All you need to know about the Amarnath Yatra
/0 Comments/in CHANDIGARH, HARYANA, HIMACHAL, JAMMU & KASHMIR, NATIONAL, PANCHKULA, PUNJAB, RAJASTHAN, SPIRITUAL, STATES, TRICITY, UTTAR PRADESH/by Demokratic Front BureauThe Amarnath Yatra will begin on June 28 and conclude on August 26.
CHANDIGARH:
The first batch of Amarnath Yatra pilgrims was flagged of from the Bhagwati Nagar camp in Jammu at 04:45 am on June 27 and they will start their journey to the cave shrine from Baltal and Pahalgam routes on June 28. Officials said a total of 1,904 pilgrims including 330 women and 30 children were part of this batch of Amarnath Yatra pilgrims. The Central Reserve Police Force also launched bike-borne quick reaction teams on Tuesday that will not only respond to any attack or sabotage incident on the yatra route but also double up as an ambulance to rescue unwell pilgrims, security personnel or locals.
Here’s all you need to know about the Amarnath Yatra:
Dates of Amarnath Yatra:
They Amarnath Yatra will begin on June 28 and conclude on August 26, coinciding with Raksha Bandhan.
Security at Amarnath Yatra:
Vehicles tagged with electromagnetic chips, bike and bullet-proof SUV police convoys and scores of bullet-proof bunkers have been deployed as part of the “biggest-ever” security blanket thrown to secure pilgrims undertaking the Amarnath Yatra.
Over 40,000 armed CRPF and state police personnel have virtually dotted the yatra routes from Jammu via Pahalgam and Baltal– with their overwhelming presence in armoured vehicles.
Helicopter service:
The advance online booking for Amarnath Yatra helicopter tickets began on April 27, 2018. Pilgrims could book the tickets through the websites of the heli-operators with which the arrangements had been finalised – UTAir India Private Limited and Global Vectra Helicorp Limited for the Neelgrath-Panjtarni-Neelgrath sector and Himalayan Heli Services Private Limited for the Pahalgam-Panjtarni-Pahalgam sector. The helicopter service can be availed at Rs. 1,600 for one way for Neelgrath-Panjtarni and Rs. 2,751 for Pahalgam-Panjtarni route.
Route of Amarnath Yatra:
The devotees start their Amarnath yatra from Srinagar or Pahalgam on-foot and take one of the two possible routes. The shorter but steeper trek via Baltal, Domial, Barari and Sangam is 14 km long and allows people to take a round trip in 1-2 days. This Amarnath Yatra route is considered more favourable for returning. It is steep hence, difficult to climb.
The longer Amarnath yatra route via Pahalgam is generally preferred by most of the devotees. The length of the trek varies from 36 to 48 km. The trek usually takes 3-5 days one way. The Amarnath route is much wider than the Baltal trek and slopes gradually.
Registration process of Amarnath Yatra:
Registration and issue of yatra permit is done on first-come-first-serve basis. Travellers can get themselves registered at 440 designated bank branches of the Punjab National Bank, Jammu and Kashmir Bank and YES Bank in 32 states and Union Terriories across the country.
Total number of registrations for Amarnath Yatra:
Over two lakh pilgrims have registered for the annual pilgrimage to the 3,880 metre high cave shrine of Amarnath in south Kashmir Himalayas till now. Last year, over 2.6 lakh people registered for the annual pilgrimage.
