नीति आयोग की बैठक में राज्यों ने रखे अपने विचार

दरअसल, राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केंद्र में गवर्निंग काउंसिल की चौथी बैठक आयोजित की गई। इस दौरान NITI आयोग की तरफ से ट्विटर के माध्यम से अद्यतन जानकारी साझा की जा रही थी। बैठक में करीब 25 प्रदेशों के प्रतिनिधियों (मुख्यमंत्री या राज्यपाल) ने शिरकत की। इस दौरान राज्यों को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग सबसे प्रमुख रही।
बैठक में सीएम चंद्रबाबू नायडू ने अपनी बात रखते हुए आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की। उन्होंने बैठक में आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने से केंद्र सरकार के इनकार का भी मामला उठाया। TDP प्रमुख की इस मांग का समर्थन करते हुए नीतीश कुमार ने बिहार के लिए भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग की।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि हमें बिहार जैसे पिछड़े राज्यों को देश के अन्य राज्यों के स्तर पर लाने की जरूरत है। NITI आयोग को इस बात का आंकलन करना चाहिए कि विशिष्ट राज्यों की जरूरतों के हिसाब से कैसे योजनाओं को क्रियान्वित किया जा सकता है। अर्से से बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग का भी पुरजोर समर्थन किया।

बैठक में अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू ने स्मार्ट सिटी के लिये पूर्वोत्तर राज्यों के मामले में वित्त पोषण जरूरतों में छूट देने पर जोर दिया। खांडू ने इटानगर में हवाईअड्डे के साथ पूर्वोत्तर राज्यों के लिये स्मार्ट सिटी के लिये वित्त पोषण में 90:10 का अनुपात रखने की बात कही। साथ ही अरूणाचल प्रदेश के लिये आईएएस, आईपीएस, आईएफएस के लिये अलग कैडर की मांग की।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि देश को 8 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश जैसे प्रमुख राज्यों को 10 से 12 प्रतिशत वृद्धि की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश पिछले चार साल से 10.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा कि हम तत्परता से केंद्र सरकार की प्रमुख योजनाओं को लागू कर रहे हैं। बच्चों के पोषण अभियान के तहत हम ‘वजन त्यौहार’ जैसी योजनाएं चला रहे हैं। हमने आयुष्मान भारत के लिये नोडल एजेंसी मनोनीत किया है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हम मृदा स्वास्थ्य केंद्र, सिंचाई सुविधाओं तथा ई-नाम जैसी विभिन्न योजनाओं के जरिये राज्य में किसानों की आय दोगुनी करने के लिये कदम उठा रहे हैं। उन्होंने NITI आयोग की संचालन परिषद को संबोधित करते हुए कि वह कृष क्षेत्र में एमएसपी लागू करने, गन्ना कीमतों, अनाज की खरीद, सिंचाई पर जोर दे रहे हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य, पोषण शिक्षा पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है।

उत्तराखंड मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश में ग्रीन बोनस की मांग रखी है, जिसका समर्थन मध्यप्रदेश CM शिवराज ने भी किया है। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मसले पर तंज कसते हुए कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को लेकर अगर कुछ मुख्यमंत्री राजनीति करना चाहते हैं तो NITI आयोग उनके लिए सही जगह नहीं है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बैठक में राज्य के 3500 ग्रामीण हाट के नवीनीकरण के लिए एग्री इन्फ्रा फंड में से निधि दिया जाये । इससे किसानों के माल की बिक्री बढ़ेगी। जीवनावश्यक वस्तु अधिनियम के तहत दूध की एमएसपी निश्चित की जाये। दूध पावडर पर 10% प्रोत्साहन सब्सिडी दी जाए। चीनी कारखानों को साफ्ट लोन की पुनर्रचना कर दिया जाए। साथ ही कर्ज चुकाने के समय मे 2 साल की बढ़ोतरी की बात कही।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने पर राज्य सरकार काम कर रही है। इसके लिए हरियाणा में किसान कल्याण प्राधिकरण का गठन किया गया गया है। गन्ने का भाव ₹330 प्रति क्विंटल जो देश में सर्वाधिक है।

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जल सूचकांक तैयार करने के लिये NITI आयोग की सराहना करते हुए कहा कि हमारा जोर कृषि विपणन, ई-नाम, सिंचाई, भामाशाह योजना, जल संरक्षण कार्यक्रम, स्वास्थ्य योजनाओं पर है।

असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि हमने इस साल बजट इलेक्ट्रॉनिक रूप से पेश किया। हम आयुष्मान भारत, पोषण अभियान और ग्राम स्वराज अभियान जैसी प्रमुख योजनाओं को प्रमुखता से लागू कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप तीन और सात साल के लिये योजना भी तैयार की है।

दिल्ली के राजभवन में सात दिन से धरने पर बैठे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समर्थन में चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपना समर्थन जताने के बाद इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट कर कहा कि मैंने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के माननीय मुख्यमंत्रियों के साथ आज माननीय प्रधानमंत्री से दिल्ली सरकार की समस्याओं का तत्काल समाधान करने का अनुरोध किया।

इससे पहले, अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था के सामने अब चुनौती वृद्धि दर को दहाई अंक तक पहुंचाने की है। जिसके लिए कई और महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे।

Osaka hit with 6.1 magnitude quake, no tsunami threat so far

 

One of the most powerful earthquakes to rock the Kansai region in decades struck Osaka and neighboring prefectures Monday morning, leaving at least three people dead and a number of others injured.

