राजस्थान छात्रसंघ चुनाव नतीजे दोनों प्रमुख दलों को थोड़ी ख़ुशी थोड़ा गम


राजस्थान में 10 दिन तक बेसब्री से इंतजार किए गए छात्र संघ चुनावों के नतीजे आ गए हैं. इन नतीजों ने इस बार दोनों ही प्रमुख दलों को थोड़ी खुशी ज्यादा गम दिया है


राजस्थान में 10 दिन तक बेसब्री से इंतजार किए गए छात्र संघ चुनावों के नतीजे आ गए हैं. इन नतीजों ने इस बार दोनों ही प्रमुख दलों को थोड़ी खुशी ज्यादा गम दिया है. बीजेपी (आरएसएस) की स्टूडेंट विंग एबीवीपी और कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई इन नतीजों का अपने-अपने ढंग से विश्लेषण कर रहे हैं.

जोधपुर को छोड़कर पूरे राज्य में 31 अगस्त को छात्र संघ चुनाव हुए थे. जबकि जोधपुर की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी और इसके संघटक कॉलेजों में 10 सितंबर को चुनाव सम्पन्न हुए हैं. इसकी वजह ये थी कि उन दिनों जोधपुर संभाग में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया अपनी गौरव यात्रा निकाल रही थीं.

राजस्थान यूनिवर्सिटी से जुड़ा टोटका

राजस्थान में कुल 14 सरकारी विश्वविद्यालय हैं. इनमें सबसे बड़ा जयपुर का राजस्थान विश्वविद्यालय है. माना जाता है और लगभग हर बार ये साबित भी हुआ है कि जो राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ कार्यालय पर अपना आधिपत्य जमा लेता है वही राज्य में सरकार बनाने में भी कामयाब रहता है. चुनावी साल में तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच इसे सबसे बड़ा टोटका माना जाता है.

2013 में आमतौर पर अशोक गहलोत की सरकार को लेकर एंटी इंकमबैंसी फैक्टर महसूस नहीं किया जा रहा था. जुलाई-अगस्त, 2013 में मोदी लहर इतना जोर भी नहीं पकड़ पाई थी. तब राज्य में बीजेपी कमजोर विपक्ष की भूमिका में थी. वसुंधरा राजे और केंद्रीय नेतृत्व की अदावत के कारण धारणा बन रही थी कि बीजेपी जीतना तो दूर कांग्रेस को कड़ी टक्कर भी नहीं दे पाएगी.

राजस्थान यूनिवर्सिटी में भी माहौल कुल मिलाकर एनएसयूआई के पक्ष में ही लग रहा था. लेकिन अप्रत्याशित रूप से यहां एबीवीपी के कान्हा राम जाट ने जीत दर्ज की. इसके बाद का इतिहास तो सबके सामने है. कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आजादी के बाद अपने सबसे बुरे प्रदर्शन का गवाह बन रही थी. 200 में से कांग्रेस के 2 दर्जन विधायक भी नहीं जीत पाए थे.

नतीजे खुशी से ज्यादा दे गए गम!

इस बार के चुनावी नतीजे मिले जुले से रहे हैं. छात्रों ने न एबीवीपी को खुशी का पूरा मौका दिया है और न ही एनएसयूआई को. राजस्थान यूनिवर्सिटी की बात करें तो यहां लगातार तीसरे साल निर्दलीय अध्यक्ष चुना गया है. विनोद जाखड़ हालांकि एनएसयूआई के बागी उम्मीदवार थे. लेकिन जाखड़ ने एबीवीपी के उम्मीदवार को 1789 वोटों के बड़े मार्जिन से शिकस्त दी है. उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर भी निर्दलीय उम्मीदवार ही जीते हैं. यहां एबीवीपी को सिर्फ संयुक्त सचिव पद पर जीत मिली. मीनल शर्मा ने इस पद पर जीत दर्ज की.

बाकी विश्वविद्यालयों और ज्यादातर कॉलेजों में भी कमोबेश ऐसे ही नतीजे रहे. जोधपुर की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी, कोटा यूनिवर्सिटी, बीकानेर की महाराजा गंगा सिंह यूनिवर्सिटी में भी निर्दलीय उम्मीदवार अध्यक्ष बने हैं. उदयपुर की मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी, अजमेर की महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी और जयपुर की राजस्थान संस्कृत यूनिवर्सिटी में जरूर एबीवीपी को जीत हासिल हुई है.

अब तक चुनावी साल में राजनीतिक पंडितों के लिए विश्वविद्यालयों के चुनाव नतीजे, विधानसभा की भविष्यवाणी करने का मजबूत आधार होते थे. लेकिन इस बार निर्दलीयों की भारी जीत ने सभी को चक्करघिन्नी बना दिया है. छात्रों ने जो मैंडेट दिया है वो मिलाजुला है. तो क्या समझें कि इस बार विधानसभा त्रिशंकु रह सकती है?

2013 में वसुंधरा राजे के चाणक्य कहे गए और अब निर्दलीय मोर्चा का बैनर खड़ा कर रहे चंद्रराज सिंघवी ने तो इन नतीजों को चेतावनी करार दिया है. सिंघवी ने दावा किया है कि युवाओं ने दोनों पार्टियों को नकार दिया है. आने वाली सरकार में भी निर्दलीयों के ‘की रोल’ की उन्होंने भविष्यवाणी कर दी.

पहली बार ‘वंचितों’ को कमान

बीजेपी-कांग्रेस या निर्दलीय की बहस के इतर एक सबसे अहम बदलाव ने इस बार सबका ध्यान खींचा है. आजादी के बाद इन 70 सालों में पहली बार कोई एससी छात्र देश के सबसे बड़े राज्य की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी का अध्यक्ष चुना गया है. इस बार उपाध्यक्ष पद पर भी अनुसूचित जनजाति (एसटी) की अनुराधा मीना चुनी गई हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर

हालांकि पिछले 15 साल में 2 बार एसटी वर्ग का अध्यक्ष रह चुका है लेकिन ये पहली बार ही है जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों अनुसूचित जाति (एससी) और जनजाति (एसटी) वर्ग से हैं. 20 साल पहले तक आमतौर पर ब्राह्मण या राजपूत छात्र ही चुनाव जीतते थे. लेकिन पिछली सदी के आखिरी कुछ वर्षों से ओबीसी छात्रों का छात्रसंघ कार्यालयों में दबदबा बढ़ा. इस बार 2 शीर्ष पदों पर वंचित वर्गों के छात्रों ने जीतकर बदलाव की बयार का स्पष्ट संकेत दे दिया है.

युवा हर चुनाव में एक डिसाइडिंग फैक्टर होते हैं. पिछले कुछ समय से सभी पार्टियां युवाओं पर फोकस कर रही हैं. 2014 में सबने देखा कि युवाओं के समर्थन के बूते ही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद तक पहुंच पाए. लेकिन राजस्थान में इस बार बीजेपी और कांग्रेस के अलावा भी क्या युवा और विकल्प तलाश रहा है? लग रहा है कि सोशल मीडिया के इस दौर में युवा मतदाता अब पार्टी नहीं ‘पर्सन’ देख कर फैसला करने की ओर बढ़ रहा है.

मानहानि केस में राहुल के खिलाफ अगली सुनवाई 15 दिसम्बर को


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि के मामले में भिवंडी की अदालत ने कल सुनवाई की अगली तारीख 15 दिसंबर निर्धारित की है


ठाणे:

गांधी ने शिकायतकर्ता के संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ वर्ष 2014 में एक रैली में टिप्पणी की थी। भिवंडी के मुख्य न्यायाधीश ए ए शेख ने श्री गांधी को अदालत में सुनवाई के समय हाजिर नहीं होने की छूट दे दी है।

गांधी के वकील नारायण अय्यर ने कांग्रेस अध्यक्ष को राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के कारण सुनवाई की तारीख पर हाजिर नहीं होने की छूट के लिए याचिका दाखिल की थी।

सिरोही के तीनों महाविद्यालयों में लहराया अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का परचम

सिरोही राजकीय महाविद्यालय में विजयी अध्यक्ष एबीवीपी के अनिल कुमार।


राजकीय महाविद्यालय में अध्यक्ष पद पर एबीवीपी समर्थित अनिल प्रजापत विजयी हुए। वहीं राजकीय महिला महाविद्यालय और राजकीय विधि महाविद्यालय में भी एबीवीपी समर्थित प्रत्याशी विजयी हुए हैं।


राज्य सरकार के निर्देशानुसार सवेरे 11 बजे सभी महाविद्यालयों में मतगणना शुरू हो गई। सिरोही राजकीय महाविद्यालय पर सबकी नजर थी। इसी कारण यहां पर सुरक्षा के खासे इंतजामात किए गए थे। अन्य महाविद्यालयों की अपेक्षा यहां का परिणाम सबसे देरी से घोषित किया गया। तमाम कयासों को फेल करते हुए अध्यक्ष पद के लिए एबीवीपी समर्थित अनिलकुमार को 1107, एनएसयूआई समर्थित प्रकाश मेघवाल को 681, प्रदीपसिंह देवड़ को 103 तथा मनीषा गहलोत को 27 मत मिले।

इसी तरह उपाध्यक्ष पद पर लक्ष्मण मीणा को 702, विजयपालसिंह को 264 तथा हितेश पुरोहित को 934 मत मिले। इसी तरह महासचिव पद पर कलीम खान को 656, गजेन्द्र कुमार को 263 तथा प्रवीण पटेल को 982 मत मिले। इसी तरह संयुक्त सचिव के लिए खडी हुई दिव्या भाटी को 1076, ध्रवी राठौड़ को 755 तथा सुरजकुमार को 84 मत मिले। महाविद्यालय प्राचार्य डाॅ केके शर्मा ने शांतिपूर्ण मतदान करवाए जाने पर सभी का आभार जताया।

सीपीईसी में पारदर्शिता और भरोसा चाहता है पाकिस्तान


अगर पाकिस्तान इस डील पर नाराज है तो एक दशक पुराने इस डील को रीनेगोशिएट करना थोड़ा मुश्किल होगा


पाकिस्तान और चीन के बीच सीपीईसी यानी चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पर सबकुछ ठीक-ठाक नहीं लग रहा. पाकिस्तान के नए-नए प्रधानमंत्री बने इमरान खान चीन से नाखुश लग रहे हैं. उन्हें लगता है कि चीन इस प्रोजेक्ट के जरिए पाकिस्तान का फायदा उठा रहा है. अगर इस खबर में थोड़ी भी सच्चाई है तो ये न पाकिस्तान के लिए अच्छी खबर है न चीन के लिए. लेकिन बात पहले खबर पर.

पाकिस्तान का फायदा उठा रहा है चीन?

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, यूनाइटेड किंगडम के अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने सोमवार को ये बात कही कि पाकिस्तान ने पाकिस्तान-चीन के बीच हुए सीपीईसी डील को देश के लिए अन्यायपूर्ण बताया है. पाकिस्तान ने कहा है कि चीनी कंपनियां इस डील में पाकिस्तान का फायदा उठा रही हैं.

फाइनेंशियल टाइम्स ने एक पाकिस्तानी अधिकारी के हवाले से कहा कि पाकिस्तान और चीन के बीच एक दशक पहले बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव और व्यापार समझौते में पाकिस्तान की भूमिका को दोबारा आंकेगा और नेगोसिएशन करेगा.

अखबार में इमरान खान के कॉमर्स, टेक्सटाइल, इंडस्ट्री और प्रोडक्शन एंड इन्वेस्टमेंट सलाहकार अब्दुल रज़ाक दाउद के हवाले से कहा कि सीपीईसी पर पिछली सरकार ने चीन के साथ नेगोसिएशन बहुत बेकार तरीके से की है, जिससे पाकिस्तान को काफी नुकसान हुआ है.

दाउद ने ये भी कहा कि ‘चीनी कंपनियों को बहुत सारे टैक्स ब्रेक दिए गए हैं और उन्हें अनुचित लाभ मिल रहा है. ये हमारी नजर में है. ये उचित नहीं है कि पाकिस्तानी कंपनियां नुकसान उठाएं. हमें लगता है कि हमें सबकुछ एक साल के लिए रोक लेना चाहिए. शायद हम सीपीईसी को अगले पांच सालों के लिए टाल दें.’

इमरान खान का क्या है स्टैंड?

इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने से पहले भी सीपीईसी की आलोचना करते रहे हैं. उनके हिसाब से समस्या ये है कि इस प्रोजेक्ट में पारदर्शिता की कमी और बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार की आशंका है. हालांकि आम चुनावों से पहले एक चीनी अखबार से बातचीत के दौरान उनके सुर थोड़े नरम पड़े थे. उन्होंने कहा था कि सीपीईसी पाकिस्तान की आर्थिक व्यवस्था के लिए कई पहलुओं में सकारात्मक बदलाव लेकर आया है.

अब बात संभावनाओं और आशंका पर

सबसे पहले ये साफ कर दिया जाए कि सीपीईसी पर भले ही इमरान खान के सलाहकार के हवाले से किसी असहमति की खबर आई हो, लेकिन फिलहाल कुछ कहना मुश्किल हो सकता है.

अभी दो दिन पहले ही चीन के विदेश मंत्री और स्टेट काउंसिल वांग यी पाकिस्तान की यात्रा करके वापस गए हैं. वांग यी चीन की राजनीति में काफी ऊंची हैसियत रखते हैं. उनका कहना था कि वो चीनी सरकार की तरफ से नए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को ये बताने आए हैं कि वो उनके साथ काम करने को उत्सुक हैं और 50 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट सीपीईसी को आगे बढ़ाने को तैयार हैं. यहां चीन और पाकिस्तान दोनों ने सीपीईसी प्रोजेक्ट को पूरा करने का इरादा जाहिर किया है.

इमरान खान ने भी चीन की दोस्ती को पाकिस्तान की विदेश नीति की आधारशिला बताया है. ऐसे में सीपीईसी को लेकर दोनों देशों का उत्साह तो काफी ऊपर है लेकिन पाकिस्तान की नाराजगी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

पाकिस्तान के लिए मुश्किल होगा बदलाव करवाना

अगर पाकिस्तान इस डील पर नाराज है तो एक दशक पुराने इस डील को रीनेगोशिएट करना थोड़ा मुश्किल होगा. साथ ही अब अमेरिका भी पाकिस्तान को लेकर काफी सख्त है, तो पाकिस्तान के लिए चीन से खुन्नस खाना भी इतना आसान नहीं होगा. पाकिस्तान को भी अच्छे से पता है कि वो अपने अकेले के दम पर चीन को झुका नहीं सकता है क्योंकि आज तक वो ऐसा कुछ नहीं कर पाया है. कभी अमेरिका तो कभी चीन उसे किसी न किसी कंधे की जरूरत पड़ती रही है. साथ ही उसे ये भी पता है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. इसलिए भारत से हमेशा अड़े रहने वाले चीन के साथ दोस्ती रखना उसके लिए काफी जरूरी है. इसलिए ये डील टाली जाती है या इसमें ज्यादा कुछ बदलाव किया जाता है, इसकी गुंजाइश कम है.

इसके अलावा चीन के नजरिए से देखें तो चीन के लिए पाकिस्तान भारतीय उपमहाद्वीप में काफी अहम कैंडीडेट है. चीन-भारत-पाकिस्तान का त्रिकोणीय खेल खेलने में वैसे भी चीन का काफी मजा आता होगा. पाकिस्तान को भारत के खिलाफ आगे किए रखने के लिए उसे पाकिस्तान के साथ अपने संबंध बनाए रखना होगा. हालांकि यहां वैसे भी वो दबाव में नहीं है.

इस सबके इतर चीन के लिए अपने व्यापारिक संबंध काफी अहम हैं. हो सकता है कि अगर पाकिस्तान की ओर से असंतुष्टि जताई जाती है तो शायद इस समझौते में कोई बदलाव किया जाए.

फिलहाल पूरे मामले पर नजर डाला जाए तो ज्यादा बदलाव के हालात नहीं बन रहे.

