Admission Schedule of M.Phil/Ph.D (2020-21)

Chandigarh December 18, 2020

The Department of Public Administration, Panjab University, Chandigarh invites applications for admission to M.Phil/Ph.D Programme for the session 2020-21 as per the following schedule:

Last Date for the submission of Application :                         31.12.2020 (Thursday)

Date of Interview (Online Mode)                               :           11.01.2021 (Monday) 2:00 PM onwards Display of Final Merit List                                                           :           12.01.2021

The candidates can submit their applications through email at publicadmn_pu@pu.ac.in on plain paper along with following scanned documents:

  1. Qualifying Examination- UGC- NET/JRF/PU M.Phil/Ph.D Entrance Test (held in the past with three-year validity)
  2. Latest Photograph
  3. DMC of 10th Class
  4. DMC of 10+2 Class
  5. All Graduation DMCs
  6. All Post-Graduation DMCs
  7. Caste Certificate, if any
  8. Aadhar Card
  9. Research Proposal*
  • The Research Proposal should cover tentative title/research area, its rationale, theoretical frame work, objectives, research questions, and proposed research methodology. This will have to be presented before the Interview Committee of the Department at the time of interview. All the applicants must prepare 8 to 10 minutes PPT as per their research proposal. The research aptitude of the applicant will be assessed on the basis of interview/presentation. However, the topic of research will be finalized in consultation with the supervisor after admission. The Research proposal for the presentation for the admission should include reference to 3 or 4 reference books and 4 or 5 journal articles.

Important Instructions:

The candidates who have cleared any of the following national tests can apply for M.Phil/Ph.D Admission for the session 2020-21:

  • UGC-CSIR NET including JRF, SLET, GATE or any other prestigious test for national level scholarship/fellowship conducted at all India level on behalf of national institutions for example GPAT and JEST.
    • Direct awardees of fellowship for pursuing Ph.D.
    • Working permanent teachers of Panjab University and affiliated colleges
    • Ph.D Entrance Test of Panjab University for admission to Ph.D/M.Phil shall be walid for 3 years.

The GATE qualifying score be considered as the basic. GATE/GPAT of any other national level test meant for admission to Ph.D/M.Phil shall be valied forever.

‘Mahashivir’ : An online opportunity to experience the 800 years old divine Himalayan Meditation, free of cost!

Guru Tattva is a global platform steered by Shree Shivkrupanand Swami Foundation, working towards the overall development of human beings in all spheres of their lives. Led by H. H. Shree Shivkrupanand Swami ji himself, Guru Tattva organizes ‘Mahashivir’ in the divine proximity of Swamiji to accelerate the spiritual journey of people through Himalayan Meditation Sanskaar.

Jammu/ Chandigarh :

Guru Tattva has organized thelive broadcast of Mahashivir from 23rd to 30th December, 6:00 AM to 8:00 AM with repeat telecast from 6:00 PM to 8:00 PM on Youtube.com/Gurutattva and www.gurutattva.org. All the updates regarding Mahashivir will be posted regularly on Facebook and Instagram @gurutattvameditation. 

2020 is about to end but the battle with the pandemic is still on. In challenging times like these, one of the best ways to be joyful andat peace is practisingmeditation regularly. Himalayan Meditation is an 800 years oldSanskaar which is simple and can be easily practised by all. Unlike the other techniques of meditation, it doesn’t involve any complex breathing techniques or yoga. Since its inception, Guru Tattvahas been sharing this divine wisdom and experience with the world for free.

‘Mahashivir’ is a pricelessopportunity of self-realization in the divine proximity of living Sadguru.In Mahashivir, H. H. Shree Shivkrupanand Swami ji will share the complex Himalayan wisdom of meditation with the Shivir attendees in simple language. He will present his 60 years of divine experiences and knowledge in just 8 days.The eventwill have discourses of Swamiji in which, he will explain the science of 800 years old Himalayan Meditation in a simple language and conduct online collective meditation sessions. It is said that meditating alone for a million day and meditating for one day with a million people are one and the same!

Guru Tattva is a global platform steered by Shree Shivkrupanand Swami Foundation, working towards the overall development of human beings in all spheres of their lives. Led by H. H. Shree Shivkrupanand Swami ji himself, Guru Tattva organizes ‘Mahashivir’ in the divine proximity of Swamiji to accelerate the spiritual journey of people through Himalayan Meditation Sanskaar.

H.H. Shree Shivkrupanand Swami is an enlightened yogi. Since childhood, he was in search of the ultimate truth.As time passed, he spent 16 years of his life in the Himalayas, practising meditation and absorbing the wisdom from different revere Himalayan Gurus. Since the inception of SamarpanDhyanyog in 1994, he has been sharing this 800-year-old divine wisdom with the world, free of cost.

Inviting all of you to this once-in-a-lifetime online event of self-realization and inner-joy. For more information, Like and Follow @gurutattvameditation on Facebook and Instagram. To get a reminder for the event, subscribe to youtube.com/gurutattvaandpress the bell icon.

