सचिन की खामोशी पर कयास न लगाएँ

मध्य प्रदेश के सियासी संकट में जिस प्रकार कॉंग्रेस के तमाम छोटे बड़े नेता बढ़ चढ़ कर अपनी भूमिका निभा रहे हैं वहीं सिंधिया के मित्र राजस्थान के उप मुख्य मंत्री एवं राजस्थान प्रदेश कॉंग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पाइलट की खामोशी बहुत कुछ कयास लगाने पर मजबूर करती है। वैसे रास्थान में सचिन की स्थिति सिंधिया से बिलकुल उलट है। सच्न को वह सब पहले ही से मिला हुआ है जिसकी सिंधिया अपनी पार्टी से अपेक्षा रखते थे। कयास लगाने के कारण मात्र उनकी(सचिन) और अशोक गहलोत में कभी कभार मुद्दों पर होने वाली असहमति है। आज सोशल मीडिया पर सचिन को अगला सिंधिया कहा जा रहा है जबकि इसकी कोई वजह नहीं दीखती। मौजूदा घटनाक्रम को देखते हुए काँग्रेस पार्टी एक और युवा एवं प्रभावशाली नेता को नहीं खोना चाहेगी, जिससे सचिन की मोलभाव की शक्ति उभरती ही दीखेगी।

जयपुर:

मध्यप्रदेश में चल रहे सियासी संकट से कांग्रेस पार्टी को उबारने में जहां दिल्ली से लेकर राजस्थान के नेताओं ने पूरी ताकत झोंक रखी है. वहीं इन सबके बीच एक नाम बिल्कुल खामोश और नदारद है. वह नाम है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सरकार में उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का. पिछले 2 दिनों में जिस तरह का सियासी घटनाक्रम हुआ है उस पर पायलट की तरफ से ना कोई रिएक्शन आया है ना ही उनकी टि्वटर हैंडल पर कोई ट्वीट देखने को मिला है. इतना ही नहीं जब राजस्थान में सरकार मध्य प्रदेश के कांग्रेस के विधायकों को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटी है तब भी पायलट की गैरमौजूदगी कई सवाल खड़े करती है.

देश में कांग्रेस अपने सबसे बड़े सियासी संकट से जूझ रही है. मध्यप्रदेश कांग्रेस को सियासी संकट से उबरने में दिल्ली से लेकर राजस्थान तक के कांग्रेसी नेताओं ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है. मध्य प्रदेश कांग्रेस के विधायकों को टूटने से बचाने और उनका मनोबल बनाए रखने के लिए जयपुर के दो रिसोर्ट में ठहराया गया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी विश्वस्त साथियों की टीम इस पूरे ऑपरेशन में जुटी हुई है. इस पूरे घटनाक्रम के बीच जहां कांग्रेस के क्षेत्रीय और राष्ट्रीय नेताओं के अलग-अलग बयान सामने आए हैं वहीं सचिन पायलट पिछले 2 दिनों से इस पूरे घटनाक्रम से नदारद रहे हैं.

पायलट की तरफ से इस मसले को लेकर ना किसी तरह का कोई बयान आया है ना उनकी तरफ से कोई ट्वीट दिखाई दिया है. पिछले दो दिनों में सचिन पायलट के टि्वटर हैंडल से 4 ट्वीट किए गए हैं, लेकिन यह सभी ट्वीट कांग्रेस नेताओं को जन्मदिवस की बधाई और नियुक्ति पर बधाई संदेश के अलावा कुछ नहीं है. इन सबके बीच मध्य प्रदेश के कांग्रेसी विधायकों को जब जयपुर लाया गया है. उसके बावजूद पायलट की गैरमौजूदगी हैरान करने वाली है.

हालांकि, महाराष्ट्र कांग्रेस के सियासी घटनाक्रम के दौरान भी पूरे ऑपरेशन की कमान अशोक गहलोत और उनकी टीम के पास ही थी, लेकिन सचिन पायलट उस समय जयपुर में मौजूद रहे थे. इस पूरे घटनाक्रम में सचिन पायलट की गैर मौजूदगी और चुप्पी दोनों ही हैरानी का विषय बनी हुई है. कोई नहीं जानता है कि इसके पीछे वजह क्या है और सचिन पायलट का अगला कदम क्या हो सकता है.

कांग्रेस की सियासत को समझने वाले नेताओं का मानना है कि पायलट पूरे हालातों को मापने और समझने में लगे हैं. हालांकि, मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य और राजस्थान में सचिन पायलट की भूमिका और पोजीशन में जमीन आसमान का अंतर है. जिस तरीके से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट के तल्ख रिश्तों की खबरें आती रही हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पर भी कांग्रेस के भीतर हालात ठीक नहीं है, लेकिन इन सबके बावजूद पर यहां पर सचिन पायलट पीसीसी चीफ और उपमुख्यमंत्री की दोहरी भूमिका में है.

उनकी सत्ता और संगठन दोनों में जिम्मेदारी हैं. उनके विश्वस्त लोगों को सरकार में मंत्री भी बनाया गया है, लेकिन इसके ठीक उलट ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथ मध्यप्रदेश में बिलकुल खाली थे. उन्हें पीसीसी चीफ नहीं बनने दिया गया. राज्यसभा की सीट से भी इंकार कर दिया गया तब जाकर उन्होंने पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया. भले ही राजस्थान में सचिन पायलट अभी खामोश हैं, लेकिन इसमें कहीं कोई दो राय नहीं है कि जो हालात मध्यप्रदेश में पैदा हुए हैं उसके चलते राजस्थान में उनकी पोजीशन को मजबूती मिली है.

यहां भी आने वाले दिनों में पीसीसी चीफ की अपनी भूमिका को कंटिन्यू कर सकते हैं. साथ ही राजनीतिक नियुक्तियों मंत्रिमंडल विस्तार और 2 दिनों में होने वाली राज्य सभा सीट के लिए नामों का ऐलान में उनकी बारगेनिंग पावर काफी हद तक बढ़ जाएगी.

मध्य प्रदेश में सरकार के जाने से नहीं पेट्रोल की गिरती कीमतों पर मोदी की तवज्जो न होने से दुखी हैं राहुल

मध्यप्रदेश में चुनावों के पश्चात जोड़ तोड़ से बनी कमाल नाथ की सरकार का गिरना राहुल गांधी के लिए क्या माने रखता है? राजनैतिक कैरियर के शुरुआती दिनों के साथी हमउम्र सिंधिया के पार्टी छोड़ने और फिर भाजपा में शामिल होने पर राहुल गांधी की पहली प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार आई मानो वह अपने 18 – 20 साल पुराने साथी को खो कर सहज हैं और जब सभी की नज़रें सिंधिया द्वारा उठाए गए इस कदम पर थीं तो शायद मोदी मण्डल पेट्रोल की गिरती कीमतों को लेकर अनभिज्ञ था। अचानक ही राहुल गांधी वित्तीय सलहाकार की भूमिका में आ गए और सरकार को पेट्रोल की कीमत 60 रुपए करने की नसीहत दे डाली।

नई दिल्ली: 

पेट्रोल की कीमतों के घटने के साथ ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री का ध्यान इस ओर खींचने की कोशिश की. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने की सरगर्मी के बीच कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्वीट करते हुए कहा है ‘पेट्रोल की कीमतों में गिरावट आ रही है. इस पर ध्यान दिया जाए.’

पेट्रोल 60 रुपये प्रति लीटर करने की मांग

राहुल गांधी ने PMO को टैग करते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘सरकार ने शायद नोटिस नहीं किया है कि अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दामों में 35 फीसदी की कमी हुई है.’ राहुल गांधी ने आगे लिखा है, ‘पेट्रोल की कीमतों को 60 रुपये प्रति लीटर से कम करके आम लोगों को इसका फायदा मिलना चाहिए.’

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5-6 रुपये की हो सकती है गिरावट

ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल के भाव में इस बड़ी गिरावट के चलते घरेलू मार्केट में इसका असर साफ देखने को मिल सकता है. आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल का भाव में भी बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है. सीनियर ट्रेड एनालिस्ट अरुण केजरीवाल के मुताबिक, कच्चे तेल के भाव में गिरावट का फायदा भारत को मिलेगा. पेट्रोल-डीजल 6 रुपए प्रति लीटर तक सस्ता हो सकता है. हालांकि, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर बना हुआ है. इसलिए पेट्रोल-डीजल में ज्यादा बड़ी कटौती की उम्मीद कम है.

पेट्रोल 2.69 रुपये और डीज़ल 2.33 रुपये हुआ सस्ता

पिछले कुछ दिनों से सऊदी अरब और रूस के बीच ऑयल की कीमतों में जंग छिड़ने से सोमवार को कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय वायदा बाजार में 31 प्रतिशत तक टूट गई थी

नई दिल्ली:

 अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में चल रही जंग का फायदा भारतीय उपभोक्ताओं को मिल रहा है. पेट्रोल और डीजल के दामों में को लगातार सातवें दिन गिरावट का सिलसिला जारी रहा. दिल्ली में छह दिनों में पेट्रोल 2.69 रुपये प्रति लीटर सस्ता हो गया, जबकि डीजल का दाम 2.33 रुपये प्रति लीटर कम हो गया. देश के अन्य शहरों में भी पेट्रोल व डीजल के दाम में एक रुपया प्रति लीटर से ज्यादा की गिरावट आई है. पिछले कुछ दिनों से सऊदी अरब और रूस के बीच ऑयल की कीमतों में जंग छिड़ने से सोमवार को कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय वायदा बाजार में 31 प्रतिशत तक टूट गई थी.

उधर, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में सोमवार को आई गिरावट के बाद रिकवरी हुई है. इंडियन ऑयल की वेबसाइट के अनुसार, दिल्ली में पेट्रोल का दाम घटकर 70.29 रुपये प्रति लीटर हो गया है. वहीं डीजल का भाव भी घटकर 63.01 रुपये प्रति हो गया है.

अंतरराष्ट्रीय वायदा बाजार इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज यानी आईसीई पर ब्रेंट क्रूड के मई अनुबंध में पिछले सत्र से 7.19 फीसदी की तेजी के साथ 36.83 डॉलर पर कारोबार चल रहा था, जबकि इससे पहले दाम 37.38 डॉलर प्रति बैरल तक उछला.

न्यूयार्क मर्के टाइल एक्सचेंज यानी नायमैक्स पर अप्रैल डिलीवरी अमेरिकी लाइट क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट यानी डब्ल्यूटीआई के अनुबंध में 6.84 फीसदी की तेजी के साथ 33.26 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था, जबकि इससे पहले भाव 33.73 डॉलर प्रति बैरल तक उछला.

बता दें कि तेल बाजार की हिस्सेदारी को लेकर प्रमुख उत्पादकों में कीमत को लेकर छिड़ी जंग के कारण सोमवार को ब्रेंट क्रूड का भाव 31.27 डॉलर प्रति बैरल तक गिरा, जोकि फरवरी 2016 के बाद का सबसे निचला स्तर है.

राजस्थान में अरोड़ा के नाम पर रार

पार्टी सूत्रों के अनुसार पायलट ने दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर उन्हें अपनी नाराज़गी से अवगत कराया है। गहलोत के करीबी समझे जाने वाले अरोड़ा लंबे समय से कांग्रेस से जुड़े हैं। वे प्रदेश में पार्टी के उपाध्यक्ष हैं और पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष रह चुके हैं। पार्टी के स्थानीय नेता संभावित प्रत्याशियों को लेकर खुलकर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री गहलोत ने ये नाम तय करने के लिए सप्ताहांत नयी दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी।

नयी दिल्ली:

मध्य प्रदेश में राजनीतिक घटनाक्रम के बीच राजस्थान से राज्यसभा के दो संभावित प्रत्याशियों को लेकर भी कांग्रेस में रार सामने आ रही है। पार्टी को राज्य में कम से कम दो सीटों के लिए प्रत्याशी तय करने हैं और अंदरूनी सूत्रों के अनुसार एक संभावित नाम का कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट खुलकर विरोध कर रहे हैं।

राजस्थान से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए 26 मार्च को चुनाव होना है। मौजूदा विधायक संख्या के आधार पर कांग्रेस के खाते में दो सीटें जानी तय हैं और पार्टी को अपने प्रत्याशियों के नाम अगले दो दिन में तय करने होंगे क्योंकि नामांकन 13 मार्च तक होंगे। इसके लिए सियासी जोड़तोड़ शुरू हो गया है।राजनीतिक गलियारों में तारिक अनवर से लेकर राजीव अरोड़ा और भंवर जितेंद्र सिंह से लेकर गौरव वल्लभ तक अनेक नाम चर्चा में हैं जिनमें से दो पर आने वाले एक दो दिन में मुहर लगनी है। यहां कुछ मीडिया रपटों व पार्टी जानकारों के अनुसार पार्टी तारिक अनवर को राजस्थान से राज्यसभा में भेज सकती है। तारिक अनवर पांच बार लोकसभा व दो बार राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। दूसरा बड़ा नाम राजीव अरोड़ा का सामने आया है। हालांकि बताया जाता है कि पायलट खेमा उनके नाम को लेकर बिलकुल सहज नहीं है। पार्टी सूत्रों के अनुसार पायलट ने दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर उन्हें अपनी नाराज़गी से अवगत कराया है।

गहलोत के करीबी समझे जाने वाले अरोड़ा लंबे समय से कांग्रेस से जुड़े हैं। वे प्रदेश में पार्टी के उपाध्यक्ष हैं और पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष रह चुके हैं। पार्टी के स्थानीय नेता संभावित प्रत्याशियों को लेकर खुलकर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री गहलोत ने ये नाम तय करने के लिए सप्ताहांत नयी दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। राजस्थान में राज्यसभा की कुल 10 सीटे हैं जिनमें से फिलहाल नौ भाजपा व एक कांग्रेस के पास है।

कांग्रेस ने पिछले साल अगस्त में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यहां से राज्यसभा के लिए चुना था। भाजपा के तीन राज्यसभा सदस्य विजय गोयल, नारायण पंचारिया व रामनारायण डूडी का कार्यकाल नौ अप्रैल को पूरा हो रहा है। राज्य विधानसभा में बदले संख्याबल के हिसाब से दो सीटें कांग्रेस को मिलनी तय हैं। भाजपा ने भी अपने प्रत्याशी के नाम की अभी घोषणा नहीं की है। राज्य विधानसभा में कुल 200 विधायकों में से कांग्रेस के पास 107 विधायक व भाजपा के पास 72 विधायक हैं। राज्य के 13 में से 12 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी कांग्रेस को है।

राजस्थान से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए 26 मार्च को मतदान होगा।

इलाहाबाद कोर्ट द्वारा दंगाइयों को कानूनी कवच मिल गया क्या?

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ लखनऊ में प्रदर्शन के दौरान हिंसा व तोडफ़ोड़ करने वालों का सार्वजनिक स्थल पर पोस्टर लगाने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को अपना फैसला दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सभी सार्वजनिक जगहों पर लगाए गए पोस्टर्स व होर्डिंग्स हटाने का आदेश दिया है। फैसला आने के बाद ट्वीटर पर ‘वाह रे कोर्ट’ और ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट’ लगातार ट्रेंड कर रहा है.

यह आदेश चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने दिया है। कोर्ट ने कहा है कि बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर मे फोटो लगाना अवैध है। यह निजता अधिकार का हनन है। बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाये किसी की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना गलत है।

नई दिल्ली: 

उत्तर प्रदेश में दंगाइयों के पोस्टर लगाने पर आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने नागरिकता कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करने वाले दंगाईयों के पोस्टर लखनऊ शहर से हटाने का आदेश दिया है. लखनऊ के अलग-अलग चौराहों पर वसूली के लिए 57 दंगाइयों के 100 पोस्टर लगाए गए थे. कोर्ट ने पोस्टर लगाने को निजता का उल्लंघन माना है. ऐसे में उन लोगों को क्या जिन्होंने इस हिंसा में अपने लोगों को खोया. सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ. उसकी भरपाई कैसे होगी.

इलाहाबाद हाइ कोर्ट को क्या योगी का ‘दंगा वसूली प्लान’ कोर्ट को कबूल नहीं ? क्या यूपी के ‘दंगाइयों’ को ‘कानूनी कवच‘ मिल गया है? ऐसे में जो हिंसा करेगा उसे ‘दंड’ कैसे दिया जाएगा? आखिर दंगों में नुकसान की भरपाई कौन करेगा ? जो दंगे भड़काएं उनके चेहरे क्यों छिपाएं?

‘दंगा वसूली पोस्टर’ पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ में हिंसा के आरोपियों के पोस्टर हटाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कमिश्नर और डीएम को पोस्टर, होर्डिंग्स हटाने को कहा गया. कोर्ट का आदेश है कि हिंसा के 57 आरोपियों के 100 पोस्टर लखनऊ से हटाए जाएं.  इस मामले में हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से 16 मार्च से पहले रिपोर्ट मांगी हैं. 

कोर्ट को योगी का ‘दंगा वसूली प्लान’ कबूल नहीं?

