35-A, 370 खत्म जम्मू कश्मीर और लद्दाख का पुनर्गठन

गृह मंत्री ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड 1 के सिवा इस अनुच्छेद के सारे खंडों को रद्द करने की सिफारिश की है. इसके समाप्त होने के साथ ही केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक राज्यसभा में पेश किया है.

नई दिल्लीः 

जम्मू कश्मीर में आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का संकल्प पेश किया. गृह मंत्री ने कहा कि जम्मू कश्मीर से अनुछेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे. अमित शाह ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 सदन में पेश किया. गृह मंत्री ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड 1 के सिवा इस अनुच्छेद के सारे खंडों को रद्द करने की सिफारिश की है. इसके समाप्त होने के साथ ही केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक राज्यसभा में पेश किया है. आज केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से 35ए भी हटा दी है.

पहला फैसलाः जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया
दूसरा फैसलाः जम्मू से 35A हटाया गया
तीसरा फैसलाः जम्मू कश्मीर का दो हिस्सों में बंटवारा किया गया
चौथा फैसलाः जम्मू कश्मीर अब विधानसभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश होगा
पांचवा फैसलाः लद्दाख अब बिना विधानसभा का केंद्र शासित प्रदेश होगा

राज्यसभा में अमित शाह ने कहा कि हम जो बिल और संकल्प लेकर आए है उस पर आप अपनी राय रख सकते है. अनुच्छेद 370 (3) के अंतर्गत प्रदत्त कानूनों को खत्म करते हुए जम्मू कश्मीर पुर्नगठन 2019 विधेयक को पेश किया. इस विधेयक के मुताबिक जम्मू कश्मीर को अब केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा होगा. लद्दाख बगैर विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश होगा. इस विधेयक के राज्यसभा में पेश होते के साथ ही जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई.

राज्य के निर्वाचन क्षेत्र की सीमा का निर्धारण करने की प्रक्रिया
किसी राज्य के निर्वाचन क्षेत्र की सीमा का निर्धारण करने की प्रक्रिया. संविधान में हर 10 वर्ष में परिसीमन करने का प्रावधान है. लेकिन सरकारें ज़रूरत के हिसाब से परिसीमन करती हैं. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में कुल 87 सीटों पर चुनाव होता है. 87 सीटों में से कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में 4 विधानसभा सीटें हैं. परिसीमन में सीटों में बदलाव में आबादी और वोटरों की संख्या का भी ध्यान रखा जाता है.

ऐसा माना जा रहा है कि अगर परिसीमन किया जाता है तो जम्मू की सीटें बढ़ जाएंगी और कश्मीर की सीटें कम हो जाएंगी, क्योंकि 2002 के विधानसभा चुनाव में जम्मू के मतदाताओं की संख्या कश्मीर के मतदाताओं की संख्या से करीब 2 लाख ज्यादा थी. जम्मू 31 लाख रजिस्टर्ड वोटर थे. कश्मीर और लद्दाख को मिलाकर सिर्फ 29 लाख वोटर थे.

कश्मीर के हिस्से में ज्यादा विधानसभा सीटें क्यों हैं? 

ये समझने के लिए आपको जम्मू और कश्मीर के इतिहास को समझना होगा. वर्ष 1947 में जम्मू और कश्मीर की रियासत का भारत में विलय हुआ. तब जम्मू और कश्मीर में महाराज हरि सिंह का शासन था. वर्ष 1947 तक शेख अब्दुल्ला कश्मीरियों के सार्वमान्य नेता के तौर पर लोकप्रिय हो चुके थे.

जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह, शेख अब्दुल्ला को पसंद नहीं करते थे. लेकिन शेख अब्दुल्ला को पंडित नेहरू का आशीर्वाद प्राप्त था. पंडित नेहरू की सलाह पर ही महाराजा हरि सिंह ने शेख अब्दुल्ला को जम्मू और कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. वर्ष 1948 में शेख अब्दुल्ला के प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद महाराजा हरि सिंह की शक्तियां तकरीबन खत्म हो गई थीं. इसके बाद शेख अब्दुल्ला ने राज्य में अपनी मनमानी शुरू कर दी. वर्ष 1951 में जब जम्मू कश्मीर के विधानसभा के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई. तब शेख अब्दुल्ला ने जम्मू को 30 विधानसभा सीटें, कश्मीर को 43 विधानसभा सीटें और लद्दाख को 2 विधानसभा सीटें आवंटित कर दीं.

वर्ष 1995 तक जम्मू और कश्मीर में यही स्थिति रही. वर्ष 1993 में जम्मू और कश्मीर में परिसीमन के लिए एक आयोग बनाया गया था. 1995 में परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को लागू किया गया. पहले जम्मू कश्मीर की विधानसभा में कुल 75 सीटें थीं. लेकिन परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर की विधानसभा में 12 सीटें बढ़ा दी गईं. अब विधानसभा में कुल 87 सीटें थीं. इनमें से कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में 4 विधानसभा सीटें हैं. इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी जम्मू और लद्दाख से हुए इस अन्याय को ख़त्म करने की कोशिश नहीं हुई.

यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में हमेशा नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP जैसी कश्मीर केंद्रित पार्टियों का वर्चस्व रहता है. ये पार्टियां, संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 A को हटाने का विरोध करती हैं. यही वजह है कि कश्मीर से अलगाववादी मानसिकता खत्म नहीं हो रही है.

जम्मू कश्मीर की विधानसभा का राजनीतिक गणित इस तरह का है कि हर परिस्थिति में कश्मीर केंद्रित पार्टियों का ही वर्चस्व रहता है. अगर जम्मू और लद्दाख की 37 और 4 सीटों को जोड़ दिया जाए, तब भी सिर्फ 41 सीटें होती हैं. ये कश्मीर की 46 विधानसभा सीटों से 5 कम है. यही वजह है कि जम्मू कश्मीर की राजनीति में हमेशा मुख्यमंत्री कश्मीर से ही चुनकर आता है.

जम्मू कश्मीर में बहुमत की सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 44 सीटों की ज़रूरत होती है. कश्मीर में मुसलमानों की आबादी करीब 98 प्रतिशत है. सांप्रदायिक राजनीति करने में माहिर जम्मू और कश्मीर के क्षेत्रीय दल बहुत आसानी से कश्मीर की 46 सीटों को जीत कर बहुमत के आंकड़े को हासिल कर लेते हैं.

इन राजनीतिक परिस्थितियों में सबसे ज़्यादा अन्याय जम्मू और लद्दाख के साथ हो रहा है. कश्मीर केंद्रित पार्टियों की सरकार में जम्मू और लद्दाख के साथ सौतेला व्यवहार होता रहा है. मोदी सरकार ने इस समस्या को जड़ से ख़त्म करने का फ़ैसला किया है.  जम्मू-कश्मीर को नक़्शे को देखा जाये तो यहां का 61 प्रतिशत भूभाग लद्दाख़ है. जहां आतंकवाद का कोई असर नहीं है. वहीं 22 प्रतिशत जम्मू में आतंकवाद ख़त्म हुए लंबा वक़्त बीत चुका है. लेकिन कश्मीर घाटी…जो राज्य का क़रीब 17 प्रतिशत हिस्सा है…वहीं पर अलगाववादी और आतंकवादी सक्रिय हैं. कश्मीर घाटी में 10 ज़िले हैं…जहां आतंकवादी घटनाएं होती हैं.  इनमें से भी दक्षिण कश्मीर के 4 ज़िले शोपियां, पुलवामा, कुलगाम और अनंतनाग ही आतंकवाद के गढ़ माने जाते हैं. .

बता दें कि पूर्व सीएम और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला ने भी हमेशा परिसीमन को टालने की कोशिश की है. नए सिरे से परिसीमन में सबसे बड़ी रूकावट उन्होंने ही पैदा की थी. वर्ष 2002 में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार ने परिसीमन को 2026 तक रोक दिया था. इसके लिए अब्दुल्ला सरकार ने Jammu and Kashmir Representation of the People Act 1957 और जम्मू कश्मीर के संविधान के Section 47(3) में बदलाव किया था.

Section 47(3) में हुए बदलाव के मुताबिक वर्ष 2026 के बाद जब तक जनसंख्या के सही आंकड़े सामने नहीं आते हैं तब तक विधानसभा की सीटों में बदलाव करना ज़रूरी नहीं है. वर्ष 2026 के बाद जनगणना के आंकड़े वर्ष 2031 में आएंगे. इसलिए अगर देखा जाए तो अब जम्मू कश्मीर में परिसीमन 2031 तक टल चुका है. फारुख अब्दुल्ला सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई थी. लेकिन 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था.

आखिर क्या है धारा 370? 

जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ कैसा संबंध होगा, इसका मसौदा जम्मू-कश्मीर की सरकार ने ही तैयार किया था. जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 27 मई, 1949 को कुछ बदलाव सहित आर्टिकल 306ए (अब आर्टिकल 370) को स्वीकार कर लिया. फिर 17 अक्टूबर, 1949 को यह आर्टिकल भारतीय संविधान का हिस्सा बन गया. 

धारा 370 के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता, झंडा भी अलग है. जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है. देश के सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते हैं. संसद जम्मू-कश्मीर को लेकर सीमित क्षेत्र में ही कानून बना सकती है. 

रक्षा, विदेश, संचार छोड़कर केंद्र के कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते. केंद्र का कानून लागू करने के लिये जम्मू-कश्मीर विधानसभा से सहमति ज़रूरी. वित्तीय आपातकाल के लिए संविधान की धारा 360 जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं. धारा 356 लागू नहीं, राष्ट्रपति राज्य का संविधान बर्खास्त नहीं कर सकते. कश्मीर में हिन्दू-सिख अल्पसंख्यकों को 16% आरक्षण नहीं मिलता. जम्मू कश्मीर में 1976 का शहरी भूमि कानून लागू नहीं होता है. धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI और RTE लागू नहीं होता. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष नहीं, 6 वर्ष होता है.

