अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा करने के दो सप्ताह बाद ही तालिबान को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्टैंड बदलता दिख रहा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी यूएनएससी ने अफगानिस्तान मसले पर अपने लेटेस्ट बयान में आतंकी गतविधियों से तालिबान का नाम हटा दिया है. दरअसल काबुल पर कब्जे के एक दिन बाद यानी 16 अगस्त को यूएनएससी की तरफ से अफगानिस्तान को लेकर एक बयान जारी किया गया था, जिसमें तालिबान से अपील की गई थी कि वह अपने क्षेत्र में आतंकवाद का समर्थन न करे, मगर अब इसी बयान से तालिबान का नाम हटा दिया गया है.
नयी दिल्ली :
अफगानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े (Taliban Rules Afghanistan) को अभी दो हफ्ता भी नहीं हुआ है. लेकिन ऐसा लग रहा है कि अभी से ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने तालिबान को लेकर अपना नजरिया बदल लिया है. दरअसल काबुल पर कब्जे के एक दिन बाद यानी 16 अगस्त को UNSC की तरफ से अफगानिस्तान को लेकर एक बयान जारी किया गया था. इसमें तालिबान से अपील की गई थी कि वो किसी भी देश में आतंकवाद का समर्थन न करे. बता दें कि भारत अगस्त के महीने में सुरक्षा परिषद की पहली बार अध्यक्षता कर रहा है. लिहाज़ा इस बयान पर भारत की तरफ से हस्ताक्षर भी किए गए थे, लेकिन अब इस बयान से तालिबन का नाम हटा लिया गया है.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तरफ से ये पहला संकेत है कि तालिबान को अब वैश्विक स्तर पर बहिष्कार नहीं किया जा सकता. 16 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने UNSC की ओर से एक बयान जारी किया. इसमें लिखा था- ‘सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आंतकवाद से मुकाबला करने के महत्व का जिक्र किया है. ये सुनिश्चित किया जाए कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, और न ही तालिबान और न ही किसी अन्य अफगान समूह या व्यक्ति को किसी अन्य देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन करना चाहिए.’
नए बयान में तालिबान का नाम नहीं 27 अगस्त को काबुल हवाईअड्डे पर हुए बम विस्फोटों के एक दिन बाद तिरुमूर्ति ने फिर से UNSC के अध्यक्ष के रूप में और परिषद की ओर से एक बयान जारी किया. 16 अगस्त को लिखे गए पैराग्राफ को फिर से दोहराया गया. लेकिन इसमें एक बदलाव करते हुए तालिबान का नाम हटा दिया गया. इसमें लिखा था- ‘सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व को दोहराया ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, और किसी भी अफगान समूह या व्यक्ति को किसी भी देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन नहीं करना चाहिए.’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/08/2021_72021073117250589596_0_news_large_19.jpeg387660Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-08-29 17:08:432021-08-29 17:09:05UNSC पड़ा नर्म आतंक विरोधी ब्यान से तालिबान का नाम हटाया
राजनीति जो न करवा दे वह कम है। राजनीति से दोगलापन कभी दूर हो पाएगा क्या? कभी CAB(Citizens Amendment Bill) को ‘Communal Atom Bomb’ बताने वाले कॉंग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल आज अफगानिस्तान में फंसे सिखों को न केवल सुरक्षित भारत लाना चाहते हाँ अपितु उनके नागरिक सम्मान के लिए भी चिंतित हैं। यह वही शेरगिल हैं जिनहोने CAA के खिलाफ राजनैतिक पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो देश के सभी मीडिया चैनलों की बहस में आ कर बहुत ही आक्रामक ढंग से अपनी राजनैतिक विचारधारा का पक्ष रखते थे। उस समय इन्हें सीएए भाजपा का सांप्रदायिक हथियार दीख पड़ रहा था। सूत्रों की मानें तो 2019 के चुनावों से पहले सीएए को आआपा, कॉंग्रेस समेत विपक्ष ने एक राजनैतिक हथियार के रूप में प्रयोग कर शाहीन बाग ओर हिन्दू विरोधी दिल्ली दंगे करवाए। जिस समय सीएए पेश होना था तब शेरगिल और उनके साथी सीएए में मुसलमानों को शामिल न किए जाने पर भाजपा पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाते थे। आज जब अफगानिस्तान में मुस्लिम आतंकवादी गुट तालिबन का हमला हुआ है तब से वहाँ का जन जीवन बहुत ही दयनीय अवस्था में पहुँच रहा है। वहाँ दूसरे धर्मों के लोगों की तो क्या ही कहें स्वयं मुसलिम समुदाय की स्थिति शोचनीय है। लेकिन आज शेरगिल पंजाब चुनावों के मद्देनजर सिखों के प्रत्यार्पण की ग़ार लगा रहे हैं अपरोक्ष रूप से उसी CAB के तहत जो कभी बक़ौल शेरगिल ए ‘Communal Atom Bomb’ था।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
कॉन्ग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने खुद को ‘सिख समुदाय का एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक’ बताते हुए अफगानिस्तान से 650 सिखों व 50 हिन्दुओं को सुरक्षित निकाले जाने के लिए केंद्रीय विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा है। ये अलग बात है कि वो अपनी पार्टी के अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पत्र लिख कर कभी ये नहीं कह पाएँ कि वो नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का समर्थन करें।
CAA क्या है? इसके तहत दिसंबर 2014 से पहले भारत आए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के सिखों, हिन्दुओं, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। ये तीनों ही इस्लामी देश हैं, जो अल्पसंख्यकों के साथ क्रूरता के लिए कुख्यात हैं। पाकिस्तान में हिन्दू व सिख महिलाएँ सुरक्षित नहीं। बांग्लादेश में आए दिन मंदिर तोड़े जाते हैं। अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों को समूह में ही मार गिराया जाता रहा है।
ऐसे में जयवीर के भीतर का सिख तब नहीं जागा, जब भारत सरकार CAA लेकर आई थी। उनके अंदर का सिख तब क्या ‘गैर-जिम्मेदार’ हो गया था? अब खुद को भारतीय नागरिक बता कर केंद्रीय विदेश मंत्रालय से 650 सिखों के लिए स्पेशल वीजा की व्यवस्था की गुहार लगा रहे जयवीर शेरगिल की माँग एकदम उचित है, लेकिन वो और उनकी पार्टी ही इसके मार्ग में अक्सर रोड़े अटकाती रही है।
