राम मंदिर की याचिका पर सुनवाई आज

याचिका में अयोध्या मामले की सुनवाई एक तय समय में किए जाने की मांग की है और अगर तय समय में सुनवाई नहीं होती है तो कोर्ट अपने आदेश में कारण बताए कि एक तय समय में सुनवाई आख़िरकार क्यों नहीं हो सकती. आपको बता दें कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई जनवरी माह तक टाल दी थी.

नई दिल्ली : अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अहम सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ सुबह 11 बजे के आसपास मामले की सुनवाई करेगी. माना जा रहा है कि आज होने वाली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट नई पीठ का गठन कर सकता है. साथ ही जल्द और रोजाना सुनवाई की मांग वाली अर्जी पर भी सुनवाई हो सकती है. इसके अलावा कोर्ट एक नई जनहित याचिका पर भी सुनवाई करेगा. यह जनहित याचिका हरीनाथ राम ने दायर की है.

याचिका में अयोध्या मामले की सुनवाई एक तय समय में किए जाने की मांग की है और अगर तय समय में सुनवाई नहीं होती है तो कोर्ट अपने आदेश में कारण बताए कि एक तय समय में सुनवाई आख़िरकार क्यों नहीं हो सकती. आपको बता दें कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई जनवरी माह तक टाल दी थी.

इससे पहले तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर मामले को सुन रहे थे. सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्षों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा था. कोर्ट ने 1994 के इस्माइल फारुकी के फैसले में पुनर्विचार के लिए मामले को संविधान पीठभेजने से इंकार कर दिया था. मुस्लिम पक्षों ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी.

गौरतलब है कि राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था. इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला था. टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था. फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए. जिस जगह रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था.

अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी थी. इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी. कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे. उसके बाद से ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

गहलोत ने दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीरें सरकारी संस्थानों और फाइलों में नहीं दिखेंगी

अशोक गहलोत के कैबिनेट ने निर्देश दिया है कि सभी सरकारी दस्तावेजों और लेटर पैड्स पर से दीन दयाल उपाध्याय की फोटो हटाई जाए

राजस्थान में सरकार बदलते ही पुरानी सरकार के फैसलों को बदलने का दौर भी शुरू हो गया है. राज्य के सीएम अशोक गहलोत के कैबिनेट ने निर्देश दिया है कि सभी सरकारी दस्तावेजों और लेटर पैड्स पर से दीन दयाल उपाध्याय की फोटो हटाई जाए. राज्य सरकार ने ये निर्देश सभी विभागों के लिए जारी किया है.

दीन दयाल उपाध्याय RSS विचारक हैं. इससे पहले वसुंधरा राजे की सरकार ने यह फैसला किया था कि सभी सरकारी लेटरपैड और दस्तावेजों पर उपाध्याय की फोटो लगाई जाएगी.

ANI@ANI

Rajasthan cabinet directs removal of photographs of Deen Dayal Upadhyay from Govt documents and from letter pads. The direction has been issued to all the state govt departments53110:48 PM – Jan 2, 2019Twitter Ads info and privacy363 people are talking about thisTwitter Ads info and privacy

राजस्थान की सरकार ने बुजुर्गों के लिए मंथली पेंशन बढ़ाने का भी ऐलान किया है. बुजुर्गों को अब 500 रुपए की जगह 750 रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलेंगे. जिन्हें पहले ही 750 रुपए मासिक मिल रहे थे अब उन्हें इसके बदले 1,000 रुपए मिलेंगे.

मध्यप्रदेश में भी नया फरमान

इसके दूसरी तरफ मध्यप्रदेश सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर मीसाबंदियो को दी जाने वाली पेंशन इस महीने से अस्थाई तौर पर बंद कर दिया है और बैंकों को भी इस संबंध में निर्देश जारी कर दिये गए हैं. मीसाबंदी पेंशन को लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि के नाम से भी जाना जाता है. इस संबंध में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने गत 29 दिसंबर को सर्कुलर जारी कर मीसाबंदी पेंशन योजना की जांच के आदेश दिए. सरकार ने बैंकों को भी मीसाबंदी के तहत दी जाने वाली पेंशन जनवरी 2019 से रोकने के निर्देश जारी किए हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान साल 1975 से 1977 के बीच लगे आपातकाल में जेल में डाले गए लोगों को मीसाबंदी पेंशन योजना के तहत मध्य प्रदेश में करीब 4000 लोगों को 25,000 रुपए मासिक पेंशन दी जाती है.

