चीन के बाद अब तुर्की आया पाकिस्तान की मदद को

1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद तुर्की का झुकाव पाकिस्तान की ओर ज्यादा हो गया था। इस्लाम के नाम पर उदय हुए पाकिस्तान ने तुर्की के साथ दोस्ती में अपना उज्ज्वल भविष्य देखा। तुर्की में रह रहे कुर्द, अल्बानियाई और अरब जैसे तुर्को के बीच पाकिस्तान की स्वीकार्यता में इस्लाम में बड़ी भूमिका अदा की। मुस्तफा कमाल पाशा की धर्मनिरपेक्ष सोच के बावजूद पाकिस्तान और तुर्की के संबंध धार्मिक आधार पर ही मजबूत हुए। 1970 के दशक में नेकमेटिन एर्बाकन के नेतृत्व में इस्लामी दलों के उदय ने तुर्की की राजनीति में इस्लाम की भूमिका को और मजबूत किया। इस तरह के राजनीतिक अनुभवों ने तुर्की की विदेश नीति को भी प्रभावित किया और पाकिस्तान के साथ तुर्की की नजदीकी का समर्थन किया। साल 1954 में पाकिस्तान और तुर्की ने शाश्वत मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किए। पाकिस्‍तान अब कश्‍मीर और अफगानिस्‍तान के मुद्दे पर तुर्की के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत करना चाहता है। … इसके अलावा तुर्की और पाकिस्‍तान संयुक्‍त रक्षा प्रॉजेक्‍ट, अफगानिस्‍तान पर सहयोग और पाकिस्‍तान में तुर्की के निवेश पर चर्चा कर रहे हैं। अभी इन दिनों तुर्की की सेना प्रमुख भी पाकिस्‍तान के दौरे पर आए हैं।

अंतर्राष्ट्रीय डेस्क, डेमोक्रेटिक फ्रंट॰कॉम :

तुर्की और पाकिस्तान जहां मिलकर भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घेरने की लगातार कोशिश में लगे हुए हैं। वहीं तुर्की पाकिस्तान को हथियारों से लेकर पाक अधिकृत कश्मीर पाक अधिकृत कश्मीर में दखलअंदाजी देना शुरु कर चुका है। एक मीडिया के पास मौजूद एक्सलूसिव दस्तावेजों से तुर्की के एक बड़े प्लान का खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि चीन के बाद अब तुर्की पाक अधिकृत कश्मीर में बड़े पैमाने पर इंवेस्टमेंट कर रहा है जिससे भारत की चिंता बढ़ गई है। देखा जाये तो भारत PoK को अपना हिस्सा मानता है और ऐसे में पाकिस्तान समेत दुनिया के किसी भी देश की PoK में दखलंदाजी का भारत विरोध करता रहा है।

पाकिस्तान बड़ी तादाद में मानवरहित टोही और अटैक विमान की खरीद पर जोर दे रहा है। इसके लिए न सिर्फ वो रूस की तरफ झोली फैला रहा है बल्कि तुर्की और चीन जैसे ऑल वेदर फ्रेंड की भी मदद ले रहा है।

पाकिस्तान को भारत के साथ हर युद्ध में उसे शर्मनाक हार मिली। कश्मीर में आंतकियों के जरिये प्रॉक्सी वॉर में भी उसे मुंह की खानी पड़ रही है। यही कारण है कि भारतीय इलाकों में ताक-झांक करने और बिना किसी नुकसान के भारत में भविष्य की लड़ाइयों में जीत हासिल करने के लिए पाकिस्तान रणनीति बदल रहा है। पाकिस्तान बड़ी तादाद में मानवरहित टोही और अटैक विमान की खरीद पर जोर दे रहा है। इसके लिए न सिर्फ वो रूस की तरफ झोली फैला रहा है बल्कि तुर्की और चीन जैसे ऑल वेदर फ्रेंड की भी मदद ले रहा है। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान तुर्की से कॉमिकाज़े ड्रोन खरीदने की तैयारी में है। इसे सुसाइड ड्रोन भी कहा जाता है।

इस ड्रोन की रेज 10 किलोमीटर तक है और ये एक बार में 6 रॉकेट अपने साथ ले जा सकता है। एक ग्राउंड स्टेशन के रिमोट में एक साथ 10 ड्रोन को संचालित कर सकता है। वहीं चीन से भी आर्म्ड ड्रोन का सौदा हो चुका है। पाकिस्तान चीन से विंग लूंग-II के दो अतिरिक्त सिस्टम भी ले रहा है जो कि इसी साल पाकिस्तानी वायुसेना को मिल जाएंगे।

ममता ने शुरू किया इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट और अरेंगी मुगलिस्तान का समर्थन : जेनेट लेवी

जेनेट लेवी ने अपने लेख में लिखा है कि “बंटवारे के वक्त भारत के हिस्से वाले पश्चिमी बंगाल में मुसलमानों की आबादी 12 फीसदी से कुछ ज्यादा थी, जबकि पाकिस्तान के हिस्से में गए पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 फीसदी थी. आज पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर 27 फीसदी हो चुकी है. कुछ जिलों में तो ये 63 फीसदी तक हो गई है. वहीँ दूसरी ओर बांग्लादेश में हिंदू 30 फीसदी से घटकर केवल 8 फीसदी ही बचे हैं.”

जेनेट लेवी के americanthinker.com में प्राषित लेख से साभार

अमेरिका से आयी बंगाल के बारे में ऐसी खौफनाक रिपोर्ट, जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है। कभी भारतीय संस्कृति का प्रतीक माने जाने वाले बंगाल की दशा आज क्या हो चुकी है, ये बात तो किसी से छिपी नहीं है. हिन्दुओं के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे तो पिछले काफी वक़्त से होना शुरू हो चुके हैं और अब तो हालात ये हो चुके हैं कि त्यौहार मनाने तक पर रोक लगाई जानी शुरू हो गयी है।  बंगाल पर मशहूर अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने अब जो लेख लिखा है और उसमे जो खुलासे किये हैं, उन्हें देख आपके पैरों तले जमीन खिसक जायेगी।

जेनेट लेवी का दावा – बंगाल जल्द बनेगा एक अलग इस्लामिक देश

जेनेट लेवी ने अपने ताजा लेख में दावा किया है कि कश्मीर के बाद बंगाल में जल्द ही गृहयुद्ध शुरू होने वाला है, जिसमे बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का कत्लेआम करके मुगलिस्तान नाम से एक अलग देश की मांग की जायेगी। यानी भारत का एक और विभाजन होगा और वो भी तलवार के दम पर और बंगाल की वोटबैंक की भूखी ममता बनर्जी की सहमति से होगा सब कुछ।

जेनेट लेवी ने अपने लेख में इस दावे के पक्ष में कई तथ्य पेश किए हैं। उन्होंने लिखा है कि “बंटवारे के वक्त भारत के हिस्से वाले पश्चिमी बंगाल में मुसलमानों की आबादी 12 फीसदी से कुछ ज्यादा थी, जबकि पाकिस्तान के हिस्से में गए पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 फीसदी थी। आज पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर 27 फीसदी हो चुकी है। कुछ जिलों में तो ये 63 फीसदी तक हो गई है। वहीँ दूसरी ओर बांग्लादेश में हिंदू 30 फीसदी से घटकर केवल 8 फीसदी ही बचे हैं।”

आप यहाँ जेनेट का पूरा लेख खुद भी पढ़ सकते हैं। http://www.americanthinker.com/articles/2015/02/the_muslim_takeover_of_west_bengal.html

बढ़ती हुई मुस्लिम आबादी को ठहराया जिम्मेदार

 बता दें कि जेनेट ने ये लेख अमेरिकन थिंकर’ मैगजीन में लिखा है. ये लेख एक चेतावनी के तौर पर उन देशों के लिए लिखा गया है, जो मुस्लिम शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल रहे हैं। जेनेट लेवी ने बेहद सनसनीखेज दावा करते हुए लिखा है कि किसी भी समाज में मुस्लिमों की 27 फीसदी आबादी काफी है कि वो उस जगह को अलग इस्लामी देश बनाने की मांग शुरू कर दें।

उन्होंने दावा किया है कि मुस्लिम संगठित होकर रहते हैं और 27 फीसदी आबादी होते ही इस्लामिक क़ानून शरिया की मांग करते हुए अलग देश बनाने तक की मांग करने लगते हैं। पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने लिखा है कि ममता बनर्जी के लगातार हर चुनाव जीतने का कारण वहां के मुस्लिम ही हैं। बदले में ममता मुस्लिमों को खुश करने वाली नीतियां बनाती है।

सऊदी से आने वाले पैसे से चल रहा जिहादी खेल?

जल्द ही बंगाल में एक अलग इस्लामिक देश बनाने की मांग उठने जा रही है और इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्ता की भूखी ममता इसे मान भी जाए। उन्होंने अपने इस दावे के लिए तथ्य पेश करते हुए लिखा कि ममता ने सऊदी अरब से फंड पाने वाले 10 हजार से ज्यादा मदरसों को मान्यता देकर वहां की डिग्री को सरकारी नौकरी के काबिल बना दिया है। सऊदी से पैसा आता है और उन मदरसों में वहाबी कट्टरता की शिक्षा दी जाती है।

ममता ने शुरू किया इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट?

गैर मजहबी लोगों से नफरत करना सिखाया जाता है। उन्होंने लिखा कि ममता ने मस्जिदों के इमामों के लिए तरह-तरह के वजीफे भी घोषित किए हैं, मगर हिन्दुओं के लिए ऐसे कोई वजीफे नहीं घोषित किये गए। इसके अलावा उन्होंने लिखा कि ममता ने तो बंगाल में बाकायदा एक इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट भी शुरू किया है।

पूरे बंगाल में मुस्लिम मेडिकल, टेक्निकल और नर्सिंग स्कूल खोले जा रहे हैं, जिनमें मुस्लिम छात्रों को सस्ती शिक्षा मिलेगी। इसके अलावा कई ऐसे अस्पताल बन रहे हैं, जिनमें सिर्फ मुसलमानों का इलाज होगा। मुसलमान नौजवानों को मुफ्त साइकिल से लेकर लैपटॉप तक बांटने की स्कीमें चल रही हैं। इस बात का पूरा ख्याल रखा जा रहा है कि लैपटॉप केवल मुस्लिम लड़कों को ही मिले, मुस्लिम लड़कियों को नहीं।

जेनेट ने मुस्लिमों को आतंकवाद का दोषी ठहराया

जेनेट लेवी ने लिखा है कि बंगाल में बेहद गरीबी में जी रहे लाखों हिंदू परिवारों को ऐसी किसी योजना का फायदा नहीं दिया जाता। जेनेट लेवी ने दुनिया भर की ऐसी कई मिसालें दी हैं, जहां मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ही आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता और अपराध के मामले बढ़ने लगे।

आबादी बढ़ने के साथ ऐसी जगहों पर पहले अलग शरिया क़ानून की मांग की जाती है और फिर आखिर में ये अलग देश की मांग तक पहुंच जाती है। जेनेट ने अपने लेख में इस समस्या के लिए इस्लाम को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है। उन्होंने लिखा है कि कुरान में यह संदेश खुलकर दिया गया है कि दुनिया भर में इस्लामिक राज स्थापित हो।

तस्लीमा नसरीन का उदाहरण किया पेश

जेनेट ने लिखा है कि हर जगह इस्लाम जबरन धर्म-परिवर्तन या गैर-मुसलमानों की हत्याएं करवाकर फैला है। अपने लेख में बंगाल के हालातों के बारे में उन्होंने लिखा है. बंगाल में हुए दंगों का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि 2007 में कोलकाता में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ दंगे भड़क उठे थे। ये पहली कोशिश थी जिसमे बंगाल में मुस्लिम संगठनों ने इस्लामी ईशनिंदा (ब्लासफैमी) कानून की मांग शुरू कर दी थी।

भारत की धर्म निरपेक्षता पर उठाये सवाल

1993 में तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों और उनको जबरन मुसलमान बनाने के मुद्दे पर किताब लज्जा’ लिखी थी। किताब लिखने के बाद उन्हें कट्टरपंथियों के डर से बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था। वो कोलकाता में ये सोच कर बस गयी थी कि वहां वो सुरक्षित रहेंगी क्योंकि भारत तो एक धर्मनिरपेक्ष देश है और वहां विचारों को रखने की स्वतंत्रता भी है।

मगर हैरानी की बात है कि धर्म निरपेक्ष देश भारत में भी मुस्लिमों ने तस्लीमा नसरीन को नफरत की नजर से देखा। भारत में उनका गला काटने तक के फतवे जारी किए गए। देश के अलग-अलग शहरों में कई बार उन पर हमले भी हुए। मगर वोटबैंक के भूखी वामपंथी और तृणमूल की सरकारों ने कभी उनका साथ नहीं दिया। क्योंकि ऐसा करने पर मुस्लिम नाराज हो जाते और वोटबैंक चला जाता।

बंगाल में हो रही है ‘मुगलिस्तान’ देश की मांग

जेनेट लेवी ने आगे लिखा है कि 2013 में पहली बार बंगाल के कुछ कट्टरपंथी मौलानाओं ने अलग मुगलिस्तान’ की मांग शुरू कर दी। इसी साल बंगाल में हुए दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानें लूट लिए गए और कई मंदिरों को भी तोड़ दिया गया। इन दंगों में सरकार द्वारा पुलिस को आदेश दिये गए कि वो दंगाइयों के खिलाफ कुछ ना करें।

हिन्दुओं का बहिष्कार किया जाता है?

ममता को डर था कि मुसलमानों को रोका गया तो वो नाराज हो जाएंगे और वोट नहीं देंगे। लेख में बताया गया है कि केवल दंगे ही नहीं बल्कि हिन्दुओं को भगाने के लिए जिन जिलों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है, वहां के मुसलमान हिंदू कारोबारियों का बायकॉट करते हैं। मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुसलमान हिंदुओं की दुकानों से सामान तक नहीं खरीदते।

यही वजह है कि वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन होना शुरू हो चुका है। कश्मीरी पंडितों की ही तरह यहाँ भी हिन्दुओं को अपने घरों और कारोबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ रहा है। ये वो जिले हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।

आतंक समर्थकों को संसद भेज रही ममता

इसके आगे जेनेट ने लिखा है कि ममता ने अब बाकायदा आतंकवाद समर्थकों को संसद में भेजना तक शुरू कर दिया है। जून 2014 में ममता बनर्जी ने अहमद हसन इमरान नाम के एक कुख्यात जिहादी को अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा। हसन इमरान प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का सह-संस्थापक रहा है।