गुलाम नबी ने जताया ऐतराज

विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद खड़े हुए और कहा कि पहले जम्मू कश्मीर की स्थिति पर चर्चा होनी चाहिए. गुलाम नबी आजाद ने कहा कि राज्य के 3 सीएम नजरबंद किए हुए है. राज्य में कई इलाकों में कर्फ्यू लगा है, पहले इस पर चर्चा होनी चाहिए. इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्ष के सदस्यों को जो कुछ भी सवाल है उन सभी पर सदन में चर्चा होगी. टीएमसी के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि जम्मू कश्मीर रिजर्वेशन बिल और अन्य बिलों के संशोधनों को पढ़ने के लिए हमें समय चाहिए.

राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि सभी सदस्यों को बिलों को पढ़ने और उस पर अपनी बात रखने के लिए उचित समय दिया जाएगा.

आर्टिकल 35-a के साथ धारा 370 समाप्त साथ ही जम्मू, काश्मीर और लद्दाख हुए केंद्र शासित प्रदेश

आर्टिकल 53-a खत्म, 19 दिसंबर को धारा 370 खत्म और जम्मू, काश्मीर और लद्दाख हुए केंद्र शासित प्रदेश

नई दिल्‍ली :नई दिल्‍ली : जम्‍मू और कश्‍मीर को लेकर केंद्र सरकार की ओर से सोमवार को राज्‍यसभा में बड़ा ऐलान किया गया है.  गृह मंत्री अमित शाह ने राज्‍यसभा में जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन विधेयक पेश किया. साथ ही राज्‍य से धारा 370 हटाने का संकल्‍प पेश किया. नए कानून के तहत धारा 370 के सभी खंड राज्‍य में लागू नहीं होंगे. जम्‍मू और कश्‍मीर से आर्टिकल 35ए हटा दी गई है. राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आर्टिकल 35ए हटाने को मंजूरी दी. 

जम्‍मू और कश्‍मीर का दो हिस्‍सों में बंटवारा हो गया है. जम्‍मू-कश्‍मीर को केंद्र शासित प्रदेश होगा. साथ ही लद्दाख बिना विधानसभा के केंद्र शासिल प्रदेश बनेगा. धारा 370 जम्‍मू-कश्‍मीर को विशेष राज्‍य का दर्जा देता है. पूनर्गठन विधेयक पेश होने के बाद राज्‍यसभा में हंगामा हो रहा है.

जम्‍मू और कश्‍मीर में पिछले कई दिनों से चल रहे तनाव को देखते हुए प्रशासन ने जम्‍मू और श्रीनगर में धारा 144 लगा दी गई है. साथ ही जम्‍मू के 8 जिलों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 40 कंपनियां तैनात की गई हैं. कश्मीर में सुरक्षाबलों की 100 कंपनियां पहले से ही तैनात हैं. वहीं पीएम आवास पर सुबह सीसीएस की बैठक के बाद कैबिनेट की बैठक हुई है.

लोकसभा और राज्यसभा में बीजेपी ने 5 अगस्त से 7 अगस्त तक के लिए व्हिप जारी किया है. इस दौरान अपने सभी सांसदों को संसद की कार्यवाही में शामिल रहने को कहा गया है. जम्‍मू और श्रीनगर में सभी शिक्षण संस्‍थानों को भी अगले आदेश तक बंद कर दिया गया है. कश्मीर प्रशासन में ज्यादातर महत्वपूर्ण अधिकारियों को सैटेलाइट फोन दिए गए हैं, ताकि उनके संवाद और समन्वय करने में कोई तकलीफ नहीं हो. जम्मू कश्मीर में सुरक्षाबलों की तैनाती के बारे में बताया है. 

दिल्‍ली स्थित प्रधानमंत्री आवास पर आज केंद्रीय कैबिनेट की बैठक भी हुई. इससे पहले पीएम आवास पर कैबिनेट की बैठक से पहले कैबिनेट कमेटी ऑन सेक्‍योरिटी (सीसीएस) की बैठक भी हुई. इसमें गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर और एनएसए अजित डोभाल समेत अन्‍य अधिकारी मौजूद रहेे. इस बैठक में एनएसए अजित डोभाल ने सुरक्षा संबंधी जानकारी दी है.

रविवार रात को श्रीनगर और जम्‍मू समेत कई इलाकों में इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं भी बंद कर दी गई हैं. उमर अब्‍दुल्‍ला और महबूबा मुफ्ती ने दावा किया कि उन्‍हें उनके घर में ही नजरबंद कर दिया गया है. जम्‍मू से लगे उधमपुर, डोडा और रियासी में भी धारा 144 लागू कर दी गई है. साथ ही इन सभी जगहों पर स्‍कूल-कॉलेज भी बंद कर दिए गए हैं. वहीं जम्‍मू-कश्‍मीर के लद्दाख क्षेत्र में आज गर्मियों की छुट्टियों के बाद स्‍कूल खुल रहे हैं. यहां धारा 144 नहीं लगाई गई है. ऐसे में सभी शिक्षण संस्‍थान यहां सामान्‍य रूप से खुले रहेंगे.

कश्‍मीर मामले पर कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, के सुरेश और मनीष तिवारी ने लोकसभा में स्‍थगन प्रस्‍ताव दिया है. वहीं राज्‍य के तनावपूर्ण हालात को देखते हुए राज्‍यपाल सत्‍यपाल मलिक ने प्रदेश के डीजीपी और मुख्‍य सचिव के साथ आपात बैठक भी की है. 

जम्‍मू-कश्‍मीर में प्रशासन की ओर से घाटी छोड़ने की एडवाइजरी के बाद अब भी सभी पर्यटक भी अपने-अपने घर को लौट रहे हैं. रविवार को गृह मंत्री अमित शाह ने राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, गृह सचिव अनिल गाबा और अन्‍य सुरक्षा अधिकारियों के साथ हाईलेवल मीटिंग भी की. माना जा रहा है यह मीटिंग जम्‍मू-कश्‍मीर के हालात को पर चर्चा के लिए हुई.

श्रीनगर में सुरक्षा को देखते हुए केबल टीवी की सेवाएं तक बंद कर दी गई हैं. किसी भी नेता को रैली करने की इजाजत नहीं है. नेताओं पर सख्‍ती के सवाल पर गृह मंत्रालय ने कहा है कि ये सब सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है. जम्‍मू-कश्‍मीर सरकार की ओर से यह स्‍पष्‍ट किया गया है कि राज्‍य में किसी भी तरह का कोई कर्फ्यू नहीं लगाया गया है. ये सारे इंतजाम सुरक्षा के लिहाज से किए जा रहे हैं.

तनावपूर्ण हालात को देखते हुए जम्‍मू यूनिवर्सिटी की सभी परीक्षाएं भी आगे के लिए बढ़ा दी गई हैं. यूनिवर्सिटी की ओर से कहा गया है कि 5 अगस्‍त को होने वाली सभी परीक्षाएं आगे बढ़ा दी गई हैं. इनकी नई तारीखों का ऐलान जल्‍द किया जाएगा. कठुआ में भी सभी स्‍कूल-कॉलेज अगले आदेश तक बंद कर दिए गए हैं.

बता दें कि 2 अगस्‍त को प्रशासन की ओर से एडवाइजरी जारी करके अमरनाथ यात्रियों और अन्‍य पर्यटकों को जल्‍द से जल्‍द घाटी छोड़ने के लिए कहा गया था. सेना को गश्‍त के दौरान अमरनाथ यात्रा के रास्‍ते में पाकिस्‍तान निर्मित क्लेमोर माइन (CLAYMORE MINE)  मिली थी. साथ ही सुरक्षा में लगे सैनिकों ने आसपास की पहाड़ियों की तलाशी ली तो उन्हें आतंकवादियों द्वारा छिपाकर रखे गए कई हथियार मिले. इनमें एक स्नाइपर राइफल, एक आईईडी थी. इसके बाद ही अमरनाथ यात्रा भी रोक दी गई थी. साथ ही कश्‍मीर में स्थिति अधिक तनावपूर्ण हो गई.

गृह मंत्री द्वारा धारा 370 की समाप्ती की घोषणा

सदन में भरी हंगामे के बीच गृह मंत्री अमित शाह द्वारा घोषणा की गयी कि धारा 370, 19 दिसंबर के पश्चात समाप्त आर दी जाएगी।

शेष समाचार आना बाकी है:

संसद भवन में उच्च स्तरीय बैठा जारी

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसद भवन में उच्चस्तरीय बैठक कर रहे हैं. इस बैठक में एनएसए अजीत डोभाल, गृह सचिव शामिल हैं. इस बैठक में आईबी चीफ भी शामिल हैं.

नई दिल्ली : 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसद भवन में उच्चस्तरीय बैठक कर रहे हैं. इस बैठक में एनएसए अजीत डोभाल, गृह सचिव शामिल हैं. इस बैठक में आईबी चीफ भी शामिल हैं. सूत्रों के हवाले से मिल रही जानकारी के मुताबिक, इस बैठक में जम्मू कश्मीर के हालातों पर चर्चा हो रही है. 

संसद सत्र के बाद शाह जाएंगे कश्मीर

सूत्रों के मुताबिक अमित शाह संसद सत्र के बाद दो दिनों के लिए घाटी का दौरा सकते हैं. वह जम्मू भी जाएंगे. आपको बता दें कि एक दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर सरकार ने एडवाइजरी जारी कर अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को जल्द से जल्द घाटी छोड़ने की सलाह दी थी.

जम्मू में बने अमरनाथ यात्रियों के बेस कैंप से भी यात्रियों को जाने के लिए कह दिया गया है. ऐसे में यात्रियों के लिए बेस कैंप छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है. सरकार का या आदेश घाटी में आतंकी हमले के खतरे को देखते हुए आया.

विस्तृत जानकारी का अभी इंतजार है…

काश्मीर पर आ सकता है बड़ा निर्णय, तीनों पूर्व मुख्य मंत्री नज़रबंद, घाटी में धारा 144 लागू, इंटरनेट मोबाइल सेवाएँ बंद

  • जम्मू-कश्मीर और नियंत्रण रेखा के हालात पर गृह मंत्री की 8 घंटे तक मैराथन बैठक
  • आज केंद्रीय कैबिनेट में कश्मीर पर बड़े फैसले मुमकिन, संसद में बयान दे सकती है सरकार
  • सरकार संसद का सत्र दो दिन बढ़ा सकती है, ताकि वर्तमान हालात पर चर्चा हो सके

कश्मीर पर मोदी सरकार के मन में क्या है? इस पर छाए संशय के बादल कुछ घंटों के बाद छट सकते हैं। प्रधानमंत्री की अगुआई में आज सुबह 9:30 बजे कैबिनेट मीटिंग है। इसमें घाटी पर कुछ बड़ा फैसला होने की उम्मीद है। कहा जा रहा है कि इस बैठक के फैसले और कश्मीर के हालात पर सरकार संसद में बयान भी दे सकती है। अतिरिक्त जवानों की तैनाती और घाटी छोड़ने की सलाह के बाद विपक्ष कई दिनों से इसकी मांग कर रहा है। इस बीच आधी रात को पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को भी नजरबंद कर दिया गया तो देर रात राज्यपाल ने डीजीपी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ आपात बैठक की। 

कश्मीर में लगातार बदलते हालात के बीच राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और एनसी नेता उमर अब्दुल्ला को श्रीनगर में नजरबंद किया गया है. नजरबंद होने के बाद उमर अब्दुल्ला ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है. उन्होंने ट्वीट किया कि हिंसा से केवल उन लोगों के हाथों में खेलेंगे जो राज्य की भलाई नहीं चाहते. शांति के साथ रहें और ईश्वर आप सभी के साथ रहें.

वहीं नजरबंद होने से पहले भी दोनों नेताओं ने कई ट्वीट किए. महबूबा मुफ्ती ने कहा कि सुनने में आ रहा है कि जल्द ही इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया जाएगा. कर्फ्यू पास भी जारी किए जा रहे हैं. अल्लाह जाने क्या होगा. यह एक लंबी रात होने जा रही है.

महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट में लिखा कि ऐसे कठिन समय में, मैं अपने लोगों को यह विश्वास दिलाना चाहती हूं कि जो हो सकता है, हम इसमें एक साथ हों और इसका मुकाबला करेंगे. जो कुछ भी हमारा अधिकार है उसके प्रयास करने के लिए हमारे संकल्प को तोड़ा नहीं जा सकता. महबूबा मुफ्ती के इस ट्वीट को उमर अब्दुल्ला ने भी रिट्वीट किया है.

उमर अब्दुल्ला ने किया था नजरबंद होने का दावा

उमर अब्दुल्ला ने पहले ही नजरबंद होने का दावा कर दिया था. जिसके बाद उनके नजरबंद होने की चर्चा होने लगी थी. उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट में लिखा कि मुझे लगता है कि मुझे आज (रविवार) आधी रात से नजरबंद कर दिया जाएगा और सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के लिए भी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. यह पता करने का कोई तरीका नहीं है कि क्या यह सच है.

उन्होंने लिखा कि कश्मीर के लोगों के लिए, हम नहीं जानते कि हमारे लिए क्या है, लेकिन मैं एक दृढ़ विश्वास रखता हूं कि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने जो योजना बनाई है वह हमेशा बेहतर के लिए है, हमें कभी भी उसके तरीकों पर संदेह नहीं करना चाहिए. सभी को शुभकामनाएं, सुरक्षित और शांत रहें.

इससे पहले उन्होंने लिखा कि अगर राज्य सरकार के अधिकारियों की मानें तो मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है. एक अनौपचारिक कर्फ्यू शुरू होने जा रहा है और मुख्यधारा के नेताओं को हिरासत में लिया जा रहा है. किस पर विश्वास करें कुछ समझ नहीं आ रहा है.

फारूक अब्दुल्ला के घर पर हुई बैठक

श्रीनगर में पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला घर पर सर्वदलीय बैठक हुई, जिसके बाद उन्होंने प्रेस को संबोधित किया. अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र सरकार के इस कदम से कश्मीर के लोग खौफ में हैं. अब से पहले कभी भी अमरनाथ यात्रा को रद्द नहीं किया गया. यह कश्मीर के लिए सबसे बुरा वक्त है. उन्होंने भारत और पाकिस्तान से अपील करते हुए कहा कि दोनों देश कोई ऐसा कदम न उठाएं, जिससे तनाव बढ़े.

