अल्पमत में होने बावजूद अधिक सक्षम और गतिमान हो रहे हैं मनोहर
धर्मपाल वर्मा चंडीगढ़:
मुख्यमंत्री मनोहर लाल को 2014 में जिस तरह की चुनौतियां अपनी ही पार्टी से मिली थी वैसी ही कुछ इस बार भी मिली है lफर्क यह है कि पिछली बार विधायक बागी होने लगे थे परंतु पार्टी के सारे नेता मुख्यमंत्री के साथ थे l मुख्यमंत्री न पिछली बार विचलित हुए थे न अबकी बार है lउन्होंने न पिछली बार बागी लोगों की परवाह की न अब उस पावर सेंटर की कर रहे हैं जो अब चुनाव से पहले से उनके खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा हैं l जो उन्हें बदलने का दावा करता आ रहा है l
मुख्यमंत्री मनोहर लाल मजबूत इच्छाशक्ति के व्यक्ति हैं और अब उन्होंने यह खुला संदेश भी कई बार दे दिया है कि वह अपनों के हितों की सुरक्षा करना भी जानते हैं और यह काम बड़ी शिद्दत से कर भी रहे हैं l
आज बहुत लोग यह मान गए हैं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल को उपरोक्त पावर सेंटर ने न केवल विधानसभा की टिकटों के बंटवारे के समय इग्नोर किया बल्कि मंत्रिमंडल गठन और गठबंधन यहां तक कि विभाग आवंटन में अपनी मर्जी का काम किया lपार्टी में उनका एक विकल्प प्रस्तुत करने की कोशिश की lजेजेपी को हवा दी और भी बहुत कुछ किया परंतु धैर्य की परीक्षा में मुख्यमंत्री पास हुए और आज सुखद स्थिति में है
जानकार मानते हैं कि मुख्यमंत्री की एक दिक्कत है उससे वह अपनी राजनीतिक समझ से निबट रहे हैं l हरियाणा में कोई और नेता आज उन्हें कोई चुनौती देने की स्थिति में नहीं है l जो खुद को साबित करना चाह रहे थे अब राज्यसभा चुनाव और प्रदेश अध्यक्ष के फैसले के बाद बिलों में घुस जाएंगे,, ऐसा माना जा रहा है l
मुख्यमंत्री मनोहर लाल जेजेपी के गठबंधन और गठबंधन धर्म को लेकर कहीं फाउल नहीं हुए और धीरे-धीरे उन सभी लोगों को हाशिए पर ले जाने में सफल हो रहे हैं जो बड़े-बड़े दावे करते थे l बड़ी-बड़ी बातें करते थे l मुख्यमंत्री बहुत भाग्यशाली व्यक्ति भी हैं, ऐसा हालात बता रहे हैं l
आज गौर कीजिए की 2015 के आसपास जो सत्रह अट्ठारह विधायक मुख्यमंत्री की कार्यशैली या उनकी क्षमता पर सवाल उठाकर असंतोष जताने लगे थे अर्थात बागी हो गए थे उनमें से केवल एक को दोबारा विधानसभा पहुंचने का मौका मिला है l पिछली सरकार में जो मंत्री मुख्यमंत्री मनोहर लाल के विकल्प बताए जाते थे उनमें से एक भी चुनाव जीतकर नहीं आया l आज पहली बार विधायक बने कमजोर किस्म के कई विधायक मंत्री हैं और दूसरी बार विधायक बने भाजपा के कई लोग पिछली पंक्ति में बैठे हैं। मुख्यमंत्री अल्पमत के बावजूद कंफर्टेबल हैं और उनके पास हर चीज का विकल्प मौजूद है l
पिछले दिनों सिरसा जिले में बिजली मंत्री रंजीत सिंह और आदित्य चौटाला के दम पर बड़ी रैली कर मुख्यमंत्री ने कई सकारात्मक संदेश दिए l एक संदेश तो यही था कि उनके सहयोगी जेजेपी के नेता जिस क्षेत्र से आते हैं वहां उन्हीं के परिजनों के दम पर वे ऐसा राजनीतिक हस्तक्षेप कायम करने की स्थिति में आ गए है जो उन्हें पल-पल पीछे मुड़कर देखने को मजबूर करता रहेगा।
मुख्यमंत्री ने इस रैली में यह भी साबित कर दिया कि वे न केवल कंफर्टेबल हैं बल्कि अब बहुत ताकतवर भी हैं।
सभा में मुख्यमंत्री ने खास अंदाज में कहा कि मांग पत्र में 50 से अधिक बिंदु हैं बोलकर पढ़ने में वक्त जाया नहीं करूंगा। बोले सारी मांगें मंजूर .. फिर उन्होंने कहा कि विकास कार्यों के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है। अब मुझे किसी मंत्री से पूछने की जरूरत नहीं है कि पैसा है या नहीं lअब सब मेरे हाथ में हैl मानो मुख्यमंत्री यह कह रहे हो कि अब कोई टेंशन नहीं है। अर्थात अब किसी का हस्तक्षेप नहीं रहा है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल की हल्की सी दिक्कत जेजेपी के गठबंधन वाली कही जा सकती है परंतु कुछ दिनों में यह भी मध्य प्रदेश की तरह काबू आ जाएगी। जे जे पी का एक महानुभाव तो रंजीत सिंह वाली इस रैली में स्टेज पर मौजूद था। यह ऑपरेशन तोड़फोड़ एकदम अर्थात तुरंत नहीं हुआ करते l समय अनुसार होते हैं। उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश प्रकरण में भाजपा ने 1 वर्ष का समय निकालना उचित समझा वरना जो आज हो रहा है वह 1 बरस पहले भी हो सकता था।
आज उपमुख्यमंत्री की कुर्सी उसके साथ 12 विभाग ,जेड प्लस सिक्योरिटी सुरक्षा सारे ठाट बाट होने के बावजूद जेजे पी की ओर से सरकार से बाहर आने की बात करने को क्यों मजबूर होना पड़ रहा है ,इसे आसानी से समझा जा सकता है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल की ताकत समझे जाने वाले नौकरशाह राजेश खुल्लर शत्रु जीत कपूर अनिल राव अमिताभ ढिल्लो आदि पहले से और ताकतवर हुए हैं lमुख्यमंत्री से विधानसभा में निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू जब यह पूछते हैं कि क्या आपने पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर को क्लीन चिट दे दी है तो मुख्यमंत्री तपाक से कहते हैं हां दे दी। सीआईडी को अपने अधीन लेना हो , किसी भी विभाग में जाकर सीधे हस्तक्षेप करना हो ,अफसरों को तैनात करना हो हटाना लगाना हो सब मुख्यमंत्री अपने विवेक से बखूबी करते आ रहे हैं lयही कारण है कि आज उनके प्रधान सचिव राजेश खुल्लर के पास 24 विभाग हैं lइससे भी अहम बात यह है कि उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और गृह मंत्री अनिल विज के अधिकांश विभाग राजेश खुल्लर देख रहे हैं।
हालात यह है कि मुख्यमंत्री प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सुभाष बराला को ही बनाए रखना चाहते हैं संभव है एक जाट नेता को भी राज्यसभा भेज दिया जाए। बताया जा रहा है कि यह फैसला पूर्व कैबिनेट मंत्री कैप्टन अभिमन्यु और ओमप्रकाश धनखड़ में से किसी एक के बीच होना है।