‘‘देश के किसी अन्य हिस्से में पिछले पांच वर्ष में कोई बम विस्फोट नहीं हुआ. हम आतंकवाद को जम्मू-कश्मीर के केवल ढाई जिलों तक सीमित करने में सफल रहे हैं.’’ मोदी

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नामांकन के पश्चात देश में सियासी तूफान उबल पड़ा है। जिनके आलाकमान जमानत पर बाहर घूम रहे हैं और जो दो- दो जगहों से चुनाव लड़ रहे हैं वह भी साध्वी के चुनाव लड़ने पर तंज़ कस रहे हैं। कहीं प्रवक्ताओं पर जूता फेंका जा रहा है तो कहीं प्रवक्ताओं को डराया धमकाया जा रहा है। ऐसे में अच्छी खबर है की एक – दो घटना के अलावा चुनाव का दूसरा दौर भी शांति से सम्पन्न हुआ। ऐसे में प्रधान मंत्री मोदी अमरौली में अपनी चुनावी सभा को धन्यवाद सभा कह दें तो क्या अचरज है?

अमरेली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि उनकी सरकार आतंकवाद को जम्मू-कश्मीर के केवल ‘‘ढाई’’ जिलों तक सीमित करने में कामयाब रही है और देश के किसी अन्य हिस्से में पिछले पांच साल में कोई बम विस्फोट नहीं हुआ. पीएम मोदी ने गुजरात के अमरेली में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने गुजरात में जो कुछ सीखा, उससे उन्हें 2017 में चीन के साथ डोकलाम गतिरोध के दौरान मदद मिली.

उन्होंने देश में पहले हुए बम विस्फोट के विभिन्न मामलों का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘देश के किसी अन्य हिस्से में पिछले पांच वर्ष में कोई बम विस्फोट नहीं हुआ. हम आतंकवाद को जम्मू-कश्मीर के केवल ढाई जिलों तक सीमित करने में सफल रहे हैं.’’

बालाकोट हवाई हमला
बालाकोट हवाई हमले के बाद भारत से संपर्क साधने की कोशिश संबंधी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बयान पर मोदी ने कहा कि नेता को ‘‘फोन उठाने के लिए हमसे सार्वजनिक रूप से अनुरोध करना पड़ा.’’

उन्होंने देश में कांग्रेस नीत पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि यदि सरदार सरोवर परियोजना 40 वर्ष पहले पूरी हो गई होती तो गुजरात बहुत बेहतर जगह होती. मोदी ने कहा कि कांग्रेस को 2014 में आजादी के बाद सबसे कम सीटों पर जीत मिली और 2019 में वह सबसे कम लोकसभा सीटों के लिए लड़ रही है, लेकिन तब भी वह सत्तारूढ़ पार्टी बनने का ‘‘सपना देख’’ रही है.

उन्होंने यह भी कहा कि गुजरात में बनी सरदार पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा का मकसद दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अनादर करना नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए यह कोई चुनावी रैली नहीं है, बल्कि यह मेरे लिए गुजरात के लोगों को धन्यवाद देने की रैली है क्योंकि मैं यहीं निखरा.’’

भाजपा अपना दक्षिणदुर्ग कैसे बचा पाएगी?

विधानसभा चुनावों में प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी भाजपा को एक बार फिर से कर्णाटक में अपना परचम लहराने की उम्मीद है। गांधी-देवेगौड़ा गठबंधन में हमेशा ही अविश्वास की स्थिति, इस विचार को बल देती है। गणित और भी हैं…..

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 में दूसरे चरण का मतदान 18 अप्रैल को हो रहा है. दूसरे और तीसरे चरण में दक्षिण के एक महत्वपूर्ण राज्य कर्नाटक में वोटिंग होनी है. दक्षिण में यही इकलौता राज्य है जहां बीजेपी न सिर्फ अपने दम पर सरकार बना चुकी है, बल्कि यह दक्षिण में उसका प्रवेश द्वार कहलाता है. पिछले साल मई में यहां विधानसभा चुनाव हुआ था जिसमें बीजेपी, कांग्रेस और एच डी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर अलग-अलग लड़े थे. उस समय बीजेपी बहुमत से मामूली अंतर से चूक गई और कांग्रेस जेडीएस ने मिलकर सरकार बना ली. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन गठबंधन के बावजूद बीजेपी को उम्मीद है कि कर्नाटक का उसका गढ़ बचा रहेगा.

इसकी एक वजह तो यह है कि कर्नाटक में बीजेपी न सिर्फ इस विधानसभा चुनाव में हारी बल्कि पिछला विधानसभा चुनाव भी हारी थी, लेकिन विधानसभा हारने के बावजूद लोकसभा में उसकी ताकत कम नहीं हुई. बीजेपी को लोकसभा 2014 में कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें मिली थीं. इससे पहले जब 2004 और 2009 में देश में कांग्रेस की सरकार बनी तब भी बीजेपी को यहां क्रमश: 18 और  19 लोकसभा सीटें मिलीं. यानी खराब दौर में भी बीजेपी का यह गढ़ कायम रहा.