The earthquake, measuring magnitude 6.1 and a lower 6 on the Japanese seismic scale of 7, hit at 7:58 a.m. and occurred at a depth of about 13 km in the northern part of Osaka Prefecture, the Meteorological Agency said. No tsunami warning was issued.

A 9-year-old girl in Takatsuki, Osaka Prefecture, was confirmed dead after being struck when a wall surrounding a swimming pool fell on her as she walked by. Also in the prefecture, a man in his 80s from Ibaraki died after he was crushed by a bookshelf at his home, according to the Osaka Prefectural Government.

NHK also said an 80-year-old man in the city of Osaka died after being hit by a falling wall, while a number of other people were also feared dead.

A number of injuries and dozens of fires were reported from Osaka, Hyogo, Kyoto and Mie prefectures, according to local police and city authorities.

A water pipe under a road in Takatsuki burst and flooded the area, according to police.

Disaster management minister Hachiro Okonogi said people were reportedly trapped under a collapsed building. Authorities were working to confirm the details.

According to police and rescuers, two people were trapped in an elevator at a train station in Yamatokoriyama, Nara Prefecture. More people were believed to be stranded in elevators in apartment buildings, they said.

The weather agency issued a warning against landslides, adding that people should be cautious about possible aftershocks for a few days.

Chief Cabinet Secretary Yoshihide Suga, speaking in Tokyo, said the government was not aware of any reports of damage to nuclear power plants near Osaka, such as the Takahama and Oi plants in Fukui Prefecture.

Suga said that, following instructions issued by Prime Minister Shinzo Abe, the government set up an emergency task force to gather information about the situation. The government vowed to “do its utmost” to extend disaster-relief efforts and help with reconstruction, as well as provide the public with relevant information.

There is no immediate plan at the moment to open evacuation centers or supply food or drinking water to affected areas, Suga said, adding that the government has not so far received any request for Self-Defense Forces personnel to be dispatched.

The top government spokesman also urged residents in the hardest-hit areas, including the cities of Takatsuki, Hirakata and Ibaraki in Osaka Prefecture, to “stay calm” and be vigilant against “strong” aftershocks, which he said could be as strong as a lower 6 on the Japanese scale, over the next week or so.

A senior government official, meanwhile, expressed guarded optimism that damage due to Monday morning’s quake is unlikely to too widespread, citing what appears to be the “localized” nature of the quake and swift power recovery.

More than 60 bullet trains were canceled during the morning, and some expressways were also closed. Both Kansai International and Kobe airport temporarily closed but resumed operations after confirming that there was no structural damage to the facilities.

In Osaka Prefecture, power was restored after the quake left about 170,800 homes and buildings without electricity for several hours.

Osaka Gas said it turned off gas supplies to 108,000 households. Kansai Electric Power Co., meanwhile, said its nuclear plants in Fukui Prefecture were operating normally.

No abnormalities were reported at the Takahama, Mihama and Oi nuclear plants in the prefecture, according to Kepco.

The quake left many commuters stranded at stations or on streets during the morning rush hour after it disrupted shinkansen and other rail operations in western and central Japan.

The Tokaido Shinkansen Line connecting Osaka with Tokyo came to a halt in both directions shortly after the quake. As of 10 a.m., the section between Nagoya and Osaka remained closed.

A Japan Times staff member aboard a Tokyo-bound shinkansen said his train had stopped shortly before reaching Kakegawa Station in Shizuoka Prefecture.

Onboard announcements said safety checks following a quake-linked power outage between Tokyo and Odawara stations had led to the Tokyo-bound stoppage.

In a quake with an intensity of lower 6, it is difficult to remain standing and unsecured furniture may move or topple over, according to the meteorological agency.

Although its magnitude was relatively weak, the quake is believed to have triggered high-intensity tremors because of its shallow epicenter.

In the deadly 1995 Great Hanshin Earthquake in the region, which had a magnitude of 7.3 and recorded 7 on the seismic intensity scale, 6,434 people were killed.

It was the latest in a string of quakes over the last few days. A magnitude 4.6 quake hit southern Gunma Prefecture on Sunday, and a magnitude 4.5 temblor struck Chiba Prefecture on Saturday.

 

ख़राब पानी से लोग बीमार, स्थिति गंभीर

 

सिटी ब्यूटीफुल ट्राईसिटी के मौलीजागरां इलाके में बीते तीने दिन से गंदे पानी की सप्लाई जारी है। जिसके चलते करीब 30 से ज्यादा लोग उल्टी और दस्त रोग से ग्रसित हो गए हैं। इनमें से कुछ मनीमाजरा सिविल अस्पताल में भर्ती हैं तो कुछ को पंचकुला सेक्टर छह के अस्पताल में भर्ती हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो इलाज से संतुष्ट न होकर 32 सेक्टर चंडीगढ़ की ओर रूख कर रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक मौलीजागरां की हाउस नंबर 1600 और 1700 वाली लाईन में ही करीब दो दर्जन लोग गंदा पानी पीने से अस्पताल में भर्ती हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि गंदे पानी के कारण लोगों को दस्त और उल्टियां हो रही हैं। चक्कर आने ने जमीन पर लोग गिर रहे हैं जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है।

