कॉंग्रेस की मौजूदा स्थिति ‘औरों को नसीहत खुद मियां फजीहत’

‘नेहरू खुद इंदिरा को कांग्रेस के नेतृत्व की कतार में खड़ा करने, बनाए रखने और जिम्मेदारी सौंपने का प्रयास करते रहे. जब नेहरू की तबीयत थोड़ी कमजोर हुई तो उन्होंने इंदिरा को कांग्रेस की कार्यसमिति में रखा.’ यह भी कहा जाता है कि अध्यक्ष पद के लिए पहले दक्षिण भारत से तालुल्क रखने वाले धाकड़ नेता निजलिंगप्पा का नाम प्रस्ताव हुआ था, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने इस पर चुप्पी ओढ़ ली और फिर जब इंदिरा गांधी के नाम का प्रस्ताव आया तो उन्होंने हामी भर दी. ….. ऐसा पहली बार है जब गांधी परिवार के तीन सदस्य एक साथ कांग्रेस में तीन सबसे प्रभावशाली पदों पर हैं लेकिन फिर भी पार्टी अब तक की सबसे कमजोर हालत में है

चंडीगढ़:

राजस्थान में सत्ताधारी कांग्रेस के भीतर उथल-पुथल जारी है. पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री पद से भी हटा दिए गए सचिन पायलट बागी रुख अपनाए हुए हैं. हालांकि कांग्रेस इसे भाजपा की साजिश बता रही है. पार्टी नेता अजय माकन ने बीते दिनों कहा कि यदि चुनी गई किसी सरकार को पैसे की ताकत से अपदस्थ किया जाता है, तो यह जनादेश के साथ धोखा और लोकतंत्र की हत्या है. पार्टी के दूसरे नेता भी कमोबेश ऐसी बातें कई बार कह चुके हैं.

इससे पहले विधायकों की बगावत के बाद कांग्रेस, भाजपा के हाथों कर्नाटक और मध्य प्रदेश की सत्ता गंवा चुकी है. तब भी उसने केंद्र में सत्ताधारी पार्टी पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाया था. कई विश्लेषक भी इस तरह सत्ता परिवर्तन को लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं बताते. हाल में सत्याग्रह पर ही प्रकाशित अपने एक लेख में चर्चित इतिहासकार रामचंद्र गुहा का कहना था, ‘अगर विधायक किसी भी समय खरीदे और बेचे जा सकते हैं तो फिर चुनाव करवाने का मतलब ही क्या है? क्या इससे उन भारतीयों की लोकतांत्रिक इच्छा के कुछ मायने रह जाते हैं जिन्होंने इन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में वोट दिया था? अगर पैसे की ताकत का इस्तेमाल करके इतने प्रभावी तरीके से निष्पक्ष और स्वतंत्र कहे जाने वाले किसी चुनाव का नतीजा पलटा जा सकता है तो भारत को सिर्फ चुनाव का लोकतंत्र भी कैसे कहा जाए?’

ऐसे में पूछा जा सकता है कि जिस कांग्रेस पार्टी की सरकारें गिराने या ऐसा करने की कोशिशों के लिए भारतीय लोकतंत्र पर भी सवाल उठाया जा रहा है, उस कांग्रेस के भीतर लोकतंत्र का क्या हाल है? क्या भाजपा पर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगा रही कांग्रेस खुद इस लोकतंत्र को कोई बेहतर विकल्प दे सकती है? क्या खेत की मिट्टी से ही उसमें उगने वाली फसल की गुणवत्ता तय नहीं होती है?

2019 के आम चुनाव में भाजपा की दोबारा प्रचंड जीत के बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था. इससे एक सदी पहले यानी 1919 में मोतीलाल नेहरू पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे. 1919 से 2019 तक 100 साल के इस सफर के दौरान कांग्रेस में जमीन-आसमान का फर्क आया है. तब कांग्रेस आसमान पर थी और उसके मूल्य भी ऊंचे थे. आज साफ है कि वह दोनों मोर्चों पर घिसट भी नहीं पा रही है.

मोतीलाल और जवाहरलाल नेहरू के वक्त की कांग्रेस परंपरावाद से लेकर आधुनिकता तक कई विरोधाभासी धाराओं को साथ लिए चलती थी. नेतृत्व के फैसलों पर खुलकर बहस होती थी और इसमें आलोचना के लिए भी खूब जगह थी. 1958 के मूंदड़ा घोटाले के उदाहरण से इसे समझा जा सकता है. यह आजाद भारत का पहला वित्तीय घोटाला था और इसने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बड़ी किरकिरी की थी. इसकी एक वजह यह भी थी कि इसे उजागर करने वाला और कोई नहीं बल्कि उनके ही दामाद और कांग्रेस के सांसद फीरोज गांधी थे. इस घोटाले के चलते तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णमचारी को इस्तीफा देना पड़ा था.

इसी सिलसिले में 1962 का भी एक किस्सा याद किया जा सकता है. चीन के साथ युद्ध को लेकर संसद में बहस गर्म थी. अक्साई चिन, चीन के कब्जे में चले जाने को लेकर विपक्ष ने हंगामा मचाया हुआ था. इसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संसद में यह बयान दिया कि अक्साई चिन में घास का एक तिनका तक नहीं उगता. कहते हैं कि इस पर उनकी ही पार्टी के सांसद महावीर त्यागी ने अपना गंजा सिर उन्हें दिखाया और कहा, ‘यहां भी कुछ नहीं उगता तो क्या मैं इसे कटवा दूं या फिर किसी और को दे दूं.’