अमरनाथ यात्रा और उसके पड़ाव
/0 Comments/in HARYANA, HIMACHAL, JAMMU & KASHMIR, NATIONAL, PUNJAB, SPIRITUAL, STATES, UTTAR PRADESH/by Demokratic Front Bureauअमरनाथ हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 135 सहस्त्रमीटर दूर समुद्रतल से 13,600 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस गुफा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) 19 मीटर और चौड़ाई १६ मीटर है। गुफा 11 मीटर ऊँची है।अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्यों कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।
यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं।आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों लोग यहां आते हैं। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है।चंद्रमा घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
जनश्रुति प्रचलित है कि इसी गुफा में माता पावती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।
कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चन्दन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टाप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था। आज भी चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं।
अमर नाथ यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से। यानी कि पहलमान और बलटाल तक किसी भी सवारी से पहुँचें, यहाँ से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। अशक्त या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। पहलगाम से जानेवाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल १४ किलोमीटर है और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है। इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। रास्ते में किसी अनहोनी के लिए भारत सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती है।
पहलगाम जम्मू से 315 किलोमीटर की दूरी पर है। यह विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन केंद्र से सरकारी बस उपलब्ध रहती है। पहलगाम में गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है।
पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं। इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ का यह पुल सलामत रहता है।
चंदनबाड़ी से 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। पिस्सू घाटी समुद्रतल से 11,120 फुट की ऊँचाई पर है। यात्री शेषनाग पहुँच कर ताजादम होते हैं। यहाँ पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊँचाई क्रमश: 13,500 फुट व 14,500 फुट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहाँ पांच छोटी-छोटी सरिताएँ बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊँचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहाँ सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं।
अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नजदीक पहुँच कर पड़ाव डाल रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह पूजा अर्चना कर पंचतरणी लौटा जा सकता है। कुछ यात्री शाम तक शेषनाग तक वापस पहुँच जाते हैं। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।
बलटाल से अमरनाथ– जम्मू से बलटाल की दूरी 400 किलोमीटर है। जम्मू से उधमपुर के रास्ते बलटाल के लिए जम्मू कश्मीर पर्यटक स्वागत केंद्र की बसें आसानी से मिल जाती हैं। बलटाल कैंप से तीर्थयात्री एक दिन में अमरनाथ गुफा की यात्रा कर वापस कैंप लौट सकते हैं।
जगन्नाथ मंदिर विवाद
/0 Comments/in NATIONAL, POLITICS, SPIRITUAL/by Demokratic Front Bureau
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उनकी पत्नी के साथ पुरी के जगन्नाथ मंदिर में बदसलूकी का मामला सामने आया है. अब इस घटना को लेकर रिपोर्ट बनाई जा रही है. राष्ट्रपति, पत्नी के साथ मार्च में पुरी गए थे. हालांकि अधिकारियों ने माफी मांगी है. राष्ट्रपति कार्यालय ने इसे अस्वीकार कर दिया है और स्पष्टीकरण मांगा है.
यह पहली बार नहीं है कि पुरी में ऐसी घटना हुई है. यहां गर्भगृह में प्रवेश करने से कई गणमान्य व्यक्तियों को रोका जा चुका है. मंदिर में एक बोर्ड है जिसमें केवल हिंदुओं की अनुमति है. मंदिर के नियमों के अनुसार, केवल शंकराचार्य इसमें बदलाव कर सकते हैं. सबसे उल्लेखनीय बात यह थी कि इंदिरा गांधी को 1984 में पुरी में जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया था,क्योंकि उनकी शादी एक पारसी से हुई थी.
इंदिरा ही नहीं, यहां तक कि महात्मा गांधी को भी रोक दिया गया था जब वह मुस्लिम, हरिजन और दलितों को मंदिर में ले गए. गांधी परिवार से संबंधित राजनेताओं के लिए मंदिरों में ऐसा होना काफी आम हैं. साल 1984 में, जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, उनकी पत्नी सोनिया गांधी को काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया था. उन्हें इस आधार पर मना कर दिया गया कि वह एक ईसाई और इतालवी थीं.
भारत ने नेपाल के खिलाफ आर्थिक नाकाबंदी कर दी. हालांकि पीएमओ ने सोनिया से जुड़े इस घटना का नाकेबंदी से कोई संबंध इनकार किया था लेकिन फिर तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह को रास्ता तलाशने के लिए भेजा गया था.
1998 में जब पार्टी अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला तो फिर सोनिया गांधी आशीर्वाद के लिए तिरुपति मंदिर गईं. उन्हें विजिटर्स बुक पर साइन करने के लिए कहा गया, जिस पर सवाल थात कि वह हिन्दू हैं या नहीं. तब उन्होंने कहा था, ‘मैं अपने परिवार के सिद्धांतों का पालन करती हूं.’ हाल ही में गुजरात चुनाव के दौरान राहुल ने सोमनाथ मंदिर का दौरा किया तब बहुत विवाद हुआ. सवाल उठाए गए कि उन्होंने गैर हिंदुओं के लिए विजिटर्स बुक पर साइन क्यों किए. कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया था.