वंदे मातरम विवाद का हल ढूँढने में जुटी कांग्रेस्स

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सॉफ्ट हिन्दुत्व की नीति पर चल रही मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार मंत्रालय में वंदेमातरम का गायन रोक कर एक अनचाहे विवाद में फंस गई है।

 हिन्दुत्व पर साफ्ट होने कार्थ राष्ट्र से मुख मोड़ना नहीं है यह बात शायद कांग्रेस को जल्दी ही समझ आ जाएगी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सॉफ्ट हिन्दुत्व की नीति पर चल रही मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार मंत्रालय में वंदेमातरम का गायन रोक कर एक अनचाहे विवाद में फंस गई है. मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को बैठे-बैठाए सरकार को घेरने का एक मुद्दा भी हाथ लग गया है. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस राजनीतिक विवाद को भांपकर विपक्ष पर हमलावर होते हुए कहा है कि मंत्रालय में वंदेमातरम का गायन को जल्द ही नए रूप में प्रस्तुत किया जाएगा.

बाबूलाल गौर के कार्यकाल में शुरू हुआ था वंदेमातरम का गायन

राज्य मंत्रालय में वंदे मातरम गायन की व्यवस्था लगभग चौदह साल पूर्व बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्रित्व काल में शुरू हुई थी. इस व्यवस्था के तहत हर माह की पहली तारीख को मंत्रालय और विभागाध्यक्ष कार्यालयों में तैनात अधिकारी एवं कर्मचारी कार्यालय शुरू होने के समय सुबह साढ़े दस बजे वंदे मातरम का सामूहिक गान करते थे. माह की पहली तारीख को अवकाश होने पर अगले कार्यालयी दिवस में वंदेमातरम का कार्यक्रम आयोजित किया जाता था.

पिछले चौदह साल में मुख्यमंत्री ने यदाकदा ही इस कार्यक्रम में रस्मी तौर पर हिस्सा लिया. कभी-कभी कोई मंत्री भी भूले-भटके इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पहुंच जाता था. राज्य मंत्रालय और विभागाध्यक्ष कार्यालयों में बीस हजार से अधिक अधिकारी एवं कर्मचारी तैनात हैं. इसके बाद भी वंदे मातरम के सामूहिक गान कार्यक्रम में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की उपस्थिति कभी भी एक हजार का आकंडा नहीं छू पाई.

पिछले कुछ सालों से लगातार वंदे मातरम के गायन को वरिष्ठ अधिकारियों ने भी गंभीरता से लेना बंद कर दिया था. राज्य के मुख्य सचिव इस सामूहिक गायन में आमतौर पर मौजूद रहते थे. पिछले कुछ माह में इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले कर्मचारियों की संख्या भी तेजी से घटी. इसकी वजह मंत्रालय के कर्मचारियों का समय पर कार्यालय न पहुंचना रहा है.

उमा भारती की तिरंगा यात्रा का जवाब माना जाता था वंदे मातरम

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के लिए वंदे मातरम का गायन हमेशा ही राष्ट्र भक्ति साबित करने का बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है. बाबूलाल गौर ने मंत्रालय में वंदे मातरम गायन का निर्णय उन दिनों लिया था, जब उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाए जाने की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी थीं. गौर को अगस्त 2004 में राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था.

गौर, साध्वी उमा भारती के स्थान पर मुख्यमंत्री बनाए गए थे. कर्नाटक के हुबली में दर्ज एक आपराधिक मामले के चलते उमा भारती को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. यह आपराधिक मामला राष्ट्र ध्वज तिरंगा के कथित अपमान से जुड़ा हुआ था.

इस्तीफे के बाद उमा भारती ने तिरंगा यात्रा भी निकाली. तिरंगा यात्रा पूरी होने और हुबली मामले में कोर्ट से मिली राहत के बाद उमा भारती ने गौर को हटाने के लिए पार्टी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था. जवाब में गौर ने एक जुलाई 2005 से मंत्रालय में वंदे मातरम का गायन शुरू कर दिया. यद्यपि इसके बाद भी गौर अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए. उनके स्थान पर नवंबर 2005 में शिवराज सिंह चौहान राज्य के मुख्यमंत्री बना दिए गए.

वंदे मातरम के गायन कार्यक्रम में अधिकारी एवं कर्मचारी हिस्सा लें, इसका कोई बंधन सरकार की ओर से नहीं रखा गया था. वर्ष 2019 के पहले ही दिन मंत्रालय में वंदेमातरम का गायन न होने पर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने कहा कि इस बारे में मुख्यमंत्री कमलनाथ से बात करेंगे.

बीजेपी की कोशिश लोकसभा चुनाव से पहले गांव-गांव पहुंचे मुद्दा

एक जनवरी को मंत्रालय परिसर में वंदे मातरम का गायन कार्यक्रम न होने पर प्रदेश की राजनीति अचानक गर्म हो गई है. भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे के जरिए एक बार फिर राष्ट्रवाद के मुद्दे को हवा देने में लग गई है. बीजेपी के नेताओं ने सरकार के निर्णय का विरोध करते हुए बुधवार को मंत्रालय के समक्ष वंदे मातरम का सामूहिक गान किया.

