मेष —ईर्ष्यालु व्यक्तियों से सावधान रहें। पीठ पीछे षड्यंत्र रच सकते हैं। शत्रुता बढ़ेगी। चोट व रोग से हानि के योग हैं। बुद्धि से कार्य करें। कार्यसिद्धि होगी। पारिवारिक रिश्तेदार मिलने घर आ सकते हैं। व्यय होगा। अच्छे समाचार मिलेंगे। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। धनार्जन सहज ही होगा। क्रोध न करें। प्रसन्नता में वृद्धि होगी।
वृष —नवीन वस्त्राभूषण पर व्यय होगा। यात्रा मनोनुकूल रहेगी। नए कार्य मिल सकते हैं। रोजगार में वृद्धि होगी। निवेश शुभ रहेगा। नौकरी में उच्चाधिकारियों का सहयोग व प्रसन्नता प्राप्त होंगे। भाग्य अनुकूल है, लाभ लें। आशंका से बाधा संभव है। परिवार के साथ समय सुखमय गुजरेगा। व्यस्तता रहेगी। झंझटों में न पड़ें।
मिथुन— किसी बड़े के खर्च के होने के योग हैं। यात्रा में जल्दबाजी न करें। दूसरों से अपेक्षा न करें। सहयोग नहीं मिलेगा। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। शत्रु सक्रिय रहेंगे। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। आय में कमी रह सकती है। धैर्य रखें। समय जल्दी ही बदलेगा। लाभ होगा। क्रोध व उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। अपरिचित व्यक्ति की बातों में न आएं।
कर्क— शारीरिक कष्ट से बाधा संभव है। सावधानी रखें। डूबी हुई रकम प्राप्त होने के योग बनते हैं। यात्रा से लाभ होगा। शत्रुओं का पराभव होगा। विवाद से बचें। आय में वृद्धि होगी। घर-बाहर सहयोग व प्रसन्नता रहेगी। सभी ओर से सफलता प्राप्त होगी। किसी अपने वाले का व्यवहार समझ में न आएगा। शांति बनाए रखें।
सिंह —आय के स्रोतों में वृद्धि के योग हैं। योजना फलीभूत होगी। भाग्य अनुकूल है। प्रयास करते रहें। लाभार्जन में वृद्धि होगी। घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। व्यापार मनोनुकूल रहेगा। नौकरी में तनाव रह सकता है। परिवार में स्वास्थ्य पर अधिक व्यय हो सकता है। आशंका-कुशंका रहेगी। जल्दबाजी में कोई भी निर्णय न लें।
कन्या— तीर्थयात्रा तथा सत्संग लाभ के योग हैं। तंत्र-मंत्र में रुचि रहेगी। राजकीय सहयोग मिलेगा। कार्य की बाधा दूर होकर स्थिति अनुकूल बनेगी। नौकरी में तनाव रहेगा। किसी व्यक्ति से कहासुनी हो सकती है। व्यवसाय लाभदायक रहेगा। निवेश में जल्दबाजी न करें। आय बढ़ेगी। प्रसन्नता बनी रहेगी।
तुला —वाहन, मशीनरी व अग्नि आदि के प्रयोग में लापरवाही भारी पड़ेगी। विशेषकर गृहिणियां सावधानी रखें। बेवजह क्रोध न करें। बात बिगड़ेगी। किसी बड़ी समस्या से सामना हो सकता है। कीमती वस्तुएं गुम हो सकती हैं। लेन-देन में सावधानी रखें। अपेक्षानुरूप कार्य न होने से चिंता तथा तनाव बने रहेंगे।
वृश्चिक— राजकीय बाधा से तनाव रह सकता है। जल्दबाजी न करें। समय पर सहयोग नहीं मिलेगा। आवश्यक बातों पर जल्दबाजी में निर्णय न लें। मेहनत का प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ेगा। पारिवारिक चिंता बनी रहेगी। व्यवसाय ठीक चलेगा। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। मित्रों से मुलाकात होगी। लाभ होगा।
धनु —संपत्ति के बड़े सौदे बड़ा लाभ दे सकते हैं। रोजगार व आय में वृद्धि होगी। नए प्रभावशाली व्यक्तियों से परिचय होगा। घर-बाहर सभी ओर से सहयोग प्राप्त होगा। जल्दबाजी में निर्णय न लें। व्यवसाय ठीक चलेगा। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। किसी कार्य की चिंता अधिक हो सकती है। घर-बाहर प्रसन्नता बनी रहेगी।
मकर —शारीरिक पीड़ा से परेशानी हो सकती है। बौद्धिक कार्य सफल रहेंगे। अध्ययन में मन लगेगा। वरिष्ठजन सहयोग करेंगे। यात्रा मनोरंजक रहेगी। व्यवसाय से मनोनुकूल लाभ होगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। किसी अनहोनी होने की आशंका रहेगी। नौकरी में अनुकूलता रहेगी। निवेश शुभ रहेगा। झंझटों से दूर रहें।
कुंभ– दौड़धूप अधिक होगी। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। कार्यभार रहेगा। लेन-देन में जल्दबाजी न करें। व्यवसाय में सुधार आएगा। आय में निश्चितता रहेगी। वाणी पर संयम रखें सूझबूझ से आगे बढ़े आपकी मेहनत काबिलियत आगे बढ़ने में सहायक रहेगी |भाग्य का साथ मिलेगा |
मीन— थोड़े प्रयास से काम बनेंगे। मित्रों का सहयोग कर पाएंगे। घर बाहर पूछ-परख रहेगी। आय में मनोनुकूल वृद्धि होगी। नौकरी में प्रमोशन मिलने के योग हैं। निवेश शुभ रहेगा। सभी कार्य समय पर पूरे होंगे। नया काम करने का मन बनेगा। यात्रा की योजना बनेगी। भाइयों का सहयोग मिलेगा। भाग्य का साथ मिलेगा।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/esotericROk-1.jpg7391280Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-22 04:10:252018-12-22 04:10:25दैनिक राशिफल 22 दिसंबर 2018
सरकारों की तरफ से कृषि कर्ज माफी की घोषणा होने पर भू-स्वामी किसानों के बीच खुशी की लहर दौड़ जाती है. मीडिया और सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर तमाम तरह की टिप्पणियां की जाती हैं
सरकारों की तरफ से कृषि कर्ज माफी की घोषणा होने पर भू-स्वामी किसानों के बीच खुशी की लहर दौड़ जाती है. मीडिया और सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर तमाम तरह की टिप्पणियां की जाती हैं, लेकिन भारत में अमूमन चार तरह के किसान होते हैं.एक बड़े जोत का किसान जिसके पास बारह-पंद्रह बीघा या इससे भी अधिक जमीन है. दूसरा मध्यम जोत का काश्तकार जिसके पास पांच-छह बीघा जमीन है. तीसरा लघु किसान जिसके पास तीन बीघा से भी कम जमीन है. चौथा भूमिहीन बटाईदार किसान जिसके पास अपनी कोई जमीन नहीं होती और वे दूसरों की जमीन पर बटाई करते हैं.
कर्ज माफी या कृषि संबंधी अन्य लाभकारी योजनाओं का ज्यादातर लाभ बड़े किसानों को ही मिलता है. जबकि किसानों के बीच एक बड़ा तबका भूमिहीन बटाईदार किसानों का भी है, जिसे कर्ज माफी से कभी कोई राहत नहीं मिली है.
कर्ज माफी बना चुनावी कामयाबी का जरिया
हालिया कुछ वर्षों में कृषि कर्ज माफी के वादे अधिक होने लगे हैं. सियासी पार्टियां चुनावी रैलियों में किसानों से कर्ज माफी का यकीन दिलाने के साथ-साथ कर्ज माफी की मियाद भी तय करने लगी हैं. पिछले साल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने कर्ज माफी की घोषणा की थी. मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने उसे पूरा करने का दावा भी किया.
यह दीगर बात है कि इसे लेकर अब भी कई सवाल मौजूद हैं. इस परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए मध्य-प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नव नियुक्त मुख्यमंत्रियों क्रमशः कमलनाथ और भूपेश बघेल ने अपने शपथ-ग्रहण के कुछ घंटे बाद ही कृषि कर्ज माफी का ऐलान किया. दो दिन बाद ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कर्ज माफी की घोषणा कर दी.
अगले साल अप्रैल-मई में संसदीय चुनाव होने हैं. मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व चिंतित है. 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा. लिहाजा पार्टी को यकीन है कि बरास्ते कर्ज माफी वह चुनावी कामयाबी हासिल कर सकती है. 2008 में कांग्रेस यह नुस्खा बखूबी आजमा चुकी है. जब यूपीए (प्रथम) सरकार अपने आखिरी साल में ‘कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना’ (ए.डी.डब्ल्यू.डी.आर.एस) के तहत 52,259.86 करोड़ रुपये की कर्ज माफी की थी.
देश भर में 3.73 करोड़ किसानों को इसका फायदा मिला. वित्तीय अनियमितताओं की वजह से यह योजना भी सवालों के घेरे में रही लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में इसका जबरदस्त फायदा कांग्रेस को मिला और डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व में पुनः यूपीए की सरकार बनी. पिछले कई उपचुनाव और उत्तर भारत के तीन अहम राज्यों की सत्ता खोने के बाद संभवतः भाजपा नीत केंद्र सरकार भी कर्ज़ माफ़ी के इस प्रचलित विकल्प पर विचार कर सकती है.
वैसे भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन समेत अर्थ-वित्त मामलों के कई जानकारों का मानना है कि कर्ज माफी कृषि क्षेत्र एवं किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं है. वे आगाह कर चुके हैं कि कृषि कर्ज माफी के बढ़ते चलन से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है. सियासी पार्टियों को भी कमोबेश इसका इल्म है, लेकिन सत्ता जाने का खौफ शायद अर्थव्यवस्था के नुकसान पर भारी है.दस साल पहले यूपीए की सरकार में हुए कर्ज माफी पर जानकारों की अलग-अलग राय हो सकती है. लेकिन उस फैसले से वास्तविक किसानों को कोई फायदा नहीं मिला. इसके बरअक्स देश की अर्थव्यवस्था पर एक अतिरिक्त और अनावश्यक दबाव झेलना पड़ा. देशव्यापी कृषि कर्ज माफी का सकारात्मक असर तो दिखना चाहिए.
बावजूद इसके बीते दस वर्षों में किसानों की आत्महत्याओं में तो कोई कमी नहीं आई. लेकिन किसान आत्महत्या से प्रभावित राज्यों में इजाफा जरूर हुआ. साल 2008 में जो कृषि कर्जे माफ हुए उससे लाभान्वितों होने में एक बड़ी संख्या उन भू-स्वामियों की थी जिन्हें किसान नहीं कहा जा सकता. सरल शब्दों में कहें तो वे ऐसे भू-स्वामी थे जो अपनी जमीनें बटाई पर देकर परिवार सहित शहरों में रहते हैं.
कर्ज माफी का वह साल ऐसे भू-स्वामियों के लिए एक बड़ा तोहफा साबित हुआ. जिस पर उनके अधिकारों का कोई मतलब नहीं था. हममें से ज्यादातर पत्रकारों-लेखकों का ताल्लुक किसी न किसी गांव-कस्बों से रहा है. शायद आपने भी देखा और सुना होगा कि जिन भू-स्वामियों ने बैंकों से कृषि कर्ज लेकर उससे वाहन, भवन आदि का सुख प्राप्त किया. वैसे भू-स्वामियों के कृषि कर्ज जब माफ हुए तो, उन लोगों को पछतावा हुआ जिन्होंने कृषि कर्ज नहीं लिए थे. वहीं दूसरी तरफ साहूकारों के कर्ज के बोझ से दबे लाखों भूमिहीन बटाईदार किसानों को सरकारों द्वारा कर्ज माफी का एक पैसा भी नहीं मिलता.
यह एक भ्रामक तथ्य है कि किसान तो आखिर किसान हैं क्या भू-स्वामी, क्या बटाईदार! भारत में वास्तविक किसानों यानी बटाईदारों की संख्या कितनी है क्या ऐसा कोई आंकड़ा केंद्र व राज्य सरकारों के पास है? सरकारें इससे किनारा नहीं कर सकतीं क्योंकि आजादी के तुरंत बाद ही देश में किसानों के कई मुद्दे मसलन-जमींदारी प्रथा का विरोध, भूमिहीनों को भू-अधिकार और लगान निर्धारण, नहर सिंचाई दर जैसे सवालों पर कई आंदोलन हुए. बिहार जैसे राज्य में तो बटाईदारी कानून बनाने की भी मांग उठी.
यह अलग बात है कि इसे अमल में लाना तो दूर कोई भी दल इस पर बहस करने की जहमत नहीं उठाना चाहता. वह उस राज्य में जहां पिछले तीन दशकों से समाजवादी पृष्ठभमि की सरकारें शासन में हैं. सिर्फ भू-स्वामी होने मात्र से किसी को किसान मान लेना सही नहीं है. ऐसे में उन लाखों भूमिहीन किसानों का क्या, जो दूसरों की खेतों में बटाईदारी करते हैं.
यह बात तो दावे के साथ कही जा सकती है कि देश में किसानों से जुड़ी नीतियां बनाने वाले महकमों (कृषि मंत्रालय से लेकर नीति आयोग तक) को इस बात की ख़बर ही नहीं है कि मुल्क के करोड़ों किसानों में बटाईदार किसानों की संख्या कितनी है? और वैसे भू-स्वामी कितने हैं जो स्वयं खेती नहीं करते. अगर आजादी के सात दशक बाद भी देश में बटाईदार किसानों को चिन्हित नहीं किया गया है तो यह सरकारों द्वारा किया गया एक अपराध है.
बटाईदार किसानों के परिजनों नहीं मिलता मुआवजा
किसानों की त्रासदी यहीं खत्म नहीं होती! दरअसल, किसानों के बीच फर्क न कर पाने से वास्तविक किसानों को कई और खामियाजे भुगतने पड़ते हैं. सरकारी अभिलेख में बटाईदारों का उल्लेख नहीं होने एवं भू-स्वामित्व संबंधी दस्तावेज के अभाव में उन्हें सूचीबद्ध किसान नहीं माना जाता. किसान आत्महत्या से प्रभावित राज्यों में मौत और मुआवजे का यही विचित्र दृश्य देखने को मिलता है. आत्महत्या करने वाला अगर कोई बटाईदार किसान है तो, शोक-संतप्त उसके परिजनों को सरकारी मुआवजा और मदद नहीं मिलती. वजह मृतक किसान के परिवार में भू-स्वामित्व के दस्तावेज न होना.
1990 के बाद देश भर में फसलों की नाकामी व कृषि घाटे के कारण तकरीबन 3,96,000 किसानों ने आत्महत्या की. गैर सरकारी आंकड़े इससे भी अधिक संख्या बताते हैं. इस आलेख के लेखक कुछ साल पहले मराठवाड़ा और तेलंगाना के गांवों में आत्महत्या करने वाले कई किसानों के परिजनों से मिले थे. पीड़ित परिवारों ने बताया कि बटाईदार होने की वजह से उन्हें कोई मुआवज़ा नहीं मिला. संबंधित जिला कलेक्टरों से जब इसकी सच्चाई पूछी तो, उन्होंने कहा कि कृषि व राजस्व विभाग के मुताबिक आत्महत्या करने वाले उन्हीं किसानों के परिजनों को सरकार द्वारा घोषित मुआवजे की रकम मिलती है जिनके पास भू-स्वामित्व से जुड़े प्रमाण-पत्र व दस्तावेज होंगे.
बटाईदारों को नहीं मिलता ‘किसान क्रेडिट कार्ड’
हर साल रबी और खरीफ फसल के सीजन में नई अनाज खरीद नीति की लेकर भी जिज्ञासाएं बनी रहती हैं क्योंकि इसके तहत किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा मिलता है. लेकिन बटाईदार किसानों को इसका भी लाभ नहीं मिलता. कारण भू-स्वामित्व के प्रमाण-पत्र संबंधी वही पुराना मामला. नतीजतन बटाईदार किसान औने-पौने दाम पर साहूकारों को अपनी उपज बेच देते हैं. या फिर अपनी उपज को भू-स्वामी की उपज बताकर सरकारी अनाज खरीद केंद्रों पर बेचते हैं. किसानों के बीच ‘केसीसी’ यानी ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ काफी लोकप्रिय है.
इसकी शुरुआत वर्ष 1998 में हुई थी. वैसे तो इसके कई लाभ हैं लेकिन इसका फायदा किसे मिल रहा है, यह एक बड़ा सवाल है. दरअसल जिन किसानों को इसका वास्तविक लाभ मिलना चाहिए उन्हें नहीं मिल पाता. अपनी जमीनें बटाई देकर शहरों में रहने वाले भू-स्वामियों को जब किसान क्रेडिट कार्ड के तहत बैंकों से पैसा लेना होता है, तब वे ब्लॉक-सबडिवीजन आते हैं. राजस्व कर्मचारी से ‘मालगुजारी’ की रसीद और ‘लैंड पजेशन सर्टिफिकेट’ (एलपीसी) प्राप्त कर बैंक से कृषि कर्ज उठा लेते हैं.
जबकि निर्धारित भू-संबंधी प्रमाण-पत्र न होने से भूमिहीन बटाईदार किसानों को यह कर्ज नहीं मिल पाता. ओलावृष्टि, अतिवृष्टि-अनावृष्टि और बेमौसम बारिश होने पर खेतों में खड़ी फसलें जब तबाह हो जाती हैं तो राज्य सरकारों की तरफ से किसानों को सरकारी मदद मिलती है. लेकिन इसका भी फायदा उन्हीं किसानों को मिलता है जिनकी अपनी जमीनें हैं. यहां भी बटाईदार किसानों को निराश होना पड़ता है. वहीं खुद से खेती नहीं करने वाले ढेरों भू-स्वामी इसका भी लाभ उठा लेते हैं. सरकार और उसकी व्यवस्था के लिए इससे अधिक शर्म की स्थिति और क्या हो सकती है?
क्रॉप पैटर्न में बदलाव से होगा किसानों का भला
किसानों की आत्महत्या एक बड़ी समस्या बन चुकी है. भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों इस बाबत ईमानदार प्रयास का अभाव दिखता है. किसानों को उपज का वाजिब दाम नहीं मिलना और फसलों का खराब होना इसकी प्रमुख वजह हो सकती है. लेकिन इसके कुछ कारण और भी हैं जिसकी चर्चाएं नहीं होती. ‘किसान आत्महत्या’ प्रभावित राज्यों की अध्ययन यात्राओं से कुछ अहम बातें समझ में आईं. मसलन नब्बे के दशक में ‘कैश क्रॉप’ और ‘हाइब्रिड सीड्स’ ने यहां के खेतों में अपनी जड़ें जमा लीं.
नतीजतन मराठवाड़ा, विदर्भ और तेलंगाना के किसान अपने परंपरागत खेती से दूर हो गए. बीजों का भंडारण और उसका पुनर्पयोग ‘संकर बीजों’ की मेहरबानी से समाप्त हो गया. बाकी कसर उन ‘कीटनाशकों’ ने पूरी कर दीं जिनके छिड़काव फसलों के लिए लाभदायक कीट-पतंगे भी नष्ट हो गए. हालत यह होते चली गए कि किसानों के महीने भर के राशन के खर्च के बराबर या उससे ज्यादा भाव में हाइब्रिड बीज और कीटनाशक मिलने लगे हैं. इन राज्यों के किसान पहले ऐसी फसलें उगाते थे जिससे पशुओं को भी चारा मिल जाता था.
लेकिन कपास की खेती शुरू होने के बाद दुधारू पशु गायब होने लगे. नकदी फसल के मोह में पशुपालन जो कृषि का ही रूप है, उससे किसान वंचित हो गए. यानी गाय-भैंस के दूध से जो आमदनी किसानों की होती वह बंद हो गई. किसानों के कर्जें माफ हों इसके लिए देश भर से किसान ‘दिल्ली कूच’ करते हैं लेकिन किसानों से हमदर्दी जताने वाले नेताओं और एनजीओ द्वारा कर्ज माफी के अलावा अन्य सार्थक विकल्पों जैसे, क्रॉप पैटर्न में बदलाव और कृषि और पशुपालन के संबंधों को मजबूत बनाने पर बल नहीं दिया जाता.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/punjab-farmer-759.jpg422759Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-21 17:52:422018-12-21 17:53:30कर्ज में फंसे हैं बटाईदार और माफी पा रहे जमींदार
सभी विवादों के बाद अब एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग का फॉर्मूला सुलझता नजर आ रहा है. लगता है पासवान का दबाव काम कर गया है
शुक्रवार शाम बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के दिल्ली पहुंचने से पहले एनडीए की बिहार में दूसरी बडी घटक दल एलजेपी के पैंतरे ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी थीं. लेकिन, सूत्रों के मुताबिक अब बात बन गई है. शनिवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, एलजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और उनके बेटे सांसद चिराग पासवान की मौजूदगी में बिहार में सीट बंटवारे का औपचारिक तौर पर ऐलान किया जा सकता है.
सूत्रों के मुताबिक, एलजेपी के खाते में लोकसभा की 6 सीटें गई हैं जबकि, बीजेपी अपने कोटे से राज्यसभा की एक सीट एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान को देगी. गौरतलब है कि जेडीयू और बीजेपी ने पहले ही बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. लेकिन, अब पासवान के साथ बन जाने और उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए से बाहर होने के बाद तस्वीर साफ हो गई है.
एलजेपी को मिलेगी छह सीटें!
सूत्रों के मुताबिक, बिहार में तीनों दलों के साथ सीट शेयरिंग के फॉर्मूले के मुताबिक, 40 लोकसभा की सीटों में से बीजेपी और जेडीयू अपने पहले से तय समझौते के मुताबिक, 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि, 6 सीटें एलजेपी खाते में जाएगी. इसके अलावा बीजेपी राज्यसभा की एक सीट एलजेपी को देगी.
दूसरे फॉर्मूले के मुताबिक, एलजेपी को मिलने वाली लोकसभा की एक सीट बीजेपी की तरफ से यूपी में दी जाएगी. इस तरह बीजेपी को बिहार मे एलजेपी की एक सीट मिल जाएगी और पार्टी 18 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इस तरह दूसरे फॉर्मूले के मुताबिक, बिहार में बीजेपी के खाते में 18, जेडीयू के खाते में 17, एलजेपी के खाते में लोकसभा की 5 और एलजेपी को यूपी में लोकसभा की एक सीट जबकि राज्यसभा की एक सीट मिलेगी.
हालांकि, यह सबकुछ इतनी आसानी से नहीं हुआ. दो दिनों की मशक्कत और बैठकों के लगातार कई दौर के बाद बात बन पाई है. एलजेपी संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान की तरफ से ट्वीट कर सीट बंटवारे को लेकर अपनी नाराजगी दिखाई गई थी. चिराग पासवान ने ट्विटर पर लिखा था कि टीडीपी व आरएलएसपी के एनडीए गठबंधन से जाने के बाद एनडीए गठबंधन नाजुक मोड़ से गुजर रहा है. ऐसे समय में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन में फिलहाल बचे हुए साथियों की चिंताओं को समय रहते सम्मानपूर्वक तरीके से दूर करें.
चिराग ने एक दूसरे ट्वीट में लिखा था कि गठबंधन की सीटों को लेकर कई बार बीजेपी के नेताओं से मुलाकात हुई लेकिन अभी तक कुछ ठोस बात आगे नहीं बढ़ पाई है. इस विषय पर समय रहते बात नहीं बनी तो इससे नुकसान भी हो सकता है.
कुशवाहा के जाने के बाद चिराग का दबाव
चिराग की तरफ से बीजेपी पर दबाव बढ़ाने की कोशिश के तौर पर इसे देखा गया था. इसके अलावा राम मंदिर पर बयान देते हुए भी चिराग पासवान ने इसे एक पार्टी का एजेंडा बताया था न कि एनडीए का. इस तरह के बयानों से बीजेपी असहज महसूस कर ही रही थी कि चिराग पासवान की नोटबंदी पर वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखी गई उस चिट्ठी की बात सबके सामने आ गई.
दरअसल, इस चिट्ठी की टाइमिंग ही चर्चा का केंद्र बन गई. भले ही इस चिट्ठी की जानकारी 20 दिसंबर को मीडिया के सामने आई लेकिन, इसे पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने और तीन राज्यों में बीजेपी की हार के अगले ही दिन 12 दिसंबर को लिखा गया था.
उधर, सूत्रों के मुताबिक, रामविलास पासवान पर कांग्रेस की तरफ से भी पासा फेंकने की कोशिश की जा रही थी. लिहाजा यह सवाल उठने लगे थे कि इस तरह बीजेपी और अपनी ही सरकार को लेकर दिखाए जा रहे तेवर का क्या मतलब है? क्या रामविलास पासवान एक बार फिर से दूसरा विकल्प तलाश रहे हैं? क्या पासवान भी कुशवाहा की तरह पाला बदलने की तो नहीं सोच रहे?
दो दिनों में बीजेपी ने सुलझाया मामला
लेकिन, इन तमाम सियासी गतिविधियों के बाद बीजेपी तुरंत हरकत में आई. दो दिनों तक चली कई दौर की बातचीत के बाद आखिरकार बात बनती नजर आ रही है. दो दिनों तक रामविलास पासवान और चिराग पासवान की बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव और बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय के साथ कई दौर की बातचीत हुई, जिसके बाद सभी मुद्दों को सुलझाने में बीजेपी सफल हो पाई है.
हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि बीजेपी चिराग पासवान की तरफ से सार्वजनिक तौर पर अपनी बात रखने के तरीके से खुश नहीं थी, लेकिन, बीजेपी की बिहार में दूसरी सहयोगी जेडीयू का कहना है कि एनडीए के भीतर किसी फोरम के नहीं होने के चलते इस तरह की नौबत आ रही है.
फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में जेडीयू के प्रधान महासचिव और प्रवक्ता के सी त्यागी ने कहा, ‘चिराग ने जो मुद्दे उठाए वो अंदर ही हो जाने चाहिए थे, लेकिन, एनडीए-1 की तरह एनडीए-2 में कोई समन्वय समिति नहीं है, जिससे ऐसा हो रहा है.’ त्यागी ने कहा, ‘पहले अटली जी, आडवाणी जी और जॉर्ज साहब जैसे नेता मिलकर सभी मुद्दों को सुलझा लेते थे.’ उन्होंने एनडीए के भीतर भी समन्वय समिति बनाने की मांग की.
लेकिन, इन सभी विवादों के बाद अब एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग का फॉर्मूला सुलझता नजर आ रहा है. लगता है पासवान का दबाव काम कर गया है. पासवान को अपने पाले में बरकरार रखकर लगता है बीजेपी ने मौसम के रूख को अपनी तरफ मोड़ने में सफलता हासिल कर ली है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/chirag-paswan-with-father_650x400_71442571246.jpg400650Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-21 17:32:012018-12-21 17:34:17‘राजनैतिक मौसम वैज्ञानिक’ ने क्या सही में देश का मिजाज भांप लिया?
Former prime minister Atal Bihari Vajpayee would have told you about the importance of political allies. On 17 May, 1999, his government lost the trust vote by just one vote, and the late BJP leader still holds the record of losing the confidence of the House by the lowest margin.
Come 2019 and Narendra Modi too cannot ignore his allies in a country that is known to throw up a fractured mandate in Lok Sabha elections more often than not. With the BJP’s aura of invincibility shattered by recent Assembly and bypoll results, and a united Opposition shoring up attack, the National Democratic Alliance should sure put its house in order and soon.
The National Democratic Alliance (NDA’s) tally has come down to 303 from an original 336 in the 16th Lok Sabha as allies abandoned ship and BJP failed to win by-polls in seats it had previously captured. The latest trouble arose from Bihar, where Rashtriya Lok Samta Party (RLSP) quit NDA to join the supposed ‘Mahagathbandhan’ ahead of the 2019 Lok Sabha polls. Ram Vilas Paswan of the Lok Janshakti Party remains miffed and is considering his options. The Telegu Desam Party, the largest NDA ally after BJP had walked out earlier this year, and its leader Chandrababu Naidu is already seen flanking Rahul Gandhi at important Opposition events. The Shiv Sena, once touted be BJP’s natural ally, is playing more the role of Opposition than ally from within the government; it has already announced it will break BJP’s fake hindutva narrative. But more on this later. BJP has larger problems to deal with.
Modi’s waning popularity will increase BJP’s dependence on allies
What truly worries BJP is Prime Minister Narendra Modi’s waning popularity. According to CVoter State of the Nation tracker survey, in October 2018 Modi’s popularity had come down to 53.9 percent from the highest vantage point of 66.5 in 2017. Another survey by Lokniti-CSDS, Mood of the Nation survey pinned the prime minister’s personal appeal at 37 percent in January 2018.
Another more troubling figure is that the BJP is quickly losing the advantage of if-not-Modi-then-who narrative. According to India Today Mood of the Nation (MOTN) poll, 46 percent of the survey respondents think Rahul Gandhi is the best alternative to Modi in 2019 elections, followed by TMC president Mamata Banerjee, who secured eight percent of the vote.
Even if you look at the elections faced by the Modi government in the recent past, a distinct trend emerges. The party won most of the polls before the recent Assembly elections in five states.
In 2016, Assembly elections were held in these states- Assam (BJP won), Kerala (LDF won), Puducherry (Congress won), Tamil Nadu (AIADMK won) and West Bengal (Trinamool Congress won). But most of these states were a new turf for BJP. In 2017, Assembly elections were held in Uttar Pradesh (BJP won), Uttarakhand (BJP won), Goa (BJP came second but still formed the government), Punjab (Congress won but the blame largely went on BJP’s larger partner Shiromani Akali Dal), Manipur (Congress won). In Guajarat, BJP managed to win an election for the sixth straight term, and Himachal Pradesh also was won by the saffron party. In 2018, JDS and Congress formed the government after Karnataka Assembly polls in the month of May but the BJP managed to appear as the single largest party in the state.
However, things started looking bleak after the results in Chhattisgarh, Madhya Pradesh, Mizoram, Rajasthan and Telangana.
This shows that the BJP managed to play up the anti-incumbency factor against the respective ruling parties in several of these states and managed to retain Gujarat because of the Modi wave. However, the party won the prime minister’s home state with the lowest margin in a long time and that started a trend of its decline. In 2018, when the party was faced with anti-incumbency factor against its own governments in three of five states, the Modi wave was not strong enough to salvage the party.
By extension, if we may presume, when faced with anti-incumbency and a united Opposition in 2019, the Lok Sabha elections will not be a cakewalk for the party as Modi’s appeal has certainly ebbed.
Trouble with allies
In Bihar, by joining hands with Nitish Kumar, Modi lost two allies at the cost of one. First Nitish’s bête noire, Jitan Ram Manjhi walked out with his Hindustani Awam Morcha after JD(U)’s return to the NDA fold. Now, the RLSP has quit NDA on the pretext of fundamental differences and BJP’s ‘arrogance’. But reports say things began to go sour since Nitish came back to the NDA.
It’s true that the size and might of these two parties cannot be compared to JD(U), but if results of the recent bypolls are any help, Nitish will have a tough time proving his worth. JD(U) and BJP had lost Jehanabad and Araria to Lalu Prasad Yadav’s Rashtriya Janata Dal, which spearheads the Mahagathbandhan in Bihar. The party had outperformed JD(U) by a mile even in the 2015 Assembly election, but had yet supported Nitish to take over as chief minister.
Then there’s the LJP in Bihar, already giving signals that all is not well within the alliance. Heated parlays for seat sharing are already underway to persuade Ram Vilas Paswan to stay in the NDA fold. But the BJP can’t overtly rely on the Paswans. Ram Vilas Paswan has been a part of almost all governments at Centre, be it a Congress-led government or a BJP-headed government. He has been a minister in almost all the governments formed at the Centre since 1989. The ideology of the party in power has never stopped him from forging alliances. In that sense, Paswan’s friendship is guaranteed to the BJP only as long as its own fortunes favour its run to form the next government.
The LJP is already getting restless. Even as Paswan, a Union minister, was presenting a bill in Parliament, his son Chirag was criticising the Modi government. Chirag said that the BJP has lost focus and is too entangled in the Ram Mandir issue. The JD(U) too has been trying to get itself into a good bargaining position before 2019 general elections even though it failed to win even a single Lok Sabha seat in by-polls and under-performed in Lok Sabha and Assembly polls. Some reports even suggested that JD(U) wishes for an equal division of seats with BJP in 2019.
Bihar sends 40 members to the Lok Sabha but the BJP might have a tough time accommodating everyone without ruffling too many feathers.
Similarly in Uttar Pradesh, state minister and Suheldeo Bharatiya Samaj Party chief Om Prakash Rajbhar is openly criticising the BJP at any and every opportunity he gets. The party had swept the state in Assembly and Lok Sabha polls earlier. But a similar wave is clearly missing with rising unrest amid farmers, especially sugarcane farmers in western Uttar Pradesh. In case the Bahujan Samaj Party (with a strong Dalit Base), Samajwadi Party (popular among Yadavs, Kurmis and OBCs), and Rashtriya Loktantric Dal (supported by Jats and farmers in western UP) come together, the BJP can take a serious beating in parts of western Uttar Pradesh and rural areas of poorvanchal. The BJP might need the support of smaller parties like SBSP and Apna Dal.
In Maharashtra, the Shiv Sena has already announced it will walk alone in the 2019 polls. A post-poll alliance, at the moment, also seems unlikely looking at Sena chief Uddhav Thackeray’s tepid response to several attempts by BJP to reach out to it.
Although much smaller in scale, another quarter where the BJP appears to be losing base is the Hills of West Bengal where the party garnered support of the Gorkha leadership in 2014. The party had garnered support from the Gorkha Janmukti Morcha by promising a separate Gorkhaland carved out of West Bengal. However, torn between making inroads in Mamata bastion in the Bengali-dominated areas, and retaining support from the Gorkhas, the party has been dilly-dallying on its stand on a separate state for Gorkhas. After the 2017 pro-Gorkhaland protests in Darjeeling that had the hill town in perpetual lock down for over 100 days, the Gorkhas may revisit their loyalties.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/2018_5img17_May_2018_PTI5_17_2018_000164B-e1526578967916.jpg8281200Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-21 17:19:552018-12-21 17:19:58NDA must keep flock together in face of united Opposition, anti-incumbency
The Madurai Bench of the court directed that status quo will continue till January 21 and ordered the State to inform by then whether it intended to file an appeal against the tribunal verdict.
The Madras High Court on December 21 ordered status quo as existed before the National Green Tribunal set aside a Tamil Nadugovernment order for closure of Sterlite’s copper plant in Thoothukudi.
Justices K.K. Sasindhran and P.D. Audikesavalu of the Madurai Bench also restrained the Vedanta group from taking any steps to reopen the unit.
Hearing a petition against reopening of the Sterlite unit following the NGT order, the court directed that status quo will continue till January 21 and ordered the State government to inform by then whether it intended to file an appeal against the tribunal verdict.
The bench issued notice to the Chief Secretary and the Chief Executive Officer of Sterlite to file their counter.
Sterlite on December 20 said it had sought permission from the TNPCB for reopening the plant
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/sterlite-7591.jpg422759Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-21 17:10:302018-12-21 17:11:55After NGT’s Yes, Madras HC Says Sterlite Copper Plant in Thoothukudi Can’t Reopen Just Yet
There is no impediment before the government in seeking the eviction of the publishers of National Herald if they do not voluntarily vacate Herald House here and hand over its possession by January 3, the Housing and Urban Affairs Ministry said in a statement after the Delhi High Court “vindicated” the government’s stance in its Friday judgment.
National Herald is owned by a company whose majority stakeholders include Congress president Rahul Gandhi and his mother, Sonia Gandhi.
On April 9, 2018, the Ministry’s inspection team did not find any printing press or newsprint stock on any of its floor.
More violations
Other violations include changes in share ownership and unauthorised rentals of the premises, the statement said, explaining the rationale for the Ministry’s October 30 order for the government’s re-entry into the premises.
By dismissing the AJL petition against the Ministry order, the High Court justified the government’s re-entry and ordered that there be no impediment to eviction, the statement said.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/1hlRhx.So_.39.jpg7771140Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-21 17:02:452018-12-21 17:03:56National Herald Publisher Must Vacate Delhi Office In 2 Weeks, Says Court
The panel’s recommendation to Sumitra Mahajan comes at a time regular disruptions of the House have become the norm.
The Lok Sabha’s Rules Committee on Friday recommended “automatic suspension” of members who enter the well of the house or willfully obstruct its business by shouting slogans despite being repeatedly warned by the Chair.
The panel’s recommendation to Speaker Sumitra Mahajan comes at a time regular disruptions of the House have become the norm.
The recommendation, to suspend five consecutive sittings or remainder of the session whichever is less, was made in a draft report placed before the committee in its meeting chaired by the speaker.
Miffed over MPs holding placards inside theLok Sabha and creating a ruckus, Ms. Mahajan called a meeting of the committee on Thursday.
According to the draft report placed before the committee, an amendment of Rule 374A (1) of the Lok Sabha’s Rules of Procedure and Conduct of Business, which deals with suspension of the member, has been recommended.
Those members repeatedly asked by the Speaker to go to their own seats and warned shall be automatically suspended rather than being named by the speaker, it was proposed.
At present the rules state that such members will only be suspended after they are named by the Speaker.
“…in the event of a grave disorder occasioned by a member coming into the well of the house or abusing the rules of the house persistently and willfully obstructing its business by shouting slogans or otherwise, despite being repeatedly asked by the Speaker to go to their seats and warned, such member shall stand automatically suspended from the service of the house for five consecutive sittings or remainder of the session whichever is less,” the Rules Committee said in its draft report.
Once the warning has been issued by the Speaker, the house would have to be adjourned for a reasonable period of time to enable the secretary general to enlist the names of members, the report adds.
There were differences among members of the committee over the period of suspension. TMC MP Saugata Roy’s suggestion that the suspension should be for one day, was backed by MPs from other parties as well.
The Rules Committee functions as an advisory body to the Speaker. It considers matters of procedure and conduct of business and makes recommendations for any amendment or addition to the rules. A proposal for an amendment to the rules can be made by any member of the House or by the presiding officer or committee.
The proposals — after being examined by the Lok Sabha Secretariat and approved by the chairperson (the Speaker) — are placed before the Committee for consideration in the form of memoranda.
Article 118(1) of the Constitution provides that each House of Parliamentmay make rules to regulate the procedure and conduct of its business.
On April 1, 1950, the Speaker made an announcement in the House regarding appointment of a committee to examine suggestions that might be received from members from time to time for amendment of the Rules
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/lok-sabha-pti-L.jpg520780Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-21 16:49:392018-12-21 16:53:25Automatically suspend members who enter well of house, panel tells Speaker
As AAP is going to join ‘mahagathbandhan’, it is their pressure tactics to have upper hand over Congress or just an eyewash
The Delhi Legislative Assembly on Friday demanded that the county’s highest civilian award, the Bharat Ratna, be withdrawn from late Prime Minister Rajiv Gandhi for his comments which sought to “justify” the 1984 anti-Sikh riots in the Capital.
Terming it a genocide, the Assembly passed a resolution to ‘impress upon’ the Ministry of Home Affairs (MHA) to take ‘all important and necessary steps’ to specifically include crimes against humanity and genocide in India’s domestic criminal laws.
The resolution, which was moved by Tilak Nagar Aam Aadmi Party (AAP) MLA Jarnail Singh, further sought to direct the Delhi government to ‘strongly convey’ in writing to the Union Ministry of Home Affairs that justice continued to elude the families of the victims of the ‘worst genocide in the history of India’s national capital.’
The demand to recall the honour from the late Prime Minister for his remark “…whenever a big tree falls the ground shakes a little…” was made by AAP Malviya Nagar MLA Somnath Bharti during the discussion on the issue prior to the reading of the resolution by Mr. Singh who added the demand towards the conclusion of the resolution.
“This House directs the Government of National Capital Territory of Delhi to impress upon the MHA that it should take all important and necessary steps to specifically include crimes against humanity and genocide in India’s domestic criminal laws, as recommended by the Hon’ble High Court of Delhi in its recent landmark judgment sentencing Sajjan Kumar and other convicts to life imprisonment,” the resolution, which was unanimously adopted, stated.