आइए, थोड़ा पीछे चलते हैं। 16 दिसंबर, 2019 को। शाहीन बाग़ के उपद्रवियों का उत्पात चरम पर था। देश भर में कई शाहीन बाग़ बना कर भड़काऊ भाषणबाजी हो रही थी। दिल्ली दंगों की स्क्रिप्ट रची ही जा रही थी। कॉन्ग्रेस माहौल का मजा लूट रही थी। उस दिन 10:03 में जयवीर शेरगिल का ट्वीट आता है – ‘CAB = Communal Atom Bomb’, जिसका अर्थ है – ‘नागरिकता संशोधन विधेयक = सांप्रदायिक परमाणु बम।’
बता दें कि CAA ही जब कानून न होकर बिल हुआ करता था तो इसे CAB कहते थे, क्योंकि तब ये संसद के दोनों सदनों में पास नहीं हुआ था। इसलिए, इस CAA और CAB को एक ही समझा जाए। यानी, जब केंद्र सरकार प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए संरक्षण की व्यवस्था कर रही थी, तब यही जयवीर शेरगिल अपनी पार्टी के सुर में सुर मिला कर इसका तगड़ा विरोध करने में लगे थे। अब उनके अंदर का सिख जाग गया है।
वो ‘सिख समुदाय का एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक’ तब कहलाते, जब वो कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पत्र लिख कर कहते कि चूँकि ये मामला प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को अधिकार देने से जुड़ा है, दलितों को धर्मांतरण व महिलाओं को क्रूरता से बचाने से जुड़ा है, इसीलिए वो इसका विरोध न करें। लेकिन अफ़सोस, इस्लामी मुल्कों से प्रताड़ना सह कर आए इन्हीं सिखों व हिन्दुओं के लिए तब उनकी आवाज़ नहीं निकली।
निकली भी तो विरोध में। पंजाब के जालंधर से आने वाले जयवीर शेरगिल तब मीडिया के माध्यम से CAA के खिलाफ प्रोपेगंडा फैलाने में लगे थे। तब उन्होंने ‘द हिन्दू’ में एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक ही था – ‘बिना सोचे-समझे लिया गया निर्णय’। उनका कहना था कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से उत्तर-पूर्व में अशांति या गई है। उन्होंने CAA को भारत की विदेश नीति की भारी गलतियों में से एक करार दिया था।
उन्होंने CAA को एक ‘संकीर्ण निर्णय’ बताते हुए लिखा था कि इसकी वजह से भारत को दुनिया भर में संदेह की दृष्टि से देखा जाएगा। भारत सरकार को इसे लेकर काफी सफाई देनी पड़ेगी। उन्होंने भारत की ‘विविधता और समावेशी’ चरित्र की बात करते हुए कहा था कि ऐसे निर्णयों से निवेशकों का विश्वास देश में डिगेगा। उन्होंने इसे ‘चुने हुए देशों के शरणार्थियों के लिए मजहब आधारित कानून’ करार दिया था।
अब? अब अचानक ही उन्हें पता चल है कि भारत का हिन्दू या सिख होने के कारण अफगानिस्तान जैसे मुल्कों में तालिबान जैसे इस्लामी आतंकी संगठन उन्हें निशाना बनाते हैं? उन्होंने अपने पत्र में 2018 की एक घटना का जिक्र किया है। तब जलालाबाद में हुए आत्मघाती आतंकी हमले में 19 हिन्दुओं व सिखों को मार डाला गया था। ये सब राष्ट्रपति अशरफ गनी से मिलने जा रहे थे। मृतकों में अवतार सिंह खालसा चुनावी उम्मीदवार भी थे।
पंजाब चुनाव या सिखों की चिंता।
इसका सीधा मतलब है कि अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ क्रूर बर्ताव व उनके नरसंहार की घटनाओं से जयवीर शेरगिल अनजान नहीं थे, लेकिन फिर भी उन्होंने तब अपनी पार्टी के स्टैन्ड को आगे बढ़ाना उचित समझा। आज जब अफगानिस्तान में 650 सिख फँसे हुए हैं तो उन्हें ये घटनाएँ याद आ रही हैं। उनकी नौकरी जाने व आय की चिंता हो रही है। सिख समाज के लिए उनका प्रेम उमड़ आया है।
ये कैसा दोहरा रवैया है कि एक तरफ वो केंद्रीय विदेश मंत्रालय को पत्र लिख कर कहते हैं कि भारतीय मूल के अल्पसंख्यक तालिबानी आतंकियों के लिए आसान निशाना होते हैं, जबकि दूसरी तरफ वो इन्हीं अल्पसंख्यकों के लिए लाए गए कानून का बढ़-चढ़ कर विरोध करते हैं? 2018 की घटना का जिक्र बताता है कि इसके बावजूद उन्होंने 2019-20 में CAA का विरोध किया और इन्हीं अल्पसंख्यकों को अधिकारी मिलने की राह में रोड़े अटकाए।
उनके पास अब भी समय है। ‘सिख समुदाय से तालुक रखने वाले एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक’ होने के नाते वो राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को पत्र लिख कर कह सकते हैं कि वो NRC की राह में रोड़े अटकाने बंद करें। वरना अगर असम में जब नॉन-मुस्लिमों के साथ अत्याचार की खबरें आएँगी और उनमें सिख भी होंगे, तब फिर वो केन्द्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिख कर कहेंगे कि अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
राहुल गाँधी असम में NRC विरोधी गमछा पहन कर जाते हैं, ‘No CAA’ वाला रूमाल दिखाते हैं और रैली में कहते हैं कि अगर उनकी सरकार आई तो वो CAA को लागू ही नहीं होने देंगे। इस पर जयवीर शेरगिल चूँ तक नहीं करते। उनके ही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कहा था कि वो किसी भी कीमत पर पंजाब में CAA को लागू नहीं करने देंगे। पार्टी में, अपने आसपास चल रहे इन बयानों से शेरगिल अनजान थे, ये पचने वाली बात नहीं है।
बताते चलें कि जयवीर शेरगिल ने इस पत्र में ध्यान दिलाया है कि अमेरिका की सेना की वापसी के बाद तालिबान बंदूक की नोंक पर अफगानिस्तान को अपने कब्जे में लेने के लिए युद्ध कर रहा है। एक बार फिर से अफगानिस्तान के आतंकी चंगुल में जाने की आशंका है। उन्होंने अफगानिस्तान में हुई हालिया हिंसा की भीषण घटनाओं की तरफ ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि ये मानवता के लिए संकट पैदा करने वाली समस्या है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/08/CABShergil.jpg392696Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-08-10 07:22:012021-08-10 07:22:37जिन अल्पसंख्यकों के प्रत्यार्पण पर शेरगिल और उनकी पार्टी ने रोड़े अटकाए आज पंजाब चुनावों के चलते उनही अल्पसंख्यकों को भारत लाने की गुहार लगा रहे हैं, क्या वाकई?
