लोकसम्पर्क विभाग में 89 करोड़ रूपये का फर्जीवाड़ा उजागर
- लोकायुक्त ने अपने आदेशों में सरकार से,विज्ञापनों पर धन खर्चने की पारदर्शी व स्पष्ट निति बनाने की सिफारिश की ।
चंडीगढ:
महालेखाकार (ऑडिट) की जॉंच रिपोर्ट में लोकसम्पर्क विभाग के 89 करोड़ रूपये की वित्तीय अनियमिताएं व फर्जीवाड़ा सामने आया है। लोकायुक्त ने अपनी जांच में लोकसम्पर्क विभाग के विरूद्ध गंभीर टिप्पणी की है।
लोकायुक्त जस्टिस एन0 के0 अग्रवाल ने सरकारी विज्ञापनों पर धन खर्च करने बारे पारदर्शी व स्पष्ट पद्धति तय करने की सरकार को सिफारिश करते हुए तीन माह में रिपोर्ट तलब की है। लोकायुक्त ने अपने 22 अक्तुबर,2019 के आदेश में कहा कि घपले की रिपोर्ट कैग के माध्यम से राज्यपाल को जाने के उपरांत विधानसभा के पटल पर प्रस्तुत होगी। लोकसम्पर्क विभाग के स्पष्टीकरण से संतुष्ट ना होने की स्थिति में ही सरकार द्वारा उचित कारवाई हो सकती है।
क्या है मामला:- आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने हरियाणा व सबसे आगे हरियाणा के विज्ञापनों में पूंजीनिवेश व रोजगार के दिए आंकड़ो को निराधार बताते हुए लोकायुक्त को दिनांक 26 सितम्बर 2013 को शिकायत की थी। आरोप लगाया था कि इन विज्ञापनों में दिए गए आंकड़े फर्जी हैं। इन भ्रामक विज्ञापनों पर सार्वजनिक धन का करोड़ों रूपया फूंक कर सीएम अपनी छवि चमका रहे हैं। कपूर ने इनके विरूद्ध आपराधिक केस दर्ज कराने की मांग की थी।
लोकायुक्त जांच में पाया गया:- विज्ञापनों में किए गए पूंजीनिवेश व रोजगार देने के भारी भरकम आंकड़ों बारे लोकसम्पर्क अधिकारी कोई लिखित आधार पेश नहीं कर पाए। सबकुछ जुबानी व तदर्थ आधार पर ही चलता रहा। लोकायुक्त ने महालेखाकार प्रिंसिपल अकाउंट जनरल (ऑडिट) हरियाणा को कपूर की शिकायत भेजकर रिपोर्ट तलब कर पूछा था कि लोकसम्पर्क विभाग ने जो खर्च किया है वह नियमानुसार है या नहीं। लोकायुक्त ने महालेखाकार से रिपोर्ट मिलने पर महानिदेशक लोकसम्पर्क विभाग हरियाणा से इस रिपोर्ट पर जवाब तलब किया गया। इसके साथ ही लोकसम्पर्क विभाग से इन विज्ञापनों की फाइल नोटिंग मांगी गई तो विभाग ने बताया कि मूल रिकार्ड नष्ट कर दिया गया। हालांकि शपथ पत्र सहित छाया प्रति पेश कर दी। इसके पश्चात 7 जून 2019 को लोकायुक्त को दी अपनी नवीनतम रिपोर्ट में पाया कि सीएम ने अपने अधिकार व प्राप्त शक्तियों के तहत ही विज्ञापन प्रकाशित कराने के आदेश दिए थे! अत: सी0एम0 के विरूद्ध कारवाई नहीं बनती। लेकिन लोकसम्पर्क विभाग के अधिकारियों से यह अपेक्षा नहीं बनती कि वे विज्ञापन प्रकाशित कराने की निर्धारित सामान्य प्रक्रिया को नजरअंदाज करके विज्ञापन प्रकाशित कराये। तत्कालीन महानिदेशक को यह सुनिश्चित करना था कि विज्ञापनों पर खर्च निर्धारित मापदंडो के अनुरूप है। लोकायुक्त रजिस्ट्रार ने लोकायुक्त को अपनी रिपोर्ट में सूचित किया कि ऑडिटर जनरल के संदेहों का स्पष्टीकरण लोकसम्पर्क विभाग ने दे दिया है। लेकिन इस स्पष्टीकरण को प्रिंसिपल ऑडिटर जनरल द्वारा स्वीकार करने का कोई प्रमाण नहीं दिया