‘लोकतन्त्र बचाने’ के नाम पर विधान सभाएं भंग होती रहीं हैं


इतिहास के आइने में देखें तो कांग्रेस के केंद्र में रहने के दौरान राज्यों की गैर-कांग्रेसी सरकारों पर गिरती रही है राज्यपाल की गाज, भंग होती रही हैं विधानसभा और बर्खास्त होती रही हैं सरकारें


जम्मू-कश्मीर की घाटी में सियासी बवाल है. राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग कर दी है. ये फैसला उस वक्त लिया गया जब जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने की कवायद चल रही थी. एक दूसरे के विरोधी माने जाने वाले पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने के लिए गठबंधन पर विचार कर रहे थे. पीडीपी ने सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया था. लेकिन राज्यपाल ने विधानसभा भंग करते हुए कहा कि वो अयोग्य गठबंधन को सरकार बनाने का मौका नहीं दे सकते हैं.

राज्यपाल के इस बयान पर बहस छिड़ गई है. सवाल उठ रहे हैं कि विरोधी विचारधारा वालों को सरकार बनाने से रोकने का फैसला कोई राज्यपाल भला कैसे कर सकता है? नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अबदुल्ला ने कहा कि. ‘साल 2015 में भी बीजेपी और पीडीपी ने विपरीत विचारधारा के बावजूद गठबंधन किया था.’

उस गठबंधन को जन्नत में बनी जोड़ी तो नॉर्थ और साउथ पोल का मिलन भी कहा गया था. ऐसे में पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के संभावित गठबंधन पर राज्यपाल का एतराज समझ से परे है. बहरहाल, फैसले से विवाद खड़ा हो गया और सियासी घमासान भी तेज हो गया है. लेकिन ऐसा नहीं है कि जम्मू-कश्मीर के सियासी इतिहास में पहली दफे ऐसा फैसला लिया गया हो. कई दफे देश के तमाम राज्यों में सियासी जरुरतों के मुताबिक सरकारें बर्खास्त तो विधानसभा भंग की गई हैं.

इतिहास के आइने में झांकने पर ऐसे तमाम राज्यपालों की तस्वीरें मिलती हैं. उन राज्यपालों ने सरकार गिराने का फैसला लेकर राजनीतिक तूफान पैदा किया तो विवाद कोर्ट की दहलीज तक भी पहुंचे.

कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल हंसराज भारद्वाज, यूपी के पूर्व राज्यपाल रोमेश भंडारी, बिहार में बूटा सिंह और झारखंड में सिब्ते रज़ी के फैसले हमेशा किसी न किसी बहाने याद किए जाते रहेंगे.

क्या केंद्र में बीजेपी नहीं होती तो बची रह पाती गोवा सरकार

गोवा में बीजेपी की सरकार है. मनोहर पर्रिकर राज्य के मुख्यमंत्री हैं. खराब स्वास्थ की वजह से पर्रिकर गोवा, मुंबई, अमेरिका और दिल्ली के एम्स में इलाज कर वापस गोवा लौटे हैं.  कांग्रेस का आरोप है कि पर्रिकर बीमारी की वजह से सीएम का कार्यभार सुचारु रूप से नहीं संभाल पा रहे हैं. ऐसे में कांग्रेसी विधायकों ने एक पूर्णकालिक सीएम की मांग की है. यहां तक कि बहुमत साबित कर सरकार बनाने की अपील की है. मनोहर पर्रिकर के स्वास्थ्य पर होने वाली राजनीति को अस्सी के दशक में एन टी रामाराव के शासन काल से जोड़कर देखा जा सकता है. बस फर्क इतना है कि गोवा में राज्यपाल ने सरकार गिराने जैसी विवादास्पद और असंवैधानिक कोशिश नहीं की.

साल 1984 में एन टी रामाराव अपनी बीमारी के इलाज के लिए अमेरिका गए हुए थे. वो दिल की बीमारी से ग्रस्त थे और अमेरिका में उनका ऑपरेशन हुआ था. लेकिन जब तक एनटी रामाराव वापस लौटते उनकी सरकार गिर चुकी थी. आंध्र प्रदेश के राज्यपाल ठाकुर रामलाल ने रामाराव की सरकार को बर्खास्त कर दिया था. खास बात ये है कि रामाराव की सरकार पूर्ण बहुमत में थी और उसे जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-कांग्रेस और नेशनल कॉन्फेंस की तरह सदन में बहुमत भी नहीं साबित करना था. इसके बावजूद ठाकुर रामलाल ने करियर की बड़ी रिस्क उठाई और बाद में कुर्सी गंवा कर कीमत भी चुकाई. उनकी जगह फिर शंकर दयाल शर्मा राज्यपाल बने और एन टी रामाराव दोबारा सीएम बने.

दरअसल, संघीय व्यवस्था में राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. संवैधानिक आवरण से तैयार हुआ ये गौरवपूर्ण पद मूल रूप से विशुद्ध सियासी इस्तेमाल के लिए होता है. ऐसे में राज्यपाल के बयान से विपक्ष किसी अदालत के फैसले की सी उम्मीद नहीं कर सकता और न ही वो फैसला पत्थर की लकीर होता है. यही वजह होती है कि असंतोष फूटने पर राज्यपाल के फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है.

जब बहुमत वाली बोम्मई सरकार को किया बर्खास्त

अस्सी के दशक में कर्नाटक में एस आर बोम्मई की सरकार ने भी राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. कर्नाटक में तत्कालीन राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया था. राज्यपाल का कहना था कि बोम्मई सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो चुकी थी. इस फैसले के खिलाफ बोम्मई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और लौटा हुआ साम्राज्य हासिल किया.

पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनाने का दावा पेश करने वाला पत्र सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया था. जिस पर जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि सोशल मीडिया से न तो सरकार चलेगी और न बनेगी. इसी तरह पूर्व में बोम्मई सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बहुमत होने न होने का फैसला विधानसभा में होना चाहिए, कहीं और नहीं.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दावा पेश करने वाली पार्टियों को सरकार बनाने का एक मौका नहीं दिया जाना चाहिए? भले ही वो दो सीटों वाले सज्जाद लोन की पार्टी होती या फिर पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन?

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अमूमन राज्यों की गैर कांग्रेसी सरकारों के खिलाफ राज्यपाल के विवादित फैसले ज्यादा सामने आए हैं.

हरियाणा के राज्यपाल जी डी तापसे ने देवीलाल के बहुमत के दावे के बावजूद भजनलाल को सरकार बनाने का न्योता दे दिया था. भजनलाल ने देवीलाल के विधायकों को तोड़कर सरकार बना ली थी. देवीलाल राज्यपाल को विधायकों के हस्ताक्षर का समर्थन वाला पत्र देकर सरकार बनाने के न्योते का इंतजार करते रह गए और राज्यपाल तापसे ने भजनलाल को सीएम पद की शपथ दिला दी.

हिंदुस्तान की सियासत में राज्यपालों की हैसियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो रातों-रात मौजूदा सरकार को बर्खास्त कर नया सीएम  नियुक्त कर देते हैं. बाद में भले ही उस नवनियुक्त सीएम की अवधि सिर्फ दो दिन ही क्यों न हो. जगदंबिका पाल को देश एक दिन के मुख्यमंत्री के तौर पर जानता है. साल 1998 में यूपी के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने ऐसा कारनामा किया कि यूपी के सीएम ऑफिस में दो-दो सीएम नजर आ रहे थे.

दरअसल, 21 फरवरी की रात साढ़े दस बजे रोमेश भंडारी ने यूपी में कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया और जगदंबिका पाल को सीएम बना दिया. राज्यपाल के फैसले के खिलाफ कल्याण सिंह इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए. हाईकोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए कल्याण सरकार को बहाल कर दिया.

जब ‘लोकतंत्र की रक्षा’ के नाम पर बूटा सिंह ने विधानसभा भंग की

बिहार में साल 2005 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. जिसकी वजह से तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने विधानसभा भंग कर डाली. उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी जबकि राज्य में एनडीए सरकार बनाना चाहती थी. एनडीए ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सुप्रीम कोर्ट ने बूटा सिंह के फैसले को असंवैधानिक करार दिया और राज्य में नीतीश कुमार की सरकार बनी. राज्यपाल बूटा सिंह की दलील थी कि उन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए आधी रात को विधानसभा भंग कर दी.

इसी तरह साल 2005 में झारखंड में त्रिशंकु विधानसभा के बावजूद शिबू सोरेन को राज्य का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया. झारखंड के तत्काल राज्यपाल सैयद सिब्ते रज़ी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्योता दिया. हालांकि शिबू सोरेन अपना बहुमत साबित नहीं कर सके. 9 दिनों के बाद सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा और अर्जुन मुंडा की दूसरी बार सरकार बनी.

हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. हालांकि बीजेपी 104 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. राज्यपाल वजूभाई वाला ने बीजेपी विधायक दल के नेता बी एस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता भी दिया. लेकिन कांग्रेस ने जेडीएस का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया.  हालांकि कोर्ट ने येदियुरप्पा को सरकार बनाने से रोका नहीं लेकिन येदियुरप्पा सदन में बहुमत साबित नहीं कर सके और अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.  जिसके बाद कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बना ली.

B S Yeduyurappa speaks at a meet the press

इससे पहले कर्नाटक में राज्यपाल की एक दूसरी तस्वीर भी देखने को मिली थी. साल 2009 में केंद्र में यूपीए की सरकार थी और यूपीए सरकार में कानून मंत्री रहे हंसराज भारद्वाज को कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया था. हंसराज भारद्वाज ने बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार को बर्खास्त कर दिया था. बर्खास्ती के पीछे वजह ये बताई गई थी कि येदियुरप्पा ने बहुमत हासिल करने के लिए खरीद-फरोख्त का सहारा लिया था.

अब जम्मू-कश्मीर के मामले में राज्यपाल सत्यपाल मलिक का कहना है कि उन्होंने हॉर्स ट्रेडिंग को रोकने के लिए ही ये फैसला लिया है. दरअसल राजनीति की ये परंपरा है कि केंद्र में सत्तासीन होने के बाद अगर राज्य में दूसरी सरकारों को गिराने का मौका मिले तो चूकना नहीं चाहिए. कांग्रेस सरकार ने जो किया वही जनता पार्टी ने भी 1977 में केंद्र में सरकार बनाने के बाद किया था.

जम्मू-कश्मीर में अबतक आठ बार राज्यपाल शासन लग चुका है. जम्मू-कश्मीर में सरकारों को बर्खास्त करने का आगाज़ भी कांग्रेस के शासन के दौर में हुआ तो इसका सिलसिला भी उस दौर में तेजी से आगे बढ़ा. साल 1953 में शेख अब्दुल्ला की सरकार को सदर-ए-रियासत कहे जाने वाले डॉक्टर कर्ण सिंह ने बर्खास्त कर दिया था. 24 साल बाद 26 मार्च 1977 में एक बार फिर शेख अब्दुल्ला की सरकार को राज्यपाल एलके झा ने गिरा दिया. उस वक्त केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी. इसके बाद साल 1984 में फारूक अबदुल्ला और 1986 में गुलाम मोहम्मद शाह की सरकारें गिराई गईं.

बहरहाल, ये जरूरी नहीं कि राज्यपाल के विवेक पर लिए गए फैसले वाकई लोकतंत्र के हित में हों क्योंकि कुछ राज्यपालों के विवादास्पद फैसलों ने इस पद की गरिमा और विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाने का काम किया है.

काश्मीर के रास्ते आपना फायदा ढूंढती कांग्रेस


कांग्रेस ने सिर्फ कश्मीर का हित नहीं देखा है. बल्कि लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक दाव चला है


जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने का फैसला किया है. इस फैसले की आलोचना हो रही है. पीडीपी, कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस पहली बार एक साथ आ रहे थे. गवर्नर के फैसले के बाद ये सभी दल हतप्रभ हैं. अब ये दल बीजेपी पर आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार के इशारे पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रोका गया है.

PDP का रवैया ज्यादा तल्ख है. राज्यपाल के रवैये से नाराज़ पीडीपी की नेता ने कहा कि बीजेपी के नेता उनकी पार्टी को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे, जब इसमें कामयाबी नहीं मिली तो केंद्रीय एजेंसियों का डर दिखाया गया, अब जब सरकार बनने जा रही थी तो बीजेपी ने राज्यपाल के ज़रिए ये फैसला करा दिया है.

कश्मीर के इस राजनीतिक शह मात में कांग्रेस को कामयाबी मिली है. कांग्रेस ने बीजेपी के बरअक्स ये साबित करने का प्रयास किया है कि वो राज्य में चुनी हुई सरकार को तरजीह दे रही थी. वहीं कांग्रेस ने पीडीपी के साथ जो तल्खी थी वो भी कम कर ली है. एनसी के साथ कांग्रेस के रिश्ते पहले से ही ठीक थे.

अब इस फैसले से कांग्रेस ने एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी दिया है. कर्नाटक के बाद कश्मीर में भी कांग्रेस बीजेपी को रोकने के लिए कुर्बानी दे रही थी. इससे छोटे दलों को लोकसभा चुनाव से पहले एक मैसेज है कि कांग्रेस सब को साथ लेकर चलने के लिए तैयार है.

कई दौर की मंत्रणा के बाद फैसला

जम्मू कश्मीर में बीजेपी के समर्थन वापसी के बाद से ही कांग्रेस में कशमकश चल रही थी. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के यहां कई दौर की बैठक भी हुई, जिसमें राहुल गांधी भी शामिल हुए, कांग्रेस के सूत्रों का दावा है कि राजनीतिक हित की जगह कश्मीर के हित में फैसला लिया गया कि वहां घाटी की सबसे बड़ी पार्टियों के साथ ही जाना चाहिए.

इन बैठकों में कांग्रेस के राज्य के नेताओं के साथ बातचीत की गई, इसके अलावा जो लोग कश्मीर के बारे में जानकार हैं उनसे भी राय मशविरा किया गया था. कांग्रेस पहले भी राज्य में पीडीपी और एनसी को सरकार बनाने के लिए समर्थन दे चुकी है, इसलिए फैसला लेना मुश्किल नहीं था.

 

कांग्रेस का राजनीतिक दाव

कांग्रेस ने सिर्फ कश्मीर का हित नहीं देखा है. बल्कि लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक दाव चला है. कांग्रेस ने ये दिखाने की कोशिश की है कि जब कांग्रेस पीडीपी और एनसी को साथ ला सकती है, तो लोकसभा चुनाव में रीजनल पार्टियों को इकट्ठा कर सकती हैं. जिस तरह से दो दल साथ आए हैं उसको कांग्रेस उदाहरण के तौर पर पेश कर सकती है. जो रीजनल पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ हैं, वो भी कांग्रेस के साथ आ सकती हैं. यही नहीं कांग्रेस ये भी दिखाने का प्रयास कर रही है कि सत्ता पाना महत्वपूर्ण नहीं है जितना बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना है.

बीजेपी बनाम कांग्रेस

बीजेपी 2014 के बाद जिस तरह से मजबूत हुई है. उससे सहयोगी दलों के प्रति बीजेपी का रवैया बदला है. कश्मीर में पीडीपी से अलग होने का फैसला अचानक लिया गया था. इस तरह टीडीपी के साथ बीजेपी ने रिश्ता निभाने का प्रयास नहीं किया है. बल्कि टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस के साथ नज़दीकी बढ़ाई गई. यही हाल बिहार में आरएलएसपी के साथ हो रहा है. शिवसेना भी नाराज़ चल रही है. एआईडीएमके में टूट का आरोप भी बीजेपी पर है, लेकिन इन सब मुद्दों पर बीजेपी बेपरवाह नज़र आ रही है.

इस तरह का रवैया पहले मज़बूत कांग्रेस का रहता था. कांग्रेस पर कभी सहयोगी दलों को ही तोड़ने का आरोप लगाया जाता था. कांग्रेस के बारे में ये कहा जाता था कि जो नज़दीक गया उसका राजनीतिक वजूद खत्म हो जाता था. राजनीतिक बाज़ी उलट गयी है. अब यही आरोप बीजेपी पर लग रहा है. जो काम पहले अटल बिहारी वाजपेयी के समय बीजेपी करती थी वो अब कांग्रेस करने लगी है.

90 के दशक में बीजेपी ने शिवसेना की सरकार का समर्थन किया. ममता बनर्जी और नीतीश कुमार को पूरा सहयोग दिया. नेशनल कॉन्फ्रेंस को भी एनडीए के साथ रखा गया, डीएमके एनडीए की सहयोगी बनी रही, ओडिशा और आन्ध्र में नवीन पटनायक और टीडीपी के काम में कोई दखल नहीं दिया गया. यूपी में मुलायम सिंह की सरकार को बनवाने में बीजेपी की अहम भूमिका थी.

अब ये काम कांग्रेस कर रही है, कर्नाटक में जेडीएस का समर्थन, कश्मीर का फैसला सब यही दर्शाता है कि कांग्रेस गठबंधन को लेकर बीजेपी की नीति पर चल रही है. वही बीजेपी पुराने कांग्रेसी ढर्रे पर चल रही है.

महागठबंधन का एजेंडा

कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने बड़ा गठबंधन खड़ा करने की कोशिश कर रही है. हालांकि अभी कोई खास सफलता नहीं मिल पाई है. लेकिन कश्मीर का फैसला कांग्रेस की राह आसान कर सकता है.

उत्तर भारत में कई राज्यों का चुनाव चल रहा है, इसमें कांग्रेस को महागठबंधन बनाने में कामयाबी नहीं मिली है. कांग्रेस को गंभीरता से इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है. हालांकि कई बड़े दल का साथ मिला है. कर्नाटक में जेडीएस का साथ मिला है जिसका अच्छा नतीजा उपचुनाव में देखने को मिला है.

टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू भी कांग्रेस के साथ हैं, जिसका नतीजा तेलंगाना चुनाव के बाद पता चलेगा. लेकिन टीडीपी के मुखिया कई सरकारों का सहयोग कर चुके हैं. 1996 में जनता दल की सरकार और बाद में एनडीए की सरकार के संयोजक भी थे. बीजेपी से हाल फिलहाल में ही अलग हुए हैं. कांग्रेस को साउथ में साथी मिल गए हैं, आंध्र और तेलंगाना में टीडीपी, कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडु में डीएमके और केरल में यूडीएफ चल रहा है.

महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ सीटों के तालमेल पर बातचीत जारी है. कांग्रेस के नज़रिए से अच्छा हल निकलने की उम्मीद है. लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में है.

 

कांग्रेस की चुनौती

कांग्रेस की बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश में है. जहां से लोकसभा की 80 सीट है. बीजेपी और सहयोगी दल के पास 73 सीट हैं. कांग्रेस के सामने परेशानी है कि एसपी-बीएसपी के प्रस्तावित गठबंधन में शामिल होने के लिए दोनों दलों को मनाए, ऐसा हो जाने पर सम्मानजनक सीट हासिल करने का सिर दर्द है. कांग्रेस के लिए यूपी में अपने सभी बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाने के लिए सीटों की दरकार है.

दिल्ली में कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि आप से कोई तालमेल करना है या अकेले लड़ना है. पार्टी के केंद्रीय नेताओं और राज्य के नेताओं के बीच मतभेद है. राज्य के नेता अकेले लड़ने के पैरोकारी कर रहे हैं. हालांकि बिहार में कांग्रेस का गठबंधन आरजेडी के साथ है, लेकिन इसमें आरएलएसपी या लोक जनशक्ति पार्टी के तड़के की ज़रूरत है.

कांग्रेस की सबसे बड़ा सिरदर्द बंगाल है. जहां टीएमसी और लेफ्ट को एक साथ लेकर चलना आसान नहीं है. हालांकि राज्य में बीजेपी की ताकत बढ़ रही है लेकिन दोनों दल आमने सामने है. ऐसे में टीएमसी की नेता को लेफ्ट के साथ लाना मुश्किल काम है. कश्मीर फॉर्मूला कितना कारगर होगा ये कयास लगाना आसान नहीं है

वहीं असम में बीजेपी मजबूत है. बीजेपी को हराने के लिए एआईयूडीएफ का साथ ज़रूरी है. लेकिन असम में इस गठबंधन को पार लगाने के लिए तरुण गेगोई को बैकसीट पर रखना ज़रूरी है. हालांकि जिस तरह राहुल गांधी तरुण गोगोई के साथ हैं उससे ये फैसला लेना आसान नहीं है.

कांग्रेस की मजबूरी

कांग्रेस की मजबूरी है कि उत्तर भारत के तकरीबन 175 सीटों पर बीजेपी के मुकाबले रीजनल पार्टियां हैं, कांग्रेस इन्हीं दलों के आसरे पर है. बीजेपी धीरे-धीरे ओडिशा और बंगाल में पैर पसार रही है. रीजनल पार्टियों और कांग्रेस का वोट बैंक एक समान है इसलिए तालमेल में परेशानी हो रही है

After the Governor dissolve the assembly, ‘Undemocratic,’ cry Jammu and Kashmir politicians


  • PDP, NC and Congress have come together form a coalition govt in J&K

  • Sajad Lone’s People’s Conference has staked claim to form the govt with BJP

  • The Governor has now dissolved the J&K Assembly


Jammu and Kashmir governor Satya Pal Malik late Wednesday evening ordered the dissolution of state Assembly, paving the way for fresh elections. This move came hours after former chief minister Mehbooba Mufti and People’s Conference chairman Sajjad Gani Lone both staked a claim to form the government. In a press communiqué, the governor said he was ordering the dissolution of Assembly through the powers vested in him under Section 53 of the Constitution of Jammu and Kashmir.

As per the communiqué issued by the governor it was noted, “In exercise of the powers conferred under clause (b) of sub-section (2) of section 53 of the constitution of Jammu and Kashmir the Governor was dissolving the Legislative Assembly. By virtue of the powers vested upon me in terms of proclamation no: P1/18 of 2018 dated 20 June 2018 issued under sub-section (1) of section 92 and in exercise of the powers conferred upon me by clause (b) of sub-section (2) of section-53 of the constitution of Jammu and Kashmir, I hereby dissolve the Legislative Assembly.”

The Assembly was under suspended animation after BJP pulled support from the PDP and brought Mehbooba’s government. The two coalition partners had major differences, including the state’s constitutional position and the “way the militancy could be tackled.” The BJP has accused PDP of being soft towards “stone pelters” and was seeking abrogation of the state law that bars outsiders from owning property or contesting elections.

The PDP chief earlier wrote to the governor staking a claim to form the government. In a letter addressed to Malik, she said the PDP, with the support of NC and Congress, will form the government. However, during the day Lone also the governor a letter claiming the support of BJP and 18 other MLAs for formation of a government.

In the 87-member legislative Assembly, the PDP, Congress and NC have respectively the strength of 28, 12 and 15 MLAs. The strength of BJP in the Assembly was 25 while as Lone had 2 MLAs. Forty-four MLAs were required for an absolute majority and to form the government. Lone was seeking to cobble together a third front with PDP MP and former deputy chief minister Muzafar Hussain Baigh. Some PDP MLAs, including former minister Imran Ansari, and Zadibal MLA Abid Ansari openly criticised Mehbooba for “promoting favouritism in the party.”

With the dissolution of the Assembly, the governor would have to order polls within six months. Although the government conducted municipal polls and has already held two phases of panchayat polls, most wards were returned uncontested. Both the NC and PDP boycotted the polls against what they termed as “efforts to abrogate Article 35-A” of the Constitution which deprives outsiders from owning property in Jammu and Kashmir.

Mehbooba also tweeted that the fax at the Raj Bhawan was not working. Mehbooba said that she was trying to contact the governor on phone, but he was unavailable. Officials at the Raj Bhawan remained unavailable for comment.

