योगिनी एकादशी – व्रत कथा एवं विधान

योगिनी एकादशी व्रत 5 जुलाई सोमवार के दिन रखा जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह व्रत प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त योगिनी एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें कुष्ठ या कोढ़ रोग से मुक्ति मिलती है एवं उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही उन्हें वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। लेकिन इस व्रत का वास्तविक फल पाने के लिए व्रत रखने वाले लोगों को कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। यह व्रत भले ही एकादशी के दिन रखा जाता है, किंतु व्रत का पालन दसवीं की शाम से लेकर द्वादशी की सुबह तक किया जाता है। व्रत के नियम दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद से ही लागू हो जाते हैं। व्यक्ति को भोजन दशमी को सूर्यास्त से पहले ही ग्रहण करना होता है, इसके बाद व्रत शुरू होता है और द्वादशी के दिन पारण करने तक चलता है। आइए जानते हैं क्या हैं एकादशी व्रत नियम

धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़ – डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम :

शास्त्रों के अनुसार एकादशी की पूजा-व्रत करने वालों को और किसी पूजा की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि ये अपने भक्तों के सभी मनोरथों की पूर्ति कर उन्हें विष्णुलोक पहुंचाती हैं। इनमें ‘योगिनी एकादशी ‘तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्म रोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है।

श्री हरि के साथ पीपल की पूजा 

पदम् पुराण के अनुसार योगिनी एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के सामान है। यह देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रूप ,गुण और यश देने वाली है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ पीपल के वृक्ष की पूजा का भी विधान है। साधक को इस दिन व्रती रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र ,चन्दन ,जनेऊ ,गंध, अक्षत ,पुष्प , धूप-दीप नैवेध,ताम्बूल आदि समर्पित करके आरती उतारनी चाहिए।

इसलिए नहीं खाते हैं एकादशी को चावल
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया।चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पंन हुए इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया,उस दिन एकादशी तिथि थी। अतःइनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है ,ताकि सात्विक रूप से विष्णु प्रिया एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।

जो लोग किसी कारण से एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं उन्हें श्री हरि एवं देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए एकादशी के दिन खान-पान एवं व्यवहार में सात्विकता का पालन करना चाहिए। इस दिन लहसुन,प्याज,मांस, मछली, अंडा नहीं खाएं और झूठ एवं किसी को अप्रिय वचन न बोलें,प्रभु का स्मरण करें।

ज्योतिष मान्यता के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है।एकादशी व्रत में मन का पवित्र और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खाना वर्जित कहा गया है।

योगिनी एकादशी व्रत कथा!

हिंदू धर्म ग्रंथों में हर एकादशी का अपना अलग महत्व बताया गया है। इन्हीं अलग-अलग विशेषताओं के कारण इनके नाम भी भिन्न-भिन्न रखे गये हैं। प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं, मल मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है।

इन्हीं एकादशियों में एक एकादशी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे योगिनी एकादशी कहते हैं। योगिनी एकादशी का उपवास रखने से समस्त पापों का नाश होता है, तथा इस लोक में भोग और परलोक मुक्ति भी मिलती है।

महाभारत काल की बात है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण कहा: हे त्रिलोकीनाथ! मैंने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी की कथा सुनी। अब आप कृपा करके आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइये। इस एकादशी का नाम तथा माहात्म्य क्या है? सो अब मुझे विस्तारपूर्वक बतायें।

श्रीकृष्ण ने कहा: हे पाण्डु पुत्र! आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है।

हे अर्जुन! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। तुम्हें मैं पुराण में कही हुई कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो- कुबेर नाम का एक राजा अलकापुरी नाम की नगरी में राज्य करता था। वह शिव-भक्त था। उनका हेममाली नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की विशालाक्षी नाम की अति सुन्दर स्त्री थी।

एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प लेकर आया, किन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा। इस भोग-विलास में दोपहर हो गई।

हेममाली की राह देखते-देखते जब राजा कुबेर को दोपहर हो गई तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर पता लगाओ कि हेममाली अभी तक पुष्प लेकर क्यों नहीं आया। जब सेवकों ने उसका पता लगा लिया तो राजा के पास जाकर बताया- हे राजन! वह हेममाली अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है।

इस बात को सुन राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी। डर से काँपता हुआ हेममाली राजा के सामने उपस्थित हुआ। उसे देखकर कुबेर को अत्यन्त क्रोध आया और उसके होंठ फड़फड़ाने लगे।

राजा ने कहा: अरे अधम! तूने मेरे परम पूजनीय देवों के भी देव भगवान शिवजी का अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पे और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करे।

कुबेर के श्राप से वह तत्क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा और कोढ़ी हो गया। उसकी स्त्री भी उससे बिछड़ गई। मृत्युलोक में आकर उसने अनेक भयंकर कष्ट भोगे, किन्तु शिव की कृपा से उसकी बुद्धि मलिन न हुई और उसे पूर्व जन्म की भी सुध रही। अनेक कष्टों को भोगता हुआ तथा अपने पूर्व जन्म के कुकर्मो को याद करता हुआ वह हिमालय पर्वत की तरफ चल पड़ा।

चलते-चलते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। वह ऋषि अत्यन्त वृद्ध तपस्वी थे। वह दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे और उनका वह आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान शोभा दे रहा था। ऋषि को देखकर हेममाली वहाँ गया और उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा।

हेममाली को देखकर मार्कण्डेय ऋषि ने कहा: तूने कौन-से निकृष्ट कर्म किये हैं, जिससे तू कोढ़ी हुआ और भयानक कष्ट भोग रहा है।

महर्षि की बात सुनकर हेममाली बोला: हे मुनिश्रेष्ठ! मैं राजा कुबेर का अनुचर था। मेरा नाम हेममाली है। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था। एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा और दोपहर तक पुष्प न पहुँचा सका। तब उन्होंने मुझे शाप श्राप दिया कि तू अपनी स्त्री का वियोग और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनकर दुख भोग। इस कारण मैं कोढ़ी हो गया हूँ तथा पृथ्वी पर आकर भयंकर कष्ट भोग रहा हूँ, अतः कृपा करके आप कोई ऐसा उपाय बतलाये, जिससे मेरी मुक्ति हो।

मार्कण्डेय ऋषि ने कहा: हे हेममाली! तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूँ। यदि तू आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएँगे।

महर्षि के वचन सुन हेममाली अति प्रसन्न हुआ और उनके वचनों के अनुसार योगिनी एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने लगा। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।

भगवान श्री कृष्ण कहा: हे राजन! इस योगिनी एकादशी की कथा का फल 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मोक्ष प्राप्त करके प्राणी स्वर्ग का अधिकारी बनता है।