रशीद किदवई ने कहा, ‘गांधी इस मुद्दे के बारे में बहुत संवेदनशील हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि सोनिया को भी रोका गया था और फिर संबंधों में खटास आई थी.’
तेजस्वी की आय और संपतियां करोड़ों की और टैक्स शून्य : सुशिल मोदी
/0 Comments/in NATIONAL, POLITICS, SPIRITUAL, STATES/by Demokratic Front Bureauमोदी ने कहा ‘तेजस्वी ना सिर्फ 750 करोड़ का मॉल बनवा रहे हैं बल्कि करोड़ों का लोहे का व्यापार भी कर रहे हैं.’
बिहार में राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है. एक तरफ सुशील और दूसरी तेजस्वी यादव. सुशील मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर गंभीर आरोप लगाए हैं. मोदी ने तेजस्वी पर गलत जानकारी देने का आरोप लगाया है.
सुशील मोदी ने कहा ‘तेजस्वी एक लारा एंड सन्स नामक कंपनी, जिंदल एंड सन्स के हैंडलिंग और स्टोरेज एजेंट के रूप में चला रहे थे. तेजस्वी ने चुनाव आयोग को दिए एफिडेफिट में भी गलत जानकारी दी है और फ्रॉड करते हुए VAT रिटर्न में भी अपना टर्नओवर शून्य दिखाया है.’
मोदी ने कहा ‘तेजस्वी ना सिर्फ 750 करोड़ का मॉल बनवा रहे हैं बल्कि करोड़ों का लोहे का व्यापार भी कर रहे हैं.’
मोदी ने सवाल उठाया ‘लोहा और स्टील के जिंदलकंपनी के हैंडलिंग एजेंट के तथ्यों को आजतक छुपाया क्यों गया. चुनाव आयोग को दिए गए संपत्ति के ब्यौरे में इस जमीन और व्यापार का उल्लेख क्यों नहीं किया गया.’
उन्होंने कहा ‘तेजस्वी यादव जिंदल कंपनी के एजेंट के रूप में करोड़ों का व्यापार करते रहे लेकिन VAT के रिटर्न में टर्नओवर शून्य दिखाते रहे. साथ में तेजस्वी यादव सिर्फ 22 साल की उम्र में लारा सन्स जैसी कंपनी के मालिक कैसे बन गए?’
सरकारी कर्मचारी अब नहीं कर सकेंगे दूसरा विवाह
/0 Comments/in NATIONAL, POLITICS, SPIRITUAL, STATES, UTTAR PRADESH/by Demokratic Front Bureauक्या यह नियम 4 शादियों की धार्मिक आज़ादी पर अदृश्य वार तो नहीं
सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट मीटिंग हुई. इस बैठक में कुल 17 प्रस्ताव पास हुए. सरकार के प्रवक्ता और स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने सरकार के फैसलों की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि पुलिस विभाग से जुड़े नियमों में कुछ बदलाव किया गया है.
नए नियमों के मुताबिक, क्लर्क, एकाउंटेंट, कॉन्फिडेंशियल असिस्टेंट दूसरी शादी नहीं कर सकते. ये दूसरे जीवनसाथी के साथ लिव-इन में भी नहीं रह सकते हैं. सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि पहले भी इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, कॉन्स्टेबल आदि के लिए नियमों में बदलाव किया जा चुका है.
इसके अलावा योगी सरकार ने प्रदेश में सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना दोबारा कराने की मंजूरी दे दी है. सरकार का तर्क है कि 2011 में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना यानी SECC की गई थी. इस सर्वे मे ये सामने आया कि सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाओं में कई लोग छूट रहे हैं. बाकी लोगों को भी कल्याणकारी योजनाओं में शामिल करने के लिए यह सर्वे बेहद जरूरी है.
इसमें मुख्य रूप से दो बिंदु हैं. पहला अगर पर्सनल लॉ आपको दूसरी शादी की इजाजत नहीं देता है तो यह नियम लागू होगा. अगर पर्सनल लॉ दूसरी शादी की मंजूरी देता है तो यह नियम लागू नहीं होगा.
कैबिनेट के अहम फैसले
-जेई और एईएस बीमारी के लिए ‘मुख्यमंत्री आरओ पेयजल योजना’ के तहत गोरखपुर और बस्ती मंडल के सात जिलों, बुंदेलखंड के सात जिलों में 25 लीटर क्षमता का आरओ लगाया जाएगा. सभी प्राथमिक विद्यालयों में 71.5 करोड़ का खर्च आएगा. पांच साल के लिए ठेके दिए जाएंगे.
– पुलिस के मैनुअल में संशोधन किया गया है. अब क्लर्क, एकाउंटेंट, कॉन्फिडेंशियल असिस्टेंट ये सभी दूसरी शादी नहीं कर सकते या दूसरे जीवनसाथी के रूप में लिव-इन पार्टनर नहीं रख सकते.
-2017-18 की योजना में अब विभागों को कैबिनेट के जरिए प्रस्ताव पास कराना होगा. कौशल विकास मिशन और प्राविधिक शिक्षा विभाग ने बुधवार को अनुमोदन लिया.
-कैग की रिपोर्ट के लिए कैबिनेट ने अनुमोदन दिया.
-डॉ. राम मनोहर लोहिया के दोनों चिकित्सालयों का विलय कर उन्हें एम्स की तर्ज पर विकसित किया जाएगा. राज्यपाल को इसे पुर्नविचार के लिए भेजा है. इसी के तहत अब इसमें संशोधन किया जाएगा. अब इसके वाइस चांसलर राजपाल होंगे.
– पिछड़ा वर्ग के व्यक्तियों के प्रक्षिक्षण के लिए, सरकार ने अब ओबीसी को भी इसमें जोड़ा है. इसमें कारीगरी से लेकर इलेक्ट्रिशियन सिक्योरटी गार्ड जैसे काम का प्रशिक्षण दिया जाएगा. साथ ही इन्हें लोन भी दिलवाया जाएगा.
– शामली में बेहतर बिजली के लिए 400 किलोवाट का सब स्टेशन 738.61 करोड़ रुपए की लागत से बनाया जाएगा. इससे मुजफरनगर, शामली व मेरठ जिला कवर होगा.
– 2013 में निर्णय किया गया था कि पॉवर कम्पनी की शेल तैयार की जाय. सोनभद्र पावर कम्पनी शेल कंपनी बनाई गई थी, जो खत्म कर दी गई है.
– ग्राम सभा की जमीन सर्किल रेट के आधार पर अब औद्योगिक विभाग को दी जा सकेगी.
– 1000 करोड़ तक का कोई भी पीपीपी मॉडल प्रोजेक्ट लगाना चाहते हैं तो टेंडरिंग प्रक्रिया के तहत विभाग सीधे ऐसा कर सकता है.
– दो करोड़ 40 लाख तक अब विधायकों को विकास निधि मिलेगी, जिसमें 40 लाख तक जीएसटी में जाएगा.
– मगहर में विकास के लिए 250 लाख की धनराशि दी गई थी. अब इसका विकास सोसाइटी के तहत किया जाएगा. सरकार ने इसमें चार संस्थाओं को रजिस्टर्ड किया है, एक पुस्तकालय भी इसके अन्तर्गत अब बनेगा.
– उच्च न्ययालय से सेवानिवृत्त न्यायाधीश के स्पाउस या विधवा पत्नी, पति के लिए भत्ते की धनराशि बढ़ा दी गई है. इसे अब 20 हजार और 15 हजार कर दिया गया है. पहले यह 14 हजार थी. इसी के साथ उच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश की मृत्यु उपरांत परिवार को सहायता राशि प्रतिमाह 10 हजार और 7500 रुपया कर दिया गया है.
– मिर्जापुर के विंध्यांचल में विकास कार्य नहीं हो पा रहा था. यहां पर विंध्यांचल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है, इसमें 68 गांव भी शामिल किए गए हैं.
– पूर्वांचल एक्सप्रेस योजना में आरएफपी, आरएफक्यू आया है, जिसे 36 महीनों में बनाया जाएगा. अगर 30 माह में बन जाएगा तो उसे सरकार छूट देगी. पहले पेनाल्टी लगाने की बात कही गई थी, जिसे अब रिलेक्स किया गया है.
– 2011 में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना यानी एसईसीसी की गई थी. इस सर्वे मे ये सामने आया कि सरकार की तमाम कल्याण कारी योजनाओं में कई लोग छूट जा रहे हैं. जो लोग छूट गए हैं. उनके लिए ग्राम विकास के माध्यम से दोबारा सर्वे करने को कहा गया है. साथ ही तीन माह के अंदर लाभ मिलेगा सभी योजनाओं में लाभ दिया जाएगा.
– उत्तर प्रदेश के लोकतंत्र सेनानियों को अब यूपी के सभी सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है. राजकीय चिकित्सालयों में इन्हें और इनके परिवार को मुफ्त चिकित्सा की सुविधा दी गई है.
इसके इलावा आज योगी कैबिनेट ने 30 जून को सेवानिवृत्त हो रहे मुख्यसचिव राजीव कुमार को विदाई दी और उन्हें नौकरशाही के कुशल नेतृत्व के लिए बधाई और धन्यवाद ज्ञापित किया. मुख्य सचिव की हैसियत से राजीव कुमार की यह आख़िरी कैबिनेट मीटिंग थी.
Moods Swing of Siddaramaiah
/0 Comments/in NATIONAL, POLITICS, SPIRITUAL/by Demokratic Front BureauBy taking on Deve Gowda, family, Siddaramaiah making life difficult for already-shaky JD(S)-Congress alliance.
When the Janata Dal (Secular) and Congress cobbled together a coalition government in Karnataka a month ago, Opposition leaders danced and sang paeans to their unity. From across India, a dozen leaders flew to Bengaluru to consummate the alliance. They exulted over a mahagathbandhan they claimed the alliance would herald to take on the Bharatiya Janata Party when India goes to polls in 2019.
Outgoing Congress chief minister Siddaramaiah and JD(S) head honcho HD Deve Gowda — long-time sworn enemies — hugged and smiled for the cameras. But few were fooled, and one question remained upfront: What would Siddaramaiah do after losing the chief minister’s post to Gowda’s son HD Kumaraswamy in an unexpected spin of fortunes?
Siddaramaiah answered that question on Sunday by way of a “leaked” video of his confabulations with a few Congress MLAs. In the clip —there is no reason to doubt its authenticity — he flings barbs at Kumaraswamy for deciding to present a full budget instead of a supplementary one and for going ahead with his promised waiver of farm loans. There is no need for both, according to Siddaramaiah, who says he had already presented the 2018-19 budget and waived farm loans to some extent. This is ample proof, if proof is needed, that the former chief minister is in a vile mood to take on the Gowda family once again to settle old scores.
In another video “leaked” on Tuesday, Siddaramaiah expressed doubts about whether the Congress-JD(S) coalition would last beyond the 2019 Lok Sabha elections.
On his part, Kumaraswamy is not taking things lying down. He made it clear that nothing could stop him from presenting a full budget and waiving loans. “I am not at the mercy of anybody,” the Karnataka chief minister said.
In the taped conversations, Siddaramaiah was careful to not take potshots at Congress President Rahul Gandhi. He even advised MLAs against holding secret pow-wows against the party. This hints at the possibility that his camp may have deliberately leaked the tapes to make it clear that his quarrel, at least for the time being, is with Gowda’s “appa-makkala paksha” (father-son party) and not with the Congress high command.
The BJP is not content with just enjoying the show from the sidelines. The grapevine is, once again, abuzz with rumours that the party is waiting to have another go at forming a government with defectors. After a quick visit to Ahmedabad to meet BJP chief Amit Shah, state unit president BS Yeddyurappa only said: “We’ll wait and watch.”
At least 14 Congress-JD(S) MLAs must resign from their seats for the government to fall, and that is not easy.
Things have not reached — not as yet at least — a stage where Siddaramaiah will round up enough legislators around himself to overthrow the government. But there is little doubt that he will make the government’s functioning anything but smooth. At least for some time, Kumaraswamy must live with the irony of facing trouble from Siddaramaiah, the very man whose job as the head of the Coordination Committee is to ensure the government’s smooth running.
Siddaramaiah’s enmity with Gowda is no ordinary affair. It’s of a feudal kind spanning decades, with deep-rooted loyalty turning into an intense hostility over time. As part of one janata avataror the other, Siddaramaiah had been Gowda’s trusted protégé for 20 years from 1985. A backward-class Kuruba, he had complemented Gowda’s credentials as an upper-caste Vokkaliga strongman.
There is also little doubt that the mess that the Congress finds itself in is largely of Rahul’s making. Despite the drum-beating by Congress admirers and fake intellectuals of the Left-leaning kind who claim Rahul has developed into a mature politician capable of taking on Narendra Modi, he continues to suffer from an appalling lack of political understanding. From the start, his handling of the Karnataka affairs reeked of the clumsiness of a rookie.
To begin with, Rahul let Siddaramaiah run riot in the state with his so-called identitarian politics, ridiculous populist schemes and a bizarre move to make upper-caste Lingayats a seperate religious minority, none of which helped the party in the Karnataka elections. He even gave Siddaramaiah considerable freedom to choose election candidates. That now gives Siddaramaiah a little group of his own among the elected MLAs.
Once the party lost the elections, Rahul nearly dumped Siddaramaiah, giving him only a minimal role in making key decisions, whether it was the matter of aligning with the JD(S) or the constitution of the government. Worse, a few of his supporters made it to the government.
Besides, by surrendering to every whim of Gowda, Rahul has jeopardised the future of many in the Congress, especially in the Old Mysuru region where both parties compete for the same vote bank.
Rahul perhaps patted his own back for the decision to make Siddaramaiah the head of the Coordination Committee and keeping him quiet, without realising that he was only giving him a nice platform from where he could throw tantrums.
Siddaramaiah is left with little choice now other than to make noise to embarrass the Gowda family and Rahul. Expecting him to nod his head and follow the leader at this stage amounts to living in a fool’s paradise.
माल्या के बाद अब राबर्ट वाड्रा की बारी : संबित पात्रा
/0 Comments/in Uncategorized/by Demokratic Front Bureauअभी कल ही किसी ने सोशल मीडिया पर राबर्ट वाड्रा के हवाले से कहा था,” भाई चुनाव आ गए हैं, मुझे(राबर्ट वाड्रा) भी याद कर लो”
नई दिल्ली। भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखा है। विजय ने पत्र जारी करते हुए कहा है कि वो सभी बैंकों के कर्ज चुकाने को तैयार है लेकिन इसमें उसे न्यापालिका की मदद चाहिए।
विजय माल्या ने कहा कि कुछ लोग सवाल कर रहे हैं कि इस पत्र का जिक्र अब क्यों। मैं बता दूं कि मैंने 22 जून 2018 को कर्नाटक हाईकोर्ट में बयान दर्ज़ कर कहा था कि मैं अपनी संपत्ति बेच कर बैंक के सभी कर्ज चुकाना चाहता हूं।
माल्या की चिठ्टी पर मचे बवाल के बीच बीजेपी ने पलटवार किया है। बुधवार को पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि विजय माल्या का जो पत्र लिखा है, उससे साफ है कि वह घबराया हुआ है। पात्रा ने कहा कि पत्र में विजय माल्या कह रहा है कि मुझे बैंक डिफॉल्ट केस का पोस्टर बॉय बना दिया गया है। संबित पात्रा बोले कि जबकि वो यूपीए के समय में किंग ऑफ गॉड कहा जाता था। पात्रा ने कहा कि 2011 में माल्या ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को शुक्रिया किया था, लेकिन अब उसकी भाषा पूरी तरह से बदल गई है।
