पाकिस्तान नहीं जाएगा रावी नदी का पानी
रावी नदी पर शाहपुर कंडी बैराज बनने से अब जल पाकिस्तान की ओर नहीं बहेगा। इस बांध के जरिए जम्मू–कश्मीर के सांबा और कठुआ जिलों को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा। इसके अलावा बिजली भी बनाई जा सकेगी। पंजाब की 5 बड़ी नदियों में से एक रावी का जल अब पूरी तरह से भारत में ही इस्तेमाल हो सकेगा।
सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 26फरवरी :
भारत ने पाकिस्तान की ओर जाने वाले रावी नदी के पानी को रोक दिया है। 45 साल से पूरा होने का इंतजार कर रहे बांध का निर्माण कर रावी नदी से पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी को रोका है। वर्ल्ड बैंक की देखरेख में 1960 में हुई ‘सिंधु जल संधि’ के तहत रावी के पानी पर भारत का विशेष अधिकार है। पंजाब के पठानकोट जिले में स्थित शाहपुर कंडी बैराज जम्मू-कश्मीर और पंजाब के बीच विवाद के कारण रुका हुआ था, लेकिन इसके कारण बीते कई वर्षों से भारत के पानी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में जा रहा था। इसका सबसे ज्यादा फायदा जम्मू के कठुआ और सांबा जिले में मौजूद 32,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि को लाभ होगा।
जम्मू-कश्मीर ने यह पानी लेने के लिए करीब 60 किलोमीटर लंबी रावी-तवी नहर का निर्माण भी वर्ष 1996 में कर लिया था। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद केंद्रीय राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने इस मुद्दे को लगातार उठाया और केंद्र ने इस परियोजना के लिए केंद्रीय सहायता उपलब्ध कराई।
पाकिस्तान जा रहे पानी को रोकने के लिए रावी नदी पर शाहपुर कंडी बांध बनाया जा रहा था। वर्षों से बन रहे इस बांध निर्माण का काम अब पूरा हो चुका है। बांध में जल भंडारण की क्षमता 4.23 ट्रिलियन घन मीटर फुट है। वहीं, बिजली निर्माण के लिए पावर हाउस तैयार किए जा रहे हैं। रणजीत सागर बांध से छोड़े गए पानी का उपयोग इस परियोजना के लिए बिजली पैदा करने के लिए किया जाना है।
दरअसल, सिंधु जल बंटवारे के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। संधि के अनुसार, भारत को तीन पूर्वी नदियों यानी रावी, ब्यास और सतलुज के जल के उपयोग का पूर्ण अधिकार मिला। सरकार के अनुसार, रावी नदी का कुछ पानी माधोपुर हेडवर्क्स के जरिए पाकिस्तान में बर्बाद हो रहा था। पानी की ऐसी बर्बादी कम करने के लिए शाहपुर कंडी बांध परियोजना की कल्पना की गई।
अब शाहपुर कंडी बांध की कहानी समझने के लिए 1979 में हुए समझौते को जानना होगा। दरअसल, जनवरी 1979 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच एक द्विपक्षीय समझौता हुआ था। समझौते के अनुसार, रणजीत सागर बांध और शाहपुर कंडी बांध का निर्माण पंजाब सरकार द्वारा किया जाना था। रणजीत सागर बांध अगस्त 2000 में चालू किया गया था। शाहपुर कंडी बांध परियोजना को रावी नदी पर रणजीत सागर बांध के आठ किमी अप स्ट्रीम पर बनाया जाना था।
योजना आयोग ने नवंबर 2001 के दौरान परियोजना को अनुमोदित किया। परियोजना के सिंचाई घटक के वित्तपोषण के लिए इसे त्वरित सिंचाई लाभ योजना (एआईबीपी) के तहत शामिल किया गया।
शाहपुर कंडी बांध राष्ट्रीय परियोजना की 2285.81 करोड़ रुपये की संशोधित लागत को अगस्त 2009 में अनुमोदित किया गया। वहीं 2009-10 से 2010-11 की अवधि के दौरान 26.04 करोड़ रुपये केंद्रीय सहायता के रूप में जारी किए गए। हालांकि, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में कुछ मुद्दों के कारण काम में ज्यादा प्रगति नहीं हो सकी।
द्विपक्षीय और भारत सरकार के स्तर पर कई बैठकें आयोजित की गईं। अंततः 8 सितंबर 2018 को नई दिल्ली में पंजाब और जम्मू-कश्मीर राज्यों के बीच एक समझौता हुआ। इसके बाद दिसंबर 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रावी नदी पर पंजाब में शाहपुरकंडी बांध परियोजना के कार्यान्वयन को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही परियोजना के लिए 2018-19 से 2022-23 तक पांच वर्षों में 485.38 करोड़ रुपये की (सिंचाई घटक के लिए) केंद्रीय सहायता देने का निर्णय लिया गया।
रावी नदी पर बना शाहपुरकंडी बांध 55.5 मीटर ऊंचा है। इसके साथ दो पावर हाउस भी बन रहे हैं। यह परियोजना एक चालू बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है जिसमें पंजाब और जम्मू-कश्मीर में सिंचाई और बिजली उत्पादन शामिल है। परियोजना से 37,173 हेक्टेयर (पंजाब में 5000 और जम्मू-कश्मीर में 32173) की सिंचाई क्षमता निर्धारित की गई है। यह रणजीत सागर बांध परियोजना के लिए एक संतुलन जलाशय के रूप में भी कार्य करेगा।
अभी तक रावी नदी का कुछ पानी माधोपुर हेडवर्क्स से पाकिस्तान की ओर बह जाता था जबकि पंजाब और जम्मू-कश्मीर में उपयोग के लिए इसकी आवश्यकता है। परियोजना के कार्यान्वयन से पानी की ऐसी बर्बादी कम होगी।
परियोजना पूरी होने से पंजाब में 5,000 हेक्टेयर और जम्मू-कश्मीर में 32,173 हेक्टेयर की अतिरिक्त सिंचाई क्षमता पैदा होगी। इसके अलावा पंजाब में 1.18 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए छोड़े जाने वाले पानी को इस परियोजना के जरिए प्रबंधित किया जाएगा। क्षेत्र में सिंचाई को लाभ होगा। परियोजना पूरी होने से पंजाब 206 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन भी कर सकेगा।