अस्पताल में भर्ती एक मरीज के परिजन ने बताया कि यहां मनीमाजरा के अस्पताल में मोलीजागरां के कई मरीज गंदे पानी के कारण भर्ती हैं। उन्हें गुलुकोज की बोतलें चढ़ाई जा रही हैं, उसके बाद भी उनकी हालत में सुधार नहीं हो रहा है। अस्पताल में डॉक्टर उन्हें यह तक नहीं बता रहे हैं कि उनके मरीज को बीमारी कौन सी हुई है। डॉक्टर सिर्फ मरीजों के परिजनों को यही बता रहे हैं कि गंदे पानी के सेवन से मरीजों में इनफैक्शन बहुत ज्यादा है। स्थानीय लोगों ने अर्थ प्रकाश का बताया कि पिछले तीन दिनों से नल में जो पानी आ रहा है उसमें साबुन की तरह कोई घुलनशील पदार्थ है। जिसकी वजह से कालोनी में अफरा-तफरी मची हुई। लोगों की यह भी शिकायत है कि कालौनी में पानी भी नियमित रूप से नहीं आता है

‘न्यू इंडिया 2022’ के लिए विकास एजेंडा 1 महीने में

नई दिल्ली: 

नीति आयोग ने कहा कि ‘न्यू इंडिया 2022’ के लिए विकास एजेंडा को राज्यों की टिप्पणियों के बाद एक महीने में अंतिम रूप दे दिया जाएगा. नीति आयोग इस दस्तावेज पर काफी समय से काम कर रहा है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने परिषद की हुई चौथी बैठक में इस मुद्दे को नहीं उठाये जाने के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘‘न्यू इंडिया 2022 के विकास एजेंडा को अभी भी सुधारा जा रहा है. इसे नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक में आज प्रस्तुत नहीं किया गया. हम चाहते हैं कि दस्तावेज में जमीनी हकीकतें दिखें.’’

आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने जोर दिये जाने पर कहा, ‘‘विकास योजना (दस्तावेज) लगभग तैयार है , इसे टिप्पणी के लिये जल्दी ही राज्यों के पास भेजा जाएगा. हमें अधिक परामर्श की जरूरत लगी. इसे एक-डेढ़ महीने में अंतिम रूप दे दिया जाएगा. ’’

India will release 5 Pakistani prisoners on Tuesday

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Despite the recurring strife in bilateral ties, India and Pakistan continue to work together on humanitarian issues. Official sources here said India will release five more Pakistani prisoners on Tuesday.

Pakistan has been seeking the release of 54 prisoners who, it says, have completed their sentences.

India and Pakistan had in March agreed to release women prisoners and those above 70 years of age. As per the understanding, India had sought visas for a team of medical experts to examine mentally ill and elderly prisoners before their release and repatriation.

Pakistan had last month said it expected India to reciprocate its “positive gestures” as reflected in the release of Indian fishermen.

The agreement arrived at over the humanitarian issue of prisoners resulted from a meeting between foreign minister Sushma Swaraj and Pakistani high commissioner Sohail Mahmood in 2017. India had handed over a list of 250 civilian prisoners and 94 fishermen to Pakistan in January. Pakistan had also shared a list of 58 civilian prisoners and 399 fishermen in its custody.

Sources here said the two sides remained in touch over the agreement to organise visits of medical experts from both countries to examine prisoners.

India and Pakistan had also agreed to resume visits by Joint Judicial Committee which looks into the issues of fishermen and prisoners in each other’s custody.

नीरव मोदी के पास छ: भारतीय पासपोर्ट

 

एजेंसियों को दो अरब डॉलर की कथित पीएनबी धोखाधड़ी के मामले में फरार नीरव मोदी के पास कम से कम आधा दर्जन भारतीय पासपोर्ट होने की बात पता चली है। इसके बाद उसके खिलाफ एक और प्राथमिकी दर्ज कराये जाने पर विचार किया जा रहा है। एजेंसियों के मुताबिक नीरव मोदी अभी बेल्जियम में हो सकता है और लगातार यात्राएं कर रहा है।

एजेंसी के अधिकारियों ने पाया कि नीरव के पासपोर्ट रद्द किये जाने के बावजूद वह लगातार यात्राएं कर रहा है। इस दौरान उसके पास छह पासपोर्ट होने का खुलासा हुआ। इनमें से दो पिछले कुछ समय से सक्रिय हैं।

सूत्रों ने बताया कि चार अन्य पासपोर्ट सक्रिय नहीं पाये गए हैं। उन्होंने बताया कि इन दो सक्रिय पासपोर्ट में से एक में नीरव का पूरा नाम लिखा हुआ है जबकि दूसरे में केवल उसका पहला नाम अंकित है और इस पासपोर्ट पर उसे ब्रिटेन का 40 माह का वीजा हासिल है। संभवत : इस प्रकार वह भारत द्वारा ज्ञात पहले पासपोर्ट को रद्द किये जाने के बावजूद लगातार यात्राएं कर रहा है।

