मध्य प्रदेश कांग्रेस में बिजली फूंक दी बस सिंधिया-दिग्विजय कैंप के बीच चल रही जंग से होने वाले नुकसान का डर है
बीजेपी भले ही राहुल को ‘कन्फ्यूज़’ करार दे लेकिन मध्यप्रदेश में फ्यूज़ चल रही कांग्रेस में अब करंट दौड़ने लगा है
मध्यप्रदेश में साल 2004 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था. उसके बाद से ही कांग्रेस सत्ता का वनवास झेल रही है. हालांकि मध्यप्रदेश में भी सरकार बदलने की परंपरा देखी जाती रही है. कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस सत्ता में रही है. लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस के ‘दिग्विजय-काल’ के बाद से हालात बदल गए. पहले दिग्विजय सिंह ने दस साल राज किया तो अब शिवराज सिंह पंद्रह साल से सत्ता पर हैं. ‘दिग्विजय-दौर’ के दस साल के बाद जनता ने मालवा के शिवराज को हर पांच साल बाद पांच साल का ‘एक्स्ट्रा बोनस’ देने का काम किया जिससे कांग्रेस का वनवास सरकते-सरकते 15 साल तक पहुंच गया. अब कांग्रेस उसी मालवा से मिन्नतें कर रही है ताकि सत्ता का सूखा खत्म हो.
मालवा-निमाड़ अंचल को सत्ता का गलियारा कहा जाता है. इसकी बड़ी वजह है कि ये एमपी की विधानसभा में सबसे ज्यादा विधायक भेजता है. इस बार भी मध्यप्रदेश में विधानसभा के आर-पार के मुकाबले में मालवा-निमाड़ की बड़ी भूमिका है. मालवा-निमाड़ की 66 में से 56 सीटें बीजेपी के कब्जे में हैं.
सिवनी जिले के बुधनी से शिवराज सिंह चौहान विधायक हैं तो सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता इंदौर का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं अतीत में सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र सखलेचा और कैलाश जोशी जैसे नेता मालवा अंचल से उदीयमान हुए तो आरएसएस को कुशाभाऊ ठाकरे जैसा चेहरा मिला.
यही वजह है कि मालवा-निमाड़ अंचल अपनी राजनीतिक महत्ता की वजह से बीजेपी और कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इंदौर से महा जनसंपर्क अभियान की शुरुआत करते हैं तो सीएम शिवराज सिंह चौहान मालवा से ही जन आशीर्वाद यात्रा शुरू करते हैं. मालवा का आध्यात्मिक और राजनीतिक महत्व ही समझते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उज्जैन में महाकाल का आशीर्वाद लिया तो झाबुआ में आदिवासियों के सामने परिवार के इतिहास को याद दिलाया.
लेकिन राहुल के मध्यप्रदेश दौरे ने इस बार राजनीति के समीकरणों को बदलने का काम किया है. राहुल के मालवा दौरे से पहले तक बीजेपी विधानसभा चुनाव को साल 2013 के ‘एक्शन-रीप्ले’ की तरह ही देख रही थी क्योंकि बीजेपी के सामने कांग्रेस अपनी अंदरूनी गुटबाजी के चलते कमजोर नजर आ रही थी. लेकिन राहुल के दौरे से मध्यप्रदेश की सियासत में गर्मी आ गई है. राहुल की वजह से 15 साल से सोई कांग्रेस की उम्मीद भी जगी है. राहुल को सुनने के लिए उमड़ी भीड़ में कांग्रेस अब सत्ता विरोधी लहर देखने लगी है.
रोड शो और रैलियों में उमड़ी भीड़ से उत्साहित राहुल ने मध्यप्रदेश के किसानों से वादा किया है कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती है तो सिर्फ 10 दिनों में किसानों का कर्जा माफ किया जाएगा और ऐसा न करने वाले सीएम को ग्यारहवें दिन बदल दिया जाएगा.
भले ही राहुल गांधी की ‘कन्फ्यूज़ियत’ पर बीजेपी खुश हो लेकिन राहुल का अंदाज उन किसानों में उम्मीद जगा सकता है जिन्होंने मंदसौर किसान आंदोलन देखा. अब कांग्रेस के लिए किसान आंदोलन की फसल काटने का समय है. वैसे भी मंदसौर के निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत से वहां की जनता का मिज़ाज समझा जा सकता है. तभी राहुल को मध्यप्रदेश में एंटी इंकंबेंसी दिखाई दे रही है और वो कह रहे हैं कि इस बार मध्यप्रदेश में वोट स्विंग हो सकता है जिसका फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा.
हालांकि साल 2013 में मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का अंतर काफी बड़ा था. बीजेपी को जहां 44.88 प्रतिशत वोट मिले थे तो कांग्रेस को 36.38 प्रतिशत वोट ही मिले थे. ऐसे में राहुल गांधी का आशावादी नजरिया संदेह पैदा करता है.
लेकिन, राहुल के दौरे से कांग्रेस अब बीजेपी के मुकाबले में जरूर खड़ी हो गई है. पहले मंदसौर किसान आंदोलन ने शिवराज सरकार की नींद उड़ाने का काम किया तो अब राहुल का मालवा-निमाड़ अंचल का दौरा बीजेपी के लिए चिंता की लकीरें खींच गया है. उज्जैन, धार, महू, खरगोन, झाबुआ में रैली तो इंदौर में रोड शो, छप्पन दुकान में नाश्ता, कारोबारियों से बातचीत और पत्रकारों से बिना लाग-लपेट के बातचीत तो स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दे उठाकर राहुल ने कांग्रेस को दौड़ में बना दिया है. राहुल कह रहे हैं कि वो फ्रंट पर खेल रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को राहुल के हिट-विकेट का डर नहीं है. बस डर उन्हें सिंधिया-दिग्विजय कैंप के बीच चल रही जंग से होने वाले नुकसान का है. बहरहाल, बीजेपी भले ही राहुल को ‘कन्फ्यूज़’ करार दे लेकिन मध्यप्रदेश में फ्यूज़ चल रही कांग्रेस में अब करंट दौड़ने लगा है.