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वंदेमातरम के गान को बंद करने के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कांग्रेस सरकार की राष्ट्र भक्ति पर सवाल खड़े किए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि देश भक्ति से ऊपर कुछ नहीं है. बीजेपी के विधायक छह जनवरी को मंत्रालय के समक्ष वंदे मातरम का सामूहिक गान करेंगे.

सात जनवरी से विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है. बीजेपी की योजना विधानसभा के भीतर भी सरकार को घेरने की है. बीजेपी इस मुद्दे के जरिए लोगों को यह बताना चाहती है कि कांग्रेस ने वंदे मातरम के गायन का फैसला अल्पसंख्यक वोटों के तुष्टिकरण के लिए लिया है.

तीन माह बाद लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. इससे पहले बीजेपी गांव-गांव तक इस मुद्दे को ले जाना चाहती है. हाल ही में हुए विधानसभा के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी बहुमत से कुछ कदम ही दूर रह गई थी. बीजेपी 109 सीटें ही जीत पाई थी. जबकि कांग्रेस को 114 सीटें मिली हैं.

बहुमत के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है. कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका ज्यादा सीटें जीतने के कारण मिला है. कांग्रेस को विधानसभा में मिली सीटों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपनी कई मौजूदा सीटों को गंवाना पड़ सकता है. वर्तमान में बीजेपी के पास लोकसभा की 29 में से 26 सीटें हैं. मुख्यमंत्री कमलनाथ पार्टी की सॉफ्ट हिन्दुत्व की नीति पर चलते हुए गाय रक्षा का एजेंडे का प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखे हुए हैं.

कमलनाथ ने अधिकारियों से साफ शब्दों में कहा है कि उन्हें सड़क पर गाय नहीं दिखना चाहिए. सरकार पंचायत स्तर पर गौशाला खोलने की तैयारी भी कर रही है. साधु-संतों को साधने के लिए आध्यात्म विभाग भी बनाया जा रहा है.

वंदे मातरम का गायन नहीं होगा,इसकी खबर सिर्फ चंद अफसरों को थी

वंदे मातरम के मुद्दे पर तेज हुई सियासत के बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि किसी की राष्ट्र भक्ति सिर्फ वंदे मातरम के गाने से तय नहीं की जा सकती. कमलनाथ ने बचाव में कहा कि वे वंदे मातरम के गान की परंपरा को नए रूप में जल्द ही शुरू करेंगे.

एक जनवरी को मंत्रालय में वंदे मातरम का गान नहीं होगा इसकी जानकारी सिर्फ चुनिंदा अफसरों को ही थी. सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने 29 दिसंबर को एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें एक जनवरी को वंदे मातरम के सामूहिक गान के कार्यक्रम की सूचना सभी कर्मचारियों की दी गई थी. सूचना जरूर जारी की गई लेकिन, कार्यक्रम की तैयारियां नहीं की गईं.

पुलिस बैंड को भी सूचित नहीं किया गया. कुछ अधिकारी कर्मचारी निर्धारित समय पर मंत्रालय परिसर में पहुंचे लेकिन, वहां तैयारी न देख अपनी सीट पर चले गए. मुख्यमंत्री कमलनाथ भोपाल से बाहर थे. वे अपने निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा से सीधे उज्जैन महाकाल के दर्शन करने के लिए चले गए थे. राज्य के नए मुख्य सचिव एसआर मोहंती ने भी नए साल के पहले दिन ही कार्यभार ग्रहण किया था.

ट्रिपल तालाक बिल राज्य सभा में मुंह के बल गिरेगा: कांग्रेस महासचिव

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि लोकसभा में जब यह विधेयक पेश किया गया था तब 10 विपक्षी दल इसके खिलाफ खुल कर सामने आए थे

शनिवार को कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल ने कहा कि उनकी पार्टी तीन तलाक विधेयक को इसके मौजूदा रूप में राज्यसभा में पारित नहीं होने देगी. वेणुगोपाल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि कांग्रेस अन्य दलों को साथ लेकर विधेयक को इसके मौजूदा रूप में पारित नहीं होने देगी.

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि लोकसभा में जब यह विधेयक पेश किया गया था तब 10 विपक्षी दल इसके खिलाफ खुल कर सामने आए थे. कांग्रेस नेता ने कहा कि यहां तक कि अन्नाद्रमुक और तृणमूल कांग्रेस ने भी इस विधेयक का खुल कर विरोध किया है. गौर करने वाली बात यह है कि अन्नाद्रमुक ने कई मुद्दों पर बीजेपी नीत सरकार का समर्थन किया है.