लेकिन सवाल यह है कि गठबंधन के बावजूद गढ़ कैसे बचेगा. ऐसे में 2014 में हुए लोकसभा चुनाव परिणाम का विश्लेषण करें, तो कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन विरोधाभासी असर डालता नजर आएगा. एक तरफ यह गठबंधन के वोट बैंक में खासी बढ़ोतरी दिखाएगा, तो दूसरी तरफ सीटों का इजाफा न के बराबर होगा.

क्या है कर्नाटक का लोकसभा का गणित
लोकसभा में कर्नाटक से 28 सीटें आती हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी को 17, कांग्रेस को 9 और जेडीएस को 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. तब बीजेपी को 43.37 फीसदी, कांग्रेस को 41.15 फीसदी और जेडीएस को 11.07 फीसदी वोट मिले थे. अगर कांग्रेस और जेडीएस के वोट जोड़ लें तो यह 52 फीसदी से अधिक हो जाता है.

पिछले लोकसभा चुनाव का परिणाम देखें, तो पता चलता है कि कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में से सिर्फ मैसूर इकलौती लोकसभा सीट है, जहां अगर जेडीएस और कांग्रेस साथ आते तो बीजेपी के हाथ से यह सीट निकल जाती.

जेडीएस की इलाकाई ताकत बनी गठबंधन की कमजोरी
देखने में यह अजीब लग सकता है कि 52 फीसदी वोट पाने वाला गठबंधन बीजेपी को इतना कम नुकसान कैसे पहुंचा रहा है. इसे आंकड़ों से समझने से पहले जरा एक उदाहरण से समझें. कर्नाटक में जेडीएस मुख्य रूप से मैसूर और आसपास के इलाके की पार्टी है और उसका कोर वोटर वोक्कालिगा है. जेडीएस अपने कोर वोटर के साथ मुस्लिम वोटर को मिलाकर जीत हासिल करती हैं. जब इसका मुस्लिम वोटर कहीं और चला जाता है तो यह धरातल पर आ जाती हैं.

जेडीएस बीजेपी से लड़ती ही नहीं तो हराएगी कैसे
जेडीएस के साथ सबसे बड़ी बात यह है कि वह अपने प्रभाव वाले इलाके में कांग्रेस से ही मुकाबला करती है. दिलचस्प बात यह है कि इन इलाकों में बीजेपी का खास असर नहीं है. यानी अगर गठबंधन न हो तो इन इलाकों की सीटें कांग्रेस और जेडीएस के बीच बंटेंगी. वहीं गठबंधन हो गया तो दोनों पार्टियां राजीखुशी यही सीटें आपस में बांट लेंगी. चूंकि बीजेपी इस इलाके में है ही नहीं इसलिए उसे नुकसान होने का खास सवाल नहीं उठता.

उधर, जहां बीजेपी मजबूत है, वहां जेडीएस का मामूली असर है. इन इलाकों में जेडीएस के पास निर्णायक वोट नहीं है. ऐसे में गठबंधन होने के बावजूद वह बीजेपी से लड़ने में कांग्रेस की मदद नहीं कर सकती. यहां जो करना है कांग्रेस को अपने दम पर करना है.

9 लोकसभा सीट पर जेडीएस का असर, सीधी लड़ाई कांग्रेस से
पिछले लोकसभा चुनाव में कर्नाटक की 28 में से जो 17 सीटें बीजेपी ने जीतीं, उनमें मैसूर सीट पर बीजेपी को 43.45 फीसदी, कांग्रेस को 40.73 फीसदी और जेडीएस को 11.95 फीसदी वोट मिले थे. यहां कांग्रेस और जेडीएस के वोट मिला लें तो कांग्रेस यह सीट बीजेपी से छीन सकती है. अगर बीजेपी की जीती बाकी सीटें देखें तो शिमोगा में जेडीएस को 21.49 फीसदी वोट मिले थे. यहां भी कांग्रेस और जेडीएस के कुल वोट मिलाकर बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा के वोटों का मुकाबला नहीं कर पाते. बीजेपी की जीती बाकी सीटों में जेडीएस कहीं भी इतने वोट नहीं पा सकी, कि उन्हें कांग्रेस के वोटों में जोड़ दिया जाए तो कांग्रेस जीत जाए.