The order to dissolve the Assembly evoked a sharp reaction in Kashmir. Former chief minister Omar Abdullah wrote on Twitter, “JKNC has been pressing for dissolution for 5 months now. It can’t be a coincidence that within few minutes of Mehbooba Mufti’s letter staking claim the order to dissolve the Assembly suddenly appears.” He earlier tweeted, “J and K Raj Bhawan needs a new fax machine urgently.”
Peoples Democratic Front (PDF) chairman Hakeem Yaseen said the dissolution of the Assembly was an “undemocratic exercise.” He added, “The governor should have allowed the parties to prove the majority in the legislative Assembly.” Earlier in the day, Yaseen said he was ready to support the PDP, NC and Congress combine.

Former chief minister Ghulam Nabi Azad called the meeting of the Congress leaders on Friday to “discuss the modalities for the government formation in the state.” Senior PDP leader Altaf Bukhari also met Omar before Mehbooba wrote the letter staking the claim to form the government.

दिल्ली में घुसे जैश-ए-मोहम्मद के 2 आतंकी, पुलिस ने किया हाई अलर्ट


 

नई दिल्ली, 20 नवंबर (एजेंसी)।अमृतसर विस्फोट के दो दिन बाद दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को जैश ए मोहम्मद के दो संदिग्ध आतंकियों की तस्वीर जारी करते हुए राजधानी को हाई अलर्ट कर दिया। पुलिस के मुताबिक, ये दोनों संदिग्ध गुर्गे राजधानी में हमले को अंजाम दे सकते हैं।

पुलिस ने बताया कि दोनों की तलाशी के लिए गेस्ट हाउस, होटल्स और उन पेइंग गेस्ट को खंगाला जा रहा है जहां पर विदेशी छात्र रहते हैं। साथ ही, दिल्ली के सभी प्रवेश द्वार कड़ी नजर रखी जा रही है। दोनों संदिग्ध आतंकियों की तस्वीरें शहर के कई जगहों पर लगा दी गई है और सोशल मीडिया पर भी उसे शेयर कर दिया गया है।

दिल्ली पुलिस ने जो फोटो जारी किया है उसमें दो शख्स एक पत्थर के पास खड़े दिख रहे हैं जिस पर लिखा है फिरोजपुर 9 किलोमीटर और दिल्ली 360 किलोमीटर। पंजाब का फिरोजपुर अमृतसर से 133 किलोमीटर दूर है जहां पर रविवार को एक धार्मिक स्थल पर दो बाइक सवारों की तरफ से फेंके गए हैंड ग्रेनेड में तीन लोगों की मौत हो गई थी और 20 लोग घायल हुए थे।

गौरतलब है कि इससे पहले पंजाब में भी आतंकियों के घुसने की खुफिया जानकारी मिली थी।
उधर, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आईजीआई एयरपोर्ट से मंगवार को हिजबुल मुजाहिद्दीन के उस खूंखार आतंकी को गिरफ्तार कर बड़ी कामयाबी हासिल की है, जिसकी जम्मू पुलिस की सीआईडी यूनिट में काम करने वाले एसआई की हत्या मामले में तलाश थी। पुलिस के हत्थे चढ़ा यह आतंकी जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सब इंस्पेक्टर इम्तियाज मीर की हत्या में आरोपी है। पुलिस के मुताबिक आरोपी ने अपनी गर्लफ्रेंड के जरिये ही उसने एसआई की लोकेशन की जानकारी हासिल कर हिजबुल मुजाहिद्दीन के अपने साथियों को दी थी, जिसके बाद उसे अगवा कर मार डाला गया था।

ब्लास्ट हमले में इस्तेमाल मोटर साइकिल की पहचान, सुराग देने वाले को मिलेंगे 50 लाख

अमृतसर। अमृतसर निरंकारी डेरे पर गे्रेनेड हमले में आरोपियों द्वारा इस्तेमाल किए गए मोटर साइकिल की पहचान कर ली गई है। दूसरी ओर हमलावरों का सुराग देने वालों के लिए 50 लाख के इनाम की घोषणा की गई है। ताजा मिली जानकारी के अनुसार सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उस मोटरसाइकल की पहचान कर ली गई है, जो हमले में इस्तेमाल की गई थी। सीसीटीवी फुटेज में हमलावर भी दिख रहे हैं जिनमें से एक ने चेहरे पर नकाब पहना है। बताया गया है कि पुलिस ने स्केच जारी कर दिए हैं।

कई जिलों की पुलिस को अमृतसर में तलाशी के लिए भेजा गया है। साथ ही, आसपास के गांवों में भी बाइक और हमलावरों को तलाशा जा रहा है।
आतंकी हमले में जाकिर मूसा का हाथ बताया जाता है। हमले को लेकर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक आपात बैठक बुलाई है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई में हो रही इस बैठक में रॉ और आईबी सहित गृह मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। इस बीच पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि हमलावरों के सुराग देने वालों को सरकार 50 लाख रुपये इनाम देगी। पंजाब और जम्मू-कश्मीर क बॉर्डर पर नया हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है। उधर, एनआईए की 3 सदस्यीय टीम घटनास्थल पर जांच के लिए पहुंची है।

पीजीआई प्रोफेसर के खिलाफ चलेगा यौन शोषण का मामला

चंडीगढ़:

पीजीआई में तैनात एक प्रोफेसर के खिलाफ यौन शोषण का मामला चलेगा। इसकी मंजूरी शनिवार को केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने दे दी है। ज्ञात रहे पिछले दिनों एक रिसर्च स्कॉलर ने प्रोफेसर पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया था, जिसके बाद पीजीआइ ने मामले में कार्रवाई के लिए कमेटी गठित की थी। कमेटी ने प्रो. गौतम को दोषी माना और अपनी रिपोर्ट गवर्निंग बॉडी को भेज दी थी। अब गवर्निंग बॉडी ने यौनशोषण मामले में कार्रवाई को मंजूरी दे दी है।