5 मार्च 2020 लखनऊ में 57 दंगाइयों के होर्डिंग्स और पोस्टर लगाए गए थे. पोस्टर में 1 करोड़ 55 लाख रुपए की वसूली का जिक्र था. 7 मार्च 2020 पोस्टर लगाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया. हाईकोर्ट ने पूछा- किस कानून के तहत पोस्टर लगाए . 8 मार्च 2020 इलाहाबाद हाईकोर्ट में पोस्टर मामले पर सुनवाई हुई. हाईकोर्ट ने कहा कि बिना इजाजत पोस्टर लगाना निजता का हनन है. इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.  9 मार्च 2020 हाईकोर्ट ने हिंसा के आरोपियों के पोस्टर हटाने का आदेश दिया. आदेश पूरा करने की जानकारी देने के लिए 16 मार्च तक वक्त दिया है.

यूपी में हिंसा से कितना नुकसान ?  

आपको बता दें कि नागरिकता कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के चलते लखनऊ में अब तक 1.61 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. वहीं रामपुर में यह आंकड़ा 25 लाख, संभल में 15 लाख, बिजनौर में19.7 लाख, मेरठ में14 लाख और मऊ में 11.9 लाख का नुकसान हुआ है.

दंगे पर ‘वसूली पोस्टर’ में क्या? 

लखनऊ में 57 दंगाइयों के होर्डिंग्स और पोस्टर लगाए गए. पोस्टर में दंगाइयों का नाम, तस्वीर और पता लिखा था. पोस्टर के जरिए इन आरोपियों से 1 करोड़ 55 लाख रुपए की वसूली का आदेश था. पैसा नहीं चुकाने पर संपत्ति कुर्की का आदेश था. तोड़फोड़ और आगजनी पर नुकसान की भरपाई. 

यूपी के ‘दंगाइयों’ को ‘कानूनी कवच’ ?

यूपी में 9 दिन तक CAA के विरोध में हिंसा हुई थी. 17 जिलों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे. 19 लोगों की हिंसक प्रदर्शन में मौत हुई. 288 पुलिसकर्मी हिंसा में घायल हुए. 1246 लोग हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किए गए. 372 लोगों पर हिंसा के मामले में FIR दर्ज की गई. 405 अवैध हथियार और कारतूस बरामद किए गए.

यूपी में CAA विरोधी हिंसक प्रदर्शन

19 दिसंबर 2019 को लखनऊ के हज़रतगंज में हिंसक प्रदर्शन  हुआ, पत्थरबाजी के बाद OB वैन जलाई. 19 दिसंबर 2019 को ही लखनऊ- हसनगंज में प्रदर्शन के दौरान गाड़ियों में आग लगाई. इसी दिन  लखनऊ- परिवर्तन चौक के पास 20 बाइक, 10 कार, 3 बस को जलाया गया. 19 दिसंबर 2019 को ही संभल में दंगाइयों ने रोडवेज की बस में आग लगाई.

20 दिसंबर 2019 को गोरखपुर में दंगाइयों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की. 20 दिसंबर 2019 को बुलंदशहर में दंगाइयों ने गाड़ियों में आग लगाई, भारी पुलिस की तैनाती. 20 दिसंबर 2019 को मेरठ में दंगाइयों ने पुलिसकर्मियों पर पत्थर फेंके. 21 दिसंबर 2019 को पुलिस ने प्रदर्शन में 15 लोगों की मौत, 263 पुलिसकर्मी घायल, 705 लोगों को गिरफ्तार बताया. 21 दिसंबर 2019 को कानपुर में दंगाइयों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की, पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े.

हिंसक प्रदर्शनों पर क़ानून?

1984 सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम बना सजा 6 महीने से 5 साल तक जेल की सजा, जुर्माने का प्रावधान 29.8%  औसत सजा हुई। नुकसान के मुकदमों में 14876 केस देश के कई अदालतों में लंबित है NCRB के मुताबिक 6300 केस लंबित हैं, सिर्फ हरियाणा, यूपी, तमिलनाडु में।

दिल्ली दंगों से कितना नुकसान ?   

कुल संपत्तियां- 759 
घर             122
दुकान         322
गाड़ियां        301
गोदाम            5
मस्जिद          4
फैक्ट्री            3

हिंसक प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस

कोर्ट किसी मामले पर खुद संज्ञान ले सकता है. कोर्ट नुकसान की पड़ताल कराने का आदेश दे सकता है. कोर्ट मुआवजे की व्यवस्था करने का सिस्टम बनाएगा. साजिशकर्ताओं, आयोजकों की जिम्मेदारी तय की जाएगी. हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट साजिशकर्ताओं, आयोजकों से जवाब मांगेगा.

ताहिर की याचिका हुई खारिज हुआ गिरफ्तार

  • ताहिर हुसैन ने दाखिल की थी सरेंडर अर्जी
  • जज बोले- यह हमारा जुरीडिक्शन नहीं
  • क्राइम ब्रांच की टीम ने किया गिरफ्तार

दिल्ली हिंसा में आईबी अधिकारी की हत्या के मामले में फरार चल रहे आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन सरेंडर करने के लिए आज (5 मार्च को) दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट पहुंचे। यहां उन्हें क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार कर लिया।जज ने कहा कि सरेंडर पर सुनवाई का अधिकार हमारा नहीं है और याचिका को खारिज कर दिया। वहीं, ताहिर की ताक में बैठी क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे कोर्ट के पार्किंग से गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार करने के बाद ताहिर हुसैन को क्राइम ब्रांच के तफ्तर ले जा रही है। मामले की जांच में जुटी क्राइम ब्रांच की एसआईटी ने ताहिर के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी करने की तैयारी कर ली थी। इससे पहले उसने सरेंडर करने का फैसला किया। उन्होंने खुद पर लगे सारे आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि मुझे फंसाया जा रहा है। उपद्रवियों ने मेरे मकान का गलत इस्तेमाल किया है।