“You are most welcome to embark on a divine journey to blissfulness”

नेहरू से राहुल तक कॉंग्रेस काश्मीर और लदाख चीन को सौंपने को उतावली

कॉंग्रेस का चीन प्रेम नेहरू के समय ही से जग जाहिर है। चीन के भारत पर आक्रमण के पश्चात भी नेहरू ने चीन को शत्रु देश नहीं माना था और अपनी नीतियाँ चीन के पक्ष ही में रखीं। अब जब डोकलम पर चीन ने फिर से अपनी विसतारवादी नीति का प्रदर्शन कर भारतीय सेना के साथ गुत्थम गूत्था हुई तब भी राहुल चीन के राजदूत के साथ रात्रिभोज करते पाये गए, और तो और यूपीए के शासन काल में चीन की सत्ताधारी पार्टी के साथ कॉंग्रेस ने एक करार किया था जिसके एवज में कॉंग्रेस ने RGF के नाम पर करोड़ों रुपयों का अनुदान लिया। आज जब फिर से चीन की विसतारवादी सोच के कारण जब चीन और भारत यद्ध की स्थिति में पहुँच चुके हैं तो कॉंग्रेस चीन के समर्थन में भारत के जिस नक्शे को प्रदर्शित करती है उसमें काश्मीर और लदाख को चीन का हिस्सा दिखाया गया है। हालांकि अब उस पोस्ट को डिलीट कर दिया गया है।

असम/नयी दिल्ली:

कॉन्ग्रेस पार्टी किसानों के समर्थन की बातें कर रही है। मंगलवार (दिसंबर 8, 2020) को आयोजित ‘भारत बंद’ में भी किसान तो नहीं दिखे, लेकिन कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता जरूर देश भर में उपद्रव करते नजर आए। इसी बीच कॉन्ग्रेस पार्टी ने ट्विटर पर ‘भारत किसानों के साथ है, मोदी अंबानी के साथ हैं’ टैगलाइन के साथ देश का गलत नक्शा शेयर किया और कश्मीर-लदाख को पाकिस्तान-चीन को दे दिया। असम कॉन्ग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ‘स्टैंड विद फार्मर्स’ का टैग लगाते हुए ऐसा किया।

‘असम कॉन्ग्रेस’ ने जो भारत का नक्शा शेयर किया है, उसमें जम्मू कश्मीर और लद्दाख के हिस्सों को भारत का हिस्सा न बता कर चीन और पाकिस्तान को दे दिया गया है। कॉन्ग्रेस ने जो भारत का नक्शा शेयर किया, पाकिस्तान का भी यही रुख है। पाकिस्तान भी दावा करता रहा है कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख उसके मुल्क में पड़ते हैं, भारत का हिस्सा नहीं है। उसने कश्मीर के एक हिस्से पर कब्ज़ा भी कर रखा है।

तिरुवनंतपुरम से कॉन्ग्रेस के सांसद शशि थरूर को ‘लिबरल-सेक्युलर’ मीडिया का एक बड़ा वर्ग अपना पोस्टर बॉय भी मानता है। उन्होंने भी दिसंबर 2019 में कुछ ऐसा ही कारनामा किया था। उन्होंने भारत का जो नक्शा शेयर करते हुए CAA विरोधी आंदोलन का समर्थन जताया था, उसमें जम्मू कश्मीर और लद्दाख को भारत का हिस्सा नहीं बताया गया था। तब कॉन्ग्रेस ने ‘भारत बचाओ आंदोलन’ के नाम पर ऐसा किया था।

ट्विटर पर लोगों ने गलत नक़्शे के लिए असम कॉन्ग्रेस को जम कर लताड़ लगाई। लोगों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिए कॉन्ग्रेस यहाँ तक गिर चुकी है कि वो देश के नक़्शे के साथ भी खिलवाड़ कर रही है। एक व्यक्ति ने खबर का स्क्रीनशॉट ट्वीट करते हुए बताया कि भारत का गलत नक्शा दिखाने पर जेल और जुर्माने का भी प्रावधान है। कुछ ने पूछा कि क्या कॉन्ग्रेस ने POK को पाकिस्तान का हिस्सा मान लिया है?

उल्लेखनीय है की विवादों में आने के बाद असम कॉन्ग्रेस ने यह ट्वीट अब डिलीट कर दिया है। हालाँकि, पार्टी की ओर से इसे लेकर किसी भी तरह का कोई स्पष्टीकरण अभी तक नहीं दिया गया है।

विजय माल्या की बढ़ीं मुश्किलें, फ्रांस में 14.34 करोड़ की संपत्ति ज़ब्त

केंद्र सरकार विजय माल्या को प्रत्यर्पित कराने की कोशिश में भी जुटी हुई है. विजय माल्या का प्रत्यर्पण अनुरोध काफी पहले ब्रिटेन भेजा गया था. यूके की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट (Westminster Magistrates’ Court) ने 10 दिसंबर, 2018 को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी विजय माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश दिया था. फैसले में कोर्ट ने लिखा था कि आरोपी माल्या के खिलाफ दर्ज मामलों में उसके शामिल होने के पुख्ता सबूत हैं. इसके बाद उसने ब्रिटेन के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक का रुख किया लेकिन उसे वहां से भी राहत नहीं मिली.

नयी दिल्ली:

किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड के मालिक और भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या पर प्रवर्तन निदेशालय ने बड़ी कार्रवाई की है. शुक्रवार को ईडी ने फ्रांस में विजय माल्या की 1.6 मिलियन यूरो की प्रॉपर्टी को जब्त किया है. विजय माल्या पर कार्रवाई करने के बाद ईडी ने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया, ‘ईडी के आग्रह पर विजय माल्‍या की 32 अवेन्‍यू फोच (FOCH), फ्रांस की संपत्ति को फ्रेंच अथॉरिटी ने जब्‍त किया है.’

फ्रांस में जब्‍त की गई प्रापर्टी की कीमत 1.6 मिलियन यूरो (करीब 14.34 करोड़ रुपये) आंकी गई है. जांच में यह बात सामने आई है कि किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड के बैंक खाते से विदेश में बड़ी रकम निकाली गई.