सूत्रों ने बताया कि सरकार ने विदेश मंत्रालय के जरिये इंटरपोल को नीरव के दो रद्द पासपोर्ट की जानकारी दे दी थी लेकिन समान अंतरराष्ट्रीय तंत्र के अभाव में कई देशों में दस्तावेजों को वैधानिक तरीके से निरस्त नहीं किया जा सका है। भगोड़ा हीरा कारोबारी इसी का फायदा उठाते हुए संभावित तौर पर हवाई अड्डों और बंदरगाहों के जरिये यात्रा कर रहा है।

सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नीरव मोदी के खिलाफ एक और प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है और आंतरिक जांच पूरी होने के बाद उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि इस बात की भी जांच की जा रही है कि विभिन्न देशों की यात्रा के लिए नीरव दूसरे देश द्वारा जारी पासपोर्ट का इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है।

AILA for papers on H-1B queries, denials

 

A US association of immigration advocates recently filed a lawsuit against the United States Citizenship and Immigration services(USCIS), seeking to procure documents, which would explain increased scrutiny and denials of H-1B petitions by the government unit.

The American Immigration Lawyers Association(AILA), which filed this suit, is a voluntary body of 15,000 plus immigration attorneys and academicians. In 2017, AILA got reports from its members of an increasing number of requests for evidence (RFEs), followed by an increase in the rejection of H-1B visa applications. Concerned that these trends indicated a shift in USCIS adjudication standards, AILA filed two separate requests seeking documents (especially on wage and speciality occupation determination), which would explain these actions. USCIS failed to respond, which led to AILA now filing a lawsuit in the Columbia District Court.

For the 2018-19 season, which would permit successful H-1B visa applicants to work from October 1, USCIS received 1.90 lakh applications, far outstripping the annual quota of 85,000 (which includes 20,000 under the Masters Cap restricted for applicants having advanced degrees from US universities). For the applications (known as filings) made in April, the acknowledgements and RFEs have begun to trickle in, even as the bulk of the communication from USCIS is expected in July-August.

When an RFE is issued, the employers sponsoring the H-1B visa and their attorneys have to provide further evidence to prove the need of such as visa and eligibility of the beneficiary (employee) for whom the visa is sought.

Last calendar year, up to August 31, USCIS had issued 85,000 RFEs, an increase of 45% over 2016. Sheela Murthy, president & CEO, Murthy Law Firm says: “The RFE rate is similar to the high rate witnessed last year.” “The Trump administration is coming up with new and devious ways to issue RFEs and denials, in a manner unprecedented and unseen earlier, during my thirty years of practise,” she adds.

“Even cases that are clearly approvable, when filed, are being questioned through RFEs. Even if a particular issue is not applicable to that particular application, the RFE generically raises it,” says Rajiv Khanna, managing attorney at Immigration. com who has witnessed a significant number of inquiries. He illustrates: Where an employee is expected to work in-house for the sponsoring employer (and not at a third party client site), the right of control over the employment is still questioned in the RFE.

“At this early stage, it appears that the focus of RFEs is on technology companies. We have noticed multiple direct approvals of cases that are related to non-technology sectors organizations such as hospitality, database security, engineering and architectural firms,” says David Nachman, managing attorney, at NPZ Law Group.

“We are seeing many more RFEs on the issue of lack of speciality occupation and the lack of an employer-employee relationship, especially when there are consulting companies or third party work sites are involved,” says Murthy.

Focus is on speciality occupation: An H-1B visa is a temporary non-immigrant work visa for professional workers in speciality occupations, which require a minimum qualification of a bachelor’s degree.

US technology and biotechnology companies, file virtually all of their cases under the Masters Cap. “Our initial impression based on Masters Cap filings is that RFEs have primarily raised concerns about speciality occupations and level 1 wages” says Scott Fitzgerald, partner at Fragomen Worldwide.

“In nearly all the RFEs, we have seen till date (relating to both general and Masters Cap), the focus is on requesting an explanation about why the position qualifies as a specialty occupation position. While this can be proved, the downside is that there still remains a tremendous amount of subjectivity in the manner that a speciality occupation determination can be made by the concerned officer,” says Nachman. Ditto at the law firm of Cyrus D Mehta, the few RFEs received so far, inquired into the issue of speciality occupation.

Khanna points out a few challenges: “USCIS is also requiring proof that in the specific industry or for this particular project, a degree focussed on a specific subject or subjects is required. Opinions of experts based on in-depth review of the job description are being dismissed on the ground that the expert has not visited the premise of the sponsoring employer or observed its workflow, first hand.”

Even if RFEs can be successfully dealt with, it proves to be a time consuming and costly exercise, sums up an in-house immigration specialist at an IT company.

सिख रेफेरेंडुम 2020 पंजाब राजनीती का फीफा

 

अलग पंजाबी राष्ट्र बनाने के अलगाववादी रेफरेंडम-2020 का समर्थन करने पर आप विधायक सुखपाल सिंह खैरा चौतरफा हमलों में घिर गए हैं। शनिवार को सूबे के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा कई कांग्रेस विधायकों ने सुखपाल खैरा की कड़ी आलोचना करते हुए आप संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भी निशाना साधा और खैरा को पार्टी से बर्खास्त करने की मांग की।

उधर, सुखपाल खैरा ने शनिवार को एक बयान जारी कर कहा कि वे रेफरेंडम के हिमायती नहीं हैं लेकिन लगातार हो रहे भेदभाव के कारण सिख अलग राज्य की मांग कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी पंजाब ने रेफरेंडम-2020 पर खैरा के बयानों को उनकी निजी राय बताते हुए न सिर्फ पल्ला झाड़ लिया बल्कि यह भी संकेत दिए कि पार्टी इस मुद्दे पर सुखपाल खैरा से स्पष्टीकरण मांगेगी।

क्योंकि आप किसी भी अलगाववादी और देश विरोधी मुहिम का समर्थन नहीं करती। शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का समर्थन करने पर सुखपाल खैरा के खिलाफ तुरंत मामला दर्ज करने की मांग की है।

 

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गर्मख्यालियों द्वारा पेश की गई अलगाववादी सिख रेफरेंडम-2020 का समर्थन करने के लिए खैरा की कड़ी आलोचना की। शनिवार को जारी एक बयान में मुख्यमंत्री ने खैरा के इस बयान को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि नेता विपक्ष पंजाब के इतिहास के बारे में समझ रखने के बिना इस तरह की विलक्षण और नाटकीय सियासत में लिप्त हो गए हैं।

उन्होंने कहा कि खैरा अपने इस बयान या कार्रवाई के संभावित नतीजों को महसूस नहीं कर रहे। कैप्टन ने कहा कि पंजाब और यहां के लोगों ने अलगाववादी लहर के कारण कई साल तक गहरा संताप झेला है और खैरा इससे पूरी तरह अनजान लगते हैं। उन्होंने कहा कि खैरा को यह अनुमान नहीं है कि उनका बयान सूबे के लिए क्या खतरा पैदा कर सकता है।

मुख्यमंत्री ने खैरा के उस दावे को कोरा पाखंड करार दिया जिसमें खैरा ने कहा था कि वे इस रेफरेंडम का समर्थन करते हुए भारत की अखंडता के हक में खड़े हैं। कैप्टन ने खैरा द्वारा दोनों दिशाओं में लगाई दौड़ को एक विलक्षण केस बताया। उन्होंने कहा कि विवादपूर्ण रेफरेंडम का समर्थन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति स्पष्ट तौर पर भारत की सद्भावना को ठेस पहुंचा रहा है और वे किसी हालत में देश की एकता का समर्थक नहीं हो सकता।

 

 

सिखों के अलग राज्य की मांग संबंधी रेफरेंडम-2020 का समर्थन करने संबंधी खबरों का खंडन करते हुए नेता प्रतिपक्ष सुखपाल सिंह खैरा ने कहा है कि भले ही उन्होंने कभी इसका समर्थन नहीं किया लेकिन वे यह स्वीकार करने से नहीं झिझकते कि यह बंटवारे के बाद की केंद्र सरकारों के सिखों के प्रति पक्षपात और सौतेले व्यवहार का ही नतीजा है।

शनिवार को जारी एक बयान में खैरा ने कहा कि यह सिखों और पंजाबियों की महान कुर्बानियों का ही नतीजा है कि भारत ने आजादी हासिल की। भले ही ब्रिटिश सरकार ने सिखों को अलग पूर्ण राज्य की पेशकश की थी लेकिन सिखों ने भारत का हिस्सा बनने का फैसला किया।

उन्होंने कहा कि यह तथ्य है कि बंटवारे का सबसे ज्यादा संताप सिखों ने झेला जब उन्हें पूरी तरह उजड़कर भारत आना पड़ा। खैरा ने इसके साथ ही भाषाई आधार पर, पानी के बंटवारे, आपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों का जिक्र करते हुए केंद्र की सरकारों द्वारा सिखों से भेदभाव किए जाने का भी जिक्र किया।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार को अपनी सिख विरोधी नीतियों पर दोबारा विचार करना चाहिए।

 

आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब ने स्पष्ट किया है कि पार्टी रेफरेंडम-2020 मुहिम का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी रूप में समर्थन नहीं करती। आप द्वारा जारी संयुक्त बयान में पार्टी के सूबा सह-प्रधान डा. बलबीर सिंह, माझा जोन के प्रधान कुलदीप सिंह धालीवाल, मालवा जोन-1 के प्रधान नरिन्दर सिंह संधू, मालवा जोन-2 के प्रधान गुरदित्त सिंह सेखों और मालवा जोन-3 के प्रधान दलबीर सिंह ढिल्लों ने कहा कि आम आदमी पार्टी साफ शब्दों में स्पष्ट करती है कि पार्टी भारतीय संविधान, देश की प्रभुता व एकता-अखंडता में संपूर्ण विश्वास रखती है,

इसलिए पार्टी देश को बांटने या तोड़ने वाले किसी भी प्रकार के रेफरेंडम में न यकीन रखती है और न ही समर्थन करती है। पार्टी के सीनियर नेता और विधानसभा में विरोधी पक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा द्वारा रेफरेंडम-2020 का समर्थन किए जाने पर हैरानगी प्रकट करते हुए पार्टी नेताओं ने कहा कि रेफरेंडम-2020 की हिमायत सुखपाल खैरा की निजी राय हो सकती है, लेकिन इस तरह की राय के साथ आम आदमी पार्टी का कोई संबंध नहीं है।

 

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने विधानसभा में विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा द्वारा रेफरेंडम-2020 की हिमायत करके राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की है। शनिवार को जारी एक प्रेस बयान में पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने कहा कि खैरा केवल पंजाब को भारत से अलग किए जाने की ही वकालत नहीं कर रहे बल्कि अलगाववादी भावनाओं को भड़काकर मुश्किल से हासिल हुई शांति को लिए खतरा पैदा कर रहे हैं।

मजीठिया ने आप कन्वीनर और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सवाल किया कि वे इस मुद्दे पर खामोश क्यों हैं। मजीठिया ने कहा कि केजरीवाल को पंजाबियों को बताना चाहिए कि वे खैरा के स्टैंड का समर्थन करते हैं या नहीं? उन्होंने केजरीवाल को यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने आज तक खैरा के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?

अकाली नेता ने आम आदमी पार्टी और इसके पंजाब के विधायकों से भी पूछा कि वे मशहूर पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट गुरपतवंत पन्नू द्वारा तैयार किए गए रेफरेंडम- 2020 का समर्थन करते हैं? उन्होंने कहा कि इन विधायकों को बताना चाहिए कि वे सभी देश में प्रचलित चुनाव की लोकतांत्रिक प्रक्त्रिस्या में विश्वास रखते हैं या बाहरी ताकतों को इस देश की किस्मत का फैसला करने की इजाजत दी जानी चाहिए।

कांग्रेस के सीनियर नेताओं और विधायकों ने देश को धार्मिक आधार पर बांटने और पंजाब को भारत से अलग करने के उद्देश्य से तैयार रेफरेंडम-2020 की खुलेआम हिमायत करने के लिए नेता प्रतिपक्ष सुखपाल सिंह खैरा की कड़ी आलोचना की है।

कांग्रेस विधायकों ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से भी स्पष्टीकरण मांगते हुए पूछा है कि क्या वे पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता के रुख से सहमत हैं? खैरा के विरुद्ध तुरत कार्रवाई की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि केजरीवाल को खैरा को पार्टी से बर्खास्त करना चाहिए और अगर वे ऐसा नहीं करते तो इसका मतलब होगा कि वे खैरा के राष्ट्र विरोधी मंसूबों से सहमत हैं।

कांग्रेस विधायक रमनजीत सिंह सिकी, हरमिंदर सिंह गिल और हरदेव सिंह लाडी ने साझा बयान में खैरा का मजाक उड़ाते हुए कहा कि एक तरफ तो वे रेफरेंडम-2020 की हिमायत कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर वे एकजुट भारत के पक्ष में भी खड़े हैं।

प्राथमिक शिक्षा ………सर्वथा अप्राथमिक

सारिका तिवारी

हालांकि मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का वादा संविधान में किया गया है। इसे दस साल में पूरा करने का लक्ष्य भी तय किया गया था। लेकिन यह पूरा नहीं हो सका।इसके लिए सरकार के पास धन नहीं था। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर किसी ठोस योजना की शुरुआत नहीं हो सकी।

साक्षरता और शिक्षा के मामले में भारत की गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में होती है। अगर हम अपने देश की तुलना आसपास के देशों से करें तो चीन, श्रीलंका, म्यांमा, ईरान से भी पीछे हैं।

राज्यों के स्तर पर अलग-अलग प्रयास किए गए। स्वतंत्रता के बाद राज्य की गरिमा बढ़ाने के लिए कई राज्यों ने स्कूलों में उस राज्य की भाषा को शिक्षा का माध्यम चुना।

मुख्यतया प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर मध्यवर्ग का एक बड़ा हिस्सा अपने बच्चों को अंगरेजी शिक्षा दिलाने के पक्ष में था, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों की बजाय प्राइवेट स्कूलों में दाखिल करवा दिया। ये निजी स्कूल कई तरह के थे-  चर्चों द्वारा संचालित असंख्य स्कूल, लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग कान्वेंट, निजी संस्थाओं, रामकृष्ण मिशन और आर्य समाज, देव समाज आदि द्वारा संचालित स्कूल। यहां तक कि सरकारी कर्मचारी भी राज्य और नगर निगम के स्कूलों से दूरी बनाये हुए हैं। केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना सरकारी राज्य सेवाकर्मियों के बच्चों के लिए और सैनिक स्कूलों की स्थापना मिलिटरी अफसरों के बच्चों के लिए हुई।

इन्हीं कुछ कारणों से सरकारी स्कूल गरीबों और अशिक्षितों के बच्चों का सहारा बने हुए हैं, जहां उन्हें नौकरशाही और शिक्षक संघों की दया पर रहना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप इन स्कूलों के लिए स्थापित मानकों-पाठ्यपुस्तकों की गुणवत्ता और प्रासंगिकता, विद्यार्थियों की उपलब्धियों का निरीक्षण का विकास थम गया। आज नब्बे प्रतिशत से ज्यादा सार्वजनिक खर्च की राशि भारतीय स्कूलों में अध्यापकों के वेतन और प्रशासन पर ही खर्च होती है। फिर भी विश्व में बिना अनुमति अवकाश लेने वाले अध्यापकों की संख्या भारत में सबसे अधिक है। हमारे स्कूलों में अध्यापक आते ही नहीं हैं और चार में से रोज कोई न कोई अध्यापक छुट्टी पर होता है।