हसन इमरान पर आरोप है कि उसने शारदा चिटफंड घोटाले का पैसा बांग्लादेश के जिहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी तक पहुंचाया, ताकि वो बांग्लादेश में दंगे भड़का सके। हसन इमरान के खिलाफ एनआईए और सीबीआई की जांच भी चल रही है।

लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) की रिपोर्ट के मुताबिक कई दंगों और आतंकवादियों को शरण देने में हसन का हाथ रहा है। उसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से रिश्ते होने के आरोप लगते रहे हैं। जेनेट के मुताबिक़ बंगाल का भारत से विभाजन करने की मांग अब जल्द ही उठने लगेगी। इस लेख के जरिये जेनेट ने उन पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है, जो मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहाँ बसा रहे हैं, कि जल्द ही उन्हें भी इसी सब का सामना करना पडेगा।

बंगाल में चुनाव के बाद,जनवरी 1990 की याद ताजा हो गईं,जब 6 लाख कश्मीरी पंडितों को मस्जिदों से चेतावनी दी गई कि यदि आप जीवित रहना चाहते हैं तो अपने परिवार की महिलाओं को (बेटियों, बहनों, पत्नियों) को छोड़कर कश्मीर से भाग जाओ, तब देश में वी पी सिंह की सरकार बनी थी, उनके गृह मंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद थे, और कश्मीर में कांग्रेस के समर्थन से फारुख अब्दुल्ला की सरकार थी। मुस्लिमो ने उनकी संपत्ति हड़प ली और महिलाओं का लगातार बलात्कार होता रहा, और कत्लेआम  होता रहा, किसी मीडिया ने कोई News नहीं दिखाई, फलस्वरूप कश्मीर से हिंदू समाज को अपनी संपत्ति और महिलाओं को छोड़कर भागना पड़ा, वही स्थिति आज बंगाल में होने जा रही है, भाजपा के नेता भी लगभग नपुंसक हो गये हैं, सारी शक्ति हाथ में होते हुए भी लगभग असहाय हो रहे हैं। हिंदुओं के ऊपर होते हुए अत्याचार  देख कर सभी तथाकथित सेकुलर नेता चुप है। यही नेता किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ उनकी ही गलती से कोई खंरोच भी आती तो छाती पीटते हुए सारे देश की नाक में दम कर देते हैं, और UNO तक शिकायत करके देश की छवि बिगाड़ने में भी संकोच नहीं करते। पूरा अंतरराष्ट्रीय मीडिया भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार में एकजुट हो जाता है।  

हिंदू समाज को इतना ज्ञान होना चाहिए कि भारत का जन्म 1947 में नहीं हुआ था बल्कि भारत 5000 वर्ष पुरानी हमारी संस्कृति है, हम पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं जिसमें पशु पक्षी वृक्ष सभी प्राणी शामिल हैं व धरती को अपनी माता मानते हैं। लगभग आधे से अधिक विश्व पर हमारा शासन था। लेकिन अपनी उदारता के कारण हम अपनी जमीन पर दूसरों को बसाते गये और खुद बेघर होते गए। हिंदू घटता गया तो देश बंटता गया। यदि हमें सुरक्षित रहना है तो हनुमान जी की तरह अपनी शक्ति को पहचाना होगा। हमें मंदिरों में केवल मनोकामनाएं पूर्ती के लिए ही नहीं जाना बल्कि हमें अपने देवी-देवताओं से सीखना भी है,वो एक हाथ में माला रखते थे वे दूसरे हाथ में भाला भी रखते थे, हमें शास्त्र के साथ साथ शस्त्र का भी ज्ञान होना चाहिए।  हिंदू समाज को अपनी आत्मरक्षा के बारे में सोचना चाहिए। केवल सरकार व पुलिस के ऊपर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए।

हिंदू समाज अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए मंदिर के अलावा कहीं भी जा सकता है चाहे वो धरती के नीचे गड़े हुए मुर्दे ही क्यों न हो, वहां भी बढ़े शान से चादर चढ़ाकर आता है जबकि अन्य कोई भी समाज ऐसा नहीं करता। हमें अपने भविष्य को बचाना है या अपने अस्तित्व को समाप्त करना है ॽ

रौशनी एक्ट, जिसने जम्मू – काश्मीर में सरकार द्वारा प्रायोजित भ्रष्टाचार का अंधेरा फैला दिया

वर्ष 2001 में फारूक अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। तब विधानसभा में रोशनी एक्ट पास हुआ था। इसका मकसद ये था कि जिनके पास निश्चित समय के लिए सरकारी जमीन लीज पर है या कोई चालीस वर्ष से सरकारी जमीन पर रह रहा है तो ये जमीन हमेशा के लिए उन्हें दे दी जाए। यानी उन्हें जमीन का मालिक बना दिया जाए. इसके बदले में सरकार बाजार मूल्य पर पैसा लेगी. इस तरह से जो पैसा सरकारी खजाने में आएगा उससे जम्मू-कश्मीर में घर-घर बिजली की योजना चलाई जाएगी. यानी घर घर रोशनी पहुंचाई जाएगी। इसलिए इसे रोशनी एक्ट नाम दिया गया. इस एक्ट के ज़रिए करीब 25 हज़ार करोड़ रुपये हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था।

जम्मू/काश्मीर संवाददाता, डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम :

जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े 25 हजार करोड़ के रोशनी भूमि घोटाले में किस तरह बंदरबांट हुई थी इसका पर्दाफाश अब होने लगा है। हाई कोर्ट के आदेश में सोमवार को उन नेताओं की पहली सूची सार्वजनिक हुई है, जिन्होंने सरकार की संपत्ति को अपनी और परिवार की संपत्ति में बदल दिया था। जांच में पीडीपी सरकार में वित्त मंत्री रहे डा. हसीब द्राबू समेत कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के पूर्व मंत्रियों, नौकरशाहों, व्यापारियों और इनके रिश्तेदार भी शामिल हैं। इन्होंने गरीबों के घर रोशन करने के नाम पर बनाए गए कानून की आड़ लेकर करोड़ों की सरकारी जमीन हड़प ली। बताया जाता है कि अभी तीन से चार और सूची आएंगी। जाहिर है कि कई और नाम सामने आएंगे। यह एक ऐस घोटाला था जिस पर मीडिया की कभी नज़र ही नहीं पड़ी और अगर पड़ी भी तो बंदरबाँट के चलते इसके बारे में आपको विस्तार से कुछ बताया नहीं गयायह रौशनी एक्ट के नाम से कुख्यात है।

आज एक ट्वीट के सामने आने से इस मामले की पूरी जानकारी एक बार फिर सामने आ गयी।

हाई कोर्ट ने नौ अक्टूबर को अपने आदेश में तमाम आवंटनों को रद करते हुए सीबीआइ को घोटाले की जांच सौंपी थी। इसके बाद सीबीआइ ने घोटाले की परतें उघेडऩा शुरू कर दिया है। जांच में सार्वजनिक हुई पहली सूची में पीडीपी नेता रहे हसीब द्राबू और उनके परिजनों का नाम है। पूर्व गृहमंत्री सज्जाद किचलू, पूर्व मंत्री अब्दुल मजीद वानी, असलम गोनी, नेशनल कांफ्रेंस के नेता व पूर्व मंत्री सईद आखून और जेके बैंक के पूर्व चेयरमैन एमवाई खान नाम प्रमुख हैं।

इसे रोशनी घोटाला क्यों कहते हैं?