काश्मीर में स्वरण आरक्षण बिल सोमवार को राज्य सभा में होगा पेश

राज्‍यसभा से इस बिल के पास होने पर जम्‍मू कश्‍मीर में आर्थ‍िक रूप से पिछड़े वर्ग को नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण मिलने लगेगा

नई दिल्ली: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सोमवार को राज्‍यसभा में जम्‍मू कश्‍मीर आरक्षण बिल (Jammu and Kashmir reservation second amendment bill) पेश करेंगे. सोमवार को राज्‍यसभा में इस पर बहस होगी. इसके बाद इसे पारित किया जाना है. लोकसभा में ये बिल 1 जुलाई को पास हो चुका है.

राज्‍यसभा से इस बिल के पास होने पर जम्‍मू कश्‍मीर में आर्थ‍िक रूप से पिछड़े वर्ग को नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण मिलने लगेगा. इससे पहले मोदी सरकार ने जम्‍मू कश्‍मीर में सीमा पर बसे लोगों को भी 10 फीसदी आरक्षण के बिल को मंजूरी दी थी. ये बिल भी संसद पास कर चुकी है.

जम्‍मू कश्‍मीर के हालात पर चर्चा
इससे पहले रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री ने रविवार को जम्मू एवं कश्मीर में बढ़ते तनाव के बीच एक उच्चस्तरीय सुरक्षा बैठक की अध्यक्षता की. राज्य में भारी संख्या में की गई सुरक्षाबलों की तैनाती ने आशंकाओं और तनावों को जन्म दिया है. बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, गृह सचिव राजीव गौबा, खुफिया ब्यूरो (आईबी) के प्रमुख अरविंद कुमार, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख सामंत कुमार गोयल और गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया.

अतरिक्त सचिव (जम्मू एवं कश्मीर डिवीजन) ज्ञानेश कुमार ने अलग से कश्मीर घाटी की स्थिति के बारे में गृहमंत्री को विस्तार से अवगत कराया. सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय मंत्री ने आतंरिक सुरक्षा और जम्मू एवं कश्मीर के हालातों पर चर्चा की, जहां आतंकवादी हमलों की आशंका के बाद अमरनाथ यात्रा को रद्द कर दिया गया है.

महबूबा से जे&के बैंक में फर्जी भर्तियों पर होगी पूछताछ, नपेंगे कई दिग्गज

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को जम्मू एंड कश्मीर बैंक में पिछले दरवाजे से की गई नियुक्तियों में उनकी भूमिका स्पष्ट करने को कहा है। एसीबी जांच के दौरान जे एंड के बैंक के बर्खास्त चेयरमैन परवेज अहमद नेंग्रू के कामकाज में दर्जनों ऐसे नियुक्तियों का पता चला जो पिछले दरवाजे से की गई थी

श्रीनगर: 

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को जम्मू एंड कश्मीर बैंक में पिछले दरवाजे से की गई नियुक्तियों में उनकी भूमिका स्पष्ट करने को कहा है. मुफ्ती को उनके कुछ मंत्रियों के संदर्भ में उनकी भूमिका बताने को कहा गया है. एसीबी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) ने मुफ्ती को एक संदेश भेजा है, जिसमें कहा गया है कि जम्मू एंड कश्मीर बैंक में पिछले दरवाजे से की नियुक्तियों की जांच के दौरान यह सामने आया है कि कुछ मंत्रियों ने इस बैंक के अध्यक्ष को इसके लिए सिफारिशें भेजी थीं.

मुफ्ती से यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया गया है कि क्या इसमें उनका कोई मौखिक या अन्य प्रकार का समर्थन था?  इस मामले में जब सूत्रों से पूछा गया कि अगर मुफ्ती का जवाबदेही असंतोषजनक पाई गई तो एसीबी द्वारा अगला कानूनी कदम क्या होगा, तो सूत्रों ने कहा, “इस स्थिति में उन्हें जांचकर्ताओं के सामने पेश होने के लिए बुलाया जाएगा.”

एसीबी जांच के दौरान जे एंड के बैंक के बर्खास्त चेयरमैन परवेज अहमद नेंग्रू के कामकाज में दर्जनों ऐसे नियुक्तियों का पता चला जो पिछले दरवाजे से की गई थी. शेयरधारकों और जमाकर्ताओं के आश्वासन ने हालांकि अब बैंक को संकट की स्थिति से बाहर निकाल दिया है और राज्य के सबसे बड़े वित्तीय संस्थान को बनाए रखने और मजबूत करने के प्रयास जारी हैं.

सभी दल एक्जुट हो कर कश्मीर को बचाएंगे: अब्दुल्ला

नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा घाटी में 10,000 सैनिकों की तैनाती के बाद पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस बीजेपी सरकार को को लगातार चेतावनी दे रही है.  इसी बीच रविवार को कश्मीर में मौजूदा स्थिति पर चर्चा के लिए एक सर्वदलीय बैठक की गई. बैठक पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के निवास पर होनी थी, लेकिन अंतिम समय में एनसी संरक्षक, जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के घर में स्थानांतरित कर दी गई. फारूक अब्दुल्ला के निवास पर ऑल पार्टी  केे नेता लोग मीटिंग के लिए इकट्ठा हुए. बैठक के बाद फारूक अब्दुल्ला ने कहा, ‘मैं राज्य के लोगों से अपील करता हूं कि वे शांत रहें.

मैं भारत और पाकिस्तान से अपील करता हूं कि वे ऐसा कोई कदम न उठाएं जिससे लोगों को परेशानी हो और दोनों देशों के बीच टेंशन बढ़े.’ अब्दुल्ला ने कहा कि, घाटी के लोग डरे हुए हैं. आज तक कभी अमरनाथ यात्रा समय से पहले खत्म नहीं हुई है. अब्दुला ने बैठक में कहा कि, पीएम मोदी और राष्ट्रपति को कश्मीर के लोगों के हित को समझना चाहिए. उन्हें ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे माहौल खराब हो. राज्‍य का विशेष दर्जा खत्‍म न किया जाए. कश्‍मीर में सेना की तैनाती से डर का माहौल है.

कश्‍मीर में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. हर इंसान घबराया हुआ है. ये जम्‍मू कश्‍मीर के लिए बुरा वक्‍त है. इससे पहले पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट करके फारुख अब्दुल्ला से सर्वदलीय बैठक बुलाने की अपील की थी. महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘हाल के घटनाक्रमों के प्रकाश में आने से जम्मू-कश्मीर में दहशत का माहौल है.’

उन्होंने कहा था कि मैंने डॉ फारूक अब्दुल्ला से एक सर्वदलीय बैठक बुलाने का अनुरोध किया है. एक साथ आने और एकजुट प्रतिक्रिया देने के लिए समय की आवश्यकता है. हमें कश्मीर के लोगों को एक होने की जरूरत है.

बोफोर्स ने फिर तोड़ी पाकिस्तान के नापाक इरादों की कमर

श्रीनगर: कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर विजय पाने में भारतीय सेना के लिए बोफोर्स तोप काफी मददगार साबित हुआ था. अब शनिवार को जब भारतीय फौज ने एक बार फिर से बोफोर्स का मुंह खोला तो पाकिस्तानी सेना और आतंकियों की शामत आ गई. सूत्रों का कहना है कि शुक्रवार और शनिवार के बीच पाकिस्तान की ओर से आतंकी भारतीय सीमा में दाखिल होने की फिराक में थे. इस दौरान पाकिस्तानी सेना की सह पर काम करने वाले बर्बर लड़ाकों की फौज BAT उन्हें बैकअप दे रही थी. तभी भारतीय जांबाजों ने बोफोर्स से मुंहतोड़ जवाब दिया.

सूत्रों का कहना है कि जब बोफोर्स तोप से गोले दागे जाने लगे तो पाकिस्तान की सारी तैयारी धरी की धरी रह गई. बोफोर्स से निकलने वाला हरेक गोला पाकिस्तानी खेमे को तहस-नहस कर गया. बोफोर्स के वार में सीमापार के कई आतंकी कैंपों को भी नुकसान पहुंचा है. साथ ही बैट (BAT) यानी पाकिस्तानी बॉर्डर एक्शन टीम के करीब 7 लड़ाके भी ढेर हो गए हैं. भारत ने सबूत के तौर पर इसकी तस्वीर भी जारी की हैं.

सेना के सूत्र बताते हैं कि पाकिस्तानी खेमे को अंदाजा ही नहीं था कि भारत बोफोर्स से जवाबी कार्रवाई करेगा. जवाबी कार्रवाई के दौरान ऐसा लगा मानो बोफोर्स के हरेक फायर की गूंज से पाकिस्तान के बुजदिल सैनिकों का कलेजा बैठ रहा हो. बोफोर्स के फायर का उनकी ओर से कोई जवाब ही नहीं आया.

भारत ने पाकिस्तान को मृत सैनिकों के शव ले जाने का प्रस्ताव दिया

भारतीय सेना ने रविवार को पाकिस्तानी सेना को उसके मृत सैनिकों के शव ले जाने का प्रस्ताव दिया है. ये सैनिक जम्मू एवं कश्मीर में घुसपैठ करने के प्रयास के दौरान मारे गए थे. भारतीय सेना के सूत्रों ने कहा, ‘पाकिस्तानी सेना को सफेद झंडा लेकर आने और भारतीय सीमा में मारे गए पाकिस्तानी सैनिकों के शव उनके अंतिम संस्कार के लिए ले जाने का प्रस्ताव दिया गया है.’ सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तान ने अभी इस प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

यह घटना 31 जुलाई और एक अगस्त की रात में केरन सेक्टर की है जब पाकिस्तान बॉर्डर एक्शन की एक टीम (बैट) ने भारत में घुसपैठ करने की कोशिश की थी. सूत्रों ने शनिवार को कहा कि पांच से सात आतंकवादी और संभवत: एसएसजी कर्मी मारे गए थे. चार शव नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर अभी भी खुले में पड़े हैं.

