रघुवंश प्रसाद सिंह ने आरजेडी से इस्तीफा दे दिया, लालू ने कहीं न जाने की बात कही
आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के साथ हर वक्त साये की तरह खड़े पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल से इस्तीफा दे दिया। महज 38 शब्दों के लिखे पत्र में उन्होंने अपना पूरा दर्द बयां कर दिया। इस्तीफे का पत्र मीडिया में आते ही राजद में खलबली मच गई है। वहीं उनके बेहद खास लालू प्रसाद यादव भी बेचैन हो गए हैं। अब इसी बेचैनी को उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से व्यक्त किया है और रघुवंश प्रसाद सिंह से कहा है कि वे राजद (RJD) छोड़ कहीं नहीं जा रहे हैं।
पटना(ब्यूरो):
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन हर बदलते दिन के साथ राजनीति नई करवट लेती जा रही है। इसी क्रम में दिल्ली के एम्स में बिस्तर पर लेटे-लेटे ही पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से इस्तीफा दे दिया है।
सादे कागज पर लालू प्रसाद यादव को संबोधित इस्तीफे में उन्होंने लिखा है, “जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे-पीछे खड़ा रहा। लेकिन अब नहीं। पार्टी नेता कार्यकर्ता और आमजनों ने बड़ा स्नेह दिया। मुझे क्षमा करें।” जून में उन्होंने पार्टी उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दिया था। लेकिन उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया था और लालू ने खुद तेजस्वी यादव को रॉंची तलब कर उन्हें मनाने को कहा था।
रघुवंश प्रसाद सिंह के करीबियों ने ऑपइंडिया को बताया कि अब राजद से उनका रिश्ता टूट चुका है। पार्टी में बने रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। केंद्रीय मंत्री रहे राजद नेता जयप्रकाश नारायण यादव से जब हमने इस संबंध में सवाल किया तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।
रघुवंश प्रसाद सिंह RJD में पूर्व सांसद रामा सिंह को शामिल करने के प्रयासों को लेकर नाराज चल रहे थे। बाहुबली छवि के रामा सिंह लोकसभा चुनाव में वैशाली से रघुवंश प्रसाद सिंह को हरा भी चुके हैं। इसके अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे जगदानंद सिंह से भी वे नाराज चल रहे थे। जून में लालू को लिखे पत्र में उन्होंने पार्टी की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल भी उठाए थे।
बिहार में हर दल के अपने सामाजिक समीकरण हैं और चुनाव में मतदान उन्हीं समीकरणों के इर्द-गिर्द होता रहा है। ऐसे में सवाल है कि 74 साल के रघुवंश प्रसाद का जाना राजद के जमीनी समीकरणों को कितना प्रभावित करेगा?
रघुवंश प्रसाद सिंह के स्वजतीय राजपूत वोटर बिहार में 5 फीसदी के करीब हैं और पूरे राज्य में बिखरे हुए हैं। जब लालू ने ‘भूरा बाल साफ करो’ का नारा दिया था, उस दौर में भी राजपूत का बड़ा तबका उनके ही साथ रहा। इसकी वजह यकीनन रघुवंश प्रसाद और जगदानंद सिंह जैसे राजपूत नेता थे, जिनका सीमित क्षेत्रों में प्रभाव था। लेकिन, रघुवंश प्रसाद कभी भी बिहार के राजपूतों के एकमात्र नेता नहीं रहे।
बीजेपी के पास भी राधा मोहन सिंह और राजीव प्रताप रूडी जैसे चेहरे रहे हैं, जिनका अपने इलाके में और अपने स्वजातीय वोटरों के एक तबके पर प्रभाव है। इसके अलावा सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत को जिस तरह इस बार ‘बिहारी प्राइड’ से जोड़ा गया है, उससे भी इस वर्ग का झुकाव एनडीए की तरफ बढ़ा है।
फिर यह इस्तीफा राजद की चुनावी संभावनाओं को कैसे प्रभावित करेगा? इसका जवाब हाल ही में पटना विश्वविद्यालय के कुछ पूर्व प्राध्यापकों के बीच हुई चर्चा में छिपा है। यह चर्चा इसी विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्र और प्राध्यापक, जो कभी बीजेपी के बड़े नेता हुआ करते थे तथा चंद्रशेखर से लेकर वाजपेयी कैबिनेट तक में मंत्री रहे, की पहल पर हुई थी।
असल में राजनीति में अप्रसांगिक हो चुका यह नेता एक विजन डॉक्यूमेंट तैयार कर बिहार चुनाव के जरिए खुद के लिए संभावनाओं की पड़ताल कर रहा था। इसी क्रम में हुई चर्चा के दौरान बात 1955 में बिहार में हुए छात्र आंदोलन, जो स्वतंत्र भारत का पहला छात्र आंदोलन माना जाता है, जिसमें उस समय के प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू तक को दखल देना पड़ा था, से शुरू हुई। फिर हर दौर पर बात हुई। आखिर में ये निष्कर्ष निकला कि बिहार की राजनीति में सामाजिक समीकरणों का प्रभाव है।
एक वर्ग जो इससे अप्रभावित है, उसके लिए तमाम नाराजगी के बावजूद आज भी नीतीश कुमार ही विश्वसनीय चेहरा हैं। तेजस्वी यादव में उनकी जगह लेने की क्षमता नहीं है। सामाजिक समीकरणों को भी कमजोर करने के लिए चेहरे की जरूरत है और 15 साल बाद भी नीतीश का विकल्प नहीं है। विकल्प के बिना एनडीए की संभावनाओं को प्रभावित करना मुश्किल है। विपक्ष के पास तेजस्वी की जगह कोई ऐसा विश्वसनीय चेहरा होना चाहिए जो छवि के मामले में नीतीश कुमार पर बीस पड़े।
फिर उस नेता ने तेजस्वी से संपर्क किया। तेजस्वी ने टका सा जवाब दिया- हमको पता है कि हम हार रहे हैं, फिर भी विपक्ष का नेता तो मैं ही रहूॅंगा न।
रघुवंश प्रसाद सिंह के इस्तीफे ने विधानसभा में विपक्ष के नेता बने रहने के तेजस्वी के इस गणित को फॅंसा दिया है। तेजस्वी फिलहाल राघोपुर से विधायक हैं। यह वो सीट है, जहॉं रघुवंश प्रसाद का प्रभाव है।
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!