DDT वापिस लिया जाएगा
बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डिविडेंड डिस्ट्रीब्युशन टैक्स (DDT) को वापस लेने का ऐलान किया है. सरकार के इस फैसले से सीधे तौर पर कंपनियों से टैक्स को बोझ कम हो गया है. लेकिन दूसरी ओर शेयरधारकों पर यह बोझ बढ़ गया है. विश्लेषण के बाद पता चलता है कि सरकार के इस फैसले का सबसे अधिक लाभ विदेशों में रह रहे भारतीय लोगों को मिलेगा. निवेशकों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि जिस साल डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूट होगा या कंपनी द्वारा ऐलान किया जाएगा, उसी साल में इससे होने वाली कमाई पर टैक्स लगेगा. टैक्स का साल वही होगा, जो इन दोनों में सबसे पहले होगा.
नई दिल्ली(ब्यूरो).
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में जो सबसे बड़ा ऐलान किया गया, उसमें डिविडेंड पर टैक्स भी शामिल था. बजट में सरकार ने कहा है कि डिविडेंड डिस्ट्रीब्युशन टैक्स को वापस ले लिया जाएगा. सरकार के इस फैसले के बाद अब कंपनियों को DDT नहीं देना होगा. इसके बाद अब DDT का बोझ व्यक्तिगत शेयरधारकों पर होगा. विश्लेषण के बाद पता चलता है कि सरकार के इस फैसले का सबसे अधिक लाभ विदेशों में रह रहे भारतीय लोगों को मिलेगा.
क्या है मौजूदा नियम?
वर्तमान में अगर कोई कंपनी अपने शेयरधारकों के लिए डिविडेंड देने का ऐलान करती है तो इसके लिए उन्हें सरकार को 15 फीसदी डिविडेंड डिस्ट्रीब्युशन टैक्स और इसपर उपयुक्त सरचार्ज के साथ हेल्थ और एजुकेशन सेस देना होता है. किसी भी घरेलू कंपनी के जरिए किसी की डिविडेंड इनकम मिलती है और यह कमाई 10 लाख रुपये तक है, तो इस पर कोई टैक्स देयता नहीं बनती है. व्यक्तिगत शेयरधारक के लिए अगर यह रकम 10 लाख रुपये से अधिक की होती है तो इस पर उन्हें 10 फीसदी की दर से टैक्स देनी होती है. यह टैक्स छूट विदेशों में रहने वाले उन भारतीयों को भी मिलेगा जो व्यक्तिगत शेयरधारक के रूप में किसी घरेलू कंपनी में निवेश करते हैं.
इसी प्रकार, म्यूचुअल फंड पर यूनिट होल्डर्स को एक तय दर से टैक्स देना होता है. इससे यूनिट होल्डर्स के हाथ में मिलने वाले डिविडेंड पर कोई टैक्स नहीं देना होता है.
बजट में क्या है प्रस्ताव:
बजट 2020 के फाइनेंस बिल में दिए गए प्रस्ताव के मुताबिक अब शेयरधारकों और यूनिट होल्डर्स को डिविडेंड से होने वाली कमाई पर टैक्स देना होगा. अब घरेलू कंपनियों और म्यूचुअल फंड्स को डिविडेंड के ऐलान पर कोई टैक्स नहीं देना होगा.जिस तर्क के आधार पर इस संशोधन को प्रस्तावित किया गया, वो ये है कि विदेशी निवेशकों को अपने देशों में DDT क्रेडिट का लाभ नहीं मिल पाता था. साथ ही, उन्हें अपने इक्विटी कैपिटल पर मिलने वाले रिटर्न रेट भी कम हो जाता था. भारतीय इक्विटी मार्केट को आकर्षक बनाने और बड़े स्तर पर निवेशकों को राहत देने के लिहाज से सरकार ने फैसला किया कि डीडीटी को खत्म कर दिया जाए. सरकार के इस फैसले के मुताबिक, अब तकनीक का सहारा लेते हुए डिविडेंड लाभ पर टैक्स का बोझ व्यक्तिगत शेयरधारकों पर डाल दिया गया है.
अन्य स्त्रोत की कमाई होगा डिविडेंड इनकम
इन्वेस्टमेंट के तौर पर होल्ड किए गए डिविडेंड पर टैक्स देना होगा और इसे इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म में अन्य स्त्रोत से होने वाली कमाई के रूप में दिखाना होगा. निवेशकों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि जिस साल डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूट होगा या कंपनी द्वारा ऐलान किया जाएगा, उसी साल में इससे होने वाली कमाई पर टैक्स लगेगा. टैक्स का साल वही होगा, जो इन दोनों में सबसे पहले होगा.
टैक्स दर:
भारत में रहने वाले निवेशकों के लिए डिविडेंड पर टैक्स सरकार द्वारा तय टैक्स स्लैब के आधार पर चार्ज किया जाएगा. हालांकि, डिविडेंड से होने वाली कमाई पर बिना किसी डिडक्शन के 10 फीसदी के टैक्स के आधार पर चार्ज कर दिया जाएगा. यह टैक्स दर उन लोगों पर लागू होगा, जो किसी सरकार कंपनी या उसकी सहायक कंपनी में कर्मचारी हैं और उन्हें ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट के जरिए डिविडेंड मिलेगा. यह रिसीट एम्प्लॉई स्टॉक आप्शन स्कीम यानी ईसॉप के जरिए जारी किया होना चाहिए.
वहीं, विदेशों में रहने भारतीयों को डिविडेंड पर 20 फीसदी की दर से टैक्स देना होगा. उनके पास डिडक्शन का भी विकल्प नहीं होगा. हालांकि, अगर विदेशी कंपनी से जीडीआर के जरिए विदेशी करंसी में डिविडेंड प्राप्त होता है तो इसके लिए टैक्स दर 10 फीसदी होगा. भारत ने कई देशों के साथ डबल टैक्स एवाइडेंस अग्रीमेंट यानी डीटीएए समझौता किया है. इस समझौते के तहत टैक्सपेयर्स को एक ही इनकम पर दो बार टैक्स नहीं देना होता है.
कुल मिलाकर देखें तो DDT का बोझ कंपनियों से हटाकर शेयरधारकों के सिर पर रख दिया गया है. सरकार की इस व्यवस्था के बाद विदेशों में रहने वाले भारतीयों टैक्स देने के बाद उनके इन्वेस्टमेंट पर कुल रिटर्न बढ़ जाएगा. क्योंकि उनके देश में डिविडेंड पर टैक्स देने के बाद क्रेडिट की सुविधा मिलेगी. जबकि, दूसरी ओर भारत में रहने वाले शेयरधारकों पर टैक्स का बोझ बढ़ जाएगा. खासतौर पर इसकी मार उच्च इनकम करने वाले लोगों पर अधिक बढ़ेगी.
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