सत्ता की आपदा और विपक्ष का अवसर बन सकता है अविश्वास प्रस्ताव

सुशील पण्डित, डेमोक्रेटिक फ्रंट, यमुनानगर – 10 अगस्त :

विपक्षी दलों या यूं कहें इंडिया द्वारा सत्ता पक्ष के खिलाफ प्रस्तुत किए गए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर लगातार तीन दिनों से संसद में बहस जारी है। विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष की ओर से केंद्र सरकार को घेरने का काम किया जा रहा है। इस अविश्वास प्रस्ताव में जहाँ विपक्ष के नेता राहुल गांधी भाजपा सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा रहे हैं वंही सत्ताधारियों द्वारा स्वंम को बचाने और विपक्ष को 2014 से पहले का भारत दिखाया जा रहा है। अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्षी सदस्यों के साथ साथ जनता की भी खासी रूचि दिखाई दे रही है। भविष्य में 2024 के चुनाव को देखते हुए विपक्षी दलों द्वारा इंडिया के बैनर तले सत्तापक्ष को घेरने का प्रयास किया जा रहा है वंही विपक्ष की ओर से प्रस्तुत किए गए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी के मुद्दों से परिपूर्ण भाषण ने भाजपा को चुप्पी साधने के लिए मजबूर कर दिया।

भाटिया ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव का प्रभाव और परिणाम मौजूदा सरकार के प्रतिकूल हो सकता है। विपक्ष द्वारा प्रस्तुत अविश्वास प्रस्ताव का आधार मणिपुर की हिंसा तो है ही साथ ही अन्य ज्वंलत समस्याओं को भुनाने का काम विपक्षी पार्टियों द्वारा किया जा रहा है। मणिपुर हिंसा का जल्द समाधान जहां सत्ता पक्ष की नैतिक जिम्मेदारी बनती है वहीं भविष्य के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती भी है जिसका कुप्रभाव आगामी लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में सात प्रदेशों को सेवेन सिस्टर्स के समान माना जाता था तथा यदि मणिपुर की बात करें तो मणिपुर भारत के सुंदर और शांत राज्यों में से एक था जिसका उदाहरण दिया जाता था परंतु लंबे समय से चली आ रही हिंसा के चलते मणिपुर का वास्तविक स्वरूप मूल रूप से विपरीत हो चुका है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए सत्ता पक्ष की यह नैतिक व राजनीतिक जिम्मेदारी बनती है कि इस मुद्दे का समाधान जल्द से जल्द किया जाए।

अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा सत्ता पक्ष को अहंकारी बताया गया है वहीं राहुल गांधी ने रामायण का उदाहरण देते हुए भाजपा सरकार को रावण की संज्ञा देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि कहीं ना कहीं सत्ता पक्ष अहंकार के वशीभूत होकर देश में हो रहे दंगों, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, एवं अन्य समस्याओं का समाधान करने में विफल रहा है। गौतम ने कहा कि राहुल गांधी द्वारा संसद में कई गई बहस ने एनडीए सरकार को एक बार फिर सोचने पर विवश कर दिया है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था से कदाचित खिलवाड़ तो नहीं हुआ है। देश की राजनीति में अविश्वास प्रस्ताव का प्रस्तुत किया जाना,देश की वर्तमान प्रजातांत्रिक व्यवस्था की प्रतिकूलता एवं विपरीत परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

सत्ता पक्ष का एक के बाद एक विभिन्न मुद्दों पर घेराव करना और विपक्षी दलों का अपेक्षा से अधिक हावी होते दिखाई देना,अविश्वास प्रस्ताव की प्रासंगिकता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हो सकता है  देश के जनता की अपेक्षाएं मौजूदा सरकार से जुड़ी होते हैं परंतु कहीं ना कहीं जनता की अपेक्षाओं को उपेक्षाओं में परिवर्तित करने का कार्य सत्ता पक्ष के द्वारा किया जा रहा है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था और राजधर्म के प्रतिकूल है। 2024 के चुनाव से पहले भाजपा को अविश्वास प्रस्ताव के प्रभाव को समाप्त करना पड़ेगा तथा विपक्ष की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब धरातल पर देना होगा क्योंकि भाजपा के लिए अविश्वास प्रस्ताव से अधिक पीड़ादायक हो सकता है जनता की अपेक्षाओं पर खरा न उतरना। यदि केंद्र सरकार देश के ज्वलंत मुद्दों पर गंभीरता से कार्य करने का प्रयास करें तो कदाचित जनता का रुझान भाजपा सरकार की ओर पुनः हो सकता है अन्यथा विपक्षी दलों द्वारा किया गया इंडिया गठन सफल होने की कगार पर दिखाई दे रहा है और  परिणाम 2024 के चुनाव में भली भांति देखा जा सकता है। कदाचित यह अविश्वास प्रस्ताव विपक्षी दलों की निजी महत्वकांक्षा और सत्ता में वापसी एक पथरीला मार्ग हो सकता है परन्तु लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुसार यह सत्ताधारियों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।

अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा सत्ता पक्ष पर आरोप लगाना तथा देश की वर्तमान परिस्थितियों को यदि हम समानांतर दृष्टि से देखें तो कहीं ना कहीं यह अविश्वास प्रस्ताव राजनीति की एक स्वभाविक प्रक्रिया हो सकती है जो केंद्र सरकार के लिए क्रिया की प्रतिक्रिया सिद्ध हो सकती है।