“कोरोना की ललकार, आम आदमी करे पुकार, धरातल के पटल पर हो विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार”

देश में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की मुहिम चल रही है। पाकिस्‍तान प्रायोजित आतंकवाद का साथ देने वाले चीन से भारत को सारे साझे तोड़ लेने के लिए भारतीय परिदृश्‍य मचल पड़ा है। ऐसा वाकया सोशल साइट्‌स पर देखने को मिल रहा है। चीन के प्रति गुस्सा ठीक है, लेकिन अतिउत्साह में लोग विदेशी ब्रण्ड्स के खिलाफ मोर्चा खोल बैठे हैं। जब हमारे नयों ने स्वदेश अपनाने की बात की तो वह ‘मेक इन इंडिया’ को नहीं भूले थे। जिन वस्तुओं का उत्पाद भारत में हो रहा है फिर चाहे वह किसी भी कंपनी को हों (आज के परिवेश में चीनी कोंपनियों को छोड़ कर) आप उसे स्वदेशी ही मानें। क्योंकि उसके उत्पाद में भारतीय कामगारों का पसीना शामिल है। हाँ उसी कंपनि के विदेशी उत्पादों के बारे में निर्णय लेने को आप स्वतंत्र हैं। इसी आशय पर प्रकाश डालता हमारे सहयोगी सुशील पंडित का यह लेख।

सुशील पंडित, यमुनानगर – 18 मई:

सुशील पंडित

ऐसा क्यों होता है कि जब भी परिस्थितिया विषम होती है तो हम अच्छा सोचने लगते हैं। क्या अच्छे हालात में अच्छा सोचना गलत है? पत्रकार होने की दृष्टि से मैं वर्तमान शासन के बारे में या तो बहुत अच्छा लिखता या शायद कुछ भी न लिखता। लेकिन बात है आम आदमी की मनोदशा की जो वर्तमान  में असमंजस की स्थिति में है।

बात है स्वदेशी अपनाने की बहुत ही सराहनीय प्रयास है लेकिन अपनाया तो उसे जाता है जिसे कभी ठुकराया हो या आजमाया ही न हो मेरा सरोकार है सिर्फ़ आम आदमी से जो जीवन के आरम्भ से लेकर अंत तक स्वदेश भावना लेकर ही अपना जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखता है। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का पाठ पढ़ाने की जरूरत तो उन लोगों या घरानों को हैं जो मुँह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं। जिन्हें स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने में हीनता का आभास होता है।

कोई भी सत्ता हो स्वदेशी आंदोलन पर जोर देकर खुद को देश प्रेम का प्रतीक बनाने की होड़ में लगी है। स्वतंत्रता संग्राम में भी गांधी जी ने “स्वदेशी अपनाओ” का नारा दिया था जो सफल भी रहा लेकिन ज्ञात हो परिस्थितिया उस समय भी प्रतिकूल थी अंग्रेजी हकूमत की वजह से और आज भी अर्थव्यवस्था के कारण। ये खेल तो बहुत लंबे समय से चल रहा है। जिसमें जीत जब भी हुई तो वो थी विदेशी वस्तुओं की। ये इतने विचार हमारे शासकों के मन में सामान्यतः क्यो नही आते। क्या ये सच में हमारी राष्ट्र की जरुरत है या फिर सभी सत्ताधारियों का खेल?

आम इंसान किसी दल,जाति, धर्म विशेष का नही होता उसे तो सिर्फ अपेक्षा होती है तो देश के राजा से और ये परम्परा तो आदि काल से चली आ रही है राजा का दायित्व बनता है कि वह प्रजा की जायज़ अपेक्षाओं पर खरा उतरने की हर संभव कोशिश करें। देश के हर आम नागरिक की सोच यहीं है कि वो स्वदेशी वस्तुओं का भोग अपने बजट में रह कर सरलता से कर सकें लेकिन जब बात आती है भारत के खास नागरिक तो आप सभी मुझे से कही अधिक जानते हैं। किसी भी सरकार का स्वदेशी अपनाओ का ढ़िढोरा पीटना और धरातल पर रह कर इसे गभीरता से सभी के लिए समान रूप से लागू करना ये दोनों इस समस्या के अलग अलग पहलू है। क्योंकि सरकार कोई भी रही हो या वर्तमान में हो, कथनी और करनी में जमीन आसमान का नही आसमान और पाताल का अंतर है परंतु वो कहते हैं उम्मीद पर दुनिया क़ायम है बस उसी उम्मीद पर हर बार आम नागरिक  राजनीतिक दलों के प्रतिनिधयों से अपेक्षा लगाए उसी मोड़ पर खड़ा रहता है जहाँ वह आरम्भ से खड़ा है…. और बस…. वहीं खड़ा है।

मेवात से हिंदुओं का पलायन, गहरी नींद में खट्टर

हरियाणा के मेवात क्षेत्र को कट्टरवादियों ने बहुत पहले ही ‘बंगलादेश’ बना दिया है। बंगलादेश में करीब 8 प्रतिशत हिन्दू रह गए हैं, यही स्थिति मेवात की भी हो गई है। जबकि 1947 में बंगलादेश में करीब 30 प्रतिशत और मेवात में भी लगभग 30 प्रतिशत हिन्दू थे। अब पूरे मेवात को ‘पाकिस्तान’ की शक्ल देने देने का प्रयास तेजी से हो रहा है। आज हरियाणा के मेवात में हिन्दुओं के साथ वह सब हो रहा है जो बंगलादेश या पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ होता है। हिन्दू लड़कियों और महिलाओं का अपहरण, उनका मतान्तरण और फिर किसी मुस्लिम के साथ जबरन निकाह। हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाना। हिन्दू व्यापारियों से जबरन पैसे की वसूली करना। मंदिरों और श्मशान के भूखंडों पर कब्जा करना। बंगलादेशी घुसपैठियों को बसाना। हिन्दुओं को झूठे मुकदमों में फंसाना। हिन्दुओं के यहां डाका डालना। कोढ़ में खाज यह कि प्रशासन द्वारा भी हिन्दुओं की उपेक्षा आम बात हो गयी है। इस कारण मेवात के हिन्दू मेवात से पलायन कर रहे हैं। मेवात के सभी 508 गांव लगभग हिन्दू-विहीन हो चुके हैं। किसी- किसी गांव में हिन्दुओं के दो-चार परिवार ही रह गए हैं। यदि सेकुलर सरकारों का रवैया नहीं बदला तो यहां बचे हिदू भी पलायन कर जाएंगे। फिर इस इलाके को पाकिस्तान बनने से कोई रोक नहीं सकता है।

सारिका तिवारी, चंडीगढ़

Sarika Tiwari,
Editor: demokratikfront.com

हरियाणा के मेवात से हिंदू समुदाय की पलायन पर अखबारों में एक रिपोर्ट छप रही है लगभग 75 से 100 शब्दों की। बस विश्व हिंदू परिषद ने पिछले दिनों एक समिति बनाई जिसमें जनरल बक्शी स्वामी धर्मदेव और वकील चंद्रकांत शर्मा शामिल थे। समिति ने ओट में बताया गत 25 वर्षों से मेवात से भारी संख्या में हिंदू पलायन कर गए हैं। वीएचपी के संयुक्त सचिव डॉ सुरेंद्र जैन की माने तो उन्होंने मेवात को हिंदुओं का कब्रिस्तान ही कह दिया, क्योंकि आए दिन हिंसा की घटनाएं सामने आ रही है। धर्म परिवर्तन के लिए दबाव आए दिन सुनने में आ रहा है, कभी किसी लड़के की शिखा काटने का प्रयास और विरोध करने पर उसके घर पर भारी संख्या में समुदाय विशेष के लोगों द्वारा हल्ला बोल कर ना केवल लड़के को अधमरा करना बल्कि उसकी मां के साथ भी मारपीट करना आम है। इतना ही नहीं प्रशासन और पुलिस इतने पंगु हैं कि पहले तो रिपोर्ट दर्ज ही नहीं हुई बाद में किसी तरह मामला दर्ज हुआ तो दबाव बनाकर सम्झौता करवाया गया। उसके अगले ही दिन लठियों से दो हिन्दू युवाओं पर जान लेवा हमला किया गया जिनमें से एक अभी भी अस्पताल में दाखिल है। उसकी स्थिति नाज़ुक बनी हुई है। इससे साफ झलकता है कि पुलिस और प्रशासन अपना कर्तव्य पालन करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। या तो किसी प्रभाव के अंतरगर्त अपना काम नहीं कर पा रहे या स्वयं दोनों मशीनरियाँ ऐसी गतिविधियों में संलिप्त हैं।

गोहत्यारों पर नहीं होती कड़ी कार्रवाई

गोकशी के मामलों में भी जब पुलिस को सूचना दी जाती है तो पुलिस अपराधियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं करती है। उदाहरण के लिए 28 अप्रैल को पुन्हाना में गो तस्करों की गोली से रघुवीर नामक एक मजदूर मारा गया। लेकिन इस मामले में कड़ी कार्रवाई करने के बजाए पुलिस इसकी लीपापोती में लगी है। मजदूर का परिवार भुखमरी के कगार पर है, परन्तु मुआवजे की बात तो दूर, उसकी कोई परवाह नहीं की जा रही है। ऐसी घटनाएं बताती हैं कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जहां हिन्दू परिवार गिने चुने हैं, वहां हिंदुओं की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही अपेक्षित सुरक्षा बल मौजूद है। इसके अतिरिक्त, लॉक डाउन के चलते जहां हिन्दू व्यावसायी लॉक डाउन के नियमों का पालन करते हुए जब अपने प्रतिष्ठान चला रहे होते हैं, तो वहां के स्थानीय अधिकारी केवल हिंदुओं का गैर कानूनी चालान करते हैं, जबकि मुस्लिमों द्वारा चलाये जा रहे व्यावसायिक प्रतिष्ठान लॉक डाउन की धज्जियां उड़ाकर, बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के धड़ल्ले से चल रहे हैं। 500 मकानों वाले गांव कुलैटा (नगीना ) में जहां केवल 10 मकान हिंदुओं के हैं वहां हिन्दुओं का घर से निकलना दूभर हो रहा है। बहू-बेटियां भी सुरक्षित नहीं हैं। इतना ही नहीं, सरकारी स्कूलों में हिन्दुओं के बच्चों को नमाज पढ़ने के लिये बाध्य किया जाता है,जहां पर कर्मचारी मुस्लिम बहुल हैं।

इस सबके बीच पुन्हाना के पास नई गांव से कन्वर्जन की साजिशों का भी पता चला। यहां के एक हिन्दु युवक को मुस्लिम बनाया गया और अब उसकी मां को भी इस्लाम अपनाने के लिये प्रताड़ित किया जा रहा है। यह भी बात सामने आई है कि गांव उटावड़ में कुख्यात आतंकवादी हाफिज सईद द्वारा दिए गए पैसों से एक बड़ी मस्जिद बनाई गयी जो सलमान नाम के व्यक्ति के माध्यम से बनवाई गयी। इस समय यह सलमान किसी अन्य मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी की गिरफ्त में है। कुल मिलाकर हरियाणा के इस जिले में मुसलमानों का इतना आतंक व खौफ है, जिसके चलते हिन्दुओं का जीना दूभर हो रहा है। इन्हीं कारणों के चलते हिन्दू पलायन तक को मजबूर हो रहे हैं। ऐसे में यह समिति हिन्दू समुदाय की सुरक्षा के प्रति राज्य सरकार को जागरूक करते हुए अपील करती है कि सरकार हिन्दुओं की सुरक्षा का उचित प्रबन्ध करे ताकि उनमें एक विश्वास उत्पन्न हो सके। पीड़ितों से चर्चा करते समय एक ही बात सामने आई कि वे प्रशासन पर विश्वास खो बैठे हैं। इसलिये उनमें से कुछ लोग पलायन की सोच रहे हैं। ऐसी स्थिति घातक है। इन परिस्थितियों को वर्तमान हरियाणा सरकार ही ठीक कर सकती है। इसलिए यह रिपोर्ट हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल जी को भेज दी गई है। विश्व हिंदू परिषद विश्वास करती है कि मुख्यमंत्री महोदय इस रिपोर्ट की अनुशंसाओं को अति शीघ्र लागू करके मेवात को राष्ट्र विरोधी व हिंदू विरोधी गतिविधियों से मुक्त कराएंगे।

जुलाई 2018 को 8 लोगों द्वारा एक बकरी के साथ गैंगरेप करने की घटना को कोई भूला तो नहीं होगा?

समिति ने कुछ अनुशंसा भी की हैं जो इस प्रकार हैं—

  • क्षेत्र के समस्त पुलिस प्रशासन को बदल कर इनकी जगह कर्मठ व किसी दबाव में न झुकने वाले अधिकारियों को लाया जाये।
  •  जिस क्षेत्र में हिन्दुओं पर अत्याचार होते हैं, वहां के थानाध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाए।
  • मेवात में मदरसों,—मस्जिदों और मजारों से चल रही राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की एनआईए से जांच कराई जाए। हवाला के रास्ते आतंकवादियों का पैसा मस्जिदों के बनाने और अवैध हथियारों के जखीरे खड़ा करने में हो रहा है, यह भी जांच में शामिल हो।
  • पुलिस पर अविश्वास के कारण वहां पर अर्ध सैनिक बलों की उपस्थिति आवश्यक है। अतः मुस्लिम बहुल इलाकों मे अर्ध सैनिक बलों का केन्द्र बनना चाहिये, चाहे उसके लिये भूमि अधिग्रहण करनी पड़े।
  •  हिंदुओं की व्यक्तिगत, सामाजिक व धार्मिक सम्पत्ति पर अवैध कब्जों की जांच होनी चाहिये और उनको जिहादियों के चंगुल से अविलम्ब मुक्त कराना चाहिए।

मुख्यमंत्री को परिषद की ओर से यह रिपोर्ट सौंपी गई। सुरेन्द्र जैन चाहते हैं कि मुख्यमंत्री जल्दी से जल्दी रिपोर्ट का संगयानलेते हुए उचित कार्रवाई करें और समिति की सिफारिशों जिसमें वर्तमान अधिकारियों और कर्मियों को तुरंत प्रभाव से हटाकर दूसरे अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त किया जाए। इतना ही नहीं समिति ने सिफ़ारिश की है कि मेवात के संवेदनशील माहौल को देखते हुए यहां सीआरपीएफ़ और बीएसएफ को तैनात किया जाए।

भई यह तो रही विश्व हिंदू परिषद की मांग, जिन मसलों पर सुरेन्द्र जैन बात कर रहे हैं यह समस्याएं और घटनाएं आर एस एस के घटक दल भाजपा के राज मैं ही हुई है।

मुख्यमंत्री हो या गृह मंत्री दोनों के पास इस विषय पर बात करने का समय नहीं, मान ले अपने किसी खास या चहेते पत्रकार से इस विषय पर बात करें भी तो आम दिनों की तरह एक ही जवाब उम्मीद की जा सकती है या तो उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं या इस पर जांच चल रही है इस पर वह सामने आएगी भी या नहीं यह आने वाले समय के शोध का विषय रहेगा।

अब बात करते हैं कि क्यों प्रशासन ऐसे व्यक्ति जो कि इस तरह की घोर हिंसा में संलिप्त हैं के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करता या इन पर कोई राजनीतिक दबाव जो कि अपने वोट बैंक को संजोकर रखने के लिए तथाकथित अपिजमेंट नीति का प्रयोग करते हैं? राजनेताओं के हाथ की कठपुतली बने अखबार और चैनल क्यों सच को उजागर होने नहीं देते? एक समुदाय विशेष के कुछ गिने-चुने लोगों द्वारा हिंसा फैलाने या वारदातों को अंजाम देने को मात्र कुछ शब्दों तक समेट कर रख दिया जाता है जबकि मेवात के इलाके में पिछले दिनों इस तरह की हिंसा और सांप्रदायिक गतिविधियों में संलिप्त लोगों के बारे में बोलने और लिखने वाले पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया और उसे ना केवल पुलिस ने गिरफ्तार करने की पूरी तैयारी कर ली थी। और कुछ लोगों ने उसके घर पर भी हमला किया। चलो कुछ सोच कर पुलिस ने गिरफ्तारी तो नहीं की लेकिन उसकी शिकायत पर हमलावरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई इससे बड़ी विडंबना यह है की पत्रकार संगठनों या उनके पदाधिकारी साथ देना तो दूर घटनाक्रम क निंदा करने के लिए आगे नहीं आए।

अब बात करें ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग की चाहे रिपोर्ट जनता के सामने आने की बात हो रिपोर्ट दर्ज करने के बाद दोनों ही मामलों में रिपोर्ट औंधे मुंह गिरी दिखाई पड़ती हैं। मीडिया की दिलचस्पी तथाकथित अल्पसंख्यक समुदाय मैं ही है चाहे मुजफ्फरनगर का हो या शामली का मामला, मीडिया ने क्षेत्र को अपनी छावनी बना लिया था और ग्राउंड ज़ीरो से रेपोर्टिंग हो रही थी। इतना ही नहीं मिडीया इस तरह से रिपोर्टिंग करता है की जैसे चाहता हो कि घटना क्रम जितनी जल्दी हो सके जनसाधारण के मानस पटल से साफ हो जाए।

पलायन बंगाल से भी हो रहा है, आसनसोल के दंगों के बाद से यह पलायन जारी है, लेकिन अखबार और चैनल मालदा, उत्तरी दिनाजपुर, मुर्शिदाबाद और टेलिनपरा की खबर बाहर नहीं आने देते। ममता बनर्जी के आने के बाद ही से यह घटना विषम रूप लेती जा रही है। देश में संचार माध्यमों की भरमार है लेकिन संचार के विषय का चुनाव देश हित के लिए नहीं बिजनेस हाउस और राजनीतिक हाउसेस के लिए किया जाता है फॉर सेल के बोर्ड तो भले ही से हट गए हैं लेकिन घरों के बाहर लटकते ताले देखकर तीन दशक पहले के कश्मीर को यहां जीवंत करते हैं।

जारी है:-

रामानुजाचार्य जयंती पर विशेष

चंडीगढ़ (धर्म – संस्कृति)

भारत की पवित्र भूमि ने कई संत-महात्माओं को जन्म दिया है। जिन्होंने अपने अच्छे आचार-विचार एवं कर्मों के द्वारा जीवन को सफल बनाया और कई सालों तक अन्य लोगों को भी धर्म की राह से जोड़ने का कार्य किया। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार संत श्री रामानुजाचार्य का जन्म सन् 1017 में श्री पेरामबुदुर, तमिलनाडु के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम केशव भट्ट था। जब उनकी अवस्था बहुत छोटी थी, तभी उनके पिता का देहावसान हो गया। बचपन में उन्होंने कांची में यादव प्रकाश गुरु से वेदों की शिक्षा ली। हिन्दू पुराणों के अनुसार श्री रामानुजम का जीवन काल लगभग 120 वर्ष लंबा था। रामानुजम ने लगभग नौ पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें नवरत्न कहा जाता है। वे आचार्य आलवन्दार यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज ने उनसे तीन काम करने का संकल्प लिया था। पहला– ब्रह्मसूत्र, दूसरा- विष्णु सहस्रनाम और तीसरा– दिव्य प्रबंधनम की टीका लिखना। 

जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य

रामानुजाचार्य के गुरु यादव प्रकाश थे, जो एक विद्वान थे और प्राचीन अद्वैत वेदांत मठवासी परंपरा का एक हिस्सा थे। श्री वैष्णव परंपरा यह मानती है कि रामनुज अपने गुरु और गैर-दैवीय अद्वैत वेदांत से असहमत हैं, वे इसके बजाय वे भारतीय अलवर परंपरा, विद्वान नथमुनी और यमुनाचार्य के नक्शेकदम पर चले।

रामानुजाचार्य वेदांत के विशिष्टाद्वैत सबस्कुल के प्रमुख प्रत्याशी के रूप में प्रसिद्ध हैं, और उनके शिष्यों को संभवतः शांतियानी उपनिषद जैसे लेखों के लेखकों के रूप में जाना जाता है। रामनुज ने स्वयं ब्रह्म सूत्रों और भगवद गीता पर भक्ति जैसे संस्कृत के सभी प्रभावशाली ग्रंथ लिखे थे।

उनके विशिष्टाद्वैत (योग्य मोनिस्म) दर्शन में माधवचर्या के द्वैता (ईश्वरीय द्वैतवाद) दर्शन और शंकराचार्य के अद्वैत (अद्वैतवाद) दर्शन, साथ में दूसरे सहस्त्राब्दि के तीन सबसे प्रभावशाली वेदांतिक दर्शन थे। रामानुजाचार्य ने उपन्यास प्रस्तुत किया जिसमे भक्ति के सांसारिक महत्व और एक व्यक्तिगत भगवान के प्रति समर्पण को आध्यात्मिक मुक्ति के साधन के रूप में प्रस्तुत किया।

रामानुजाचार्य ने विवाह किया और कांचीपुरम में चले गये, उन्होंने अपने गुरु यादव प्रकाश के साथ अद्वैत वेदांत मठ में अध्ययन किया। रामानुजाचार्य और उनके गुरु अक्सर वैदिक ग्रंथों, विशेषकर उपनिषदों की व्याख्या में असहमत रहते थे। बाद में रामानुजाचार्य और यादव प्रकाश अलग हो गए, और इसके बाद रामनुज ने अपनी पढ़ाई जारी रखी।

रामानुजा कांचीपुरम में वरधराजा पेरुमल मंदिर (विष्णु) में एक पुजारी बन गए, जहां उन्होंने यह पढ़ाना शुरू कर दिया कि मोक्ष (मुक्ति और संसार से छुटकारा) आध्यात्मिक, निरगुण ब्राह्मण के साथ नहीं, बल्कि व्यक्तिगत भगवान और साधू विष्णु की सहायता से प्राप्त करना है। रामानुजाचार्य ने श्री वैष्णव परंपरा में लंबे समय से सबसे अधिक अधिकार का आनंद लिया।

रामानुजाचार्य की कई पारंपरिक जीवनी ज्ञात हैं, कुछ 12 वीं शताब्दी में लिखी गईं, लेकिन कुछ बाद में 17 वीं या 18 वीं शताब्दियों में लिखी गई। विशेष रूप से वाड़काले और तिकालियों में श्रीविष्णव समुदाय के विभाजन के बाद, जहां प्रत्येक समुदाय ने रामानुजाचार्य की संतचर विज्ञान का अपना संस्करण बनाया।

ब्रह्मंत्र स्वतन्त्र द्वारा मुवायिरप्पाती गुरुपरमपराप्राभावा सबसे पहले वद्कालाई जीवनी का प्रतिनिधित्व किया। रामानुजाचार्य के बाद उत्तराधिकार के वद्कालाई दृश्य को दर्शाता है दूसरी ओर, श्रीरायिरप्पा गुरुपारम्परपभावा, दसकेली जीवनी का प्रतिनिधित्व करते हैं। [उद्धरण वांछित] अन्य दिवंगत जीवनचर्या में अन्धरभर्णा द्वारा यतीराजभविभव शामिल हैं।

लेखन

श्री वैष्णव परंपरा में संस्कृत ग्रंथों में रामनुज के गुण हैं-

-वेदार्थसंग्रह (सचमुच, “वेदों का सारांश”),
-श्री भाष्य (ब्रह्मा सूत्रों की समीक्षा और टिप्पणी),
-भगवद गीता भाष्य (भगवद गीता पर एक समीक्षा और टिप्पणी),
-और वेदांतपिडा, वेदांतसारा, गाडिया त्रयम (जो कि तीन ग्रंथों का संकलन है, जिन्हें सरनागती ग्यादाम, श्रीरंग गद्यम और श्रीकांत ग्रन्दाम कहा जाता है), और नित्या ग्रन्थम नामक लघु कार्य हैं।

रामानुजाचार्य की दार्शनिक नींव मोनिसम के योग्य थी, और इसे हिंदू परंपरा में विशिष्टाद्वैत कहा जाता है। उनका विचार वेदांत में तीन उप-विद्यालयों में से एक है, अन्य दो को आदी शंकर के अद्वैत (पूर्ण मोनिसम) और माधवचार्य के द्वैता (द्वैतवाद) के नाम से जाना जाता है।

रामानुजाचार्य दर्शन

रामानुजा ने स्वीकार किया कि वेद ज्ञान का एक विश्वसनीय स्रोत हैं, फिर हिन्दू दर्शन के अन्य विद्यालय, अद्वैत वेदांत सहित, सभी वैदिक ग्रंथों की व्याख्या में असफल होने के कारण, उन्होंने श्री भास्कर में कहा कि पुरव्पेक्सिन (पूर्व विद्यालय) उन उपनिषदों को चुनिंदा रूप से व्याख्या करते हैं जो उनकी नैतिक व्याख्या का समर्थन करते हैं, और उन अंशों को अनदेखा करते हैं जो बहुलवाद की व्याख्या का समर्थन करते हैं।

रामनुज ने कहा, कोई कारण नहीं है कि एक शास्त्र के एक भाग को पसंद किया जाए और अन्य को नहीं, पूरे शास्त्र को सममूल्य समझा जाना चाहिए। रामानुजाचार्य के अनुसार कोई भी, किसी भी वचन के अलग-अलग भागों की व्याख्या करने का प्रयास नहीं कर सकता है।

बल्कि, ग्रंथ को एक एकीकृत संगठित माना जाना चाहिए, एक सुसंगत सिद्धांत को व्यक्त करना चाहिए। वैदिक साहित्य, ने रामानुजाचार्य पर जोर दिया, जो बहुलता और एकता दोनों का उल्लेख करते हैं, इसीलिए इस सत्य को बहुलवाद और अद्वैतवाद या योग्यतावाद को शामिल करना चाहिए।

शास्त्रीय व्याख्या की इस पद्धति ने रामनुज को आदि शंकरा से अलग किया। शंकर की अनाव्या-व्यातिरेका के साथ समनवयित तात्पर्य लिंगा के व्यापक दृष्टिकोण में कहा गया है कि उचित रूप से सभी ग्रंथों को समझने के लिए उनकी संपूर्णता में जांच की जानी चाहिए। और फिर उनके इरादे छह विशेषताओं द्वारा स्थापित किए गए, जिसमें अध्ययन शामिल है जो लेखक द्वारा उनके लक्ष्य के लिए कहा गया है।

क्या वह अपने विवरण में दोहराता है, क्या वह निष्कर्ष के रूप में बताता है और क्या यह व्यावहारिक रूप से सत्यापित किया जा सकता है। शंकर कहते है, किसी भी पाठ में समान वजन नहीं है और कुछ विचार किसी भी विशेषज्ञ की पाठ्य गवाही का सार है।

शास्त्रीय अध्ययनों में यह दार्शनिक अंतर दर्शाया, शंकराचार्य ने यह निष्कर्ष निकाला कि उपनिषद के सिद्धांत मुख्य रूप से तात तवम सी जैसे उपनिषदों के साथ बौद्ध धर्म को पढ़ाते हैं। जबकि रामानुजाचार्य ने यह निष्कर्ष निकाला कि योग्यतावाद हिंदू आध्यात्मिकता की नींव पर है।

रामानुज जी के शिष्य

  • किदंबी आचरण
  • थिरुकुरुगाई प्रियन पिल्लान
  • दाधुर अझवान
  • मुदलीयानंदन
  • कुराथाझवान

निधन

करीब एक सहस्राब्दी के बाद से (सीए 1017-1137) से रामानुजाचार्य दक्षिणी भारत की सड़कों पर भ्रमण करते रहे। अभी तक उनके धर्मशास्त्रज्ञ, शिक्षा और दार्शनिक के विरासत रूप में जीवित है।

उनकी मृत्यु 1137, श्रीरंगम में हुइ थी।

Tale Of Two States

Chandigarh:

All of us have probably read these famous opening lines:

It was the best of times, it was the worst of times, it was the age of wisdom, it was the age of foolishness, it was the epoch of belief, it was the epoch of incredulity….

Yes, Charles Dickens and his Tale of Two Cities. So here is a story many of you might have missed. A Tale of Two States.

First the positive story.

Ravi Bharti Gupta
(Editorial Advisor)

Punjab is governed by a “opposition” party. Their CM vowed not one grain of wheat would be wasted in the Khariff crop. So Punjab and Central Govt worked in tandem to harvest the crop. You probably know Punjab contributes 35% of our wheat.

Migrant labour was missing. To compensate people under MNREGA were mobilised by Centre. Fleets of combined harvesters were mobikised and escorted in convoys from elsewhere to Punjab’s fields. FCI was mobilised. 2000 odd additional mandis were created to reduce crowding and improve social distancing. Centre controlled Paramilitary forces worked with local police to control convoys of thousands of trucks and tractors conveying wheat from fields to mandi/arat and beyond to godowns. Harvesting started on 15 Apr and is continuing. They are actually lighting up the fields at night to allow harvesting on 24×7 basis. The focus was to quickly complete harvesting and disband the workforce to reduce chances of disease spread.

Capt. Amrinder Singh CM Punjab

Net result? Last year Punjab harvested 1.3 Million Tonnes (MT) all thru April. Some more in May. This year, from 15-26 Apr i.e. in 9 days only, Punjab has harvested 2.8 MT. Stunning! Not only that, Punjab would have all time high record wheat production this year.

FCI is present at all the mandis and arats, procuring and immediately paying for the wheat as it is coming in. Putting money in the hands of the population, encouraging farmers to harvest even more quickly.

Story doesn’t end there. Punjab Govt is working with FCI and Indian Railways to simultaneously take the grain away from Punjab. Because there is no place to store all that grain in Punjab itself.

So Indian Railways have created special Annapoorna Trains. Each train is an amazing 2.4 km long, comprising 84 wagons with multiple engines and radio communication between driver and guard. Best of Ind Rail drivers and guards from the Shatbadis and Rajdhanis are operating the Annapoornas. These trains are taking all the wheat away from Punjab to FCI godowns around the country.

In April last year IR transported some 2 MT of food grains. This April they have already crossed 4 MT and April isn’t over yet.

All of the above is being managed by special teams comprising DMs + SPs + Para Military + IR + FCI under the overall supervision of MHA. Brilliant example of amazing achievement if State + Centre works together.

But this is a Tale of Two States.

See what’s happening at WB. The only topic that all 4 Bangla news channels have been covering for last 7 days is State vs Centre fights. CM’s 3 page letter, followed by Governor’s 5 page letter, followed by CM’s 7 page letter, followed by Governor’s 11 page letter. Whether Constitution is being upheld etc etc. Utter Bullshit.

Mamta Banerjee CM West Bengal

Do you find any news of how and when the Khariff crops in Bengal would be harvested? Any news of the Khariff potato, onion, rice and mustard harvesting? Any news of their sale and procurement? Any report of how to put money in the hands of the farmers? I couldn’t find any. It seems, the entire world has forgotten the Bengal farmers.

निकम्मी सरकारों से चीन को बचाने उतरे ‘रविश कुमार’

चंडीगढ़:

पत्थरबाजों को बचाना हो, टेबल पर ओसामा बिन लादेन की मूर्ती रखने वाले NDTV के कर्मचारी को बचाना हो या फिर कोरोना पर दुनिया भर से झूठ बोलने वाले और दुनिया भर में कोरोना फैलाने वाले चीन को बचाना हो, ब्रह्माण्ड के सर्वश्रेष्ठ पत्रकार मैग्सेसे विजेता रवीश कुमार हाजिर हो जाते हैं। उन्हें लगता है वो एकलौते ज्ञानी और परम सत्यवादी हैं। इसलिए पूरी दुनिया उनकी बात मान लेगी। लेकिन ऐसा है नहीं। अपनी हर कोशिश के साथ ही रवीश कुमार खुद को एक्सपोज करते जा रहे हैं। इस बार वो चीन के वकील बन कर सामने आये। चीन को बचाने की उनमे इतनी अकुलाहट थी कि दुनिया भर के सरकारों पर उंगली उठा दी। अपनी सरकार पर तो हमेशा ही उठाते हैं। सारी दुनिया की सरकारें नकारा, निकम्मी, बस एक चीन की सरकार ही सबसे मेहनती और सबसे काबिल क्योंकि रवीश कुमार जी ने खुद उसे प्रमाणपत्र दिया है।

रवीश कुमार ने NDTV के प्राइम टाइम में चीन का वकील बन कर उसे बचाने के लिए दलीलें दी और समूचे ब्रह्माण्ड पर आरोप लगाते हुए कहा कहा कि सरकारें अपनी जवाबदेही से बचना चाहती है इसलिए वो कोरोना फैलाने के पीछे चीन की थ्योरी ले कर आ रही है। मीडिया के पास खबरों का अकाल है इसलिए वो चीन की थ्योरी को बढ़ा चढ़ा कर दिखा रही है। रवीश कुमार कहना चाहते हैं कि दुनिया भर की सरकारें चीन को दु’श्मन के तौर पर आपके सामने परोस रही हैं क्योंकि वो नकारी है। निकम्मी है, निठल्ली है।

महात्मा रवीश कुमार के अनुसार दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं डूबने के कगार पर है, और इसके लिए जिम्मेदार खुद वो देश ही हैं जिनकी अर्थव्यवस्थाएं डूब रही है. रवीश कुमार चाहते हैं कि चीन पर कोई ये इलज़ाम नहीं लगाए कि उसने उसी डॉक्टर को जेल में ठूंस दिया जिसने सबसे पहले कोरोना वायरस के बारे में जानकारी दी थी, रवीश कुमार चाहते हैं कि उनके परम प्रिय और परम मित्र देश चीन को इसके लिए जिम्मेदार न ठहराया जाए कि वो दुनिया से कोरोना की जानकारी छुपा रहा था। परम सत्यवादी रवीश कुमार चाहते हैं कि उनके चहेते देश चीन पर की ये आरोप लगाए कि उसने जो रायता कोरोना के रूप में फैलाया है उससे पूरी दुनिया लॉकडाउन हो गई है, और इस वजह से दुनिया भर की अर्थव्यवस्था डूबने के कगार पर है यह अपराध किसी और यानि मोदी – ट्रम्प पर लाग्ने चाहिए।

रवीश कुमार चाहते हैं कि उनकी बात मान कर पूरी दुनिया ये भूल जाए कि किस तरह से चीन ने WHO के साथ मिलकर पूरी दुनिया को कोरोना के ख’तरे के प्रति गुमराह किया। रवीश कुमार चाहते है कि दुनिया ये भी भूल जाए कि जब कोरोना फ़ैल रहा था तो चीन ये कह रहा था कि ये इंसानों से इंसानों में नहीं फैलता। दुनिया ये भी भूल जाए कि किस तरह से चीन ने अपने यहाँ कोरोना की वजह से हुई मौ’तों का आंकड़ा छुपाया। रवीश कुमार ये भी चाहते हैं कि कोरोना की रिपोर्टिंग करने वालों को चीन ने कैसे प्रताड़ित किया लोग ये भी भूल जाएँ। पूरी दुनिया सब भूल जाए, बस याद रखे तो परम सत्यवादी और ब्रह्माण्ड के सर्वश्रेष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के ब्रह्म वाक्य।

साभार : आदर्श शर्मा

सती अनुसूया की जयंती पर विशेष

अनसूया प्रजापति कर्दम और देवहूति की 9 कन्याओं में से एक तथा अत्रि मुनि की पत्नी थीं। उनकी पति-भक्ति अर्थात सतीत्व का तेज इतना अधिक था के उसके कारण आकाशमार्ग से जाते देवों को उसके प्रताप का अनुभव होता था। इसी कारण उन्हें ‘सती अनसूया’ भी कहा जाता है। सती अनसूया ने राम, सीता और लक्ष्मण का अपने आश्रम में स्वागत किया था। उन्होंने सीता को उपदेश दिया था और उन्हें अखंड सौंदर्य की एक ओषधि भी दी थी। सतियों में उनकी गणना सबसे पहले होती है।

बाल रूप में त्रिदेवों पर अपना ममत्व उंढेलतीं माता अनुसूया

अत्रि ऋषि की पत्नी और सती अनुसूया की कथा से अधिकांश धर्मालु परिचित हैं। उन की पति भक्ति की लोक प्रचलित और पौराणिक कथा है। जिसमें त्रिदेव ने उनकी परीक्षा लेने की सोची और बन गए नन्हे शिशु

एक बार नारदजी विचरण कर रहे थे तभ तीनों देवियां मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां पार्वती को परस्पर विमर्श करते देखा। तीनों देवियां अपने स तीत्व और पवित्रता की चर्चा कर रही थी। नारद जी उनके पास पहुंचे और उन्हें अत्रि महामुनि की पत्नी अनुसूया के असाधारण पातिव्रत्य के बारे में बताया। नारद जी बोले उनके समान पवित्र और पतिव्रता तीनों लोकों में नहीं है। तीनों देवियों को मन में अनुसूया के प्रति ईर्ष्या होने लगी। तीनों देवियों ने सती अनसूया के पातिव्रत्य की परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को कहा, तीनों ने उन्हें बहुत समझाया पर पर वे राजी नहीं हुई।

इस विशेष आग्रह पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सती अनसूया के सतित्व और ब्रह्मशक्ति परखने की सोची। जब अत्रि ऋषि आश्रम से कहीं बाहर गए थे तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ने यतियों का भेष धारण किया और अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचे तथा भिक्षा मांगने लगे।

अतिथि-सत्कार की परंपरा के चलते सती अनुसूया ने त्रिमूर्तियों का उचित रूप से स्वागत कर उन्हें खाने के लिए निमंत्रित किया।

लेकिन यतियों के भेष में त्रिमूर्तियों ने एक स्वर में कहा, ‘हे साध्वी, हमारा एक नियम है कि जब तुम निर्वस्त्र होकर भोजन परोसोगी, तभी हम भोजन करेंगे।’ 

अनसूया अस मंजस में पड़ गई कि इससे तो उनके पातिव्रत्य के खंडित होने का संकट है। उन्होंने मन ही मन ऋषि अत्रि का स्मरण किया। दिव्य शक्ति से उन्होंने जाना कि यह तो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। 

मुस्कुराते हुए माता अनुसूया बोली ‘जैसी आपकी इच्छा’, तीनों यतियों पर जल छिड़क कर उन्हें तीन प्यारे शिशुओं के रूप में बदल दिया। सुंदर शिशु देख कर माता अनुसूया के हृदय में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा। शिशुओं को स्तनपान कराया, दूध-भात खिलाया, गोद में सुलाया। तीनों गहरी नींद में सो गए।

अनसूया माता ने तीनों को झूले में सुलाकर कहा- ‘तीनों लोकों पर शासन करने वाले त्रिमूर्ति मेरे शिशु बन गए, मेरे भाग्य को क्या कहा जाए। फिर वह मधुर कंठ से लोरी गाने लगी। उसी समय कहीं से एक सफेद बैल आश्रम में पहुंचा, एक विशाल गरुड़ पंख फड़फड़ाते हुए आश्रम पर उड़ने लगा और एक राजहंस कमल को चोंच में लिए हुए आया और आकर द्वार पर उतर गया। यह नजारा देखकर नारद, लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती आ पहुंचे।

 नारद ने विनयपूर्वक अनसूया से कहा, ‘माते, अपने पतियों से संबंधित प्राणियों को आपके द्वार पर देखकर यह तीनों देवियां यहां पर आ गई हैं। यह अपने पतियों को ढूंढ रही थी। इनके पतियों को कृपया इन्हें सौंप दीजिए।’ 

अनसूया ने तीनों देवियों को प्रणाम करके कहा, ‘माताओं, झूलों में सोने वाले शिशु अगर आपके पति हैं तो इन्हें आप ले जा सकती हैं।’ लेकिन जब तीनों देवियों ने तीनों शिशुओं को देखा तो एक समान लगने वाले तीनों शिशु गहरी निद्रा में सो रहे थे। इस पर लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती भ्रमित होने लगीं। 

नारद ने उनकी स्थिति जानकर उनसे पूछा- ‘आप क्या अपने पति को पहचान नहीं सकतीं? जल्दी से अपने-अपने पति को गोद में उठा लीजिए।’ देवियों ने जल्दी में एक-एक शिशु को उठा लिया। वे शिशु एक साथ त्रिमूर्तियों के रूप में खड़े हो गए। तब उन्हें मालूम हुआ कि सरस्वती ने शिवजी को, लक्ष्मी ने ब्रह्मा को और पार्वती ने विष्णु को उठा लिया है। तीनों देवियां शर्मिंदा होकर दूर जा खड़ी हो गईं। ती नों देवियों ने माता अनुसूया से क्षमा याचना की और यह सच भी बताया कि उन्होंने ही परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को बाध्य किया था। फिर प्रार्थना की कि उनके पति को पुन: अपने स्वरूप में ले आए। 

तीनों देवियों को उनए पतियों से मिलवाती हुईं सती अनुसूया

माता अनसूया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया। तीनों देव सती अनसूया से प्रसन्न हो बोले, देवी ! वरदान मांगो। त्रिदेव की बात सुन अनसूया बोलीः- “प्रभु ! आप तीनों मेरी कोख से जन्म लें ये वरदान चाहिए।

तभी से वह मां सती अनुसूया के नाम से प्रख्यात हुई तथा कालान्तर में भगवान दतात्रेय रूप में भगवान विष्णु का, चन्द्रमा के रूप में ब्रह्मा का तथा दुर्वासा के रूप में भगवान शिव का जन्म माता अनुसूया के गर्भ से हुआ। मतांतर से ब्रह्मा के अंश से चंद्र, विष्णु के अंश से दत्त तथा शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म हुआ। 

कामदा एकादशी: जानें कथा और परिणाम

संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है. इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है. यह एकादशी चैत्र नवरात्र और रामनवमी के बाद आती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल मार्च या अप्रैल महीने में मनाई जाती है. इस बार कामदा एकादशी 4 अप्रैल को है. 

चंडीगढ़:

तिथियों में एकादशी स्वयं में विष्णु स्वरूप है, इसलिए श्रीहरि को एकादशी तिथि अति प्रिय भी है. शनिवार को श्रीहरि पूजा व व्रत विधान में कामदा एकादशी का व्रत किया जाएगा. चैत्र शुक्ल एकादशी को आने वाला यह व्रत कामनाओं की पूर्ति का सरल माध्यम है.

सिर्फ कामनाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि सिद्धि प्राप्त करने वाले साधक मोह उत्पन्न करने वाली कामनाओं के नाश के लिए भी इस व्रत को करते हैं. इससे भी अधिक यह व्रत पुण्य फलों को प्रदान करने वाला है. इसका प्रताप इतना अधिक है कि जीव राक्षस योनि से भी मुक्त हो जाता है. 

पापनाशक है यह व्रत

कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्‍णु की पूजा का विधान है. मान्‍यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से व्‍यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है. हिन्‍दू पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार इस व्रत को विधिपूर्वक करने से राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है.

कहते हैं कि संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है. इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है. यह एकादशी चैत्र नवरात्र और रामनवमी के बाद आती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल मार्च या अप्रैल महीने में मनाई जाती है. इस बार कामदा एकादशी 4 अप्रैल को है. 

कामदा एकादशी का महत्‍व 

सनातन परंपरा में प्रत्येक एकादशी का अपना अलग महत्व है. कामदा एकादशी वर्षभर के एकादशी व्रतों की शुरुआत है. यह वह समय होता है जब नवान्न घर में आ जाता है और प्रकृति धीरे-धीरे शीतलता से ऊष्णता की ओर बढ़ रही होती है. इसलिए इस व्रत को करने से आहार चक्र भी संतुलित होता है.

यह इसका वैज्ञानिक महत्व है. आध्यात्मिक महत्व देखें तो व्‍यक्ति को सभी संकटों और पापों से मुक्ति मिल जाती है. यही नहीं यह एकादशी सर्वकार्य सिद्धि और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है. 

क्लेश-उपद्रव का करता है नाश

मान्‍यता है कि सुहागिन महिलाएं अगर इस एकादशी का व्रत रखें तो उन्‍हें अखंड सौभाग्‍य का वरदान मिलता है. कुंवारी कन्‍याओं की विवाह में आ रही बाधा दूर होती है. घर में अगर क्‍लेश है तो वो भी इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से दूर हो जाता है. इस व्रत को करने से घर में सुख-संपन्नता और प्रसन्‍नता आती है.

ऐसे करें पूजन

एकादशी तिथि को तड़के सुबह उठकर तीर्थ में स्नान करें. अथवा जल में गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है. नहाने के बाद घर के मंदिर में श्री हरि विष्‍णु की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं और व्रत का संकल्‍प लें. अब भगवान विष्णु का फल, फूल, दूध, पंचामृत और तिल से पूजन करें.

श्रीहरि पूजा में तुलसी दल अवश्‍य रखें. इसके बाद सत्‍य नारायण की कथा का पाठ करें. अब श्रीहरि की आरती उतारकर उन्‍हें भोग लगाएं. एकादशी व्रत के दिन अनाज नहीं खाना चाहिए. अगले दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद पारण करें. 

यह है इस व्रत की कथा

पौराणिक काल में भोगीपुर नाम के नगर में राजा पुंडरीक का राज्य था. उनका राज्य हर प्रकार से सुखी था और सामान्य जनों के साथ, नाग, गंधर्व, किन्नर यक्ष आदि भी निवास करते थे. इसी राज्य में दो गंधर्व ललित और ललिता भी रहते थे. इस दंपती के कंठ में सरस्वती के सुर बसते थे.

एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे पत्नी ललिता की याद आ गई. इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे. इस त्रुटि को कर्कट नाम के नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी. राजा को बड़ा क्रोध आया और ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया. 

ऐेसे मिली श्राप से मुक्ति

ललिता को जब यह पता चला तो उसे अत्यंत खेद हुआ. वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जाकर प्रार्थना करने लगी. श्रृंगी ऋषि बोले, ‘हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है. कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को देने से वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा.

ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी व्रत का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ.

निज़ामुद्दीन के दोषियों पर क्यों न लगे रसुका

अगर दिल्ली पुलिस ने समय समय पर मुख्यमंत्री को राज्य कि कानून व्यवस्था और निज़ामुद्दीन में जमावड़े के बारे में आगाह किया था फिर भी केजरीवाल ने अपने न में रुईं ठूंस ली और परिणाम स्वरूप संक्रमण फ़ेल गया तो क्यों न रासुका के तहत मामला दर्ज़ कर के मुख्यमंत्री को निजी तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाये।

दिल्ली स्थित निज़ामुद्दीन कोरोना महामारी के नए स्रोत के रूप में सामने आया है। जब भारत प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रव्यापी आव्हान पर 21 दिनों के लॉकडाउन में स्वयं को सुरक्षित महसूस करने लगा तब अचानक ही केजरीवाल की नाक के ठीक नीचे तबलीगी मरकज़ में हजारों की गिनती में मोलवी इकट्ठे हुए, देश विदेश से आए मौलवियों ने इस संकट की इस घड़ी में जब पूरे भारत में कर्फ़्यू से हालात हैं तब केंद्र सरकार के स्वास्थ्य जनित प्रयासों में सेंघमारी कि है। इस सबके कसूरवार स्थानीय विधायक और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार और उनकी लीडरशिप है, जिन्होंने आज देश को एक भयानक स्थिति में खड़ा कर दिया है । आम आदमी पार्टी की लीडरशिप ने अपने वोट बैंक की खातिर मजहबी कट्टरता को फलने फूलने दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करने से कई दिनों पहले तक दिल्ली लॉकडाउन की स्थिति से गुज़र रही थी। जहां 50 से ज़्यादा लोगों के किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में जुटने की आज्ञा नहीं थी, फिर भी दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीगी जमात कार्यक्रम के लिए 3400 से अधिक लोग एकत्रित हुए थे।

निजामुद्दीन में धार्मिक आयोजन में भाग लेने के बाद तेलंगाना में छह लोगों की मौत हो गई है, जबकि महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हुई कुछ मौतों के भी इस घटना के लिंक हो सकते हैं।

यहाँ बताया गया है कि मरकज़ ने सरकारी तालाबंदी के आदेशों को कैसे ठुकरा दिया:

13 मार्च: निजामुद्दीन मार्काज़ में 3400 लोग एक धार्मिक सभा के भाग के रूप में एकत्रित हुए।

16 मार्च: दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की कि दिल्ली में 31 मार्च तक 50 से अधिक लोगों के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक जमावड़े की अनुमति नहीं है। निजामुद्दीन मरकज में लोग अब भी डेरा डाले रहते रहे।

20 मार्च: 10 इंडोनेशियाई जो दिल्ली में सभा में शामिल हुए, उन्होंने तेलंगाना में जांच में संक्रामण से ग्रसित पाया गया।

22 मार्च: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आव्हान पर पूरे देश में ए दिन का जनता कर्फ़्यू मनाया जाता है, सारे राष्ट्र में कहीं पर भी सार्वजनिक सभा की अनुमति नहीं दी जा सकती थी।

23 मार्च: 1500 लोगों ने मरकज को खाली किया।

24 मार्च: पीएम मोदी ने 21 दिनों के लिए देशव्यापी तालाबंदी की घोषणा की। कोई भी सार्वजनिक सभा, किसी भी प्रकार के गैर-जरूरी आंदोलन के बाहर निवास की अनुमति नहीं है। केवल आवश्यक सेवाओं को कार्यात्मक बने रहने की अनुमति है।

24 मार्च: निजामुद्दीन पुलिस ने मार्कज में शेष लोगों को क्षेत्र खाली करने के लिए कहा।

25 मार्च: करीब 1000 लोग अभी भी लॉकडाउन के आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं। एक मेडिकल टीम मरकज़ का दौरा करती है और संदिग्ध मामलों को इमारत के भीतर एक हॉल में अलग कर दिया जाता है। जमात के अधिकारी एसडीएम के दफ्तर जाते हैं। खाली करने की अनुमति के लिए एक आवेदन दायर करें। पास की तलाश के लिए वाहनों की सूची भी दी गई।

26 मार्च: दिल्ली में सभा में भाग लेने वाले एक भारतीय उपदेशक का सकारात्मक परीक्षण किया गया और उसकी श्रीनगर में मृत्यु हो गई।

26 मार्च: एसडीएम ने मार्काज का दौरा किया और जमात के अधिकारियों को जिलाधिकारी के साथ बैठक के लिए बुलाया।

27 मार्च: छह कोरोनावायरस संदिग्धों को मेडिकल चेकअप के लिए मार्काज़ से ले जाया गया और बाद में उन्हें झज्जर, हरियाणा में एक संगरोध सुविधा में रखा गया।

28 मार्च: एसडीएम के साथ एक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीम मरकज का दौरा करेगी। दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर अस्पताल में 33 लोगों को मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया गया।

28 मार्च: एसीपी, लाजपत नगर, मार्कज को तुरंत खाली करने का नोटिस भेजता है।

29 मार्च: मार्काज़ अधिकारियों ने एसीपी के पत्र का जवाब देते हुए कहा कि किसी भी नए लोगों को देशव्यापी तालाबंदी की घोषणा करने की अनुमति नहीं है। वर्तमान सभा तालाबंदी से बहुत पहले शुरू हो गई थी और यह कि पीएम ने अपने भाषण में कहा था, जो कह रहे हैं, जहां भी रहो (जहां भी रहो)।

29 मार्च की रात: पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारी मार्काज़ से लोगों को निकालना शुरू करते हैं और उन्हें अस्पतालों और संगरोध सुविधाओं में भेजते हैं।

दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने मस्जिद कमेटी को दो नोटिस भेजे थे, लेकिन उन्होंने अभी भी अपना रास्ता नहीं छोड़ा। 23 मार्च और 28 मार्च को नोटिस भेजे गए थे।

सूत्रों ने कहा, 23 मार्च को, लगभग 1500 लोगों को मार्काज़ से उनके संबंधित राज्यों में भेजा गया था। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि उनमें से कितने कोरोनोवायरस सकारात्मक थे। मस्जिद समिति ने कहा कि उन्होंने 23 मार्च को पुलिस को पत्र लिखकर वाहनों की अनुमति मांगी ताकि लोगों को भेजा जा सके।

मरकज़ मस्जिद की ओर से मौलाना यूसुफ की ओर से लाजपत नगर एसीपी अतुल कुमार को संबोधित एक पत्र में कहा गया है कि कोई नई प्रविष्टि नहीं दी गई थी और जगह को खाली करने के प्रयास किए जा रहे थे, लेकिन जनता कर्फ्यू के बाद तालाबंदी के आदेश दिए गए।

पत्र में उल्लेख किया गया है कि दिल्ली सरकार को निजामुद्दीन में व्याप्त स्थिति के बारे में पता था।

इस संकट की घड़ी में जनप्रतिनिधि भी बनें सहारा

रवि भारती गुप्ता
संपादकीय सलाहकार

क्या आप जानते हैं?
देश मे 545 साँसद, 245 राज्यसभा सांसद व 4120 विधायक है। कुल मिलाकर 4910 जनप्रतिनिधि।

अगर यह सारे जनप्रतिनिधि मिलकर अपने व्यक्तिगत खातों मे से 2-2 लाख ₹ भारत सरकार को दे। जो इतनी बड़ी रकम भी नही है इन जनप्रतिनिधियों के लिए। तो भारत देश को कोरोना महामारी से लड़ने के लिए 98,20,00,000 लाख ( 98 करोड़ 20 लाख ) रुपये इकट्ठे हो सकते हैं।

क्यों हर बार देश का मध्यम वर्गीय परिवार के लोगों से ही देश की मदद की अपील की जाती है? क्या इन राजनेताओं की कोई जिम्मेदारी और जवाबदेही नही है भारत देश के जनता के प्रति?

आखिर क्यों यह माननीय साँसद और विधायक अपनी अपनी साँसद और विधायक निधि के पैसों को ही खर्च कर ही देश के सच्चे जनप्रतिनिधि होने का प्रमाण प्रस्तुत कर अपने कर्तव्य से पल्ला झाड़ लेते है? जबकि वो पैसा जनता द्वारा ही सरकार को टैक्स के रूप मे देश को चलाने और विकास के लिए दिया जाता है।

क्या अपने जनप्रतिनिधियों से हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी यह अपील नही कर सकते देशहित के लिए?

इसलिए हमारी अपने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से प्रार्थना है कि वो भारत देश के इन माननीय जनप्रतिनिधियों से यह अपील करें की वो अपने व्यक्तिगत खातों से 2-2 लाख रुपये देश की सेवा के लिए दान करे।

जिससे देश की जनता को इस विपत्ति के समय में आर्थिक व स्वास्थ्य कार्यों के लिये पैसों का इंतजाम हो सके।

चीनी वॉर का तीसरा चरण “अब कोरोना नहीं वामपंथी स्लीपर सेल सक्रिय हो चुका है”

अब कोरोना नहीं वामपंथी स्लीपर सेल सक्रिय हो चुका है।
इन्होंने ही अफवाह फैलाई कि लोकडाउन 3 से 6 माह चल सकता है। मजदूरों का पलायन और उस पर टीवी चैनल्स के समाचार, गरीबों की चिंता, भूख का व्यापार…
केजरीवाल ने दिल्ली दंगों की ही तरह लम्बी ओढ़ ली है। पर्दे के पीछे टुकड़े गैंग सक्रिय हैं।
बसों में भरकर मजदूर यूपी बॉर्डर पर छोड़े जा रहे हैं।
मित्र पुष्पेंद्र सिंह लिखते हैं।
,,,6 हफ्ते गुजर गए,,,
800 के आस-पास कोरोना संक्रमित,,, लगभग 20 की मौत उसमें भी 80% की मुख्य वजह कोरोना नहीं,,,ऊपर से 135 करोड़ की आबादी का देश,,,
ये तो चीन निर्मित “बायलोजिकल हथियार” की घोर बेइज्जती थी देवभूमि भारत में,,
जहाँ एक तरफ कुछ दिनों तक चीनी वायरस चीनी वायरस चिल्लाने वाला सुपर पावर अमेरिका सरेंडर कर शैतान जिंगपिंग की तारीफ़ पर उतर आया तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना के कहर के कराह रहा पूरा यूरोप भारी खरीददारी कर रहा था चीन से,,,
परंतु ये क्या,,,
दुनिया की सबसे बड़ी मार्केट घांस नहीं डाल रही थी,,, शैतान चीन के माथे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट दिखने लगीं,,, उसे लगा कि उसका मिशन सिंहासन (((कोरोना))) तो फेल ही हो जायेगा यदि भारत उसकी शरण में नहीं आया तो,,,
वहीं दूसरे ही स्टेज में एक दिन का जनता कर्फ्यू फिर 21 दिनों का लाकडाऊन कर पूरा देश अपने नायक के पीछे चल रहा था,,,
अतंत: चालाक चीन ने अपना आखिरी पासा फेंका,,, और भारत की सबसे कमजोर नस को दबा दिया,,,
जी हां,,,
उसने खोला अपने खजाने का मुंह और खरीद लिया देश के कुछ बड़े देशद्रोही पत्तलकारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ चैनलों को,,,
जगा दिया वामपंथ के स्लीपर सेल्स को,,,पहले 21 दिनों तक गरीब दिहाड़ी मजदूर कैसे रहेंगे,,,का रोना रोया जाना शुरू किया गया फिर एक-दो परिवारों की पैदल यात्रा का 24 घंटे एैसे कवरेज किया जाने लगा कि जैसे पूरा देश ही पैदल चल पड़ा,,,
फिर धर्म के नाम पर एक संप्रदाय विशेष को मोर्चे पर लगा दिया गया,,, अब ये चाल सफल होती दिख रही है,,, कुछ झूठे नक्सली नेता आम मजदूरों को भड़का कर की 6 महीने का कर्फ्यू लगने वाला है ,,,बसों से दूसरे प्रदेश की सीमाओं तक लाखों मजदूरों को छोड़ने लगे,,,और सफल कर दिया शैतान की चालों को,,,
देश को बैठा दिया जाग्रित ज्वालामुखी के मुहाने पर,,,
वहीं पैदल मार्च करने वालों के लिए कुछ लोगों की छाती में दूध उतर आया जो सोशल मीडिया पर सिर्फ विरोध के नाम पर विरोध करते रहते हैं,,,
जब देश युद्ध या किसी बड़े संकट में फंसता है तो हर नागरिक युद्ध का हिस्सा होता है,,, हर नागरिक को परेशानी उठानी पड़ती है,,, हर नागरिक को त्याग करना पड़ता है,,, युद्ध सिर्फ सेनायें ही नहीं लड़ती हैं,,,
परंतु गद्दारों और बिकाऊ लोगों की प्रचुर उत्पादकता से गमगीन ये देश एैसी परिस्थिति का हर समय से ही सामना करता आया है,,,
सुनों हम फिर भी जीत जायेंगे,,,हमने विश्व विजेता सिकंदर को उल्टे पांव वापस किया है,,,हम शैतान चीन की हर चाल का जबाब देंगे वो भी भरपूर,,,
परंतु देश के अंदर ही कुछ लोग और संस्थायें एक बार फिर सड़कों पर नंगी हो रही हैं जिन्हें देखना और सुनना बहुत कष्टदायक है,,,!!!

हे_राम