अब 2020 पर आते हैं. क्या आज की कांग्रेस में ऐसी किसी स्थिति की कल्पना की जा सकती है? एक ताजा उदाहरण से ही इसे समझते हैं. कांग्रेस प्रवक्ता रहे संजय झा ने कुछ दिन पहले टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में एक लेख लिखा. इसमें कहा गया था कि दो लोकसभा चुनावों में इतनी बुरी हार के बाद भी ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है जिससे लगे कि पार्टी खुद को पुनर्जीवित करने के प्रति गंभीर है. उनका यह भी कहना था कि अगर कोई कंपनी किसी एक तिमाही में भी बुरा प्रदर्शन करती है तो उसका कड़ा विश्लेषण होता है और किसी को नहीं बख्शा जाता, खास कर सीईओ और बोर्ड को. संजय झा का कहना था कि कांग्रेस के भीतर ऐसा कोई मंच तक नहीं है जहां पार्टी की बेहतरी के लिए स्वस्थ संवाद हो सके. इसके बाद उन्हें प्रवक्ता पद से हटा दिया गया. इसके कुछ दिन बाद उन्होंने राजस्थान के सियासी घटनाक्रम पर टिप्पणी की. इसमें संजय झा का कहना था कि जब सचिन पायलट के राज्य इकाई का अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में शानदार वापसी की तो उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था. इसके बाद संजय झा को पार्टी से भी निलंबित कर दिया गया. इसका कारण उनका पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होना और अनुशासन तोड़ना बताया गया.

माना जाता है कि कांग्रेस के भीतर कभी मौजूद रही लोकतंत्र की शानदार इमारत के दरकने की शुरुआत इंदिरा गांधी के जमाने में हुई. वे 1959 में पहली बार कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थीं. उस समय भी कहा गया था कि जवाहरलाल नेहरू अपनी बेटी को आगे बढ़ाकर गलत परंपरा शुरू कर रहे हैं. इस आलोचना का नेहरू ने जवाब भी दिया था. उनका कहना था कि वे बेटी को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार नहीं कर रहे हैं. प्रथम प्रधानमंत्री के मुताबिक वे कुछ समय तक इस विचार के खिलाफ भी थे कि उनके प्रधानमंत्री रहते हुए उनकी बेटी कांग्रेस की अध्यक्ष बन जाएं.

हालांकि कई ऐसा नहीं मानते. एक साक्षात्कार में वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय कहते हैं, ‘नेहरू खुद इंदिरा को कांग्रेस के नेतृत्व की कतार में खड़ा करने, बनाए रखने और जिम्मेदारी सौंपने का प्रयास करते रहे. जब नेहरू की तबीयत थोड़ी कमजोर हुई तो उन्होंने इंदिरा को कांग्रेस की कार्यसमिति में रखा.’ यह भी कहा जाता है कि अध्यक्ष पद के लिए पहले दक्षिण भारत से तालुल्क रखने वाले धाकड़ नेता निजलिंगप्पा का नाम प्रस्ताव हुआ था, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने इस पर चुप्पी ओढ़ ली और फिर जब इंदिरा गांधी के नाम का प्रस्ताव आया तो उन्होंने हामी भर दी.

महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल और राजेंद्र प्रसाद जैसे कांग्रेसी दिग्गजों ने हमेशा कोशिश की कि उनके बच्चे उनकी राजनीतिक विरासत का फायदा न उठाएं. लेकिन नेहरू – इंदिरा गांधी इससे उलट राह पर गईं. जैसा कि अपने एक लेख में पूर्व नौकरशाह और चर्चित लेखक पवन के वर्मा लिखते हैं, ‘उन्होंने वंशवाद को संस्थागत रूप देने की बड़ी भूल की. अपने छोटे बेटे संजय को वे खुले तौर पर अपना उत्तराधिकारी मानती थीं.’ जब संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में असमय मौत हुई तो इंदिरा अपने बड़े बेटे और पेशे से पायलट उन राजीव गांधी को पार्टी में ले आईं जिनकी राजनीति में दिलचस्पी ही नहीं थी.

सोनिया गांधी की जीवनी ‘सोनिया : अ बायोग्राफी’ में वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई लिखते हैं, ‘इंदिरा और राजीव गांधी की इस पारिवारिक पकड़ ने पार्टी में नंबर दो का पद भी ढहा दिया था. हमेशा सशंकित रहने वाली इंदिरा गांधी ने राजीव को एक अहम सबक सिखाया – स्थानीय क्षत्रपों पर लगाम रखो और किसी भी ऐसे शख्स को आगे मत बढ़ाओ जो नेहरू-गांधी परिवार का न हो.’