वर्ष 2001 में फारूक अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। तब विधानसभा में रोशनी एक्ट पास हुआ था। इसका मकसद ये था कि जिनके पास निश्चित समय के लिए सरकारी जमीन लीज पर है या कोई चालीस वर्ष से सरकारी जमीन पर रह रहा है तो ये जमीन हमेशा के लिए उन्हें दे दी जाए। यानी उन्हें जमीन का मालिक बना दिया जाए। इसके बदले में सरकार बाजार मूल्य पर पैसा लेगी. इस तरह से जो पैसा सरकारी खजाने में आएगा उससे जम्मू-कश्मीर में घर-घर बिजली की योजना चलाई जाएगी। यानी घर घर रोशनी पहुंचाई जाएगी. इसलिए इसे रोशनी एक्ट नाम दिया गया। इस एक्ट के ज़रिए करीब 25 हज़ार करोड़ रुपये हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था।

यानी सरकारी जमीन बेच कर बिजली के लिए पैसे का इंतजाम होना था. लेकिन रोशनी एक्ट घोटाले में कैसे बदल गया ये आपको जानना चाहिए.

सूत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार जम्मू के सुंजवान में फारूक अब्दुल्ला का बंगला है। वर्ष 1998 में फारूक अब्दुल्ला ने इस बंगले को बनाने के लिए करीब 16 हजार स्क्वायर फीट जमीन खरीदी थी। उन पर आरोप है कि उन्होंने इसके आस पास की 38 हजार स्क्वायर फीट जंगल की जमीन पर भी कब्जा कर लिया। जिस पर ये आलीशान बंगला बनाया गया। हालांकि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अपनी वेबसाइट पर इस प्लॉट की जानकारी नहीं दी है।

ऐसा ही कुछ श्रीनगर में भी हुआ। श्रीनगर में फारुक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस का दफ्तर है, जिसमें नवा-ए-सुबह नामक एक ट्रस्ट का ऑफिस भी है।

वर्ष 2001 में जमीन की कीमत डेढ़ करोड़ रुपए थी। लेकिन मात्र 58 लाख रुपए जमा कर जमीन हमेशा के लिए नवा-ए-सुबह ट्रस्ट के नाम करवा दी गई। ऐसा करने में रोशनी एक्ट का इस्तेमाल किया गया। आतनवाद से ग्रसित होने ए बावजूदआज इस जमीन की कीमत करीब 25 करोड़ रुपए है।

हालांकि नेशनल कॉन्फ्रेंस का कहना है कि उन्हें जो कीमत सरकारी विभाग ने वर्ष 2001 में बताई, वही जमा करके इस जमीन का मालिकाना हक हासिल किया गया था।

वैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस का कहना है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है. सब कानून (शायद इसी रौशनी एक्ट)के मुताबिक हुआ है।

घोटाला हुआ कैसे?

जमीन के मार्केट रेट और सरकार को दिए गए पैसे के अंतर में ही रोशनी घोटाला छिपा है। आरोप है कि सरकार मे बैठे लोगों ने एक्ट बनाया- फिर महंगी जमीनों के सरकारी रेट बेहद कम करवा दिए और जमीनें कम कीमत पर खरीद लीं। जिससे सरकार को घाटा हुआ और घोटालेबाजों को फायदा।

रोशनी एक्ट के नाम पर कानूनी तरीके से गैरकानूनी काम किया गया। हाई कोर्ट ने रोशनी एक्ट को असंवैधानिक बताया है। सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। अब बड़े बड़े लोगों के नाम सामने आ रहे हैं।

इन दिनों गुपकार गैंग जिस तरह से अनुच्छेद 370 की वापसी के लिए सक्रिय है, उससे साफ है कि ये लोग अपने वही दिन वापस चाहते हैं जिससे ये सरकारी जमीनों पर कब्जा कर सकें, राज्य के संसाधनों को लूट सकें। सरकारी बंगलों और सिक्योरिटी का इस्तेमाल कर सकें। लेकिन अनुच्छेद 370 हटने के बाद शायद उनकी कोई चाल कामयाब नहीं हो पा रही है।

रोशनी घोटाले में जम्मू-कश्मीर प्रशासन जैसे जैसे नाम सार्वजनिक कर रहा है वैसे वैसे नेशनल कॉफ्रेंस, पीडीपी, और कांग्रेस के नेताओं और उनके रिश्तेदारों के नाम सामने आने लगे हैं। कई सरकारी अधिकारी, व्यापारी और कारोबारियों के नाम भी इस लिस्ट में शामिल हैं।

राजनीतिक दलों ने इस संगठित लूट की ज़मीन कैसे तैयार की ?

वर्ष 2001 में जब रोशनी एक्ट बना। तब जमीन पर कब्जे का कट ऑफ ईयर 1990 रखा गया था।

वर्ष 2005 में मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार ने इस समय सीमा को बढ़ाकर वर्ष 2004 कर दिया। मतलब वर्ष 1990 से 2004 के बीच जिन लोगों ने सरकारी ज़मीन लीज़ पर ली उन्हें भी मालिक बनने का मौका मिल गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के बाद कांग्रेस को भी तब मौका मिला जब गुलाम नबी आज़ाद वर्ष 2005 में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने।

वर्ष 2007 में गुलाम नबी आज़ाद ने जमीन पर कब्जे की सीमा बढ़ाकर वर्ष 2007 कर दी।

मतलब जो भी सरकार में आया उसने अपने फायदे के लिए या अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए एक्ट में संशोधन किया।

वर्ष 2013-14 में CAG की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ था कि जम्मू कश्मीर सरकार ने इससे कमाई का 25 हजार करोड़ रुपए का जो लक्ष्य रखा था, उससे सरकार को सिर्फ 76 करोड़ रुपये की कमाई हुई और जम्मू कश्मीर में में रौशनी फैलाने के नाम पर भ्रष्टाचार का अंधेरा फैला दिया गया। अब आपको इस घोटाले से जुड़ी लगभग हर बात समझ आ गई होगी।

भास्कर बहाना है, मीडिया निशाना है

केंद्र में किसान आंदोलन का कोई उचित समाधान ना दे पाने से इस मोर्चे पर मुंह की खाये केंद्र सरकार, बंगाल से भी मुंह की खा कर लौटी मोदी – शाह की जोड़ी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ पर पिल पड़ी और वहाँ भी कुछ हाथ नहीं लगा तो तिलमिलाई सरकार अपनी साख बचाने का प्रयास कर ही रही थी कि मानसून सत्र के एन पहले फोन टेपिंग का मामला सुर्खियों में आ गया। अब मोदी शाह आकंठ गुस्से मेन डूब गए और फिर जो लावा फूटा तो वह सबसे आसान शिकार मीडिया पर।

  • दैनिक भास्कर समूहों के सभी ऑफिसों पर पड़ रहे हैं आयकर विभाग के छापे
  • भोपाल स्थित ऑफिस पर सुबह से ही जारी है छापेमारी
  • अखबार मालिक के घर पर भी की जा रही है छापेमारी
  • न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक कर चोरी के मामले में जारी है छापेमारी

चंडीगढ़/नयी दिल्ली:

कुछ बोल के लब आज़ाद हैं तेरे

अभी अभी भारत समाचार चैनल लखनऊ में रेड।

आयकर विभाग ने कर चोरी के आरोपों में मीडिया समूह दैनिक भास्कर और भारत समाचार के विभिन्न शहरों में स्थित परिसरों पर गुरुवार को छापे मारे। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि छापेमारी भास्कर समूह के  भोपाल, जयपुर, अहमदाबाद और कुछ अन्य स्थानों पर की गयी है। वहीं भारत समाचार के प्रमोटर्स और एडिटर-इन-चीफ के ठिकानों पर भी आयकर विभाग की तरफ से कार्रवाई की गयी है।

हालांकि अभी तक विभाग या उसके नीति निर्माण निकाय से किसी तरह की आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है लेकिन आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक यह कार्रवाई विभिन्न राज्यों में संचालित हिंदी मीडिया समूह के प्रमुखों के खिलाफ चल रही है। कांग्रेस नेता एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर कहा कि आयकर विभाग के अधिकारी समूह के करीब छह परिसरों पर “मौजूद हैं”। इनमें राज्य की राजधानी भोपाल में प्रेस कॉम्प्लेक्स में उसका कार्यालय भी शामिल है। बताते चलें कि कोरोना संकट के दौरान दैनिक भास्कर की तरफ से कई ग्राउंड रिपोर्ट किए गए थे।

बताते चलें कि आयकर विभाग की तरफ से यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है। विपक्षी दल पेगासस जासूसी मामले को लेकर सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं। मंगलवार को कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों ने संसद के दोनों सदनों में यह मुद्दा उठाते हुए कार्यवाही बाधित कर दिया था। विपक्षी सदस्यों ने पत्रकारों, नेताओं, मंत्रियों, न्यायाधीशों और अन्य लोगों की इजराइली पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी कराए जाने के आरोपों पर दोनों सदनों में जमकर विरोध जताया था।

बकरीद पर कश्मीर में गोवंश और दूसरे जानवरों की कुर्बानी पर प्रशासनिक रोक

बकरीद से पहले कश्मीर में प्रशासन का बड़ा फैसला, इन पशुओं की कुर्बानी पर लगी रोक जम्मू कश्मीर में प्रशासन ने बकरीद के मौके पर गोवंश समेत कई जानवारों की कुर्बानी देने पर रोक लगा दी है। यदि कोई ऐसा करता है तो फिर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

जम्मू/कश्मीर/चंडीगढ़:

जम्मू कश्मीर में प्रशासन ने बकरीद के मौके पर गोवंश समेत कई जानवारों की कुर्बानी देने पर रोक लगा दी है। यदि कोई ऐसा करता है तो फिर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। गुरुवार को प्रशासन की ओर से जारी आदेश में कहा गया है, ‘गोवंश, ऊंटों या अन्य जानवरों की अवैध हत्या या कुर्बानी को रोका जाना चाहिए।’ पशुओं के कल्याण के लिए बने कानूनों का हवाला देते हुए प्रशासन ने यह रोक लगाई है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि प्रशासन की ओर से जानवरों की कुर्बानी पर पूरी तरह से बैन लगाया गया है या फिर गोवंश और कुछ अन्य पशुओं को लेकर ही यह आदेश दिया गया है।

इस संबंध में निदेशक योजना, जम्मू-कश्मीर पशु और भेड़ पालन और मत्स्य पालन विभाग ने कश्मीर और जम्मू दोनों क्षेत्रों के संभागीय आयुक्तों और आईजीपी को एक पत्र लिखकर इन जानवरों के वध पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की है. 

भारत के पशु कल्याण बोर्ड, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार से प्राप्त एक आधिकारिक पत्र संख्या: 9-2/2019-20/पीसीए दिनांक 25.06.2021 का जिक्र करते हुए, संचार पढ़ता है:

“इस संबंध में 21-23 जुलाई, 2021 से निर्धारित बकरा ईद त्योहार के दौरान जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश में बड़ी संख्या में बलि देने वाले जानवरों की हत्या की संभावना है और पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया ने पशु कल्याण के मद्देनजर सभी के कार्यान्वयन के लिए अनुरोध किया है. पशु कल्याण कानूनों को सख्ती से लागू करने के लिए एहतियाती उपाय. पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960; पशु कल्याण नियम, 1978 का परिवहन; पशुओं का परिवहन (संशोधन) नियम, 2001; स्लॉटर हाउस नियम, 2001; म्युनिसिपल लॉ एंड फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने त्योहार के दौरान जानवरों (जिसके तहत ऊंटों का वध नहीं किया जा सकता) के वध के निर्देश दिए हैं. 

अखिलेश के बाद मायावती ने आतंकियों की गिरफ्तारी पर राजनीति चमकाई

अखिलेश यादव ने अलकायदा आतंकियों की गिरफ़्तारी पर उन्होंने कहा कि वो न तो यूपी पुलिस और न ही भाजपा की सरकार पर भरोसा कर सकते हैं। बता दें कि मैंगो बेल्ट काकोरी के एक मकान से ATS ने मसरुद्दीन और मिनहाज अहमद नामक दो आतंकियों को दबोचा। ये आतंकी देश के कई हिस्सों में बम ब्लास्ट की योजना बना रहे थे, जिसमें मानव-बम से हमले भी शामिल थे। जहाँ अहमद दुबग्गा का निवासी है, मसरुद्दीन मड़ियाँव में रहता था।

  • यूपी एटीएस और पुलिस ने अलकायदा के दो संदिग्ध आतंकियों को किया गिरफ्तार
  • अखिलेश यादव ने उठाए सवाल की यूपी पुलिस पर नहीं है भरोसा
  • अब मायावती ने भी खड़े किए सवाल, बोलीं- अब तक बेखबर क्यों रही पुलिस
  • मायावती ने कहा कि आतंकी पकड़े जाने की आड़ में राजनीति नहीं होनी चाहिए

लखनऊ/दिल्ली:

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने संदिग्ध आतंकियों की गिरफ्तारी पर कहा कि इसकी आड़ में राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर दावा सही है तो यह गंभीर मामला है और कार्रवाई जरूर होनी चाहिए।

‘..आड़ में न हो राजनीति’
मायावती ने ट्वीट किया, ‘यूपी पुलिस का लखनऊ में आतंकी साजिश का भंडाफोड़ करने व इस मामले में गिरफ्तार दो लोगों के तार अलकायदा से जुड़े होने का दावा अगर सही है तो यह गंभीर मामला है। इस पर उचित कार्रवाई होनी चाहिए वरना इसकी आड़ में कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए जिसकी आशंका व्यक्त की जा रही है।’

भारत से की जा रही थीं भर्तियां

ADG प्रशांत कुमार ने इस ऑपरेशन के बारे में जानकारी देते हुए कहा, उम्र-अल-मंदी द्वारा अलकायदा  में इंडिया से भर्ती की जा रही थीं। यहां कुछ जिहादी लोगों को चिन्हित किया गया था. लखनऊ में मॉडल खड़ा करने की तैयारी में ये लोग लगे हुए थे। मॉडल के प्रमुख सदस्य मसरुद्दीन और शकील बड़ी साजिश रच रहे थे। एडीजी के मुताबिक 15 अगस्त से पहले उत्तर प्रदेश में विस्फोट (Blast) करने की साजिश रची जा रही थी।

कैसे हत्थे चढ़े आतंकी

यूपी एटीएस की टीम ठाकुरगंज इलाके के फरीदीपुर में पहुंची. वहां पर दो घरों मे सर्च ऑपरेशन किया गया. यूपी एटीएस के साथ लोकल पुलिस भी रेड में शामिल रही. सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आसपास के इलाकों में भी पुलिस तैनात की गई थी।  सूत्रों के मुताबिक छोटे ब्लास्ट की वजह से UP-ATS को इन आतंकियों के बारे में सुराग मिला। आशंका है कि इलाके में कुछ और आतंकी भी छिपे हो सकते हैं। आतंकियों की गिरफ्तारी की सूचना मिलने पर जम्मू-कश्मीर के पुलिस अफसरों ने भी यूपी पुलिस से संपर्क साधा है। इधर यूपी ATS का सर्च ऑपरेशन जारी है।

