राम (नाम / जन्मभूमि) की लूट है लूट सके तो लूट
राम (नाम / जन्मभूमि) की लूट है लूट सके तो लूट
वर्ष 1992 में बाबरी ढांचे के ध्वस्त होने के बाद सविता अंबेडकर ने राम जन्मभूमि वाली उस जमीन को हासिल करने के लिए अभियान चलाया था, मतलब यह हुआ की जब तक वहाँ मस्जिद थी श्रीमति अंबेडकर को कोई सरोकार नहीं था परंतु ज्यों ही मस्जिद ध्वस्त हुई वहाँ श्रीमती अंबेडकर को बौद्धविहार दिखाई देने लगा।
यदि मात्र विहार करने से भूमि पर बौद्ध धर्म अनुयाइयों का दावा हो जाता है तो उत्तरपथ की पग पग भूमि गौतम बुद्ध की है। कृपया दावा करें।
राजविरेन्द्र वशिष्ठ:
डॉ. बाबा साहब अंबेडकर की विधवा सविता अंबेडकर ने राम जन्मभूमि पर बौद्धों के हक के पक्ष में 90 के दशक में अभियान चलाया था. जन्मभूमि स्थान को बौद्धों को सौंपने की मांग करते हुए डॉ. बाबा साहब अंबेडकर फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट ने 1991 में फैजाबाद कोर्ट में याचिका दायर की थी. पर उस याचिका को कोई प्रचार नहीं मिला.
वर्ष 1992 में बाबरी ढांचे के ध्वस्त होने के बाद सविता अंबेडकर ने राम जन्मभूमि वाली उस जमीन को हासिल करने के लिए अभियान चलाया था. इस साल अयोध्या निवासी विनीत कुमार मौर्या ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. मौर्य ने अपनी याचिका में यह मांग की है कि राम जन्मभूमि स्थल को बुद्ध विहार घोषित किया जाए. उन्होंने दावा किया है कि 4 खुदाइयों में मिले अवशेषों से यह साबित होता है कि वो स्थल बौद्धों का रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने 13 अन्य अपीलों के साथ मौर्या की याचिका को भी सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है. याद रहे कि दूसरी ओर राम जन्मभूमि आंदोलनकारियों का दावा है कि खुदाइयों से प्राचीन राम मंदिर के अवशेष मिले हैं. जन्मभूमि विवाद को लेकर वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय आया था. उसी निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील विचाराधीन है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि उस जमीन को 3 हिस्सों में बांटा जाए. एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा, दूसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा हिस्सा श्रीराम लल्ला विराजमान को मिले. याद रहे कि अभी श्रीराम लल्ला टेंट में हैं. उधर 90 के दशक में सविता अंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास इसके ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण हैं.
महात्मा बुद्ध ने 16 वर्ष अयोध्या और उसके आसपास गुजारे थे
याद रहे कि सविता अंबेडकर का वर्ष 2003 में निधन हो गया. सविता अंबेडकर जिन्हें ‘माई’ या ‘माइसाहब’ के नाम से पुकारा जाता था, अपने दावे के पक्ष में प्राचीन चीनी पर्यटकों और समकालीन इतिहासकारों को उधृत किया था. उनके अनुसार यह जगह शुरू में बौद्धों की थी. महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन के 16 वर्ष अयोध्या और उसके आसपास गुजारे थे.
सविता ने पाली साहित्य का जिक्र करते हुए कहा था कि इसमें यह बात कई बार आई है. पाली साहित्य में अयोध्या की जगह साकेत का जिक्र है. तब लंदन स्थित अंबेडकर शताब्दी ट्रस्ट के निदेशक कृष्णा गामरे ने कहा था कि अगर इसका नतीजा नहीं निकला तो हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.
फैजाबाद कोर्ट में दाखिल याचिका का क्या हश्र हुआ, यह तो पता नहीं चला, पर विनीत कुमार मौर्या की सुप्रीम कोर्ट में दायर ताजा याचिका पर संभवतः बौद्धों के इस दावे पर भी कोर्ट देर-सवेर कुछ कहे. याद रहे कि इस सवाल पर अंबेडकर के कुछ समर्थकों ने 90 के दशक में अपने समुदाय में एकजुटता लाने की कोशिश भी की थी. पर समर्थक एकजुट नहीं हो सके थे.
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