लोकसभा में पास हो चुका है बिल

उन्होंने कहा कि यह विधेयक महिलाओं को सशक्त करने में कोई मदद नहीं करेगा. गौरतलब है कि गुरुवार को लोकसभा में यह विधेयक पारित हुआ था. उम्मीद की जा रही है कि अगले सप्ताह राज्यसभा में इस पर विचार किया जा सकता है. कांग्रेस महासचिव का यह भी कहा है कि इस विधेयक को लेकर कांग्रेस नीत यूपीए या केरल में पार्टी नीत यूडीएफ में कोई भ्रम नहीं है.

संसद के निचले सदम में यह बिल ध्वनी मत से पास हो चुका है और अगर यह राज्यसभा में भी पास हो जाता है तो यह कानून बन जाएगा. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बीजेपी नेता और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि इस बिल पर राजनीति नहीं की जानी चाहीए. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि यह बिल किसी एक समुदाय के खिलाफ नहीं है.

Prepared for elections in Jammu and Kashmir at any time: Rajnath Singh

Union Home Minister Rajnath Singh told the Lok Sabha on Friday that the government was prepared for elections in Jammu and Kashmir at any time. He added that if the Election Commission would decide to hold polls, the Home Ministry would offer requisite security for the conduct of free and fair polls.

He said this as part of a discussion on a statutory motion on the proclamation issued by the President in December, 2018, under Article 356 of the Constitution in relation to Jammu and Kashmir. The discussion took place after the statutory motion was passed rather than before it.

Earlier, Congress leader Shashi Tharoor faulted Jammu and Kashmir governor Satya Pal Malik for recommending Governor’s rule instead of a floor test. He said this was in contravention of the SR Bommai judgment, according to which the Governor was bound to call for a floor test – the NC, PDP and Congress had reportedly sought to form a government – and added that majority could not be decided by the Governor on the ideological compatibility of parties seeking to form the government. Taking a dig at the BJP, he added that the previous BJP-PDP government was an “artificial mariage”.

Home Minister Rajnath Singh defended the Governor saying there seemed to be no clear move on the part of any potential alliance to stake claim to form the government. He said that in June then Governor N.N. Vohra had written to the President that the BJP had no intention to form the government after withdrawing support to the PDP. He had also written that the Jammu and Kashmir Congress president and they told him the party did not have the requisite numbers to form the government on its own or with any other party.

“Governor’s rule was imposed but the Assembly was not dissolved so that another alliance could form the government. But no political party staked a claim and the Governor had to send his report for President’s rule,” Mr. Singh said, adding that while he had read newspaper reports of the PDP, NC and the Congress wishing to form a government, the Congress’ leader in the Rajya Sabha Ghulam Nabi Azad had denied it.

National Conference leader Farooque Abdullah, however, said that the PDP was willing to form a government and the NC, and even the Congress, had agreed to support them.

“This government’s intention should not be doubted,” the Home Minister said. “If we wanted another government to be formed, we could have done so in six months. As for the Kashmir problem solution, it is an old problem. All Indians want a solution. The people of Kashmir are our own people. I have repeatedly said that I want a solution with the help of all. We also took all-party delegations. I said we have no problem talking to anyone who wants to talk.”

He added, “Some said they want to meet secessionist leaders. They went and had to return. I don’t want to discuss that here.”

“At one time, Kashmir situation was tense but we are trying our best to improve it and strengthen grass-roots democracy through local polls,” Mr. Singh claimed. “We are giving administrative and financial powers to those elected as local bodies’ representatives.”

Triple talaq amendment bill pass in Lok Sabha

बुलंद शहर की हिंसा

—-{ नसीरुद्दीन शाह ने की आवाज़ बुलंद }—

Er. S. K. Jain

बुलंदशहर की हिंसा पर अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए नसीरुद्दीन शाह ने टीवी पर कहा,”मुझे अपने बच्चों के बारे में सोच कर बड़ी फिक्र होती है। कल को किसी ने भी इनसे पूछा की तुम हिन्दू हो या मुसलमान तो मेरे बच्चों के पास कोई जवाब नहीं होगा, क्योंकि मैंने उन्हे न हिन्दू बनाया न मुसलमान। मुझे हालात जल्दी सुधरते तो नज़र नहीं आ रहे। मुझे दर नहीं लग रहा बल्कि गुस्सा आ रहा है। में चाहता हूँ की हर इंसान को गुस्सा आना चाहिए।

नसीर मानते हैं की इंसान की हत्या कानूनन जुर्म है। क्या वह यह नहीं मानते की गौ हत्या भी कानूनन अपराध है। वह गौ हत्या करने वाले कसाइयों के खिलाफ नहीं बोलते, लेकिन गौ हत्या के विरोध में बोलने वालों के खिलाफ बोलते हैं। क्या कार्न है कि 21 गायों के काटने के बारे में कोई नहीं बोलता लेकिन असहिष्णुता के नए एपिसोड को लेकर नसीरुद्दीन शाह सामने हैं।

जिस नसीरुद्दीन शाह को लोग हीरो मानते थे, अभिनेता मानते थे, आज उसे गाली दे रहे हैं, क्योंकि उनकी सच्चाई सामने आ गयी है। कृष्ण जी ने कहा था कि यदि हम एक गौ के लिए अपने कई जन्म भी कुर्बान कर दें तो भी काफी नहीं हैं। जिस सुमित कि हत्या हुई उस सुमित कि बहन अपने भाई कि हत्या पर मात्र 15 सेकंड बोली शेष समय उसने गौहत्या पर अपना गुस्सा ज़ाहिर किया, उसके मटा पिता भी अपने बेटे पर कम और गौरक्षा पर ज़्यादा बोले। थैलियों का दूध पीने वाले नसीरुद्दीन शाह को क्या पता कि इस राष्ट्र में गाय पर श्रद्धा रखने वाले 100 करोड़ से भी अधिक का एक सभ्य समाज है। अगर 21 गायों को काटा नहीं गया होता तो दंगों कि कोई संभावना ही नहीं थी। नसीर पाइसोंकी खातिर कुछ भी संवाद बोल सकते हैं यह एचएम विज्ञापनों के माध्यम से देख ही सकते हैं। लोगों का कहना है कि ऐसे लोगों को समुद्र में फेंक देना चाहिए, अगर वह तैर सकते हैं तो तैर कर पाकिस्तान चले जाएँ नहीं तो समुद्र के नीचे ता-कयामत ओसामा – बिन –लादेन के पास आराम फर्माएं।

यह भी पढ़ें: नसीरुद्दीन शाह ने सच ही तो कहा है

1984 में हजारों लोगों को मारा गया, कश्मीर में हिन्दू पंडितों को मारा गया और उन्हे काश्मीर से विस्थापित कर दिया गया, तब नसीरुद्दीन शाह कि आवाज़ नहीं निकली। नसीरुद्दीन शाह मुंबई ब्लास्ट के आरोपी याक़ूब मेनन के लिए रात 2 बजे खुलने वाले दरवाजों पर भी कुछ नहीं बोले, कोई प्रतिक्रिया नहीं। जिस देश में रहते हैं, जिसका अन्न खाते हैं, जहां से वह शोहरत दौलत कमाते हैं उसी के साथ गद्दारी करते हैं। आम जन का कहना है कि शाहरुख खान हो, आमिर खान या नसीरुद्दीन शाह सब के सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। 1983 के बीएमबी ब्लास्ट, 1984 के सीख दंगोन के वक्त नसीरुद्दीन नहीं जागा। अब जाग गया है क्योंकि 2018 जा रहा है ओर 2019 में चुनाव आ रहे हैं।शायद आने वाले चुनावों कि बानगी यह नाटक रचा जा रहा है। लोगों कि प्रतिक्रिया आ रही है कि यह नसीरुद्दीन नहीं जहरुद्दीन है, देश कि फिजा में जहर घोलने का काम कर रहा है। नसीरुद्दीन शाह ने ट्वेत कर कहा था, “एक शख्स जो काश्मीर में नहीं रहता, उसने काश्मीरी पंडितों कि लड़ाई शुरू कर दी और खुद को विस्थापित कर दिया।“ उनका यह ट्वीट काश्मीरी पंडितों कि लड़ाई लड़ने वाले अनुपम खेर के लिए किया गया है। आज वह खुद भी तो मुंबई में रह कर बुलद शहर वालों के लिए लड़ रहे हैं। फिल्मी पर्दे पर अपनी सोच बदलने वाले असल जिंदगी में भी अपनी सोच कैसे बदल लेते हैं, देखने वाली बात है।

Nationalised Banks on Strike today: 26 Dec, 2018

Services of state-owned banks are expected to be impacted Wednesday due to a nation-wide strike call given by unions to protest against the proposed amalgamation of Vijaya Bank and Dena Bank with Bank of Baroda. This will be the second bank strike in less than a week.

Last Friday (December 21), an officers’ union of state-run banks observed a day-long strike to protest against the merger and also demanded immediate settlement of wage negotiations. Most of the banks have already informed customers about the strike.

Private sector banks will continue to function as usual.

The strike is being organised by the United Forum of Bank Unions (UFBU), an umbrella organisation of nine unions, including the All India Bank Officers Confederation (AIBOC), the All India Bank Employees’ Association (AIBEA), National Confederation of Bank Employees (NCBE) and the National Organisation of Bank Workers (NOBW). The UFBU claims membership of 10 lakh officers and staffers.

According to AIBEA General Secretary C H Vekatachalam, the conciliation meeting called by Additional Chief Labour Commissioner did not lead to any assurance and so the unions are going ahead with the strike.

