होंडा 2018 गोल्ड विंग की पहली डिलीवरी हुई यहां, ये है कीमत

 

जयपुर। होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया ने बुधवार को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में ‘किंग ऑफ टूरर्स-गोल्ड विंग’ की डिलीवरी शुरू की। 2018 गोल्ड विंग को पहली बार 2018 ऑटो एक्स्पो में पेश किया गया था। 2018 गोल्ड विंग कैंडी आरडेन्ट रेड कलर में 26.85 लाख रुपये (एक्स शोरूम, दिल्ली) में उपलब्ध है।

यह डबल विशबोन फ्रंट सस्पेंशन से युक्त होंडा का पहला दोपहिया है।

कंपनी ने एक बयान में कहा कि 2018 गोल्ड विंग हल्की, ज्यादा पावरफुल और बेहद फुर्तीली है। होंडा की इस फ्लैगशिप टूर में आधुनिक टेक्नोलॉजी से युक्त कई फीचर्स शामिल किए गए हैं जैसे नया हॉरिजॉन्टल- अपोज्ड 6-सिलिंडर इंजन, 7 स्पीड ड्यूल क्लच ट्रांसमिश्न (डीसीटी)।

होंडा मोटरसाइकिल के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (बिक्री एवं विपणन) यदविंदर सिंह गुलेरिया ने कहा, ‘‘2018 गोल्ड विंग होंडा 2 व्हीलर्स के ऑटो एक्स्पो पवेलियन की शो-स्टॉपर थी। 35 से ज्यादा बुकिंग्स और इसके लिए मिली शानदार प्रतिक्रिया के बाद हमें खुशी है कि हमने 2018 गोल्ड विंग की डिलीवरी शुरू कर दी है।

Volvo ने लॉन्च की XC90 T8 Inscription

 

कंपनी का फ्लैगशिप एसयूवी वॉल्वो एक्ससी90 अब टी8 इंसक्रिप्शन वेरिएंट में अवलेबल है। इसका भारत में एक्स शोरूम प्राइस 96.65 लाख रुपए है। दिलचस्प बात ये है कि यह ओनली सेवन सीट एसयूवी है जो एक हाईब्रिड पॉवरट्रेन ऑफर करती है और इसे फोर सीट टी8 हाईब्रिड एक्सीलेंस से बिलो पोजिशन किया गया है। न्यू पेट्रोल एंड इलेक्ट्रिक मोटर के अपार्ट एक्ससी90 टी8 इंसक्रिप्शन मोस्ट ऑफ द फीचर्स एक्ससी90 इंसक्रिप्शन डीजल वेरिएंट से कैरी करती है।

मैकेनिकली नए मॉडल में एक 2.0 लीटर, डायरेक्ट इंजेक्शन फोर सिलेंडर पेट्रोल इंजन कपल्ड विद एक इलेक्ट्रिक मोटर है। यह मोटर टॉर्क का 240 एनएम और 81 बीएचपी ऑफ पॉवर प्रोड्यूस करती है। पॉवरफुल इंजन एक 8 स्पीड ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन से मेटेड है। रियर व्हील्स इलेक्ट्रिक मोटर से पॉवर्ड हैं, जबकि फ्रंट पेट्रोल इंजन से पॉवर्ड हैं। रिपोर्ट्स का कहना है कि विकल फुल चार्ज पर 32 किमी की डिस्टेंस कवर कर सकता है।

कंपनी का क्लेम है कि एक्ससी90 टी8 इंसक्रिप्शन सिर्फ 6 सैकंड में ही 0 से 100 किमी प्रति घंटे तक रफ्तार पकड़ लेती है। बैटरी 12 या 6 घंटे चार्ज करने पर 110 या 240वी पॉवर देती है। रसपेक्टिवली इसमें ब्रेक एनर्जी रिक्यूपरेशन फीचर भी है, जो ब्रेक लगाने पर बैटरी को चार्ज करता है। टी8 की एक्सीलेंस जैसे वॉल्वो दो चार्जिंग स्टेशंस ऑफर करेगा और इन्हें नो एडिशनल कॉस्ट पर इंस्टाल करेगा। चार्जिंग स्टेशंस विकल को 2.5 घंटे में ही चार्जिंग के लिए कैपेबल है।

विकल 6 ड्राइविंग मोड्स सेव, प्योर, हाईब्रिड, पॉवर, ऑल व्हील ड्राइव और ऑफ रोड में ऑफर किया गया है। नए सेवन सीटर हाईब्रिड में एडेप्टिव सस्पेंशन, एचयूडी, फोर जोन क्लाइमेट कंट्रोल, बॉवर्स एंड विल्किंस एंटरटेनमेंट सिस्टम, पेनोरेमिक सनरूफ, नाप्पा लेदर सीट्स विद वेंटिलेशन फंक्शन फोर द फ्रंट रॉ भी हैं।