इंदिरा गांधी ने खुद यही किया था. उनके समय में ही कांग्रेस में ‘हाईकमान कल्चर’ का जन्म हुआ और क्षेत्रीय नेता हाशिये पर डाल दिए गए. लंदन के मशहूर किंग्स कॉलेज के निदेशक और चर्चित लेखक सुनील खिलनानी अपने एक लेख में कहते हैं कि ऐसा इंदिरा गांधी ने दो तरीकों से किया – पहले उन्होंने पार्टी का विभाजन किया और फिर ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दीं कि पार्टी से वफादारी के बजाय इंदिरा गांधी से वफादारी की अहमियत ज्यादा हो गई.

इंदिरा गांधी ने यह बदलाव पैसे का हिसाब-किताब बदलकर किया. पहले पैसे का मामला पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से अलग रखा जाता था. जवाहरलाल नेहरू आदर्शवादी नेता थे लेकिन उन्हें यह भी अहसास था कि कांग्रेस जैसी विशाल पार्टी को चलाने के लिए काफी पैसे की जरूरत होती है, तो उन्होंने यह काम स्थानीय क्षत्रपों पर छोड़ रखा था जो अपने-अपने तरीकों से पैसा जुटाते और इसे अपने इलाकों में चुनाव पर खर्च करते. सुनील खिलनानी लिखते हैं, ‘इंदिरा गांधी ने यह व्यवस्था खत्म कर दी. अब स्थानीय नेताओं को दरकिनार करते हुए नकदी सीधे उनके निजी सचिवों के पास पहुंचाई जाने लगी और उम्मीदवारों को चुनावी खर्च के लिए पैसा देने की व्यवस्था पर इंदिरा गांधी के दफ्तर का नियंत्रण हो गया. पैसा पहले ब्रीफकेस में भरकर आता था. बाद में सूटकेस में भरकर आने लगा.’ सुनील खिलनानी के मुताबिक इस सूटकेस संस्कृति के जरिये इंदिरा गांधी ने अपने चहेते वफादारों का एक समूह खड़ा कर लिया जिसे इस वफादारी का इनाम भी मिलता था. इस सबका दुष्परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस वोट पाने से लेकर विधायक दल का नेता चुनने तक हर मामले में नेहरू-गांधी परिवार का मुंह ताकने लगी.

यही वजह थी कि 1984 में जब अपने अंगरक्षकों के हमले में इंदिरा गांधी की असमय मौत हुई तो राजनीति के मामले में नौसिखिये राजीव गांधी को तुरंत ही पार्टी की कमान दे दी गई. उन्होंने अपनी मां से मिले सबक याद रखे. राशिद किदवई ने अपनी किताब में लिखा है कि शरद पवार, नारायण दत्त तिवारी और अर्जुन सिंह जैसे कई मजबूत क्षत्रपों पर लगाम रखने के लिए राजीव गांधी ने भी नेताओं का एक दरबारी समूह बनाया. कोई खास जनाधार न रखने वाले इन नेताओं को ताकतवर पद दिए गए. बूटा सिंह, गुलाम नबी आजाद और जितेंद्र प्रसाद ऐसे नेताओं में गिने गए. यानी इंदिरा गांधी ने कांग्रेस में लोकतंत्र के खात्मे की जो प्रक्रिया शुरू की थी उसे राजीव गांधी ने आगे बढ़ाया.

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद भी वही हुआ जो 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ था. इस घटना के बाद दिल्ली में उनके निवास 10 जनपथ पर कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ जमा थी. वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह भी वहां मौजूद थीं. इसी दौरान अपने एक सहयोगी से उन्हें खबर मिली कि कांग्रेस कार्यसमिति की एक बैठक हुई है जिसमें सोनिया गांधी को पार्टी की कमान देने का फैसला हुआ है. यह सुनकर वे हैरान रह गईं. अपनी किताब दरबार में वे लिखती हैं, ‘मैंने कहा कि वे तो विदेशी हैं और हिंदी तक नहीं बोलतीं. वे कभी अखबार नहीं पढ़तीं. ये पागलपन है.’ सोनिया गांधी तब कांग्रेस की सदस्य तक नहीं थीं. अपनी किताब में राशिद किदवई लिखते हैं, ‘सोनिया गांधी में नेतृत्व के गुण हैं या नहीं, उन्हें भारतीय राजनीति की पेचीदगियों का अंदाजा है या नहीं, इन बातों पर जरा भी विचार नहीं किया गया.’

हालांकि सोनिया गांधी ने उस समय यह पद ठुकरा दिया. एक बयान जारी करते हुए उन्होंने कहा कि जो विपदा उन पर आई है उसे और अपने बच्चों को देखते हुए उनके लिए कांग्रेस अध्यक्ष का पद स्वीकार करना संभव नहीं है. परिवार के सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी को कांग्रेस कार्यसमिति का यह फैसला काफी असंवेदनशील भी लगा क्योंकि तब तक राजीव गांधी का अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था. राशिद किदवई के मुताबिक उस समय परिवार के काफी करीबी रहे अमिताभ बच्चन ने कहा कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को भी इसी तरह पार्टी की कमान थामने को मजबूर किया गया था और कब तक गांधी परिवार के सदस्य इस तरह बलिदान देते रहेंगे.

इसके बाद अगले चार साल तक कांग्रेस की कमान तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के पास रही. 1978 में ब्रह्मानंद रेड्डी के बाद से यह पहली बार था जब पार्टी की अगुवाई गांधी परिवार से बाहर का कोई शख्स कर रहा था. हालांकि तब भी गांधी परिवार कांग्रेस के भीतर एक शक्ति केंद्र था ही. कहा जाता है कि नरसिम्हा राव से असंतुष्ट नेता सोनिया गांधी को अपना दुखड़ा सुनाते थे. राव के बाद दो साल पार्टी सीताराम केसरी की अगुवाई में चली.