During the meeting, neither the government nor the concerned banks came forward to assure that they will not go ahead with the merger, he added.

The unions claim that the government wants banks to grow in size by such mergers but even if all public sector banks are bundled into one, the merged entity will not find a place among the top 10 globally.

The government in September approved the amalgamation of Bank of Baroda (BoB), Vijaya Bank and Dena Bank — the first three-way merger in the public sector banking space.

The move follows top lender State Bank of India last year merging five of its subsidiary banks with itself and taking over Bharatiya Mahila Bank, catapulting it to among the top 50 global lenders.

On wage revision, NOBW Vice President Ashwani Rana it is due since November 2017. So far, Indian Banks’ Association (IBA) has offered 8 per cent wage hike which is not acceptable to UFBU, he said.

Now Imran will ‘show Modi govt how to treat minorities’

“We will show the Modi government how to treat minorities…Even in India, people are saying that minorities are not being treated as equal citizens,” Pakistan PM Imran Khan said referring to Naseeruddin Shah’statement.  Imran’s statement shows as if he is in opposition and is ruling in one of the Indian state

Pakistan Prime Minister Imran Khan on Saturday said he will “show” the Narendra Modi government “how to treat minorities”, amidst a controversy over Bollywood actor Naseeruddin Shah’s remarks on mob violence in India. Shah finds himself at the centre of a major controversy over his remarks on the spate of mob lynching cases in India following the killing of a policeman in Uttar Pradesh’s Bulandshahr district earlier this month.

Addressing an event to highlight the 100-day achievements of the Punjab government in Lahore, Khan asserted that his government is taking steps to ensure that religious minorities in Pakistan get their due rights, which was also a vision of the country’s founder Muhammad Ali Jinnah.

Khan said his government will make it sure that the minorities feel safe, protected and have equal rights in ‘New Pakistan’. “We will show the Modi government how to treat minorities…Even in India, people are saying that minorities are not being treated as equal citizens,” he said referring to Shah’s statement.

In a video interview with Karwan-e-Mohabbat India, the veteran actor said the death of a cow was being given importance over killing of a policeman in India. He said the “poison has already spread” and it will be now difficult to contain it.

“It will be very difficult to capture this jinn back into the bottle again. There is complete impunity for those who take law into their own hands…I feel anxious for my children because tomorrow if a mob surrounds them and asks, ‘Are you a Hindu or a Muslim?’ they will have no answer. It worries me that I don’t see the situation improving anytime soon,” Shah added.

The Pakistani premier said if justice is not given to the weak then it will only lead to uprising. Giving an example, he said, “The people of East Pakistan were not given their rights which was the main reason behind the creation of Bangladesh.”

On December 3, Inspector Subodh Kumar Singh and a student, Sumit Kumar, were killed in mob violence in Bulandshahr after cow carcasses were found strewn around. The main accused in the case is a local Bajrang Dal leader, Yogesh Raj.

नसीरुद्दीन शाह ने सच ही तो कहा है, बस आसपास देखिए तो जरा

राजविरेन्द्र वसिष्ठ

भारत के लोगों में हिपोक्रेसी इतनी कूट-कूटकर भरी हुई है कि इनकी बुद्धियों को लॉजिक और सवाल-जवाब भेद भी नहीं पाते है। यहाँ अब अपनी बात किसी भी माध्यम से काही जा सकती है। अभी कुछ दिन पहले विराट कोहली पर उंगली उठाने वाले नसीरुद्दीन शाह अब भारत के सामाजिक ताने बाए से खौफजदा हैं। उन्हे आमिर खान कि तरह “भारत” में डर लगने लग गया है। जो व्यक्ति बर्फी और लड्डू में मजहबी फर्क करने पर खीज जाता था आज अपने मज़हब को ले कर पसोपेश में है। यह उनकी राजनैतिक बिसात है या फिर उनकी किसी नयी फिल्म क मसौदा यह तो वह ही जानें।

हिंदी सिनेमा के बड़े नाम नसीरुद्दीन शाह अपने बयान से न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम की बहस का मुद्दा बन गए हैं. अब उलट उनसे सवाल पूछा जा रहा है. ऐसी नौबत बनाई जा रही है कि उनको भी अपनी देशभक्ति साबित करने पर मजबूर होना पड़े. आमिर खान ने भी कुछ-कुछ ऐसा ही बयान दिया था और उन्हें आखिर में सफाई देनी पड़ी थी. उन्हें तो पाकिस्तान भेजने तक का न्योता भी मिल गया था. लेकिन शुक्र है कि पिछले कुछ वक्त से देश में पाकिस्तान भेजने की धमकी देने का चलन खत्म सा हो गया है. फिर उसे दोहरवाने कि इन्हे जरूरा पड़ी कहीं मामला राजनैतिक महत्वकांक्षा क तो नहीं?