श्री अनिल शर्मा ने किया लझोखर-बैहीधार व हलजोह-जंजोही सड़कों का लोकार्पण

मण्डी 30 जून, 2018:-

बहुद्देशीय परियोजनाएं, ऊर्जा एवं गैर पारंपरिक ऊर्जा मंत्री श्री अनिल शर्मा ने आज सदर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत लझोखर-बैहीधार तथा हलजोह-जंजोही सड़कों का उद्घाटन हिमाचल पथ परिवहन निगम की बस सेवा को हरी झंडी दिखाकर किया।
इस अवसर पर ग्राम पंचायत धार के जंजोही में जनसभा को संबोधित करते हुए श्री अनिल शर्मा ने कहा कि सदर विधानसभा क्षेत्र का चहुंमुखी विकास किया जा रहा है । उन्होंने कहा कि क्षेत्र की हर पंचायत व गांव को सड़क, शिक्षा, विद्युत, पेयजल, सिंचाई इत्यादि बुनियादी सुविधाएं लोगों को घर-द्वार पर उपलब्ध करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं । उन्होंने कहा कि दूरदराज क्षेत्र को सड़क मार्ग से जोड़कर यहां के लोगों को यातायात की बेहतर सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है । उन्होंने कहा कि क्षेत्र की अनेकों सड़कों को विधायक प्राथमिकता में डाला गया है तथा चरणबद्व तरीके से उन्हें पूरा भी किया जा रहा है ।
उन्होंने कहा कि धार पंचायत में अब तक 41 किलोमीटर सड़को का निर्माण किया जा चुका है । उन्होंने कहा कि 41 लाख रूपये की लागत से वृदांवणी-मझवाड़-कोटमोरस सड़क की टायरिंग की जायेगी । इसके अतिरिक्त 33 करोड़ रूपये की लागत से अन्य सड़कों की टायरिंग का कार्य प्रगति पर है । उन्होंने कहा कि लझोखर-बैहीधार सड़क को सात मील से जोड़कर इस मार्ग पर बस सुविधा आरंभ की जायेगी । उन्होंने कहा कि धार पंचायत में कम वोल्टेज की समस्या को दूर करने के लिए जंजोही में स्थपित विद्युत टांसफारमर की क्षमता को बढ़ाया जायेगा, जिसका कार्य तीन माह के अंदर पूरा कर लिया जायेगा । इसके अतिरिक्त सांवल, जागर, स्योगी, पंडोह, बडाणू तथा टिक्कर में भी निकट भविष्य में विद्युत ट्रांसफारमर स्थापित किये जायेंगे । उन्होंने कहा कि धार-मझवाड़-पंडोह-जागर-स्योगी पेयजल योजनाओं में पुरानी पाईपों को बदला जायेगा जिसका प्राक्कलन तैयार कर लिया गया है ।
श्री अनिल शर्मा ने राजकीय माध्यमिक पाठषाला धुंआ देवी के खेल मैदान के लिए एक लाख रूपये, पेयजल भंडारण टैंक निर्माण के लिए 50 हजार रूपये, बुलागी रास्ते निर्माण के लिए दो लाख रूपये, सम्पर्क मार्ग जंजोही-बागी के लिए एक लाख रूपये, मसाण में रास्ते निर्माण के लिए एक लाख 50 हजार रूपये, सम्पर्क मार्ग मोरसा के लिए 50 हजार रूपये, नेहरू युवक मंडल पंडोह के लिए खेल सामग्री हेतु 15 हजार रूपये तथा बैंड पार्टी धुंआ देवी के लिए अपनी ऐच्छिक निधि से 11 हजार रूपये देने की घोषणा की ।
इस अवसर पर भाजपा मंडल उपाध्यक्ष व पूर्व प्रधान धर्म पाल ठाकुर, महामंत्री सदर भाजपा श्री दिवान ठाकुर तथा धार पंचायत कीे प्रधान अनुराधा ठाकुर ने भी अपने विचार रखे ।
कार्यक्रम में जिला परिषद सदस्य श्रीमती सावित्री देवी, पंचायत समिति सदस्य लीला राणा, किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष ललित पठानिया, लोक निर्माण विभाग के अधिषाषी अभियंता श्री प्रदीप ठाकुर, विद्युत विभाग के अधिषाषी अभियंता जी.सी शांडिल, स्थानीय पंचायत के उप प्रधान जगदीष सहित अन्य विभागों के अधिकारी व गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे ।