विवेकपूर्ण मतदान ही देगा परिपक्व नेतृत्व

स्तुति वैष्णव बीएमसी द्वितीय वर्ष

हमारा देश भारत लोकतांत्रिक देश है। यहाँ सरकारें लोंगो द्वारा चुनीं जाती हैं, हम कई बार निष्पक्ष होकर चुनाव में अपना मत देते हैं, और कई बार चुनिंदा पार्टी द्वारा किये गए कुछ कच्चे दावों में आकर, अपना मत जो बहुत कीमती है, हमारा हक है उसे यूँ ही किसी को भी डाल कर जीता कर व्यर्थ न गवाएं, वोट ही तो है डाल देंगे किसी को भी ये सोच रख कर एक नेता ना चुनें  क्यों कि वो एक नेता ही है जो भारत का इतिहास बदलने में कामयाब हो जाये और कुछ सुनहरी इतिहास लिख दे।
वोट बहुत कीमती है इसका सही प्रयोग करे क्यों कि लोकतंत्र हमसे है ना कि हम किसी पर निर्भर हैं मैं हमेशा खुद के अनुभव रखती हूँ किसी और का उदहारण देने से पहले शुरुआत खुद से ही करनी चाहिए, ” कुछ समय पहले मैं एक पोलिटिकल लीडर से मिली, मैंने देश का नागरिक होते हुए अपने सारी समस्याएं रखी उन्होंने मिलने के लिए समय भी दिया मिले भी बहुत अच्छे से सुना भी बहुत ध्यान से, मुझे कुछ उम्मीद की किरण भी नज़र आई शायद कुछ सहारा मिल जाये पर मुझे ये उम्मीद बिल्कुल नही थी कि वो मुझे कुछ इस प्रकार उत्तर देंगे कि मैं कोशिश करूंगा तुम भी कोशिश करती रहो इतनी जल्दी यह मुमकिंन नही।  अगर उनके लिए ये मुमकिंन नही था तो किसके लिए होगा हम लोगो ने जिन्हें चुना इस लिए जो देश को संभाल सके वो हमसे कोशिश करते रहने को कह कर खुद सियासत की ऐश लूट रहे है मेरे मुददे इतने बड़े भी नही थे कि उन्हें इतना सोचना पड़े या कोशिश करनी पड़े और ऐसा नही है कि मुझे सहारे की जरूरत है या मैं अपनी लड़ाई अकेले नही लड़ सकती पर हमारा देश सिर्फ राजनीति पर निर्भर है यहाँ का हर बड़ा और अहम निर्णय एक नेता ही लेता है,ऐसे सुना मैने बहुत बार  पर सवाल ये नही की फैसला लेता कोन है या किसके द्वारा लिया जाता है सवाल ये है?  हमारा देश लोकतंत्र से चलता है अर्थ ये हुआ लोगों के लिए, लोगों के द्वारा , लोंगो से फिर क्यों जो लोग उन्हें चुनते हैं, जरूरत पड़ने पर उन्हें ही ऐसे बेसहारा सा छोड़ दिया जाता है,पर जो लोग उन्हें चुन कर सत्ता सौंप सकते हैं, वो लोग उन्हें गिरा भी सकते हैं। कमजोर कोई नही होता पर हमने जिन्हें देश सौंपा है उनका कोई कर्तव्य नही आम जनता के प्रति आपस मे मार काट करके क्या हासिल होगा ? कुर्सी पर बैठने से पहले सब भाई, बहन, माँ होते हैं कुर्सी मिलने के बाद वो भाई बहन  माँ बोझ से लगते हैं कही अब कोई काम न करवाना पड़ जाए, सत्ता मिलने पर हम ऊंची ऊंची प्रेस कॉन्फ्रेंस रैली में भारी भारी शब्दो का प्रयोग कर सबको इतना यकीन दिला देते हैं हम तुम्हारे हैं तुम्हारे साथ हैं , पर ये साथ कुछ देश के लिए देश के नागरिकों के लिये अपने भारत के लिए सोचे तो सत्ता सौंप कर हमें भी खुशी होगी, आपस की झड़प छोड़ देश का सोचे तो शायद हमारे देश के नौजवानो को वीजा लगवा कर बाहर का मुंह नही देखना पड़ेगा जो आवाज उठाता है उसकी आवाज को हमेशा के लिए दबा दिया जाता है, ये सत्ता का खेल ही कुछ ऐसा है मैं ये नही कहूंगी पार्टी डिबेट खत्म कर दें पर वो बहस एक दूसरे को नीचा दिखाने की जगह अगर किसी नागरिक, हमारे देश के लोगो के हित के लिए होने लगे कि कौन देश के उन्ह मुददों का सुझाव बेहतर देगा कौन उसे लागू करनवाने की पहल करेगा तो “सत्ता” का ये “खेल” बेहद खुदसूरत हो जाएगा। और इस को खेल खेलने और देखने का नज़रिया खुद बदल जाएगा।

