गृह मंत्रालय की 2015 की एक अधिसूचना अभी तक वैध है : अनिल बैजल उपराज्यपाल दिल्ली


दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर पलटवार किया है.


मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर पलटवार करते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने शुक्रवार को कहा कि सेवाओं को दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र के बाहर बताने संबंधित गृह मंत्रालय की 2015 की एक अधिसूचना अभी तक वैध है.

केजरीवाल को लिखे पत्र में बैजल ने कहा कि सेवाओं के मामले और अन्य मुद्दों पर और स्पष्टता तभी आएगी जब उच्चतम न्यायालय की नियमित पीठ के समक्ष इस संबंध में लंबित अपीलों को अंतिम रूप से निस्तारित कर दिया जाता है. उपराज्यपाल के अधिकारों को सीमित करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद दिल्ली सरकार और एलजी कार्यालय के बीच विवाद का कारण सेवा विभाग बना हुआ है.

बैजल का यह बयान ऐसे समय में आया है जबकि आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कुछ समय पहले कहा था कि उपराज्यपाल ने सेवा विभाग का नियन्त्रण राज्य सरकार को सौंपने से मना कर दिया है. केजरीवाल को लिखे एक पत्र में बैजल ने गृह मंत्रालय की 2015 की एक अधिसूचना के बारे में ध्यान दिलाया जिसमें संविधान के अनुच्छेद 239 और 239 एए के तहत राष्ट्रपति निर्देश जारी होते हैं.

इसमें कहा गया कि सेवाएं दिल्ली विधानसभा के अधिकारक्षेत्र के बाहर हैं परिणामस्वरूप दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार के पास सेवाओं को लेकर कोई कार्यपालिका अधिकार नहीं हैं. पत्र में कहा गया, इस अधिसूचना को दिल्ली उच्च न्यायालय ने चार अगस्त 2016 के अपने एक आदेश में भी सही ठहराया था.

उपराज्यपाल ने कहा, माननीय सुप्रीम कोर्ट के पीछे के निर्णय के चलते गृह मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि निर्णय के अंतिम पैरा के अनुसार ‘सेवा’ सहित नौ अपील पर नियमित पीठ सुनवाई करेगी तथा गृह मंत्रालय की 21 मई 2015 की अधिसूचना वैध बनी रहेगी. केजरीवाल ने दावा किया कि यह देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को मानने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया है.

बैजल के साथ 25 मिनट तक हुई बैठक के बाद केजरीवाल ने कहा कि उपराज्यपाल के मना करने के बाद देश में अराजकता फैल जाएगी. एलजी कार्यालय ने एक बयान में कहा, ‘उपराज्यपाल मुख्यमंत्री का ध्यान पैरा 249 की ओर आकर्षित कर रहे हैं जहां उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का ढांचा इस तरह का है जिसमें एक तरफ मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद और दूसरी तरफ एलजी एक टीम की तरह है.’

इससे पहले आज दिन में केजरीवाल ने सभी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए राशन की लोगों के घरों तक आपूर्ति को मंजूरी दी थी. मुख्यमंत्री ने खाद्य विभाग को यह भी आदेश दिया कि योजना को तुरंत लागू किया जाए. बैजल ने दिल्ली सरकार की इस योजना पर आपत्ति जताई थी और आप सरकार से कहा था कि इसे लागू करने से पहले केन्द्र से विचार विमर्श किया जाए.


उपराज्यपाल दिल्ली का केजरीवाल की बात नहीं मानेगा तो भारत म अराज्क्ता फ़ेल जाएगी। पर कैसे????

(शायद अगले आंदोलन की धमकी है)

आआपा अब भाजपा को दिल्ली ओर देश से बाहर करेगी : राठी

पंचकूला,6 जुलाई।

आम आदमी पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा धान सहित कुछ फसलों की खरीद का समर्थन मूल्य 200 रुपये बढ़ाना करना ऊंट के मूंह में जीरे के समान है। पार्टी का यह भी कहना है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की दुहाई देने वाली भाजपा की कथनी और करनी में दिन रात का फर्क है और यह अब भी किसानों के साथ समर्थन मूल्य के नाम पर जुमले ही कर रही है। पार्टी का कहना है कि सरकार को इन फस्लों की खरीद की व्यवस्था स्वयं करने की घोषणा करनी चाहिए थी अथवा इस बार स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा  करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि जब आढ़तीया किसान की उपज की खरी करेंगे तो वे अपने हिसाब से खरी करेंगे और किसान को उसकी उपज का उचित मूल्य देने में आनाकानी करेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र व राज्यों की सरकारों को अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार से कु छ सीखना चाहिए, जहां दिल्ली सरकार द्वारा किसानों को किसी भी तरह  की प्राकृतिक आपदा के चलते फसल के खराब होने की सूरत में 20 हजार रुपये प्रति एकड़ का मुआबजा दिया जाता है। मगर किसी जमाने किसानों की मांगों को लेकर नंगे होकर प्रदर्शन करने वाले भाजपा के नेता अब खुद सत्ता में आने के बाद इस मामले में चुप्पी साधे बैठे हैं।

आज यहां जारी एक ब्यान में आम आदमी पार्टी के पंचकूला विधानसभा हल्के के संगठन मंत्री सुरेंद्र राठी ने कहा कि हकीकत में यह भाजपा की संस्कृति है कि न तो उसने स्वयं जनहित का कोई कार्य करना है और न ही करने वाले को करने देना है। दिल्ली में आआपा की सरकार काम करना चाहती है तो उसे केंद्र में सत्ता में बैठी भाजपा की सरकार केजरीवाल सरकार को काम नहीं करने देना चाहती क्योंकि उससे अपनी पिछले विधानसभा चुनावों में हुई हार हजम नहीं हो पा रही। इसी तरह दिल्ली में जीरो हो चुकी कांग्रेस अब भाजपा की बी टीम के रुप में काम कर रही है और भाजपा की हां में हां मिलाकर केजरीवाल सरकार को काम नहीं करने दे रही। उन्होंने कहा कि माननीय सवोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद दिल्ली सरकार के आईएएस अधिकारी काम नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें कें द्र सरकार की पूरी शह है। ये अफसर एक तरह से सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता सब देख व समझ रही है और आनेवाले विधानसभा व लोकसभा चुनावों में वह भाजपा और कांग्रेस को एक बार फिर से 2014 वाला आईना दिखाएगी और दोनों ही चुनावों में देश व दिल्ली से बाहर का रास्ता दिखाएगी।

राजनीति के शीर्ष पर पंहुचने की इच्छा के चलते उलझते रहते हैं केजरीवाल


आधुनिक भारत के सबसे हाई प्रोफाइल प्रधानमंत्री और दिल्ली के इतिहास के सबसे लड़ाकू मुख्यमंत्री के बीच शह और मात का खेल सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खत्म नहीं होगा


दिल्ली जुलाई 6 :

लंबे अरसे बाद दिल्ली की गद्दी पर कोई ऐसा नेता बैठा है, जिसकी ब्रांडिंग एक बेहद ताकतवर प्रधानमंत्री की है. ज़ाहिर है, पूरे देश की निगाहें पिछले चार साल से लगातार दिल्ली पर हैं. लेकिन दिल्ली के सुर्खियों में बने रहने की एक वजह और है.

ताकतवर केंद्र सरकार की छाती पर मूंग दलने के लिए शहर के बीचों-बीच एक ऐसा आदमी धरना देने वाली मुद्रा में डटा है, जिसे उसके विरोधी कभी पलटू तो कभी झगड़ू तो कभी एके-49 के नाम से बुलाते हैं. अगर नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत वाले पीएम हैं तो अरविंद केजरीवाल भी ऐतिहासिक बहुमत वाले सीएम हैं. दोनों की अपनी-अपनी फैन फॉलोइंग है. दोनों से चिढ़ने वालों की तादाद भी अच्छी-खासी है. लेकिन इन दो समानताओं के बावजूद आपसी रिश्ता हमेशा से छत्तीस का रहा है. यकीनन भारतीय राजनीति के इतिहास में केंद्र और दिल्ली सरकार के टकराव की अनगिनत कहानियां शामिल होंगी. इन कहानियों का सिलसिला चार साल पहले शुरू हुआ था और अब तक जारी है.

करीब तीन हफ्ते पहले का वाकया है. सीएम केजरीवाल अपने मंत्रिमंडल के कुछ सहयोगियों के साथ दिल्ली के उप-राज्यपाल के घर दरवाजे पर धरना दे रहे थे. केजरीवाल का इल्जाम था कि उपराज्यपाल अनिल बैजल केंद्र के इशारे पर दिल्ली सरकार के हर काम में अंसवैधानिक तरीके से अड़ंगा लगा रहे हैं. उनकी शह पर दिल्ली के आईएस एक तरह की अघोषित हड़ताल पर हैं, जिसकी वजह से राज्य सरकार कई जन कल्याणकारी योजनाएं चाहकर भी लागू नहीं कर पा रही है.

उप राज्यपाल के बरामदे पर केजरीवाल का धरना लगातार नौ दिन तक जारी रहा. लेकिन उपराज्यपाल अनिल बैजल उनसे नहीं मिले. दिल्ली की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस धरने को कोई खास अहमियत नहीं दी और बीजेपी का सोशल मीडिया सेल लगातार केजरीवाल के खिलाफ कैंपेन चलाता रहा. इन सबके बीच उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अचानक प्रेस कांफ्रेस करके ऐलान किया कि आईएस अधिकारी काम पर लौट आए हैं, उन्होने सहयोग देने का वादा भी किया है, इसलिए अब धरने की कोई जरूरत नहीं है.

हालांकि नीति आयोग की बैठक के लिए आए चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केजरीवाल को समर्थन दिया था. इसके बावजूद उपराज्यपाल के घर से बैरंग लौट जाना केजरीवाल के लिए एक तरह की हार थी. विरोधियों ने इसका प्रचार भी इसी ढंग से किया. राजनीति के कई जानकारों ने भी `सियासी अनाड़ीपन’ के लिए केजरीवाल को कोसा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ताजे फैसले ने पूरा खेल बदल दिया. इस फैसले की आम व्याख्या यही है कि केजरीवाल सही थे और उपराज्यपाल गलत.

केजरीवाल के साथ हमेशा से ऐसा ही होता आया है. शह और मात के खेल में वे बुरी तरह घिरे नजर आते हैं. लेकिन हालात अचानक कुछ इस तरह बदलते हैं कि हारी हुई बाजी पलट जाती है. इसे किस्मत की मेहरबानी कहें या फिर कानून का सहारा. केजरीवाल शह और मात के खेल में कई बार बचे हैं. ऑफिस ऑफ प्रॉफिट प्रकरण में भी कुछ ऐसा ही था. चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी और राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी थी. लेकिन हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया.

`आआपा’ लगभग छह साल पुरानी पार्टी है. आलोचकों का कहना है कि केजरीवाल ने एक राष्ट्रीय नेता बनने की जो संभावनाएं शुरू में दिखाई थी, उस पर वे खरे नहीं उतरे. उन्हें अब तक ढंग से राजनीति करनी नहीं आई. वे अब भी मुख्यमंत्री के बदले आंदोलनकारी ही नजर आते हैं.

देखा जाए तो इन आरोपों के पक्ष में कई जायज दलीलें हैं. लेकिन क्या वाकई केजरीवाल उस तरह की सियासत नहीं सीख पाए हैं, जिसे शास्त्रीय परिभाषा में `राजनीति’ कहते हैं, या वे जो कुछ कर रहे हैं, वही उनकी शैली है? शायद केजरीवाल यह जानते हैं कि पब्लिक मेमोरी बहुत छोटी होती है. इसलिए वे अपने तमाम राजनीतिक दांव खुलकर खेल रहे हैं. कामयाबी मिली तो ठीक, नहीं मिली गलती पर मिट्टी डालकर आगे बढ़ जाते हैं.

2013 में जब पहली बार अल्पमत के साथ केजरीवाल सत्ता में आए तभी से उन्होंने अपने दांव चलने शुरू कर दिए. अपने एक मंत्री के खिलाफ हुई कानूनी कार्रवाई को लेकर वे सीएम होते हुए सड़क पर आ डटे. धरने पर बैठे-बैठे फिल्मी स्टाइल में वे फाइलें साइन किया करते थे. वह पहला ऐसा मामला जिसने केजरीवाल की इमेज एक नौटंकीबाज की बनाई. 49 दिन तक चलने के बाद जब उनकी सरकार ने इस्तीफा दिया तो बीजेपी ने भगोड़ा करार देते हुए पूरी दिल्ली में उनके बड़े-बड़े पोस्टर लगवाए. लेकिन केजरीवाल को इसका नुकसान नहीं बल्कि फायदा ही हुआ और अगले चुनाव में आम आदमी पार्टी 70 में 67 सीटें जीत गई.

केंद्र सरकार के साथ टकराव को कुछ देर के लिए अलग रखें तब भी बतौर राजनेता केजरीवाल ने बहुत कुछ ऐसा किया है, जिससे राजनीतिक रूप से परिपक्व कदम नहीं माना जा सकता है. अपनी पार्टी के भीतर उपजे किसी भी असंतोष को वे ठीक से संभाल नहीं पाए. वैचारिक मतभेद होते ही उन्होने प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और आनंद कुमार जैसे उनकी थिंक टैक से जुड़े लोगों को फौरन बाहर का रास्ता दिखा दिया. कपिल मिश्रा प्रकरण में भी यही हुआ. पुराने साथी कुमार विश्वास को भी केजरीवाल संभाल नहीं पाए. शुरुआती दौर में देश भर की कई जानी-मानी हस्तियां आम आदमी पार्टी से जुड़ी थीं. लेकिन ज्यादातर लोग आहिस्ता-आहिस्ता अलग होते चले गए.

केजरीवाल ने कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक के बड़े नेताओं पर थोक भाव में आरोप लगाए. बदले में ढेरों मुकदमे झेले और फिर वह दौर भी आया जब उन्होंने नितिन गडकरी और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं से बकायदा लिखित माफी मांगनी शुरू की. आम आदमी पार्टी ने सफाई दी कि मुकदमेबाजी की वजह से केजरीवाल का बहुत वक्त बर्बाद हो रहा है. इसलिए वे इन पचड़ों से बाहर आ रहे हैं, ताकि जनहित के ज्यादा से ज्यादा काम कर सकें. इन तमाम फैसलों का भरपूर मजाक उड़ा. लेकिन अनाड़ी शैली में ही सही खेल लगातार जारी रहा.

`आआपा’ यूपीए टू सरकार के खिलाफ खड़े हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद अस्तित्व में आई थी. देखा जाए तो उसकी शुरुआती लड़ाई कांग्रेस से थी. कई लोग आप को उस वक्त बीजेपी की `बी ‘टीम करार दे रहे थे. लेकिन घटनाक्रम तेजी बदलने लगा और कांग्रेस के बदले केजरीवाल की असली लड़ाई बीजेपी के साथ शुरू हो गई.

दरअसल इस लड़ाई की नींव 2014 के लोकसभा चुनाव के समय ही पड़ गई थी. कांग्रेस अपनी अलोकप्रियता के सबसे निचले पायदान पर थी. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अपना नेता घोषित कर दिया था और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकले केजरीवाल भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे थे.

केजरीवाल को यह समझ में आ गया था कि राष्ट्रीय राजनीति में अपनी साख कायम करनी है, तो उन्हें मौजूदा दौर के सबसे लोकप्रिय राजनेता यानी मोदी से सीधे-सीधे टकराना होगा. इसी रणनीति के तहत केजरीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से पर्चा भरा और मोदी लहर के बावजूद दो लाख वोट हासिल करने में कामयाब रहे.

लेकिन इसी दौरान मोदी के साथ उनकी राजनीतिक `शत्रुता’ की नींव पड़ी. केंद्र में एनडीए की सरकार बनी. इसके कुछ महीनों बाद प्रधानमंत्री मोदी के ज़बरदस्त प्रचार और अमित शाह के रणनीतिक कौशल के बावजूद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में रिकॉर्ड तोड़ बहुमत हासिल करके एक और जख्म दिया. फिर तो केजरीवाल जैसे केंद्र सरकार की छाती पर सवार हो गए. कांग्रेस उन दिनों लगभग खामोश थी. केजरीवाल ने इसका भरपूर फायदा उठाया और लगातार बयानबाजी करके मोदी वर्सेज केजरीवाल का नैरेटिव गढ़ने में कामयाब रहे.

बेशक राष्ट्रीय राजनीति को एक नई पहचान मिली हो लेकिन इस सीधे टकराव का काफी नुकसान भी हुआ. सीबीआई से लेकर इनकम टैक्स तक तमाम केंद्रीय एजेंसियां केजरीवाल और उनके मंत्रियों के पीछे जैसे हाथ धोकर पड़ गईं. रही-सही कसर पहले नजीब जंग और उसके बाद अनिल बैजल से उप राज्यपाल ने पूरी कर दी. केजरीवाल अब आए दिन केंद्र सरकार और उप राज्यपाल का दुखड़ा लेकर जनता के बीच जाने लगे. दिल्ली के वोटरों का एक तबका भी यह मानने लगा कि इल्जाम लगाना और काम ना करने के बहाने ढूंढना उनकी आदत है.

खुद केजरीवाल यह दावा कर चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री से मिलकर सुलह-सफाई करना चाहते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री मुलाकात का वक्त नहीं दे रहे हैं. नरेंद्र मोदी की राजनीति को करीब से देखने वाले भी यह जानते हैं कि वे अपने विरोधियों के प्रति एक सीमा से ज्यादा रियायत नहीं बरतते हैं. थक-हार चुके केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ बयानबाजी बंद की और अपना फोकस शिक्षा और पब्लिक हेल्थ जैसे कामों पर लगाना शुरू किया ताकि वोटरो का दिल जीत सकें.

आप पिछले छह महीने के आंकड़े उठाकर देख लीजिए. प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ केजरीवाल के बहुत कम बयान मिलेंगे. अपने यहां होनेवाले सीबीआई छापे या इनकम टैक्स जांच का हवाला वे ज़रूर देते हैं, लेकिन सीधे-सीधे प्रधानमंत्री पर कोई आरोप लगाने से बचते हैं. इसके बदले आम आदमी पार्टी लगातार सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार, मोहल्ला क्लीनिक और राशन की होम डिलिवरी जैसी अपनी योजनाओं का प्रचार करती नज़र आती है.

बिना काम दिखाए वोटर के पास दोबारा जाना मुश्किल है. दिल्ली की राजनीति पर नज़र रखने वाले कई लोग यह मानते हैं कि वाकई शिक्षा और जन-स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में केजरीवाल अच्छा काम कर रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी राजनीति सही पटरी पर लौट चुकी है?

दिल्ली की राजनीति काफी मेलो ड्रैमेटिक है. आगे क्या होगा यह कहना मुश्किल है. लेकिन कुछ बातें साफ हैं. पहली बात यह कि दिल्ली सरकार के कामकाज में उपराज्यपाल का हस्तक्षेप बिल्कुल बंद हो जाएगा, इसकी संभावना कम है. बीजेपी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अपनी तरह से व्याख्या कर रही है. ऐसे में यह मानना कठिन है कि उप-राज्यपाल के ज़रिए केंद्र ने जिस तरह केजरीवाल की नकेल कस रखी है, वह एकदम ढीली पड़ जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बहुत कुछ ऐसा है जिसे `ग्रे एरिया’ कहते हैं, यानी व्याख्या अलग-अलग ढंग से की जा सकती है. बहुत संभव है कि मोदी सरकार इसका फायदा उठाकर उप राज्यपाल के ज़रिए अपनी दखल बरकरार रखे. इसके संकेत भी मिलने शुरू हो गए हैं. यानी सियासी शतरंज की बिसात पर केजरीवाल को आगे भी इसी तरह फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा.

आगे क्या होगा?

2019 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. ऐसे में एक सवाल यह भी है कि आम आदमी पार्टी का क्या होगा? क्या केजरीवाल साझा विपक्ष के किसी महागठबंधन में शामिल होंगे. अगर तीसरा मोर्चा होता तो केजरीवाल बहुत आराम से उसका हिस्सा बन सकते थे. लेकिन कांग्रेस के बिना मोदी के खिलाफ प्रभावी विपक्ष की कल्पना बेमानी है. अगर-मगर के बावजूद तमाम विपक्षी पार्टियों को कांग्रेस के साथ आना ही पड़ेगा भले ही सर्वमान्य नेता के रूप में राहुल गांधी के नाम का ऐलान ना हो.

अब सवाल यह है कि क्या आम आदमी पार्टी कांग्रेस के नेतृत्व वाले किसी गठबंधन का हिस्सा बन पाएगी? पहली बात यह है कि आम आदमी पार्टी अगर अपना घोषित कांग्रेस विरोधी स्टैंड छोड़ती है, तो इससे वोटरों में एक अलग संदेश जाएगा जो पार्टी के लिए अच्छा नहीं होगा. फिर भी अगर मोदी को ज्यादा बड़ा खतरा मानते हुए अगर केजरीवाल ने कांग्रेस से हाथ मिला भी लिया तो सीटों का बंटवारा कैसे होगा?

पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटों पर आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी और कांग्रेस तीसरे पायदान पर जा लुढ़की थी. क्या कांग्रेस दिल्ली में केजरीवाल के पीछे चलना पसंद करेगी? ऐसी ही समस्या पंजाब में आएगी. पिछले लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी वहां की चार सीटों पर जीती थी. इस समय पंजाब में कांग्रेस मजबूत है और आम आदमी पार्टी अंतर्कलह से परेशान है. इसके बावजूद केजरीवाल के लिए पंजाब में कांग्रेस के पीछे चलना संभव नहीं होगा.

समझने वाली बात यह है कि आम आदमी पार्टी वैकल्पिक राजनीति वाली अपनी ब्रांडिंग को तभी तक बचाए रख पाएगी, जब तक वह कांग्रेस और बीजेपी दोनों के विरोध में खड़ी हो. यह रास्ता मुश्किल है. लेकिन केजरीवाल के लिए शायद कोई और विकल्प भी नहीं है. चुनाव के बाद किसी विपक्षी गठबंधन को समर्थन देने या सरकार में शामिल होने का विकल्प उनके लिए ज़रूर खुला होगा.

Justice AK Goel appointed Chairperson of National Green Tribunal

Delhi July 6:

Hours after he bid farewell to the Supreme Court, a notification by Department of Personnel and Training has intimated the appointment of Justice AK Goel as the new Chairperson of the National Green Tribunal (NGT).

His tenure as NGT Chairperson has been specified as being for a period of five years from the date he assumes office, or till he reaches the age of 70 years, whichever is earlier.

The notification dated today states,

The Appointments Committee of the Cabinet (ACC) has approved the proposal for appointment of Justice Adarsh Kumar Goel, Judge Supreme Court of India as Chairperson, National Green Tribunal (NGT), in the pay scale and with such allowances and benefits as are admissible for the post, for a period of 05 years w.e.f the date of assumption of charge of the post, or till the age of 70 years, whicehever is earlier.

2. Necessary communication in this regard has been sent to the Ministry of Envrionment, Forest & Climate Change.”

Justice Goel enrolled at the Bar in 1974. He practised before the Punjab & Haryana High Court for five years and the Supreme Court and Delhi High Court for about twenty-two years.

He was elevated as the judge of the Punjab & Haryana High Court in 2001 before being transferred to Gauhati High Court in September 2011, where he became Chief Justice in December 2011. He was then transferred as Chief Justice of the Orissa High Court in October 2013 before being elevated to the Supreme Court where he took charge on July 7, 2014.

 

Courtesy Bar & Bench

देखिए केंद्र की बीजेपी सरकार नहीं चाहती है कि दिल्ली सरकार अच्छा काम करे : केजरीवाल


अरविंद केजरीवाल ने मीडिया के सामने कहा है कि भारत के इतिहास में पहली बार एलजी साहब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है


दिल्ली, जुलाई 6:

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर से केंद्र सरकार पर हमला बोला है. अरविंद केजरीवाल ने एलजी के बहाने ही सही केंद्र पर निशाना साधा है. केजरीवाल ने शुक्रवार को दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल से मुलाकात की. एलजी से मुलाकात के बाद अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलजी के साथ मुलाकात का पूरा ब्यौरा दिया.

अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि गुरुवार को मैंने एलजी साहब को एक पत्र लिखा था. इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में बताया गया था. पत्र में लिखा था कि अब हर फाइल एलजी साहब को भेजने की जरूरत नहीं है. दिल्ली सरकार के द्वारा लिए गए हर फैसले की जानाकारी एलजी साहब को जरूर बता दिया जाएगा. इस पर एलजी साहब तैयार हो गए हैं. हालांकि एलजी साहब सर्विसेज को लेकर अभी भी तैयार नहीं हुए हैं.

अरविंद केजरीवाल ने मीडिया के सामने कहा है कि भारत के इतिहास में पहली बार एलजी साहब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कह था कि तीन विषय छोड़ कर बाकी सभी मसलों पर फैसले लेने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है.

अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि दिल्ली में बिजली-पानी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार के पास है, लेकिन इन चीजों को लागू करने का अधिकार केंद्र के पास है? केंद्र सरकार अफसर तैनात करेगी और हम लोग काम करवाएंगे? देखिए केंद्र की बीजेपी सरकार नहीं चाहती है कि दिल्ली सरकार अच्छा काम करे.

जितनी फाइलें अटकी पड़ी थी उन पर काम शुरू

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अभी तक जितनी भी फाइलें अटकी पड़ी थी उस पर हमलोगों ने काम करना शुरू कर दिया है. शुक्रवार को दो-तीन महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं. हमारी सरकार चाहती है कि दिल्ली में घर-घर राशन पहुंचे. यह मामला कई महीनों से एलजी साहब के कारण अटका हुआ था आज ही मैंने ऑर्डर जारी कर दिया है.

दूसरा, दिल्ली के स्कूल-कॉलेजों और अन्य जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने का प्रपोजल भी अटका पड़ा था, जिसे मंगलवार तक पास कर दिया जाएगा. दिल्ली सरकार की महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सिग्नेचर ब्रिज के आखिरी इन्सटॉलमेंट को भी आज पास कर दिया गया है. यह ब्रिज इसी साल अक्टूबर महीने तक बन कर तैयार हो जाएगा.

सर्विसेज के मुद्दे को लेकर दिल्ली सरकार और एलजी के बीच टकरार अभी कायम रहेगा. बता दें कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि चुनी हुई सरकार लोकतंत्र में काफी अहम है. इसलिए कैबिनेट के पास फैसले लेने का अधिकार है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली सरकार के हक में नहीं

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि एलजी के पास कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है. पीठ ने साफ कहा था कि हर मामले पर एलजी की सहमति की जरूरत नहीं है. इसके बावजूद कैबिनट के फैसले की जानकारी एलजी को देनी होगी.

कुलमिलाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भी दिल्ली सरकार और एलजी के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस फैसले के कानूनी पहलुओं पर लगातार प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. गुरुवार को केंद्रीय मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील अरुण जेटली ने भी इस फैसले पर अपनी राय रखी थी.

अरुण जेटली ने साफ कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली सरकार के हक में नहीं गया है. दिल्ली सरकार के पास पुलिस का अधिकार नहीं है ऐसे में वह पूर्व में हुए अपराध के लिए जांच एजेंसी गठित नहीं कर सकती.

ऐसे में एक बार फिर से अरविंद केजरीवाल की सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में लग गई है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले के बाद यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि दिल्ली सरकार और एलजी के बीच का विवाद थम गया है वह विवाद अब अगले कुछ दिनों तक और बरकरार रह सकता है.

राजनीतिक गतिरोध अरविंद केजरीवाल ओर प्रधानमंत्री के बीच है: शिवसेना

 

शिवसेना ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र को दिल्ली में आप सरकार के साथ सहयोग करना चाहिए और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को काम करने की इजाजत देनी चाहिए.

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) के बीच शक्तियों के बंटवारे के विषय पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आम आदमी पार्टी के पक्ष में आने के बाद शिवसेना का यह बयान आया है.

शिवसेना ने कहा कि एलजी और आप सरकार के बीच तकरार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यदि चाहते तो उप राज्यपाल को नियंत्रित कर सकते थे.

शीर्ष न्ययालय ने दो दिन पहले एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि एलजी निर्वाचित सरकार की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं और वह बाधक नहीं बन सकते हैं.

शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘ सामना ’ में प्रकाशित एक संपादकीय में लिखा है , ‘… कम से कम अब एलजी और दिल्ली सरकार के बीच गतिरोध खत्म हो जाना चाहिए तथा केजरीवाल को मुख्यमंत्री के तौर पर अपना काम करने देना चाहिए.’

पार्टी ने कहा कि राजनीतिक गतिरोध केजरीवाल और एलजी अनिल बैजल के बीच नहीं था , बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच था.

शिवसेना ने कहा कि यदि मोदी चाहते तो वह केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एलजी को नियंत्रित कर सकते थे. लेकिन यह काम सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ा.

शिवसेना ने कहा कि उसे संदेह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार के फैसलों में एलजी की दखलअंदाजी खत्म हो जाएगी.

संपादकीय में कहा गया है कि मोदी लहर के बावजूद आप सरकार 2015 में प्रचंड जनादेश के साथ सत्ता में आई थी और भाजपा को दिल्ली विधानसभा चुनाव में मात्र तीन सीट मिली थी.

इसमें कहा गया है कि केजरीवाल की कार्य शैली पर विचारों का मतभेद हो सकता है लेकिन लोगों के जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए. केंद्र को केजरीवाल सरकार के साथ अवश्य ही सहयोग करना चाहिए.

सामना में कहा गया है कि एलजी ने अपने संवैधानिक पद को ध्यान में नहीं रखा. इसने प्रशासन और राजभवन की प्रतिष्ठा कम की.

शिवसेना ने कहा कि यदि केंद्र को लगता है कि केजरीवाल काम नहीं कर रहे या वह भ्रष्ट हैं तो उसे दिल्ली सरकार को बर्खास्त कर देना चाहिए, लेकिन उसे कामकाज नहीं करने देना अनुचित है.

पार्टी ने कहा कि दिल्ली सरकार को क्लर्क या चपरासी तक नियुक्त करने का अधिकार नहीं है, वह नीतिगत फैसले नहीं कर सकती, आईएएस अधिकारियों की बैठक नहीं बुला सकती और उन्हें निर्देश नहीं दे सकती.

इसने कहा कि यह एक निर्वाचित सरकार का गला घोंटने जैसा है. इसलिए, केजरीवाल सरकार ने विरोध किया और आप मंत्री राजभवन में धरना पर बैठे.

संपादकीय में कहा गया है कि एलजी आवास में धरना पर बैठे आप मंत्रियों की तस्वीर आपातकाल के दौर से भी अधिक बदतर स्थिति को दिखाती है.


कोई हैरानी नहीं जब शिव सेना के संपादक ऐसा कहते हैं। जिस दौर की यह बात करते हैं यह उस दौर मे इन्दिरा जी के थोपे हुए आपत्काल मे उनके साथ थे।

SC ruling out power tussle still in

Notwithstanding the Supreme Court ruling on the Delhi government’s powers vis-a-vis the Lieutenant Governor, the tussle over powers to transfer or post officers has become a fresh bone of contention.

Kejriwal, who met L-G Anil Baijal on Friday, claimed the power comes under the state’s services department and hence lies with the Government of Delhi. However, in a press briefing after the meeting, Kejriwal told reporters that the L-G has refused to acknowledge the fact and said that Delhi being a Union Territory makes its powers subservient to the Central government.

“L-G saheb agreed that it is not necessary to send files to him for approval every time, but he is not ready to cooperate in the services case,” Kejriwal said.

Kejriwal said that the L-G claimed that since the Supreme Court did not scrap the home ministry’s 2016 notification, which makes Baijal the authority on matters relating to transfers and appointments. “I tried to point it out to him that from SC’s ruling, which limits L-G’s powers to Land, Police, and Public Order, the notification gets defunct automatically. Since services don’t fall under the purview of any of the above, the power should lie with the Delhi government,” Kejriwal said.

“But L-G wants that Delhi government remains answerable for the work done by these officers, while he wants to appoint them himself,” he added.

“L-G sought advice from that MHA which told him that services should not be given to Delhi government. It is the first time in the history of India that the Central government has openly refused to obey the SC’s order…,” Kejriwal told reporters.

This would lead to anarchy in the country, he said. The chief minister said that since the parties in power at the Centre and state were political opponents, a conflict would surely arise as the Centre would want AAP to lose next elections.

He said, “If a common man fails to comply with Supreme Court’s decision, he could still understand. But I fail to understand why the Centre itself is bent on committing contempt of court.”

Meanwhile, Baijal also tweeted that he met Kejriwal and assured him of his continued support.

Hours after the Supreme Court’s landmark judgment earlier this week, the Delhi government introduced  a new system for transfer and postings of bureaucrats, making the chief minister the approving authority.

However, the services department refused to comply, saying the Supreme Court did not abolish the notification issued in 2016 which made the MHA the authority for transfers and postings.

The Supreme Court in its landmark judgement on Wednesday had said the L-G is bound by the elected government’s advice and cannot be an “obstructionist”.

Earlier on Thursday, the chief minister requested all stakeholders to implement the court order on distribution of powers between the Delhi government and the L-G and said the verdict had clearly demarcated the areas of power sharing.

Echoing the views of the chief minister, his deputy Manish Sisodia tweeted, “I want to appeal to all the stakeholders to implement the order and work together for the development of Delhi. Sought time to meet Hon’ble L-G to seek his support and cooperation in the implementation of the order of Hon’ble SC and in the development of Delhi.”

He said the chief secretary had written to him, saying the services department would not follow the orders. “If they are not going to abide by it and the transfer files will still be seen by the L-G then it will amount to contempt of the Constitution Bench,” Sisodia told reporters.

Pakistan court sentences Nawaz Sharif to 10 years in jail in Avenfield case, daughter Maryam gets 7 years

Islamabad July 6:(courtesy GEO News)

An anti-graft court in Pakistan sentenced former Pakistan prime minister Nawaz Sharif to 10 years in jail and fine with £8 million in a corruption case involving the purchase of four luxury apartments in London’s Avenfield House. Sharif’s daughter Maryam was sentenced to seven years and fined £2 million in the case.

The case also involves Sharif’s son-in-law Captain (retired) Safdar, who was sentenced to one year in jail. Sharif’s two sons — Hasan and Hussain — who are also co-accused in the case have already been declared absconders in the case following their now show in the hearings.

The verdict, which has already been postponed once, comes ahead of the general elections in Pakistan on 25 July and will impact the poll prospects of the Pakistan Muslim League, Nawaz (PML-N), which is facing stiff competition from Imran Khan’s Pakistan Tehreek-e-Insaaf॰

With the trial court sentencing Maryam to jail, she stands disqualified for the general elections. Maryam has registered as a PML-N candidate for the upcoming polls from NA-127 (Lahore) seat.

The former Pakistan prime minister, however, continues to deny any wrongdoing and accused the military and courts conspiring to oust him and using legal cases and intimidation to help Khan’s PTI party, accusations denied by Khan, the army, and the judiciary.

Sharif, 67, resigned in July after the Supreme Court disqualified him from holding office over an undeclared source of income, but the veteran leader maintains his grip on the ruling Pakistan Muslim League-Nawaz (PML-N) party.

The latest pre-election polls have shown PTI gaining ground over PML-N. Khan, a former cricket captain of Pakistan, has portrayed the legal cases as a long-overdue corruption crackdown on the PML-N, which he has labelled a graft-ridden “mafia”.

Sharif has a history of differences with the military, which has ruled the nuclear-armed country for almost half of its history, and ousted him from power in 1999 in a bloodless coup.

Earlier this week, on Tuesday, the accountability court judge, Mohammad Bashir, had reserved his verdict and said that it will be announced on Friday. The court asked all accused to be present in the court for the hearing on Friday.

Nawaz, Maryam’s plea rejected

Sharif has been in London since last month to take care of his ailing wife Kulsoom Nawaz who is undergoing treatment for throat cancer.

In a press conference in London earlier this week, Sharif had said he would return to Pakistan irrespective of whether the verdict finds him guilty or not, as soon as his wife’s conditions improve. “Whether it comes in my favour, or, God forbid, it comes against me, I will go back,” he said, according to Reuters.

Nawaz and Maryam had filed a petition on Thursday, urging the anti-graft court to defer the verdict by seven days so they may be present in court when it is announced. Pakistan laws require the presence of the accused at the time of announcing the verdict. The court had then reserved its order on the plea till Friday.

According to GeoTV, on Friday, Maryam’s counsel Amzed Parvez submitted Begum Kulsoom Nawaz’s medical report and argued that the law stipulates the presence of the accused when the verdict is read out. The prosecution, however, opposed any delay at such a late stage of the trial.

After hearing the arguments on Friday from both sides on whether or not to defer the announcement of the verdict in the Avenfield graft case, the trial court was adjourned for an hour. Later, it dismissed Sharifs’ plea and set 12.30 pm as the time to announce the verdict on the Avenfield case. The trial court judgment was extended five times on Friday. After initially pushing it to 12.30 pm from the scheduled 11 am, the deadline was extended three more times to 2.30 pm, then to 3 pm and later to 3.30 pm before it was read at 4 pm.

Tight security in Islamabad

The Islamabad administration had reportedly imposed Section 144 in the capital to discourage mass gathering of supporters from various political parties.

Strict security arrangements, including paramilitary personnel, was placed at the Federal Judicial Complex, where the court is located, GeoTV said. The roads leading to the complex were also closed to traffic on Friday.

What were the charges against the Sharif family?

The charges include ownership of four posh London flats that resurfaced in Panama Papers. Sharif denied the ownership of the flats but said they were owned by his son Hussain Nawaz in 2006. However, the Sharif family admitted that they were residing in the flats since 1993.

In a statement before the court, it was submitted that the flats were owned by a Qatari consortium, which later transferred the ownership to the Sharif family in 2006. The accountability court has heard the case for nine and a half months.

Sharif’s sons, Hasan and Hussain,

The Sharifs have denied any corruption and wrongdoing. The former prime minister has described the corruption charges against him and his family as being politically motivated.

The trial against the Sharif family commenced on 14 September, 2017. Nawaz and his sons, Hussain and Hasan, are accused in all three cases while his daughter Maryam and son-in-law Safdar are accused in the Avenfield case only.

Findings of Joint Investigation Team

According to the Joint Investigation Team’s report submitted in the Panamagate case, the Sharifs had given contradictory statements about their London flats and found that the flats actually belonged to them since 1993, Pakistani media reported.

The JIT observed that either Hassan or Hussain or both had lied to hide some facts and hence they could not be given the benefit of doubt, the reports said.

महिला कांग्रेस की ओर से प्रोजेक्ट शक्ति नंबर का शुभारंभ

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राज्यसभा सांसद कुमारी शैलजा

 

 

हरियाणा प्रदेश महिला कांग्रेस की ओर से प्रोजेक्ट शक्ति नंबर का शुभारंभ।

इस “शक्ति” प्रोजेक्ट की लॉन्चिंग पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राज्यसभा सांसद कुमारी शैलजा ने की।

हरियाणा प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्षा सुमित्रा चौहान और आयोजक रंजीता मेहता भी रही उपस्तिथ।

इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य महिलाओं को सीधा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राहुल गांधी एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं से सीधे कनेक्ट करवाना है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राज्यसभा सांसद कुमारी शैलजा ने कहा—-

यह प्रोजेक्ट पूरे हरियाणा में शुरू किए जाएंगे और महिला कांग्रेस कार्यकर्ता सीधे राहुल गांधी से बात कर सकेंगे।

कहा चुनाव नजदीक आ रहे है और कांग्रेस की सरकार बनेगी।

कांग्रेस ने गुटबाजी पर बोलते हुए कहा हम सब एक है ,कांग्रेस के सभी काम कर रहे है।

पूर्व विधायक धरमसिंह छोक्कर के वाइरल वीडियो पर बोले उन्हें नही इसकी कोई जानकारी,टिप्पणी करने से बचती नजर आयी कुमारी शैलजा।

पत्नी की अत्महत्या से दुखी पति ने भी वही राह ली

रेणु और विजयकांंत

पंचकूला, जुलाई 6।

सेक्टर-16 निवासी महिला ने ट्रेन के आगे कूदकर खुदकशी कर ली। पति को जब घटना के बारे में पता चला तो वह भी अपनी सुधबुध खो बैठा और उसने भी ट्रेन के आगे कूदकर खुदकशी कर ली। दोनों की खुदकशी की सूचना के बाद परिवार में मातम छा गया। पति-पत्नी के शव को पोस्टमार्टम के लिए नागरिक अस्पताल के शवगृह में रखवा दिया गया है।

बताया जा रहा है कि पति-पत्नी विजयकांत व रेणु सेक्टर 16 में रहते थे। पड़ोसियों के मुताबिक उनका आपस में कोई विवाद नहीं था। इसके बावजूद उनकी आत्महत्या का कदम चौकाने वाला है। घर से कोई सुसाइड नोट भी बरामद नहीं हुआ है। जीआरपी चंडीगढ़ पुलिस मामले की जांच कर रही है।

विजयकांंत और रेणु के बीच प्रेम विवाह हुआ था। गत सायं से रेणु घर से गायब थी। पति उसे ढूंढ रहा था। इसी बीच जीआरपी थाने ने विजयकांत को बुलाया और फोटो दिखाई। यह फोटो विजयकांत की पत्नी रेणु की थी। रेणु ने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या की थी। इसके बाद विजयकांत वहां से गया और वह भी ट्रेन के आगे कूद गया। रेणु और विजयकांंत के दो बच्चे हैं।