तेज – पटेल मिल कर लड़ेंगे तानाशाही ताकतों से

 

पटेल नवनिर्माण सेना (पनसे) के अध्यक्ष हार्दिक पटेल शनिवार को बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव से मिले। इस दौरान दोनों नेताओं ने काफी देर तक बातचीत की। तेजस्वी ने कहा कि हम तानाशाही ताकतों से मिलकर व डटकर लड़ेंगे और जीतेंगे।

हार्दिक पटेल शाम में तेजस्वी के आवास पर पहुंचे। उनसे मुलाकात के बाद तेजस्वी ने ट्वीट किया, महात्मा गांधी की जन्मभूमि से चलकर कर्मभूमि पधारे युवा साथी हार्दिक पटेल से आज अपने आवास पर मुलाकात हुई। हम युवा दक्षिणपंथी अधिनायकवाद के खात्मे, समतामूलक समाज के निर्माण, किसानों और युवाओं के हितों के लिए संघर्षरत हैं। हम तानाशाही ताकतों से मिलकर व डटकर लड़ेंगे और जीतेंगे।

कुर्मी, कुशवाहा और धानुक जाति के लोगों से एक होने की अपील 
गुजरात से आए हार्दिक ने शुक्रवार को अपने बिहार दौरे के क्रम में तेजस्वी से मिलने की इच्छा जताई थी। इसके पहले हार्दिक ने कहा कि बिहार में कुर्मी, कुशवाहा और धानुक जाति के लोग एक हो जाएं तो किसी की नहीं चलेगी। उन्होंने खुद का नाम भी बदलते हुए कहा कि मेरा नाम कुर्मी धानुक हार्दिक पटेल है।

नीतिश पर साधा निशाना 
पटना में पटेल जागरूकता सम्मेलन को संबोधित करते हुए हार्दिक ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा, इस बार नीतीश चाचा ने मुझे इसलिए नहीं बुलाया कि दिल्ली वाले नाराज हो जाएंगे। मैं कहूंगा कि चाचा हमसे क्यों डर गए? हम नालंदा से चुनाव नहीं लडऩे वाले हैं।

लोगों को रोकने के लिए की गई नाकेबंदी 

पटेल नेता ने आरोप लगाया कि इस सम्मेलन में लोगों को आने से रोकने की प्रशासन की तरफ से काफी कोशिश की गई। जगह-जगह नाकाबंदी की गई, फिर भी बड़ी संख्या में लोग सम्मेलन में पहुंचे।

Former Punjab DGP Sumedh Singh Saini retires from service


Former Punjab DGP Sumedh Singh Saini retires from service


Chandigarh, June 30, 2018: After 36-year long service, former Punjab DGP Sumedh Singh Saini on Saturday retired from the service marked by many controversies.

A 1982-batch IPS officer, Saini served as Senior Superintendent of Police (SSP) at Batala, Bathinda, Ludhiana, Ferozepur, Rupnagar and Chandigarh.

A case relating to alleged kidnapping of two Ludhiana-based brothers is pending against him in Delhi court. He came into conflict with the Amarinder government over arrest of a journalist in Chandigarh. When Captain Amarinder Singh faced corruption charges in Ludhiana’s City Centre scam, Saini was serving as the head of the Vigilance Bureau during the tenure of Akali-BJP government.

After coming to power in the state in 2012, the then Chief Minister Prakash Singh Badal appointed him as the Director General of Police (DGP), Punjab. He became the youngest DGP of Punjab at the age of 54 years. He superseded four IPS officers senior to him. He was appointed despite facing serious allegation of human rights violation.

He was removed from the DGP’s post in 2015 after incidents of sacrilege in Bargari, Faridkot district.

He was serving as the head of the Punjab police housing corporation before superannuation. He has got Z-Plus security.

Interesting Monotony of Habits is Called Life

Sareeka Tewari

 

How often we think about our life seriously rather how often we observe our life ?


If we analyse our life we will find that we are just the creatures of our habits.
Select a person randomly and observe his or her daily pattern during the week. Generally He or she gets up in the morning, takes a shower, eats something, goes to work, completes the assignments at work, comes home, has dinner, watches TV or spends time on the computer for a while and then goes to bed. The weekends are set aside for shopping and social activities including travel.

This cycle continues with some minor variations depending on seasonal activities and other details. Of course, the routine changes occasionally in a more substantial way when there is a life-changing event such as marriage, birth of a child, new job, etc., but we re-establish a new routine quickly. We feel very comfortable with such a routine. We get stressed out when events happen randomly or unpredictably outside our routine.
Observation: Life is all about Periodicity

We human beings are “creatures of habits”. When we lose our jobs through retirement or lay-off or lose our spouses through death or divorce, we often lament by saying “I miss my job” or “I miss my wife”. What we really miss is the routine we developed around our job or spouse. The key to feel stable and comfortable again is to develop a new routine without the job or spouse. Some people are even afraid to retire because they do not want to break their routine.

The routine arises from the need to earn money to provide for food, housing, clothes and other necessities of life and need for companionship which leads to marriage and family.

Interspersed between all such activities are our thought processes which involve all kinds of emotions. Whenever we are not doing anything physically, we are thinking and feeling some of these emotions. Thinking is often required by our jobs as well, but at other times we are simply thinking, perhaps incoherently about all aspects of our life: our wish to purchase something, our analysis of some event, romantic thoughts about a person of the opposite sex, an urge to create something, worry about our children, some weekend plan and so on. In fact, we think even while we are doing some physical activities.

It seems that life is nothing but a periodic repetition of activities immersed in a sea of thoughts and emotions. The same description of life can even be applied to people who live unconventional lives – monks, panhandlers, prisoners locked up for life, astronauts in a long-term mission on a spaceship; they all follow a certain routine. Even if one is confined to an enclosed space where there is no interaction with the outside world, one’s “biological clock” kicks in and one follows a routine.

When we think about life we realise that most of the things we do in life revolve around earning money and enjoying the fruits of our labor. However, I would like to note that all the needs we satisfy with money – the need for food, clothes and shelter and other amenities and even physical needs – is really to follow the requirements of our bodies. If our body did not change at all and retained a fixed shape without food then this whole concept of education, jobs, marriage etc. for sake of catering to the needs of our bodies becomes irrelevant.

However, we will still be active. We may still want to go to school to broaden our knowledge base. We may still want to work, to not only keep ourselves busy, but to test if we can correctly apply knowledge learned from books. We may still want to take on a mate just for companionship. Most significantly, we would still develop a daily routine and have a life. My point is that life is not about earning money to sustain our body, building wealth or raising children; it is simply a repetitive set of activities and it does not matter what those activities are.

Let us now examine why this is the case. The fact that the earth spins around its own axis at a rate of one revolution in 24 hours and gives rise to day and night automatically introduces a fundamental periodicity in how we spend our life. There is an additional periodicity with a period of one year because the earth revolves around the sun within a period of one year. This also gives rise to the concept of seasons. In addition, we also introduced a weekly periodicity in our life simply by dividing a year into fifty-two weeks.

However, I can argue that unlike a day or a year, there is nothing fundamental about the duration of week, such as its correlation with positions of stars and planets. In fact, a week, as we know it, consists of seven days; different cultures have experimented with different durations of a week, anywhere from four days to ten days.

The period is fundamentally determined by the motion of the planets i.e. a 24-hour period, modulated by seasonal and annual variations. Can there be life anywhere without periodicity? Interestingly enough, each planet spins around its own axis as well as revolving around other stars. Otherwise, they would have been attracted by some other mass and be destroyed in the resulting collision. So, even if there is life on some other planet, it is logical to conclude that “life” on that planet also follows a periodic routine based on its rotational motions.

The routine is generated in one of two ways: firstly by ourselves, using our thoughts and emotions Secondly by dictated to us by some plan which does not involve our input . A routine with a periodicity which is determined by some plan or thought process gives life a structure.

If we intentionally make our life completely random or, at least, non-periodic, say by eating and sleeping at irregular hours and doing completely different physical activities on different days, it is likely that our body would not be able to sustain it and at some point, break down. Our body and its biological clock are probably synchronised to the rotation of earth in some way because the evolution of the body from sperm to embryo to a fully mature baby takes place on a spinning platform.

The bottom line is that our life has a periodicity and it is related to the (rotational) motion of earth and presumably indirectly to the motions of other planets and stars as well. A logical question at this point would be if the cyclic nature of joy and sorrow in our lives is also related to such motions as well, thus lending credence to the subject of astrology.

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भाजपा को रोकने के लिए टीएमसी से गठबंधन चाहती है कांग्रेस


चौंकाने वाली बात यह है कि बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को इस मीटिंग की भनक तक नहीं लगी और वहां के नेता सोनिया गांधी के समक्ष अपनी मांग रख गए


बंगाल में एक अहम घटनाक्रम के तहत यहां के कांग्रेस नेताओं ने दिल्ली में पार्टी नेतृत्व से मिलकर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से गठजोड़ करने की गुहार लगाई है. गठजोड़ की बात न सिर्फ 2019 चुनावों के लिए है, बल्कि 2028 तक इसे बनाए रखने की मांग की गई है.

चौंकाने वाली बात यह है कि बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को इस मीटिंग की भनक तक नहीं लगी और वहां के नेता सोनिया गांधी के समक्ष अपनी मांग रख गए.

पत्रकारों से ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सचिव और फरक्का से विधायक मइनूल हक ने कहा, हमारे मालदा से सांसद अबु हसीम खान ने शुक्रवार को दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की और टीएमसी से गठजोड़ का प्रस्ताव रखा. मैं भी इस प्रस्ताव से सहमत हूं क्योंकि हमने लेफ्ट के साथ गठबंधन का नतीजा देख लिया है. मुझे लगता है कि बंगाल में बीजेपी को रोकने का एक यही जरिया है कि कांग्रेस और टीएमसी में गठबंधन हो.

हक ने कहा, सिर्फ संसदीय चुनावों के लिए नहीं बल्कि 2018 तक के सभी चुनावों के लिए हम गठबंधन करना चाहते हैं. एक यही रास्ता है बीजेपी को बंगाल में रोकने का.

एक सवाल कि इस प्रस्ताव के बारे में बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को क्यों अंधेरे में रखा गया, हक ने जवाब में कहा, यह महज एक प्रस्ताव है. हम फैसले लेने वाले लोग नहीं हैं. अंतिम निर्णय तो राहुल और सोनिया गांधी को लेना है.

अधीर रंजन चौधरी से भी इस बाबत पूछा गया कि क्या बंगाल कांग्रेस में किसी प्रकार की फूट है, तो उन्होंने जवाब में कहा, टीएमसी से गठजोड़ के बारे में राहुल गांधी और न ही सोनिया गांधी ने हमसे कुछ पूछा है. अगर वे मेरी राय पूछेंगे तो मैं उन्हें अवगत करा दूंगा. यह तथ्य कौन नहीं जानता कि हालिया पंचायत चुनाव में टीएमसी काडरों ने हमारे नेताओं को नामांकन तक नहीं करने दिया और उलटे उनपर हमले भी किए.

सरकार शिक्षा क्षेत्र का बाजारीकरण करना चाहती है : सीपीएम


पार्टी ने दिवालिया होने जा रहे आईडीबीआई बैंक के घाटे की भरपाई जीवन बीमा निगम के पैसे से करने की सरकार की पहल का भी विरोध किया है


सीपीएम ने केंद्र सरकार के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को खत्म करने के फैसले का विरोध करते हुए इसे बरकरार रखने की मांग की है. सीपीएम पोलित ब्यूरो ने यूजीसी की जगह उच्च शिक्षा आयोग के गठन को व्यर्थ की कवायद बताते हुए कहा कि सरकार आनन-फानन में इस आशय का विधेयक संसद के आगामी मानसून सत्र में पारित कराना चाहती है.

पोलित ब्यूरो की ओर से जारी बयान में सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि इस विधेयक के जरिए सरकार ने देश के उच्च शिक्षण संस्थानों को अनुदान जारी करने का अधिकार अपने हाथ में रखने का प्रावधान किया है.

शिक्षा क्षेत्र का बाजारीकरण करना चाहती है सरकार

पार्टी ने कहा कि सरकार सभी के लिए शिक्षा के समान अवसर सुलभ कराने वाली व्यवस्था लागू करने के बजाए शिक्षा क्षेत्र का बाजारीकरण करना चाहती है. पार्टी ने कहा कि इसके अलावा प्रस्तावित नई व्यवस्था में शैक्षिक संस्थाओं की मान्यता संबंधी सभी अधिकार नौकरशाहों को सौंपने के प्रावधान किए गए हैं. जबकि सीमित स्वायत्त अधिकारों के बावजूद यूजीसी द्वारा संचालित व्यवस्था में यह जिम्मेदारी शिक्षाविदों के हाथ में थी.

पार्टी ने सरकार से व्यवस्था में बदलाव से उच्च शिक्षा क्षेत्र में होने वाले संभावित नुकसान का हवाला देते हुए इस विधेयक को फौरन वापस लेने की मांग की है.

बैंक के घाटे की भरपाई जनता के पैसे से क्यों?

इसके अलावा पार्टी पोलित ब्यूरो ने दिवालिया होने जा रहे बैंक आईडीबीआई के घाटे की भरपाई जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के पैसे से करने की सरकार की पहल का भी विरोध किया है. पोलित ब्यूरो ने कहा कि एलआईसी में जनता की बचत का पैसा जमा होता है, और इस जमापूंजी में से 13 हजार करोड़ रुपए की सहायता राशि आईडीबीआई को जारी की जाएगी.

पोलित ब्यूरो ने दलील दी कि कानून के तहत एलआईसी बैंकिंग कारोबार के लिए अधिकृत नहीं है, इस कानूनी बाधा को दूर करने के लिए मोदी सरकार आनन-फानन में नियमों में बदलाव करने पर दबाव डाल रही है. पार्टी ने जनता की बचत राशि से बैंकों की डूबी रकम की भरपाई करने के कदम से बचाने की सरकार से मांग की.

त्रिवेंद्र रावत की पत्नी 1996 से एक ही स्कूल में पदस्थ है : RTI


प्रदेश में जहाँ एक अकेली (विधवा) अध्यापिका को 20 साल की नौकरी के बाद भी मन चाहि पोस्टिंग नहीं मिलती और वह मुख्यमंत्री के गुस्से का शिकार हो कर प्रताड़ित और निलंबित की जाती है, वहीँ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी श्री मति सुनीता रावत 1996 (22 साल) से देहरादून के अजबपुर के स्कूल में कार्यरत है.


 

उत्तराखंड के a त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी के ट्रांसफर मामले में एक आरटीआई कार्यकर्ता ने नई कड़ियां जोड़ दी हैं. आरटीआई कार्यकर्ता प्रवीण शर्मा का कहना है कि उन्होंने जब मुख्यमंत्री की पत्नी सुनीता रावत की पोस्टिंग के बारे में जानना चाहा, तो जवाब बहुत ही चौंकाने वाला था. उन्होंने कहा कि सुनीता रावत अपने प्रमोशन के बाद भी पिछले 22 सालों से देहरादून में ही काम कर रही हैं. प्रवीण का कहना है कि उन्हें यह कागजात हासिल करने के लिए कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा.

आरटीआई कार्यकर्ता के मुताबिक सीएम रावत की पत्नी साल 2008 में ट्रांसफर होने के बाद भी देहरादून के अजबपुर के स्कूल में काम कर रही हैं. आरटीआई कार्यकर्ता के मुताबिक वह 1996 से देहरादून के इस स्कूल में पदस्थ हैं. मालूम हो कि शुक्रवार को सीएम रावत की जनसभा में एक महिला ने यह मामला उठाया था, जिसके बाद यह सभी की नजरों में आ गया.

ये था पूरा मामला

मालूम हो कि एक महिला शिक्षिका उत्तरा पंत पिछले 20 साल से उत्तरकाशी के एक प्राइमरी स्कूल में तैनात हैं और लंबे समय से अपने ट्रांसफर की मांग कर रही हैं. लेकिन लगातार मांगने पर भी ट्रांसफर ना मिलने के बाद गुस्सा होकर महिला शिक्षिका ने सीएम रावत के जनता दरबार में अपना दुख जाहिर किया. इसी दौरान उन्होंने कहा था कि सीएम रावत की पत्नी सुनीता रावत ट्रांसफर के बाद भी पिछले 20 सालों से देहरादून में काम कर रही हैं.

सर्वेक्षण ने खिलाये कान्ग्रेस के चेहरे

 

 

देश की राजनीतिक मूड पर एक थिंक टैंक द्वारा किये गए एक हालिया सर्वेक्षण ने बीजेपी विरोधी खेमे को बहुत उत्साहित कर दिया है. यह सर्वे बताता है कि पिछले कुछ महीनों में नरेंद्र मोदी की रेटिंग में तेज गिरावट आई है, जबकि राहुल गांधी की अपनी लोकप्रियता में सुधार किया है.

नरेंद्र मोदी को ले कर पैदा हुई निराशा मध्य भारत में अधिक स्पष्ट है. ऐसा लगता है कि प्रौढावस्था में प्रवेश कर चुके लोग और मध्यम वर्ग, वादे और अब तक किए गए काम के बीच के अंतर को ले कर सबसे अधिक परेशानी महसूस कर रहे हैं. हालांकि, यह नहीं मालूम है कि ये फीडबैक कैसे प्राप्त हुआ है. लेकिन, बीजेपी और पार्टी का सोशल मीडिया हैंडल इससे इनकार कर रहे हैं. उन्होंने इस सर्वे को राजनीति से प्रेरित और धूर्ततापूर्ण बता कर खारिज कर दिया है. हालांकि, कोई भी नरेंद्र मोदी के असली समर्थकों के बीच पैदा हो रही प्रारंभिक निराशा को समझ सकता है.

सहज विकल्प?

कई तटस्थ पर्यवेक्षक राहुल 2.0 के राजनीतिक यात्रा में आई गति को ले कर कौतूहल की स्थिति में है. राहुल गांधी को जिस तरह से गुजरात चुनाव के बाद से संदर्भित किया जा रहा है और कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उनके नए अवतार की चर्चा हो रही है, उसे लेकर ऐसे पर्यवेक्षक आश्चर्यचकित भी है. विश्लेषक नरेंद्र मोदी के कमजोर होते आभामंडल के कारणों को समझ सकते हैं, फिर भी वे राहुल गांधी की बढ़ती राजनीतिक चमक की व्याख्या कर पाने में असमर्थ है, इन तथ्यों के बावजूद कि राहुल गांधी लगातार गलतियां करते है और उनमें राजनीतिक परिपक्वता की स्पष्ट कमी है.

यह सच है कि पिछले कुछ समय से नरेंद्र मोदी कई विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे है, विभिन्न राज्यों में बीजेपी सरकारों के खिलाफ एंटी-इनकमबेंसी का माहौल है. फिर भी, राहुल गांधी अभी तक वो राजनीतिक कद नहीं बना पाए है, जो उन्हें नरेंद्र मोदी का सहज विकल्प बना सके. दरअसल, ममता बनर्जी जैसी क्षेत्रीय क्षत्रप बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष बनाने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने साफ कहा है कि अगर महागठबंधन अगले लोकसभा में सरकार बनाने की स्थिति में आता है, तो ऐसी स्थिति में कांग्रेस खुद को इसका सहज लीडर नहीं मान सकती है.

2014 में, नरेंद्र मोदी ‘चेंज’ (बदलाव) और ‘अच्छे दिन’ के संदेश के साथ मतदाताओं के पास गए थे. इसके विपरीत, राहुल गांधी सिवाए मोदी, बीजेपी और आरएसएस की खिंचाई करने के अलावा कोई भी वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश नहीं कर सके है. राहुल गांधी ये काम ‘डिफ़ॉल्ट सेटिंग’ के आधार पर करते है और वह भी आधा सच या अपमानजनक आरोपों के साथ. इसलिए, ये सवाल अभी भी है कि आखिर राहुल गांधी के पक्ष में ऐसी क्या चीज है, जो काम कर रही है?

एंग्री यंगमैन!

राहुल गांधी का सबसे बेहतर और बुद्धिमतापूर्ण निर्णय ये रहा है कि उन्होंने खुद को कम्युनिकेशन, पीआर और सोशल मीडिया विशेषज्ञों की एक टीम को सौंप दिया है. कहा जाता है कि इस टीम का नेतृत्व सैम पित्रोदा जैसे शुभचिंतक कर रहे हैं. कांग्रेस में अब एक एनालिटिक्स सेल है. कैम्ब्रिज एनॉलिटिका प्रकरण के जरिए आम लोगों ने भी इस तथ्य को जाना और समझा. यह संभव है कि यह अन्य पेशेवर चुनाव रणनीतिकारों के साथ काम कर रहा हो. राहुल जाहिर तौर पर एक स्क्रिप्ट के हिसाब से अभिनय कर रहे हैं. आलोचकों को भले उनके इस अभिनय और कंटेंट में गलती मिली हो, लेकिन इसने प्रभाव डालना शुरू कर दिया है, कम से कम गुजरात और कर्नाटक से तो यह साबित हो ही रहा है.

हालांकि, उनके मंदिर दौरे और दलितों को लुभाने के तरकीबों का नतीजा सामने आना बाकी है. लेकिन उनकी गढ़ी गई एंग्री यंग मैन की छवि, मोदी पर अपने धनी दोस्तों के लिए लोगों का विश्वास तोड़ने के आरोप से कुछ हद तक उन पर असर हो रहा है, जिन्होंने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगातार चार बार से बीजेपी को वोट दिया था. कुल मिला कर वे उच्च स्तर की ऊर्जा प्रदर्शित कर रहे है, गंभीरता दिखा रहे है. नतीजतन, इससे वे पुराने वफादार कांग्रेसी भी प्रभावित हो रहे हैं, जिन्होंने कभी उनसे आस छोड़ दी थी.

कुछ लोगों को राहुल गांधी का सोशल मीडिया पर होना एलिट लग सकता है. यह शायद अंग्रेजी बोलने वाले सुसंस्कृत शहरी मतदाताओं के बीच पारंपरिक कांग्रेस मतदाताओं की मान्यता हो. एक चतुराई भरे कदम के तौर पर अब जनता तक पहुंचने के लिए व्हाट्सएप पर वायरल कैंपेन का उपयोग किया जा रहा है.

सत्ता के लिए कुछ भी करेगा

मोदी के फैसले से उपेक्षित कई पुराने कांग्रेस समर्थक मीडिया भी साथ आ गया है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर भ्रष्टाचार के आरोप के लिए ‘स्कूप्स’ पैदा किए जा रहे है. नरेंद्र मोदी के साथ नीरव मोदी की तुकबंदी एक नई चतुराई है, जो पहले कांग्रेस में नहीं दिखती थी.