उल्लेखनीय है कि भारतीय कारोबारी विजय माल्या नौ हजार करोड़ रुपये से अधिक के बैंक कर्ज धोखाधड़ी मामले में आरोपी है. इस वक्त वो ब्रिटेन में रह रहा है. माल्या के प्रत्यर्पण के लिए भारत ने कुछ माह पहले यूनाइटेड किंगडम (UK) सरकार से आग्रह किया था. भारत सरकार ने कहा था कि वह विजय माल्या के जल्द प्रत्यर्पण को लेकर ब्रिटिश सरकार के संपर्क में है.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार ने मांगी थी रिपोर्ट
बीते मई महीने में माल्या ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में मनी लांड्रिंग एवं हजारों करोड़ की धांधली के मामले में भारत में प्रत्यर्पण के खिलाफ अपनी अपील हार गया था. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने केंद्र से कहा था कि वह ब्रिटेन में भगोड़ा कारोबारी विजय माल्या को भारत को प्रत्यर्पित किए जाने सबंधी कार्रवाई पर छह सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दायर करे. न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा था कि भगोड़े कारोबारी विजय माल्या के प्रत्यर्पण के बाद मामले की सुनवाई यूनाइटेड किंगडम में उसके खिलाफ “गुप्त कार्यवाही” के कारण नहीं हो रही थी. 31 अगस्त को पुनर्विचार याचिका खारिज होने और सजा की पुष्टि होने के बाद माल्या अपने खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट में पेश होने वाला था.

पी.यू. के प्रो. अलंकार को संस्कृत में शिरोमणि सम्मान

चंडीगढ़, 04 दिसम्बर :

भाषा विभाग, पंजाब प्रतिवर्ष भाषाओं के विकास व प्रोत्साहन के लिए पंजाब के साहित्यकारों को पुरस्कृत करता है। वर्ष 2015 -20 तक के साहित्य शिरोमणि पुरस्कारों की घोषणा की गई है। संस्कृत विभाग, पी.यू. के अध्यक्ष प्रो. वीरेन्द्र कुमार अलंकार का वर्ष 2019 के साहित्य शिरोमणि पुरस्कार के लिए चयन हुआ है। प्रो. अलंकार ने विगत 30 वर्षों में पी.यू. चण्डीगढ में सेवारत रहते हुए वेद, व्याकरण, दर्शन, साहित्य, पालि जैसे विषयों पर 15 से अधिक ग्रन्थ लिखे हैं। आपकी गिनती भारत के प्रसिद्ध संस्कृत कवियों में होती है। पिछले महीने ही प्रो. अलंकार का एक नया काव्य वाल्मीकिप्रशस्तिकाव्यम् भी प्रकाशित हुआ है। पंजाब और पंजाब की संस्कृति व सभ्यता पर आपके कई लेख हैं। वर्ष 2015 में थाईलैण्ड में वर्ल्ड संस्कृत कांफ्रेंस में आपने पंजाब के लेखन पर अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया था और 2018 में वैंकुअर, कनाडा में वर्ल्ड संस्कृत कांफ्रेंस में एक सत्र का संचालन तथा पंजाब का वैदिक साहित्य को योगदान विषय पर पत्र पढा था। वर्ष जनवरी, 2022 में ऑस्ट्रोलिया में होने वाली वर्ल्ड संस्कृत कांफ्रेंस के लिए भी प्रो. अलंकार का गुरुनानक देव पर शोधपत्र स्वीकृत हो चुका है। मौलिक लेखन के लिए प्रो. अलंकार हरियाणा, दिल्ली, चण्डीगढ व मुम्बई आदि अनेक अकादमियों व संस्थाओं द्वारा सम्मानित हो चुके हैं।

संस्कृत विभाग, पी.यू. के लिए यह बड़े गौरव की बात है कि 2015 के लिए संस्कृत के पूर्व प्रोफेसर डॉ. रमाकान्त आंगिरस तथा 2016 के लिए .यह साहित्य शिरोमणि पुरस्कार डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय का चयन किया गया है।

Webinar on ‘Higher Education for Divyang jan’ at PU

Chandigarh December 4, 2020:

Equal Opportunity Cell Person with disabilities, Panjab University Chandigarh organized a webinar on the topic of “Higher Education for Divyangjan: NEP 2020” on the occasion of International Day of Persons with Disabilities-2020. This day is celebrated for disable people to sensitize them and other people about the issues faced by disabled and celebrate the abilities and achievements of disabled people. Disability is a human condition, there is hardly any person who is not suffering from disability. It is not only physical but social also. This day is celebrated for empowering disable people so that they don’t feel dishonored or discouraged.

Prof. Raj Kumar, Vice Chancellor, Panjab University while appreciating the EOC  for organizing this event, mentioned that by organizing such type of event we can change the mind set of society towards the PwDs. For the change all over the India, lot of activities/tasks are being undertaken  by the society and Government towards the welfare of PwDs but still a lot has to be done. Young people must come forward for Divyangjan to provide opportunities to them. Prof Kumar also emphasized that in University we should focus to increase the enrolment of PwDs for their higher education because the education is only the way for their respectful survival in society.