जेडीएस ने जिन सीटों पर अच्छे वोट पाए वे थीं- चित्रदुर्ग, तुमकुर, बेंगलुरू रूरल, चिक्कबालपुर और कोलार. लेकिन ये सारी सीटें पिछले चुनाव में कांग्रेस ने ही जीती थीं. यानी इस सीटों पर गठबंधन का वोट तो बहुत बढ़ जाएगा, लेकिन सीटों की संख्या वहीं रहेगी. पिछले चुनाव में जेडीएस ने दो सीटें जीती थीं- हासन और मांड्या, लेकिन इन सीटों पर भी उसने बीजेपी नहीं, कांग्रेस को हराया था. इन सीटों पर बीजेपी का वोट इतना कम है कि वह कहीं रेस में ही नहीं है. इस तरह देखा जाए तो जेडीएस के प्रभाव वाली 9 में से 8 सीटें पहले ही गठबंधन के पास हैं. ले-देकर मैसूर ही बचती है, जिसका परिणाम गठबंधन बदलेगा.

खिसकता वोट बैंक है बीजेपी की असली चिंता
अब तक के विश्लेषण से इतना साफ है कि गठबंधन से वोट तो खूब बढ़ेंगे, लेकिन सीटें नहीं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बीजेपी को लोकसभा में कर्नाटक से झटका लगने की कोई आशंका नहीं है. दरअसल 2014 लोकसभा चुनाव में 43.37 फीसदी वोट पाने वाली बीजेपी 2018 के विधानसभा चुनाव में महज 36 फीसदी वोट पा सकी. इस तरह चार साल में बीजेपी ने 7 फीसदी से अधिक वोट गंवा दिया है.

बीजेपी के लिए सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि यह वोट उसने कांग्रेस के हाथों गंवाया है. यानी बीजेपी के प्रभाव वाले इलाकों में जब कांग्रेस बीजेपी आमने-सामने आएंगी तो कांग्रेस 2014 की तुलना में बेहतर स्थिति में होगी. दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट भी लोकसभा 2014 के 41.15 फीसदी से घटकर 2018 में 38 फीसदी रह गया है. लेकिन कांग्रेस के लिए राहत की बात यह है कि उसने अपना वोट बीजेपी नहीं, जेडीएस के हाथ गंवाया है.

जेडीएस को लोकसभा में 11 फीसदी वोट मिला था जो विधानसभा चुनाव में बढ़कर 18 फीसदी हो गया. यानी कांग्रेस जो गंवाएगी वह अपनी दोस्त जेडीएस के लिए गंवाएगी यानी कुल मिलाकर कोई घाटा नहीं है. जेडीएस के साथ एक बात और है कि क्षेत्रीय पार्टी होने के कारण हर बार विधानसभा में उसका वोट बढ़ जाता है और लोकसभा में घट जाता है. इसीलिए विधानसभा में वह 40 सीट तक पहुंच जाती है, जबकि लोकसभा में दो सीट से ऊपर नहीं बढ़ पाती.

ऐसे में यह उलझा हुआ गठबंधन बीजेपी के किले को वाकई ढहा पाएगा, ऐसा दिखाई नहीं देता.

“अगर मैं देशद्रोही हूं तो चुनाव कैसे लड़ रहा हूं?’’कन्हैया कुमार

इस बार का चुनाव पढ़ाई और कड़ाही के बीच की लड़ाई है: कन्हैया कुमार। कन्हैया कुमार के इस ब्यान के जो भी मतलब निकले जाएँ वह सिरे से निरर्थक होंगे। कन्हैया कुमार का मानना है की जनता की लड़ाई जनता के पैसे से ही होनी चाहिए, तो कोई उनसे पूछे की वह आज तक डॉ॰ की उपाधि क्यों नहीं ले पाये। जबकि जनता का ही पैसा था जिस पर वह सालों जेएनयू में ऐश करते रहे।
जिस शोध कार्य के लिए इनहोने लाखों रुपये लिए क्या वह पूरा हो गया है?
यदि वह पूरा हो गया है तो उसका कीनिया को क्या लाभ हुआ?
या उस शोध कार्य का भारत को क्या लाभ हुआ?
और अब चुनाव लड़ने के लिए तत्पर होना।

कुछ भी कहें कन्हैया पर यह इबारत बिलकुल ठीक बैठती है

‘तालीम है अधूरी, मिलती नहीं मजूरी’

ऐसा प्रतीत होता है की कन्हैया कुमार को सिर्फ जनता के पैसे पर जीने की आदत हो गयी है.

बेगूसराय: मौजूदा लोकसभा चुनाव 2019 (lok sabha elections 2019) में बिहार की बेगूसराय सीट पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को कड़ी टक्कर दे रहे जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और भाकपा उम्मीदवार कन्हैया कुमार ने इस मुकाबले को पढ़ाई और कड़ाही के बीच की लड़ाई करार दिया. उन्होंने कहा कि एक ओर तो पढ़-लिखकर अपना और देश का भविष्य बनाने के इच्छुक युवा हैं और दूसरी तरफ वे लोग हैं जो इन पढ़े-लिखे युवाओं से पकौड़े तलवाना चाहते हैं.

लोकतंत्र पर खतरा
एनसीईआरटी की नौवीं कक्षा की किताब से लोकतंत्र का पाठ हटाए जाने के संदर्भ में वह कहते हैं, ‘‘अगर हम चुप रहें तो कल पूरे देश से ही लोकतंत्र को हटा दिया जाएगा.’’ चुनाव में जेएनयू प्रकरण और देशद्रोह को मुख्य मुद्दा बनाये जाने पर कन्हैया कुमार का कहना है, ‘‘अगर मैं देशद्रोही हूं, अपराधी हूं, दोषी हूं… तो सरकार मुझे जेल में क्यों नहीं डाल देती? अगर मैंने कुछ गलत किया है तब सरकार कार्रवाई करे. अगर मैं देशद्रोही हूं तो चुनाव कैसे लड़ रहा हूं?’’

देशद्रोह के आरोप बेबुनियाद
कन्हैया कुमार ने कहा,‘‘मेरा चुनाव लड़ना ही इस बात का सबूत है कि देशद्रोह के आरोप बेबुनियाद हैं. जनता सब जानती है. लोग वास्तविक मुद्दों पर बात करना चाहते हैं लेकिन भाजपा मनगढ़ंत मुद्दों की आड़ में लोगों को बांट रही है क्योंकि उसके पास जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं है. पिछले पांच वर्ष में केंद्र सरकार ने कुछ भी ठोस नहीं किया इसलिए वह भ्रम फैला रही है.’’

भाकपा उम्मीदवार ने कहा कि साजिश करने वालों को देश की चिंता नहीं है बल्कि वे चाहते हैं कि ‘देश में न कोई बोले, ना सवाल करे.’ अपने चुनाव अभियान पर संतोष व्यक्त करते हुए कुमार ने कहा, ‘‘मैं, खुद को मिल रहे जनसमर्थन से उत्साहित हूं और मुझे अपनी सफलता का पूरा भरोसा भी है. राजनीतिक लड़ाई में सच्चाई और ईमानदारी हो तो जनता का सहयोग अपने आप मिलता है.’’

महागठबंधन का सवाल
यह पूछे जाने पर कि अगर पूरा विपक्ष मिलकर उन्हें अपना उम्मीदवार बनाता तो सीधी टक्कर होती, कुमार ने कहा, ‘‘भाजपा विरोधी मतों का विभाजन नहीं होगा… मुकाबला सीधा ही है.’’

राजनीति में प्रवेश संबंधी सवाल पर कन्हैया कुमार ने कहा ‘‘मैंने कुछ तय नहीं किया. संयोग और परिस्थितियां ही सब कुछ तय करती हैं. बेगूसराय में जन्म लेने के बाद मैंने सोचा नहीं था कि कभी दिल्ली जाऊंगा. दिल्ली पहुंच कर यह तय नहीं किया था कि जेएनयू जाऊंगा और छात्र संघ का अध्यक्ष बनूंगा. फिर मैं जेल भी गया. बेगूसराय से भाकपा उम्मीदवार बनना भी तय नहीं था.’’

चुनावी चंदे का मुद्दा
चुनावी चंदे के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा ‘‘मेरा मानना है कि जनता की लड़ाई जनता के पैसे से हो. मेरा पूरा अभियान जनता के सहयोग से ही चल रहा है. वैसे भी, यह लड़ाई तो पढ़ाई और कड़ाही के बीच है- एक तरफ पढ़-लिखकर अपना और देश का भविष्य बनाने के इच्छुक युवा हैं तो दूसरी तरफ वे लोग हैं जो इन पढ़े-लिखे युवाओं से पकौड़े तलवाना चाहते हैं.’’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए भाकपा नेता ने कहा कि वह हर दिन 20 घंटे काम करते हैं और देश बर्बाद हो रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि एअर इंडिया, बीएसएनएल, एचएएल के बाद अब भारतीय डाक विभाग की भी हालत खराब हो गई है और उसे करोड़ों रुपये का घाटा हुआ है.

बेगूसराय का गणित
कभी कांग्रेस का गढ़ रही बेगूसराय सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार भाजपा के भोला सिंह ने राजद के तनवीर हसन को 58,335 मत से हराया था. भाकपा के राजेंद्र प्रसाद सिंह 1,92,639 वोट पाकर तीसरे नंबर पर थे.

उससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में जदयू के मोनाजिर हसन ने इस सीट पर भाकपा के कद्दावर नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को पराजित कर कब्जा जमाया था. वहीं 2004 में जदयू के राजीव रंजन सिंह ने कांग्रेस की कृष्णा शाही को हराया था. इस सीट पर कांग्रेस ने अब तक आठ बार जीत दर्ज की है जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने एक बार जीत दर्ज की.

बेगूसराय लोकसभा सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या 19,53,007 है जिनमें 10,38,983 पुरुष और 9,13,962 महिला मतदाता हैं. इस सीट पर भूमिहार मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है. इसके बाद मुसलमान, कुशवाहा, कुर्मी तथा यादव मतदाता हैं.

बिहार का लेनिनग्राद
‘बिहार का लेनिनग्राद’ और ‘लिटिल मॉस्को’ कहलाने वाला बेगूसराय गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर बसा है. इस लोकसभा सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कन्हैया कुमार का मुकाबला भाजपा के भूमिहार नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह तथा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) एवं महागठबंधन के उम्मीदवार तनवीर हसन से है. गिरिराज सिंह के बारे में कुमार ने कहा कि आम लोगों को उनके मंत्रालय तक का पता नहीं है और वे केवल अनाप-शनाप बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं.

शत्रु ने प्रमोद किशन को लखनऊ में ‘खामोश’ किया

लखनऊ में प्रचार करने पर विवाद, शत्रुघ्न बोले – मुझे पार्टी प्यारी है लेकिन परिवार पहले

अभिनेता सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा ने गुरुवार को लखनऊ लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल किया. इस दौरान उनके पति शत्रुघ्न सिन्हा ने चुनाव प्रचार किया लेकिन यह बात कांग्रेस प्रत्याशी आचार्य प्रमोद कृष्णम को रास नहीं आई. शत्रुघ्न ने भी बागी तेवर दिखाते हुए कहा कि परिवार को सपोर्ट करना मेरा कर्तव्य है.   

लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अभिनेता सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा ने गुरुवार को लखनऊ लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल किया. इस दौरान उनके पति शत्रुघ्न सिन्हा भी मौजूद रहे. शत्रुघ्न ने अपनी पत्नी के लिए लखनऊ में चुनाव प्रचार भी किया लेकिन यह बात कांग्रेस प्रत्याशी आचार्य प्रमोद कृष्णम को रास नहीं आई. उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए शत्रु को पार्टी धर्म निभाने की नसीहत दे डाली. शत्रुघ्न कहां चुप रहने वाले थे. उन्होंने भी बागी तेवर दिखाते हुए कहा कि परिवार को सपोर्ट करना मेरा कर्तव्य है. 

उधर, प्रमोद कृष्णम ने कहा, “शत्रुघ्न सिन्हा जी ने यहां आ करके अपना पति धर्म निभाया है, लेकिन मैं शत्रु जी यह कहना चाहूंगा कि पति धर्म उन्होंने आज निभा दिया, लेकिन एक दिन मेरे लिए प्रचार करके वो पार्टी धर्म निभाएं.”

लखनऊ में उलझे सियासी समीकरण
शत्रुघ्न सिन्हा ने बीजेपी से बगावत कर हाल ही में कांग्रेस का दामन थामा है. इतना ही नहीं पटना साहिब से कांग्रेस के उम्मीदवार भी हैं. उधर, उनकी पत्नी सपा की सदस्यता लेकर लखनऊ से चुनाव मैदान में हैं. यूपी में कांग्रेस – सपा के बीच गठबंधन न होने से दोनों पार्टी के नेता असहज महसूस कर रहे हैं.

लखनऊ से केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह दोबारा मैदान में है. देखना होगा कि शत्रुघ्न सिन्हा को लेकर कांग्रेस हाईकमान क्या रुख अपनाता है. वैसे जिस तरह से शत्रुघ्न ने पलटवार किया है, उससे साफ है कि आने वाले वक्त में वह पूनम सिन्हा के लिए प्रचार करना नहीं छोड़ेंगे. 

बीजेपी का अभेद दुर्ग है लखनऊ 
लखनऊ को बीजेपी का अभेद दुर्ग कहा जा सकता है. पिछले 28 साल से बीजेपी का इस सीट पर कब्जा है. बीजेपी 1991 से इस सीट पर काबिज है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यह परंपरागत सीट रही है. बाजपेयी ने 1991, 1996,1998,1999 और 2004 का लोकसभा चुनावों इस सीट से जीते. 2009 में लाल जी टंडन को बीजेपी ने यहां से उतारा, उन्हें भी जीत मिली. 2014 में राजनाथ सिंह इस सीट से भारी मतों से जीते. अब सिंह इस सीट से दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं.

LOC के जरिये POK के साथ व्यापार अगले आदेश तक बंद

एनआईए द्वारा कुछ मामलों की चल रही जांच के दौरान, यह सामने आया है कि एलओसी व्यापार में महत्वपूर्ण व्यापारिक चिंताएं आतंकवाद या अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों से जुड़े व्यक्तियों द्वारा संचालित की जा रही हैं। जांच में पता चला है कि कुछ व्यक्ति, जो पाकिस्तान के पार हो गए हैं, और आतंकवादी संगठनों में शामिल हो गए हैं, ने पाकिस्तान में व्यापारिक फर्में खोली हैं। ये ट्रेडिंग फर्म कथित रूप से आतंकवादी संगठनों के नियंत्रण में हैं और एलओसी व्यापार में लगे हुए हैं।

नई दिल्ली: भारत ने पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) के जरिए व्यापार को स्थगित कर दिया है. गुरुवार को एक सरकारी आदेश में कहा गया है कि जांच एजेंसियों को पता चला था कि पड़ोसी देश के तत्वों द्वारा अवैध हथियार, मादक पदार्थों और नकली मुद्रा की तस्करी के लिए इस मार्ग का दुरुपयोग किया जा रहा है. इसके बाद यह कदम उठाया गया.

बयान में कहा गया है कि एक सख्त विनियामक और प्रवर्तन तंत्र तैयार किया जा रहा है और उसके लागू होने के बाद व्यापार मार्गों को फिर से खोलने के मुद्दे पर विचार किया जाएगा.

क्या कहा गृह मंत्रालय ने?
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के चकन-दा-बाग और सलामाबाद में एलओसी व्यापार को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है.

इसमें कहा गया है कि यह कार्रवाई उन रिपोर्टों के आधार पर की गई है कि पाकिस्तान स्थित तत्वों द्वारा अवैध हथियारों, नशीले पदार्थों और नकली नोटों को फैलाने के लिए व्यापार मार्गों का दुरुपयोग किया जा रहा है. 

सप्ताह में चार दिन होता है व्यापार 
एलओसी व्यापार अभी बारामूला जिले के उरी के सलामाबाद में और पुंछ जिले के चकन-दा-बाग में दो व्यापार केंद्रों से संचालित होता है. यह व्यापार सप्ताह में चार दिन होता है और यह वस्तु विनिमय प्रणाली और शुल्क मुक्त पर आधारित होता है.

सरकार ने बयान में कहा कि एक सख्त विनियामक और प्रवर्तन तंत्र पर काम किया जा रहा है और इसे विभिन्न एजेंसियों के परामर्श से लागू किया जाएगा. 

The Indian Rupee staged a strong comeback by regaining 25 paise to 69.35 against the US dollar

Equity benchmark Sensex retreated from its lifetime high to close 135 points lower on April 18

The Indian rupee on April 18 staged a strong comeback by regaining 25 paise to 69.35 against the US dollar after three sessions of losses amid sustained foreign fund inflows.

On a weekly basis, the domestic currency saw a 18 paise decline.

At the Interbank Foreign Exchange (Forex) market, the domestic unit opened at 69.48. The local unit moved in a range of 69.61 to 69.33 before finally ending at 69.35, a rise of 25 paise over its previous close.

The rupee had lost 18 paise to close at 69.60 to the US dollar on April 16. Currency market was shut on April 17 on account of “Mahavir Jayanti“.

The dollar index, which gauges the greenback’s strength against a basket of six currencies, rose 0.30% to 97.29.

Brent crude futures, the global oil benchmark, was trading higher by 0.36% at $71.88 per barrel.

Foreign institutional investors (FIIs) remained net buyers in the capital markets, putting in ₹1,038.46 crore on April 18, as per provisional data.

Equity benchmark Sensex retreated from its lifetime high to close 135 points lower on April 18. After rising to an intra-day record of 39,487.45 points, the 30-share index turned negative to settle 135.36 points, or 0.34%, lower at 39,140.28. The broader NSE Nifty slipped 34.35 points, or 0.29%, to 11,752.80.

Meanwhile, Financial Benchmark India Private Ltd (FBIL) set the reference rate for the rupee/dollar at 69.4189 and for rupee/euro at 78.4341. The reference rate for rupee/British pound was fixed at 90.5519 and for rupee/100 Japanese yen at 62.04.

Forex market will remain closed on April 19 on account of ‘Good Friday’

लोकसभा चुनावों का दूसरा चरण सम्पन्न

लोकसभा चुनाव 2019: दूसरे चरण का मतदान संपन्न, बिहार के 5 सीटों पर हुआ 62.52 फीसदी मतदान लोकसभा चुनाव
2019 के दूसरे चरण में बिहार के पांच सीटों पर 62.52 फीसदी मतदान किया गया है.
2014 के चुनाव के मुकाबले 2019 में बहुत अच्छी वोटिंग नहीं हुई है. दोनों चुनावों के आकड़ो में 1 फीसदी का अंतर है

नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव 2019 के दूसरे चरण का मतदान खत्म हो चुका है. बिहार के पांच लोकसभा सीटों के लिए दूसरे चरण में मतदान किया गया. सुबह 7 बजे से 5 बजे तक पांचों सीटों मतदाताओं ने मतदान किया. वहीं, पांचों सीटों पर कुल 62.52 फीसदी मतदान किया गया है. हालांकि इन आंकड़ों में आंशिक बदलाव हो सकता है. क्यों कि कुछ बूथों पर मतदान देर तक हुए जो बूथ परिसर में आ चुके थे.