तब तक 1996 के आम चुनाव आ चुके थे. इन चुनावों में सत्ताधारी कांग्रेस का प्रदर्शन काफी फीका रहा. पांच साल पहले 244 सीटें लाने वाली पार्टी इस बार 144 के आंकड़े पर सिमट गई. उधर, भाजपा का आंकड़ा 120 से उछलकर 161 पर पहुंच गया. कांग्रेस का एक धड़ा सोनिया गांधी को वापस लाने की कोशिशों में जुटा था. पार्टी की बिगड़ती हालत ने उसकी इन कोशिशों को वजन दे दिया. 1997 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में सोनिया गांधी को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता दिलाई गई और इसके तीन महीने के भीतर ही वे अध्यक्ष बन गईं.

कांग्रेस के अब तक हुए अध्यक्षों की सूची देखें तो सोनिया गांंधी राजनीति के लिहाज से सबसे ज्यादा नातजुर्बेकार थीं लेकिन, उन्होंने सबसे ज्यादा समय तक यह कुर्सी संभाली. वे करीब दो दशक तक कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं और अब फिर अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पार्टी की कमान संभाले हुए हैं.

इसी तरह राहुल गांधी 2004 में सक्रिय राजनीति में आए. तीन साल के भीतर उन्हें पार्टी महासचिव बना दिया गया. 2013 में यानी राजनीति में आने के 10 साल से भी कम वक्त के भीतर राहुल गांधी कांग्रेस उपाध्यक्ष बन गए. 2017 में वे अध्यक्ष बनाए गए. 2019 में उन्होंने पद छोड़ा तो चुनाव नहीं हुए बल्कि सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बन गईं. इसी तरह कोई चुनाव न जीतने के बाद भी प्रियंका गांधी कांग्रेस की महासचिव हैं. और परिवार में कथित तौर पर सबसे ज्यादा राजनीतिक परिपक्वता रखने के बाद भी सिर्फ पारिवारिक समीकरणों के चलते ही वे शायद पार्टी में बड़ी मांग होने पर भी उसके लिए खुलकर राजनीति नहीं कर पा रही हैं.

यानी कि अब भी कांग्रेस उसी तरह चल रही है जैसी राजीव और इंदिरा गांधी के समय चलती थी. इसका मतलब यह है कि पार्टी के भीतर लोकतंत्र पहले की तरह अब भी गायब है. अगर इससे थोड़ा आगे बढ़ें तो यह भी कहा जा सकता है कि जब गांधी परिवार के भीतर ही नेतृत्व का निर्णय लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित नहीं है तो इसकी उम्मीद पार्टी के स्तर पर कैसे की जा सकती है! राजीव-इंदिरा की तरह आज सोनिया गांधी के इर्द-गिर्द भी नेताओं की एक मंडली जमी रहती है और बाकियों को इसके जरिये ही उन तक अपनी बात पहुंचानी पड़ती है. राज्यों के चुनाव होते हैं तो विधायक दल का नेता चुनने का अधिकार केंद्रीय नेतृत्व को दे दिया जाता है जो अपनी पसंद का नाम तय कर देता है. संसदीय दल का नेता चुनने के मामले में भी ऐसा ही होता है.

2004 के आम चुनाव में तो मामला इससे भी आगे चला गया था. कांग्रेस सबसे ज्यादा सीटें लाई थीं और उसके नेतृत्व में गठबंधन सरकार बननी थी. लेकिन विदेशी मूल का हवाला देकर भाजपा ने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध शुरू कर दिया. इसके बाद सोनिया गांधी खुद प्रधानमंत्री नहीं बनीं लेकिन उनके एक इशारे पर ही मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया गया. लेकिन बात यहीं नहीं रुकी. प्रधानमंत्री को सलाह देने के लिए एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद भी बन गई जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं. इस तरह का काम भारतीय लोकतंत्र में पहली बार हुआ था और इसके चलते सोनिया गांधी को सुपर पीएम कहा जाने लगा था.

वे दिन अब बीत चुके हैं. बीते साल कांग्रेस को लगातार दूसरे आम चुनाव में भयानक हार का सामना करना पड़ा. 2014 में महज 44 लोकसभा सीटें लाने वाली पार्टी 2019 के आम चुनाव में इस आंकड़े में सिर्फ आठ की बढो़तरी कर सकी. इस तरह देखें तो पार्टी के एक परिवार पर निर्भर होने के लिहाज से भी इस समय एक दिलचस्प स्थिति है. ऐसा पहली बार है जब गांधी परिवार के तीन सदस्य कांग्रेस में तीन सबसे प्रभावशाली भूमिकाओं में हैं और ठीक उसी वक्त पार्टी सबसे कमजोर हालत में है. अभी तक कहा जाता था कि गांधी परिवार एक गोंद की तरह कांग्रेस को जोड़े रखता है क्योंकि इसका करिश्मा चुनाव में वोट दिलवाता है. लेकिन साफ है कि वह करिश्मा अब काम नहीं कर रहा. पवन के वर्मा कहते हैं, ‘सच ये है कि पार्टी एक ऐसे परिवार की बंधक बनी हुई है जो दो आम चुनावों में इसका खाता 44 से सिर्फ 52 तक पहुंचा सका.’ उनके मुताबिक कांग्रेस को नेतृत्व से लेकर संगठन तक बुनियादी बदलाव की जरूरत है और तभी वह एक ऐसा विश्वसनीय विपक्ष बन सकती है जिसकी लोकतंत्र को जरूरत होती है.

