हमने लोकतंत्र के लिए अपना प्रधानमंत्री चुना है, कोई कठपुतली नहीं
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी के नुक्कड़छाप भाषण के बाद जो हुआ, वह लोकतंत्र को कलंकित करने वाला है! यह तो हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करना चाहिए कि उन्होंने प्रधानमंत्री पद के रुतबे को झुकने नहीं दिया, अन्यथा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो पूरी कोशिश की थी कि उन्हें अपने इशारे पर सीट से उठाकर देश को यह संदेश दे कि प्रधानमंत्री कोई भी बन जाए, आदेश तो गांधी परिवार का ही चलेगा! लोकतंत्र के चुने हुए प्रधानमंत्री ने राजतंत्र के अहंकारी युवराज को झुका दिया!
झूठ के आधार पर गढ़े हुए अपने भाषण के बाद राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर बढ़े, इसे सभी ने लोकसभा चैनल पर देखा। लेकिन जनता और तथाकथित मीडिया बुद्धिजीवियों ने एक बार नोट नहीं किया, या फिर जानबूझ कर उसकी उपेक्षा की। वह एक क्षण था, जिसने साफ-साफ लोकतंत्र और राजतंत्र की मानसिकता के बीच के अंतर को स्पष्ट कर दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास पहुंच कर राहुल गांधी ने हाथ से बार-बार इशारा कर उन्हें अपनी सीट से उठने को कहा। एक नहीं, दो नहीं, तीन बार उन्होंने हाथ दिखाकर प्रधानमंत्री को अपनी सीट से उठने को कहा! आश्चर्य कि किसी ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया? प्रधानमंत्री पद इस लोकतंत्र का सबसे बड़ा पद है। राजसत्ता की मानसिकता वाला कोई गांधी इसका अपमान नहीं कर सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जिस तरह से सोनिया-राहुल उठ-बैठ कराते थे, वही कोशिश राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी से कराना चाहा, लेकिन यह मोदी हैं, जिन्होंने सदन में प्रवेश करने के बाद उसे लोकतंत्र का मंदिर कहा था, उसकी चौखट को चूमा था।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी इशारा किया कि किसलिए उठूं? और क्यों उठूं? मोदी के चेहरे पर उस वक्त की कठोरता नोट करने लायक थी और वह कठोरता प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बनाए रखने के कारण उत्पन्न हुई थी। राहुल को समझ में आ गया कि यह व्यक्ति मनमोहन सिंह नहीं है जो उसके कहने पर किसी ‘नट’ की तरह नाचे। थक-हार कर राहुल गांधी झुका और जबरदस्ती पीएम मोदी के गले पड़ गया। इसके बाद फिर वह अहंकार पीछे मुड़ कर चलने लगा। गले मिलना उसे कहते हैं, जिसमें सदाशयता हो, उसे नहीं, जिसमें अहंकार हो। अहंकार से गले मिलने को गले पड़ना कहते हैं। राहुल गांधी पीएम से गले नहीं मिला, बल्कि उनक गले पड़ा!
पीएम के गले पड़कर वह मुड़ा और जाने लगा। पीएम मोदी ने उसे आवाज देकर बुलाया और सीट पर बैठे-बैठे ही उससे हाथ मिलाया, मुस्कुराए, उसकी पीठ ठोंकी, उसे शाबासी दी! बिल्कुल एक अभिभावक की तरह!
राहुल गांधी पीएम मोदी से गले मिलने नहीं, बल्कि वह गले पड़ने गया था। उन्हें आदेश देकर अपनी सीट से उठने के लिए कहने गया था। मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी के अलावा खुद भाजपा का भी कोई दूसरा नेता होता तो गांधी परिवार के इस अहंकार उद्दंड राजनेता के कहने पर उठ कर खड़ा हो गया होता! देखा नहीं आपने, जब राहुल गांधी पीएम मोदी के पास आए तो पिछली सीट पर बैठे कितने ही सारे भाजपाई नेता उठ कर खड़े हो गये थे, ताली बजा रहे थे! दरअसल यह सब पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर जीत कर आए हैं, लेकिन बीमारी तो वही कांग्रेस वाली लगी है, किसी वंश या परिवार के चाकरी की!
इस मामले को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी नोट किया कि राहुल गांधी ने सदन और प्रधानमंत्री पद की गरिमा का हनन करने का प्रयास किया है। सुमित्रा महाजन ने बाद में सदन में कहा, “जिस तरह राहुल गांधी प्रधानमंत्री के पास पहुंचे, उन्हें उठने को कहा, वह अशोभनीय था। प्रधानमंत्री अपनी सीट पर बैठे थे। वह कोई नरेंद्र मोदी नहीं हैं, बल्कि देश के प्रधानमंत्री हैं। उस पद की अपनी गरिमा है। इसके बाद राहुल उनके पास से जाकर अपनी सीट पर फिर से भाषण देने लगे और आंख मारा, यह पूरे सदन की गरिमा के खिलाफ था।”
अपने अध्यक्ष की अशोभनीय आचरण को ढंकने के लिए एक गुलाम की भांति कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा अध्यक्ष के कहे पर आपत्ति दर्ज कराना चाहा। इस पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा, “मैं किसी को गले मिलने से थोड़े न रोक रहीं हूं। मैं भी एक मां हूं। मेरे लिए तो राहुल एक बेटे के समान ही हैं। लेकिन एक मां के नाते उसकी कमजोरियों को ठीक करना भी मेरा दायित्व है। सदन की गरिमा को हम सबको ही बनाए रखनी है।”
इसके उपरांत गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने थोड़ा दार्शनिक अंदाज में राहुल की हरकतों पर कटाक्ष कहते हुए कहा, “जिसकी आत्मा संशय में घिर जाती है, उसके अंदर अहंकार पैदा हो जाता है। यही आज सदन में देखने को मिला है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यह लोकतंत्र आपका आभारी है कि आप अपनी सीट पर बैठे रहे। यह हमारे वोट का सम्मान है। हमने लोकतंत्र के लिए अपना प्रधानमंत्री चुना है, कोई कठपुतली नहीं।
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