ताहिर ने कहा कि मैं किसी भी प्रकार की जांच के लिए तैयार हूं। बीजेपी ने मुझे साजिश के तहत फंसाया है। मैंने अपने घर से डंडे से उपद्रवियों को भगाने की कोशिश की थी। मैं नारको टेस्ट के लिए भी तैयार हूं। पुलिस ने मुझे खुद मेरे घर से रेस्क्यू किया था। 

दिल्ली हिंसा के बाद से ताहिर की तलाश में जुटी एसआईटी ने दिल्ली-एनसीआर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 14 स्थानों पर उसकी तलाश में छापेमारी की थी। एसआईटी सूत्रों की मानें तो ताहिर 2 मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल करते रहे। 24 तारीख को 12 बजे तक की कॉल डिटेल्स खंगाली गई, जिसके मुताबिक ताहिर हुसैन 24 की रात 12 बजे के आस-पास तक चांद बाग के उसी घर में मौजूद था। वहीं जांच मे यह बात भी सामने आई थी कि ताहिर ने 24 तारीख को (हिंसा के दिन) दिनभर में करीब 150 कॉल किए थे। जांच में जुटी पुलिस यह पता लगाने में जुटी है कि यह कॉल उसने किसको की थी।

मामले की जांच में जुटी क्राइम ब्रांच की एसआईटी ने फरार ताहिर हुसैन के फोन की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) निकाली है। उसकी 19 नंबरों पर ज्यादा बातचीत हुई है। इस आधार पर यह माना जा रहा है कि जिन नंबरों पर उसकी ज्यादा बातचीत हुई है, वह उसके करीबी नेटवर्क में हैं और उनकी भूमिका संदिग्ध हो सकती है। लिहाजा ये लोग पुलिस जांच की राडार पर हैं।

संशोधित नागरिकता कानून के समर्थक और विरोधी समूहों के 23 फरवरी से उत्तर-पूर्वी दिल्ली में शुरू हुई झड़प ने सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया था। इसमें 48 लोगों की मौत हो गई। उन्मादी भीड़ ने घरों, दुकानों, वाहनों और एक पेट्रोल पंप को आग लगा दी और स्थानीय लोगों तथा पुलिसकर्मियों पर पथराव किया। दंगा प्रभावित इलाकों में जाफराबाद, मौजपुर, बाबरपुर, यमुना विहार, भजनपुरा, चांद बाग और शिव विहार शामिल हैं। इस दौरान ताहिर हुसैन के घर से भी पथराव और उपद्रव की तस्वीरें सामने आईं जिसके बाद उनपर आईबी अधिकारी की हत्या के आरोप भी लगे। घटना के बाद से वे फरार चल रहे थे।

राज्य सभा की 55 सीटों के लिए दंगल शुरू

55 सीटें, बहुत होतीं हैं लेकिन क्या भाजपा इनमें से आधी भी हासिल कर पाएगी???

नई दिल्ली: 

राज्यसभा (Rajya Sabha) की 55 सीटों के लिए 26 मार्च को चुनाव होना है. इस चुनाव में भाजपा के कई बड़े नेता राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचने की जुगत में हैं. नेताओं में बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड से राज्यसभा पहुंचने की होड़ सबसे ज्यादा है. इन राज्यों से कई पूर्व मुख्यमंत्री भी इस बार राज्यसभा जाने की कतार में खड़े हैं. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी राज्यसभा की रेस में है. इसे लेकर भाजपा में लॉबिंग शुरू हो गई है, लेकिन भाजपा नामांकन से एक-दो दिन पहले यानी कि 11 मार्च के आस-पास उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करेगी. 13 मार्च नामांकन की आखिरी तारीख है.

इन नामों की हो रही चर्चा

हालांकि सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को अभी फिलहाल राज्य में अपनी पार्टी की सरकार की वापसी की संभावना दिख रही है, इसलिए उनकी इच्छा केंद्र में आने की नहीं है. लेकिन पार्टी सूत्रों के मुताबिक ये भी तय है कि अगर पार्टी ने फैसला ले लिया तो देवेंद्र फडणवीस, शिवराज सिंह चौहान और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्यसभा पहुंचेंगे.

इसके अलावा भाजपा के कई बड़े नेता राज्यसभा में फिर से वापसी चाहते हैं. इसके लिए वे लगातार पार्टी नेताओं से संपर्क में हैं. मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद प्रभात झा फिर से राज्यसभा में आना चाहते हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश से ही भाजपा के तेजतर्रार महासचिव राम माधव को भी राज्यसभा में लाए जाने की चर्चा है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिल्ली के नेता विजय गोयल का भी राजस्थान से राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है. वे भी दोबारा राज्यसभा में आने के लिए जोर लगा रहे हैं. हालांकि, खबरों के मुताबिक राजस्थान से राज्यसभा के 3 सांसद जो रिटायर हो रहे हैं उनमें से किसी की भी वापसी राज्यसभा में नहीं होगी. ओडिशा में राज्य सभा की तीन सीटों में से बीजू जनता दल को दो और भाजपा को एक सीट मिलनी है. ओडिशा से भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विजयंत पांडा को राज्यसभा भेजा जा सकता है. ओडिशा में एक सीट पर भाजपा को विजय मिलेगी, जिसमें पार्टी को बीजू जनता दल से सहयोग लेना पड़ेगा. महाराष्ट्र से भी भाजपा को 2 सीटें मिल रही हैं, जिसमें देवेंद्र फडणवीस के नाम की चर्चा है. वहीं दूसरी सीट केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले को जा सकती है.

बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री और अमित शाह दोनों ही अठावले को राज्यसभा में लाना चाहते हैं. भाजपा के एक महामंत्री का कहना है कि, इस मुद्दे पर अभी पार्टी में कोई चर्चा नहीं हुई है. अंतिम फैसला तो भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को ही करना है.

बिहार में जदयू और भाजपा गठबंधन को राज्य सभा चुनाव में तीन सीट मिलने की उम्मीद है. बिहार से सीपी ठाकुर और वयोवृद्ध नेता आरके सिन्हा फिर से दावेदारी पेश कर रहे हैं. लेकिन इन दोनों की वापसी की संभावना नहीं दिखती है. बिहार में भाजपा नया चेहरा ला सकती है. यह भी हो सकता है कि केंद्र की राजनीति में रसूख रखने वाले बिहारी नेताओं को इस बार राज्यसभा में जाने का मौका मिले.

तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए मुकुल रॉय भी लंबे समय से राज्यसभा जाने का इंतजार कर रहे हैं. पश्चिमी बंगाल में पांच राज्यसभा सीटों पर चुनाव होने वाला है. लेकिन राज्य विधानसभा की गणित की वजह से इन सभी सीटों पर तृणमूल के उम्मीदवार ही विजयी होंगे. लिहाजा मुकुल रॉय को अभी और भी इंतजार करना होगा.

आआपा का फरार पार्षद ताहिर हुसैन गिरफ्तार

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में 24-25 फरवरी को भड़की हिंसा में दिल्ली पुलिस अपराध शाखा ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां करने में जुटी है. यह अलग बात है कि बुधवार तक यूं तो 1647 लोग गिरफ्तार और हिरासत में ले लिए गए, मगर मोस्ट वांटेड ताहिर हुसैन का दिल्ली पुलिस कोई सुराग नहीं लगा सकी थी॰

नई दिल्ली:

सूत्रों के अनुसार नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों का मोस्ट वांटेड आरोपी ताहिर हुसैन और आम आदमी पार्टी का पार्षद ताहिर हुसैन गिरफ्तार हो गया. दरअसल नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों का मोस्ट वांटेड ताहिर हुसैन और आम आदमी पार्टी का पार्षद दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में सरेंडर करने वाला था. बाकी की खबर पूरा ब्योरा मिलने पर।

दंगा पीड़ित इलाके में भी राहुल ने सिर्फ मस्जिद ही का मुआइना किया

दंगा पीड़ित महिला ने कहा, “इन्होंने ही कहा था आर या पार. इन्होंने ही आग लगाई है. आग लगाकर अब तापने आए हैं.” इस महिला ने विरोध इसलिए किया, क्योंकि कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नागरिकता संशोधन कानून के मुद्दे पर भड़काने वाले बयान दिये थे, आर-पार की लड़ाई वाली भड़काऊ बातें की थीं. राहुल गांधी के मस्जिद दौरे को लेकर उठाए जा रहे हैं. राहुल गांधी मस्जिद का हाल जानने पहुंचे लेकिन एक भी मंदिर नहीं गए जबकि सच्चाई ये है कि मस्जिदों के साथ साथ दंगे में मंदिर को भी नुकसान पहुंचाया गया था.  राहुल ने ये बताने की कोशिश की कि उन्हें और कांग्रेस पार्टी को दंगे के पीड़ितों की कितनी चिंता है लेकिन इसके पीछे भी असल में कांग्रेस की सियासत छिपी है, जिसे जनता को समझना होगा. राहुल गांधी इस स्कूल के ठीक बगल वाली मस्जिद भी गए. बृजपुरी इलाके में बनी इस मस्जिद का नाम है फारुकिया मस्जिद जबकि उन्होंने किसी मंदिर का दौरा नहीं किया. 

दिल्ली:  

दिल्ली दंगों के 10 दिन बाद प्रभावित इलाकों का राहुल गांधी ने दौरा किया. हिंसाग्रस्त इलाकों में जाकर राहुल गांधी बोले कि हिंसा और नफरत से भारत माता को नुकसान पहुंचा है. राहुल गांधी के इस दौरे का विरोध भी देखने को मिला. कांग्रेस नेताओं के साथ जब राहुल गांधी नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के बृजपुरी इलाके में पहुंचे एक दंगा पीड़ित महिला उन पर भड़क उठी. 

दंगा पीड़ित महिला ने कहा, “इन्होंने ही कहा था आर या पार. इन्होंने ही आग लगाई है. आग लगाकर अब तापने आए हैं.” इस महिला ने विरोध इसलिए किया, क्योंकि कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नागरिकता संशोधन कानून के मुद्दे पर भड़काने वाले बयान दिये थे, आर-पार की लड़ाई वाली भड़काऊ बातें की थीं. सोनिया गांधी ने 14 दिसंबर 2019 को अपने भाषण में कहा था, “समाज और देश की जिंदगी में कभी-कभी ऐसा वक्त आता है कि उसे इस पार या उस पार का फैसला लेना पड़ता है. आज वही वक्त आ गया है.” 

राहुल गांधी ने बिना नाम लिए सरकार और बीजेपी पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि दंगों से देश की छवि हुई खराब हो रही है.  इस मौके पर कांग्रेस नेताओं का प्रतिनिधि मंडल भी राहुल के साथ मौजूद हैं. राहुल गांधी कांग्रस नेताओं के साथ नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के बृजपुरी इलाके में पहुंचे. यहां उन्होंने उस स्कूल का दौरा किया, जो हिंसा के दौरान आगजनी का शिकार हुआ था. स्कूल से बाहर आकर राहुल गांधी ने मीडिया से कहा, ‘ये स्कूल है. ये हिंदुस्तान का भविष्य है. जिसे नफरत और हिंसा ने जलाया है. इससे किसी का फायदा नहीं हुआ है. 

