Petrol-Diesel के लिए जेब ढीली करने को हो जाइए तैयार
भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी अगले सप्ताह से शुरू हो सकती है। पेट्रोल-डीजल की भारी कीमतों का असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। पर रोजमर्रा की वस्तुओं पर इसका प्रभाव तत्काल पड़ता है जैसे सब्जियां, दालें, मसाले, दूध-मक्खन, ब्रेड आदि। तेल के दामों की मार कितनी तीखी होगी, यह चुनाव के नतीजों पर भी निर्भर करेगा। यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते कच्चे तेल की कीमतें पिछले सात सालों के उच्च स्तर पर पहुंच गई है।
डेमोक्रेटिक फ्रंट, नयी दिल्ल:
पेट्रोल और डीजल की कीमतें फिर सताना शुरू करेंगी। क्योंकि कच्चे तेल का दाम रिकॉर्ड स्तर पर चल रहा है और विधानसभा चुनाव भी खत्म होने वाले हैं। ऐसे में कीमतों में बढ़ोतरी अगले सप्ताह फिर से शुरू होने की आशंका है। यह बढ़ोतरी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल कीमतों में 100 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से पैदा हुए 9 रुपये प्रति लीटर के अंतर को पाटने के लिए होगी। कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें 2014 के बाद पहली बार 110 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर हैं।
मोदी सरकार का यह शगल बन चुका है कि विधानसभा चुनावों से पहले पेट्रोल-डीजल के दामों में घट-बढ़ को रोक दो। यह हैरानी की बात है कि पिछले सवा तीन महीने से पेट्रोल डीजल के दाम स्थिर हैं जबकि इनके दाम रोजाना सुबह छह बजे तेल विपणन वितरक कंपनियां तय करती हैं। पेट्रोल-डीजल के डी-कंट्रोल के बाद से मोदी सरकार को यह हक नहीं कि दैनिक स्तर पर पेट्रोल- डीजल के दामों को प्रभावित कर सके। वह केवल पेट्रोल-डीजल पर करों को घटा-बढ़ाकर इनके दामों को प्रभावित कर सकती है। 2017 से सरकार ने करों में लगातार वृद्धि की है। इस अवधि में दो ऐसे अवसर आए जब पेट्रोल-डीजल पर करों में कटौती की गई है।
अब तय है कि 7 मार्च को विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद पेट्रोल-डीजल की भारी कीमत वृद्धि से तगड़ा झटका लगने वाला है। इसे रोकने के लिए मोदी सरकार करों में कटौती कर कोई राहत देगी, इसकी उम्मीद बेमानी है क्योंकि मोदी सरकार ने कोविड काल में भी पेट्रोल-डीजल में करों में भारी वृद्धि में शर्म महसूस नहीं हुई।
जब से मोदी सरकार केन्द्र पर काबिज हुई है, पेट्रोल- डीजल के करों में 250 से 800 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। इसकी पृष्ठभूमि जान लेना जरूरी है, तभी आपको मोदी सरकार के कसाई सरीखे व्यवहार का एहसास हो पाएगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जब-तब कच्चे तेल के दाम कम हुए, मोदी सरकार नेबड़ी बेरहमी से अपनी झोली भरने में कसर नहीं छोड़ी और किस्म-किस्म के करों के जरिये जनता पर नया बोझ थोपती चली गई। 2013 में यूपीए सरकार के समयअंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 113 डॉलर प्रति बैरल हो गए थे और तब पेट्रोल की बाजार कीमत थी 65 रुपये प्रति लीटर के करीब। फरवरी, 2016 में इसके दाम लगातार गिरके 31 डालर प्रति बैरल तक पहुंच गए लेकिन पेट्रोल की कीमत थी करीब 62 रुपये प्रति लीटर।
कोविड काल के भयावह दृश्यों को कौन भूल सकता है। करोड़ों की संख्या में प्रवासी मजदूर पैदल चलकर अपने गांवों तक जाने को मजबूर थे। लाखों परिवारों नेअपने प्रियजनों को खो दिया था। तालाबंदी के दौरान करोड़ों लोग अपनी जीविका से हाथ धो बैठे थे। ऐसी स्थिति में अन्य देशों की तरह मोदी सरकार को भी पीड़ित लोगों की नकद सहायता का व्यापक बंदोबस्त करना चाहिए था। पर किया उल्टा। मार्च 2020 से मार्च 1, 2021 की अवधि में पेट्रोल पर 12.92 और डीजल पर 15.97 रुपये प्रति लीटर के शुल्क बढ़ा दिए। ऐसा ‘राक्षसी’ कृत्य तो कोविड के दौरान किसी भी देश ने नहीं किया होगा।
2014-2015 में पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस से मोदी सरकार को 74,158 करोड़ रुपये का कर-राजस्व मिला जो मार्च, 2020 से जनवरी, 2021 के दरम्यान बढ़कर 2.95 लाख करोड़ रुपये हो गया, यानी तीन गुना से अधिक। यह जानकारी खुद केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने लोकसभा को दी! 2014-15 में पेट्रोल और डीजल पर शुल्क 9.48 और 3.54 रुपये थे जो जनवरी, 21 तक बढ़कर क्रमश: 32.90 और 31.80 रुपये हो गए।
सबसे ज्यादा टैक्स भारत में
दुनिया भर में पेट्रोल-डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स भारत में है जहां प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है। प्रति व्यक्ति आय की 2017 की 190 देशों की सूची में भारत 122वें पायदान पर है। पर देश में मोदी सरकार की निर्मम पेट्रोल-डीजल नीति ने कृषि की कमर ही तोड़ कर रख दी। इनके अत्यधिक महंगे होने से मांग लगातार कमजोर बनी हुई है। इससे पर्याप्त नया निवेश नहीं हो पा रहा है और रोजगार के अवसर घटते जा रहे हैं। 2014 में पेट्रोल-डीजल के बीच कीमत अंतर 24 रुपये था जो अब घटकर 8.74 रुपये रह गया है। जून, 2020 में देश में पहली बार डीजल पेट्रोल से महंगा हो गया। जैसे-जैसे डीजल के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई, पेट्रोल-डीजल की कीमत का अंतर कम होता गया। इससे खेती और किसानों के हालात बिगड़ते चले गए।
गिरने वाली है गाज
मोदी सरकार का परम विश्वास है कि चुनावों से पहले पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रहेंगे, तो उसे लोगों को भरमाकर वोट लेने में सहूलियत रहेगी। पिछले साल मार्च-अप्रैल में प. बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों के पहले भी पेट्रोल-डीजल के दाम मोदी सरकार ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए स्थिर करा दिए थे। और अब जैसे ही उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हुई तो फिर पेट्रोल-डीजल के दामों को स्थिर करा दिया गया। देश में पिछले सवा तीन महीनों से पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर बने हुए हैं जिसका लाभ चुनावों में बीजेपी उठाना चाहती है। चुनावों की खातिर मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल के करों में 3 नवंबर को 5 और 10 रुपये की कटौती की थी। तब से इनके दाम स्थिर बने हुए हैं।
अब 10 मार्च को चुनाव नतीजों के बाद पेट्रोल-डीजल के दामों में भारी कीमत वृद्धि की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बहुत बढ़ गए हैं। 30 नवंबर, 2021 को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल थी जो आजकल 92-93 डॉलर है, यानी 17-18 डॉलर की बढ़ोतरी।
यूक्रेन समस्या और अमेरिकी केंद्रीय बैंक की सख्त मौद्रिक नीति की संभावना की तलवार का कच्चे तेल की कीमतों पर लगातार दबाव बना हुआ है। मोदी सरकार के पेट्रोल-डीजल की निर्मम नीति को देखते हुए प्रधानमंत्री से किसी राहत की उम्मीद करना बेकार है।
आवश्यक वस्तुओं पर पड़ेगा प्रभाव
पाकिस्तान में हाल ही में पेट्रोल-डीजल के दामों में करीब 12 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि की गई। इससे हाहाकार मच गया और इमरान सरकार को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। जब भी पेट्रोल- डीजल के दामों में भारी वृद्धि होती है, महंगाई के एक नए चक्र को जन्म मिलता है। भारतीय रुपये में भी आकलन करें तो कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तकरीबन 8-10 रुपये प्रति लीटर का इजाफा हो चुका है। भारत में जनता पर कितनी तीखी मार होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि पेट्रोल-डीजल की कीमत वृद्धि टुकड़ों में होगी या एक साथ।
पेट्रोल-डीजल की भारी कीमत वृद्धि का असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। पर रोजमर्रा की वस्तुओं पर इसका प्रभाव तत्काल पड़ता है जैसे सब्जियां, दालें, मसाले, दूध-मक्खन, ब्रेड आदि। विर्निमित वस्तुओं पर प्रभाव पड़ने में थोड़ा समय लगता है। आवाजाही और उत्पादन लागत बढ़ने से इसका असर चैतरफा होता है। पेट्रोल-डीजल की कीमत वृद्धि की मार कितनी तीखी होगी, यह विधानसभा के नतीजों पर भी निर्भर करेगा।
साभार : राजेश रपरिया