Dr. Himangshu Das ,Director of National Institute for Empowerment of Persons with Visual Disabilities (NIEPVD) Dehradun; Chief Coordinator-National Early Intervention and Pre-School mission; and Chairperson-National Mental Health Rehabilitation Helpline, Government of India, in his address, mentioned that Universities and other educational institutes must organize the awareness programs for the PwDs. This is because with the help of awareness program we can learn how we can educate others on the sensitive issues and support to the stakeholder’s society. During his talk Dr Das shared one of his experiences of Europe visit along with his student who was physically challenged. His student was enquired a lot of about his extent of disability, but when they reached there it was found that everything in his room and surrounding was adjusted in such a way that everything was made convenient for him. He mentioned that India is poorer support provider for the needs of special people. Punjab also performed poor. It is high time to take stand for disable people.  It is always not about resources as Bhutan is very poor country but it is doing a lot for its special people. We need to learn that how can we promote higher education in Divyangjan with or without resources. As many countries look at disable people as entrepreneur and taxpayers. But in India, we think they are dependent on us. We need to change this mentality, as this make them mentally ill. Empathy of society is very important for such people. We need to learn to give empathy instead of sympathy to boost their self-esteem and we need to stop discriminate them.Dr Das cited we should create empathetic and accessible society. Whenever we talk to successful special people about how they overcome barriers in their path, their answer is always Empathy. Empathy is the key to pass all the barriers.

Accommodation, adaption, provisions, equity for special people is needed. 5% quota is provided to them in higher education, but no one think about their basic education. If they don’t get basic education, how will they reach at higher education level? We should start special courses for them. We should understand higher education across disability. Most of the opportunities are given to mild and moderate disability and severe disability is ignored. We need to take care of that. Disable people lack competency, we should encourage them.

Universities can play evolving role at community level. Universities can focus on skill training and providing reasonable accommodations. Universities should share their funds wisely and develop resources in various forms. There are two full-fledged universities in UP for Human resource development. Early childhood, schooling everything needs to be take care of for such people. Human resource development at university level is very important, presently it is done by NGOs only. University should focus on more admissions of special people and make everything accessible to them. Divyangjan need support system. Special departments should be made for special education of such people. Administration people should taught social responsibility. Youth should be sensitized for Divyangjan. An advisory board should be made to evaluate that how can we help special people. In Faculty development programs, faculty should also be taught about strengths and abilities of special people and their employment. Universities should fill all the backlog positions of disable people and promote their employment as it will create huge impact.

Dr. Das added that disable people should not be treated with sympathy and pity, but we should encourage and empower them. We should learn to boost up their moral. Our mindset is not clear about what they can do? We should make them friends and give them needed social support.

In the last Dr Ramesh Kataria, Coordinator EO-Cell PwDs, Panjab University thanks to worthy Vice Chancellor for motivation, PU, EO-Cell PwDs staff for technical support to event, organizing committee namely Dr Rajesh Jaiswal, Dr Vinod, Dr Harmail, Dr Aman Khera, Dr Neelima  Dhingra, Ms Rimpi, Ms Pardeep  Kumari and Mr Dheeru Yadev for coordinating the event, Mr Kulwinder Singh for technical help and Director computer center for providing the all technical support. Dr Kataria also thanks to the students, scholars and all other audiences for active participation.

हैदराबाद को भाग्यनगर बनाने के लिए आया हूं, ओवैसी के गढ़ में गरजे योगी

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कुछ लोग पूछ रहे थे कि क्या हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर किया जाएगा?  मैंने कहा- क्यों नहीं, बीजेपी के सत्ता में आने के बाद जब फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या हो गया, इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हो गया तो फिर हैदराबाद का नाम भाग्यनगर क्यों नहीं हो सकता है.” उन्होंने आगे कहा कि ”मैं जानता हूं कि यहां कि सरकार एक तरफ जनता के साथ लूट खसोट कर रही है तो वहीं, AIMIM के बहकावे में आकर बीजेपी कार्यकर्ताओं  का उत्पीड़न कर रही है.” उन्होंने कहा कि इन लोगों के खिलाफ नई लड़ाई लड़ने के लिए आप लोगों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए भगवान श्री राम की धरती से मैं स्वंय यहां आया हूं.”

हैदराबाद/दिल्ली:

बिहार विधानसभा में शानदार प्रदर्शन के बाद भारतीय जनता पार्टी की निगाह अब तेलंगाना तथा पश्चिम बंगाल पर भी है। इसके लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मोर्चे पर हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ शनिवार को तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में निकाय चुनाव (ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपिल कॉर्पोरेशन) में मलकजगिरी इलाके में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में सभा के साथ एक रोड शो किया। 

एक दर्जन राज्यों में चुनाव प्रचार कर चुके योगी

विधानसभा की तैयारी में बीजेपी:

हैदराबाद निकाय चुनाव में चार प्रमुख पार्टियां हिस्सा ले रही हैं, टीआरएस, कांग्रेस,AIMIM और बीजेपी, मगर असली जंग बीजेपी और AIMIM के बीच ही दिख रही है. अब सवाल उठता है कि बिहार में AIMIM एऩडीए गठबंधन का स्पीकर चुनने में सहयोग देती है तो फिर यहां तल्खी क्यों हैं? दरअसल, बीजेपी को लगता है कि कर्नाटक के बाद तेलंगाना ही वो राज्य है, जहां वो अपनी पैठ बना सकती है.यहां कांग्रेस कमजोर है, चंद्रबाबू नायडू से लोग खफा हैं, टीआरएस मजबूत जरूर है,लेकिन अगर बीजेपी ओवैसी को उन्हीं के गढ़ में मात देने में सफल होती है तो विधानसभा चुनावों के लिए उसकी ताकत और बढ़ेगी. ऐसे में माना जा रहा है कि निकाय चुनावों में बीजेपी का दम असल में विधानसभा चुनावों की आगामी तैयारी है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तेलंगाना के रोड शो में शनिवार (नवंबर 28, 2020) को भारी भीड़ उमड़ी। सीएम योगी आदित्यनाथ हैदराबाद में एक दिसंबर को होने वाले निकाय चुनाव (ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपिल कॉर्पोरेशन) भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में रोड शो तथा जनसभा करने के लिए हैदराबाद में हैं। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज शाम को हैदराबाद के मलकजगिरी क्षेत्र में एक रोड शो किया। इस दौरान ‘जय श्री राम’ के नारे लगे और साथ ही सुपरहिट फिल्म बाहुबली का गाना ‘जियो रे बाहुबली’ भी रोड शो में बजता दिखा। सीएम योगी के रोड शो के में- ‘आया आया शेर आया…. राम लक्ष्मण जानकी, जय बोलो हनुमान की’, योगी-योगी, जय श्री राम, भारत माता की जय और वंदे मातरम के भी गगनभेदी नारे लगाए गए।

रोड शो के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए सीएम योगी ने कहा, “पीएम नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में गृह मंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करते हुए हैदराबाद और तेलंगाना के लोगों को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने की पूरी आजादी दी।”

CM योगी ने कहा, “बिहार में, AIMIM के एक नव-निर्वाचित विधायक ने शपथ ग्रहण के दौरान ‘हिंदुस्तान’ शब्द का उच्चारण करने से इनकार कर दिया। वे हिंदुस्तान में रहेंगे, लेकिन जब हिंदुस्तान के नाम पर शपथ लेने की बात आती है, तो वे संकोच करते हैं। यह AIMIM का असली चेहरा दिखाता है।”

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के लिए मतदान एक दिसंबर को होगा। सीएम योगी ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के 150 वार्डों के लिए होने वाले चुनावों में प्रचार किया। सीएम योगी आदित्यनाथ के हैदराबाद में चुनाव प्रचार को एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी को सीधी चुनौती देने के रूप में देखा जा रहा है।

मुख्य मुकाबला BJP-TRS में, कांग्रेस तीसरी पार्टी

ओवैसी ने यहाँ पर चुनाव में 51 प्रत्याशी उतारे हैं। हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भी असदुद्दीन ओवैसी ने पुराने हैदराबाद के इलाके की सीटों पर अपनी पार्टी के प्रत्याशी उतारे हैं, जिनमें से पाँच टिकट हिंदुओं को दिए गए हैं। ओवैसी के 10 फीसदी प्रत्याशी हिंदू समुदाय के हैं। ओवैसी की पार्टी के हिंदू समुदाय के प्रत्याशी उन सीटों पर हैं, जहाँ पर हिंदू-मुस्लिम आबादी करीब-करीब बराबर यानी 50-50 फीसदी है और यहाँ विधानसभा सीट पर भी ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के विधायकों का कब्जा है।

गौरतलब है कि सीएम योगी के रोड शो से पहले ओवैसी ने कहा था कि अगर बीजेपी सर्जिकल स्ट्राइक करेगी तो एक दिसंबर को वोटर्स डेमोक्रेटिक स्ट्राइक करेंगे। ओवैसी ने किसानों के मुद्दे पर भी केंद्र की मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया था दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि किसानों के ऊपर ठंड में पानी डाला गया, यह सरकार हर मोर्चे पर फेल है।

एक राष्ट्र एक चुनाव, पक्ष – विपक्ष

2018 में विधि आयोग की बैठक में भाजपा और कांग्रेस ने इससे दूरी बनाए रखी. कॉंग्रेस का विरोध तो जग जाहिर है लेकिन भाजपा की इस मुद्दे पर चुप्पी समझ से परे है. 2018 में ऐसा क्या था कि प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली भाजपा तटस्थ रही और आज मोदी इसका हर जगह इसका प्रचार प्रसार कर रहे हैं? 1999 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान विधि आयोग ने इस मसले पर एक रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा कि अगर किसी सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आता है तो उसी समय उसे दूसरी वैकल्पिक सरकार के पक्ष में विश्वास प्रस्ताव भी देना सुनिश्चित किया जाए। 2018 में विधि आयोग ने इस मसले पर एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई जिसमें कुछ राजनीतिक दलों ने इस प्रणाली का समर्थन किया तो कुछ ने विरोध। कुछ राजनीतिक दलों का इस विषय पर तटस्थ रुख रहा। भारत में चुनाव को ‘लोकतंत्र का उत्सव’ कहा जाता है, तो क्या पांच साल में एक बार ही जनता को उत्सव मनाने का मौका मिले या देश में हर वक्त कहीं न कहीं उत्सव का माहौल बना रहे? जानिए, क्यों यह चर्चा का विषय है.

सारिका तिवारी, चंडीगढ़:

हर कुछ महीनों के बाद देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव हो रहे होते हैं. यह भी चुनावी तथ्य है कि देश में पिछले करीब तीन दशकों में एक साल भी ऐसा नहीं बीता, जब चुनाव आयोग ने किसी न किसी राज्य में कोई चुनाव न करवाया हो. इस तरह के तमाम तथ्यों के हवाले से एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश एक चुनाव’ की बात छेड़ी है. अव्वल तो यह आइडिया होता क्या है? इस सवाल के बाद बहस यह है कि जो लोग इस आइडिया का समर्थन करते हैं तो क्यों और जो नहीं करते, उनके तर्क क्या हैं.

जानकार तो यहां तक कहते हैं ​कि भारत का लोकतंत्र चुनावी राजनीति बनकर रह गया है. लोकसभा से लेकर विधानसभा और नगरीय निकाय से लेकर पंचायत चुनाव… कोई न कोई भोंपू बजता ही रहता है और रैलियां होती ही रहती हैं. सरकारों का भी ज़्यादातर समय चुनाव के चलते अपनी पार्टी या संगठन के हित में ही खर्च होता है. इन तमाम बातों और पीएम मोदी के बयान के मद्देनज़र इस विषय के कई पहलू टटोलते हुए जानते हैं कि इस पर चर्चा क्यों ज़रूरी है.