इसके अलावा, इसने पार्टी के पुरानी इको-सिस्टम को सक्रिय किया है. उनके बीच बीजेपी को हराने की इच्छा इतनी जबरदस्त है कि बीजेपी को उस ‘बुराई’ के रूप में चित्रित किया गया है, जिसे हर कीमत पर समाप्त किया जाना चाहिए. उस उद्देश्य को पाने के लिए मायावती या लालू यादव के भ्रष्टाचार को भी नजरअंदाज किया जा सकता है. कर्नाटक में अवसरवादी कदम उठाए जा सकते है और शपथ ग्रहण के मौके पर सीपीआईएम और तृणमूल, बीएसपी और एसपी, जेडीयू और आरजेडी जैसे दुश्मन एक साथ एक मंच पर आ सकते है.

आक्रामक कांग्रेस, रक्षात्मक बीजेपी

कांग्रेस के पास हमेशा से वफादारों की एक फौज रही है. खासतौर पर सेवानिवृत्त नौकरशाह, खुफिया अधिकारी, राजनयिक और शिक्षाविद, जो अपने पुनरुत्थान के लिए कांग्रेस को समर्थन दे कर खुश है. इसके अलावा, कानूनी जगत में भी कांग्रेस का एक बड़ा आधार है. इसका लोया मामले, ज्यूडिसियरी रिवॉल्ट और सीजेआई के खिलाफ महाभियोग में अच्छा इस्तेमाल किया गया था. इससे बीजेपी विरोधी भावनाओं को मजबूती देने में मदद की थी.

राहुल की एक कमजोरी वाला क्षेत्र है, राजनीतिक कौशल. लेकिन, यहां अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत जैसे पुराने परिवार के शुभचिंतक उनके आसपास घूमते दिखाई देते है, जैसाकि गुजरात और कर्नाटक में दिखा. दिग्विजय सिंह को हटा दिया गया है लेकिन कमलनाथ आगे आए हैं. ये आराम से कहा जा सकता है कि शतरंज की ये चाल निश्चित रूप से सोनिया गांधी के इशारे पर चली गई होंगी.

अब भी मोदी अकेले

इसके विपरीत, बीजेपी कैंपेन लड़खड़ा रहा है. वे कांग्रेस की नकारात्मक प्रचार को भेद नहीं पा रहे है और न ही सरकार की उपलब्धियों की मार्केटिंग कर पा रहे है. ऐसा लगता है कि बीजेपी के सोशल मीडिया सेल ने 2014 में दिखाए गए उत्साह को खो दिया है. वे अक्सर रक्षात्मक नजर आने लगे हैं.

ट्रोल-सेना से मदद नहीं मिलती हैं. वे कभी-कभी बीजेपी के खिलाफ ही काम कर जाते है और निष्पक्ष आवाज पर आक्रमण करने लगते है. ताजा उदाहरण वरिष्ठ नेता और नरेंद्र मोदी कैबिनेट की सबसे सफल मंत्री सुषमा स्वराज का है. उज्ज्वला जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की सफलता का विज्ञापन भी अब संतृप्ति की अवस्था तक पहुंच चुका है, जहां से इसका प्रभाव अब घटने लगा है.

यह सब 1975 के आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के सरकारी प्रोपेगेंडा जैसा दिखने लगा है. चूंकि सरकार अब चुनाव के नजदीक पहुंच गई है, इसलिए अब पूरी जिम्मेवारी प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय पर आ गई है. 2014 में मोदी अकेले चैलेंजर थे. यूपीए सरकार के खराब रिकॉर्ड को देखते हुए, वह आशा की किरण और मसीहा नजर आ रहे थे. अब मोदी को शासन और अभियान, दोनों का प्रबंधन करना है.

नरेंद्र मोदी पूरे राजनीतिक खेल को हमेशा से एक नए स्तर पर ले जाते रहे हैं. वे मीडिया की बजाए सीधे मतदाताओं तक पहुंचते है. मन की बात, नमो एप्प पर पार्टी कार्यकर्ताओं और सरकारी योजना के लाभार्थियों से बात या वेबिनार (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग) के जरिए, वे सीधे मतदाताओं तक पहुंचते हैं. अब, इस सब के जरिए मोदी स्थिति को अपने अनुकूल बना पाते है या नहीं, इसका पता 2019 में ही चलेगा. जाहिर है, वे एक राजनेता है, उनके पास तुरुप के कई पत्ते हो सकते है.

फिलहाल, एक सर्वेक्षण चुनाव परिणाम तय नहीं करता है. खेल अभी शुरू हुआ है.