खबरों के अनुसार, 2014 के चुनाव के मुकाबले 2019 में बहुत अच्छी वोटिंग नहीं हुई है. दोनों चुनावों के आकड़ो में 1 फीसदी का अंतर है. दूसरे चरण में बिहार में पांच लोकसभा सीट पर मतदान किया गया. जिसमें कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, बांका और भागलुपर सीट शामिल हैं.

पांचों सीटों में सबसे अधिक कटिहार सीट पर मतदान किया गया है. कटिहार सीट पर 68.20 फीसदी मतदान किया गया है. वहीं, किशनगंज में 64.10 फीसदी, पूर्णिया 64.5 फीसदी, बांका में 58 फीसदी और भागलपुर सीट पर 58.2 फीसदी मतदान किया गया है.

कटिहार लोकसभा सीट पर सबसे अधिक 64.10 फीसदी मतदान किया गया. वहीं, भागलपुर और बांका में 58 फीसदी मतदान किया गया है. इन दोनों सीटों पर मतदान 60 फीसदी से कम रह गया. हालांकि पिछली बार की तुलना में सभी सीटों पर मतदान में बढ़ोत्तरी हुई है. जिसमें सबसे अधिक कटिहार सीट पर पिछली बार की तुलना में अधिक वोटिंग हुई है. 2014 में 61.10 फीसदी मतदान किया गया था.

बिहार में दूसरे चरण का मतदान समाप्त हो गया है. चुनाव आयोग ने बताया कि छिटपुट घटनाओं के अलावा पूरा मतदान शांतिपूर्ण रहा. वहीं, बांका में हुई फायरिंग के बारे में बताया गया कि यह केवल भीड़ को हटाने के लिए किया गया था. यह जांच का विषय है इसलिए इस मामले में जांच किया जा रहा है.

वहीं, बताया गया कि दूसरे चरण में 6 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. वहीं, नौगछिया और बांका में एक-एक बूथों पर वोट बहिष्कार की सूचना मिली है. जांच कर उन बूथों को चिन्हित किया जाएगा.

जीतने भी विकास कारी हैं वह सब कांग्रेस के कारण हैं: गेहलोत

अशोक गेहलोत पेशे से जादूगर रह चुके हैं राजनीति पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत है की राजस्थान के सर्वप्रिय नेता सचिन पायलट जो राहुल के करीबी हैं को गच्चा दे कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हटिया ली और सचिन मात्र उप मुख्यमंत्री का तमगा ले कर किनारे कर दिये गए। पिछले पाँच सालों में जो वाइसविक रुतबा भारत ने हासिल किया है, जिस प्रकार भारत के भीतर काम हुए हैं उन्हे देख कर लगता है की मानो पिछले 70 सालों में तो केवल सँपेरों और भालू नचाने वालों ही का बोलबाला था। इन्दिरा जी के बाद अटल जी एकपरिपक्व नेतृत्व के साथ आए थे और फिर आज का नेतृत्व। आर गहलोत की मानें तो मोदी ने सिर्फ फीते काटे हैं काम तो पिछले कांग्रेस राज ही में हो चुके थे और वह भी इतने ज़्यादा की मोदी को फीते काटने ही में 5 साल लग गए।

बीकानेर: राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुरुवार को कहा कि आजादी के बाद देश की जनता व कांग्रेस सरकारों द्वारा किए गए कामों के चलते ही भारत आज महाशक्ति बनने की ओर बढ़ा है. 

पीएम मोदी की आलोचना
इसके साथ ही गहलोत ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के कामों पर सवाल उठाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की. गहलोत ने कहा कि मोदी उस नयी पीढ़ी को भ्रमित कर रहे हैं जिसे पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों द्वारा किए गए कामों की ज्यादा जानकारी नहीं है. मुख्यमंत्री ने कहा कि देश अगर आज महाशक्ति बनने की ओर बढ़ गया है तो यह पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों की उपलब्धि है. 

कांग्रेस के कारण देश महाशक्ति बन रहा महाशक्ति
उन्होंने कहा, ‘भारत अगर महाशक्ति बनने की ओर बढ़ा तो यह कांग्रेस के कारण ही संभव हुआ. मोदी को लोगों को भ्रमित करने के बजाय यह बताना चाहिए कि उनकी सरकार ने पांच साल मे क्या किया. वह तो सेना के नाम की राजनीति कर रहे हैं.’ 

कांग्रेस ने लिखी विकास गाथा
गहलोत ने कहा कि आजादी के बाद कांग्रेस की सरकारों के कार्यकाल में विकास कार्य हुए. अनेक बड़े संस्थान स्थापित हुए और इन सब बातों से देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा. गहलोत ने कहा,’ लेकिन मोदी सोशल मीडिया युवाओं को निशाना बना रहे हैं. वे उन्हें भ्रमित कर रहे हैं और सोशल मीडिया का दुरुपयोग हो रहा है.’ 