प्रदेश में कुल 513 गौशालाएं हैं जिनमें से 500 पंजीकृत और 13 अपंजीकृत गौशालाएं हैं: धनखड़

चंडीगढ़, 11 सितंबर:

हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री ओम प्रकाश धनखड़ ने कहा कि प्रदेश में कुल 513 गौशालाएं हैं जिनमें से 500 पंजीकृत और 13 अपंजीकृत गौशालाएं हैं।

यह जानकारी आज यहां विधान सभा के मानसून सत्र के दौरान विधायक श्री जगबीर सिंह मलिक द्वारा इस संबंध में पूछे गए एक प्रश्न के लिखित जवाब में दी।

इन गौशालाओं में रखे गए गौवंश की कुल संख्या 366398 है जिनमें से 321848 गौवंश की टैगिंग की गई है। जिला अम्बाला की 9 गौशालाओं में रखे गए 5573 गौवंश में से 5318 गौवंश की टैगिंग की गई है। इसीप्रकार, जिला भिवानी की 37 गौशालाओं में रखे गए 18948 गौवंश में से 16480, जिला चरखीदादरी की 13 गौशालाओं में रखे गए 4464 गौवंश में से 3598, जिला फरीदाबाद की 6 गौशालाओं में रखे गए 4628 गौवंश में से 3083, जिला फतेहाबाद की 54 गौशालाओं में रखे गए 30259 गौवंश में से 28318, जिला गुरुग्राम की 16 गौशालाओं में रखे गए 18554 गौवंश में से 17921, जिला हिसार की 51 गौशालाओं में रखे गए 41248 गौवंश में से 40131, जिला झज्जर की 9 गौशालाओं में रखे गए 16009 गौवंश में से 14702, जिला जींद की 35 गौशालाओं में रखे गए 35469 गौवंश में से 24583, जिला कैथल की 17 गौशालाओं में रखे गए 20152 गौवंश में से 18004, जिला करनाल की 21 गौशालाओं में रखे गए 13530 गौवंश में से 12677, जिला कुरुक्षेत्र की 24 गौशालाओं में रखे गए 8728 गौवंश में से 7637, जिला नारनौल की 22 गौशालाओं में रखे गए 16075 गौवंश में से 13782, जिला मेवात की 12 गौशालाओं में रखे गए 5719 गौवंश में से 4860, जिला पानीपत की 22 गौशालाओं में रखे गए 14584 गौवंश में से 14307, जिला पंचकूला की 11 गौशालाओं में रखे गए 4281 गौवंश में से 3778, जिला पलवल की 13 गौशालाओं में रखे गए 5693 गौवंश में से 5383, जिला रेवाड़ी की 6 गौशालाओं में रखे गए 3705 गौवंश में से 2529, जिला रोहतक की 10 गौशालाओं में रखे गए 18043 गौवंश में से 15514, जिला सिरसा की 104 गौशालाओं में रखे गए 44272 गौवंश में से 38520, जिला सोनीपत की 23 गौशालाओं में रखे गए 33583 गौवंश में से 28123 और जिला यमुनानगर की 8 गौशालाओं में रखे गए 2881 गौवंश में से 2600 गौवंश की टैगिंग की गई है।

इसके अतिरिक्त, पशु विभाग द्वारा पंचकूला में चलाए जा रहे पशु चिकित्सा केन्द्र या पॉली क्लीनिक और उनमें पशुओं की गई कुल ओपीड

“Non-performing assets went up because of the policies of the Congress party,” Smriti Irani


“Why is it that Mr. Rahul Gandhi who is too quick to hug Prime Minister, would run a mile away when it comes to an Income Tax officer?” asked Irani.


The Bharatiya Janata Party (BJP) on Tuesday slammed the Congress a day after former Reserve Bank of India Governor Raghuram Rajan said that bad loans rose during the United Progressive Alliance (UPA) years.

“Non-performing assets went up because of the policies of the Congress party,” Union Minister for Textiles said at a press conference in New Delhi today.

“The Congress was exposed yesterday. Raghuram Rajan’s statement clearly proves that it is Congress who is responsible for increased NPA. Rahul Gandhi, Priyanka Vadra and Sonia Gandhi wanted to sabotage the taxpayer’s money,” said Irani referring to the former RBI Governor’s statement that a larger number of bad loans originated in the period 2006-2008 when economic growth was strong, and previous infrastructure projects such as power plants had been completed on time and within budget.

Irani also questioned Congress chief Rahul Gandhi on why Young India purchased a commercial company, referring to the National Herald case in which the Delhi High Court on Monday delivered a setback to the Congress president and his mother by dismissing their plea challenging the Income Tax notice seeking tax reassessment for the financial year 2011-2012.

“Why is it that Mr. Rahul Gandhi who is too quick to hug Prime Minister, would run a mile away when it comes to an Income Tax officer?” asked Irani.

She also accused UPA chairperson Sonia Gandhi of “leading a government that attacked the very core of the Indian banking system”.

In a note to Chairman of Estimates Committee Murli Manohar Joshi, Raghuram Rajan said: “A variety of governance problems such as the suspect allocation of coal mines coupled with the fear of investigation slowed down government decision making in Delhi, both in the UPA and the subsequent NDA governments”.

In his note to a Parliamentary panel, Rajan accused over optimistic bankers, slowdown in the government’s decision making process and moderation in economic growth as the major contributors to mounting bad loans.

Stating that the economy in the period 2006-2008 was strong, Rajan said that “banks make mistakes” at such times.

“They extrapolate past growth and performance to the future. So they are willing to accept higher leverage in projects, and less promoter equity. Sometimes bank sign up to lend based on project reports by the promoter’s investment bank, without doing their own due diligence,” according to Rajan.

Citing an example, the former RBI governor said, “One promoter told me about how he was pursued by banks waving chequebooks, asking him to name the amount he wanted”. This was a historic phenomenon of irrational exuberance, common across countries at such a phase in the cycle, he added.

Unfortunately, he said, growth does not always take place as expected and years of strong growth before the global financial crisis was followed by a slowdown, which extended even to India, showing how much more integrated the country had become with the world. Strong demand projections for various projects were shown to be increasingly unrealistic as domestic demand slowed down, he added.

He also pointed to loss of promoter and banker interest for rise in non-performing assets (NPAs). Over malfeasance and corruption in the NPA problem, he said, “Undoubtedly, there was some, but it was hard to tell banker exuberance, incompetence, and corruption apart”.

The Parliament’s Committee on Estimates had invited Rajan to brief it on the matter after former Chief Economic Advisor (CEA) Arvind Subramanian praised him for identifying the NPA crisis and trying to resolve it.

Rajan, who was RBI governor for three years till September 2016, is currently the Katherine Dusak Miller Distinguished Service Professor of Finance at Chicago Booth School of Business.

A.A.P. to divide Uttar Pradesh


Uttar Pradesh accounts for the highest number of 80 Lok Sabha seats and it will hold a great significance in the 2019 Lok Sabha polls.


The issue of division of Uttar Pradesh has once again come to the fore with the Aam Aadmi Party saying on Monday it will launch a movement to fulfill the long-standing aspiration of the people.

Uttar Pradesh accounts for the highest number of 80 Lok Sabha seats and it will hold a great significance in the 2019 Lok Sabha polls.

“Uttar Pradesh is a big state, both from the points of view of area and population. Its population is as much as that of any big country. It has become practically very difficult to govern such a vast state,” Aam Aadmi Party spokesperson Sanjay Singh told media persons.

He added that his party supports the division of Uttar Pradesh into four parts.

“AAP is in favour of smaller states. It supports the division of Uttar Pradesh into four parts, and for this, it will go the extent of even launching a movement. The party will finalise its strategy soon,” he added.

On being told that other political parties have opposed division of the state, Mr Singh said that the BJP has been a supporter of formation of smaller states.

“People of Bundelkhand, Poorvanchal and Paschim Kshetra (western UP) have been demanding creation of smaller states for the last many years. This is a matter of public feeling and political parties must think about it seriously,” Singh, a Rajya Sabha member, said.

Aam Aadmi Party is of the view that for an effective law and order system and conducive conditions for growth, formation of smaller states is necessary.

This is not for the first time that the party has made its voice heard on the matter of diving UP, India’s most populous state.

On Saturday, AAP chief and Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal too, advocated for the division of the state and said it has lagged in development because of its size.

“Uttar Pradesh should be divided into Awadh, Bundelkhand, Purvanchal and Pashchim Uttar Pradesh — four states. This is the people’s demand. And not only do we support it, we will struggle with the people of the state for the fulfilment of this demand,” Mr Kejriwal had said at an event in Noida.

The Bahujan Samaj Party (BSP), headed by Mayawati, was once a strong supporter of the demand when the Samajwadi Party was in power, maintaining that smaller states could be governed better.

Rupee now 72.73 against 1 Dollar breaking its own records


The rupee has gone down by more than 13 per cent against the dollar so far this year making it the worst performing Asian currency during the period.


Tuesday saw yet another bloodyagainst the US dollar as the former plunged by 28 paise to hit a new record low of 72.73 in late afternoon trade on strengthening American currency as crude oil prices went past the USD 78 a barrel mark, reported PTI.

This comes on the heels of the rupee closing at an all-time low of 72.45 against the dollar on Monday, down by 72 paise against Friday’s closing of 71.73.

News agency Bloomberg quoted a senior government official saying that the finance ministry and the Reserve Bank of India (RBI) are in constant touch to monitor the rupee.

“The top bank is intervening when required,” he was quoted as saying.

The rupee has gone down by more than 13 per cent against the dollar so far this year making it the worst performing Asian currency during the period.

Meanwhile, the BSE Sensex plunged 509.04 points, or 1.34 per cent, to close at 37,413.13 in Tuesday’s session.

Rough Congress leader taught lesson by a brave lady police officer


A female Sub Inspector taught law and order lesson to former Uttarakhand assembly speaker Govind Singh Kunjwal during the ‘Bharat Bandh’ on Monday.


A female Sub Inspector, posted at a remote location in Uttarakhand, taught law and order lesson to Congress workers and former Uttarakhand assembly speaker Govind Singh Kunjwal during the ‘Bharat Bandh’ on Monday. The policewomen opposed the move of the political party to forcefully close a 10+2 government girls school and ill-treating with the students at Jainti in district Almora.

Sub Inspector Sweta Negi, in-charge of Jainti Police Chowki, exhibited rare courage to stand alone amidst agitated Congress workers to silence them with her argument at Jainti market. When the female police Sub Inspector said, “Your workers were misbehaving with girls students and pushing them.” The police officer received support from the public, who confirmed the misbehavior incident. As a girl, standing in the crowd, began speaking about the Congress workers misbehaving with girl students, the political leader and his supporters became silent. They ran out of excuses to defend themselves.

Taking one step more, the Sub Inspector ordered the crowd not to obstruct the road and allow free parking space. Govind Singh Kunjwal, sitting MLA from Jageshwar, constantly accused the police officer of supporting a political party and Swety repeatedly said, “I am doing my duty and can allow violence incident to take place.”

The police staff and supporter of Govind Singh Kunjwal were making video of the argument. The former Uttarakhand assembly speaker was speaking in high volume claiming ever they like, including closing the school. The video from Jainti became viral on social media.