दबी जुबान में ही सही, कांग्रेस के भीतर से भी इस तरह के सुर सुनाई दे रहे हैं. कुछ समय पहले पार्टी नेता संदीप दीक्षित का कहना था कि ‘महीनों बाद भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नया अध्यक्ष नियुक्त नहीं कर सके. वजह ये है कि वे डरते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे.’ पूर्व सांसद ने यह भी कहा कि कांग्रेस के पास नेताओं की कमी नहीं है और अब भी कांग्रेस में कम से कम छह से आठ नेता हैं जो अध्यक्ष बनकर पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं. उनके इस बयान का पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने भी खुला समर्थन किया. उन्होंने कहा, ‘संदीप दीक्षित ने जो कहा है वह देश भर में पार्टी के दर्जनों नेता निजी तौर पर कह रहे हैं.’ शशि थरूर का आगे कहना था, ‘मैं कांग्रेस कार्यसमिति से फिर आग्रह करता हूं कि कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करने और मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए नेतृत्व का चुनाव कराया जाए.’

लेकिन अध्यक्ष पद के लिए चुनाव एक ऐसी बात है जो कांग्रेस में अपवाद और अनोखी बात रही है. आखिर बार ऐसा 2001 में हुआ था जब सोनिया गांधी के सामने जितेंद्र प्रसाद खड़े हुए थे और महज एक फीसदी वोट हासिल कर सके थे. उससे पहले 1997 में कांग्रेस में अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ था जिसमें सीताराम केसरी ने शरद पवार और राजेश पायलट को हराया था. और इससे पहले चुनाव की नौबत 1950 में तब आई थी जब जवाहरलाल नेहरू की नापसंदगी के बाद भी पुरुषोत्तम दास टंडन को ज्यादा वोट मिले थे और वे कांग्रेस के मुखिया बन गए थे. बाकी सभी मौकों पर पार्टी अध्यक्ष का चुनाव बंद कमरों में होता रहा है.

कांग्रेस के कई नेताओं के अलावा कुछ विश्लेषक भी मानते हैं कि किसी नए चेहरे का लोकतांत्रिक रूप से चुनाव ही भारत की सबसे पुरानी पार्टी को नया रूप देने का सबसे सही तरीका हो सकता है. अपने एक लेख में रामचंद्र गुहा कहते हैं कि इससे भी आगे बढ़कर वह प्रक्रिया अपनाई जा सकती है जो अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी अपनाती है और जो कहीं ज्यादा लोकतांत्रिक है. वे लिखते हैं, ‘पार्टी सदस्यों तक सीमित रहने वाले चुनाव से पहले टेलीविजन पर बहसें और टाउन हॉल जैसे आयोजन हो सकते हैं जिनमें उम्मीदवार अपने नजरिये और नेतृत्व की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करें. आखिर कांग्रेस इस बारे में क्यों नहीं सोचती?’

रामचंद्र गुहा का मानना है कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव उन लोगों के लिए भी खुला होना चाहिए जो कभी कांग्रेस में थे, लेकिन उसे छोड़कर चले गए. उदाहरण के लिए ममता बनर्जी. इस चर्चित इतिहासकार के मुताबिक ऐसे लोगों को भी उम्मीदवारी पेश करने की छूट दी जा सकती है जो कभी कांग्रेस पार्टी के सदस्य नहीं रहे. वे लिखते हैं, ‘मसलन कोई सफल उद्यमी या करिश्माई सामाजिक कार्यकर्ता भी दावेदार हो सकता है जिससे चुनाव कहीं ज्यादा दिलचस्प हो जाएगा.’ उनके मुताबिक उम्मीदवारों को साक्षात्कार-भाषण देने और व्यक्तिगत घोषणा पत्र जारी करने की छूट होनी चाहिए. रामचंद्र गुहा मानते हैं कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव इतना लोकतांत्रिक और पारदर्शी हो जाए तो तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस जैसी वे पार्टियां उसके साथ आ सकती हैं जिनके नेताओं के बारे में माना जाता है कि वे सिर्फ इसलिए कांग्रेस छोड़कर चले गए कि उन्हें एक हद से आगे नहीं बढ़ने दिया गया.

कई और विश्लेषक भी मानते हैं कि कांग्रेस इस बात को समझ नहीं पा रही कि नेहरू गांधी परिवार को लेकर उसकी जो श्रद्धा है, वही उसके उद्धार की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है. अपने एक लेख में राशिद किदवई कहते हैं, ‘जो नए मतदाता हैं या जिसे हम न्यू इंडिया कहते हैं, वे जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से ऊब चुके हैं. वे एक ही परिवार से हटना चाह रहे हैं.’ उनके मुताबिक जिस दिन कांग्रेस को यह समझ में आ जाएगा कि वह नेहरू-गांधी परिवार का इस्तेमाल भले करे, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व किसी और को दे दे, उसी दिन से कांग्रेस में बदलाव शुरू हो जाएगा.’

