कौन है समझौता ब्लास्ट को हिन्दू आतंकवाद से जोड़ने की खौफनाक साजिश के पीछे

Sarika Tiwari, Panchkula. 7th March 2017:

आगामी सप्ताह में सम्झौता ब्लास्ट मामले में फैसला सुना दिया जाएगा। अभी अदालत ने  यह फैसला अपने पास सुरक्शित रखा है। यह एक एतेहासिक मामला है जिसमें हिन्दू आतंकवाद जैसा शब्द निर्मित किया गया। 18 फरवरी 2007 में आधी रात के समय पानीपत में यह ब्लास्ट हुआ जिसमें स्वामी असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा को आरोपित किया गया । लेकिन आधिकारिक खुलासों के अनुसार इस केस में पाकिस्तानी आतंकवादी पकड़ा गया था, उसने अपना गुनाह भी कबूल किया था लेकिन महज 14 दिनों में उसे चुपचाप छोड़ दिया।

18 फरवरी 2007 को समझौता एक्सप्रैस में ब्लास्ट हुआ था इसमें 68 लोग मारे गए। इस केस में दो पाकिस्तानी संदिग्ध पकड़े गए, इनमें से एक ने गुनाह कबूल किया लेकिन पुलिस ने सिर्फ 14 दिन में जांच पूरी करके उसे बेगुनाह करार दिया। अदालत में पाकिस्तानी संदिग्ध को केस से बरी करने की अपील की गई और अदालत ने पुलिस की बात पर यकीन किया और पाकिस्तानी संदिग्ध आजाद हो गया। फिर कहां गया ये किसी को नहीं मालूम….क्या ये सब इत्तेफाक था या फिर एक बड़ी राजनीतिक साजिश थी?

सूत्रों के अनुसार उस समय की सरकार को 2 पाकिस्तानी संदिग्ध को छोड़ने की इतनी जल्दी क्यों थी फिर अचानक इस केस में हिन्दु आतंकवाद कैसे आ गया।

इस केस के पहले इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर थे इंस्पेक्टर गुरदीप सिंह जो कि अब रिटायर हो चुके हैं। गुरदीप सिंह ने 9 जून 2017 को कोर्ट में अपना बयान रिकॉर्ड करवाया है। इस बयान में इंस्पेक्टर गुरदीप से ने कहा है, ‘ये सही है कि समझौता ब्लॉस्ट में पाकिस्तानी अजमत अली को गिरफ्तार किया गया था। वो बिना पासपोर्ट के, बिना लीगल ट्रैवल डाक्यूमेंटस के भारत आया था। दिल्ली, मुंबई समेत देश के कई शहरों में घूमा था। मैं अजमत अली के साथ उन शहरों में गया जहां वो गया था। उसने इलाहाबाद में जहां जाने की बात कही वो सही निकली लेकिन अपने सीनियर अधिकारियों, सुपिरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस भारती अरोड़ा और डीआईजी के निर्देष के मुताबिक मैने अजमत अली को कोर्ट से बरी करवाया।’ इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर ने कोर्ट को जो बयान दिया वो काफी हैरान करने वाला है

ऊपर से आदेश आयापाकिस्तानी संदिग्ध छोड़ा गया

पुलिस अधिकारी ऐसा तभी करते हैं जब उन पर ऊपर से दवाब आता है। आखिर इतने सीनियर अधिकारियों को पाकिस्तानी संदिग्ध को छोड़ने के लिए किसने दबाव बनाया? एक ब्लास्ट केस में सिर्फ 14 दिन में पुलिस ने ये कैसे तय कर लिया कि आरोपी बेगुनाह है और उसे छोड़ देना चाहिए?

अजमत अली है कौन?

कोर्ट में जमा डॉक्युमेंट्स के मुताबिक अजमत अली पाकिस्तानी नागरिक था। उसे भारत में अटारी बॉर्डर के पास से GRP ने अरेस्ट किया था। उसके पास न तो पासपोर्ट था, न वीजा था और ना ही कोई लीगल डॉक्यूमेंट। इस शख्स ने पूछताछ में कबूल किया कि वो पाकिस्तानी है और उसके पिता का नाम मेहम्मद शरीफ है। उसने अपने घर का पता बताय़ा था- हाउस नंबर 24, गली नंबर 51, हमाम स्ट्रीट जिला लाहौर, पाकिस्तान।

सबसे बड़ी बात ये कि ब्लास्ट के बाद दो प्रत्यक्षदर्शियों ने बम रखने वाले का जो हुलिया बताया था वो अजमत अली से मिलता जुलता था। प्रत्यक्षदर्शी के बताने पर स्केच तैयार किए गए थे, और उस स्केच के आधार पर ही अजमत अली और मोहम्मद उस्मान को इस केस में आरोपी बनाया गया था। इंस्पेक्टर गुरदीप ने भी कोर्ट को जो बयान दिया था उसमें कहा है कि ट्रेन में सफर कर रहे शौकत अली और रुखसाना के बताए हुलिए के आधार पर दोनो आरोपियों के स्केच बनाए गए थे।

समझौता ब्लास्ट 18 फरवरी 2007 को हुआ था। पुलिस ने अजमत अली को एक मार्च 2007 को अटारी बॉर्डर के पास से बिना लीगल डॉक्युमेंट्स के गिरफ्तार किया था। उस वक्त वो पाकिस्तान वापस लौटने की कोशिश कर रहा था। गिरफ्तारी के बाद अजमत अली को अमृतसर की सेंट्रल जेल में भेजा गया। वहीं से समझौता ब्लास्ट की जांच टीम को बताया गया था कि समझौता ब्लास्ट के जिन संदिग्धों के उन्होंने स्केच जारी किए हैं उनमें से एक का चेहरा अजमत अली से मिलता है। इसके बाद लोकल पुलिस ने अजमत अली को कोर्ट में समझौता पुलिस की जांच टीम को हैंडओवर कर दिया।

जांच टीम ने 6 मार्च 2007 को कोर्ट से अजमत अली की 14 दिन की रिमांड मांगी। हमारे पास वो ऐप्लिकेशन हैं, जो पुलिस ने कोर्ट में जमा की थी। इस एप्लिकेशन में जांच अधिकारी ने साफ साफ लिखा है कि समझौता ब्लास्ट मामले में गवाहों की याददाश्त के मुताबिक संदिग्धों के स्केचेज़ बनाकर टीवी और अखबारों को जारी किए गए थे। अटारी जीआरपी ने इस स्केच से मिलते जुलते संदिग्ध अजमत अली को गिरफ्तार किया। इसने पूछताछ में बताया कि वो तीन नवंबर 2006 को बिन पासपोर्ट और वीजा के भारत आया था। इसी आधार पर कोर्ट ने अजमत अली को 14 दिन की पुलिस रिमांड में भेज दिया था।

अबतक की कहानी साफ है समझौता ट्रेन में ब्लास्ट हुआ, इस ब्लास्ट के दो आईविटनेसेज़ ने ट्रेन में बम रखने वालों का हुलिया बताया, उसके आधार पर दो लोगो के स्केच बने, उन्हें अटारी रेलवे पुलिस ने गिरफ्तार किया और फिर पूछताछ करने के बाद समझौता ब्लास्ट की जांच कर रही टीम को सौंप दिया। इस टीम ने भी उसका चेहरा स्केच से मिला कर देखा, चेहरा मिलता जुलता दिखा, तो उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया। कोर्ट ने इसे 14 दिन की पुलिस रिमांड में भेज दिया। 14 दिन की पुलिस रिमांड में पूछताछ हुई।

पूछताछ और जांच के बाद उम्मीद थी कि कुछ कंक्रीट निकल कर सामने आएगा लेकिन 14 दिन बाद, 20 मार्च को जब पुलिस ने दुबारा अजमत अली को कोर्ट में पेश किया तब उम्मीद थी कि पुलिस दुबारा उसका रिमांड मांगेगी, लेकिन हुआ उल्टा। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि उनकी जांच पूरी हो गयी है, अजमत अली के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं, इसलिए उसे इस केस से डिस्चार्ज कर दिया जाए। कोर्ट ने पुलिस की दलील पर भरोसा किया और कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि अजमत अली की रिहाई की अर्जी पुलिस ने ये कहते हुए दी है कि कि मौजूदा केस की जांच में इसकी कोई जरूरत नहीं है। जब जांच टीम ने ही ये कह दिया कि तो कोर्ट ने अजमत अली को रिहा कर दिया।

करनाल में जांच अधिकारी गुरदीप सिंह ने बताया कि शुरुआती जांच के बाद ही अजमत को छोड़ दिया गया था। उन बड़े अफसरों के बारे में भी बताया जो इस टीम का हिस्सा थे जिन्होंने इस केस की जांच की और पाकिस्तानी नागरिक को छोड़ा गया। अब यहां एक बड़ा सवाल तो ये है कि इतने सारे शहरों में पुलिस ने जांच सिर्फ 14 दिन में कैसे पूरी कर ली। अजमत अली का न तो नार्को टेस्ट हुआ, न ही पोलीग्राफी टेस्ट किया गया। सिर्फ 14 दिन की पूछताछ के बाद पुलिस ने ये मान लिया कि समझौता ब्लास्ट में अजमत अली का हाथ नहीं है…ये शक तो पैदा करता है।

अजमत अली को छोड़ देना तो एक बड़ा मोड था लेकिन इससे भी बड़ा ट्विस्ट इस केस की शुरुआती जांच में आया था। शुरुआत में उस वक्त की मनमोहन सरकार ने कहा था कि समझौता ब्लास्ट के पीछे लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है लेकिन जांच बढ़ने के कुछ ही दिन बाद इस केस में भगवा आतंकवाद का नाम आया।

इस केस में शुरुआत में जांच में जल्दी-जल्दी ट्विस्ट आए इसपर हमारे कुछ सवाल हैं…

क्या एक पाकिस्तानी नागरिक जो बम धमाके का आरोपी हो उसे इतनी आसानी से छोड़ा जा सकता है? अक्सर छोटे क्राइम में भी पकड़े गए पाकिस्तानी नागरिक की जांच में भी ऐसी जल्दीबाजी नहीं होती उससे पूछताछ होती है, उसकी बातों को वैरीफाई किया जाता है लेकिन समझौता ब्लास्ट के केस में अजमत अली को तुरंत छोड़ दिया गया।

आखिर सरकार की तरफ से अजमत को छोड़ने की ऐसी जल्दबाजी क्यों की गयी? क्या पुलिस को अजमत अली का नार्को या पोलीग्राफी टेस्ट करके सच निकलवाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी? पहले जब इंटेलिजेंस और जांच एजेंसियों ने इस धमाके को लश्कर का मॉड्यूल बताया तो फिर एकाएक इसे हिंदू टेरर का नाम कैसे दिया गया?

हम आपको बताते है कि हिंदू टेरर का नाम कैसे आया, इसका जवाब भी पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग की नोटिंग में मिला। 21 जुलाई 2010 को बंद कमरे में कुछ अधिकारियों की मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग ये तय हुआ था कि हरियाणा पुलिस समझौता एक्सप्रैस ब्लास्ट की जांच में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है इसलिए इसे नेशनल इनवेस्टिगेटिव एजेंसी को सौंप देना चाहिए। इसी मीटिंग में ये बात भी हुई थी कि इस केस की जांच हिंदू ग्रुप के इन्वॉल्वमेंट पर भी होना चाहिए। नोटिंग में लिखा है कि एसएस (आईएस) को याद होगा, उनके चेंबर में इस बात पर डिस्कशन हुआ था, कि इसकी जांच हिंदू ग्रुप के ब्लास्ट में शामिल होने की संभावना पर भी होनी चाहिए।

पुलिस की नोटिंग से सवाल ये उठता है कि  किसके कहने पर हिंदू टेरर ग्रुप का नाम इस धमाके से जोड़ने का आइडिया आया? बंद कमरे में वो कौन-कौन ऑफिसर थे जिन्होंने इस धमाके को हिंदू टेरर का एंगल देने की कोशिश की? इन अफसरों के नाम सामने आना जरूरी हैं, उनसे पूछताछ होगी, तभी पता चलेगा कि उनपर किसका दबाव था… बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि ये देश के साथ विश्वासघात है। उन्होंने कहा कि सिर्फ हिंदू आतंकवाद का नाम देने के लिए ये पूरी साजिश रची गयी थी।

बता दें कि तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने AICC की मीटिंग में भगवा आतंकवाद की बात करके सबको चौंका दिया था बाद में पी चिदंबरम ने और दिग्विजय सिंह ने बार-बार बीजेपी को बैकफुट पर लाने के लिए इस जुमले का इस्तेमाल किया। समझौता ब्लास्ट के केस में जिस तरह से पहले लश्कर ए तैयबा का नाम आया फिर उस वक्त की सरकार ने पाकिस्तानियों को छोड़ दिया और स्वामी असीमानंद को आरोपी बनाकर इस केस को पूरी तरह पलट दिया….इसके पीछे एक सोची समझी साजिश थी।

अब ये साफ है कि भगवा आतंकवाद का जुमला क्वाइन करने के लिए, हिन्दू आतंकवाद का हब्बा खड़ा करने के लिए इस केस में पाकिस्तानियों को बचाया गया और भारतीय हिंदुओं को फंसाया गया। अब सवाल सिर्फ इतना है कि इस साजिश के पीछे किसका शातिर दिमाग था।

फैसला चाहे जो आए लेकिन साजिश कर्ताओं  का पर्दा फ़ाश होना अति आवश्यक है।

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