The House further resolved to set up special fast track courts for ‘quick and time bound trials’ in all pending 1984 riots cases citing the natural deaths of many victims and the fact that the many of the remaining were in the ‘advanced stages of their lives.’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/rajiv-gandhi1.jpg500701Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-21 16:30:352018-12-21 16:55:08AAP demands Rajiv Gandhi’s Bharat Ratna be withdrawn
डेराबस्सी बिग ब्रेकिंग डेराबस्सी के गांव जवाहर पुर के पास हरियाणा रोडवेज और लॉर्ड महावीर स्कूल बस की हुई जबरदस्त टक्कर हादसे में 5 पांच स्कूली बच्चे घायल और स्कूल का बस का ड्राइवर भी बुरी तरह से घायल। घायलो में से 3 बच्चे और ड्राईवर को सेक्टर 32 हॉस्पिटल चंडीगढ़ भर्ती करवाया गया और 2 का डेराबसी हॉस्पिटल इलाज चल रहा है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/21b6cbd4-2a29-49e5-9d2a-b5117a9087c9.jpg4961024Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-21 16:10:532018-12-21 16:14:43हरियाणा रोडवेज ओर स्कूल बस की टक्कर में 5 बच्चे गंभीर रूप से घायल
1st Vishal Sharma Memorial Cricket Championship -2018 has been organized by Chandigarh Police at Cricket Stadium, Sector 16, Chandigarh.
Dr. O.P. Mishra IPS, DIG/UT inaugurated the opening ceremony at Cricket Stadium, Sector 16, Chandigarh.
This Cricket Tournament is being organized in the memory of Late SI Vishal Sharma of Chandigarh Police who was the captain of Chandigarh Police Cricket Team. Under his captainship Chandigarh Police has won many tournaments & trophies. He served in various important posts like I/C PP Lake, I/C PP Dhanas, & LO traffic etc. He was judged all round best probationer in the year 1996. Dr. O.P. Mishra IPS, DIG UT paid tribute to Late SI Vishal Sharma by offering flowers. During this occasion family of Late SI Vishal Sharma was also present.
In
this championship total 8 teams are participating – CRPF, CBI, IB, Media, HDFC,
UT Employees, High Court and Chandigarh Police.
Match
Summaries
Today
on 21.12.2018, three opening matches of this Cricket Tournament were played at
the grounds of Cricket Stadium Sector 16, Chandigarh, DAV College, Sector 10,
Chandigarh and Police Lines, Sector 26, Chandigarh.
1st Match was played between
Chandigarh Police and Chandigarh Press Club at Cricket Stadium Sector 16,
Chandigarh. Chandigarh Press Club won the toss & elected to bat first
against Chandigarh Police. Chandigarh Press Club scored 79 runs for the loss of
8 wickets in 20 overs match. Naveen Tyagi added 39 runs (4 Fours) in 42
balls. For the Bowling side of Chandigarh Police, Kapil Punia, Ramandeep &
Balwinder Senior grabbed 2 wickets each.
Chandigarh
Police achieved the target in 12.4 over’s, and scored 81 runs for the loss
of 4 wickets. Kapil Punia added 39 runs (7 Fours) in 31 balls & Vikas
Rathee contributed 20 runs (4 fours) in 16 balls for the Team. Chandigarh
Police won the match in captainship of DSP Rajeev Ambasta.
Kapil
Puniya from Chandigarh Police judged as Man of the Match for scoring 39
runs & taking 2 wickets.
2nd
Match was played between HDFC Vs UT Employees at grounds of DAV College Sector
10, Chandigarh. UT Employees won the toss and scored total 165 runs in 20
over’s by batting first with the best contribution of Parabhjot Singh 48 runs
and Mandeep Singh 28 runs in first inning. From the batting side of HDFC Rishab
made 24 runs for his team while chasing the total. HDFC team made 116 runs and
all out in 20 overs. UT Employees won
the match. Anurag from UT Employees judged as Man of the Match in this
match.
3rd
Match was played between CRPF Vs IB at grounds of DAV College Sector 10,
Chandigarh. IB won the toss and scored total 167/8 runs in 20 over’s by batting
first with the best contribution of Gautam Rajput 66 runs and Santosh Kumar 30
runs in first inning. From bowling side of CRPF Sh. Nishar Mohd. (Commandant
CRPF) took 3 wickets in 4 over’s. From the batting side of CRPF Nishar Mohd.
(Commandant CRPF) made 29 runs and Vivek made 18 runs for his team while
chasing the total. CRPF made 138 runs and all out in 20 overs. IB won the match. Gautam Rajput from IB
judged as Man of the Match in this match.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/IMG-20181221-WA0023.jpg8501280Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-21 16:06:132018-12-21 16:06:16Chandigarh Police organized 1st Vishal Sharma Memorial Cricket Championship -2018
We may request cookies to be set on your device. We use cookies to let us know when you visit our websites, how you interact with us, to enrich your user experience, and to customize your relationship with our website.
Click on the different category headings to find out more. You can also change some of your preferences. Note that blocking some types of cookies may impact your experience on our websites and the services we are able to offer.
Essential Website Cookies
These cookies are strictly necessary to provide you with services available through our website and to use some of its features.
Because these cookies are strictly necessary to deliver the website, you cannot refuse them without impacting how our site functions. You can block or delete them by changing your browser settings and force blocking all cookies on this website.
Google Analytics Cookies
These cookies collect information that is used either in aggregate form to help us understand how our website is being used or how effective our marketing campaigns are, or to help us customize our website and application for you in order to enhance your experience.
If you do not want that we track your visist to our site you can disable tracking in your browser here:
Other external services
We also use different external services like Google Webfonts, Google Maps and external Video providers. Since these providers may collect personal data like your IP address we allow you to block them here. Please be aware that this might heavily reduce the functionality and appearance of our site. Changes will take effect once you reload the page.
Google Webfont Settings:
Google Map Settings:
Vimeo and Youtube video embeds:
Google ReCaptcha cookies:
Privacy Policy
You can read about our cookies and privacy settings in detail on our Privacy Policy Page.