाषा को समृद्ध किया।  

हिंदी सेवियों में पहला नाम फ़ादर कामिल बुल्के का सामने आता है।  वह आजीवन हिंदी की सेवा में जुटे रहे।  वे हिंदी अंग्रेजी शब्दकोश के निर्माण के लिए सामग्री जुटाने में सतत  प्रयत्नशील रहे।  उन्होंने इसमें 40 हजार नए शब्द जोड़े।  बाइबल का हिंदी अनुवाद भी किया।  वे रामचरित मानस के उदभट विद्वान थे और लगभग पूरा रामचरित मानस उन्हें कंठस्त था।  इसी क्रम में 85 साल की कात्सू सान भी आती हैं। वे 1956 में भारत आंई थी।  भारत को लेकर उनकी दिलचस्पी भगवान बौद्ध के कारण बढ़ी थी।  अब भारत ही उन्हें अपना देश लगता है और वे मानती है कि भारत संसार का आध्यात्मिक विश्व गुरु है। कात्सू जी ने हिन्दी काका साहेब कालेलकर जी से सीखी थी और 40 वर्ष पहले भारत की नागरिकता ग्रहण कर ली थी।  कुछ माह पहले राजधानी दिल्ली में संसद भवन की नई बनने वाली इमारत के भूमि पूजन के बाद सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया था। जिसमें बौद्ध , यहूदी, पारसी, बहाई , सिख, ईसाई , जैन, मुस्लिम और हिन्दू धर्मों की प्रार्थनाएं की गईं । 

ब्रिटेन से संबंधित जिलियन राइट का नाम भी सामने आता है। वे लंदन में बी.बी.सी. में भी काम करती थीं ।  सत्तर के दशक में भारत आने के बाद राही मासूम रज़ा के उपन्यास “आधा गाँव” व श्री लाल शुक्ला के उपन्यास “राग दरबारी” का अनुवाद अंग्रेजी में कर दिया।  भारत के चीन से संबंध कोई बहुत सौहार्दपूर्ण न भी रहे हों पर भारत चीन के हिन्दी  प्रेमी प्रो. च्यांग चिंगख्वेइ के प्रति सम्मान का भाव अवश्य ही रखता है।  वे दशकों से पेइचिंग यूनिवर्सिटी में हिन्दी पढ़ा रहे हैं।  साल 2014 में जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी (एन.डी.ए) की सरकार बनी तो हिन्दी भाषा को सरकारी कामकाज व विदेश नीति तक में तरजीह मिलने लगी।  अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी हिन्दी भाषा को प्राथमिकता दी जाने लगी है।  इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा पाठ्यक्रम भी हिंदी भाषा में शुरू किए जा रहे हैं।  हिन्दी के अच्छे दिन आने की संभावनाएं बढ़ती नज़र आ रही हैं और शायद हिन्दी को अपना वो अधिकार मिल सके जिसकी वह पिछले 74 वर्षों से हकदार थी।

इस निर्भया के लिए सरकार और जनता चुप क्यों है?

रमन विज, नयी दिल्ली:

दिल्ली में निर्भया के साथ दुष्कर्म करने के विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन करने वाली आम जनता नहीं थी लेकिन सत्ता के लालची नेता और उनके समर्थन करने वाले गुंडे ही थे। यह कहना कोई गलत नहीं होगा आज का समय देखकर दिल्ली निर्भया कांड के बाद आए दिन एक निर्भया कांड होता है लेकिन बड़े दुख की बात है न सरकार और ना उनके समर्थन करने वाले कभी सड़क पर नजर नहीं आते हैं। तो इससे तो यह साबित होता है कि सरकार और उनके समर्थन करने वाले दोनों गुंडे ही हैं।

गोदी मीडिया भी इस खबर को 24 घंटे तक चला नहीं पा रही है क्योंकि समाज में देश में उसे जहर फैलाने से फुर्सत ही नहीं है। उसे तो बस पाकिस्तान अफगानिस्तान यही करना है हमारे समाज में हमारी बेटियों के साथ क्या हो रहा है इससे इस गोदी मीडिया जो गुंडों के हाथ बिकी हुई है कोई लेना-देना नहीं।

संगम विहार से परिवार वाले थाना गए कलेक्टर के पास गए लेकिन वहां से अभी तक कोई मदद नहीं मिली और न मिलने की उम्मीद नजर आ रही है हम अपने समाज को इस गंदी राजनीति के चक्कर में कहां से कहां ले कर जा रहे हैं। ठीक है आप किसी भी पार्टी को समर्थन दो यह आपकी अपनी स्वीकृति है लेकिन जब समाज में बहू बेटी पर कोई आंच आए तो इसी समाज को आगे आना चाहिए ना की कोई राजनैतिक पार्टी को गाली देना हो तो हम इकट्ठा होकर मशाले जलाकर रोड पर हंगामा करते हुए नजर आते हैं,

अभी हम पाकिस्तान अफगानिस्तान के लिए रोड पर हंगामा करते हैं, तो क्या आज हम अपनी बहन बेटी बहू के लिए सरकार से न्याय नहीं मांग सकते हैं? क्या हमारा अस्तित्व इतना नीचे गिर गया कि हमें पार्टी से ऊपर कुछ दिखाई नहीं देता?