‘बच्चों के लिए फिक्र होती है’

पूरा मामला कुछ यूं है कि ‘कारवां-ए-मोहब्बत इंडिया’ से एक इंटरव्यू में नसीरुद्दीन शाह ने बुलंदशहर हिंसा की घटना पर कमेंट किया था. उन्होंने कहा था कि उन्हें अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता है. वो डरे हुए नहीं गुस्से में हैं. उन्होंने कहा कि देश में जहर फैलाया गया है और अब इसे रोकना मुश्किल है.

शाह ने कहा था कि उन्होंने अपने बच्चों को कभी किसी खास धर्म की शिक्षा नहीं दी है. उन्होंने अपने बच्चे इमाद और विवान को धार्मिक शिक्षा नहीं देना तय किया था क्योंकि उनका मानना है कि ‘खराब या अच्छा होने का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है’, इसलिए उन्हें डर है कि अगर कभी भीड़ ने उनके बच्चों को घेरकर पूछ लिया कि वो किस धर्म के हैं, तो वो क्या जवाब देंगे?

शाह ने देश में हो रही मॉब लिंचिंग की घटनाओं के क्रम में जुड़े बुलंदशहर हिंसा पर टिप्पणी भी की. उन्होंने कहा कि देश में गाय के जान की कीमत एक पुलिसवाले से ज्यादा हो गई है. यहां गाय की मौत को पुलिस अधिकारी की हत्या से ज्यादा तवज्जो दी गई. उन्होंने कहा कि लोग कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं और उन्हें खुली छूट भी दे दी गई है.

शाह का अपने बच्चों के लिए डर होना 2015 में आमिर खान के असहिष्णुता पर दिए गए बयान की याद दिलाता है. खान की इस टिप्पणी के बाद जाहिर तौर पर विवाद पैदा हो गया था. उसी तरह शाह को भी निशाना बनाया जा रहा है.

शाह के सवाल पर सवाल

सबसे पहले बात राजनीतिक पार्टियों की. भारतीय जनता पार्टी की ओर से राकेश सिन्हा ने उनके इस बयान पर कहा है कि देश में कुछ लोग बदनाम गैंग में शामिल हो गए हैं. प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि देश में डरने जैसी स्थिति नहीं है. सच है यदि रोज़ सुबह कमा कर खाने वालों बच्चों से ले कर जवान औरतों को जैसा कि इनकी अभिनेत्रियों शबाना या समिता की तरह रसूखदारों की नज़रों से अपने आप को फटी साढ़ी में ढकतीं बचाती दिखाई जातीं थी उन्हे प्रतिदिन अपने आपको उसी जगह लाने में डर नहीं लगता तो फिर इनको कैसा डर? और यह साहब ज़रा बता तो दें की मुंबई धमाकों के बाद वहाँ कौन से धार्मिक उन्माद की बात इनहोने देख ली?

वहीं, न्यूज चैनलों पर सवाल पूछे जा रहे हैं कि नसीरुद्दीन शाह को बच्चों की चिंता क्यों हो रही है? क्या उन्हे सिर्फ अपने बच्चों की चिंता है, उनकी नहीं जो दिन रात सड़कों पर दो जून की रोटी और इस ठिठुरती ठंड मैनपने हाड़ गलने को मजबूर हैं। जिस देश ने उन्हें बुलंदियों पर पहुंचाया, अब वहां उन्हें डर क्यों लगने लगा है? इस बात की खातिर जमा रखिए जल्दी ही वह कोई टोपी पहने नज़र आएंगे, लोगों ने तो इसे 2019 की तैयारी भी बता दी है.

मीडिया भी तो खुश है. उसे समझ नहीं आ रहा कि शाह को डर क्यों लग रहा है? वो कैसे इतने सुरक्षित देश को असुरक्षित कह सकते हैं? देश ने तो कुछ वक्त से ऐसी कोई घटना देखी ही नहीं है, जिसमें डरने जैसी कोई बात हो. इसलिए शाह की बात ऐसी बेसिर-पैर है, जिसका ओर-छोर इन्हें समझ नहीं आ रहा और उनसे उलट सवाल पूछे जा रहे हैं.

अब जरा गंभीर सवाल-

– क्या पिछले कुछ वक्त में देश में मॉब लिंचिंग पर वह चाहे बंगाल में हो या फिर केरल में, मीडिया में सवाल नहीं उठाए गए हैं?

– क्या गौरक्षा/ असिहशुनता के अभियान को लेकर देश में बौद्धिक्क हिंसा नहीं बढ़ी है? क्या एक व्यक्ति विशेष के मुख्य पद पर बैठने से विपक्ष तिलमिलाया हुआ नहीं है? उसी का असर क्या कुछ समर्थकों की बातों में नहीं दीख पड़ता?

