हादसे से पहले अधिकारियों के एक दल ने आयोजन स्थल का मुआयना किया था लेकिन उन्होंने बस यही देखा-परखा कि मंच पर वीआईपी के बैठने का इंतजाम कैसा है. उनका इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं गया कि लोग धोबी घाट की चारदीवारी के बाहर भी जमा होंगे और रेलवे ट्रैक पर खड़े होकर रामलीला देखेंगे
अमृतसर के जोड़ा फाटक से गुजरते हुए उचटती सी नजर भी दौड़ाएं तो जाहिर हो जाता है कि शुक्रवार के रोज दशहरे के जश्न के दौरान 59 लोगों की मौत किसी अचानक हुए हादसे का नतीजा नहीं थी. आपको जान पड़ेगा कि पवित्र शहर के इस इलाके में उत्सवों के आयोजन को लेकर दशकों से उपेक्षा बर्ताव जारी है, इंतजाम में गड़बड़ी चलती आई है और 59 लोगों की मौत इसी बदइंतजामी का नतीजा है.
अधिकारियों ने जुटने वाली भीड़ की परवाह न करते हुए आयोजन करने की इजाजत दे दी
इस साल भी यहां रामलीला का मंचन किसी खुले मैदान में नहीं बल्कि एक बेतरतीब धोबी घाट की चारदीवारी के भीतर हुआ था. बीते 14 वर्षों से ऐसा ही होता आ रहा है. धोबी घाट में चारों तरफ पत्थर की पट्टियां और पानी के गड्ढे हैं. इन्हीं के बीच घास से भरा एक मैदान भी है जिसमें मुश्किल से 2000 लोग समा सकते हैं. इसके बावजूद इस साल के रामलीला के आयोजकों को स्थानीय अधिकारियों ने 20 हजार की तादाद में आ जुटी भीड़ के लिए आयोजन करने की अनुमति दे दी.
पूरे शहर में कम से कम 10 जगहों पर रामलीला का आयोजन था. लेकिन धोबी घाट परिसर में आयोजित होने वाली रामलीला की तरफ लोगों का ध्यान खींचने के लिए आयोजकों ने खूब बढ़-चढ़कर कोशिश की थी. आसपास के इलाके में रंग-बिरंगे, चमकीले पोस्टर लगाकर बताया गया था कि रामलीला का मंचन ठीक-ठीक किस जगह किया जा रहा है और आयोजन के दौरान कौन-कौन से खेल-तमाशे दिखाए जाने हैं. यह पोस्टर अब शुक्रवार को हुए हादसे के गवाह के तौर पर टंगे नजर आ रहे हैं. यह बताते हुए कि रामलीला देखने के लिए आए लोगों के साथ जो कुछ हुआ वो किसी भयानक दु:स्वप्न (बुरा सपने) से कम नहीं था.
जोड़ा फाटक के नजदीक बने घाट के चारों तरफ पक्की दीवार है. चारदीवारी के पूरब में एक ओर बड़ा सा प्रवेश द्वार है. इस प्रवेश द्वार के ठीक सामने भीड़-भाड़ वाली गोल्डेन एवेन्यू स्ट्रीट है. एक मुहाना चारदीवारी के दक्षिण की ओर भी बना है लेकिन यह मुश्किल से 3 फीट चौड़ा, इसलिए इस ओर से गाड़ियों का आना-जाना नहीं हो पाता. घाट के दक्षिण की ओर परिधि की 5 फीट ऊंची दीवार से परे घास से भरी एक मैदानी पट्टी है. इस मैदानी पट्टी से होकर पत्थर की पट्टियों के ऊपर रखकर बनाई गई 3 ट्रैक वाली रेलवे लाइन गुजरती है. हादसे की गवाह बनी इस रेल लाइन से सटी एक बड़ी रिहाइशी बस्ती है. झुग्गी-झोपड़ियों से भरी इस बस्ती में अमृतसर के कामगार तबके के लोग और बिहार-यूपी के कुछ सर्वाधिक गरीब जिलों से आए अप्रवासी मजदूर रहते हैं.
स्थानीय पार्षद इस आयोजन का कर्ता-धर्ता था लेकिन हादसे के बाद वो फरार हो गया
यह ही अप्रवासी मजदूर रामलीला के इश्तहार के तौर पर लगाए गए रंग-बिरंगे, चमकीले पोस्टर की तरफ आकर्षित हुए थे. रामलीला में स्थानीय कांग्रेस नेता नवजोत कौर सिद्धू को भी आना था. मिट्ठू मदान (स्थानीय पार्षद) इस आयोजन का कर्ता-धर्ता था लेकिन जैसे ही हादसा पेश आया वो मौके से फरार हो गया और अभी तक वार्ड नंबर 29 में बने अपने घर वापस नहीं लौटा है. जबकि हादसे के शिकार हुए लोगों के शोक-संतप्त परिजन इस घर का शनिवार से ही घेराव कर रहे हैं.
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हादसे को लेकर मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं. जांच में पता किया जाएगा कि आखिर रामलीला देखने आए लोग ट्रेन की चपेट में कैसे आए. स्थानीय लोग एक स्वर से आरोप लगा रहे हैं कि हादसे की दोषी नवजोत कौर सिद्धू हैं. इलाके के स्थानीय कार व्यवसायी हेमंत राज का कहना है कि ‘सिद्धू रावण दहन के लिए तकरीबन डेढ़ घंटे की देरी से पहुंची थीं. पुतला दहन गोधूलि वेला में होना चाहिए यानी लगभग 6 बजे शाम को लेकिन सिद्धू आयोजन स्थल पर 7 बजे के बाद पहुंची. उस वक्त तक अंधेरा छा चुका था और यह देख पाना मुश्किल था कि हमारी तरफ कोई ट्रेन आ रही है या नहीं.’ हेमंत राज शुक्रवार को हुए हादसे में मौजूद थे और उन्होंने घायलों को अस्पताल पहुंचाने में मदद की.
हादसे के शिकार ज्यादातर लोग यूपी और बिहार के रहने वाले हैं जो यहां कामकाज के सिलसिले में आए थे
हर साल (2017 को छोड़कर, इस वर्ष स्थानीय नेता की मृत्यु के कारण रामलीला का आयोजन नहीं हुआ था) धोबी घाट पर दशहरा के उत्सव में हजारों लोगों की भीड़ जुटती है. अपना ठेला संभाले दुकानदार बिहार-यूपी की मिठाइयां बेचते हैं. उन्हें पता होता है कि दशहरे के मौके पर ग्राहकों की तादाद अच्छी-खासी रहने वाली है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस साल आयोजकों की ओर से कम से कम एक (शायद दो) बड़ी एलईडी टीवी स्क्रीन लगाया था. टीवी स्क्रीन को कई मीटर की ऊंचाई पर लगाया गया था और एक टीवी स्क्रीन रेलवे ट्रैक की तरफ मुड़ा हुआ था.
रामलीला आयोजक जानते थे कि धोबी घाट की क्षमता से ज्यादा भीड़ जुटेगी
यह काम आयोजकों की तरफ से हुआ था. वो जानते थे कि धोबी घाट की क्षमता से ज्यादा भीड़ जुटेगी. मान लिया गया कि लोग रेलवे ट्रैक पर बैठकर या फिर खड़े होकर एलईडी स्क्रीन पर चल रहे जश्न को देखेंगे. रेलवे ट्रैक कुछ ऊंचाई पर बना हुआ है सो वहां खड़े होकर यह भी नजर आ जाता है कि धोबी घाट के भीतर क्या हो रहा है. तांबे-पीतल के काम के सहारे जीविका चलाने वाले रमेश कुमार हादसे में गंभीर रुप से घायल होकर अब अमृतसर के सरकारी अस्पताल में भर्ती हैं. इलाज करवा रहे रमेश कुमार ने बताया कि शुक्रवार शाम 6 बजे ‘रेलवे ट्रैक पर मानो सारा संसार ही आ जुटा था. लोग एलईडी स्क्रीन पर चल रहे पंजाबी गानों को देख रहे थे.’ एलईडी स्क्रीन को देखने के लिए रेलवे ट्रैक पर खड़े होने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं था और इसी कारण लोग ट्रैक पर जमा थे.
हादसे से पहले जिले के अधिकारियों के एक दल ने आयोजन स्थल का मुआयना किया था लेकिन मुआयने में इन अधिकारियों ने बस यही देखा-परखा कि मंच पर वीआईपी अतिथियों के बैठने का इंतजाम कैसा है. इन अधिकारियों का इस जाहिर सी बात पर जरा भी ध्यान नहीं गया कि लोग धोबी घाट की चारदीवारी के बाहर भी जमा होंगे और रेलवे ट्रैक पर खड़े होकर रामलीला देखेंगे.
जैसा कि चलन है, बच्चे रावण का पुतला दहन देखने के लिए जिद करते हैं. इसी कारण सिख और अप्रवासी मजदूर दोनों ही परिवारों के मां-बाप अपने बच्चों को लेकर जोड़ा फाटक पर बड़ी तादाद में जमा हुए थे. अप्रवासी मजदूर अपने परिवार से काफी दूर रहते हैं. उनका परिवार देश के किसी दूर-दराज के हिस्से में होता है. इसलिए अप्रवासियों मजदूरों में खास उत्साह था कि चल रहे जश्न की तस्वीर मोबाइल फोन के सहारे उतार ली जाए.
रावण दहन की तस्वीर
इन अप्रवासी मजदूरों का कहना है कि वो पंजाब के अमृतसर में हुए रावण के पुतला दहन और रामलीला का वीडियो दूर बसे अपने परिजनों को भेजना चाहते थे. दूर बसे परिजन के साथ नेह (प्रेम) का नाता जोड़ने की यह सहज सी कोशिश अप्रवासी मजदूरों के सिर पर दुखों का पहाड़ बनकर टूटी. वो यह न देख सके कि खतरा उनकी तरफ तेज रफ्तार से बढ़ता चला आ रहा है. उन्हें पता भी नहीं चला कि 1 घंटे के भीतर धड़धड़ाती हुई ट्रेन उन्हें रौंद डालेगी. यह सभी मजदूर एकदम ठगे से रह गए.
पटाखा फूटने पर लोग ट्रैक पर कुछ और आगे चले गए या फिर वो ट्रैक पर खड़े लोगों के और पास चले आए
शाम को तकरीबन 7:40 बजे के वक्त रावण दहन के फौरन बाद पुतले में भरे हुए पटाखे फूटे, पुतला धू-धू कर जल रहा था और आगे के गोले आकाश में उठ रहे थे. दीवार के बाहर खड़े लोग उड़ते पटाखों और रॉकेट वैगरह से बचने के लिए तनिक दक्षिण की ओर चले गए. यह लोग या तो ट्रैक पर कुछ और आगे की तरफ चले गए या फिर ट्रैक पर खड़े लोगों के और ज्यादा नजदीक चले आए.
ऐसा होने के तुरंत पहले जालंधर (उत्तर की तरफ) की ओर जाने वाली दो ट्रेन एक के बाद एक अलग-अलग पटरियों से गुजरीं. स्थानीय लोगों का कहना है कि दोनों ही ट्रेन के गुजरने की रफ्तार बहुत धीमी थी और ऐसा ही चलन रहा है क्योंकि अधिकारी जानते हैं कि साल के इन दिनों में इलाके में दशहरा का उत्सव मनाया जाता है. रेलवे ट्रैक पर जमा भीड़ ने इन दोनों ही रेलगाड़ियों से अपने को आसानी से बचाया लेकिन बचाव की इस कवायद का एक नतीजा यह हुआ कि तीसरी ट्रैक की ओर लोग ज्यादा तादाद में जमा हो गए: यह तीसरी ट्रैक धोबी घाट से लगती दीवार के सबसे नजदीक थी. इसके बाद एक तीसरी ट्रेन उत्तर की तरफ से आई. इस ट्रेन का रुख अमृतसर सिटी की तरफ था और ट्रैक पर जमा भीड़ आती हुई इस ट्रेन को ना देख पाई.
पंजाब सरकार ने हादसे की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं जो 4 महीने में इसपर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी
फ्यूल स्टेशन पर काम करने वाले देवेंद्र कुमार धोबी घाट से सटी कृष्णानगर कहलाने वाली एक झुग्गी बस्ती में रहते हैं. देवेंद्र ने बताया कि यह तीसरी ‘ट्रेन बड़ी तेज गति से चली आ रही थी. उस वक्त रावण का पुतला जल रहा था, पटाखे फूट रहे थे और शोर इतना ज्यादा तेज था कि हम लोगों ने कान में उंगलियां डाल ली थीं. इसी कारण ना तो हमलोग ट्रेन के आने की आवाज सुन पाए और ना ही उसे अपनी तरफ आता हुआ देख पाए.’ देवेंद्र का कहना था कि ‘कृष्णानगर की संकरी गलियों से साइकिल दौड़ाते हुए हजारों की तादाद में लोग रावण का पुतला दहन देखने के लिए जमा हुए थे. यह लोग या तो मारे गए या फिर घायल हुए हैं क्योंकि यह लोग हमारी कॉलोनी में साइकिल जमा कराने के लिए फिर कभी नहीं लौटे.’
ट्रेन के ड्राइवर के हॉर्न बजाने की आवाज लोगों को सुनाई ना देने की एक वजह यह भी हो सकती है कि साल-दर-साल उत्सवों के आयोजन में शोर-शराबा बढ़ता जा रहा है और भीड़ भी पहले से ज्यादा तादाद में जुट रही है. ट्रेन की चपेट में आकर घायल हुए और अस्पताल में उपचार करा रहे ज्यादातर लोगों का कहना है कि दशहरा के मेले की चकाचौंध ने उन्हें मोहित कर लिया था. रावण के पुतले के जलने और पटाखों को फूटते देखने का आकर्षण तो था ही, साथ ही आयोजकों ने पंजाबी के मशहूर गायकों को भी बुलाया था. मुख्य अतिथि नवजोत कौर सिद्धू थीं और उनके आने के पहले के वक्त में इन पंजाबी गायकों का कार्यक्रम रखा गया था.
नवजोत कौर सिद्धू पर आरोप लगे कि वो भीड़ जुटने तक शाम 7 बजे तक नहीं आयीं और हादसा होने के तुरंत बाद वहां से चली गईं
‘हादसे के बाद हमलोगों से कोई मिलने नहीं आ रहा, सभी राजनेता और प्रशासक हमें भुला बैठे हैं’
स्वर्ण गोरे ने इस हादसे में अपना बेटा खोया है. वो ट्रेन के ड्राइवर को हादसे का जिम्मेवार मानती है. उन्होंने सिद्धू और आयोजकों पर भी आरोप लगाया. स्वर्ण गोरे के लड़के दलबीर ने इस साल रामलीला में रावण का किरदार निभाया था और अब दलबीर के घर को जाने वाली गली नंबर-2 में लोगबाग कह रहे हैं कि उस हादसे में तो ‘रावण भी मारा गया.’ दलबीर की मां स्वर्ण गोरे का कहना है, ‘सबसे ज्यादा दुख की बात यह है कि परिवार की रोजी-रोटी का एकमात्र सहारा मेरा बेटा ही था और रामलीला में बरसों से अलग-अलग किरदार निभाने वाला मेरा बेटा इस हादसे में ना रहा. यह बात भी नहीं समझ आ रही कि हादसे के बाद आखिर हमलोगों से कोई मिलने क्यों नहीं आ रहा. सभी राजनेता और प्रशासक हमें भुला बैठे हैं.’
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह शनिवार की दोपहर घटनास्थल पर पहुंचे. उन्हें भीड़ के गुस्से और विरोध का सामना करना पड़ा. गुस्साई भीड़ पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर स्थिति पर काबू पाया. लोग सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे. लोग कह रहे थे कि ट्रेन रौंदते हुए निकल जायेगी इसका उन्हें यकीन नहीं है. लोगों का कहना था कि दशहरा के समय ट्रेन की रफ्तार इलाके में धीमी हो जाती है और ऐसा वो अपने बरसों के अनुभव के सहारे जानते हैं. अमरिंदर ने घटना की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश देने के वक्त कहा था कि आयोजन के लिए प्रशासन की मंजूरी थी या नहीं- इस मसले पर वो अभी कुछ नहीं कहेंगे. भारतीय रेलवे का दावा है कि वाकया कोई हादसा नहीं बल्कि ट्रेसपास (अनधिकार प्रवेश) का नतीजा है लेकिन अमरिंदर सिंह ने रेलवे के इस दावे पर भी कुछ कहने से इनकार किया. इन दोनों मसलों और बाकी सवालों पर अमरिंदर सिंह का कहना था कि मजिस्ट्रेट जांच से ही सही जवाब मिल पाएगा.
शुक्रवार की शाम लोग सिर्फ ट्रेन की चपेट में ही नहीं आए. अमृतसर सिविल अस्पताल और गुरु तेग बहादुर अस्पताल में भर्ती मरीज और स्थानीय लोगों का कहना है कि हादसे के बाद भगदड़ मची थी और उनके परिजन इस भगदड़ के भी शिकार हुए. ट्रेन की चपेट में आए लोगों के शरीर छिटककर ट्रैक से दूर खड़े लोगों पर गिर रहे थे और लोग इस क्रम में भगदड़ के बीच घायल हो रहे थे. ऐसे ही घायलों में एक हैं पंजाब की संदीप कौर. संदीप कौर का कहना है कि भगदड़ में उनके बेटे-बेटी और पिता की जान चली गई.
संदीप कौर की मां ने हादसे में अपनी एक बांह गंवा दी है. पूरा परिवार सदमे में है, सांत्वना के शब्द बेअसर साबित हो रहे हैं. दिहाड़ी मजदूर और संदीप कौर के पति जतिंदर ने बताया कि ‘लाऊस्पीकर से कोई चेतावनी जारी नहीं की गई थी, दशहरे के दिन पुलिस का भी कोई इंतजाम नहीं था.’ (शनिवार की शाम अस्पताल पहुंचे अमरिंदर सिंह संदीप कौर की बेड के पास पहुंचे थे और कहा था कि उनकी सभी जरुरतों का ध्यान रखा जाएगा)
अमरिंदर सिंह अपना विदेश दौरा बीच में छोड़ 17 घंटे बाद 10 मिनट के लिए हादसे में घायल हुए लोगों को देखने अस्पताल पहुंचे
ट्रेन के ड्राइवर को दोषी नहीं कहा जा सकता
अमृतसर सिविल अस्पताल में डीएसपी और एसपी रैंक के अधिकारी जसप्रीत सिंह तथा शैलेंद्र सिंह की ड्यूटी लगी है. इन अधिकारियों का कहना है कि ट्रेन के ड्राइवर को दोषी नहीं कहा जा सकता क्योंकि धोबी घाट की दीवार से कुछ सौ मीटर की दूरी पर कायम चेकपोस्ट पर ड्राइवर को ग्रीन सिग्नल मिला था. जसप्रीत का सवाल है कि ‘अगर ग्रीन सिग्नल नहीं भी मिलता तो भी लोगों का यह अधिकार नहीं कि वो रेलवे ट्रैक पर चलें, ऐसा अधिकार है क्या?’
अभी तक हादसे में घायल हुए 113 लोगों को सिविल अस्पताल पहुंचाया गया है. अस्पताल पहुंचे घायलों में से अभी कोई भी डिस्चार्ज नहीं हुआ. 39 लोगों की मौत हुई है जिसमें 3 जन के शव पहचान में नहीं आ रहे. गुरु तेग बहादुर अस्पताल में 27 घायलों को पहुंचाया गया है और 19 लोगों की मौत हुई है. कुछ घायलों को अन्य अस्पतालों में पहुंचाया गया है.