मैं, रमन विज, केंद्र सरकार से यह पूछना चाहता हूं कि आप पूरे बहुमत से हिंदुस्तान में सरकार चला रहे हैं तो क्या आप विपक्ष को बस गाली देने के लिए सत्ता में बैठे हुए हैं? यह झूठ है भाषण देने के लिए हो आप ही भाषण देते हो, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ तो इस पर आपका मुंह क्यों नहीं खुल रहा हमारे यहां दिल्ली में ही कई महिला सांसद हैं क्या उन्हें दुख नहीं दिखाई दे रहा उन्हें तकलीफ नहीं हो रही यह सब देख कर ₹5 सिलेंडर पर बढ़ता था तो यह लोग रोड पर तांडव करती नजर आती थी विपक्ष को चूड़ियां और सारी भेजती थी आज इनके लिए क्या भेजा जाए?

निजीकरण व्यवस्था नहीं बल्कि पुनः रियासतीकरण है..

रमन विज, नई दिल्ली :

मात्र 70 साल में ही बाजी पलट गई। जहाँ से चले थे उसी जगह पहुंच रहे हैं हम। फर्क सिर्फ इतना कि दूसरा रास्ता चुना गया है और इसके परिणाम भी ज्यादा गम्भीर होंगे।

1947 जब देश आजाद हुआ था। नई नवेली सरकार और उनके मंन्त्री देश की रियासतों को आजाद भारत का हिस्सा बनाने के लिए परेशान थे। तकरीबन 562 रियासतों को भारत में मिलाने के लिए साम दाम दंड भेद की नीति अपना कर अपनी कोशिश जारी रखे हुए थे। क्योंकि देश की सारी संपत्ति इन्हीं रियासतों के पास थी।

कुछ रियासतों ने नखरे भी दिखाए, मगर कूटनीति और चतुरनीति से इन्हें आजाद भारत का हिस्सा बनाकर भारत के नाम से एक स्वतंत्र लोकतंत्र की स्थापना की। और फिर देश की सारी संपत्ति सिमट कर गणतांत्रिक पद्धति वाले संप्रभुता प्राप्त भारत के पास आ गई।

धीरे धीरे रेल, बैंक, कारखानों आदि का राष्ट्रीयकरण किया गया और एक शक्तिशाली भारत का निर्माण हुआ ।

मात्र 70 साल बाद समय और विचार ने करवट ली है। फासीवादी ताकतें पूंजीवादी व्यवस्था के कंधे पर सवार हो राजनीतिक परिवर्तन पर उतारू है। लाभ और मुनाफे की विशुद्ध वैचारिक सोच पर आधारित ये राजनीतिक देश को फिर से 1947 के पीछे ले जाना चाहती है। यानी देश की संपत्ति पुनः रियासतों के पास…….!

लेकिन ये नए रजवाड़े होंगे कुछ पूंजीपति घराने और कुछ बड़े बडे राजनेता, निजीकरण की आड़ में पुनः देश की सारी संपत्ति देश के चन्द पूंजीपति घरानो को सौंप देने की कुत्सित चाल चली जा रही है। उसके बाद क्या ..?

निश्चित ही लोकतंत्र का वजूद खत्म हो जाएगा। देश उन पूंजीपतियों के अधीन होगा जो परिवर्तित रजवाड़े की शक्ल में सामने उभर कर आयेंगे। शायद रजवाड़े से ज्यादा बेरहम और सख्त।

chandigarh Police

Police Files, Chandigarh – 26 August

”Purnoor’ Koral, CHANDIGARH – 26.08.2021

One arrested for consuming liquor at public place

Chandigarh Police arrested Sandeep Kumar R/o # 164, sector-55 Palsora, Chandigarh (age 24 years) while he was consuming liquor at a public place near 66 KV Vill- Kahjeri, Chandigarh on 25.08.2021. A case FIR No. 152, U/s 68-1(B) Punjab Police Act 2007 & 510 IPC has been registered in PS-36, Chandigarh. He was later bailed out.