1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद तुर्की का झुकाव पाकिस्तान की ओर ज्यादा हो गया था। इस्लाम के नाम पर उदय हुए पाकिस्तान ने तुर्की के साथ दोस्ती में अपना उज्ज्वल भविष्य देखा। तुर्की में रह रहे कुर्द, अल्बानियाई और अरब जैसे तुर्को के बीच पाकिस्तान की स्वीकार्यता में इस्लाम में बड़ी भूमिका अदा की। मुस्तफा कमाल पाशा की धर्मनिरपेक्ष सोच के बावजूद पाकिस्तान और तुर्की के संबंध धार्मिक आधार पर ही मजबूत हुए। 1970 के दशक में नेकमेटिन एर्बाकन के नेतृत्व में इस्लामी दलों के उदय ने तुर्की की राजनीति में इस्लाम की भूमिका को और मजबूत किया। इस तरह के राजनीतिक अनुभवों ने तुर्की की विदेश नीति को भी प्रभावित किया और पाकिस्तान के साथ तुर्की की नजदीकी का समर्थन किया। साल 1954 में पाकिस्तान और तुर्की ने शाश्वत मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किए। पाकिस्तान अब कश्मीर और अफगानिस्तान के मुद्दे पर तुर्की के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत करना चाहता है। … इसके अलावा तुर्की और पाकिस्तान संयुक्त रक्षा प्रॉजेक्ट, अफगानिस्तान पर सहयोग और पाकिस्तान में तुर्की के निवेश पर चर्चा कर रहे हैं। अभी इन दिनों तुर्की की सेना प्रमुख भी पाकिस्तान के दौरे पर आए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय डेस्क, डेमोक्रेटिक फ्रंट॰कॉम :
तुर्की और पाकिस्तान जहां मिलकर भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घेरने की लगातार कोशिश में लगे हुए हैं। वहीं तुर्की पाकिस्तान को हथियारों से लेकर पाक अधिकृत कश्मीर पाक अधिकृत कश्मीर में दखलअंदाजी देना शुरु कर चुका है। एक मीडिया के पास मौजूद एक्सलूसिव दस्तावेजों से तुर्की के एक बड़े प्लान का खुलासा हुआ है।
रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि चीन के बाद अब तुर्की पाक अधिकृत कश्मीर में बड़े पैमाने पर इंवेस्टमेंट कर रहा है जिससे भारत की चिंता बढ़ गई है। देखा जाये तो भारत PoK को अपना हिस्सा मानता है और ऐसे में पाकिस्तान समेत दुनिया के किसी भी देश की PoK में दखलंदाजी का भारत विरोध करता रहा है।
पाकिस्तान बड़ी तादाद में मानवरहित टोही और अटैक विमान की खरीद पर जोर दे रहा है। इसके लिए न सिर्फ वो रूस की तरफ झोली फैला रहा है बल्कि तुर्की और चीन जैसे ऑल वेदर फ्रेंड की भी मदद ले रहा है।
पाकिस्तान को भारत के साथ हर युद्ध में उसे शर्मनाक हार मिली। कश्मीर में आंतकियों के जरिये प्रॉक्सी वॉर में भी उसे मुंह की खानी पड़ रही है। यही कारण है कि भारतीय इलाकों में ताक-झांक करने और बिना किसी नुकसान के भारत में भविष्य की लड़ाइयों में जीत हासिल करने के लिए पाकिस्तान रणनीति बदल रहा है। पाकिस्तान बड़ी तादाद में मानवरहित टोही और अटैक विमान की खरीद पर जोर दे रहा है। इसके लिए न सिर्फ वो रूस की तरफ झोली फैला रहा है बल्कि तुर्की और चीन जैसे ऑल वेदर फ्रेंड की भी मदद ले रहा है। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान तुर्की से कॉमिकाज़े ड्रोन खरीदने की तैयारी में है। इसे सुसाइड ड्रोन भी कहा जाता है।
इस ड्रोन की रेज 10 किलोमीटर तक है और ये एक बार में 6 रॉकेट अपने साथ ले जा सकता है। एक ग्राउंड स्टेशन के रिमोट में एक साथ 10 ड्रोन को संचालित कर सकता है। वहीं चीन से भी आर्म्ड ड्रोन का सौदा हो चुका है। पाकिस्तान चीन से विंग लूंग-II के दो अतिरिक्त सिस्टम भी ले रहा है जो कि इसी साल पाकिस्तानी वायुसेना को मिल जाएंगे।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/08/Turki-1.jpg168299Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-08-04 15:17:062021-08-04 15:22:09चीन के बाद अब तुर्की आया पाकिस्तान की मदद को
जेनेट लेवी ने अपने लेख में लिखा है कि “बंटवारे के वक्त भारत के हिस्से वाले पश्चिमी बंगाल में मुसलमानों की आबादी 12 फीसदी से कुछ ज्यादा थी, जबकि पाकिस्तान के हिस्से में गए पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 फीसदी थी. आज पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर 27 फीसदी हो चुकी है. कुछ जिलों में तो ये 63 फीसदी तक हो गई है. वहीँ दूसरी ओर बांग्लादेश में हिंदू 30 फीसदी से घटकर केवल 8 फीसदी ही बचे हैं.”
जेनेट लेवी के americanthinker.com में प्राषित लेख से साभार
अमेरिका से आयी बंगाल के बारे में ऐसी खौफनाक रिपोर्ट, जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है। कभी भारतीय संस्कृति का प्रतीक माने जाने वाले बंगाल की दशा आज क्या हो चुकी है, ये बात तो किसी से छिपी नहीं है. हिन्दुओं के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे तो पिछले काफी वक़्त से होना शुरू हो चुके हैं और अब तो हालात ये हो चुके हैं कि त्यौहार मनाने तक पर रोक लगाई जानी शुरू हो गयी है। बंगाल पर मशहूर अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने अब जो लेख लिखा है और उसमे जो खुलासे किये हैं, उन्हें देख आपके पैरों तले जमीन खिसक जायेगी।
जेनेट लेवी का दावा – बंगाल जल्द बनेगा एक अलग इस्लामिक देश
जेनेट लेवी ने अपने ताजा लेख में दावा किया है कि कश्मीर के बाद बंगाल में जल्द ही गृहयुद्ध शुरू होने वाला है, जिसमे बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का कत्लेआम करके मुगलिस्तान नाम से एक अलग देश की मांग की जायेगी। यानी भारत का एक और विभाजन होगा और वो भी तलवार के दम पर और बंगाल की वोटबैंक की भूखी ममता बनर्जी की सहमति से होगा सब कुछ।
जेनेट लेवी ने अपने लेख में इस दावे के पक्ष में कई तथ्य पेश किए हैं। उन्होंने लिखा है कि “बंटवारे के वक्त भारत के हिस्से वाले पश्चिमी बंगाल में मुसलमानों की आबादी 12 फीसदी से कुछ ज्यादा थी, जबकि पाकिस्तान के हिस्से में गए पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 फीसदी थी। आज पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर 27 फीसदी हो चुकी है। कुछ जिलों में तो ये 63 फीसदी तक हो गई है। वहीँ दूसरी ओर बांग्लादेश में हिंदू 30 फीसदी से घटकर केवल 8 फीसदी ही बचे हैं।”
आप यहाँ जेनेट का पूरा लेख खुद भी पढ़ सकते हैं। http://www.americanthinker.com/articles/2015/02/the_muslim_takeover_of_west_bengal.html
बढ़ती हुई मुस्लिम आबादी को ठहराया जिम्मेदार
बता दें कि जेनेट ने ये लेख ‘अमेरिकन थिंकर’ मैगजीन में लिखा है. ये लेख एक चेतावनी के तौर पर उन देशों के लिए लिखा गया है, जो मुस्लिम शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल रहे हैं। जेनेट लेवी ने बेहद सनसनीखेज दावा करते हुए लिखा है कि किसी भी समाज में मुस्लिमों की 27 फीसदी आबादी काफी है कि वो उस जगह को अलग इस्लामी देश बनाने की मांग शुरू कर दें।
उन्होंने दावा किया है कि मुस्लिम संगठित होकर रहते हैं और 27 फीसदी आबादी होते ही इस्लामिक क़ानून शरिया की मांग करते हुए अलग देश बनाने तक की मांग करने लगते हैं। पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने लिखा है कि ममता बनर्जी के लगातार हर चुनाव जीतने का कारण वहां के मुस्लिम ही हैं। बदले में ममता मुस्लिमों को खुश करने वाली नीतियां बनाती है।
सऊदी से आने वाले पैसे से चल रहा जिहादी खेल?
जल्द ही बंगाल में एक अलग इस्लामिक देश बनाने की मांग उठने जा रही है और इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्ता की भूखी ममता इसे मान भी जाए। उन्होंने अपने इस दावे के लिए तथ्य पेश करते हुए लिखा कि ममता ने सऊदी अरब से फंड पाने वाले 10 हजार से ज्यादा मदरसों को मान्यता देकर वहां की डिग्री को सरकारी नौकरी के काबिल बना दिया है। सऊदी से पैसा आता है और उन मदरसों में वहाबी कट्टरता की शिक्षा दी जाती है।
ममता ने शुरू किया इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट?
गैर मजहबी लोगों से नफरत करना सिखाया जाता है। उन्होंने लिखा कि ममता ने मस्जिदों के इमामों के लिए तरह-तरह के वजीफे भी घोषित किए हैं, मगर हिन्दुओं के लिए ऐसे कोई वजीफे नहीं घोषित किये गए। इसके अलावा उन्होंने लिखा कि ममता ने तो बंगाल में बाकायदा एक इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट भी शुरू किया है।
पूरे बंगाल में मुस्लिम मेडिकल, टेक्निकल और नर्सिंग स्कूल खोले जा रहे हैं, जिनमें मुस्लिम छात्रों को सस्ती शिक्षा मिलेगी। इसके अलावा कई ऐसे अस्पताल बन रहे हैं, जिनमें सिर्फ मुसलमानों का इलाज होगा। मुसलमान नौजवानों को मुफ्त साइकिल से लेकर लैपटॉप तक बांटने की स्कीमें चल रही हैं। इस बात का पूरा ख्याल रखा जा रहा है कि लैपटॉप केवल मुस्लिम लड़कों को ही मिले, मुस्लिम लड़कियों को नहीं।
जेनेट ने मुस्लिमों को आतंकवाद का दोषी ठहराया
जेनेट लेवी ने लिखा है कि बंगाल में बेहद गरीबी में जी रहे लाखों हिंदू परिवारों को ऐसी किसी योजना का फायदा नहीं दिया जाता। जेनेट लेवी ने दुनिया भर की ऐसी कई मिसालें दी हैं, जहां मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ही आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता और अपराध के मामले बढ़ने लगे।
आबादी बढ़ने के साथ ऐसी जगहों पर पहले अलग शरिया क़ानून की मांग की जाती है और फिर आखिर में ये अलग देश की मांग तक पहुंच जाती है। जेनेट ने अपने लेख में इस समस्या के लिए इस्लाम को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है। उन्होंने लिखा है कि कुरान में यह संदेश खुलकर दिया गया है कि दुनिया भर में इस्लामिक राज स्थापित हो।
तस्लीमा नसरीन का उदाहरण किया पेश
जेनेट ने लिखा है कि हर जगह इस्लाम जबरन धर्म-परिवर्तन या गैर-मुसलमानों की हत्याएं करवाकर फैला है। अपने लेख में बंगाल के हालातों के बारे में उन्होंने लिखा है. बंगाल में हुए दंगों का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि 2007 में कोलकाता में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ दंगे भड़क उठे थे। ये पहली कोशिश थी जिसमे बंगाल में मुस्लिम संगठनों ने इस्लामी ईशनिंदा (ब्लासफैमी) कानून की मांग शुरू कर दी थी।
भारत की धर्म निरपेक्षता पर उठाये सवाल
1993 में तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों और उनको जबरन मुसलमान बनाने के मुद्दे पर किताब ‘लज्जा’ लिखी थी। किताब लिखने के बाद उन्हें कट्टरपंथियों के डर से बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था। वो कोलकाता में ये सोच कर बस गयी थी कि वहां वो सुरक्षित रहेंगी क्योंकि भारत तो एक धर्मनिरपेक्ष देश है और वहां विचारों को रखने की स्वतंत्रता भी है।
मगर हैरानी की बात है कि धर्म निरपेक्ष देश भारत में भी मुस्लिमों ने तस्लीमा नसरीन को नफरत की नजर से देखा। भारत में उनका गला काटने तक के फतवे जारी किए गए। देश के अलग-अलग शहरों में कई बार उन पर हमले भी हुए। मगर वोटबैंक के भूखी वामपंथी और तृणमूल की सरकारों ने कभी उनका साथ नहीं दिया। क्योंकि ऐसा करने पर मुस्लिम नाराज हो जाते और वोटबैंक चला जाता।
बंगाल में हो रही है ‘मुगलिस्तान’ देश की मांग
जेनेट लेवी ने आगे लिखा है कि 2013 में पहली बार बंगाल के कुछ कट्टरपंथी मौलानाओं ने अलग ‘मुगलिस्तान’ की मांग शुरू कर दी। इसी साल बंगाल में हुए दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानें लूट लिए गए और कई मंदिरों को भी तोड़ दिया गया। इन दंगों में सरकार द्वारा पुलिस को आदेश दिये गए कि वो दंगाइयों के खिलाफ कुछ ना करें।
हिन्दुओं का बहिष्कार किया जाता है?
ममता को डर था कि मुसलमानों को रोका गया तो वो नाराज हो जाएंगे और वोट नहीं देंगे। लेख में बताया गया है कि केवल दंगे ही नहीं बल्कि हिन्दुओं को भगाने के लिए जिन जिलों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है, वहां के मुसलमान हिंदू कारोबारियों का बायकॉट करते हैं। मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुसलमान हिंदुओं की दुकानों से सामान तक नहीं खरीदते।
यही वजह है कि वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन होना शुरू हो चुका है। कश्मीरी पंडितों की ही तरह यहाँ भी हिन्दुओं को अपने घरों और कारोबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ रहा है। ये वो जिले हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।
आतंक समर्थकों को संसद भेज रही ममता
इसके आगे जेनेट ने लिखा है कि ममता ने अब बाकायदा आतंकवाद समर्थकों को संसद में भेजना तक शुरू कर दिया है। जून 2014 में ममता बनर्जी ने अहमद हसन इमरान नाम के एक कुख्यात जिहादी को अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा। हसन इमरान प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का सह-संस्थापक रहा है।
हसन इमरान पर आरोप है कि उसने शारदा चिटफंड घोटाले का पैसा बांग्लादेश के जिहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी तक पहुंचाया, ताकि वो बांग्लादेश में दंगे भड़का सके। हसन इमरान के खिलाफ एनआईए और सीबीआई की जांच भी चल रही है।
लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) की रिपोर्ट के मुताबिक कई दंगों और आतंकवादियों को शरण देने में हसन का हाथ रहा है। उसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से रिश्ते होने के आरोप लगते रहे हैं। जेनेट के मुताबिक़ बंगाल का भारत से विभाजन करने की मांग अब जल्द ही उठने लगेगी। इस लेख के जरिये जेनेट ने उन पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है, जो मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहाँ बसा रहे हैं, कि जल्द ही उन्हें भी इसी सब का सामना करना पडेगा।
बंगाल में चुनाव के बाद,जनवरी 1990 की याद ताजा हो गईं,जब 6 लाख कश्मीरी पंडितों को मस्जिदों से चेतावनी दी गई कि यदि आप जीवित रहना चाहते हैं तो अपने परिवार की महिलाओं को (बेटियों, बहनों, पत्नियों) को छोड़कर कश्मीर से भाग जाओ, तब देश में वी पी सिंह की सरकार बनी थी, उनके गृह मंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद थे, और कश्मीर में कांग्रेस के समर्थन से फारुख अब्दुल्ला की सरकार थी। मुस्लिमो ने उनकी संपत्ति हड़प ली और महिलाओं का लगातार बलात्कार होता रहा, और कत्लेआम होता रहा, किसी मीडिया ने कोई News नहीं दिखाई, फलस्वरूप कश्मीर से हिंदू समाज को अपनी संपत्ति और महिलाओं को छोड़कर भागना पड़ा, वही स्थिति आज बंगाल में होने जा रही है, भाजपा के नेता भी लगभग नपुंसक हो गये हैं, सारी शक्ति हाथ में होते हुए भी लगभग असहाय हो रहे हैं। हिंदुओं के ऊपर होते हुए अत्याचार देख कर सभी तथाकथित सेकुलर नेता चुप है। यही नेता किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ उनकी ही गलती से कोई खंरोच भी आती तो छाती पीटते हुए सारे देश की नाक में दम कर देते हैं, और UNO तक शिकायत करके देश की छवि बिगाड़ने में भी संकोच नहीं करते। पूरा अंतरराष्ट्रीय मीडिया भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार में एकजुट हो जाता है।
हिंदू समाज को इतना ज्ञान होना चाहिए कि भारत का जन्म 1947 में नहीं हुआ था बल्कि भारत 5000 वर्ष पुरानी हमारी संस्कृति है, हम पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं जिसमें पशु पक्षी वृक्ष सभी प्राणी शामिल हैं व धरती को अपनी माता मानते हैं। लगभग आधे से अधिक विश्व पर हमारा शासन था। लेकिन अपनी उदारता के कारण हम अपनी जमीन पर दूसरों को बसाते गये और खुद बेघर होते गए। हिंदू घटता गया तो देश बंटता गया। यदि हमें सुरक्षित रहना है तो हनुमान जी की तरह अपनी शक्ति को पहचाना होगा। हमें मंदिरों में केवल मनोकामनाएं पूर्ती के लिए ही नहीं जाना बल्कि हमें अपने देवी-देवताओं से सीखना भी है,वो एक हाथ में माला रखते थे वे दूसरे हाथ में भाला भी रखते थे, हमें शास्त्र के साथ साथ शस्त्र का भी ज्ञान होना चाहिए। हिंदू समाज को अपनी आत्मरक्षा के बारे में सोचना चाहिए। केवल सरकार व पुलिस के ऊपर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए।
हिंदू समाज अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए मंदिर के अलावा कहीं भी जा सकता है चाहे वो धरती के नीचे गड़े हुए मुर्दे ही क्यों न हो, वहां भी बढ़े शान से चादर चढ़ाकर आता है जबकि अन्य कोई भी समाज ऐसा नहीं करता। हमें अपने भविष्य को बचाना है या अपने अस्तित्व को समाप्त करना है ॽ
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/08/download.jpg192262Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-08-02 10:55:072021-08-02 10:56:15ममता ने शुरू किया इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट और अरेंगी मुगलिस्तान का समर्थन : जेनेट लेवी
बकरीद से पहले कश्मीर में प्रशासन का बड़ा फैसला, इन पशुओं की कुर्बानी पर लगी रोक जम्मू कश्मीर में प्रशासन ने बकरीद के मौके पर गोवंश समेत कई जानवारों की कुर्बानी देने पर रोक लगा दी है। यदि कोई ऐसा करता है तो फिर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
जम्मू/कश्मीर/चंडीगढ़:
जम्मू कश्मीर में प्रशासन ने बकरीद के मौके पर गोवंश समेत कई जानवारों की कुर्बानी देने पर रोक लगा दी है। यदि कोई ऐसा करता है तो फिर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। गुरुवार को प्रशासन की ओर से जारी आदेश में कहा गया है, ‘गोवंश, ऊंटों या अन्य जानवरों की अवैध हत्या या कुर्बानी को रोका जाना चाहिए।’ पशुओं के कल्याण के लिए बने कानूनों का हवाला देते हुए प्रशासन ने यह रोक लगाई है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि प्रशासन की ओर से जानवरों की कुर्बानी पर पूरी तरह से बैन लगाया गया है या फिर गोवंश और कुछ अन्य पशुओं को लेकर ही यह आदेश दिया गया है।
इस संबंध में निदेशक योजना, जम्मू-कश्मीर पशु और भेड़ पालन और मत्स्य पालन विभाग ने कश्मीर और जम्मू दोनों क्षेत्रों के संभागीय आयुक्तों और आईजीपी को एक पत्र लिखकर इन जानवरों के वध पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की है.
भारत के पशु कल्याण बोर्ड, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार से प्राप्त एक आधिकारिक पत्र संख्या: 9-2/2019-20/पीसीए दिनांक 25.06.2021 का जिक्र करते हुए, संचार पढ़ता है:
“इस संबंध में 21-23 जुलाई, 2021 से निर्धारित बकरा ईद त्योहार के दौरान जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश में बड़ी संख्या में बलि देने वाले जानवरों की हत्या की संभावना है और पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया ने पशु कल्याण के मद्देनजर सभी के कार्यान्वयन के लिए अनुरोध किया है. पशु कल्याण कानूनों को सख्ती से लागू करने के लिए एहतियाती उपाय. पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960; पशु कल्याण नियम, 1978 का परिवहन; पशुओं का परिवहन (संशोधन) नियम, 2001; स्लॉटर हाउस नियम, 2001; म्युनिसिपल लॉ एंड फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने त्योहार के दौरान जानवरों (जिसके तहत ऊंटों का वध नहीं किया जा सकता) के वध के निर्देश दिए हैं.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/07/1413811016379_wps_44_Pic_shows_This_camel_was_.jpg11461908Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-07-16 15:40:292021-07-16 15:40:54बकरीद पर कश्मीर में गोवंश और दूसरे जानवरों की कुर्बानी पर प्रशासनिक रोक
सोशल मीडिया पर मंगलवार (18 मई 2021) को एक दस्तावेज जम कर शेयर किया गया जिसके बारे में यह दावा किया गया कि ये ‘कॉन्ग्रेस का टूलकिट’ है। इसमें कुम्भ मेला को बदनाम करने, ईद का महिमामंडन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि धूमिल करने और जलती चिताओं व लाशों की तस्वीरें शेयर कर भारत को बदनाम करने का खाका था। अब कॉन्ग्रेस नेता राजीव गौड़ा ने स्वीकार किया कि टूलकिट के लीक हुए दो डॉक्यूमेंट्स में से एक ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमेटी (AICC) के शोध विभाग द्वारा तैयार किया गया है।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
कांग्रेस की ओर से कथित रूप से जारी किए गए ‘टूलकिट’ का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। याचिकाकर्ता वकील शशांक शेखर झा ने ‘टूलकिट’ के मामले की जांच कराने की मांग की है। दूसरी ओर, बीजेपी ने ‘टूलकिट’ को लेकर बुधवार को एक बार फिर कांग्रेस पर हमला बोला और दावा किया कि कांग्रेस सांसद के दफ़्तर में काम करने वाली सौम्या वर्मा ने ही इसे बनाया है।
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट कर कहा है कि कांग्रेस ने पूछा था कि इस टूलकिट को बनाने वाला कौन है। पात्रा ने दावा किया है कि सौम्या वर्मा कांग्रेस सांसद एमवी राजीव गौड़ा के दफ़्तर में काम करती हैं। उन्होंने पूछा है कि क्या राहुल और सोनिया गांधी इस बात का जवाब देंगे कि सौम्या वर्मा कौन हैं। पात्रा ने मंगलवार को ट्वीट कर कहा था कि कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे कोरोना के नए वैरिएंट को ‘मोदी स्ट्रेन’ या ‘इंडिया स्ट्रेन’ कह कर प्रचारित करें।
कॉन्ग्रेस के कथित टूलकिट मामले के खिलाफ देश के शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई है। मामले को सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने और दुनिया में भारत की छवि बिगाड़ने का साजिश बताया गया है। याचिकाकर्ता वकील शशांक शेखर झा ने अंतरराष्ट्रीय साजिश का पता लगाने के लिए राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) से जाँच और दोष साबित होने पर कॉन्ग्रेस की मान्यता रद्द करने की माँग की है।
झा ने अपनी जनहित याचिका में निर्दिष्ट किया कि धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), आईपीसी की कई धाराओं और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 13 के तहत किसी भी अपराध का खुलासा करने के लिए मामले की जाँच की जानी चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार को निर्देश जारी होना चाहिए कि वह गाइडलाइंस बनाए कि कोई भी पार्टी, ग्रुप कोई भी ऐसा पोस्टर और बैनर नहीं लगाएगा जिसमें एंटी नेशनल सामग्री हो। साथ ही कोरोना से मरे लोगों के अंतिम संस्कार और शव न दिखाए जाएँ। साथ ही केंद्र सरकार को कोविड-19 महामारी के दौरान आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी के बारे में निर्देश जारी किया जाए।
याचिकाकर्ता ने कहा कि केंद्र सरकार मामले की जाँच कराए और जाँच में अगर कॉन्ग्रेस जिम्मेदार पाया जाता है और लोगों के जीवन को खतरे में डालता पाया गया और एंटी नेशनल हरकत करता पाया जाता है तो उसका रजिस्ट्रेशन रद्द हो।
हालाँकि कॉन्ग्रेस ने ‘टूलकिट दस्तावेज़’ के निर्माण से स्पष्ट रूप से इनकार किया है, रिपोर्टों से पता चलता है कि लेखक वास्तव में एआईसीसी की सदस्य है। बता दें कि सौम्या वर्मा का नाम दस्तावेज़ के निर्माता के रूप में उभरा है। अब सौम्या ने लिंक्डइन सहित अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट्स को डिलीट कर लिया है।
AICC के चेयरमैन राजीव गौड़ा ने स्वीकार किया कि टूलकिट के लीक हुए दो डॉक्यूमेंट्स में से एक ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमेटी (AICC) के शोध विभाग द्वारा तैयार किया गया है। कॉन्ग्रेस नेता राजीव गौड़ा ने ट्वीट करके यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि AICC ने ही सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर एक शोध पत्र तैयार किया। हालाँकि, गौड़ा ने कहा कि टूलकिट भाजपा द्वारा बनाया गया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि भाजपा ओरिजिनल डॉक्यूमेंट के लेखक का डाटा दिखा रही है और उसे फेक डॉक्यूमेंट से जोड़ रही है।
डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम दस्तावेजों की प्रामाणिकता पर टिप्पणी नहीं कर सकता है, वास्तव में लीक हुए मोदी विरोधी टूलकिट और सेंट्रल विस्टा ‘रिसर्च’ दस्तावेज़ दोनों के बीच समानताएँ हैं।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/05/24-2.jpg427749Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-05-20 03:53:492021-05-20 03:54:11काँग्रेस की कथित ‘टूलकिट’ मामला पहुंचा सर्वोच्च न्यायालय
दिल्ली यूनिवर्सिटी में नए सिलेबस के ड्राफ्ट में 20 से 30 फीसदी तक बदलाव किया गया है। इतिहास (ऑनर्स) के पहले पेपर ‘Idea of Bharat’ पढ़ाया जाएगा। ड्राफ्ट सिलेबस के तीसरे पेपर में सरस्वती-सिंधु सभ्यता को पढ़ाया जाएगा। वेदों में सरस्वती नदी का विस्तार से उल्लेख मिलता है। ‘भारत की सांस्कृतिक विरासत’ नाम से 12वां पेपर है। रामायण और महाभारत जैसे सांस्कृतिक विरासत का विषय शामिल हुआ। इस्लामिक शासकों के आगे आक्रमणकारी शब्द जोड़ने पर विवाद है। नए पाठ्यक्रम में आक्रमण शब्द का इस्तेमाल मुस्लिम शासकों जैसे बाबर के संबंध में किया गया है। भारत की सांस्कृतिक विरासत पढ़ किसकी बौखलाहट बढ़ी?
सरीका तिवारी, नयी दिल्ली/चंडीगढ़:
गुरु नानकदेव जी ने बाबर के आक्रमण और लोगों की दुर्दशा के समय भारत की तबाही का आँखों देखा उल्लेख किया और युद्ध की स्थिति का वर्णन किया:
अर्थात हे लालों, बाबर पाप की बारात ले कर काबुल से मार आत मचाता हुआ आया है और धिंगाजोरी से भारत को दहेज के रूप में मांग रहा है। शर्म और धर्म दोनों ही अलोप हो चुके हैं, अब झूठ की प्रधनगी है। क़ज़ियों और ब्राह्मणों के काम धंधे सब चौपट हो चुके हैं अब विवाह जैसी पवित्र रसम भी शैतान ही करवा रहा है।
गुरु जी के शब्दों में बाबर एक आक्रांता है बाबर की दरिंदगी का वर्णन गुरु जी ने अपनी कोमल वाणी में अत्यंत दुखी हो कर किया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) एक सांविधिक इकाई है, जो विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा से संबंधित सभी प्रकार के कार्यकलापों की एक जिम्मेदार संस्था है। यूजीसी ने हाल ही में बीए इतिहास के पाठ्यक्रम का एक ड्राफ्ट प्रकाशित किया, जो भारतीय इतिहास के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालता है। यूजीसी के इसी प्रयास के कारण कई बुद्धिजीवी और नेता व्यथित हैं, जिनमें असदुद्दीन ओवैसी प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं।
दि आइडिया ऑफ भारत
बीए इतिहास का पहला पेपर “आइडिया ऑफ भारत” पर आधारित है। यह भारतवर्ष की अवधारणा, भारतीय ज्ञान परंपरा, कला एवं साहित्य, धर्म, विज्ञान, जैन एवं बौद्ध साहित्य, भारतीय आर्थिक परंपरा एवं ऐसे ही अन्य टॉपिक्स को कवर करता है। इनमें वेद, उपनिषद, महान ग्रंथ, जैन एवं बौद्ध साहित्य, वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा, भारतीय अंक पद्धति एवं गणित, समुद्री व्यापार इत्यादि सम्मिलित है।
ड्राफ्ट में बताया गया है कि इस पाठ्यक्रम के माध्यम से छात्र प्राचीन भारत के नागरिकों के प्रारम्भिक जीवन और संस्कृति से परिचित होंगे एवं उस समाज की व्यवस्था, धर्म पद्धति एवं राजनैतिक इतिहास को जान सकेंगे। इस पाठ्यक्रम का एक उद्देश्य यह भी है कि छात्र भारत में लगातार हुए सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों का भी अध्ययन कर सकें।
सिंधु-सरस्वती सभ्यता की व्याख्या
इस स्नातक कोर्स का तीसरा पेपर प्राचीन भारत के इतिहास लेखन एवं ऐतिहासिक स्रोतों की व्याख्या से संबंधित है। इसमें वैदिक काल, जैन और बौद्ध धर्म के उदय से संबंधित कई विषय हैं। इस खंड की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इसमें सिंधु-सरस्वती सभ्यता के अस्तित्व से संबंधित सभी पहलुओं की व्याख्या की गई है। साथ ही हिंदुओं में भेद उत्पन्न करने के लिए प्रचलित की गई आर्य आक्रमण की थ्योरी को भी नकारा गया है।
आक्रांता अब आक्रांता ही कहा जाएगा
अभी तक स्नातक कार्यक्रमों की इतिहास की पुस्तकों में बाबर और तैमूरलंग जैसे आक्रमणकारियों के लिए आक्रांता अथवा आक्रमणकारी जैसे शब्द नहीं लिखे जाते थे किन्तु UGC ने इस ड्राफ्ट में इसे स्वीकार किया है।
बुद्धिजीवियों और नेताओं का विरोध
हालाँकि जब भी इतिहास में किसी भी प्रकार के सुधार की बात आती है तो कुछ राजनैतिक नेताओं और स्वघोषित बुद्धिजीवियों को यह सुधार आरएसएस का षड्यंत्र ही दिखाई देता है। वामपंथी पोर्टल टेलीग्राफ ने कुछ शिक्षकों और विद्यार्थियों का वक्तव्य छापा है कि वैदिक और हिन्दू धार्मिक ग्रंथों का उपयोग करके शिक्षा का भगवाकरण किया जा रहा है। इन “शिक्षकों और विद्यार्थियों” ने यह भी चिंता व्यक्त की है कि “आइडिया ऑफ भारत” पर आधारित ने पाठ्यक्रम से “मुस्लिम शासनकाल की महत्ता” समाप्त हो जाएगी।
टेलीग्राफ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज के एक अनजान विद्यार्थी का कथन छापा कि वह “आइडिया ऑफ भारत” के माध्यम से प्राचीन भारतीय सभ्यता के महिमामंडन से व्यथित है। दिल्ली विश्वविद्यालय के ही श्यामलाल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर जीतेंद्र मीणा जी भी व्यथित हैं कि नया पाठ्यक्रम सेक्युलर साहित्य के स्थान पर धार्मिक साहित्य का महिमामंडन करता है एवं मुगल इतिहास को दरकिनार कर देता है।
ऐसे मुद्दों पर ओवैसी कुछ न कहें, यह असंभव है। उन्होंने सीधे भाजपा पर यह आरोप लगा दिया कि भाजपा अपनी हिन्दुत्व की विचारधारा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का कार्य कर रही है। ओवैसी ने एक ट्वीट में कहा कि शिक्षा प्रोपेगंडा नहीं है। भाजपा हिन्दुत्व की विचारधारा को पाठ्यपुस्तकों में शामिल कर रही है। माईथोलॉजी को स्नातक कार्यक्रमों में नहीं पढ़ाना चाहिए। ओवैसी ने ड्राफ्ट पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि पाठ्यक्रम मुस्लिम इतिहास को मलीन कर रहा है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/03/14943273758_d62d2a8480_z.jpg427640Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-03-26 14:49:272021-03-26 14:49:46बाबर कोआक्रांता बताने पर भड़के ओवैसी और वामपंथी
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने अमृतसर में हथगोले बरामद होने के सिलसिले में सात कथित खालिस्तानी गुर्गों के खिलाफ सोमवार को एक आरोप पत्र दाखिल किया। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।
मोहाली में एनआईए की एक विशेष अदालत के समक्ष दाखिल आरोप पत्र में जजबीर सिंह सामरा, वरिन्दर सिंह चहल, कुलबीर सिंह, मनजीत कौर, तरणबीर सिंह, बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) के एक गुर्गे कुलविंदरजीत सिंह और पाकिस्तान में खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (केएलएफ) के स्वयंभू प्रमुख हरमीत सिंह के नाम शामिल हैं।
अधिकारी ने बताया कि इनके खिलाफ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और यूए (पी) अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं।
जून, 2019 में दर्ज किया गया यह मामला पंजाब पुलिस द्वारा एक बैग से दो हथगोले और एक मोबाइल फोन को जब्त किये जाने से जुड़ा है। पुलिस द्वारा नियमित जांच के दौरान बाइक सवार दो हमलावरों को रोके जाने के बाद उन्होंने अमृतसर के ग्रामीण क्षेत्र में एक बस अड्डे पर यह बैग फेंक दिया था।
अधिकारी ने बताया कि एनआईए ने मामले को अपने हाथों में लिया और जांच शुरू की। उन्होंने बताया कि जजबीर और वरिन्दर पाकिस्तान से तस्करी की गई हेरोइन की आपूर्ति में शामिल एक मादक पदार्थ-आतंकी मॉड्यूल का हिस्सा थे।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/03/12_03_280285364terrorism-in-punjab.jpg400600Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-03-22 17:48:372021-03-22 17:51:10खालिस्तानी समर्थक 7 गुर्गे गिरफ्तार
पांच देशों के राजदूतों बोले भारत में पर्यटन की है आपार संभावनायें
पीएचडी चैंबर ने आयोजित किया दसवां इंटरनैश्नल हैरिटेज टूरिज्म कॉन्क्लेव
हरियाणा के गौरवशाली इतिहास को जानना चाहते हैं विदेशी
पंचकूला:
भारत की संस्कृति और धरोहर की छाप मात्र डोमेस्टिक टूरिज्म तक ही सीमित न रहकर समूचे विश्व में अपनी पहचान बना चुकी है। कोविड 19 से पूर्व वर्ष 2019 में देश में लगभग 11 मिलियन विदेशी पर्यटकों ने भारत में आकर इस देश की संस्कृति को करीब से जाना है। भारत में पर्यटन सबसे बड़ी सर्विस इंडस्ट्री में से एक है,जोकि देश की जीडीपी में लगभग 98 बिलियन अमेरिकी डालर्स का योगदान देता है।
यह विचार पीएचडी चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के सहयोग से पंचकूला के रामगढ़ फोर्ट में आयोजित दसवें अंतरराष्ट्रीय हैरिटेज टूरिज्म कॉन्क्लेव में शामिल हुए पांच देशों के राजदूत, कई प्रदेशों के पर्यटन विकास बोर्ड अधिकारियों तथा पर्यटन उद्योग से जुड़े प्रतिनिधियों के आपसी मंथन में सामने आए।
इस कान्क्लेव में चैक गणराज्य के दूतावास के ऐम्बेसेडर महामहिम मिलन होवोरका, सैशिल्स गणराज्य के राजदूत थामस सिलबे पिल्ले, स्लोवाक गणराज्य के राजदूत ईवान लनकेरिक, स्लोवेनिया गणराज्य के राजदूत डाक्टर मरजन केनकन, वियतनाम गणराज्य के राजदूत फेम सान छाओ और इंडोनेश्यिा गणराज्य के चार्जडीएफेयर्स फ्रेडी पेई शामिल हुये जिन्होंने हरियाणा व चंडीगढ़ की खूबसूरती को जमकर सराहा। कोरोना महामारी के बाद देश में पर्यटन में और अधिक पर्यटन संभावानयें तलाशने की दृष्टि से यह आयोजन किया गया है।
अलग-अलग देशों के प्रतिनिधियों ने कहा कि कार्यक्रम को आयोजित करने का उद्देश्य पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप के माध्यम से पर्यटन को बढ़ावा देना और देश की सांस्कृति व कुदरती हैरिटेज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती दिलाना है। देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा का अपना एक गौरवशाली इतिहास है। जिसे विदेशों में बसे लोग जानना चाहते हैं।
कोनक्लेव के उद्घाटन सत्र पर भारत सरकार में पर्यटन मंत्रालय की अतिरिक्त महानिदेशक रुपिन्दर बराड़ ने कहा कि दुनिया भर के देश इस समय महामारी से उबर रहे हैं। सामान्य मूल्यों और सांस्कृतिक हितधारकों के बीच संबंधों को मजबूत करने का मतलब है कि दोनों क्षेत्र समावेशी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं। मंत्रालय ने आगे कदम उठाते हुए, आसियान जैसे संगठनों की भारी संख्या के साथ यूनेस्को के विरासत स्थलों और भारत के अन्य आकर्षण के केंद्रों के विकास और संवर्धन के लिए द्विपक्षीय/बहुपक्षीय सहयोग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
इससे पूर्व प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुये पीएचडी चैंबर के प्रधान संजय अग्रवाल ने बताया कि यह आयोजन कोरोना के प्रकोप के चलते वर्ष भर के वैबिनार व जूम बैठकों के बाद यह पहला आयोजन है। उन्होंने कहा कि इंटरनैश्नल यात्रा बाध्य होने के कारण घरेलू यात्रा को वर्ष 2021 की अगामी महीनों में मजबूत पकड़ प्राप्त होगी क्योंकि अधिकतर भारतीय अपने मातृभूमि को ओर करीब से जानने के लिये आतुर रहते हैं। उन्होंनें कहा कि सरकार की ओर से निवेश से लेकर समर्पित दृष्टिकोण, इंफ्रास्टक्चर और उद्योग पर ध्यान केन्द्रित करने के लिये अनोखी पहल, ग्राहकों को सुखद अनुभव प्रदान करवाने आदि कई मापदंडों से घरेलू पर्यटन को ओर अधिक मजबूती प्राप्त होगी।
पीएचडी चैंबर में टूरिज्म कमेटी के चैयरमेन अनिल पराशर ने बताया कि कोरोना काल ने पर्यटन उद्योग गहरा आघात पहुंचाया है । सरकार के साथ साथ पर्यटन उद्योग के बिजनेस लीडर्स को इसके बाद पेश आ रही चुनौतियों को सांझे रुप से सामना करना होगा। इस दिशा में इनोवेशन, बेहतर मैनेजमेंट, प्रोमोशन और धरोहर को सरंक्षण अहम कड़ी साबित होंगें।
कार्यक्रम के दौरान ऐसोसियेशन आफ डोमेस्टिक टूर आपरेटर्स आफ इंडिया के प्रेजीडेंट पीपी खन्ना, इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज इनटैच की हरियाणा चैप्टर कन्वीनर डा. शिखा जैन, यूनाइटेड नेशन ग्लोबल कोम्पैक्ट नैटवर्क इंडिया की कार्यकारी बिदेशक शबनम सिद्दिकी, इंडियन हैरिटेज होटल्स ऐसोसियेशन के वरिष्ठ सदस्य जगदीप सिंह चंदेल, इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन डायरेक्टर पंकज पराशर सहित अन्य पर्यटन से जुड़े दिग्गजों ने इस अवसर पर अपने विचार रखे।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/03/IMG_2361-scaled.jpg17092560Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-03-12 13:17:522021-03-12 13:18:09पांच देशों के राजदूतों बोले भारत में पर्यटन की है आपार संभावनायें
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