मस्जिद दौरे को लेकर उठे सवाल

राहुल गांधी कांग्रेस नेताओं के साथ नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के बृजपुरी इलाके में पहुंचे. यहां उन्होंने अरुण मॉर्डन पब्लिक स्कूल का दौरा किया. ये स्कूल हिंसा के दौरान आगजनी का शिकार हुआ था. राहुल गांधी के मस्जिद दौरे को लेकर उठाए जा रहे हैं. राहुल गांधी मस्जिद का हाल जानने पहुंचे लेकिन एक भी मंदिर नहीं गए जबकि सच्चाई ये है कि मस्जिदों के साथ साथ दंगे में मंदिर को भी नुकसान पहुंचाया गया था.  राहुल ने ये बताने की कोशिश की कि उन्हें और कांग्रेस पार्टी को दंगे के पीड़ितों की कितनी चिंता है लेकिन इसके पीछे भी असल में कांग्रेस की सियासत छिपी है, जिसे जनता को समझना होगा. राहुल गांधी इस स्कूल के ठीक बगल वाली मस्जिद भी गए. बृजपुरी इलाके में बनी इस मस्जिद का नाम है फारुकिया मस्जिद जबकि उन्होंने किसी मंदिर का दौरा नहीं किया. 

उत्तर पूर्वी दिल्ली में नागरिकता कानून (CAA) को लेकर फैली हिंसा में अब तक 47 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 200 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं. जाफराबाद से लेकर मौजपुर और इसके आसपास के अन्य इलाके बेहद कड़ी सुरक्षा में हैं. दिल्ली पुलिस हर गली मोहल्ले में जाकर गश्त कर रही है. दिल्ली में भड़की हिंसा अब शांत हो गई है. हिंसा प्रभावित इलाकों में अब राहत कार्य चल रहा है और दोबारा जीवन पटरी पर लौटे इसकी कोशिशें जारी हैं.   

शाहीन बाग का झूठ क्या है?

शिव प्रकाश मिश्र :

सबसे बड़ा झूठ

शाहीन बाग का का सबसे बड़ा झूठ है कि यह धरना, प्रदर्शन, आंदोलन संशोधित नागरिक कानून और एनआरसी के विरुद्ध है और यह मुस्लिम महिलाओं द्वारा स्वत: स्फूर्त संचालित है. इसका जेएनयू जामिया और एएमयू से कोई लेना देना नहीं है.आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का इससे दूर दूर का कोई रिश्ता नही।

शाहीन बाग का केवल झूठ जानने से स्थित स्पष्ट नहीं होती इसलिए ये भी जानिए कि इसका सच क्या है ?

शाहीन बाग का सच

शाहीन बाग का सच यह है कि इसका एकमात्र उदेश्य आम आदमी पार्टी को चुनाव में जीत सुनिश्चित करना था और इसकी पूरी योजना का खाका अरिन्द केजरीवाल को रणनीतिक सलाह देने वाले प्रशान्त किशोर ने बनाया था और इसका सञ्चालन फिरोजशाह कोटला रोड पर आप के वॉर रूम से किया जा रहा था . कांग्रेस भी मुश्लिम वोट मिलने की खुशफहमी का शिकार हुयी जबकि इसका उद्देश्य उसका वोट बैंक भी लूट कर आम आदमी पार्टी को देना था. सब कुछ बहुत योजना वद्ध तरीके से हुआ. शायद इतिहास में पहलीवार हिन्दुओं का ध्रुवीकरण रोकते हुए ,जमकर मुश्लिम धुर्वीकरण किया गया। वास्तव में ये एक नायाब प्रयोग था। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का ये कहना कि ये संयोग नही प्रयोग है अक्षरसः सत्य है। आप के सभी मुस्लिम उम्मीदवार रिकार्ड मतो से जीते। उन्हें प्राप्त मतों का प्रतिशत 76% तक गया । ये अपने आप मे एक रिकॉर्ड है ।जो भी हो इस नए प्रयोग से आम आदमी पार्टी की चुनाव में शानदार जीत हुई और शाहीन बाग़ आन्दोलन की “हैप्पी इंडिंग” भी . भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनआंदोलन से उपजी एक पार्टी ने मुफ्त खोरी या/और रिश्वत खोरी का बहुत ही ईमानदारी से उपयोग किया और संविधान और लोकतंत्र की कमजोर कड़ियों को जोड़ कर , सामाजिक ताने बाने को तोड़कर , हिंदुस्तान की आत्मा को रौंदते हुए , देश की बिषम परस्थितयों को अपने फायदे के लिए निचोड़ लिया । ये अभिनव प्रयोग है ऐसा तो कभी कांग्रेस भी नही कर सकी जिसने अमेरिका की एक एजेंसी को चुनाव सलाहकार के रूप में लगा रखा था।

(आम आदमी पार्टी की जीत के बाद शाहींन बाग़ उजड़ गया)

शाहींन बाग की प्रष्ठभूमि

राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर पहले भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करते थे । 2014 में लोकसभा चुनाव में भाजपा की विजय के बाद और मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रशांत किशोर की सीधे-सीधे राजनीति में आकर कौशल दिखाने की लालसा जागृत हो गई । सूत्रों के अनुसार उन्होंने अपनी इस इच्छा को अमित शाह के सामने प्रकट किया और अनुरोध किया कि उन्हें भाजपा में पार्टी संगठन में कोई बड़ा पद दिया जाए । भारतीय जनता पार्टी कैडर वाली पार्टी है और प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति ,मुख्यमंत्री ,राज्यपाल समेत कई बड़े नेता, कार्यकर्ता से यहां तक पहुंचे हैं .पार्टी में वैसे चाहे जितनी कमियां हो लेकिन एक बहुत अच्छी चीज है कि बाहर से आए हुए नेताओं को संगठन में किसी बड़े पद पर नहीं बैठाया जाता है ।पार्टी बाहर से आए नेताओं को विधानसभा, लोकसभा का टिकट तो दे सकती है उन्हें विधान परिषद और राज्यसभा भेज सकती है लेकिन संगठन में महत्वपूर्ण पद पर नहीं बैठा सकती . कहा जाता है कि श्री प्रशांत किशोर की मांग पूरी नहीं हो सकी लेकिन अमित शाह के कहने पर उन्हें जेडीयू में न केवल शामिल किया गया बल्कि उपाध्यक्ष भी बना दिया गया । प्रशांत किशोर को इससे बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ और उनकी फर्म विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के लिए कार्य करती रही । इस बीच भारतीय जनता पार्टी से उनके रिश्ते बिगड़ते रहे ।हाल ही में इसकी पराकाष्ठा तब हो गई जब उन्होंने पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को लोक सभा और विधानसभा चुनाव के लिए अपनी फर्म का रणनीतिक सलाह हेतु अनुबंध कर लिया । लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर के अथक प्रयासों के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को सीधी टक्कर देकर 42 में से 18 सीटें जीतने में भी सफल रही । इसबीच अरविंद केजरीवाल ने भी प्रशांत किशोर को दिल्ली विधान सभा चुनाव हेतु अनुबंधित कर लिया। प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के लिए संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी को जीत का थीम बना कर योजना बनाई. इस बीच CAA और NRC को लेकर प्रशान्त किशोर के सम्बन्ध भाजपा से इतने ख़राब हो गये कि अमित शाह की सिफारिस पर जेडीयू में लिए गए प्रशांत किशोर को अमित शाह की नाराजगी के बाद ही बाहर का रास्ता दिखाया गया .