सवाल उठता है कि क्या ऐसा होगा? अभी तो अध्यक्ष पद छोड़ने के बावजूद कांग्रेस के केंद्र में राहुल गांधी ही दिख रहे हैं. पार्टी से जुड़ी ज्यादातर बड़ी सुर्खियां उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस या ट्वीट पर ही केंद्रित होती हैं. अंदरखाने से आ रही खबरों के मुताबिक कांग्रेस के कई नेता इससे फिक्रमंद हैं. उनकी शिकायत है कि रणनीति तो राहुल गांधी अपने हिसाब से तय कर रहे हैं, लेकिन इस रण को लड़ने वाले संगठन से जुड़ी शिकायतों पर वे यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि वे अब पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं.

यानी फिलहाल तो मामला वही ढाक के तीन पात जैसा है.

साभार: विकास बहुगुणा

राशिफल 29 जुलाई 2020

Aries

29 जुलाई 2020: अपने परिवार के हितों के ख़िलाफ़ काम न करें. मुमकिन है कि आप उनके नज़रिए से सहमत न हों, लेकिन निश्चित तौर पर आपके काम बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं. आपको अपनी योजनाओं को इस तरह से अमली जामा पहनाना चाहिए, जिससे वह दूसरों के लिए राह दिखाने का काम करे. रियल एस्टेट और वित्तीय लेन-देन के लिए अच्छा दिन है. आपको अपनी भावनाओं को नियन्त्रित करने में कठिनाई होगी, लेकिन आस-पास के लोगों से झगड़ा न करें नहीं तो आप अकेले रह जाएंगे. दोस्ती में प्रगाढ़ता के चलते रोमांस का फूल खिल सकता है. व्यावसायिक साझीदार सहयोग करेंगे और आप साथ मिलकर टलते आ रहे कामों को पूरा कर सकते हैं. आज कुछ ऐसा दिन है जब चीजें उस तरह नहीं होंगी, जैसी आप चाहते हैं. ज़्यादा ख़र्चे की वजह से जीवनसाथी से खट-पट हो सकती है. टीवी पर फ़िल्म देखना और अपने नज़दीकी लोगों के साथ गप्पें मारना – इससे बेहतर और क्या हो सकता है? अगर आप थोड़ी कोशिश करें तो आपका दिन कुछ इसी तरह गुज़रेगा.

Taurus

29 जुलाई 2020: आपका प्रबल आत्मविश्वास और आज के दिन का आसान कामकाज मिलकर आपको आराम के लिए काफ़ी वक़्त देंगे. कोई बड़ी योजनाओं और विचारों के ज़रिए आपका ध्यान आकर्षित कर सकता है. किसी भी तरह का निवेश करने से पहले उस व्यक्ति के बारे में भली-भांति जांच-पड़ताल कर लें. बहन की शादी की ख़बर आपके लिए ख़ुशी का सबब लेकर आएगी. हालांकि उससे दूर होने का ख़याल आपको उदास भी कर सकता है. लेकिन आपको भविष्य के बारे में सोचना छोड़ वर्तमान का पूरा आनंद लेना चाहिए. अपने प्रेम-प्रसंग के बारे में इधर-उधर ज़्यादा बातें न करें. ज़रूरत के वक़्त तेज़ी और होशियारी से काम करने की आपकी क्षमता आपको लोगों की प्रशंसा की पात्र बना देगी. यह शादीशुदा ज़िन्दगी के सबसे ख़ास दिनों में से एक है. आपको प्रेम की गहराई का अनुभव करेंगे.

Gemini

29 जुलाई 2020: डर आपकी ख़ुशी को बर्बाद कर सकता है. आपको समझना चाहिए कि यह आपके अपने ख़यालों और कल्पनाओं से पैदा हुआ है. डर सहजता को ख़त्म कर देता है. इसलिए इसे शुरुआत में ही कुचल दें, ताकि यह आपको कायर न बना सके. पैसे कमाने के नए मौक़े मुनाफ़ा देंगे. दोस्त मददगार और सहयोगी रहेंगे. ख़ुद को किसी भी ग़लत और ग़ैर-ज़रूरी चीज़ से दूर रखें, क्योंकि आप उसकी वजह से मुश्किल में फंस सकते हैं. नई चीज़ों को सीखने की आपकी ललक क़ाबिल-ए-तारीफ़ है. आज का दिन आपके लिए बहुत अच्छा नहीं रहेगा क्योंकि कई मामलों में आपसी असहमति रह सकती है; और इससे आपके रिश्ते कमजोर होंगे. अनुशासन सफलता की अहम सीढ़ी होती है. घर के सामान को व्यवस्थित ढंग से लगाने से जीवन में अनुशासन की शुरुआत कर सकते हैं. 