Action against Gambling

  Chandigarh Police arrested Kuldeep (Age-20 Years), Noor Ishlam (Age-40 Years), Ikramul Ansari (Age-26 Years) and Jitender (Age-29 Years) all resident of Chandigarh while they were gambling on public place near Ram lilla ground, milk colony, Dhanas, Chandigarh on 25.08.2021. Total cash Rs. 2140/- was recovered from their possession. A case FIR No. 88, U/S 13-3-67 Gambling Act has been registered in PS-Sarangpur, Chandigarh. Later they were released on bail. Investigation of the case is in progress.

One arrested for using fake registration number

Chandigarh Police apprehended Kamaljit Singh @ Kamal (age 22 years) R/o # 1140/D, Bihar colony, nada road, Naya gaon (PB) while he was using fake Registration No. CH-01AW-5568 on motorcycle, whose actual number is CH-01AW-4064, near Dhanas Bridge on 24.08.2021. In this regard, a case FIR No. 86, U/S 473, 411 IPC has been registered in PS-Sarangpur, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

MV Theft

Srimiwas Rai R/o # 3285/1, Sector-38/D, Chandigarh reported that unknown person stole away complainant’s Activa No. CH-01BE-6516 parked at back side Mobile Market, Sector-22, Chandigarh on 19-08-2021. A case FIR No. 131, U/S 379 IPC has been registered in PS-17, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

Harpal Singh R/o # 1432, Sector-61, Chandigarh reported that unknown person stole away complainant’s Indica Car No. CH-04F-3533 parked near his residence on the night intervening 18/19-08-2021. A case FIR No. 153, U/S 379 IPC has been registered in PS-36, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

Missing/Abduction

A lady resident of Ram darbar, Chandigarh reported that her daughter aged about 17 years has been missing from her residence since 11.08.2021. A case FIR No. 114, U/S 363 IPC has been registered in PS-31, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

Dowry

A lady resident of Chandigarh alleged that her husband & others resident of Gurugram (HR) harassed complainant to bring dowry. A case FIR No. 53, U/S 406, 498-A IPC has been registered in PS-Women, Chandigarh. Investigation of case is in progress.

A lady resident of Chandigarh alleged that her husband & others resident of Delhi harassed complainant to bring dowry. A case FIR No. 54, U/S 406, 498-A IPC has been registered in PS-Women, Chandigarh. Investigation of case is in progress.

A lady resident of Chandigarh alleged that her husband & others resident of Mohali (PB) harassed complainant to bring dowry. A case FIR No. 55, U/S 406, 498-A IPC has been registered in PS-Women, Chandigarh. Investigation of case is in progress.

Cheating

A case FIR No. 67, U/S 420, 120B IPC has been registered in PS-IT-Park, Chandigarh on the complaint of Jagat Singh Mehra R/O # 722, Kishangarh, Chandigarh who reported that  unknown persons cheated with him Rs 1.25 lakh from his account. Investigation of the case is in progress.

A case FIR No. 87, U/S 420, 120B IPC has been registered in PS-Sarangpur, Chandigarh on the complaint of Om Prakash R/o # 1323, Small Flats, Dhanas, Chandigarh against unknown person who cheated complainant Rs. 21000/- online. Investigation of the case is in progress.     

पुरानी याद : राजस्थान मैं अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों की पेंशन बंद कर दी

जिस आपातकाल ने भारतीय लोकतन्त्र को दुनियाभर में शर्मिंदा किया था और हजारों लाखों को सलाहों के पीछे दाल दिया था अनेकों अनेक प्राताड़नाएं दीं थीं। इसे सामान्य नागरिक एमेर्जेंसी के नाम से जानते हैं। भाजपा नीट सरकारों ने माना कि वह उस दौर की इन्दिरा -संजय नीत कॉंग्रेस सरार की प्राताड़नाओं को दूर नहीं कर सकती लेकिन भाजपा सरकारों ने उन्हे स्वतन्त्रता सेनानियों के समकक्ष लोकतन्त्र प्रहरियों का नाम दिया और उन्हें मासिक सम्मान राशि भी प्रदान की। प्रदेश में जब तक भाजपा सरकार थी तब तक यह राशि लोकतन्त्र प्रहरियों के खाते में आतिर रही। ज्यों ही कॉंग्रेस सरकार आई तो समय बीतने के साथ यह सम्मान राशि बंद कर दी गयी।

राजस्थान के एक कॉंग्रेसी नेता ने इस बाबत पूछे जाने पर नाम न बताने की शर्त पर कहा कि “यह लोग स्वयं को इतना ही चौकीदार(प्रहरी) मानते हैं तो इंदिरा जी को क्यों सत्ता सौंपी? एमेर्जेंसी के पश्चात दशकों तक क्यों कॉंग्रेस को चुनते आए?” वह यहीं पर नहीं रुके यह तक बोल गए कि “हमसे पैसे ले कर हमीं को गरियाएंगे तो कहाँ तक सहे जाएँगे?”