– क्या मीडिया ने देश में सुरक्षा को लेकर सरकारों पर सवाल नहीं उठाए हैं?

– क्या प्रशासनिक लापरवाही, गैर-जिम्मेदाराना बर्ताव और सरकारी नाकामी पर मीडिया सवाल नहीं करता है? क्या आपकी फिल्मों में स्वावलंबन नहीं सिखाया जाता और इस पर भत्तों की आग में खुद को झोंक देने की मानसिकता चिंता क विषय नहीं है? किसानों की बुरी हालत क्या विगत पाँच वर्षों ही में हुई है? उनकी कर्जा माफी क्या मध्य वर्ग यानि आम आदमी जिसकी आप एक्टिंग करते आए हैं के गाढ़ी कमाई पर सीधा सीधा डाका नहीं है, क्या इससे आपको चिंता होती है।

– क्या मीडिया को देश बहुत सुरक्षित लगने लगा है और उसे अव्यवस्था, हिंसा, अपराध की खबरें मिलनी बंद हो गई हैं?

मीडिया ने ये सवाल उठाए हैं और उठाता रहा है. मॉब लिंचिंग हो या सरकारी नाकामी का मसला हो, मीडिया सवाल पूछता है. मीडिया जवाबदेही ढूंढता है, तो दिक्कत क्यों है?

आंखें मूंदकर बेवकूफ बने रहना ज्यादा पसंद है?

शाह ने कौन सी नई बात कही है? क्या इस देश में बहुत शांति आ गई है? क्या एक आम आदमी से लेकर रसूख वाले इंसान को यहां डर नहीं लगता? क्या देश में आर्थिक और सामाजिक तौर पर बहुत सामंजस्यता बन गई है? क्या कश्मीर में पत्थर बाजों ने सेना के रास्ते में आना बंद कर दिया है? क्या बंगाल में दलितों की हत्याएँ बंद हो गईं है? क्या केरल में राजनैतिक हत्याएँ बंद हो गईं हैं? क्या रोहिङ्ग्यओन को ले कर तुष्टीकरण की राजनीति बंद हो गयी है? क्या हमने एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करना सीख लिया है, जिससे कि देश में डर खत्म हो जाना चाहिए?

हमारे यहां ये बड़ी समस्या है, अपनी चीज को खराब कहने में कोई दिक्कत नहीं, लेकिन यही बात कोई और कह दे तो हम उसपर चढ़ बैठते हैं. गर्व के भ्रम में इग्नोरेंस या कह लें अक्खड़ रुख को अपनाए बैठे हम खुद को एक बार नहीं आंकना चाहते.

इस पूरे मामले पर अप्रोच ऐसा होना चाहिए कि सच्चाई की ओर से आंखें मूंदकर सवाल दागने से अच्छा खुद ये सवाल उठाए जाएं. आखिर कोई ये बातें कह रहा है तो क्यों कह रहा है? देश में सुरक्षा क्यों नहीं है पूछने वालों से पूछा जाना चाहिए और कितनी सुरक्षा चाहते हो? आराम से काम पर जाते हो, पार्टियां करते हो, हर जगह मुफ्त की तोड़ते हो और फिर कहते हो की भावना असुरक्षा की है। और राजनीति करने वाले नेता समस्या को कैसे पोषित कर पा रहे हैं?

किसी आम आदमी से भी पूछ लीजिए कि वो इस देश में कितना सुरक्षित महसूस करता है. और बात बस धर्म की नहीं है, आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा बहुत मायने रखती है. आपको लगता नहीं की आम आदमी किस तरह की जिंदगी बसर कर रहा है। आम आदमी टिकिट खिड़की पर लगता है आपको देखने के लिए अपने आप को आप में ढूँढता हुआ वह अपनी गाढ़ी कमाई का एक हिस्सा आपके लिए खर्चता है। आप उसके रोल .माडल हैं। आम आदमी अपने बेटे भाई माँ बीवी के मरने के कुछ दिन बीत जाने पर फिर से जीने की ओर अग्रसर होता है, ठीक उसी तरह जिस तरह आप रुपहले पर्दे पर। जब वही आम आदमी आपके नाटक पर तालियाँ पीटता है तब तो आपको डर नहीं लगता ज़ाहीर सी बात है आप को राजनैतिक डर लगता है। आपने अपने ब्यान से अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की है, आपको खुले मन से इस मंच पर आना चाहिए था न की भुक्तभोगी होने का नाटक कर कर। पर आप नाटक के अलावा और कर भी क्या सकते हैं.

हर मुद्दे को चल रही हवा की चलनी में छानकर मतलब की चीजों को निकालकर मुद्दों को उलझाया न जाए तो कुछ अच्छा हो. लेकिन फिलहाल तो सच में चीजें बदलती नहीं दिख रहीं.