संबित पात्रा ने विजय माल्या के बहाने रॉबर्ट वाड्रा को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले आयकर विभाग ने रॉबर्ट वाड्रा से 25 करोड़ रुपए जमा कराने को कहा था। क्योंकि उन्होंने कई नियमों का उल्लंघन किया था। जिसमें इनकम का सोर्स ना बताना, काफी बड़ी मात्रा में इनकम होना, लोन की पूरी जानकारी ना देना शामिल है। उन्होंने कहा कि गांधी परिवार को बेनामी संपत्ति के लिए जाना जाता है। संबित पात्रा का कहना है कि राबर्ट वाड्रा ने 25 करोड़ जो बकाया था उसको छुपाया था। एक षड्यंत्र के तहत इस रकम को इनकम टैक्स को नहीं बताया था। यूपीए सरकार ने भी उसको देखा भी नहीं था।
आपको बता दें कि विजय माल्या ने पत्र में कहा था कि हमने कोर्ट से अनुरोध किया है कि वो न्यापालिका की देखरेख में हमारी संप्तित बेचने का आदेश जारी करें ताकि मैं बैंक के करीब 13,900 करोड़ रुपये का कर्ज अदा कर सकूं। सीबीआई और ईडी जैसी आपराधिक एजेंसियां अगर संपत्ति बेचने में बाधा उत्पन्न करती है तो मतलब साफ है कि वो मुझे बैंक डिफॉल्ट के पोस्टर बॉय के तौर पर पेश करने के एजेंडे के तहत काम कर रही हैं। उन्होंने आगे कहा, मैं बैंक के भरोसा रखने के लिए आगे भी कोशिश करता रहूंगा लेकिन अगर राजनीतिक कारणों से अगर मुझे निशाना बनाया गया तो मैं कुछ नहीं कर सकता।
Alliance partners in Karnataka once again seem to be ‘dogged’
/0 Comments/in NATIONAL, POLITICS, SPIRITUAL/by Demokratic Front Bureau
9 Karnataka Congress MLAs to meet Siddaramaiah after video shows ex-CM doubtful about JDS-Congress alliance
The ruling alliance partners in Karnataka once again seem to be dogged by differences, as nine Congress MLAs are set to meet former chief minister Siddaramaiah who is also the head of the coordination committee of the Congress-JD(S) alliance government.
The meeting has ruffled feathers in the state political circles as it comes in the backdrop of a video clip, which featured Siddaramaiah purportedly expressing doubts about the longevity of the JD(S)-Congress government in the state.
In the video, which was widely covered by the regional media, Siddaramaiah can be heard speaking skeptically about the Karnataka government completing its full term. When someone asks him about completing five years, he purportedly says, “Five years… difficult… let’s see what will happen after the Parliament election (in 2019).”
“They (JDS-Congress) will remain until Parliament elections are over, after that, what all developments will happen (we will have to see),” he added. While much is being said about the purported video, including a quick rebuttal from the JD(S) camp, similar sentiments were echoed by Chief Minister HD Kumaraswamy as well.
On 15 June, speaking to media about reports on both the parties struggling with the new alliance, Kumaraswamy hd said that no one can “touch” him, at least, till the 2019 Lok Sabha elections are over, but the usual reassurance of a full five-year-term was missing.
“This coalition government will function with stability. I know, no one can touch me for one year. I will be there at least for one year until the Lok Sabha election is over. Until then, no one can do anything to me,” he said.
Kumaraswamy earlier too had hinted about troubles in the alliance with his comments when he said that he was at the “mercy” of Congressand not the 6.5 crore people of Karnataka as his government had not received the full mandate, merely a week after taking the oath of office as chief minister.
Differences have emerged between the Congress and the JD(S) on a host of issues, including presentation of the budget. While Siddaramaiah is opposed to a full budget, the chief minister wants to go ahead with it. Former prime minister and JD(S) supremo HD Deve Gowda had come on record to reject Siddaramaiah’s suggestions, while there were murmurs that Congress chief Rahul Gandhi backed Kumaraswamy on the issue.
Two days ago, another video had emerged where Siddaramiah was heard expressing his displeasure to a few Congress MLAs over presentation of a fresh budget, adding to the unease among the coalition partners.
Siddaramaiah, who had held the finance portfolio in the previous government, has recently said there was no need for a a fresh budget and insisted that a supplementary budget would do. Kumaraswamy, who holds the finance portfolio now, is scheduled to present his coalition government’s first budget on 5 July.