चुनाव जीतने के लिए पीएम दे रहे हैं अनर्गल बयान
ओबीसी होने के कारण कांग्रेस के निशाने पर होने संबंधी प्रधानमंत्री मोदी के एक बयान का जिक्र करते हुए गहलोत ने कहा कि प्रधानमंत्री का यह अवांछित बयान है और कि मोदी चुनाव जीतने के लिए इस तरह की बातें करते रहते हैं. 

गहलोत ने चूरू व अलवर में भी सभाएं की. सम्बद्ध लोकसभा क्षेत्रों के कांग्रेस प्रत्याशियों के साथ साथ उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी उनके साथ थे.

Special Lecture on “Understanding Future Warfare” by Lt. Gen. P. J. S. Pannu, Deputy Chief Integrated Defence Staff at the Department of Defence and National Security Studies.

Purnoor, Chandigarh April 18, 2019

        The Department of Defence and National Security Studies, Panjab University, Chandigarh organised a special lecture on the theme “Understanding Future Warfare” by Lt. Gen. P. J. S. Pannu, PVSM, AVSM, VSM, Deputy Chief Integrated Defence Staff (Doctrine, Organisation and Training) on 18 th April 2019 in the department premises.

Dr. Jaskaran Singh Waraich, Chairperson, Department Defence and National Security Studies, introduced the theme as well as the speaker to the audience. He also highlighted the fact that the theme of the seminar is an official part of the curriculum of the master’s programme in the department.

        The lecture was presided over by Sh. R. K. Kaushik, Secretary Power and Divisional Commissioner, Roopnagar, Government of Punjab. The proceedings of the lecture were initiated by Sh. R. K. Kaushik. He said that the history of war is is as old as that of society. In the previous century, the world witnessed two world wars which were one of the most devastating wars ever. As a result of the Second World War, a lot of countries gained independence. Our nation India was one of them. Since

Independence, India intended to remain a peace-loving country. But within a few months, war was forced on India in the form of the Pakistani invasion of Kashmir followed by their capture of large portion of Indian territory in J&K. In 1962, our northern neighbour China attacked us and once again India was involved in war. Keeping these instances in mind and the fact that we are surrounded by perennial enemies, we must always remain prepared as far as national security is concerned.

        Explaining Future Warfare, Gen. Pannu spoke about how human beings have been the most dangerous species to ever exist on this planet. In order to understand the nature of war, we must first understand the nature of human beings. In the course of their evolution, Human

Beings have become involved in a conflict against nature and in the recent times humans are trying to outsource this conflict via employment of machines. Quoting Kautilya, he explained how the world is slowly shifting from the age of Prakasha Yuddha (Open War) to the age of

Kuta Yuddha (Deception War), Tusnim Yuddha (Silent / Cyber War), Mantra Yuddha (Information War) and Gudha Yuddha (Irregular and Concealed War). With its present rate of its growth, the human population would in the future start exceeding the planet’s capacity for sustaining life. Now we have become a consumerist society.

        Talking about the evolution of warfare, Gen Pannu explained the geopolitical importance of the main island of the world and also tried to establish the link between the various industrial revolutions and generations of warfare. He suggested that because at the time of

Independence the strength of the Indian Army was around 2.2 million soldiers, which would have easily made India a military power. However, the then world powers, engaged in the Great Game, divided India to prevent this.

He said that just like Germany tried to gain control over this heartland during the world war two, in the present day, China, which is a peripheral country has started making inroads in this region and the tool they are using is trade and soft power influence of their economy. In this backdrop, any nation that fails to understand Fourth Generation Warfare will get defeated in case of war.

        While highlighting the transition from Sensing to Sense Making, he said that first, computing changed the speed and complexity with which we could process information. Then, communication broadened our access in both time and space and connected us globally. In this decade, sensing devices are having the most profound effect as they bring information,

awareness and responsiveness to the objects, places and people around us. The next wave of technology will be all about sense making – the ability to make sense out of the enormous amount of information and sensory signs all around us. Lt Gen K. J. Singh, Maharaja Ranjit Singh Chair and State Information Commissioner,Haryana also highlighted the necessity for our security forces as well as civilians to developan understanding of the future of warfare.

        The lecture was attended by members of Gyan Setu Think-tank, various faculty members, serving and retired armed forces officers pursuing various courses in the department, research scholars and students. The lecture was followed by a questions and answers session with the audience.

PU results

Chandigarh April 18, 2019

      It is for the information of the general public and students of Panjab University Teaching Departments/Colleges in particular that result of the following examinations have been declared:-

  1. B. Pharmacy, 1st Sem., Dec. 2018
  2. P.G. Diploma in Yoga Therapy, 1st Sem., Dec. 2018
  3. M.Sc. Bio-Technology, 3rd Sem., Dec. 2018
  4. MBA-2nd Semester,January-19 (Re-appear)

The students are advised to see their results in their respective Departments/Colleges/University website.