अखिलेश यादव ने अलकायदा आतंकियों की गिरफ़्तारी पर उन्होंने कहा कि वो न तो यूपी पुलिस और न ही भाजपा की सरकार पर भरोसा कर सकते हैं। बता दें कि मैंगो बेल्ट काकोरी के एक मकान से ATS ने मसरुद्दीन और मिनहाज अहमद नामक दो आतंकियों को दबोचा। ये आतंकी देश के कई हिस्सों में बम ब्लास्ट की योजना बना रहे थे, जिसमें मानव-बम से हमले भी शामिल थे। जहाँ अहमद दुबग्गा का निवासी है, मसरुद्दीन मड़ियाँव में रहता था।

इससे पहले राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने पश्चिम बंगाल और केरल में अलकायदा के मॉड्यूल का खुलासा किया था। केरल के एर्नाकुलम और पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से इन आतंकियों की गिरफ़्तारी हुई थी। ये लोग कोच्चि नौसेना बेस और शिपयार्ड्स को निशाना बनाने वाले थे। बिहार पुलिस भी लखनऊ में अलकायदा आतंकियों की गिरफ़्तारी के बाद अलर्ट पर है। देश के कई हिस्सों में अलकायदा के स्लीपर सेल मौजूद हैं, इनकी फंडिंग पर रोक लगा कर उनके नेटवर्क को ध्वस्त करना मुख्य चुनौती है।

एक भाजपा सांसद के अलावा कई अन्य भाजपा नेता इन आतंकियों के निशाने पर थे। आसपास के घरों में इन आतंकियों के साथियों के ठिकाने हो सकते हैं, इसीलिए उनकी भी तलाशी हो रही है। सीरियल ब्लास्ट की साजिश पाकिस्तान में रची गई थी और अफगानिस्तान में इस पर ‘रिसर्च’ हुआ था। आसपास के 500 मीटर के दायरे में सारे घरों को खाली करा लिया गया। जल्द ही कई और खुलासे होने की संभावना है।

कश्मीर से उत्तराखंड तक बारिश का कहर

हिमाचल प्रदेश में मानसून का इंतजार कर रहे लोगों के लिए रविवार का दिन शानदार खबर लेकर आया है जहां कई जगहों पर खूब बारिश हुई। लेकिन कई जगहों पर इस कदर तेज बारिश हुई कि तबाही जैसे हालात पैदा हो गए। राज्य के प्रसिद्ध पर्यटन भागसू में रविवार को बादल फट गया जिसके बाद हालात बेकाबू हो गए हैं और सड़क पर खड़ी गाड़ियां ऐसे बहने लगी मानों ताश के पत्ते बह रहे हों। इसका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि भारी बारिश के बाद सड़कों पर बाढ़ जैसे हालात हो गए हैं और लोग घरों के अंदर नजर आए।

  • राजस्थान में आकाशीय बिजली गिरने से हुई मौतों पर पीएम मोदी ने दुख जताया।
  • राजस्थान के अलावा आकाशीय बिजली ने यूपी में भी तांडव मचाया है। अलग-अलग जिलों में हुई घटनाओं में करीब 40 लोगों की मौत हो गई।
  • जयपुर में आमेर किले के पास वॉच टावर पर सेल्फी ले रहे लोगों पर गिरी बिजली, 11 की मौत
  • राजस्थान पर टूटा आकाशीय बिजली का कहर, 7 बच्चों सहित 20 से ज्यादा लोगों की मौत, 21 घायल
  • खराब मौसम के बीच बिजली गिरने से उत्तर प्रदेश में कई लोगों की मौत

चण्डीगढ़/जम्मू/हिमाचल/मोहिंदर सिंह द्वारा इनपुट से:

मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान के मुताबिक 13 जुलाई को और 14 से 16 जुलाई तक भारी बारिश हो सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत कांगड़ा जिले में सभी विभागों के जिले के अधिकारियों को अलर्ट पर रहने का आदेश दिया गया है।

करीब एक महीने तक शांत रहा मानसून दोबारा एक्टिव हो गया है। राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के कई जिलों में एक-दो दिन से रुक-रुककर बारिश जारी है तो मध्य प्रदेश में 17 जुलाई से भारी बारिश का अलर्ट जारी किया गया है। बिहार के 14 जिलों में भारी बारिश का यलो अलर्ट जारी किया गया है। यहां 7.5 से 15 मिमी तक बारिश हो सकती है।

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में और जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटना सामने आई है। शिमला सहित कई जिलों में रविवार रात से भारी बारिश हो रही है। इस कारण नदी-नाले उफान पर हैं। कई जगह बाढ़ जैसी स्थिति बन गई है। कुल्लू की सरवरी नदी भी उफान पर है। इससे किनारे पर बसी झुग्गी बस्तियों पर खतरा पैदा हो गया है।

नदी का पानी झुग्गी बस्ती के बीच में बह रहा है। लोगों ने अपनी झुग्गियां खाली करनी शुरू कर दी हैं। नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। शिमला में भारी बारिश के बाद झाकरी और रामपुर से गुजरने वाला नेशनल हाईवे ब्लॉक हो गया है।

उधर, सेंट्रल कश्मीर के गांदरबल में रविवार देर रात बादल फटने से बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। घरों में पानी घुस गया है। कई दुकानें और सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई हैं। घटना के बाद J&K प्रशासन ने रात में ही राहत और बचाव का काम शुरू कर दिया। प्रशासन का कहना है कि हालात फिलहाल काबू में हैं।

PM मोदी द्वारा मुश्किल के इस क्षण में हिमाचल प्रदेश को प्रदान किए जा रहे सहयोग के लिए समस्त प्रदेशवासियों की ओर से आभार। हिमाचल में भारी बारिश के कारण पेश आई प्राकृतिक आपदा में प्रधानमंत्री जी का सहारा मिलना सभी प्रदेशवासियों के लिए राहत का विषय है:हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री

महाराष्ट्र में ‘पैगंबर मुहम्मद बिल’ के लिए बनाया जा रहा राजनैतिक दबाव

विचारणीय है कि ईश निंदा कानून की मांग वह समुदाय कर रहा है जिसे किसी के भी खिलाफ ‘फतवा’ पढ़ने की छूट है। ईशनिंदा कानून नहीं होने के बावजूद कट्टर मुस्लिमों को पैगंबर के कथित ‘अपमान’ के बदले के तौर पर हत्या और आगजनी करने से रोका नहीं गया। कई साल पहले पैगम्बर मुहम्मद को लेकर दिए गए बयान के बदले के तौर वर्ष 2019 में हिंदू महासभा के पूर्व नेता कमलेश तिवारी के घर में घुसकर कट्टरपंथी मुस्लिमों ने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी थी। और दूसरी ओर कड़े कानून के अभाव में या फिर कहें की मौजूदा कानून में लचीले पन के कारण अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे जहरीले बोल बोलने वाले, संसद – प्रधान मंत्री के साथ साथ हिन्दू देवी देवताओं पर अति अभद्र टिप्पणियाँ करने वाले लोग कानूनी कार्यवाही के ढुलमुल रवैये के कारण खुले में घूम रहे हैं। अब दूसरी बात यहाँ यह भी उठती है की इशनिन्दा कानून की मांग ‘महाराष्ट्र ही में क्यों उठी?

सरीका तिवारी, चंडीगढ़/ पुणे:

महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार पहले भी मुस्लिम तुष्टीकरण की कई हदें पार कर चुकी है। अब इस पैगंबर कानून को ला कर कहीं महाराष्ट्र में शरिया लागू करने की ओर एक कदम तो नहीं?

महाराष्ट्र में रज़ा अकादमी और तहफ़ुज़ नमूस-ए-रिसालत बोर्ड व प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाले वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) ने महाराष्ट्र सरकार पर ‘पैगंबर मुहम्मद बिल’ लाने के लिए दवाब बनाने की कोशिश की है। ताकि पैगंबर मुहम्मद समेत दूसरे धर्मों के प्रतीकों के खिलाफ ईशनिंदा कानून लाया जा सके।

एक राष्ट्रिय दैनिक में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस बिल के ड्राफ्ट को तैयार कर लिया गया है। इस बिल को ‘पैगंबर मुहम्मद बिल’ के रूप प्रमोट किया जा रहा है। इसका टाइटल ‘पैगंबर मुहम्मद और अन्य धार्मिक प्रमुखों की निंदा अधिनियम, 2021’ या ‘अभद्र भाषा (रोकथाम) अधिनियम, 2021’ रखा गया है।

महाराष्ट्र में अपना दबदबा रखने वाले मुस्लिम संगठन रज़ा अकादमी ने एक तरह से चेतावनी दी है कि ‘तहफ़ुज़ ए नमूस ए रिसालत’ विधेयक विधानसभा में पारित किया जाए। अन्यथा वो देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे।

वहीं ऑल इंडिया सुन्नी जमीयतुल उलेमा के अध्यक्ष मौलाना मोइन अशरफ कादरी (मोइन मियाँ) ने कहा, “यह हमारा सुझाव है, लेकिन सरकार इस बिल को जो नाम देना चाहे दे सकती है। हमारी माँग है कि हमारे पवित्र पैगंबर और सभी देवी-देवताओं और धर्मगुरुओं की निंदा, उपहास और अपमान को रोकने के लिए कड़ा कानून होना चाहिए। साम्प्रदायिक लड़ाइयाँ इसलिए हो रही हैं क्योंकि हमारा मौजूदा कानून उपद्रवियों को रोक पाने में असफल है।”

संविधान की धारा 295 (A) और ‘रंगीला रसूल’ का केस

भारत में ईशनिंदा से जुड़ा कोई कानून नहीं है। लेकिन, भारतीय दंड संहिता में एक कानून ऐसा है जो जानबूझकर किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वालों के खिलाफ जेल और जुर्माने का प्रावधान करता है। आईपीसी की धारा 295 (A) के तहत अगर आरोपित ने ‘जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से’ किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई है तो उसे जुर्माने के साथ 3 साल तक की सजा हो सकती है।

इंडियन पीनल कोड की धारा 295 (A) का मामला बहुत ही दिलचस्प रहा है। इसकी शुरुआत वर्ष 1923 में गुलाम भारत में हुई थी। उस दौरान कट्टरपंथी मुस्लिमों ने भगवान श्री कृष्ण समेत दूसरे देवी देवताओं को लेकर अपमानजनक और अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हुए ‘कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी’ और ‘यूनिसेवी सादी का महर्षि’ नाम की दो अत्यधिक विवादित पुस्तकें प्रकाशित की। पहले में भगवान श्री कृष्ण तो दूसरे में आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती को लेकर बहुत ही अपमानजनक टिप्पणी की गई थी। खास बात ये है कि इस पुस्तक को एक अहमदी मुस्लिम ने लिखा था। उस समय तक धारा 295(A) अस्तित्व में नहीं था।

मुस्लिमों की इस हरकत के जवाब में महाशय राजपाल के करीबी दोस्त पंडित चामुपति लाल ने इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद की एक छोटी सी जीवनी लिखी। ‘रंगीला रसूल’ के शीर्षक वाला यह छोटा पैम्फलेट पैगंबर मोहम्मद के जीवन पर एक व्यंग्यपूर्ण कहानी थी। इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए पंडित चामुपति ने महाशय राजपाल से वादा लिया कि वह कभी भी इसके लेखक के नाम को उजागर नहीं करेंगे।

यह पैम्फलेट ऐतिहासिक रूप से हदीसों के इतिहास पर आधारित था और पूरी तरह से सटीक था। लेकिन इससे लाहौर के मुस्लिम पूरी तरह से आक्रोशित हो उठे। यह ऐसा मामला था कि लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया और इसका पहला संस्करण बहुत ही जल्द बिक गया। इसके प्रकाशित होने के करीब एक महीने के बाद जून 1924 में महात्मा गाँधी ने अपने साप्ताहिक ‘यंग इंडिया’ जर्नल में इसकी कड़ी निंदा करते हुए कहा था कि यह राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है।

इस मामले में लाहौर उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा था कि यह लेख मुस्लिम समुदाय को ‘आक्रोशित’ करने वाला था। कानूनी तौर पर इसका अभियोजन इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि धारा 153 (A) के तहत लेखन विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी या नफरत का कारण नहीं बन सकता। कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिमों के आक्रोश ने तत्कालीन शाषकों को कानून बदलने और धारा 295 (A) लागू करने के लिए मजबूर कर दिया था।

घटना के बाद 6 सितंबर, 1929 को इल्म उद दीन नाम के एक 19 वर्षीय मुस्लिम बढ़ई ने अपनी दुकान के बाहरी बरामदे में बैठे हुए महाशय राजपाल की छाती पर आठ बार हमला किया। चोट लगने से महाशय राजपाल की मौत हो गई।

सबसे खास बात यह थी कि इल्म उद दीन खुद अनपढ़ था और उसने अपने जीवन में रंगीला रसूल या कोई दूसरी किताब नहीं पढ़ी थी। बावजूद इसके मुस्लिम संगठनों और मौलानाओं ने उसके अंदर इतनी नफरत भर दिया था कि उसने महाशय राजपाल की हत्या कर दी। उसे लगा कि राजपाल ने ‘ईशनिंदा’ की है।

जब इल्म उद दीन को हत्या का दोषी ठहराया गया था तो उर्दू कवि इकबाल और जिन्ना ने हत्या जैसे जघन्य अपराध को एक शानदार धार्मिक कार्य बताते हुए उसकी सराहना की थी।

हत्यारे इल्म उद दीन को धार्मिक नायक बताते हुए ‘गाजी’ के रूप में उसका महिमामंडन किया गया। पाकिस्तान में उसकी एक मजार भी है। मजार में वार्षिक उर्स आयोजित किया जाता है। वहाँ पर मुस्लिम ‘गाजी इल्म उद दीन’ को श्रद्धाँजलि देते हैं।

ध्यान देने वाली बात यह है कि ईशनिंदा कानून नहीं होने के बावजूद कट्टर मुस्लिमों को पैगंबर के कथित ‘अपमान’ के बदले के तौर पर हत्या और आगजनी करने से रोका नहीं गया। कई साल पहले पैगम्बर मुहम्मद को लेकर दिए गए बयान के बदले के तौर वर्ष 2019 में हिंदू महासभा के पूर्व नेता कमलेश तिवारी के घर में घुसकर कट्टरपंथी मुस्लिमों ने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी थी।