(जीत की खुशी- प्रशांत किशोर और केजरीवाल )

जहां पश्चिम बंगाल में स्वयं ममता बनर्जी संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में सड़कों पर है, वही दिल्ली में केजरीवाल को इस मुहिम से दूर रखते हुए शाहीन बाग को बहुत सोच समझ कर आन्दोलन का केंन्द्र बनाया गया । लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर जीतने वाली भाजपा को हर विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम महिलाओं ने जमकर वोट किए थे । जिसके पीछे तीन तलाक और हलाला खत्म करने की खुशी थी। इसलिए जानबूझकर शाहीन बाग में महिलाओं को आगे किया गया ताकि इन मुस्लिम महिलाओं को भाजपा को वोट देने से रोका जा सके और इस तरह मुस्लिमों को एकजुट करके एकमुश्त वोट आप को दिलवाया जा सके । परोक्ष रूप से आम आदमी पार्टी ने खासतौर से उसके मुस्लिम नेताओं और कुछ मुस्लिम संगठनों ने शाहीन बाग को वित्त पोषित किया । प्रदर्शनकारियों के लिए बहुत ही अच्छे खाने-पीने के इंतजाम किए गए ताकि उनको लंबे समय तक रोका जा सके । प्रदर्शनकारियों में बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर और अल्प आय वर्ग के लोग थे । कहा तो यह भी जाता है कि उन्हें प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जा रहा है . इसका नतीजा यह हुआ कि शाहीन बाग में आगे महिलाएं और पीछे एक बहुत बड़ा तंत्र या षड्यंत्र था ।आम आदमी पार्टी की जीत पर शाहीन बाग में जमकर उल्लास मनाया गया लोग एक दूसरे से गले मिले और बिरयानी बांटी गई । धीरे-धीरे कम प्रदर्शन कारी और भी कम होने लगे हैं और वित्त पोषक भी दूर हो रहे हैं . अब शाहीन बाग का आंदोलन अपने आप खत्म हो रहा है क्योंकि उद्देश्य पूरा हो चुका है। जे एन यू, जामिया, और ए एम यू भी अब शांत हो जाएंगे । पूरे घटना क्रम में कांग्रेस एक “आत्मघाती दल” के रूप में उभरा है। उन्हें भाजपा के न जीत पाने या कांग्रेस द्वारा भाजपा को रोक देने की बेहद खुशी है। राहुल, प्रियंका और सोनिया सब बेहद खुश हैं । उन्हें इस बात का जरा भी गुमान नही कि उन्होंने स्वयं कांग्रेस में आत्मघाती टाइम बंम लगा दिया है । अगर स्थिति यही रही तो कांग्रेस स्वयं कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार कर देगी। कांग्रेस वहीं जीत सकती है जहां वह भाजपा के मुख्य मुकाबले में है जैसा मप्र , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हुआ। जहाँ कहीं भी कांग्रेस ने किसी तीसरे दल को भाजपा के सामने खड़ा कर दिया वहां कांग्रेस फिर कभी खड़ी नही हो पाई। यदि दिल्ली में कांग्रेस और आप के संयुक्त वोट प्रतिशत का औसत निकालें तो भाजपा से 8% से भी ज्यादा कम हैं । इसका मतलब ये है कि कांग्रेस अगर ठीक से चुनाव लड़ती तो भाजपा जीत जाती। ये भी निष्चित है कि कभी आप हारेगी तो जीतने वाली भाजपा होगी। कांग्रेस तो दिल्ली से सदा सर्वदा के लिए विदा हो गई।

कह सकते हैं कि शाहीन बाग आंदोलन का मुख्य मकसद मुस्लिम पुरुष और महिला वोटों को एकजुट करके आम आदमी पार्टी के खाते में डालना था ताकि अरविंद केजरीवाल की जीत सुनिश्चित की जा सके . इसमें कांग्रेस ने भी बहुत सहयोग किया । एक तरफ मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर, दिग्विजय सिंह और सलमान खुर्शीद जैसे फायर ब्रांड नेताओं ने जहरीला माहौल बनाया और उन्हें भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध खड़ा किया दूसरी तरफ कांग्रेस की युवा बिग्रेड राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पूर्वी उत्तर प्रदेश तक और शाहीन बाग से इंडिया गेट व जंतर मंतर तक कानून व्यवस्था को तार-तार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । जेएनयू, जामिया और एएमयू भी रह रह कर रंग बदलते रहे और केंद्र सरकार को उलझाने का काम करते रहे . इतनी बड़ी पटकथा के लेखक को नमन करना चाहिये , हम लोगों को नही , कम से कम राजनीतिक लोगों को