करणीदान सिंह, सूरतगढ़:

भारत सरकार, हमारी सरकार ने अभी तक न सम्मान दिया न पेंशन शुरू की।

वसुंधरा सरकार ने लोकतंत्र सेनानी दिया था नाम

प्रदेश की पिछली वसुंधरा राजे सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सलाह पर आपातकाल के दौरान जेल गए 1120 मीसा और डीआरआई बंदियों को लोकतंत्र सेनानी नाम दिया था। वसुंधरा राजे सरकार ने इन 1120 लोगों को 20 हजार रुपये मासिक पेंशन, यात्रा भत्ता एवं नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा देने का निर्णय लिया था। मीसा और डीआरआई बंदियों को पेंशन और अन्य सुविधाएं देने के लिए वसुंधरा राजे सरकार ने लोकतंत्र रक्षक सम्मान निधि योजना लागू की थी। अशोक गहलोत सरकार ने सत्ता में आते ही इस योजना को बंद करने पर विचार करने की बात कही थी।

हो सकता है राजस्थान में अशोक गहलोत की कांग्रेसी सरकार द्वारा आज 20 अगस्त से शुरू की गई इंदिरा गांधी रसोई योजना के तहत 8 रुपए में भोजन करने वालों में लोकतंत्र सेनानी भी मजबूरी में भोजन ग्रहण करने लगे।

जिस कांग्रेस ने आपातकाल लगाया उसी कांग्रेस के राज में ₹8 की थाली भोजन करना पड़े।

हमारी भारत सरकार अगर लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान करें और पेंशन सुविधाएं दे तो कांग्रेस राज की ओर कोई देखना भी नहीं चाहेगा। लोकतंत्र सेनानियों में अनेक लोग संपन्न है उनको यह वाक्य अच्छे भी नहीं लगेंगे लेकिन अनेक लोग आज रोजी रोटी के मोहताज भी हैं। उम्र काफी होने के कारण वे कोई काम नहीं कर सकते। आखिर वे भूख मिटाने पेट पालने के लिए जाते हैं तो यह भाजपा नेताओं के लिए शर्मनाक स्थिति है।

यह हालत हमारी भारत सरकार और माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र जी मोदी के काल में देखने को मिले तो बहुत बुरा लगता है। लोकतंत्र सेनानी संगठन चलाने वाले पदाधिकारीगण और जनप्रतिनिधियों सांसदों विधायकों सोचो।

20-8-2020.( एक साल पहले इसी तारीख पर फेसबुक पर लगाया था। आज फेसबुक ने याद कराया)

बलात्कार की शिकार बच्ची के परिवार से कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मुलाकात की

नयी दिल्ली (ब्यूरो) डेमोक्रेटिक्फ्रोंट॰ कॉम

राजधानी दिल्ली के कैंट इलाके स्थित पुराना नांगल गांव में कथित रूप से बलात्कार की शिकार बच्ची के परिवार से कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मुलाकात की है। खबर है कि आरोपियों ने बलात्कार के बाद बच्ची की हत्या कर दी थी। इसके अलावा परिवार ने यह भी आरोप लगाया है कि श्मशान में पुजारी ने बगैर उनकी सहमति के बच्ची का अंतिम संस्कार किया और कहा कि मौत करंट लगने से हुई थी।

वो पानी भरने गई.
पुजारी ने देख, #बलात्कार कर दिया।
घर जाकर बता न दे, इसलिए क़त्ल भी कर दिया.
जबरदस्ती दाह संस्कार भी कर दिया कि कहीं पुलिस तक बात न पहुंच जाए।
उस क़त्ल होने वाली बच्ची की उम्र #9साल है.
ये मामला भारत की राजधानी दिल्ली का है.
हम क़त्ल हुई बच्ची की जात धर्म नहीं देखेंगे,

अब,
गोआ के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ये कह सकते है कि मां ने पानी भरने अकेले क्यों भेजा लड़की को!
या उत्तराखंड के पूर्व CM तीरथ रावत ये कह सकते है कि लड़की के कपड़े फटे होंगे।
विक्टिम ब्लेमिंग का खेल आप खेल सकते हो, क्योंकि आप बहुत बहुत नीच लोग है।

वो क़ातिल रेपिस्ट पुजारी राधेश्याम है, इसका नाम सुनने में इतना पवित्र लग रहा है! इसके अपराध को रेयर ऑफ रेयरेस्ट में काउंट किया जाना चाहिए।

नौ साल की बच्ची के साथ हुई इस क्रूरता के अपराधियों को कठोरतम सज़ा मिलनी चाहिए।