104 बच्चों की मौत पर मीडिया का मौन अखरता है
जो राजस्थान के कोटा में हुआ है, वह किसी अक्षम्य अपराध से कम नहीं है। इस पर मीडिया की खामोशी उसका एक घिनौना पक्ष भी उजागर करती है। वास्तव में मीडिया के कुछ पत्रकारों की अंतरात्मा को तभी चोट पहुंचती है जब कोई त्रासदी भाजपा प्रशासित राज्य में हुई हो, और उसमें भी जब नेता योगी आदित्यनाथ जैसा एक भगवाधारी संत हो। यदि स्थिति इसके ठीक उलट हो, तो इनके मुंह से आवाज़ तक न निकलेगी। क्या राजस्थान के बच्चे बच्चे नहीं है? क्या इनकी जान का कोई मोल नहीं?
हाल ही में राजस्थान के कोटा शहर से एक बुरी खबर सामने आई है। पिछले एक महीने में इस शहर के एक अस्पताल में लगभग 104 बच्चों की मृत्यु हो गयी है, और सरकार से लेकर अस्पताल प्रशासन सब इससे पल्ला झाड़ने में जुटे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोटा में जेके लोन अस्पताल में मृत बच्चे HIE नामक बीमारी से जूझ रहे थे, जिसमें मस्तिष्क तक ऑक्सिजन नहीं पहुँच पाता। बताया जा रहा है कि इस महीने के पहले 24 दिनों में 67 बच्चों की मौत हुई थी, और 10 अन्य बच्चों की मृत्यु को हुए अभी 48 घंटे भी नहीं बीते हैं। परंतु अस्पताल प्रशासन ने इससे पल्ला झाड़ते हुए ये कहा है कि सभी बच्चे गंभीर हालत में थे और अंत समय में अस्पताल लाये गए थे। राष्ट्रीय मृत्यु दर के हिसाब से कोटा में बच्चों का मृत्यु दर केवल 10-15 प्रतिशत है, जो चिंता का विषय बिलकुल नहीं है।
अस्पताल प्रशासन के सदस्य और बाल रोग विभाग के अध्यक्ष अमृत लाल बैरवा के अनुसार, “राष्ट्रीय एनआईसीयू रिकॉर्ड्स के अनुसार 20 प्रतिशत मृत्यु सामान्य मानी जाती है। वहीं कोटा में मृत्यु दर 10-15 प्रतिशत है, जो चिंता का विषय बिलकुल नहीं है। मरीज बूंदी, बारन, झालावाड़ और मध्य प्रदेश से भी लाये जाते हैं। हर दिन एक से तीन शिशु की मृत्यु होती है”।
परंतु वास्तविकता तो कुछ और ही बयां करती है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस अस्पताल में मृत्यु दर का स्तर बहुत ज़्यादा है। 2014 में यहाँ 1198 बालकों की मृत्यु हुई थी, और अभी केवल 24 दिसंबर तक ही यह आंकड़ा इस वर्ष 940 तक पहुँच चुका है। ऐसे में अस्पताल की सफाई उनकी अक्षमता को छुपाने का बेहद असफल प्रयास है। इतना ही नहीं, टाइम्स नाऊ के रिपोर्ट की माने तो अस्पताल में सीवर लीक होने की भी समस्या सामने आई है।
इसके अलावा ध्यान देने वाली बात तो यह है कि यह केवल एक अस्पताल का आंकड़ा है। जब से अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस ने सत्ता संभाली है, तब से राजस्थान का नाम अधिकतर गलत कारणों से चर्चा में रहता है। सोचने वाली बात है कि जब एक अस्पताल का हाल है तो राज्य भर के अस्पतालों की क्या दुर्दशा होगी?
इस मामले पर प्रकाश डालते हुए लोक सभा प्रवक्ता ओम बिड़ला ने एक के बाद एक ट्वीट डालते हुए कहा, “कोटा में 48 घंटों के भीतर 10नवजात शिशुओं की असामयिक मृत्यु निस्संदेह चिंता का विषय है। राजस्थान सरकार को इस मामले में तुरंत एक्शन लेना चाहिए”।
इतना ही नहीं, ओम बिड़ला ने मुख्यमंत्री गहलोत को लिखे एक पत्र में ये भी बताया है कि कैसे इस अहम अस्पताल में प्रशासनिक अक्षमता और जीवन रक्षक यंत्रों की कमी के कारण हर वर्ष लगभग 800 से 900 नवजात शिशु और 200 से 250 बच्चे इसकी भेंट चढ़ जाते हैं।
अब इन मामलों पर अगर ध्यान दिया जाये, तो एक बात पूरी तरह स्पष्ट सिद्ध होती है और वो यह कि कोटा के जेके लोन अस्पताल प्रशासन स्थिति को संभालने में पूरी तरह विफल रहा है, और प्रशासन की घोर लापरवाही के कारण 77 बच्चों की मृत्यु हुई है। परंतु इसके बारे में मीडिया भी दबी आवाज़ में बात कर रही है, और विडम्बना की बात तो यह है कि अभी तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस पर अपनी तरफ से जो सफाई दी वो बेहद असंवेदनशील थी।
अब याद कीजिये 2017 की उस दुर्घटना को, जब गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जापानी बुखार के कारण एक ही हफ्ते में 60 से ज़्यादा बच्चों की मृत्यु हो चुकी थी। जैसे ही यह खबर सामने आई कि बच्चों की मृत्यु ऑक्सिजन के पर्याप्त सिलिन्डर न मिल पाने के कारण हुई थी, मीडिया ने आसमान सर पर उठाते हुए कुछ ही महीनों के सीएम योगी आदित्यनाथ को निशाने पर लिया। यहां तक कि उनके इस्तीफे की मांग करने लगे। अधिकांश मीडिया वालों ने बिना ठोस आधार और प्रमाण के ही योगी आदित्यनाथ को पूरे घटनाक्रम के लिए दोषी ठहराया था।
इतना ही नहीं, सूत्रों की माने तो गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज की त्रासदी के समय मीडिया ने डॉक्टर कफील खान को मसीहा बना दिया था। हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी होने पर डॉक्टर खान ने 17 सिलिंडर अपने खर्च से मंगाए थे जिससे बच्चों की जान बचाई गयी थी। इस मामले के बाद जब खान को नोडल अधिकारी के पद से बर्खास्त कर डॉक्टर भूपेन्द्र शर्मा को नया नोडल अधिकारी बनाया गया तो मीडिया ने मौजूदा सरकार पर कई हमले किये थे और डॉक्टर कफील को सरकार के फैसले द्वारा पीड़ित के रूप में चित्रित किया गया था।
जबकि दोनों मामलों में ज़मीन आसमान का अंतर है। जापानी बुखार एक ऐसी बीमारी थी, जिसका प्रशासनिक सतर्कता के बाद भी आने का खतरा बना रहता था। जो बीआरडी कॉलेज में हुआ, वो स्थानीय प्रशासन की अक्षमता के साथ साथ कुछ लोगों के निहित स्वार्थ का भी दुष्परिणाम था, जिसे योगी सरकार से भी छुपाया गया था।
इतनी जटिल परिस्थितियों के बावजूद योगी सरकार ने जापानी बुखार जैसी घातक बीमारी को नियंत्रण में लाने में भारी सफलता दर्ज की है। वास्तव में जापानी बुखार के कुल मामलों में योगी सरकार के आने के बाद से ही भारी गिरावट भी दर्ज हुई थी, और 2018 के अंत होते होते उत्तर प्रदेश इस खतरनाक बीमारी के प्रकोप से मुक्त भी हुआ थ
योगी सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सफलता अब धीरे धीरे सामने भी आ रही है। 2018 में अगस्त तक 1427 मामले सामने आए हैं, जिसमें केवल 117 मृत्यु हुई हैं। अगर 2014 के आंकड़ों से तुलना करे, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं। 2014 में 5850, 2015 में लगभग 7000 और 2016 में 6121 मृत्यु गोरखपुर में दर्ज हुई है, और यह केवल जापानी बुखार के कारण हुई है। 2 सितंबर 2017 तक भी इस बीमारी के कारण 1317 बच्चों की मृत्यु हुई, जिसमें गोरखपुर त्रासदी में मरने वाले बच्चे भी शामिल है। परंतु दुख की बात तो यह है की इस सकारात्मक बदलाव को मीडिया ने वैसे नहीं दिखाया, जैसे उन्होने गोरखपुर त्रासदी को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया था।
परंतु जो राजस्थान के कोटा में हुआ है, वह किसी अक्षम्य अपराध से कम नहीं है। इस पर मीडिया की खामोशी उसका एक घिनौना पक्ष भी उजागर करती है। वास्तव में मीडिया के कुछ पत्रकारों की अंतरात्मा को तभी चोट पहुंचती है जब कोई त्रासदी भाजपा प्रशासित राज्य में हुई हो, और उसमें भी जब नेता योगी आदित्यनाथ जैसा एक भगवाधारी संत हो। यदि स्थिति इसके ठीक उलट हो, तो इनके मुंह से आवाज़ तक न निकलेगी। क्या राजस्थान के बच्चे बच्चे नहीं है? क्या इनकी जान का कोई मोल नहीं?
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