Cancer

29 जुलाई 2020: आपका तनाव काफ़ी हद तक ख़त्म हो सकता है. अगर आप आय में वृद्धि के स्रोत खोज रहे हैं, तो सुरक्षित आर्थिक परियोजनाओं में निवेश करें. पारिवारिक परेशानियों को हल करने में आपका बच्चों जैसा मासूम बर्ताव अहम किरदार अदा करेगा. आपको अपनी रसिक कल्पनाओं पर अधिक ग़ौर करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि संभव है कि वे आज सच हो जाएं. अपनी कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए नयी तकनीकों का सहारा लें. आपकी शैली और काम करने का नया अन्दाज़ उन लोगों में दिलचस्पी पैदा करेगा, जो आप पर नज़दीकी से ग़ौर करते हैं. जल्दबाज़ी में फ़ैसले न करें, ताकि ज़िन्दगी में आगे आपको पछताना न पड़े. जीवनसाथी से बहुत ज़्यादा उम्मीदें रखना आपको वैवाहिक जीवन में उदासी की तरफ़ ले जा सकता है.

Leo

29 जुलाई 2020: क्षणिक ग़ुस्सा विवाद और दुर्भावना की वजह बन सकता है. हालांकि धन आपकी मुट्ठियों से आसानी से सरक जाएगा, लेकिन आपके अच्छे सितारे तंगी नहीं आने देंगे. आपके प्रिय के साथ कुछ मतभेद उभर सकते हैं- साथ ही अपने साथी को अपना नज़रिया समझाने में भी तकलीफ़ महसूस होगी. अपने चारों ओर होने वाली गतिविधियों का ध्यान रखें, क्योंकि आपके काम का श्रेय कोई दूसरा ले सकता है. छुपे हुए दुश्मन आपके बारे में अफ़वाहें फैलाने के लिए अधीर होंगे. आपका जीवनसाथी आप पर शक कर सकता है, जिसके चलते आपका दिन उतना अच्छा नहीं रहेगा. टीवी पर फ़िल्म देखना और अपने नज़दीकी लोगों के साथ गप्पें मारना – इससे बेहतर और क्या हो सकता है? अगर आप थोड़ी कोशिश करें तो आपका दिन कुछ इसी तरह गुज़रेगा.

Virgo

29 जुलाई 2020: स्वास्थ्य के लिहाज़ से बहुत अच्छा दिन है. आपकी ख़ुशमिज़ाजी ही आपके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी करेगी. प्राप्त हुआ धन आपकी उम्मीद के मुताबिक़ नहीं होगा. बच्चों से असहमति के चलते वाद-विवाद हो सकता है और यह झुंझलाहट भरा साबित होगा. काम के दबाव के चलते मानसिक उथल-पुथल और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. दिन के उत्तरार्ध में ज़्यादा तनाव न लें और आराम करें. साझीदारी की परियोजनाएं सकारात्मक परिणाम से ज़्यादा परेशानियां देंगी. कोई आपका बेजा फ़ायदा उठा सकता है और उसे ऐसा करने देने के लिए आप ख़ुद से ही नाराज़ हो सकते हैं. वैवाहिक जीवन के लिहाज़़ से यह बढ़िया दिन है. घर में ही साथ में एक अच्छी शाम गुज़ारने की योजना बनाएं. 

Libra

29 जुलाई 2020: आज आप उम्मीदों की जादुई दुनिया में हैं. मनोरंजन और सौन्दर्य में इज़ाफ़े पर ज़रुरत से ज़्यादा वक़्त न ख़र्च करें. लोगों और उनके इरादों के बारे में जल्दबाज़ी में फ़ैसला न लें. हो सकता है कि वे दबाव में हों और उन्हें आपकी सहानुभूति व विश्वास की ज़रूरत हो. अचानक हुई रोमांटिक मुलाक़ात आपके लिए उलझन पैदा कर सकती है. साझेदारी में किए गए काम आख़िरकार फ़ायदेमंद साबित होंगे, लेकिन आपको अपने भागीदारों से काफ़ी विरोध का सामना करना पड़ सकता है. जीवनसाथी की वजह से आपकी कोई योजना या कार्य गड़बड़ हो सकता है; लेकिन धैर्य बनाए रखें. सारा दिन बर्तन मांजने और कपड़े धोने जैसे घरेलू कामों में बिताना वाक़ई बोझिल कर देता है. इसलिए दिन का बेहतर उपयोग करने की योजना बनाएं.

Scorpio

29 जुलाई 2020: चोट से बचने के लिए सावधानी से बैठें. साथ ही सही तरीक़े से कमर सीधी करके बैठना न केवल व्यक्तित्व में सुधार लाता है, बल्कि सेहत और आत्म-विश्वास के स्तर को भी ऊपर ले जाता है. निवेश से जुड़े अहम फ़ैसले किसी और दिन के लिए छोड़ देने चाहिए. आपके परिवार वाले किसी छोटी-सी बात को लेकर राई का पहाड़ बना सकते हैं. आप प्रेम की आग में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन लगातार जलते रहेंगे. कामकाज के नज़रिए से आज का दिन वाक़ई सुचारू रूप से चलेगा. अगर आप जीवनसाथी के अलावा किसी और को अपने ऊपर असर डालने का मौक़ा दे रहे हैं, तो जीवनसाथी की ओर से आपको नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलना संभव है. आपको महसूस हो सकता है कि आप अपना दिन बर्बाद कर रहे हैं. इसलिए अपने दिन की योजना बेहतर तरीक़े से बनाएं.

Sagittarius

29 जुलाई 2020: कोई बेहतरीन नया विचार आपको आर्थिक तौर पर फ़ायदा दिलायेगा. जब निवेश करने का सवाल आपके सामने हो, तो स्वतन्त्र बनें और अपने फ़ैसले ख़ुद लें. किसी की दख़लअंदाज़ी के चलते आपके और आपके प्रिय के रिश्ते में दूरियां आ सकती हैं. कामकाज में थोड़ी मुश्किल के बाद आपको दिन में कुछ अच्छा देखने को मिल सकता है. अगर आप अपनी चीज़ों का ध्यान नहीं रखेंगे, तो उनके खोने या चोरी होने की संभावना है. आपके प्रिय का एक अप्रत्याशित सकारात्मक कार्य, विवाह को लेकर आपकी धारणा को बदल सकता है. समय मुफ़्त ज़रूर है पर बेशक़ीमती भी है, इसलिए अपने अधूरे कार्यों को निपटाकर आप आने वाले कल के लिए निश्चिंत हो सकते हैं.

Capricorn

29 जुलाई 2020: काम का बोझ आज कुछ तनाव और खीज की वजह बन सकता है. निवेश के लिए अच्छा दिन है, लेकिन उचित सलाह से ही निवेश करें. नवजात शिशु की ख़राब तबियत परेशानी का सबब बन सकती है. इस ओर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है. डॉक्टर से भली-भांति सलाह लें, क्योंकि ज़रा-सी लापरवाही बीमारी को बद से बदतर बना सकती है. रोमांस आनन्ददायी और काफ़ी रोमांचक रहेगा. नई चीज़ों को सीखने की आपकी ललक क़ाबिल-ए-तारीफ़ है. आपके हंसने-हंसाने का अन्दाज़ आपकी सबसे बड़ी पूंजी साबित होगा. आपका जीवनसाथी आपको प्यार का एहसास देना चाहता है, उसकी मदद करें.

Aquarius

29 जुलाई 2020: मनोरंजन और सौन्दर्य में इज़ाफ़े पर ज़रुरत से ज़्यादा वक़्त न ख़र्च करें. कुछ लोग जितना कर सकते हैं, उससे कई ज़्यादा करने का वादा कर देते हैं. ऐसे लोगों को भूल जाएं जो सिर्फ़ गाल बजाना जानते हैं और कोई परिणाम नहीं देते. ख़ुशी के लिए नए संबंध की प्रतीक्षा करें. आज के दिन आप कार्यक्षेत्र में कुछ बढ़िया कर सकते हैं. जब आपसे राय पूछी जाए तो संकोच न करें- क्योंकि इसके लिए आपकी काफ़ी तारीफ़ होगी. अपने जीवनसाथी के स्नहे से भीगकर आप ख़ुद को राजसी महसूस कर सकते हैं.

Pisces

29 जुलाई 2020: आप जो शारीरिक बदलाव आज करेंगे, वे निश्चित तौर पर आपके रूप-रंग को आकर्षक बनाएगा. आज के दिन आपको आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है- मुमकिन है कि आप ज़रूरत से ज़्यादा ख़र्च करें या आपका बटुआ खो भी सकता है- ऐसे मामलों में सावधानी की कमी आपको नुक़सान पहुंचा सकती है. अपना अतिरिक्त समय निःस्वार्थ सेवा में लगाएं. यह आपको और आपके परिवार को ख़ुशी और दिली सुकून देगा. आज प्रेम-संबंधों में अपने स्वतन्त्र विवेक का इस्तेमाल कीजिए. सहकर्मियों के सहयोग से आप मुश्किल दौर से जल्द ही निकल जाएंगे. यह आपको कार्यक्षेत्र में बढ़त बनाने में मददगार साबित होगा. आज आपको अपने जीवनसाथी का दैवीय पक्ष देखने को मिल सकता है. अगर आप अपने दिन को ज़रा बेहतर व्यवस्थित करें, तो अपने खाली समय का पूरा सदुपयोग कर काफ़ी काम कर सकते हैं.

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पंचांग 29 जुलाई 2020

आज 29 जुलाई को हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि है. आज बुधवार है. आज का दिन विघ्नहर्ता गणेश भगवान को समर्पित माना जाता है. गणेश भगवान ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं. गणेश भगवान को बाधाओं और संकटों का नाश करने वाला भी माना जाता है. गणेश भगवान शिव जी के छोटे पुत्र हैं. 

विक्रमी संवत्ः 2077, 

शक संवत्ः 1942, 

मासः श्रावण़़, 

पक्षः शुक्ल पक्ष, 

तिथिः दशमी रात्रि 01.17 तक है, 

वारः बुधवार, 

नक्षत्रः विशाखा प्रातः 08.43 तक, 

योगः शुक्ल अपराह्न 03.34 तक, 

करणः तैतिल, 

सूर्य राशिः कर्क, 

चंद्र राशिः वृश्चिक, 

राहु कालः दोपहर 12.00 बजे से 1.30 बजे तक, 

सूर्योदयः 05.44, 

सूर्यास्तः 07.10 बजे।

विशेषः आज उत्तर दिशा की यात्रा न करें। अति आवश्यक होने पर बुधवार को राई का दान, लाल सरसों का दान देकर यात्रा करें।