वर्ष 2020 में एक विधायक के रिश्तेदार ने कथित तौर पर मोहम्मद पैगंबर पर फेसबुक में टिप्पणी कर दी थी, जिसके बाद हिंसक भीड़ ने दो पुलिस स्टेशनों को आग लगा दी। इसी तरह से 2015 में फ्रेंच मैगजीन शार्ली हेब्दो के ऑफिस में घुसकर 12 लोगों की हत्या कर दी गई थी।

माधोक के विद्यार्थी परिषद ने किया 73वें वर्ष में प्रवेश

‘पुरनूर’ कोरल, चंडीगढ़ :

आज से ठीक 72 वर्ष पहले यानि 9 जुलाई 1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता प्रो बलराज मधोक ने स्थापना की।
संघ परिवार के सदस्यों मे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को अग्रज की संज्ञा दी जाए तो गलत न होगा। इसके बाद ही शिक्षा परिषद , जनसंघ और अन्य संस्थान अस्तित्व में आये । भारतीय जनता पार्टी का सृजन तो आपातकाल के बाद किया गया।

दृढ़ निश्चयी , अनुशासित, राष्ट्रवाद के पुरोधा, विचारक आदि नाना प्रकार के गुणों से प्रोत मधोक को भले ही उतना महत्व न दिया जाता हो लेकिन तथा कथित राष्टवादी और हिन्दूवादी संगठनों द्वारा उठाये जा रहे मुद्दे असल मे उन्हीं की देन हैं।

भारत पर गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने की माँग करने वाले बलराज मधोक पहले शख़्स थे. उन्होंने पूरे भारत में घूम कर गौ हत्या विरोध का माहौल बनाने की कोशिश की थी। वो पहले नेता थे जिन्होंने 1968 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद हिंदुओं के हवाले करने की माँग उठाई थी, उसके बदले में उन्होंने हिंदुओं द्वारा मुसलमानों के लिए उसके बदले एक भव्य मस्जिद बनाने की पेशकश की ।

“मुसलमानों को भारत की मुख्यधारा में लाने की ज़रूरत है.

उदारवादी बलराज मधोक ने कहा था, “मुसलमानों को भारत की मुख्यधारा में लाने की ज़रूरत है. उसके लिए दो क़दम ज़रूरी है. पहला क़दम ये है कि उनके दिमाग से निकालो कि मुसलमान बनने के कारण तुम्हारी संस्कृति बदल गई. संस्कृति तुम्हारी वही है जो भारत की है. भाषा तुम्हारी वही है जो तुम्हारे माँ बाप की थी। उर्दू हिंदी का एक स्टाइल है, मैं भी उसे पसंद करता हूँ, क्योंकि मेरी शिक्षा भी उर्दू मे हुई है. लेकिन उर्दू मेरी भाषा नहीं है, मेरी भाषा पंजाबी है”।

भारत विभाजन के विरोधी मधोक ने 1947 में हुए भारत विभाजन को कभी स्वीकार नहीं किया और जीवनभर हर मंच पर उसका विरोध करते रहे और अखंड भारत का सपना देखते रहे।

सांझा संस्कृति की बात भारत विभाजन के साथ ही समाप्त हो गयी थी।

मधोक का कहना था, “दुर्भाग्य ये हुआ कि उस समय हमने विभाजन तो स्वीकार कर लिया लेकिन उससे निकलने वाले परिणामों को अनदेखा कर दिया. विभाजन ने दो बातें साफ़ कर दीं, ये जो साझा संस्कृति को जो बात थी वो ख़त्म हो गई। हर मुल्क की साझा संस्कृति होती है लेकिन कोई इसे साझा नहीं कहता। “गंगा के अंदर अनेक नदियाँ मिलती हैं , लेकिन मिलने के बाद गंगा जल हो जाता है. ये गंगा – जमुनी की बात ग़लत है। जब जमुना गंगा मे मिल जाती है तो कोई गंगा के पानी को गंगा -जमुनी पानी नहीं कहता, वह गंगाजल कहलाता है।”

भले ही अपनी बेबाकी की वजह से संघ के राजनीतिक पटल पर अड़ियल कार्यकर्ता के रूप में दिखे और छद्दम संघियों की राजनीति का शिकार हुए लेकिन प्रो बलराज मधोक के योगदान अविस्मरणीय हैं।

ट्विट्टर ने रोका आईटी मंत्री का अकाउंट, ‘Koo’ उपलब्ध है, क्या पीएम का Make In India जुमला भर है?

  नाइजीरिया सरकार ने माइक्रो ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर (Twitter) को अनिश्चित काल के लिए बैन कर दिया है। वहीं, कू (KOO) ने शनिवार को कहा कि अब भारतीय माइक्रो ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म नाइजीरिया में भी उपलब्ध है। इसके साथ ही कू ने कहा कि वह नाइजीरिया में यूजर्स के लिए नई स्थानीय भाषाएं जोड़ने की इच्छुक है। और यहाँ भारत में ट्विट्टर अपनी मनमानियों से बाज नहीं आ रहा। अब ट्विट्टर ने भारत के केन्द्रीय आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद का अकांउट एक घंटे के लिए ब्लॉक कर दिया। भारत में केंद्र की भाजपा सरकार किंकर्त्व्यविमूढ़ बनी बैठी है की कब एक घंटे का अवरोध समाप्त हो और वह कुछ काम कर सकें। व्देशी माल के प्रति मोह भारत की आम जनता ही में नहीं अपितु मेक इन इंडिया का नारा देने वाली भाजपा सरकार में भी यह पराकाष्ठा की हद तक है। पहले ‘Telegram’ अब ‘Koo’ ‘मोदी का जुमला भर है ‘Make In India’

सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर ने आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद का अकांउट एक घंटे के लिए ब्लॉक कर दिया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक ट्विटर ने अमेरिकी कानून का हवाला देते हुए केंद्रीय मंत्री का ट्विटर अकाउंट ब्लाक किया था। हालाँकि चेतावनी देने के बाद फिर से अकाउंट को बहाल कर दिया गया है।

साफ ज़ाहिर है की प्रधानमंत्री के लिए भी ‘Make In India’ मात्र जुमला ही है। ट्विट्टर ने भारतीय घरों में प्रवेश से पहले यह अनुमति नहीं मांगी थी की भारत की केन्द्रीय सरकार के मंत्री ट्विट्टर पर ही अपनी बात कहने के लिए बाध्य होंगे। खास कर तब जब हमारे पास ट्विट्टर का देसी विकल्प ‘Koo’ मौजूद है तब प्रधानमंत्री या बाकी सब भी ‘KOO’ को क्यों नहीं अपनाते? जब तक प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिमंडल इस भारतीय एप को नहीं अपनाएगा तब तक आम जन की तो क्या ही कहिए।

रविशंकर प्रसाद ने खुद ट्वीट करके खुद इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया, “ट्विटर ने कथित आधार पर लगभग एक घंटे तक के लिए मेरा अकाउंट बंद कर दिया। इसके पीछे उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट के उल्लंघन का मामला बताया। हालाँकि बाद में अकाउंट को खोल दिया गया।”

आईटी मंत्री ने बताया कि ट्विटर की कार्रवाई सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के नियम 4 (8) का घोर उल्लंघन था। ट्विटर उनका अकाउंट ब्लॉक करने से पूर्व इसकी सूचना देने में असफल रहा।