यह प्रोफेसर पीजीआइ के माइक्रोबायोलॉजी डिपाटमेंट में कार्यरत है। मीटिंग में रिसर्च में प्लेगियारिज्म (रिसर्च वर्क चोरी करना) करने वाले डॉक्टर के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का फैसला लिया गया है। ऐसे डॉक्टरों पर दो साल तक रिसर्च करने पर रोक लगाने के अलावा उन्हें नौकरी से हटाया जा सकता है। पीजीआइ गवर्निंग बॉडी के इस फैसले के बाद पीजीआइ में प्लेगियारिज्म के मामले में फंसे डॉक्टर अब मुसीबत में पड़ सकते हैं।

पीजीआई से कई मुद्दों पर हुई चर्चा
पीजीआई के संबंध में हुई इस बैठक में कई अहम मुद्दों को लेकर चर्चा हुई। फैसला लिया गया कि जिन डॉक्टर के खिलाफ रिसर्च में धोखाधड़ी का मामला सही पाया जाएगा उन पर एक से दो साल तक रिसर्च पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी जाएगी। साथ ही ऐसे डॉक्टर रिसर्च गाइड भी नहीं बन सकेंगे। आरोपित डॉक्टरों को भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ेगा। कमेटी ने आरोपित डॉक्टर के 3 से 4 इंक्रीमेंट रोकने का फैसला लिया है। शोध चोरी का मामला अत्यधिक गंभीर होने पर आरोपित डॉक्टर को नौकरी से भी निकाला जा सकता है।

पीजीआई में होंगे नए डाक्टर भर्ती
पीजीआई की गवर्निंग बॉडी बैठक में नए डॉक्टर की भर्ती का मामला भी आया। जानकारी अनुसार बैठक में पीजीआइ के लिए 12 नए डॉक्टर की नियुक्ति को स्वीकृति दे दी गई है। गौरतलब है कि पीजीआइ में मरीजों के बढ़ते बोझ और डॉक्टरों की रिटायरमेंट के कारण डॉक्टर की कमी तेजी से बढ़ रही है। पीजीआइ ने कुछ समय पहले 35 फैकल्टी के लिए इंटरव्यू किए थे। जिसमें से कमेटी ने 12 डॉक्टर की नियुक्ति की मंजूरी दी है। कमेटी ने रायबरेली एम्स के लिए भी 4 डॉक्टर की नियुक्ति को मंजूर कर लिया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की अध्यक्षता में हुई मीटिंग में गवर्निंग बॉडी के करीब 15 लोगों ने हिस्सा लिया। इसमें पीजीआइ डायरेक्टर प्रो. जगतराम और यूटी प्रशासक के सलाहकार परिमल राय भी मौजूद थे।

Shiv Sena endorsed Shahid Afridi’s statement on Kashmir

 

The Shiv Sena on today reacted on former Pakistani cricketer Shahid Afridi’s remarks that his country “does not want Kashmir” and said all sane Pakistanis would endorse the view.

According to the Sena, in an editorial in its mouthpiece ‘Saamana’, said Pakistan’s government and the military chief gave more impetus on trying to harm India than governing the country as a result of which it has to seek external financial aid even 70 years after Independence.

Former all-round cricketer of Pakistan Shahid Afridi on Wednesday proposed that Pakistan-occupied Kashmir should be given “independence”, saying the country does not want the region as it cannot even manage its four provinces.

Afridi was addressing students in London when he is learnt to have the statement. The video, in which he is heard saying that Pakistan is not interested in Kashmir and since the country is against giving it to India, the region should be given independence, has gone viral on the social media.

“I say Pakistan doesn’t want Kashmir. Don’t give it to India either. Let Kashmir be independent. At least humanity will be alive. Let people not die,” he said.

He went on add that “humanity” or “insaniyat” should be prioritised.

Afridi later blamed the Indian media for quoting him.

The Sena’s editorial Friday stated, “Pakistan has become so poor in trying to support terrorism and corruption that it now is left with only the option of selling cattle and vehicles from the Prime Minister’s residence.”

It claimed that Pakistan was on the verge of a financial breakdown and it had been relegated to begging for a bailout from countries like China after the International Monetary Fund (IMF) turned down its aid request.

“If the country needs financial oxygen to keep its economy going, alive, how will it take care of Kashmir? Not just Afridi, every sane Pakistani will hold the same view. However, who asks the common man there?” the editorial questioned.

“The government and the military chief there give more impetus on harming India than doing good for its people. Therefore, they have to beg for aid even 70 years after Independence,” it said.

The Sena further dubbed Afridi as “anti-Indian” and said he has, in the past, made derogatory statements against India.

Citing examples, it said Afridi had shown a soft corner for 13 terrorists eliminated by Indian security forces and has been repeatedly advocating Independence for Kashmir.

A day after Afridi’s remarks, Home Minister Rajnath Singh on Thursday said the former cricketer’s comment that his country could not even manage its four provinces, was right.

Addressing a press conference in Raipur, the minister said, “What is he said is right. They are not able to manage Pakistan. How can they manage Kashmir? Kashmir is and will be a part of India.”

सेब मंडी की आधारशिला पर आम आदमी पार्टी ने किया विरोध प्रदर्शन

बीजेपी की नीतियां जनविरोधी, सिर्फ पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली : योगेश्वर शर्मा

आज आम आदमी पार्टी ने कालका पहुंचने पर सीएम मनोहर लाल खट्टर का विरोध प्रदर्शन किया। सीएम मनोहर लाल आज सेब मंडी का शिलान्यास करने एचएमटी पहुंचे थे । आज आम आदमी पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं ने योगेश्वर शर्मा की अध्यक्षता में मनोहर लाल खट्टर का पुतला फूंका और बीजेपी विरोधी नारे लगाए। इस अवसर पर योगेश्वर शर्मा ने जारी एक बयान में कहा कि बीजेपी की नीतियां सिर्फ पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली है। बीजेपी को गरीबों से कोई लेना देना नहीं है। एचएमटी की इंडस्ट्रियल जगह पर से मंडी लगाकर बीजेपी ने यह साबित भी कर दिया है। उन्होंने कहा कि पहले तो एचएमटी बंद करने का निर्णय ही गलत था जिस वजह से दो हजार के करीब परिवार बेरोजगार और बेघर हो गए और उसके बाद इंडस्ट्रियल एरिया में अगर इंडस्ट्री ही लगाई जाती तो उन लोगों को रोजगार मिलने के अवसर प्रदान होते जिन्हें सरकार ने एचएमटी बंद कर बेघर और बेरोजगार किया था। योगेश्वर शर्मा ने कहा कि एचएमटी बंद करने का फैसला बहुत ही निंदनीय है उस पर सेब मंडी लगाकर बीजेपी ने यह साबित कर दिया कि बीजेपी कितनी जनता की हितेषी है। सेब मंडी वैसे भी सिर्फ 2 महीने का ही व्यवसाय है बाकी समय पर उसका क्या उपयोग लिया जाएगा ये सरकार ने नहीं सोचा । यहां जारी एक बयान में योगेश्वर शर्मा ने कहा कि सेब मंडी का निर्णय बीजेपी ने सिर्फ अपने ही हितेषीओं और अपने नेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए ही लिया है ताकि वह उनको सस्ते रेट पर जमीन अलॉट कर सके और वह अपनी मनमर्जी से बाद में वहां कोई भी काम कर सके।

इस अवसर पर उनके साथ कालका विधान सभा के संगठन मंत्री प्रवीण हुड्डा भी मौजूद थे प्रवीण हुडा ने जारी बयान में कहा कि वो एचएमटी बंद होने से हुए बेरोजगार लोगों के हक की लड़ाई अभी लड़ते रहेंगे और सरकार की सेब मंडी की नीति के विरुद्ध अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। हुड्डा ने यह भी कहा कि जल्द ही 2019 में कालका की जनता बीजेपी को करारा जवाब देगी और आम आदमी पार्टी की सरकार बनेगी। इस अवसर पर उनके साथ बिट्टू सदाना,स्वर्ण पाल सिंह , बिज भुशन, हरप्रीत सिंह, मनप्रीत, आर्य सिंह, सनी व कई पदाधिकारी और कार्यकर्ता मौजूद थे।

Punjab on high alert

 

Sources said that all the four accused had hired the taxi from Jammu to Amritsar in Punjab and had dinner at a restaurant near Samba in Jammu where they picked up a quarrel with the owner.

 

CHANDIGARH-JAMMU, Nov 14:

Alert has been sounded in Pathankot-Kathua regions on Punjab-J&K border after four persons hijacked a taxi on gun point in Madhopur.
“As per initial reports, four persons hijacked a taxi having J&K registration (JK02AW-0922) Silver Colour, Innova from Madhopur between Punjab-Kathua,” police sources here said.
They said that as per driver namely Raj Kumar, son of Babu Ram, resident of Saza, district Doda, four persons hired the taxi from Jammu for Pathankot on Tuesday night and on reaching Madhopur, they pointed revolver at him and fled away with the vehicle leaving him injured.
“Alert has been sounded and manhunt launched in Pathankot and other adjoining areas to track them with the vehicle,” they said.
Meanwhile, a senior officer of J&K Police said that initially nothing can be said whether the hijackers were terrorists or it is a foul play by some mischief persons.
“We are in regular touch with the Punjab Police,” they added. Vice President of Railways Taxi Union, Rajvinder Singh said that on seeing CCTV footage, four men were seen boarding the taxi.
“They were asked to hire a small car as they were four in number but they did agree and after paying an amount of Rs 3550, they booked Innova in the name of Major Sarabjeet,” said the Taxi Union leader.
He said that as per the driver, who called them after an incident, said that the occupants were communicating in “pure” Punjabi language, which is often spoken in Pakistan and they stopped once at Kathua for meals.
“At Madhopur where token is deposited, the driver was about to step out but the travellers, beat him and fled away with vehicle,” said the Union leader. He added that they are in regular touch with the Punjab Police.
“If the occupants claimed that they were Army men at Lakhanpur Toll, the duty men should have checked their identity cards to prevent this incidence,” he added and said that prompt action is required so that major incident can be foiled. However, security has been tightened on Jammu-Pathankot national highway while check points are also raised

सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार सभी प्रकार के वाहनों पर हाइ सेक्यूरिटी नंबर प्लेट लगवाना हुआ अनिवार्य

 

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत हर प्रकार के वाहनों में हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगवाना अनिवार्य हो गया है। अब इसका पालन कराने के लिए ट्रैफिक पुलिस ने भी कमर कस ली है। जिसके तहत अब लगातार नेशनल हाई-वे 344 पर ट्रैफिक पुलिस पैनी नजर जमाए बैठी हैै। इस कड़ी में शुक्रवार व शनिवार को ट्रैफिक पुलिस ने लगभग 50 वाहनों के चालान काटे। ट्रैफिक पुलिस एएसआई वीरेंद्र सिंह ने बताया कि सभी तरह के वाहनों में हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगवाने का प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान के मुताबिक पुलिस ने खूब प्रचार प्रसार भी किया। इसके बाद भी लोग नियम के पालन के लिए गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं।

उन्होंने बताया कि शनिवार को धीन गांव के पास इसी कड़ी में 15 चालान किए गए हैं। जिनमें 8 चालान बगैर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट व 7 चालान ओवरस्पीड के काटे गए हैं। इसी तरह शुक्रवार को भी मनका गांव के पास चालान किए गए थे । जिसमें 16 चालान बिना हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट व 7 चालान ओवरस्पीड वाहनों के काटे गए थे। उन्होंने सभी वाहन चालकों को नसीहत देते हुए कहा कि सभी को यातायात के नियमों का पालन करना चाहिए। वाहन चलाते समय सीट बेल्ट व हैलमेट का प्रयोग करना चाहिए।

अब प्रश्न यह उठता है की आखिर यह हाइ सेक्यूरिटी नुंबर प्लेट है क्या?