है। ऑडिटर जनरल की इस ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर लोकसम्पर्क विभाग के तत्कालीन महानिदेशक व अन्य दोषी अधिकारियों के खिलाफ कारवाई की अनुशंसा की जानी चाहिए। पूरे केस की सुनवाई की अनुशंसा की जानी चाहिए। लोकायुक्त जस्टिस एन0के0 अग्रवाल ने पूरे केस की सुनवाई उपरांत 22 अक्टूबर को इस केस का फैसला किया। लोकायुक्त जस्टिस एनके अग्रवाल ने इस फैसले में लिखा कि मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय के सही व प्रभावी क्रियान्वन ना किए जाने के अधार पर तत्कालीन सीएम हुड्डा या लोकसम्पर्क विभाग को ड्यूटी से लापरवाही का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सरकारी नीतियों के क्रियान्वन के दौरान विज्ञापनों के प्रकाशन के लिए पारदर्शी प्रक्रिया हर प्रकार के संदेहों के उन्मूलन के लिए आवश्यक है। लोकायुक्त ने सरकारी विज्ञापनों के प्रकाशन पर धन खर्च करने बारे स्पष्ट व पारदर्शी पद्धति तय करने की सिफारिश करते हुए की गई कारवाई रिपोर्ट तीन माह मेें हरियाणा सरकार से तलब की है!
महालेखाकार (ऑडिट) हरियाणा ने यह धांधलियां बताई:-
- गैर सूचिबद्ध समाचार पत्रों को 8,76,00000/- रूपये के विज्ञापन
- 14 गैर सूचिबद्ध समाचारपत्रों में विज्ञापन से 20.52 लाख रूपये का नुकसान
- हरियाणा विज्ञापन नीति/नियम एवं दिशा निर्देश-2007 व वित्तीय नियमावली की उल्लंघना करके 2.35 करोड़ रूपये खर्च किए।
- संवाद सोसाइटी के गठन पर 14.07 करोड़ रूपये खर्च करके व्यर्थ किए जबकि यह कार्य विभाग की उत्पादन एवं कला शाखा द्वारा किया जा रहा था।
- मीडिया सलाहकारों की नियुक्ति करके 1.88 करोड़ रूपये व्यर्थ किए।
- छह वातानुकूलित कारें होने के बावजूद वातानुकूलित टैक्सी के किराए पर 26.68 लाख रूपये व्यर्थ किए।
- सरकारी वाहनों से शनिवार व रविवार छुट्टी के दिन सैर सपाटे व यात्राएं करके 20 लाख रूपये फालतू खर्च किए।
- *अनाधिकृत अधिकारियों को कारें अलॉट करके 1.67 लाख रूपये का नुकसान।
- एक ही अधिकारी को दो अलग-अलग कारें अलॉट कर दी।
- पत्रकारों को तोहफे बांटने में 87 लाख रूपये का अवैध खर्च।
- पत्रकारों को सरकारी आवास देकर सरकार को 30 करोड़ 45 लाख रूपये की चपत। लाइसेंस शुल्क भी नहीं वसूल किया।
- स्टेट अवार्डस पर 14.06 लाख रूपये का फालतू खर्च।
- अनाधिकृत अधिकारियों/कर्मचारियों को 20.11 करोड़ रूपये आवासीय भत्ता का भुगतान।
- हरियाणा कला परिषद् के स्टाफ के वेतन में 6.90 करोड़ रूपये का अवैध भुगतान।
- 2.96 करोड़ रूपये सीसीटीवी कैमरों की खरीद पर व्यर्थ किए, कैमरे लगाए ही नहीं।
- स्टाफ की अनियमित समावेश।
- हरियाणा कला परिषद् के विज्ञापनों पर 1.04 लाख रूपये का नुकसान। पेमेंट 15 प्रतिशत डिस्काउंट के बाद भुगतान करना था। डिस्काउंट नहीं किया।
- किताबें जारी करने में धांधली, कई किताबें वापिस नहीं मिली।
- सरकारी खातों से बाहर ग्रान्ट रखी गई।
- 0.28 लाख रूपये का फालतू भुगतान।
इसी से बहुत बड़े पैमाने पर अंधेरगर्दी बरती गई!
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