भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर पाएं पुण्य – लाभ : पंडित पूरन जोशी 

इस व्रत के प्रभाव से अश्वमेघ यज्ञ करने का मिलता है पुण्य

रघुनंदन पराशर, डेमोक्रेटिक फ्रंट, जैतो – 05 दिसम्बर  :

उत्पन्ना एकादशी 8 दिसंबर शुक्रवार को मनाई जाएगी। उत्पन्ना एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को एकादशी प्रकट हुई थी। इसलिए  इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा है। 8 दिसंबर शुक्रवार कोप्रातः-5-07 बजे एकादशी तिथि शुरु होगी।  जो अगले दिन सुबह 6ः32 बजे तक रहेगी। इस व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह जानकारी सनातन धर्म प्रचारक प्रसिद्ध विद्वान ब्रह्मऋषि पंडित पूरन चंद्र जोशी ने उत्पन्ना एकादशी पर प्रकाश डालते हुए विशेष रुप से दी। उन्होंने बताया कि इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ,कठिन तपस्या,तीर्थ स्नान आदि करने के बराबर फल प्राप्त होते हैं। इस व्रत से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

उत्पन्ना एकादशी व्रत दशमी तिथि से प्रारंभ हो  जाता है। इस दिन ही भगवान विष्णु ने देवी एकादशी के रूप में उत्पन्न हुए और मुर नामके राक्षस का वध किया था। इसी के कारण इसे उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। जिसे वर्ष की सभी एकादशियों का व्रत शुरू करना होता है,उसे उत्पन्ना एकादशी से ही व्रत शुरू करना चाहिए।  दशमी को सात्विक भोजन करें । इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करते हुए पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। विघ्नहर्ता भगवान गणेश और भगवान श्री विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर सामने रखें। सबसे पहले भगवान गणेश जी का ध्यान करें। इसके बाद विष्णु जी को धूप-दीप दिखाकर रोली और अक्षत चढ़ाएं। एकादशी के दिन सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त दिन में दो बार भगवान विष्णु जी का पूजन करें।

व्रत एकदाशी के अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना चाहिए । एकादशी के दिन चावल के सेवन से परहेज करें। इस दिन गरीब और जरूरतमंदों को यथाशक्ति दान देना चाहिए। सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र,आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया। तब इंद्र सहित सभी,देवता भयभीत होकर क्षीरसागर में पहुंचे। वहां भगवान श्री विष्णु जी को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे- ” हे  देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं| ” इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे- “हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताओं को जीत लिया है। तब इंद्र बोले- “भगवन्! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था,उसके महापराक्रमी  मुर नाम का एक पुत्र हुआ। उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है। उसी ने सब देवताओं को स्वर्ग से निकालकर वहां अपना अधिकार जमा लिया है। वह सबसे अजेय है। हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए|” यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- “हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा| तुम चंद्रावती नगरी जाओ|” इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया|  जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र,आयुध लेकर दौड़े| भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बांणों से बींध डाला| बहुत से दैत्य मारे गए| केवल मुर बचा रहा| वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा| भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता| उसका शरीर छिन्न-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा| 10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा| थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए| वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए| यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था| विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए| मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई| देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया| श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है,अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी।