मरुधरा के सियासी समर में मैदान सज चुका है. तलवारें दोनों तरफ से तन चुकी हैं. आखिर में बचा है बस सियासत का वही सबसे अहम सवाल कि आखिरकार राजस्थान की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा?
हर पांच साल बाद सत्ता बदलने के लिए मशहूर राजस्थान की जनता फिर फैसला करने की तैयारी में है. सूबे की सियासी हवाओं में आजकल राजनीति की रेत उड़ने लगी है. राज्य कांग्रेस के नेताओं को भरोसा है सत्ता की गाड़ी उनकी तरफ आ रही है तो वसुंधरा राजे राजस्थान के सियासी इतिहास को बदलने के लिए जी जान से जुटी हैं.
अभी-अभी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जयपुर में प्रधानमंत्री मोदी का ग्रैंड शो सफलतापूर्वक पूरा करके राज्य की फिजा में केसरिया रंग भरने की कोशिश की है. पीएम के प्रोग्राम के बहाने उन्होंने पिछले साढ़े चार साल की उपलब्धियों का रिपोर्ट कार्ड राजस्थान की जनता और मीडिया के सामने पेश कर दिया है. सीएम ने प्रधानमंत्री लाभार्थी संवाद कार्यक्रम के तहत सरकारी योजनाओं से लाभ लेने वाले करीब तीन लाख लाभार्थियों को प्रधानमंत्री से रूबरू कराया. ये पहला ऐसा मौका था जब किसी मुख्यमंत्री ने अपने काम का लेखाजोखा ऑडियो विजुअल माध्यम से जनता और मीडिया के समक्ष रखा.
इस प्रोग्राम के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने भी वसुंधरा राजे सरकार के कामकाज की जमकर तारीफ की. सीएम का ये प्रोग्राम भी कांग्रेस के लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है, क्योंकि वो लोग लगातार राजस्थान सरकार के योजनाओं की नाकामी का ढिंढोरा पीटते रहे हैं.
मुख्यमंत्री ने अपने कामकाज को लेकर इस तरह की सार्वजनिक प्रस्तुतिकरण के जरिए अपने विरोधियों को निरुत्तर करने की कोशिश की है. इतना ही नहीं, इस प्रोग्राम से राजस्थान बीजेपी में भी सकारात्मक संदेश गया है. राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और ढाई महीने के अंतराल के बाद नवनियुक्त राज्य के पार्टी अध्यक्ष का एक मंच पर होना कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार करने में कामयाब रहा है. जाहिर तौर पर इसका आगामी विधानसभा चुनाव पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है.
उधर कांग्रेस के लोगों को लगता है कि राजस्थान पर पंजे की पकड़ बेहद मजबूत हो चुकी है. कांग्रेस के दो बड़े नेता सचिन और अशोक गहलोत दो धुरी होने के बावजूद राज्य के लोगों के सामने एकजुट नजर आने की कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस के आला नेता ये मान कर चल रहे हैं कि राजस्थान में बीजेपी हारी हुई लड़ाई लड़ रही है. तो उधर वसुंधरा राजे का मानना है कि कांग्रेस का यही आत्मविश्वास उसकी लुटिया डुबोएगा.
कांग्रेस हर मोर्चे पर तैयारी में जुटी है. मेरा बूथ, मेरा गौरव कार्यक्रम के तहत गांव-गांव में अपने कार्यकर्ताओं में जान फूंकने में लगी है. गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष के बाद सबसे पावरफुल पोस्ट पाने के बावजूद अशोक गहलोत भी राजस्थान की राजनीति में ही रमे हुए हैं. वो जयपुर से लेकर दिल्ली तक में लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके वसुंधरा सरकार को हर मोर्चे पर विफल बताने में जुटे हुए हैं. हालांकि सामान्य आरोपों के अलावा कांग्रेस के नेताओं के हाथ वसुंधरा सरकार के खिलाफ कोई पुख्ता मुद्दा नहीं लग सका है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि वसुंधरा सरकार पर इस बार भ्रष्टाचार का कोई बड़ा आरोप नहीं लगा.
राजस्थान की राजनीति को जानने वालों का कहना है कि वसुंधरा राजे ने अपने पिछले कार्यकाल से काफी कुछ सीखा है. उन्होंने इस बार उन सभी तत्वों को सरकार से दूर रखा, जो सत्ता का दुरुपयोग करते हैं. सियासी और नौकरशाही में फिक्सर का काम करने वालों से उन्होंने दूरी बना ली. इसमें वसुंधरा के लिए कवच का काम करते हैं प्रिंसिपल सेक्रेटरी तन्मय कुमार. 1993 बैच के आईएएस अधिकारी तन्यम कुमार की गिनती राज्य के ईमानदार अफसरों में होती है. वसुंधरा राजे ने मौजूदा कार्यकाल में उन पर भरोसा जताया है. तन्मय कुमार मुख्यमंत्री के इस भरोसे पर पूरी तरह से खरे उतरे.
उनको जानने वाले बताते हैं कि अपने काम में रमे रहने वाले तन्मय कुमार के लिए रोजाना 14 से 15 घंटे काम करना आम बात है. ये उनकी आदत में शुमार है. आज जिस पद पर वो मौजूद हैं उसकी इबारत उनके कलेक्टर के तौर पर काम करने के दौरान ही लिखी गई. लोग बताते हैं कि सन 2005 में जब तन्मय कुमार कलेक्टर कोटा थे, उसी दौरान मुख्यमंत्री उनके कार्यशैली से प्रभावित हुई थीं. वो इलाका मुख्यमंत्री का चुनाव क्षेत्र है. इसी वजह से सीएम को उनकी कायशैली का पता चला.
मुख्यमंत्री ने उस दौरान तन्मय कुमार के कामकाज से प्रभावित होकर ही उन्हें 30 जून 2005 को मुख्यमंत्री ऑफिस में उपसचिव नियुक्त किया. 2005 से 2008 तक तन्मय कुमार ने मुख्यमंत्री के साथ काम किया. जब वसुंधरा राजे दोबारा मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होने तन्मय कुमार को सचिव के रूप में अपने साथ बुलाया. तन्मय कुमार बाद में मुख्यमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी बने.
अपने मौजूदा कार्यकाल में तन्मय कुमार ने मुख्यमंत्री की उम्मीदों के मुताबिक राज्य सरकार की योजनाओं को सुचारू रूप से चलाने और बढ़ाने का काम किया है. तन्मय कुमार पर लगातार निजी हमले होते रहते हैं. लोग उनके चरित्र पर भी उंगली उठाने की नाकाम कोशिश कर चुके हैं. तन्मय कुमार के साथ जुड़े लोगों के मुताबिक ये वो लोग हैं, जो सत्ता का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन उन्हें निराशा मिली, इस वजह से आरोप लगाने पर उतर आए.
तस्वीर वसुंधरा राजे की फेसबुक वॉल से साभार
उनको करीब से जानने वाले ये भी दावा करते हैं इतने सारे हमलों के बावजूद उन्होने कभी ऐसे लोगों पर ध्यान नहीं दिया. इतनी ताकतवर पोस्ट मिलने के बावजूद न तो तन्मय कुमार ने सरकारी घर बदला, न नौकर चाकर जैसी सुविधाएं बढ़ाईं और न ही अपने लिए सुरक्षाकर्मी ही रखा. तन्मय सियासी समीकरणों पर भी पैनी नजर रखते हैं. उनके हरफनमौला अंदाज ने उन्हें मुख्यमंत्री का सबसे विश्वासपात्र बना दिया है.
बहरहाल राजस्थान की सियासत आने वाले दिनों में और परवान चढ़ने वाली है. विपक्ष के नेता अभी से बदलाव की बयार महसूस करने लगे हैं. उधर, मुख्यमंत्री लगातार लोगों से संपर्क साधने में जुटी हैं. भामाशाह और अन्नपूर्णा जैसी योजनाओं को लेकर वसुंधरा सरकार काफी आशान्वित हैं. मिड डे मील में बच्चों को दूध देने की शुरुआत करके मिडिल क्लास को साधने की कोशिश सरकार ने की है. नौजवानों से लेकर महिलाओं और किसानों तक को सरकारी योजनाओं से लुभाने की कोशिश हुई है. मरुधरा के सियासी समर में मैदान सज चुका है. तलवारें दोनों तरफ से तन चुकी हैं. आखिर में बचा है बस सियासत का वही सबसे अहम सवाल कि आखिरकार राजस्थान की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा?