सोनिया गांधी द्वारा विपक्ष की बैठक
‘क्रूर मज़ाक’ यह शब्द आज इसी हफ्ते में दूसरी बार सुनाई दिया। इससे पहले रायबरेली से कॉंग्रेस विधायिका अदिति सिंह ने अपनी ही पार्टी की बसों की राजनीति पर यह शब्द कहा था जिसके परिणाम स्वरूप उन्हे कॉंग्रेस पार्टी के कई पदों से हाथ धोना पड़ा। नया शब्द था तो प्रयोग लाजिमी था आज यह शब्द सोनिया जी ने प्रधान मंत्री के कार्यों पर चस्पा कर दिया। आज कॉंग्रेस की कार्यकारिणी अध्यक्षा ने भारत सरकार के खिलाफ विपक्ष को लामबंद कर मोदी को घेरने की चेष्टा भर की। फिर भी 22 क्षेत्रीय नेताओं ने भाग लिया। यह नेता 22 राज्यों से भले ही न हों परंतु 22 दलों से अवश्य ही संबंध रखते हैं। कोरोना के चलते यह बैठक संचार के नए माध्यमों से ली गयी थी। इस बैठक का एक परोक्ष मुद्दा था राहुल और प्रियंका को विपक्षी दलों मे सर्वमान्य बनाना। यहीं पर कॉंग्रेस धता खा गयी। हिन्दी भाषी क्षेत्रीय दलों के सर्वेसर्वाओं को आने वाले समय में खुद का राहुल या प्रियंका के जी हजूर क्षत्रप होने का आभास भी नहीं देना था अत: हिन्दी भाषी अधिकतम विपक्षी नेताओं ने इस बैठक से किनारा किया। इस बैठक से एक बात और साफ हो गयी कि सोनिया गांधी भी विपक्ष की सर्वमान्य नेता नहीं हैं।
नयी दिल्ली/चंडीगढ़ – 22 मई
”केंद्र सरकार ने खुद के लोकतांत्रिक होने का दिखावा करना भी छोड़ दिया है और इसके मन में गरीबों-मजदूरों के मन में किसी भी तरह की दया और करुणा का भाव नहीं है. सरकार की ओर से घोषित किए गए आर्थिक पैकेज में सुधारों के नाम पर केवल दिखावा ही किया गया है.” यह बात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शु्क्रवार को विपक्षी पार्टियों के साथ पहली ऑनलाइन बैठक के दौरान कही. बैठक में कोरोना वायरस संकट पर चर्चा हुई. कोविड-19 महामारी से निपटने में पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के तौर तरीके की आलोचना करते हुए कांग्रेस प्रमुख ने कहा, “सारी शक्ति अब एक कार्यालय, पीएमओ में केंद्रित हैं.” उन्होंने कहा कि “संघवाद की भावना हमारे संविधान का अभिन्न अंग है लेकिन इसे भुला दिया गया है. इस बात के कोई संकेत नहीं है कि संसद के दोनों सदनों या स्थायी समितियों को कब मिलने के लिए बुलाया जाएगा.” पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बैठक में शामिल हुए लेकिन मायावती की बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी (आआपा) के अरविंद केजरीवाल इससे नदारद रहे. इन तीनों ही पार्टियों के कांग्रेस से अपने सियासी मसले हैं. इस दौरान सोनिया गांधी ने पीएम के आर्थिक पैकेज को देश के साथ ‘क्रूर मजाक’ की तरह बताया.
सोनिया गांधी ने कहा कि कोरोना को 21 दिन में खत्म करने की पीएम का दावा धराशायी हुआ। सरकार के पास लॉकडाउन को लेकर कोई योजना नहीं था। सरकार के पास करोना संकट से बाहर निकलने की कोई नीति नहीं थी। लगातार लॉकडाउन का कोई फायदा नहीं हुआ, नतीजे खराब ही निकले।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि कोरोना टेस्ट और पीपीई किट के मोर्चे पर भी सरकार विफल रही है। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई, लॉकडाउन के नाम पर क्रूर मजाक हुआ। सभी शक्तियां पीएमओ के पास हैं, वो कर्मचारियों और कंपनियों के हितों की सुरक्षा करें।
सोनिया गांधी ने बैठक में कहा कि कोरोना संकट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरुआत में उम्मीद जताई थी कि इस पर 21 दिन में काबू पा लिया जाएगा, जबकि उनकी धारणा गलत साबित हो गई। उन्होंने कहा कि सरकार न सिर्फ लॉकडाउन के मानदंडों को लेकर अनिश्चित थी, बल्कि उसके पास इससे निकलने की भी कोई रणनीति नहीं थी। इस क्रमिक लॉकडाउन के नतीजे भी खास नहीं देखने को मिले।
सोनिया गांधी ने कहा कि कोरोना टेस्ट और टेस्टिंग किट के आयात पर भी झटका लगा है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि नकदी गरीबों को हस्तांतरित की जानी चाहिए, सभी परिवारों को मुफ्त अनाज दिया जाना चाहिए, प्रवासी श्रमिकों को उनके घरों में वापस जाने के लिए बसों और ट्रेनों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
सोनिया ने कहा कि कर्मचारियों और नियोक्ताओं की सुरक्षा के लिए सरकार को वेतन सहायता और मजदूरी संरक्षण निधि स्थापित करना चाहिए। सोनिया गांधी ने पीएसयू को बेचने को हरी झंडी देने की आलोचना की और श्रम कानूनों को बहाल करने की अपील की।
उन्होंने कहा कि सभी शक्तियां अब एक कार्यालय, पीएमओ में केंद्रित हो गई है। संघवाद की भावना जो हमारे संविधान का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसे भुला दिया गया है। संसद के दोनों सदनों या स्थायी समितियों को बैठक करने के लिए बुलाया जाएगा या नहीं…इसका कोई संकेत दिख नहीं रहा।
बैठक में नहीं शामिल हुईं ये पार्टियां
इस बैठक में विपक्ष के कई क्षेत्रीय शामिल हुए। इस बैठक में एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, सीताराम येचुरी, तेजस्वी यादव, डीएमके के एमके स्टालिन, और शिवसेना के संजय राउत जैसे नेता शामिल हुए। गैर बीजेपी राज्यों के कई मुख्यमंत्री भी बैठक में शामिल हुए। मगर इस बैठक से सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी हिन्दी भाषी दलों ने दुरी बना ली।