हमारे यहां शिक्षा का जिम्मा राज्यों पर है, इसलिए सभी राज्यों ने इसकी चुनौतियों को अपने ढंग से हल किया। इसके अलग-अलग परिणाम सामने आए। जो राज्य स्कूलों में शिक्षा का विकास करने में सफल रहे उन्होंने गरीब बच्चों की शिक्षा संबंधी चुनौतियों को प्राथमिकता दी। इसकी अगुआई दक्षिण के राज्यों ने की, जिन्होंने सर्वशिक्षा में इतिहास रचा। मैसूर, त्रावणकोर, कोचीन और बड़ौदा जैसी दक्षिण रियासतें तो पहले से ही गरीबों के लिए शिक्षा पर जोर देती थीं और उनके महाराजाओं ने सर्वशिक्षा के लिए अनुदान और स्कूलों के लिए खजाने से राशि भी दी थी। त्रावणकोर और कोचीन में प्रत्येक जाति के लिए आधारभूत शिक्षा के आग्रह ने उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के किंडरगार्टन और प्राइमरी स्कूलों के समान पल्लीकुड़म और कुड़ीपल्लीकुडम की स्थापना में सहायता की।

इसका मतलब है कि स्वतंत्रता के बाद उत्तर से कहीं ज्यादा दक्षिण की सरकारों ने गरीबों के लिए शिक्षा पर जोर दिया। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के. कामराज ने मिड-डे मील योजना को राज्य के स्कूलों में लागू किया, जिसे सन 1923 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने प्रारंभ किया था। इस योजना की जिम्मेदारी स्कूल के बच्चों को एक वक्त का भोजन, यूनीफार्म और पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराना था। केरल में स्कूलों को विविध सुधारवादी आंदोलनों से प्रेरणा मिली। इनकी अगुआई चर्चों, नायरों और वामपंथी दलों ने की और राज्य ने स्कूलों को सर्वव्यापी बनाने पर जोर दिया। राज्य अपनी पहली विधानसभा में शिक्षा को मुफ्त और जरूरी बनाने संबंधी संशोधन लाया और शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने के लिए जल्दी ही उसने जमीनी संगठनों और अभिभावकों को इस मुहिम में अपने साथ कर लिया।

हालांकि, अन्य भारतीय राज्यों में शिक्षा का एक अलग ही चलन था। आज भारत के छह राज्यों में दो-तिहाई बच्चे स्कूल नहीं जाते- आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल। इन राज्यों को जिन समस्याओं ने जकड़ा हुआ है वह है उनका इतिहास। कई सार्वजनिक समस्याएं हैं, जो अपने साथ राज्य की शिक्षा योजना को भी दूषित कर रही हैं जैसे कि ज़मींदारी पध्दति इससे इन समुदायों में कड़वाहट और गुस्से की परंपरा कायम हुई, जिसने एक ऐसी राजनीति को जन्म दिया, जिसे ‘बदले की राजनीति’ कहते हैं, जो आज तक चली आ रही है। इन क्षेत्रों में ध्यान प्रतिशोध पर केंद्रित रहता है और इन राज्यों में राजनीति से अभिप्राय है कि ‘आंखें मूंद कर अपने बड़ों के नक्शे कदम पर चलो’। परिणामस्वरूप वे कहते हैं, ‘यहां अभी तक मतदाताओं का शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में निवेश के प्रति ज्यादा झुकाव नहीं है।’

इन राज्यों में ये जातिगत मतभेद स्कूलों में पैठ करने लगे, विशेष रूप से गांवों में, जहां स्कूलों को ‘पिछड़े’ और ‘उच्च’ वर्गों में बांट दिया गया है। इस अलगाव ने और भी भयानक रूप तब लिया जब राज्यों के निवेश भी जाति के अनुसार बंटने लगे। मंत्री अपनी जाति विशेष के हितों के लिए काम करते रहे। इसलिए आप देख सकते हैं कि सरकारी स्कूल एक विशेष समुदाय क्षेत्र में ही बने, जहां ‘अन्य जातियां’ उसका लाभ नहीं उठा सकतीं। परिणामस्वरूप मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के ओबीसी और अनुसूचित जनजातियों के आधे गांवों में एक भी स्कूल नहीं है।

ये अव्यवस्था में डूबे हुए राज्य, जो स्कूली शिक्षा को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं, वे इस क्षेत्र पर वार्षिक बजट का सबसे कम हिस्सा खर्च करते हैं। उन्होंने गरीब बच्चों के लाभ को नजरअंदाज किया, जो कि कई सफल राज्यों में कारगर रहा। इसलिए परिणाम निराशाजनक थे। पर अब जब सरकार हमारे प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों पर पहले से कहीं अधिक खर्च कर रही है, तब हम उस राशि को प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करने के लिए संघर्षरत हैं। अगर यहां प्रगति करनी है, तो हमें राजनीतिक तौर पर प्रखर प्रश्नों का जवाब देना होगा। उदाहरण के लिए, शिक्षकों और प्रशासकों में जिम्मेदारी की समस्या के समाधान के बिना हमारे लिए स्कूलों के संकट का सामना करना नामुमकिन है।

देश और राज्य सरकारों के लिए यह कम लज्जा की बात नहीं है कि जिन कामों को उन्हें खुद करना चाहिए, उनके लिए अदालतों को आदेश देना पड़ता है। ताजा मामला उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए इलाहाबाद में उच्च न्यायालय का दिया गया आदेश है। प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा की बदहाली किसी से छिपी नही है। वैसे तो यह समस्या पूरे देश में है, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान के सरकारी स्कूलों की स्थिति बहुत खराब है। कई स्कूलों में तो शिक्षक पढ़ाने ही नहीं जाते, जहां जाते हैं वहां वे मन से नहीं पढ़ाते।

इन स्कूलों की दशा सुधारने के लिए बना तंत्र भी लगभग पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। किसी का किसी पर नियंत्रण नहीं है। आज पूरे तंत्र पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। सरकारी प्राथमिक स्कूलों की इस दशा को सुधारने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि सभी सरकारी अधिकारियों, निर्वाचित प्रतिनिधियों और न्यायिक कार्य से जुड़े अधिकारियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए कि वे अपने बच्चे को पढ़ने के लिए इन्हीं स्कूलों में भेजें। अगर वे ऐसा नही करते हैं तो उनके वेतन से निजी कान्वेंट स्कूल की फीस के बराबर धनराशि काट ली जाए और उसे सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने में खर्च किया जाए।

आज भारत में साक्षरता पहले से कुछ बढ़ी है। अंगरेजों के शासन के अंत तक होने वाली यानी 1947 में भारत की साक्षरता दर केवल बारह प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़ कर 74.04 प्रतिशत हो गई। पहले से छह गुना अधिक, मगर विश्व की औसत शिक्षा दर से काफी कम। हालांकि साक्षरता के लिए सरकार काफी सक्रिय रही है। समय-समय पर कई तरह की योजनाएं लाती रही है। इसके बावजूद 1990 में किए गए अध्ययन के मुताबिक 2060 से पहले भारत विश्व की औसत साक्षरता दर को नहीं छू सकता, क्योंकि 2001 से 2011 तक के दशक में भारत की साक्षरता दर में वृद्धि केवल 9.2 प्रतिशत रही। 2006 और 2007 में किए गए अध्ययन से पता चला कि बच्चे पढ़ने तो जा रहे हैं, लेकिन धूप, शीत और बरसात में उनके लिए कोई कक्षा की व्यवस्था नहीं है।

ऐसे कई सरकारी स्कूल हैं, जहां बच्चों को पीने का साफ पानी भी मुहैया नहीं कराया गया है। लगभग 89 प्रतिशत सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां शौचालय की सुविधा नहीं है। शहरों की झुग्गी बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में चलने वाले स्कूलों में शिक्षक या तो नहीं हैं या फिर आते नहीं। इसलिए उन्हें दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता पर बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है।

प्राथमिक शिक्षा की हालत में सुधार के लिए आने वाले सालों में भारत को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। खासकर शिक्षा को सार्वभौमिक अधिकार बनाने वाली योजनाओं की सफलता को लेकर कई स्तरों पर संशय कायम है। प्राथमिक शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए भारत दुनिया के कई देशों से आर्थिक मदद लेता है। लेकिन वैश्विक मंदी के कारण अगले सालों में इसमें कटौती हो सकती है। इसका प्रभाव हमारे सर्वशिक्षा अभियान पर भी पड़ेगा।

गोलकीपर कैस्पर इश्माइकल की बदोलत जीता डेनमार्क

अपने गोलकीपर कैस्पर इश्माइकल की बेहतरीन गोलकीपिंग और यूसुफ पाउलसन युरारी द्वारा 59वें मिनट में गिए गए गोल के दम पर डेनमार्क ने शनिवार को मोरडोविया एरिना में खेले गए फीफा विश्व कप-2018 के ग्रुप-सी के मुकाबले में पेरू को 1-0 से हरा कर टूर्नामेंट का आगाज जीत के साथ किया। इस रोमांचक मुकाबले में डेनमार्क की जीत के हीरो इश्माइकल रहे जिन्होंने मैच में, खासकर दूसरे हाफ में कई शानदार बचाव करते हुए पेरू को बराबरी नहीं करने दी और अपनी टीम को पूरे तीन अंक दिलाए।

पेरू ने पहले हाफ में ज्यादा मौके नहीं बनाए थे, लेकिन दूसरे हाफ में उसकी आक्रमण पंक्ति ने अधिकतर समय डेनमार्क के खेमे में बिताया। हालांकि उसके खिलाड़ी इश्माइकल की बाधा को पार नहीं कर पाए। पहले हाफ में पेरू के पास सबसे अच्छा और बेहद आसान मौका अंतिम समय के इंजुरी टाइम में आया जब उसे वीडियो असिस्टेंट रेफरी (वीएआर) की मदद से पेनल्टी किक मिली। क्रिस्टियन क्वेवा गेंद लेकर डेनमार्क के खेमे में जा रहे थे।

तभी पाउलसन ने उनका रास्ता रोकने की कोशिश की। इस कोशिश में उन्होंने क्वेवा को गिरा दिया। रेफरी ने वीएआर का इस्तेमाल किया और पेरू को पेनल्टी किक दी। पेनल्टी को गोल में तब्दील करने की जिम्मेदारी क्वेवा पर ही थी, लेकिन क्वेवा गेंद को बार के काफी ऊपर मार बैठे और पेरू के खिलाड़ी तथा प्रशंसकों को मायूसी हाथ लगी।