आपको इसके नाम से ही पता चल गया होगा कि यह नया नंबर प्‍लेट पहले के मुकाबले बेहतर और सु‍रक्षित होगा। आपको बता दें कि, हाई सिक्‍यूरिटी रजिस्‍ट्रेशन प्‍लेट एल्‍यूमिनीयम का बना हुआ एक प्‍लेट होगा। इस नंबर प्‍लेट पर एक होलोग्राम लगा होगा जिसपर एक चक्र बना होगा। यह होलोग्राम एक ऐसा स्टीकर होगा जिसपर वाहन के इंजन और चेसिस नंबर इंगित होगा। सबसे खास बात यह है कि यह होलोग्राम जल्‍द नष्‍ट होने वाली नहीं होगा।

इसके अलावा हर प्‍लेट पर 7 अंकों का एक यूनीक लेजर कोड होगा जो कि हर वाहन के नंबर प्‍लेट पर अलग-अलग होगा। इस नंबर प्‍लेट पर आपके वाहन का जो रजिस्‍टेशन नंबर होगा वो सबसे खास होगा। जिसे हटाने या फिर मिटाने में पसीने छूट जायेंगे। इस नंबर प्‍लेट पर आपके वाहन का जो रजिस्‍ट्रेशन नंबर लिखा गया होगा वो किसी पेंट या फिर स्‍टीकर आदि से नहीं लिखा होगा।

नंबर को आपके प्‍लेट पर प्रेसर मशीन से लिखा गया होगा जो कि प्‍लेट पर उभरा हुआ दिखेगा। यह कार्य आरटीओ द्वारा किया जायेगा इस वजह से जो अंक और अक्षर उभरेगा उस पर भी आईएनडी दिखेगा। इस कार्य में कोई जालसाजी नहीं हो सकती है क्‍योंकि कोई भी व्‍यक्ति अपने मन से न तो इन नंबरों में कोई फेर बदल कर सकता है और न ही उन्‍हे मिटा सकता है।

इस हाई सिक्‍यूरिटी रजिस्‍ट्रेशन प्‍लेट को अपने वाहन पर लगाने के लिए आपको अपने जेब से कितना पैसा खर्च करना होगा? आइयें हम आपको बतातें है। यदि आपके पास चार पहिया वाहन है तो इसके लिए आपको महज 334 रूपये और यदि दोपहिया वाहन है तो महज 111 रूपये देनें होंगे।

इसके अलावा यदि आप कोई व्‍यवसायीक वाहन के लिए हाई सिक्‍यूरिटी रजिस्‍ट्रेशन प्‍लेट प्राप्‍त करना चाहतें है। इसके लिए 134 रूपये और यदि आपका वाहन हैवी व्‍यवसायीक वाहन की श्रेणी में आता है तो इसके लिए आपको 258 रूपये देनें होंगे। आपको बता दें कि हर हाई सिक्‍यूरिटी रजिस्‍ट्रेशन प्‍लेट के वैधता समय भी होगा एक प्‍लेट जारी किये गये तारिख से 5 वर्षो तक के लिए वैध माना जायेगा। स्‍नैप लॉक देगा मजबूती: यह एक तरह का पिन होगा जो कि आपके हाई सिक्‍यूरिटी रजिस्‍ट्रेशन प्‍लेट को आपके वाहन से जोड़ेगा। इसे विभाग द्वारा ही लगाया जायेगा। सबसे खास बात यह कि यह किसी स्‍क्रू या फिर नट-बोल्‍ट की तरह नहीं होगा जिसे आप स्‍क्रू ड्राइवर या फिर पाने से खोल सकेंगे यह पिन एक बार आपके वाहन से प्‍लेट को पकड़ लेगा तो य‍ह दोनों ही तरफ से लॉक होगा। जो कि किसी भी द्वारा खोला नहीं जा सकेगा।

आखिर इस नंबर प्‍लेट की आवयश्‍क्‍ता क्‍या है। आपको बता दें कि यह नंबर प्‍लेट न केवल आपको सुविधा प्रदान करेगा बल्कि अपराधियों पर भी पूरी नकेल कसेगा। आइयें बतातें है कैसे? इस नंबर प्‍लेट में प्रयोग किये गये स्‍नैप लॉक सिस्‍टम के कारण कोई भी आपके वाहन के रजिस्‍ट्रेशन प्‍लेट को हटा नहीं सकेगा जिससे वाहन चोरी की वारदातों को अंजाम देनें वालों की खैर नहीं होगी।

इसके अलावा ऐसा कई बार देखा गया है कि किसी हादसे या फिर दुर्धटना आदि के दौरान वाहन जल जातें है। इस दौरान सबसे बड़ी समस्‍या यही होती है कि वाहन के नंबर प्‍लेट भी इस कदर जल जातें है कि उन पर लिखे नंबर गायब तक हो जातें है। लेकिन इस हाई सिक्‍यूरिटी रजिस्‍ट्रेशन प्‍लेट के साथ ऐसा नहीं होगा। वाहन कितनी भी बुरी तरह जल जाये लेकिन इस प्‍लेट पर उभरे हुए अंकों और अक्षरों को छू कर अंदाजा लगाया जा सकेगा कि वाहन का रजिस्‍ट्रेशन नंबर क्‍या है

ओवर स्पीड से हो रहे हादसे, ट्रैफिक पुलिस लगाएगा लगाम…………

ट्रैफिक पुलिस एएसआई विरेन्द्र सिंह ने बताया कि नेशनल हाइवे 344 बनने के बाद वाहनों की स्पीड़ बढ़ गई है । लोग ओवर स्पीड ड्राईव करते है, जिससे लगातार हादसे घटित हो रहे है । जिसमें कुछ जाने भी जा चुकी है। लेकिन ट्रैफिक पुलिस ओवर स्पीड वाहनों के चालान काट कर उन्हें निर्धारित स्पीड में वाहन चलाने की नसीहत भी देती है । उन्होंने कहा कि यह अभियान नेशनल हाईवे 344 पर लगातार जारी रहेगा ताकि वाहन चालक यातायात नियमों का पालन करें व हादसों के बढ़ते ग्राफ में कमी आए । उन्होंने कहा यातायात के नियम तोडऩे वाले किसी भी वाहन चालक को नहीं बक्शा जाएगा।