क्या है ‘एक देश एक चुनाव’ का आइडिया?

इस नारे या जुमले का वास्तविक अर्थ यह है कि संसद, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ, एक ही समय पर हों. और सरल शब्दों में ऐसे समझा जा सकता है कि वोटर यानी लोग एक ही दिन में सरकार या प्रशासन के तीनों स्तरों के लिए वोटिंग करेंगे. अब चूंकि विधानसभा और संसद के चुनाव केंद्रीय चुनाव आयोग संपन्न करवाता है और स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग, तो इस ‘एक चुनाव’ के आइडिया में समझा जाता है कि तकनीकी रूप से संसद और विधानसभा चुनाव एक साथ संपन्न करवाए जा सकते हैं.

पीएम मोदी की खास रुचि

जनवरी, 2017 में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव के संभाव्यता अध्ययन कराए जाने की बात कही. तीन महीने बाद नीति आयोग के साथ राज्य के मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी इसकी आवश्यक्ता को दोहराया. इससे पहले दिसंबर 2015 में राज्यसभा के सदस्य ईएम सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता में गठित संसदीय समिति ने भी इस चुनाव प्रणाली को लागू किए जाने पर जोर दिया था. 2018 में विधि आयोग की बैठक में भाजपा और कांग्रेस ने इससे दूरी बनाए रखी. चार दलों (अन्नाद्रमुक, शिअद, सपा, टीआरएस) ने समर्थन किया. नौ राजनीतिक दलों (तृणमूल, आप, द्रमुक, तेदेपा, सीपीआइ, सीपीएम, जेडीएस, गोवा फारवर्ड पार्टी और फारवर्ड ब्लाक) ने विरोध किया. नीति आयोग द्वारा एक देश एक चुनाव विषय पर तैयार किए गए एक नोट में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को 2021 तक दो चरणों में कराया जा सकता है. अक्टूबर 2017 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए आयोग तैयार है, लेकिन  निर्णय राजनीतिक स्तर पर लिया जाना है.

क्या है इस आइडिया पर बहस?

कुछ विद्वान और जानकार इस विचार से सहमत हैं तो कुछ असहमत. दोनों के अपने-अपने तर्क हैं. पहले इन तर्कों के मुताबिक इस तरह की व्यवस्था से जो फायदे मुमकिन दिखते हैं, उनकी चर्चा करते हैं.

कई देशों में है यह प्रणाली

स्वीडन इसका रोल मॉडल रहा है. यहां राष्ट्रीय और प्रांतीय के साथ स्थानीय निकायों के चुनाव तय तिथि पर कराए जाते हैं जो हर चार साल बाद सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं. इंडोनेशिया में इस बार के चुनाव इसी प्रणाली के तहत कराए गए. दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव हर पांच साल पर एक साथ करा  जाते हैं जबकि नगर निकायों के चुनाव दो साल बाद होते हैं.

पक्ष में दलीलें

1. राजकोष को फायदा और बचत : ज़ाहिर है कि बार बार चुनाव नहीं होंगे, तो खर्चा कम होगा और सरकार के कोष में काफी बचत होगी. और यह बचत मामूली नहीं बल्कि बहुत बड़ी होगी. इसके साथ ही, यह लोगों और सरकारी मशीनरी के समय व संसाधनों की बड़ी बचत भी होगी.  एक अध्ययन के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव पर करीब साठ हजार करोड़ रुपये खर्च हुए. इसमें पार्टियों और उम्मीदवारों के खर्च भी शामिल हैं. एक साथ एक चुनाव से समय के साथ धन की बचत हो सकती है। सरकारें चुनाव जीतने की जगह प्रशासन पर अपना ध्यान केंद्रित कर पाएंगी.

2. विकास कार्य में तेज़ी : चूंकि हर स्तर के चुनाव के वक्त चुनावी क्षेत्र में आचार संहिता लागू होती है, जिसके तहत विकास कार्य रुक जाते हैं. इस संहिता के हटने के बाद विकास कार्य व्यावहारिक रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि चुनाव के बाद व्यवस्था में काफी बदलाव हो जाते हैं, तो फैसले नए सिरे से होते हैं.

3. काले धन पर लगाम : संसदीय, सीबीआई और चुनाव आयोग की कई रिपोर्ट्स में कहा जा चुका है कि चुनाव के दौरान बेलगाम काले धन को खपाया जाता है. अगर देश में बार बार चुनाव होते हैं, तो एक तरह से समानांतर अर्थव्यवस्था चलती रहती है.

4. सुचारू प्रशासन : एक चुनाव होने से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल एक ही बार होगा लिहाज़ा कहा जाता है कि स्कूल, कॉलेज और ​अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारियों का समय और काम बार बार प्रभावित नहीं होगा, जिससे सारी संस्थाएं बेहतर ढंग से काम कर सकेंगी.

5. सुधार की उम्मीद : चूंकि एक ही बार चुनाव होगा, तो सरकारों को धर्म, जाति जैसे मुद्दों को बार बार नहीं उठाना पड़ेगा, जनता को लुभाने के लिए स्कीमों के हथकंडे नहीं होंगे, बजट में राजनीतिक समीकरणों को ज़्यादा तवज्जो नहीं देना होगी, यानी एक बेहतर नीति के तहत व्यवस्था चल सकती है.

ऐसे और भी तर्क हैं कि एक बार में ही सभी चुनाव होंगे तो वोटर ज़्यादा संख्या में वोट करने के लिए निकलेंगे और लोकतंत्र और मज़बूत होगा. बहरहाल, अब आपको ये बताते हैं कि इस आइडिया के विरोध में क्या प्रमुख तर्क दिए जाते हैं.

1. क्षेत्रीय पार्टियां होंगी खारिज : चूंकि भारत बहुदलीय लोकतंत्र है इसलिए राजनीति में भागीदारी करने की स्वतंत्रता के तहत क्षेत्रीय पार्टियों का अपना महत्व रहा है. चूंकि क्षेत्रीय पार्टियां क्षेत्रीय मुद्दों को तरजीह देती हैं इसलिए ‘एक चुनाव’ के आइडिया से छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा क्योंकि इस व्यवस्था में बड़ी पार्टियां धन के बल पर मंच और संसाधन छीन लेंगी.

2. स्थानीय मुद्दे पिछड़ेंगे : चूंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग मुद्दों पर होते हैं इसलिए दोनों एक साथ होंगे तो विविधता और विभिन्न स्थितियों वाले देश में स्थानीय मुद्दे हाशिये पर चले जाएंगे. ‘एक चुनाव’ के आइडिया में तस्वीर दूर से तो अच्छी दिख सकती है, लेकिन पास से देखने पर उसमें कई कमियां दिखेंगी. इन छोटे छोटे डिटेल्स को नज़रअंदाज़ करना मुनासिब नहीं होगा.

3. चुनाव नतीजों में देर : ऐसे समय में जबकि तमाम पार्टियां चुनाव पत्रों के माध्यम से चुनाव करवाए जाने की मांग करती हैं, अगर एक बार में सभी चुनाव करवाए गए तो अच्छा खास समय चुनाव के नतीजे आने में लग जाएगा. इस समस्या से निपटने के लिए क्या विकल्प होंगे इसके लिए अलग से नीतियां बनाना होंगी.

4. संवैधानिक समस्या : देश के लोकतांत्रिक ढांचे के तहत य​ह आइडिया सुनने में भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसमें तकनीकी समस्याएं काफी हैं. मान लीजिए कि देश में केंद्र और राज्य के चुनाव एक साथ हुए, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि सभी सरकारें पूर्ण बहुमत से बन जाएं. तो ऐसे में क्या होगा? ऐसे में चुनाव के बाद अनैतिक रूप से गठबंधन बनेंगे और बहुत संभावना है कि इस तरह की सरकारें 5 साल चल ही न पाएं. फिर क्या अलग से चुनाव नहीं होंगे?

यही नहीं, इस विचार को अमल में लाने के लिए संविधान के कम से कम छह अनुच्छेदों और कुछ कानूनों में संशोधन किए जाने की ज़रूरत पेश आएगी.

तीन और ने महबूबा के बयानों से आहात हो कर पार्टी छोड़ि

पार्टी के सदस्य पीडीपी की लीडरशिप की तरफ से आ रहे बयानों से भी खासे नाराज हैं. उन्होंने लिखा कि एनसी की बी-टीम बनने के अलावा पार्टी नेतृत्व ने हाल ही में ऐसे भड़काऊ और विवादित बयान दिए हैं, जो पार्टी के संस्थापक के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.उन्होंने लिखा, इस स्थिति के चलते और दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद के शिष्य होने के नाते हमारे लिए ऐसी पार्टी में काम करना मुश्किल हो रहा था, जो एनसी की बी टीम बनी हुई है. हम भारी मन के साथ पार्टी छोडऩे के इस मुश्किल फैसले को लेने के लिए मजबूर हैं, वह पार्टी जिसे हमने दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद साहब के शिष्यों के तौर पर बनाया था.

जम्मू/कश्मीर(ब्यूरो):

जम्मू-कश्मीर में डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के मतदानों में कुछ ही दिनों का वक्त बचा है. ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के सदस्य लगातार उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं. हाल ही में तीन और सदस्य पार्टी से अलग हो गए हैं. एक महीने पहले ही तीन सदस्यों ने पार्टी को अलविदा कहा था. इन सदस्यों ने आरोप लगाया है कि पीडीपी अपने सिद्धांतों से हटकर अब नेशनल कांफ्रेंस की ‘बी-टीम’ बनती जा रही हैं. जम्मू-कश्मीर में 8 चरणों में डीडीसी के चुनाव होने हैं. इनकी शुरुआत 28 नवंबर से हो जाएगी, जो 19 दिसंबर तक जारी रहेगी. वहीं, मतगणना 22 दिसंबर को होगी.

इस बार दमन भसीन, फलैल सिंह और प्रीतम कोटवाल ने पीडीपी से खुद को अलग कर लिया है. इन सदस्यों ने पत्र में लिखा, ‘राजनीतिक करियर को दांव पर लगाकर हम पीडीपी के गठन के पहले दिन ही इसमें शामिल हो गए थे. जिसका मकसद भ्रष्ट और वंशवाद एनसी का विकल्प प्रदान करना था.’ उन्होंने लिखा, ‘दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद के पास सांप्रदायिक और ओछे तत्वों को हटाने का एक नजरिया था. लेकिन दुर्भाग्य से पार्टी नेतृत्व ने एनसी की बी-टीम बनने के लिए मुफ्ती साहब के एजेंडे को छोड़ दिया है.’

महबूबा मुफ्ती के बयानों पर भी सवाल उठाए

पार्टी के सदस्य पीडीपी की लीडरशिप की तरफ से आ रहे बयानों से भी खासे नाराज हैं. उन्होंने लिखा, ‘एनसी की बी-टीम बनने के अलावा पार्टी नेतृत्व ने हाल ही में ऐसे भड़काऊ और विवादित बयान दिए हैं, जो पार्टी के संस्थापक के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं.’ उन्होंने लिखा, ‘इस स्थिति के चलते और दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद के शिष्ट होने के नाते हमारे लिए ऐसी पार्टी में काम करना मुश्किल हो रहा था, जो एनसी की बी टीम बनी हुई है. हम भारी मन के साथ पार्टी छोड़ने के इस मुश्किल फैसले को लेने के लिए मजबूर हैं, वह पार्टी जिसे हमने दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद साहब के शिष्यों के तौर पर बनाया था.’

पहले भी पार्टी छोड़ चुके हैं पीडीपी नेता

बीते अक्टूबर में टीएस बाजवा, वेद महाजन और हुसैन ए वफा ने भी पार्टी छोड़ दी थी. इन सदस्यों ने भी पार्टी छोड़ने का कारण महबूबा मुफ्ती के कुछ कामों और गैरजरूरी बयानों को बताया था. इन तीनों सदस्यों ने मुफ्ती के तिरंगे वाले बयान के बाद इस्तीफा दिया था. मुफ्ती ने कहा था कि उनकी पार्टी के सदस्य तब तक तिरंगा नहीं उठाएंगे, जब तक उन्हें जम्मू-कश्मीर के झंडे की अनुमति नहीं मिल जाती.

महबूबा की आरोपों की राजनीति शुरू

धारा 370 के हटने के बाद से वादी में से आतंकवादियों के सफाये की मुहिम ने ज़ोर पकड़ा और तकरीबन आतंकवादियों का सफाया हो गया. एक साल तक महबूबा समेत कई सरमायेदारों/राजनेताओं को नज़रबंद रखा गया। घाटी के लोगों ने चैन की सांस ली और ज़िंदगी पटरी पर आने लगी। फिर अचाना ही महबूबा की नज़रबंदी खत्म हो गयी और वह लोगों से मिलने लगीं। वैसे तो उन्हे अमनपसंद रियों काश्मीरियों ने नकार दिया लेकिन राजनीति तो फिर राजनीति है और अलगाववाद की राजनीति का तो मुफ़्ती परिवार धुरंधर खिलाड़ी रहा है। जब से महबूबा मुफ़्ती रिहा हो कर आयीं हैं तभी से काश्मीर में आए दिन वारदातें होने लगीं हैं। आतंकवाद की समर्थक रही महबूबा के परिवारिक इतिहास के बारे में अलगाववादी नेता हिलाल वार ने अपनी किताब ‘ग्रेट डिस्क्लोजरः सीक्रेट अनमास्क्ड’ में बताया है कि किस तरह पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने गृहमंत्री रहते हुए अपनी बेटी रूबिया सईद का अपहरण की साजिश रच आंतकवादियों को छुड़वाया और इसके बाद किस तरह बिगड़ गए कश्मीर के हालात।अलगाववादी नेता हिलाल वार ने अपनी पुस्तक में पूरे घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया है। उन्होंने लिखा है कि कश्मीर को अस्थिर करने की पटकथा बहुत पहले लिखी जा चुकी थी। इसका असली काम शुरु हुआ 13 दिसंबर 1989 को। 90 के दशक में इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो कश्मीर के हालत ठीक-ठाक थे। हिलाल वार के अनुसार आतंकवाद की शुरुआत करने वाले रुबिया सईद अपहरण कांड एक ड्रामा था। इसे राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए खेला गया था। इसके बाद कश्मीर के हालात बिगड़ते चले गए। आईसी 814 विमान को हाईजैक, संसद हमला और घाटी में बड़ी आतंकी घटनाएं इसी अपहरण कांड के बाद से ही शुरु हुईं।

काश्मीर/चंडीगढ़:

श्रीनगर. 

पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने शनिवार को कहा कि जम्मू कश्मीर के संसाधनों को बर्बाद किया जा रहा है और भारत सरकार हमारी अवमानना कर रही है. मुफ्ती ने दावा कि राज्य में अवैध रेत खनन हो रहा है और साइट पर उन्हें जाने से रोका गया.

मुफ्ती ने ट्वीट किया, ‘मुझे स्थानीय प्रशासन ने आज रामबियारा नाला जाने से रोका. जहां अवैध टेंडर के जरिए खनन हो रहा है और हमारे संसाधनों को बाहर भेजा जा रहा है. स्थानीय लोगों को इलाके में भी जाने से रोका जा रहा है. हमारी जमीन और संसाधन भारत सरकार द्वारा बर्बाद किए जा रहे हैं. भारत सरकार हमारी अवमानना कर रही है.’

केंद्र सरकार पर अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए मुफ्ती ने लगातार ट्वीट किए. उन्होंने लिखा, ‘ये उनका नया कश्मीर है. रेत माफिया दिन दहाड़े खनन कर रहे हैं और हमसे चुप रहने की उम्मीद की जाती है. एक नेता के तौर पर मेरी जिम्मेदारी है कि मैं इन मुद्दों को उठाऊं. लेकिन, बीजेपी लगातार मेरे अधिकारों का उल्लंघन कर रही है और सुरक्षा के नाम पर मेरे आवागमन को रोका जा रहा है.’

बता दें कि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने हाल ही में महबूबा मुफ्ती को डिटेंशन से रिहा किया था, जिसके बाद बीजेपी की पूर्व सहयोगी ने क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लरेशन का ऐलान किया था.

पीडीपी (PDP) के अलावा इस एलायंस में नेशनल कॉन्फ्रेंस, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम) भी शामिल है. एलायंस ने हाल ही में आगामी जिला विकास परिषद चुनावों में हिस्सा लेने का ऐलान किया था.

महबूबा ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि बीजेपी (BJP) उम्मीदवारों को छोड़कर अन्य पार्टियों के नेताओं को जिला विकास परिषद चुनाव में प्रचार करने से रोका जा रहा है.