पिछले एक सप्ताह में राज्य में एलओसी पर अशांति फैलाने के लिए संघर्ष विराम के उल्लंघन के साथ-साथ घुसपैठ और बैट की कोशिशों के मामले बढ़ गए हैं. इन घटनाओं के बाद अमरनाथ यात्रा को दो सप्ताह पहले ही रोक दिया गया और श्रद्धालुओं तथा पर्यटकों को घाटी से जाने का निर्देश दिया गया है.

घाटी में पाँव पसारता उग्रवाद नहीं बल्कि सेना की उपस्थिती है मुफ़्ती की चिंता का सबब

हरदम पाकिस्तान का यशोगान करने वाली महबूबा मुफ़्ती तो मानों अभी भी तक रोटी भी ठीक से नहीं बोल पाती, चौमासे के दौरान जब भारत में विभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक यात्राओं के कारण उत्तर भारत बहुत व्यास्त हो जाता है खासकर काश्मीर। इन्हीं दिनों पाकिस्तान की तरफ से घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित उग्रवादी प्रवेश करते हैं। घाटी में सेना का आगमन महबूबा को अखरता है लेकिन वहीं उग्रवादियों के लिए यह पलक पांवड़े बिछाती है। काश्मीर कि यह इकलौती राजनेता हैं जिन्हें घाटी में सेना कि उपस्थिती नहीं मंजूर क्योंकि यह न केवल उग्रवाद को रोकती है अपितु क्षेत्र में नागरिकों के हित का भी ख्याल रखती है जो पिछले 70 वर्षों में इनके परिवार न रख पाये। पूर्व मुख्‍यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि सरकार जम्‍मू और कश्‍मीर पर अपना रुख स्‍पष्‍ट करे. हमें कोई नहीं बता रहा है कि आखिर हो क्‍या रहा है.

नई दिल्‍ली : जम्‍मू-कश्‍मीर के मौजूदा हालात को लेकर पीडीपी अध्‍यक्ष और पूर्व मुख्‍यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने रविवार को एक बार फिर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. महबूबा मुफ्ती ने राज्‍य में आर्टिकल 35ए और धारा 370 के मुद्दे पर कहा कि जम्‍मू-कश्‍मीर में केंद्र सरकार जो करने जा रही है, उसके नतीजे अच्‍छे नहीं होंगे. उन्‍होंने कहा कि नतीजे इतने खतरनाक हैं कि आने वाले समय में इस प्रदेश और पूरे मुल्क के लिए ये अच्‍छे नहीं होंगे. उन्‍होंने कहा कि सरकार जम्‍मू और कश्‍मीर पर अपना रुख स्‍पष्‍ट करे. हमें कोई नहीं बता रहा है कि आखिर हो क्‍या रहा है. 

महबूबा मुफ्ती ने कहा कि हमने पूरे के लोगों और सरकार को यह समझाने की पूरी कोशिश की कि अगर आर्टिकल 35ए और धारा 370 के साथ छेड़छाड़ की गई तो कितने खतरनाक नतीजे हो सकते हैं. हमने केंद्र सरकार से इस संबंध में अपील भी की, लेकिन सरकार से अब तक कोई जवाब नहीं मिला है. सरकार अपना रुख स्‍पष्‍ट करे.

महबूबा मुफ्ती ने कहा कि हम लोगों ने आज शाम को सर्वदलीय बैठक के लिए होटल बुक किया था. लेकिन लेकिन सरकार और पुलिस की ओर से इसकी इजाजत नहीं मिली. पुलिस की ओर से सभी होटलों को एडवाइजरी जारी करके कहा गया है होटल में किसी भी राजनीतिक पार्टी की बैठक ना होने दी जाए. इसलिए आज शाम 6 बजे मेरे घर पर सर्वदलीय बैठक आयोजित की गई है. 

उन्‍होंने कहा कि जम्‍मू-कश्‍मीर के ऊपर जैसी मुसीबत है, वो पहले कभी नहीं थी. जो बॉर्डर पर हो रहा है, नागरिकों की जान जा रही है, क्लस्टर बम का इस्तेमाल हो रहा है. ये तो इजराइल करता है, पता नहीं क्या हो रहा है. अलगाववादियों के साथ जो करना था, कर लिया, अब मुख्‍यधारा की पार्टियों के खिलाफ करप्शन को टूल बनाकर इस्तेमाल कर रहे हैं.