कृषि कानून भारतीय जनता पार्टी के गले की फांस बनने जा रहे हैं : कुलदीप बिश्नोई
पचकुलां 29 सितंबर :
कांग्रेस केन्द्रीय कार्यसमिति सदस्य कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा हाल ही में तीन किसान विरोधी बिल काले कानून बनाए गए हैं, इनके खिलाफ देश के किसानों में जो रोष की लहर व्याप्त है और आने वाले समय में यही कानून भारतीय जनता पार्टी के गले की फांस बनने जा रही है। जिन किसान विरोधी कानूनों को लोकतंत्र की सभी स्थापित मान्यताओं को धता दिखाकर पास किया गया है, उससे किसानों के लिए गुलामी का रास्ता प्रशस्त कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि जिन किसानों को कांग्रेस पार्टी ने साहूकारों के चंगुल से मुक्त करवाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और जमाखोरों के खिलाफ सन् 1955 में कानून पास किया गया था। उनको समाप्त करके किसानों की बर्बादी की दास्तान की स्क्रिप्ट लिख दी गई है। उन्होंने भाजपा पर देश की मण्डियों को समाप्त करने का आरोप लगाते हुए कहा कि केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 12 नवंबर 2019 को कहा था कि अब एपीएमसी यानी मंडियों को खत्म कर दिया जाना चाहिए। यही कारण है कि मंण्डियों के विकास के लिए निर्धारित बजट लगातार कम किया जा रहा है। वर्ष 2018 में मण्डियों के विकास के लिए 1050 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए थे। यह 2019 में घटाकर 600 करोड़ रुपए कर दिया गया है ,जो कि आधा कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी विडम्बना यही है कि भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने किसानों को तो छोडि़ए अपने नेताओं को भी विश्वास में नहीं लिया।
बिश्नोई ने कहा कि कांग्रेस पार्टी इन काले कानूनों को वापिस होने तक अपना संघर्ष जारी रखेगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और किसानों के मसीहा लाल बहादुर शास्त्री की जयंती के अवसर पर सारे देश में जनजागरण अभियान चलाया जाएगा ?। आज देश का किसान अपने आप को ठगा ठगा सा महसूस कर रहा है। भाजपा नेतृत्व कारपोरेट घरानों के दबाव में आकर किसानों को दिग्भ्रमित करने का कुत्सित प्रयास कर रहा है। केन्द्र सरकार को किसानों की चिंता नहीं है, उन्हें तो चिंता है अपने कारपोरेट घरानों के हितों की। इन कानूनों के माध्यम से किसानों को बंधुआ मजदूर बना कर गुलाम बनाने की कोशिश के साथ साथ न्यायालय में जाने के अधिकार से भी वंचित किया गया है। केंद्र सरकार से मांग की है कि किसानों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के साथ-साथ उनको कारपोरेट घरानों के खिलाफ न्यायालय में जाने के अधिकार कानून दोबारा संसद में पास किया जाए और अगर कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर फसल खरीदता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान किया जाए।
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