Meanwhile, after media picked up on these developments, Deputy Chief Minister and the Karnataka Pradesh Congress chief G Parameshwara was tasked with damage control. “I have not seen it (video), when we reached an understanding (to form government); we had agreed to run the government for five years. We will run the government for five years,” Parmeshwara told reporters.
When repeatedly asked about Siddaramaiah’s purported comments, a visibly upset Parameshwara said, “I’m saying it…. if you repeatedly ask the same thing I will say the same. I’m saying it officially that we will run the government for five years. I’m saying it, I’m the party (state) President…what will happen in politics when, no one can predict, but we have agreed that we will run the government for five years.”
Even though Congress MLAs have been making a beeline to meet Siddaramaiah at Shantivana, Parameshwara did not see anything unusual in it. “What is wrong if we (MLAs from Congress) meet anyone from our party? Where is the confusion? There is no confusion at all,” Parameshwara said.
His comments come even as his government is facing the birth pangs of coalition politics, following the disquiet among newly elected Congress lawmakers who were left out during the Cabinet expansion.
Meanwhile Congress leader in Lok Sabha, Mallikarjun Kharge said in New Delhi that he has seen the video and he would meet Siddaramaiah and ask him in what context he spoke in that manner.
“I will ask him in what context he said so. Or has it been presented in a distorted manner. Or is it a media creation to create animosity between people or whether he has really stated so,” said Kharge.
He pointed out that the coalition government was forced to bring together secular forces to keep the BJP away from power. It was necessary for the Congress and the JD(S) to strengthen secular forces as much as possible, he said. He said the Congress high command was monitoring the developments and he would not comment more on this issue.
As the 12 May Assembly polls in the state threw up a hung Assembly, Congress and JD(S) who had bitterly fought each other, joined hands to form a post-poll alliance to keep out the BJP, which had emerged as the single largest party.
University Grants Commission V/s Higher Education Commission
/0 Comments/in CHANDIGARH, HARYANA, HIMACHAL, JAMMU & KASHMIR, MOHALI, NATIONAL, PANCHKULA, POLITICS, PUNJAB, RAJASTHAN, SPIRITUAL, STATES, TRICITY, UTTAR PRADESH/by Demokratic Front BureauWill this step help curb corruption or will increase it manyfolds???
NEW DELHI:
The University Grants Commission is all set to give way to the Higher Education Commission of India (Repeal of University Grants Commission Act) Act 2018, which the government is branding as the “end of inspection raj.”
The ministry of human resource development (MHRD) has uploaded the draft of the Act, which provides for establishing the HECI by repealing the UGC Act, 1956, on its website on Wednesday evening. The government is inviting feedback from the public.
The ministry has prepared a draft Act for repeal of UGC and setting up of the commission, whose mandate would be to improve academic standards with a specific focus on learning outcomes, evaluation of academic performance by institutions, mentoring of institutions, training of teachers and promoting the use of educational technology, among others. Unlike UGC, HECI will not have grant functions and would focus only on academic matters. The ministry will deal with the grant functions.
The idea is to downsize the scope of regulation with “no interference in the management issues of the educational institutions,” according to a senior government official.
The proposed commission will have 12 other members appointed by the central government, apart from the chairperson and vice-chairperson. The members would include secretaries of higher education, ministry of skill development and entrepreneurship and department of science and technology, as well as the chairpersons of AICTE and NCTE and two serving vice chancellors, among others.
According to the draft, the functions of the commission include steps for promoting the quality of an academic instruction and maintenance of academic standards, specifying learning outcomes for courses of study in higher education, laying down standards of teaching, assessment, research and evaluating the yearly academic performance of higher educational institutions, as well as putting in place a robust accreditation system for evaluation of academic outcomes by various HEIs, mentoring of institutions found to be failing in maintaining the required academic standards and ordering those institutions to be closed that fail to adhere to the minimum standards as long as it does not affect the student’s interest or those that fail to get accreditation within the specified period, among others.
Educationists, stakeholders and others can furnish their comments and suggestions by July 7, 2018, until 5 pm.
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