इन्डोनेशिया नेआईलैंड पर प्रम्बानन, बोरोबुदुर मंदिर वैश्विक पूजा स्थल घोषित हुए

साक्ष्य बताते हैं कि बोरोबुदुर का निर्माण 7वीं शताब्दी में किया गया था और बाद में14वीं शताब्दी में जावा में हिंदू राज्यों के पतन और जावानीस के इस्लाम में रूपांतरण के बाद छोड़ दिया गया ।  इसके अस्तित्व का विश्वव्यापी ज्ञान 1814 में जावा के तत्कालीन ब्रिटिश शासक सर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स द्वारा फैलाया गया था, जिन्हें देशी इंडोनेशियाई लोगों द्वारा इसके स्थान की सलाह दी गई थी।  बोरोबुदुर को तब से कई पुनर्स्थापनों के माध्यम से संरक्षित किया गया है। सबसे बड़ी बहाली परियोजना 1975 और 1982 के बीच इंडोनेशियाई सरकार और यूनेस्को द्वारा शुरू की गई थी, इसके बाद स्मारक को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।

सबसे बड़ी बहाली परियोजना 1975 और 1982 के बीच इंडोनेशियाई सरकार द्वारा शुरू की गई थी

इन्डोनेशिया/ भारत :

इंडोनेशिया ( Indonesia) भले ही दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक देश हो, लेकिन वहाँ पर आज भी सनातन संस्कृति और हिंदू सभ्यता के निशान हैं। इसी क्रम में इंडोनेशियाई सरकार ने हिंदुओं और बौद्धों के धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए 11 फरवरी 2022 को प्रम्बानन मंदिर (Prambanan Temple) और बोरोबुदुर मंदिर (Borobudur Temple) में धार्मिक अनुष्ठानों को करने की इजाजत दे दी। इसके साथ ही आधिकारिक तौर पर मध्य जावा स्थित पवन मंदिर और मेंडुत मंदिर को हिंदू और बौद्ध के लिए वैश्विक पूजा स्थलों के रूप में लॉन्च किया गया।

कीर्तिमुख प्रवेश द्वार – बोरोबुदुर

बोरोबुदुर के निर्माण या इच्छित उद्देश्य का कोई ज्ञात रिकॉर्ड नहीं है। निर्माण की अवधि का अनुमान 8वीं और 0वीं शताब्दी के दौरान मंदिर के छिपे हुए पैर और शाही चार्टर में आमतौर पर इस्तेमाल किए गए शिलालेखों पर नक्काशीदार राहतों की तुलना से लगाया गया है। बोरोबुदुर की स्थापना लगभग 800 ई. यह ७६०(760) और ८३०(830) ईस्वी के बीच की अवधि से मेल खाती है, मध्य जावा में मातरम साम्राज्य पर शैलेंद्र वंश के शासन का शिखर, जब उनकी शक्ति में न केवल श्रीविजय साम्राज्य बल्कि दक्षिणी थाईलैंड , फिलीपींस के भारतीय राज्य भी शामिल थे । उत्तरी मलाया (केदाह, जिसे भारतीय ग्रंथों में प्राचीन हिंदू राज्य कदरम के रूप में भी जाना जाता है)। ८२५(825) में समरतुंग के शासनकाल के दौरान निर्माण को पूरा होने में ७५(75) साल लगने का अनुमान है । 

उस समय के आसपास जावा में हिंदू और बौद्ध शासकों के बारे में अनिश्चितता है । शैलेंद्र बौद्ध धर्म के उत्साही अनुयायी के रूप में जाने जाते थे, हालांकि सोजोमेर्टो में पाए गए पत्थर के शिलालेखों से यह भी पता चलता है कि वे हिंदू हो सकते हैं। इसी समय केडू मैदान के आसपास के मैदानों और पहाड़ों पर कई हिंदू और बौद्ध स्मारक बनाए गए थे। बोरोबुदुर सहित बौद्ध स्मारकों को उसी अवधि के आसपास बनाया गया था, जब हिंदू शिव प्रम्बानन मंदिर परिसर। 732 ईस्वी में, शिवाइट राजा संजय ने बोरोबुदुर से केवल 10 किमी (6.2 मील) पूर्व में, वूकिर पहाड़ी पर एक शिवलिंग अभयारण्य का निर्माण किया। 

बोरोबुदुर मंदिर

रिपोर्ट के मुताबिक, इंडोनेशिया के योग्याकार्ता में धार्मिक नेताओं और इंडोनेशियाई सरकार के बीच धार्मिक अनुष्ठानों के कामकाज को चलाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। बता दें कि इंडोनेशिया का बोरोबुदुर मंदिर बौद्ध धर्म की महायान शाखा का नेतृत्व करता है। बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी सीई में शैलेंद्र वंश के शासनकाल में किया गया था। जबकि, प्रम्बानन मंदिर 10 वीं शताब्दी में हिंदू-बौद्ध मातरम साम्राज्य ने बनवाया था। यह भगवान शिव का देश में सबसे बड़ा मंदिर है।

समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान इंडोनेशिया के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के विशेष कर्मचारी समन्वयक अदुंग अब्दुल रोचमैन ने बताया कि चार मंदिरों का ज्यादातर इस्तेमाल रिसर्च, संस्कृति और पर्यटन के लिए किया गया था। खास बात ये है कि एक तरफ इस्लामिक कट्टरपंथी एक-एक कर हिन्दू मंदिरों और उनकी निशानियों को तहस-नहस करने की कोशिशें कर रहे हैं। अब इंडोनेशियाई सरकार ने ये फैसला लिया है। गौरतलब है कि कट्टरपंथी इस्लामिक चरमपंथियों ने मध्य पूर्व, अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका तक में कई तरह की धार्मिक विरासतों और संस्कृतियों को निर्ममता से कुचला है।

सर कटी बुद्ध प्रतिमाएं

इंडोनेशिया के जावा स्थित सांस्कृतिक गढ़ में बोरोबुदुर और प्रम्बानन मंदिर स्थित हैं। कथित तौर पर देश का जावा आईलैंड मुस्लिम बहुल आबादी वाला इलाका है, लेकिन यहाँ पर रहने वाले मुस्लिम मानवतावादी इस्लाम को प्रेम और दया का स्रोत मानते हैं। ये लोग हमलावरों से पहले के धार्मिक स्थलों को बचाने का काम करते हैं।

इस समझौते के बारे में योग्याकार्टा के गवर्नर सुल्तान हमेंग्कु बुवोनो एक्स कहते हैं कि मंदिरों के लिए हुआ यह समझौता पूजा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्थलों के रूप में जाना जाता है। इससे इंडोनेशिया में समुदायों के बीच धार्मिक संयम, सामंजस्य और सौहार्द बढ़ते हैं। उन्होंने इस मामले में उन्होंने आगे कहा, “विविधता में एकता ही इंडोनेशिया का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है औऱ इसी से इरादे का पता चलता है। ये उस देश के विकास की कुंजी है जिसके लोग एकीकृत इंडोनेशिया में विविधता को महत्व देते हैं।”

एमओयू पर हस्ताक्षर करते योग्याकार्टा के गवर्नर सुल्तान हमेंग्कु बुवोनो एक्स 

गौरतलब है कि पिछले सप्ताह ही इंडोनेशियाई सरकार और धार्मिक नेताओं के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे। जिसे धार्मिक मामलों के मंत्रालय, शिक्षा, संस्कृति, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम (एसओई) मंत्रालय, पर्यटन और रचनात्मक अर्थव्यवस्था मंत्रालय, योग्याकार्टा और मध्य जावा प्रांतीय सरकारों का समर्थन है।

इन्डोनेशिया की नई राजधानी ‘नुसंतारा’ जिसका सनातन हिंदू धर्म से सदियों पुराना नाता है

इंडोनेशिया की संसद द्वारा देश की राजधानी जकार्ता से कालीमंतन स्थानांतरित करने की मंजूरी के बाद नयी राजधानी नुसंतारा होगी। इंडोनेशिया पार्लियामेंट टीवी ने राष्ट्रीय विकास योजना मंत्री सुहार्सो मोनोआर्फा के हवाले से यह जानकारी दी। मोनोआर्फा ने कहा कि देश के संसद सभा ने आधिकारिक तौर पर राजधानी स्थानांतरण के संबंध में मंगलवार को एक विधेयक पारित किया। उन्होंने कहा कि राजधानी का कालीमंतन में स्थानांतरण कई विचारों, क्षेत्रीय लाभों और कल्याण पर आधारित है तथा द्वीपसमूह के बीच एक नये आर्थिक केंद्र के उदय की दृष्टि के साथ यह निर्णय लिया गया है।

इन्डोनेशिया/ भारत :

इंडोनेशिया पार्लियामेंट टीवी ने राष्ट्रीय विकास योजना मंत्री सुहार्सो मोनोआर्फा के हवाले से यह जानकारी दी। मोनोआर्फा ने कहा कि देश के संसद सभा ने आधिकारिक तौर पर राजधानी स्थानांतरण के संबंध में मंगलवार को एक विधेयक पारित किया। उन्होंने कहा कि राजधानी का कालीमंतन में स्थानांतरण कई विचारों, क्षेत्रीय लाभों और कल्याण पर आधारित है तथा द्वीपसमूह के बीच एक नये आर्थिक केंद्र के उदय की दृष्टि के साथ यह निर्णय लिया गया है।

असल में स्थानीय जैवनीज भाषा में नुसंतारा का अर्थ होता है द्वीप मंडल या द्वीप समूह, और इस द्वीप मंडल ने 14वीं सदी में जावा द्वीप पर शासन करने वाले मजापहित साम्राज्य के दौर में आकार लिया था। उस वक्त इस साम्राज्य के हिंदू राजा थे हयम वुरुक और उनके प्रधानमंत्री का नाम था गज:मद ‘साउथ चाइना मॉर्निग पोस्ट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक गज:मद ने एक बार प्रतिज्ञा की कि वे तब तक तामसिक भोजन नहीं करेंगे, जब तक कि पूरे नुसंतारा को मजापहित साम्राज्य के अधीन नहीं ले आते. उसे नवगठित नहीं कर लेते।

कहते हैं कि इसके बाद गज:मद विजय अभियान पर निकल, इसमें उन्होंने वर्तमान दिनों के मलेशिया, सिंगापुर, ब्रूनेई, दक्षिण थाईलैंड, तिमोर लेस्ते और दक्षिण-पश्चिम फिलिपींस के इलाकों को जीता. इन सभी इलाकों को मिलाकर ‘नुसंतारा’ को पुनर्गठित किया। इस तरह अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। अपने ऐसे ही कारनामों की वजह से गज:मद को इंडोनेशिया में राष्ट्रीय नायक का दर्जा हासिल है। कालांतर में जब साम्राज्यवादी ताकतों के प्रभाव से मुक्त होने के लिए इंडोनेशिया में स्वतंत्रता-आंदोलन चला तो गज:मद और उनसे जुड़ी कहानियां उसके सबसे बड़े प्रेरक पहलू रहे।

यह भी ध्यान रखने लायक है कि इंडोनेशिया का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ है, जिसे हिंदू सनातन परंपरा में भगवान विष्णु का वाहन कहा जाता है। यहां महज 40 हजार के करीब हिंदू आबादी है। कुछ बौद्ध और बाकी बहुसंख्य मुस्लिम हैं। लेकिन भगवान राम और रामायण सदियों से आज तक इंडोनेशियाई मुस्लिमों की जीवन-शैली और संस्कृति का अटूट हिस्सा बने हुए हैं।

नई राजधानी ‘नुसंतारा’ पूर्वी कलिमंथन प्रांत के 216 वर्ग मील में स्थापित हो रही है। यहां राष्ट्रपति भवन का परिसर डिजाइन करने की जिम्मेदारी बेलिनीज शिल्पकार न्योमैन नुआर्ता को दी गई है। न्योमैन उस समय चर्चा में आए थे जब उन्होंने ‘गरुण-विष्णु कंचन प्रतिमा’ डिजाइन की थी।

राय अब्दुल्लाह खान जिसकी स्मृति में हम नाचते गाते हैं लोहड़ी मनाते हैं

इतिहास ने कितने ही ऐसे नामों को संजोया जो हमें हमारे होने पर मान करवाते हैं। एक इतिहास है जो किताबों में लिखा गया और पाठशालाओं में हमने पढ़ा, और एक इतिहास वो जो लोगों के दिलों में रचा बसा, दादी नानी की कहानियों में, गावों से शहरों तक आये लोक गीतों में झूमता-डोलता है। कितने ही वीर सूरमा, कितने प्यार के परवाने, कितने भक्ति में डूबे दीवाने, कितने हंसी-ठट्ठा करते-कराते शेख़चिल्ली, कितने दानी धीर-वीर, सदियों से दिनों-दिन बदलते समाज के ढाँचे में लगे ईंट-पत्थर के समान उसकी सांस्कृतिक इमारत को बुलंद रखे हुए, बने हैं इन्हीं गीतों-कहानियों के ज़रिये हमारी आत्मा के प्रबल सम्बल। जिस समाज की कहानियाँ जितनी पुरानी हैं, उतनी ही गहरी है उसके शीलाचार, शिष्टाचार एवं सिद्धांतों की नींव। समय की आँधियाँ उस समाज के लोगों की प्रतीक्षित परीक्षाएं ही तो हैं। अपने बड़े-पुरखों की कहानियों में रचित जिजीविषा से प्रेरित वह समाज नयी कहानियाँ रचता है, परन्तु कभी समाप्त नहीं होता, बल्कि नया इतिहास बनाता है – पुरानी कहानियाँ-गीत संजोता है, और नए नए विचार गुनता है। 

राजवीरेन्द्र वसिष्ठ, धर्म/संसकृति डेस्क, चंडीगढ़ :

ऐसी ही भाग्यशाली शगुनों के ख़ुशी-भरे नाच-गानों में संजोयी एक खूबसूरत कहानी है, वीर सूरमा ‘दुल्ला भट्टी’ की जो लोहड़ी (मकर संक्रांति) के शुभ त्यौहार के दिन उत्तर भारत में घर-घर में न सिर्फ़ गायी जाती है, अपितु नाची भी जाती है। राय अब्दुल्लाह खान लोक-वाणी में ‘दुल्ला भट्टी’ नाम से प्रचलित हैं। हम में से कितनों की ज़बान पर यह नाम बिना इसकी सही जानकारी के लोहड़ी त्यौहार के प्रचलित लोक गीत में थिरकता है कि यह एक श्रद्धांजलि है एक ऐतिहासिक राजपूत वीर को जिसने सम्राट अक़बर के समय छापामार युद्ध किये, और आततायियों की सतायी कितनी ही स्त्रियों के जीवन पुनः बसाये। 

पंजाब में फ़ैसलाबाद के पास के संदलबार इलाक़े में जन्मे दुल्ले की माँ का नाम लड्डी और पिता का नाम फ़रीद खान था, दादा थे संदल खान। ‘संदलबार’ (संदल की बार) का इलाका उन्ही संदल खान के नाम से पड़ा, रावी और चनाब नदियों के बीच का यह इलाक़ा अब पाकिस्तान में है और यहीं मिर्ज़ा-साहिबां की अमर प्रेमगाथा भी प्रसिद्ध हुई। दुल्ला के दादे-नाने यहीं संदलबार में पिंडी भट्टियाँ के राजपूत शासक थे। मुग़लों के शासन काल में पिंडी भट्टियां के राजपूत लड़ाकों नें विद्रोह करते हुए कर देना बंद कर दिया व मुगल सैनिकों से छापामार युद्धों की शुरुआत की। इस विद्रोह को डर से कुचलने के लिए पकड़े गए विद्रोहियों को मारकर उनकी मृत लाशों की चमड़ी उधड़वा, उनमें भूसा भर कर गावों के बाहर लटकाया गया, इन्हीं में दुल्ले के पिता और दादा भी थे। पंजाबी लोकगीतों ‘दुल्ले दी वार’ और ‘सद्दां’ में दुल्ले की यह गाथा मिलती है । इस शहादत के बारे में ‘सद्दां’ में ऐसे लिखा गया है – 

“तेरा सांदल दादा मारया, दित्ता बोरे विच पा, मुग़लां पुट्ठियाँ खालां ला के, भरया नाल हवा…. ”

दुल्ला, जिसका कि जन्म इस घटना के बाद हुआ, ओजस्वी अनख वाली राजपूत माँ का पुत्र था जिसके बारे में एक कहानी यह भी है कि अक़बर का पुत्र सलीम भी उसी समय के दौरान पैदा हुआ किन्तु वह एक कमज़ोर शिशु था, और अक़बर की आज्ञा से पिंडी भट्टियां की लड्डी को सलीम को दूध पिलाने की दाई रखा गया। क़रीब 12-13 वर्ष तक सलीम और दुल्ला इकट्ठे पले-बढ़े, एक ही दाई माँ की परवरिश में। लड्डी को जब उसकी इस सेवा से निवृत किया गया, और जब वह वापिस पिंडी भट्टियाँ आयी तो उसने दुल्ले को उसके पिता-दादा की शूरवीरता की कहानियाँ सुनाई, और उनके हश्र की भी। ज़ाहिर है कि उन दोनों के वापिस आने पर गाँव के बड़े-बूढ़ों की जुबां पर भी यही वीर-गाथाएं दिन-रात थिरकती रहती होंगी। दुल्ला ने अपने अंदर के दावानल को मुगलों की ताक़त के ख़िलाफ़ पूरे वेग से लगा दिया। दुल्ला ने फिर से अपने लोगों को इकट्ठा कर एक बार पुनः विद्रोह को जमाया, छापामार युद्ध किये, राजसी टोलों को लूट कर, लूट के धन को जनता में बांटा, संदलबार में लोगों ने फिर से ‘कर’ देना बंद कर दिया। कहानी है कि विद्रोह इस हद तक बढ़ा और फैला कि मुगलों को अपनी शहंशाही राजधानी दो दशकों तक लाहौर बनानी पड़ी।

यह राजपूत वीर सूरमा न सिर्फ़ राज-विद्रोह के लिए लोगों के मन में बसा, बल्कि इसने उस समय के समाज में हो रही स्त्रियों की दुर्दशा के ख़िलाफ़ ऐसे कदम उठाये जो कि उसको एक अनूठे समाज सुधारक की श्रेणी में ला खड़ा करते हैं। पंजाब की सुन्दर हिन्दू लड़कियां जिन्हें ज़बरन उठा लिया जाता था और मध्यपूर्वी देशों में बेच दिया जाता या शाही हरम के लिए या मुग़ल ज़मींदारों के लिए, दुल्ले ने उनको न सिर्फ़ आततायियों से छुटकारा दिलवाया बल्कि उनके एक नयी रीति से विधिपूर्वक विवाह भी रचाये। सोचिये, हम बात कर रहे हैं सोहलवीं सदी की – जिन लड़कियों को छुड़वाया गया, उनके दामन दाग़दार, इज्ज़त रूठी हुई , आबरू के आँचल कमज़ोर, झीने और ज़ार ज़ार थे। ऐसे में अत्याचारियों से छुड़वा कर उनको उनके घर वापिस ले जाना कैसे सम्भव हुआ होगा?  कौन-सा समाज ऐसी कुचली हुई दुखी आत्माओं के लिए भूखे भूतों का जंगल नहीं है? ये सभी माँएं, बहनें, बेटियां उन सभी रिश्तों को खो तब किस हश्र के हवाले थी? लेकिन दुल्ले ने उसी समाज में से ऐसे ऐसे सुहृदय पुरुष ढूँढ निकाले जिन्होंने इन स्त्रियों को सम्बल दिया, घर-परिवार व सम्मान दिया और विवाहसूत्र में उनके साथ बंध गये।

ये सभी बनी दुल्ले की बेटियां – किसी पंडित के न मिलने पर हिन्दू विवाह की रीति निभाने के लिए शायद ‘राइ अब्दुल्लाह खान’ उर्फ़ मुसलमान राजपूत दुल्ला भट्टी ने स्वयं ही अग्नि के आस पास फेरे दिलवा, आहुति डाल उनके विवाह करवाये, न जाने कितनी ऐसी बेटियों का कन्यादान दिया, उनका दहेज बनाया जो एक सेर शक्कर के साथ उनको दिया जाता और इन विवाहों की ऐसी रीति बना दी कि दुल्ले के करवाये इन्ही विवाहों की गाथा आज हम लोहड़ी के दिन ‘जोड़ियां जमाने’ के लिए गाते हैं, विवाहों में समन्वय और ख़ुशी के संचार के लिए अग्नि पूजा करके गाते और मनाते हैं। –

12000 सैनिकों की सेना से युद्ध के बावजूद जांबाज़ दुल्ला को पकड़ न पाने पर धोखे से उसे या ज़हर दे कर मार देने का उल्लेख है, या बातचीत का झांसा दे दरबार बुला कर गिरफ़्तार कर जनता के सामने कोतवाली में फांसी दिए जाने का। धरती के इस सच्चे सपूत के जनाज़े में सूफ़ी संत शाह हुसैन ने भाग लिया और अंतिम दफ़न का काम पूर्ण किया, दुल्ला भट्टी की क़ब्र मियानी साहिब कब्रिस्तान (लाहौर, पंजाब, पाकिस्तान) में है। आज भी इस दरगाह पर फूल चढ़ते हैं। 

उत्तर भारत में लोहड़ी का त्यौहार जो मकर संक्रांति की पूर्व संध्या का उत्सव है दुल्ले की याद की अमरता से जुड़ा है। अब जब हर साल लोहड़ी पर अग्नि में आशीर्वाद के लिए मूंगफली और फुल्ले डालें, उसके फेरे लें और “सुन्दर मुंदरिये” पर नाचते गाते बच्चों के थाल भरेंगे तो मन में इस अनूठे समाज सुधारक वीर सूरमा दुल्ला भट्टी को भी याद कर नमन करें और स्वयं भी अच्छे कर्म करने का संकल्प लें। 

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लोकगाथाओं के सही सही काल का पता लगाना अक्सर मुश्किल होता है। समय की अनेकानेक परतों से गुज़रती यह गाथाएं कहीं कहीं कल्पनाशील अतिश्योक्तियों से पूर्ण भी होती हैं। मैं कोई शोधकर्ता नहीं, किन्तु जीवन और संस्कृति के प्रति जिज्ञासु ज़रूर हूँ। राय अब्दुल्लाह खान भट्टी की इस कथा के जालघर पर कोई २-४ वर्णन मिलते हैं। सन १९५६ में “दुल्ला भट्टी” नामक एक पंजाबी चलचित्र में भी यह कहानी दर्शायी गयी है। मेरा यह लेख इन्ही सूत्रों से प्रेरित है, हाँ, इसमें मामूली सी कल्पना की छौंक मेरी भी है, जो बस इस जोशभरी कहानी को जान लेने के बाद आयी एक स्वाभाविक उत्सुकता है जिसको सांझा करना सही समझती हूँ। कहीं उल्लेख है कई स्त्रियों के विवाह का, कहीं सिर्फ़ एक का, कहीं बताया है के ‘सुन्दर मुंदरिये’ गीत दुल्ले ने ही गाया। कहीं अक़बर की राजधानी दिल्ली से लाहौर ले जाने की बात है – जो कि लिखित इतिहास के अनुसार न कभी दिल्ली थी और न ही कभी लाहौर! तो ख़ैर, लेख लिखते समय मेरे लिए शायद यह एक बहुत ही बड़ी बात थी कि जिस गीत को मैं बचपन से गाती आ रही हूँ लोहड़ी पर वह उस वीर सुरमा की शौर्य गाथा है न कि कोई शादी का ‘दूल्हा’!! मेरा बाल-मन बस उछल उठा ‘दुल्ला भट्टी’ के कारनामों को पढ़ के और देख के, और अब आप से सांझा कर के। 

साभार: विभा चसवाल

लोहड़ी के लोक गीत

सुन्दर मुंदरिये, — हो 
तेरा कौन विचारा, — हो 
दुल्ला भट्टीवाला, —हो 
दुल्ले धी व्याही, —-हो 
सेर शक्कर पायी, — हो 
कुड़ी दा लाल पताका, —- हो 
कुड़ी दा सालू पाटा, —- हो 
सालू कौन समेटे, —- हो 
मामे चूरी कुट्टी, —-हो, 
जिमींदारां लुट्टी, —- हो
ज़मींदार सुधाये, —-हो 
गिन गिन पोले लाए, — हो 
इक पोला घट गया! —-हो 
ज़मींदार वोहटी ले के नस गया —-हो 
इक पोला होर आया —-हो 
ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया —-हो 
सिपाही फेर के ले गया, —–हो 
सिपाही नूं मारी इट्ट —-हो 
भावें रो ते भावें पिट्ट। —-हो 

साहनूं दे लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी! 
साहनूं दे दाणे तेरे जीण न्याणे!! 

‘पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी
हाथी उत्ते जौं तेरे पुत्त पोते नौ! 
नौंवां दी कमाई तेरी झोली विच पाई 
टेर नी माँ टेर नी 
लाल चरखा फेर नी! 
बुड्ढी साह लैंदी है 
उत्तों रात पैंदी है 
अन्दर बट्टे ना खड्काओ 
सान्नू दूरों ना डराओ! 
चार क दाने खिल्लां दे 
पाथी लैके हिल्लांगे 
कोठे उत्ते मोर सान्नू 
पाथी देके तोर!        

कंडा कंडा नी कुड़ियो
कंडा सी 
इस कंडे दे नाल कलीरा सी 
जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा नी, 
पा माई पा,
काले कुत्ते नू वी पा 
काला कुत्ता दवे वधाइयाँ, 
तेरियां जीवन मझियाँ गाईयाँ, 
मझियाँ गाईयाँ दित्ता दुध, 
तेरे जीवन सके पुत्त, 
सक्के पुत्तां दी वदाई, 
वोटी छम छम करदी आई।’

और मेरे पसंदीदा थे

जहां से लोहड़ी मिल जाती थी वहाँ
कंघा बी कंघा
एह घर चंगा

और जहां से ना मिले

हुक्का बी हुक्का
एह घर भुक्खा

सुप्रीम कोर्ट के लगभग 35 वकीलों को खालिस्तान समर्थकों की ओर से धमकी मिली है

दिव्येश सिंह सर्वोच्च न्यायालयके लगभग 35 वकीलों को खालिस्तान समर्थकों की ओर से धमकी मिली है। सिख फॉर जस्टिस की ओर से इंग्लैंड के नंबर से आए ऑटोमेटेड फोन कॉल के जरिए ये धमकी दी गई है। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन ने इस बाबत सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को सिख फॉर जस्टिस की ओर से मिली इस धमकी की सूचना दी है।

नयी दिल्ली( ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

प्रतिबंधित खालिस्तानी आतंकी संगठन सिख फॉर जस्टिस ने फिरोजपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला रोकने की जिम्मेदारी ली है। सुप्रीम कोर्ट के लगभग 35 वकीलों को खालिस्तान समर्थकों की ओर से धमकी मिली है। सिख फॉर जस्टिस की ओर से इंग्लैंड के नंबर से आए ऑटोमेटेड फोन कॉल के जरिए ये धमकी दी गई है। कॉल की ऑडियो रिकॉर्डिंग से ये खुलासा हुआ कि कॉल करने वाले ने कहा है कि किसानों और पंजाब के सिखों के खिलाफ दर्ज मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट, पीएम मोदी की मदद न करे। आपको याद रहना चाहिए कि सिख दंगों और नरसंहार में अब तक भी एक दोषी को भी सजा नहीं मिली।

धमकी भरी क्लिप मिलने की बात 

करीब दर्जन भर वकीलों ने दावा किया है कि उनको धमकी भरी क्लिप मिली है। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन ने इस बाबत सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को सिख फॉर जस्टिस की ओर से मिली इस धमकी की सूचना दी है।

26 जनवरी को इंडिया गेट और लाल किले पर नाकेबंदी करने के बारे में भी ट्वीट 

इधर, आज ही सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) संगठन से जुड़े कुछ ट्विटर हैंडल 26 जनवरी को इंडिया गेट और लाल किले पर नाकेबंदी करने के बारे में ट्वीट कर रहे हैं। वे भारतीय संविधान और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ नाकेबंदी के आयोजन के लिए 10 लाख डॉलर के फंड की घोषणा कर रहे हैं।

26 जनवरी को खालिस्तानी झंडा लहराने को लेकर बजट का ऐलान

देशभर में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा और उससे पहले एक बार फिर भारत विरोधी ताकतों ने साजिश शुरू कर दी है। खालिस्तान समर्थक ग्रुप सिख फॉर जस्टिस की ओर से नई धमकी दी गई है जिसमें भारत में तिरंगे झंडे की जगह खालिस्तानी झंडे को लहराने को लेकर 1 मिलियन डॉलर का बजट बनाने का दावा किया गया है ।

तिरंगे के खिलाफ रची साजिश

सिख फॉर जस्टिस के चीफ गुरपतवंत सिंह पन्नू ने 26 जनवरी को लेकर इस बात का ऐलान किया है। साथ ही वीडियो समेत सोशल मीडिया पर प्रो खालिस्तानी ग्रुप पोस्टर कैंपेन चला रहा है।  दिल्ली के लोगों को 26 जनवरी को घरों में रहने, खालिस्तानी झंडे को फहराने और तिरंगे झंडे को रोकने को लेकर 1 मिलियन डॉलर के बजट का ऐलान किया गया है।

गिरफ्तारी की कोशिश में एजेंसियां

आंदोलन के समय जान गंवाने वाले किसानों की दलील देकर यह धमकी दी गई है. गुरपतवंत सिंह पन्नू विदेश में बैठकर आए दिन वीडियो के जरिए धमकी देता रहता है। फिलहाल सुरक्षा एजेंसियां इसकी गिरफ्तारी के लिए भी कोशिश कर रही हैं। वह सोशल मीडिया के जरिए भारत के खिलाफ नफरत फैलाने की साजिश भी करता है। पन्नू की ताजा धमकी के बाद तमाम सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट मोड में हैं। साथ ही 26 जनवरी की वजह से राजधानी दिल्ली में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

मन के आइने के पीछे क्या है?

मन को दर्पण कहा जाता है। लेकिन इस दर्पण के दूसरी तरफ क्या है? आज के स्पाॅट में सद्‌गुरु यही बता रहे हैं, साथ ही यह भी कि आखिर कैसे जाएं आइने के दूसरी तरफ।

एक अनुभव के रूप में समय हम सभी के लिए प्रासंगिक है क्योंकि हम सभी मरणशील हैं। शरीर, मन और भावनाओं के संदर्भ में आप खुद को जो भी समझते हैं, वह सब बस आपकी याद्दाश्त की उपज है। स्मृति के हर स्तर को चाहे वह विकासपरक हो, आनुवंशिक हो, चेतन हो, अवचेतन हो या अचेतन हो, समय के पैमाने से नापा जा सकता है। एक तरह से देखें तो सौरमंडल की भी अपनी स्मृति होती है, जो हर शरीर में प्रतिबिंबित होती है चाहे वह चेतन हो या अचेतन। इस तंत्र ने हर चीज को उसकी संपूर्णता में गढ़ा है।

चेतन होने का अर्थ है समय से परे जाना

अगर आप अपनी शारीरिक या मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं में पूरी तरह से डूबे हुए हैं, तो आप बस समय का प्रतिफल हैं। समय का प्रतिफल होने का मतलब है, बार-बार दुहराया जाने वाला होना, जिसमें आपकी वास्तविक प्रकृति कभी अभिव्यक्त नहीं हो पाएगी। यही वजह है कि आदियोगी के समय से हम चेतना की बात कर रहे हैं।

आपको याद रखना है कि आपकी कोई एक्सपायरी डेट भी है। ऐसे

में कोशिश करें कि अगला पल, अगला दिन, अगला साल बिना जीवन

को जाने न गुजरे। आप जीवन को भोजन, पानी, प्रेम या

मजे के जरिये नहीं जान सकते।

चेतना का अर्थ है समय के चक्रों से परे जाना या ऊपर उठना। आप बाहरी दुनिया के प्रति जागरूक हो सकते हैं, लेकिन आप इस बात को लेकर जागरूक नहीं हैं कि आप एक जीवन के रूप में यहां हैं। आप इस दुनिया व इसके लोगों का अनुभव तो करते हैं, लेकिन आपको खुद का कोई अनुभव नहीं है।

आपका मन और शरीर इस दुनिया और इसके लोगों की देन है। आपकी वास्तविक प्रकृति, आपके अनुभव में है ही नहीं, क्योंकि यह मन के दूसरी तरफ है। एक तरह से आपका मन दर्पण की तरह है। हो सकता है कि यह एक विकृत दर्पण हो, लेकिन फिर भी है तो दर्पण ही। आप दुनिया को देखते हैं, क्योंकि यह आपके मन में प्रतिबिंबित होती है। लेकिन मन खुद को कभी प्रतिबिंबित नहीं करता। ‘खुद’ से मेरा मतलब आपके शरीर या विचारों से नहीं है। आप अपने विचारों और भावनाओं को देख सकते हैं, उनका अवलोकन कर सकते हैं, लेकिन आप खुद का अवलोकन नहीं कर सकते, आत्म दर्शन नहीं कर सकते। आपके अस्तित्व को नहीं देखा जा सकता, इसे केवल महसूस किया जा सकता है। मन आपके आसपास की दुनिया को तो प्रतिबिंबित कर रहा है, लेकिन खुद को एक जीवन के रूप में अनुभव नहीं कर पा रहा है। इस दुनिया में अभी आपके लिए सबसे अहम चीज यह है कि आप यहां हैं।

जीवन का सार आईने की दूसरी तरफ है

अगर आपको खुद का कोई अनुभव नहीं है, अगर आपने जीवन को गहराई में जाकर स्पर्श नहीं किया है, तो अपने स्रोत का अनुभव करने का तो कोई सवाल ही नहीं है। आपने क्लाइडोस्कोप देखा है न? तो ज्यादातर लोग बस क्लाइडोस्कोप की तरह जीवन का अनुभव करते हैं, जो मन के आईने पर घटित हो रही हैं। वे लगातार अपनी स्मृति की खुदाई करने में व्यस्त रहते हैं। इस तरह वे कभी खुद को खुश करते हैं तो कभी दुखी करते हैं। आनंद हो या कश्ट, उसका स्रोत वही है, जो मन में घटित हो रहा है।

मन के आईने में जो कुछ भी हो रहा है, वह आपको जीवन भर या उससे भी ज्यादा समय तक उलझाए रखता है। वही विचार, वही भाव बार बार आते रहते हैं। आपको याद रखना है कि आपकी कोई एक्सपायरी डेट भी है। ऐसे में कोशिश करें कि अगला पल, अगला दिन, अगला साल बिना जीवन को जाने न गुजरे। आप जीवन को भोजन, पानी, प्रेम या मजे के जरिये नहीं जान सकते। उसे जानने का एकमात्र तरीका यही है कि आप आईने के दूसरी तरफ देखें। आईने के इस तरफ तो आपको केवल नाटक दिखाई देगा, जीवन का सार आपको नहीं मिलने वाला।

यह सब करने के कई तरीके हैं। एक आसान सा तरीका यह है कि आप ईशा क्रिया करें। जब आप कहते हैं कि मैं शरीर नहीं हूं, जब आप कहते हैं कि मैं मन नहीं हूं, तो असल में आप यह कह रहे होते हैं कि मैं स्मृति की उपज नहीं हूं। मैं तमाम चीजों का ढेर नहीं हूं। मैं निश्चित रूप से उससे कहीं ज्यादा हूं। आपकी जीवंतता मूल स्रोत से आती है, जो आपके मन के आईने के दूसरी तरफ है।

अनुभव आत्म तत्व पैदा करता है

मैं चाहता हूं कि आप लगातार कोशिशें करें। आप अभी जहां भी हैं, अपनी आंखें बंद करें और देखें कि क्या आप वाकई यहां हैं। विचार और भाव वहां है, शरीर वहां है, लेकिन क्या आप वहां हैं ? इसका अनुभव करने के लिए आप कुछ आसान से तरीके अपना सकते हैं। सदियों से ऐसी परंपरा रही है कि जो कोई भी आध्यात्मिक होना चाहता है, वह लंबे समय के लिए भोजन त्याग देता है।

आपको याद रखना है कि आपकी कोई एक्सपायरी डेट भी है। ऐसे में कोशिश करें कि अगला पल, अगला दिन, अगला साल बिना जीवन को जाने न गुजरे। आप जीवन को भोजन, पानी, प्रेम या मजे के जरिये नहीं जान सकते।

इसकी वजह खुद को तड़पाना नहीं है। जब आप वास्तव में भूखे हैं और आप बैठ जाएं तो आप महसूस करेंगे कि आपके और आपके शरीर के बीच में एक तरह का भेद है। इसके बाद जब आप भोजन का पहला निवाला खाते हैं, तो आपको एक सुखद अहसास होता है, जो आपके पूरे शरीर में फैल जाता है। इसी तरह अगर आप बहुत प्यासे हैं और आपको पानी का एक गिलास मिल जाए तो आपका पूरा शरीर प्रफुल्लित हो उठता है।

इस सुखद अहसास को महसूस करें। यह कोई पेट भरने या प्यास बुझने का मामला नहीं है, यह अनुभव की सुखदता है, जो आपके भीतर से पैदा होती है। मन अनुभव का चुनाव तो करता है, लेकिन यह अनुभव का कारण नहीं बन सकता। आपके भीतर कुछ होता है, जिसे आप ‘आत्म’ कहते हैं, यही अनुभव पैदा करता है।

कैसे जाएं आईने के दूसरी तरफ?

इस संदर्भ में दो पहलू हैं – संवेदना ओर अनुभूति। इंद्रिय सुख असली चीज नहीं है क्योंकि इंद्रियां अनुभव पैदा नहीं करतीं।

आप अभी जहां भी हैं, अपनी आंखें बंद करें और देखें

कि क्या आप वाकई यहां हैं। विचार और भाव वहां है,

शरीर वहां है, लेकिन क्या आप वहां हैं ? इसका अनुभव करने के लिए

आप कुछ आसान से तरीके अपना सकते हैं।

मान लीजिए आपने एक गिलास पानी पिया। प्यास बुझ रही है, शरीर को ठंडक मिल रही है, लेकिन आप सिर्फ इसी संवेदना को महसूस न करें। अहम है उस सुखद अहसास को महसूस करना, जो एक गहरे स्तर पर घटित होता है।

ऐसी चीज को चुनें जो आपके भीतर सुखदता पैदा करती है, चाहे वह हवा हो, सांस हो, पानी हो, भोजन हो या ऐसी ही कोई और चीज। भले ही कुछ सेकंड के लिए सही, सुखदता के इस अनुभव के साथ ठहरें और इस दौरान इस सुखदता को बिना किसी विचार या भाव के महसूस करें। धीरे-धीरे आप आईने की दूसरी तरफ की ओर जाने लगेंगे। ज्ब वक्त गुजरता है तब आप अपनी स्मृति और वक्त की उपज होते हैं। संध्या या रूपांतरण के समय एक खास किस्म का अंतराल आता है, एक खास शून्यता पैदा होती है, जिससे परे जाना है। संध्या काल ऐसा ही मौका है। आपके अपने सिस्टम के लिए सबसे अहम रूपांतरण का जो समय होता है वो है – जब आप सोते हैं और जब आप जागते हैं। इस रूपांतरण में एक छोटा सा अंतराल होता है। हम इस अंतराल का इस्तेमाल करना चाहते हैं।

जब आप जागते हैं तो एक खास किस्म का सुख आपके पूरे शरीर में फैल जाता है। अगर आप उस पल और पूरे दिन उसी सुखद अहसास के साथ रहें, आपका मन सुख में डुबा रहेगा। अगर आपका मन आपके लिए सुखद चीजें करता है, तो आप भी अपने आस पास की दुनिया के लिए सुखद चीजें करते रहेंगे। ठीक इसी तरह से जब आप सोने वाले होते हैं, सुख आपके पूरे शरीर में फैलता है। अगर आप इस सुखद अहसास को गौर से महसूस करें तो आप देखेंगे कि आपकी नींद की क्वालिटी शानदार हो गई है, आपको सपने आने बंद हो गए हैं क्योंकि आप आईने की दूसरी तरफ हैं।

ज्यादातर लोग केवल इंद्रिय सुख को ही जानते हैं। वे उस सुख के बारे में जागरूक नहीं होते, जो उनके भीतर कहीं गहरे में है। आमतौर पर ध्यान आदि करने के लिए आंखें बंद करके बैठने को बोला जाता है। ऐसा इसीलिए है कि आईने को बिंब नहीं मिले, उसकी सतह पर पड़ने वाली बातें कम हो जाती हैं। अगर लंबे समय तक ऐसी कोई फालतू बातें नहीं मिलेंगी, तो मन किसी भी चीज को प्रतिबिंबित नहीं करेगा। फिर आईने की दूसरी तरफ जाना आसान होगा। आप अभी जो महसूस कर रहे हैं, वह केवल प्रतिबिंब ही है। वास्तविकता तो आइने के दूसरी तरफ है। जो दूसरा पक्ष है, वह वक्त और स्थान का उपज नहीं है। सब कुछ अभी और यहीं है। पूरा का पूरा जगत यहीं है, यह एक आसान सा तरीका है, लेकिन चूंकि आप अपने मनोवैज्ञानिक नाटक में ही व्यस्त हैं, आप जीवन को पूरी तरह से खो देते हैं। चूंकि जीवन को खो दिया जाता है, इसलिए वह लोगों को बार-बार के चक्रों से दंडित करता रहता है।

जीवन को शक्तिशाली तरीके से अनुभव करें

दुनिया में सबसे अहम यह है कि आप जीवन का एक शक्तिशाली अनुभव लें। अभी आप जीवन को छोड़कर सब कुछ अच्छी तरह से जानते हैं। हर आती जाती सांस के साथ, हर कदम के साथ, आप बैठते हैं तब, आप खाते हैं तब, आप पीते हैं तब, आपके पास एक तरह की सुखदता को महसूस करने का मौका होता है, जो आपके पूरे शरीर में फैली होती है। इस सुखदता को इंद्रियों के स्तर पर नहीं, बल्कि गहराई में जाकर महसूस करने की जरूरत है।

ज्यादातर लोग इस अनुभव के प्रति जागरूक नहीं होते क्योंकि उनका मनोवैज्ञानिक नाटक, उनके भाव, उनके विचार इस पर पूरी तरह से हावी हो जाते हैं। हम जो शक्तिशाली क्रियाएं आपको बताते हैं, उनका मकसद आपको मन के आईने की दूसरी तरफ ले जाना होता है जिससे आप जीवन का स्वाद ले सकें। ऐसा जीवन समय की देन नहीं है, वह स्मृति की भी देन नहीं है और न ही कुछ चीजों का संग्रह है। वह जीवन का आधार है। जीवन और जीवन के स्रोत में कोई फर्क नहीं है। जीवन ही जीवन का स्रोत है। इस जगत में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां इस जगत और जगतकर्ता का अस्तित्व अलग अलग हो। जीवन और ईश्वर के बीच का फर्क सिर्फ इंसानी मन में होता है।

जीवन किसी भी कष्ट को जानता ही नहीं

आप जिस भी कष्ट से गुजर रहे हैं, वह आपका खुद का बनाया हुआ है। गहराई में मौजूद जीवन परेशानी जैसी किसी चीज को जानता ही नहीं है। परेशानी इंद्रियों के स्तर पर हो सकती है। कई बार यह मन के स्तर पर होता है।

आप जिस भी कश्ट से गुजर रहे हैं, वह

आपका खुद का बनाया हुआ है। गहराई में मौजूद जीवन

परेशानी जैसी किसी चीज को जानता ही नहीं है। परेशानी इंद्रियों के स्तर पर हो सकती है।

कई बार यह मन के स्तर पर होता है।

एक बार अगर आप आईने की दूसरी तरफ चले जाएं, तो जो कुछ भी होता है, वे सब ऊपरी तरंगें हैं। जब आप इस बात को अनुभव कर लेते हैं तो आप एक जीवन के भक्त बन जाते हैं। आज दुनिया में इसी चीज की जरूरत है। ईश्वर, जो दूसरों का जीवन लेने को आतुर है, उसके भक्त बनने के बजाय लोगों को जीवन का भक्त बनना चाहिए, जो इस जगत के स्रोत को मूर्त रूप देता है। अगर आप ध्यान दें, आप पाएंगे कि मन एक विशाल और रंगीन ब्यौरा बना रहा है। जीवन भी लगातार अपना खुद का ब्यौरा तैयार कर रहा है। आपको उसके संपर्क में आने की जरूरत है। इसे जानने के लिए जीवंतता सबसे अहम पहलू है। अगर आप एक पल पर अधिकार कर लें, तो आप इस पूरे जगत पर अधिकार कर लेते हैं। अगर आप एक पल को हासिल कर लें तो पूरा जगत आपके पहलू में आ जाता है।

”मैं वापस आऊँगा और हिंदू धर्म फिर से लौटेगा।” : पुजारी सबदापालन (1478)

भारत और इंडोनेशिया के लिए बुधवार का दिन बेहद खास रहा। इस दिन इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णों की छोटी बेटी सुकमावती ने देश के हिंदू प्रांत बाली में एक समारोह के दौरान इस्लाम से हिंदू धर्म अपना लिया। मुस्लिम बहुल देश में सुकर्णो की तीसरी बेटी दीया मुटियारा सुकमावती का यह आधिकारिक धर्मांतरण 26 अक्तूबर को बुलेलेंग जिले के सोइकरनो केंद्र में सुधी वदानी समारोह के दौरान हुआ। धर्मांतरण समारोह सुकमावती के 70वें जन्मदिन पर मंगलवार को कड़ी सुरक्षा के बीच हुआ। सुकमावती की दादी इदा अयू नयोमान राई श्रीमबेन की हिंदू धर्म में गहरी रुचि है, इसलिए सुकमावती ने हिंदू बनने का फैसला किया।

धर्म संस्कृति डेस्क, बाली/भारत:

इंडोनेशिया के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति सुकर्णो की बेटी और पाँचवें राष्ट्रपति मेगावती सोकर्णोपुत्री की बहन सुकमावती सुकर्णोपुत्री ने आज इस्लाम का त्याग कर दिया है और हिंदू धर्म को अपना लिया है। इसके साथ ही इंडोनेशिया में 500 साल पुरानी उस भविष्यवाणी के सच साबित होने की बात की जाने लगी है, जिसमें कहा गया था, ”मैं वापस आऊँगा और हिंदू धर्म फिर से लौटेगा।”

सुकमावती ने कड़ी सुरक्षा के बीच अपने 70वें जन्मदिन पर हिंदू धर्म को आत्मसात किया है। कोविड महामारी के कारण सुधी वदानी रस्म के दौरान लगभग 50 मेहमान ही थे, उसमें से भी अधिकतर परिवार के सदस्य ही थे। 

इसके लिए बाली में सुकर्णो सेंटर हेरिटेज एरिया में एक पारंपरिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। सुकमावती की दादी न्योमन राय सिरिम्बेन हिंदू बनने के इस फैसले के लिए काफी हद तक वजह बनी हैं। उनकी दादी न्योमन राय सिरिम्बेन भी एक हिंदू हैं, जो बाली की रहने वाली थीं। सूत्रों की माने तो सुकमावाती सुकर्णोपुत्री के साथ साथ 30,000 और लोगों (जन साधारण) ने भी हिन्दू धर्म को आत्मसात किया

उल्लेखनीय है कि आज इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल देश है। एक समय में यहाँ हिंदू धर्म का मजबूत प्रभाव था। यह पहली शताब्दी की शुरुआत में जावा और सुमात्रा के द्वीपों में फैल गया और 15 वीं शताब्दी तक समृद्ध हुआ। हालाँकि, यहाँ इस्लाम के आगमन के बाद हिंदुओं की संख्या घटने लगी, जिससे देश में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा दे दिया गया। आज भी इंडोनेशिया के हिंदू अपने पूर्वजों विशेष रूप से राजा जयभय और पुजारी सबदापालन की भविष्यवाणियों पर विश्वास रखते हैं।

सबदापालन इंडोनेशिया के सबसे शक्तिशाली मजापहित साम्राज्य के राजा ब्रविजय पाँचवीं के दरबार में एक सम्मानीय पुजारी थे। जब देश का इस्लामीकरण होना शुरू हुआ और 1478 में ब्रविजय पाँचवीं इस्लाम में परिवर्तित हो गए, तब सबदापालन ने राजा को शाप दिया था। उन्होंने देश में प्राकृतिक आपदा आने और राजनीतिक भ्रष्टाचार का शाप देते हुए 500 साल बाद यहाँ लौटने की कसम खाई थी। साथ ही पुजारी ने इस्लाम के चंगुल से इस देश को मुक्त करने और फिर से यहाँ हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या बढ़ेगी, ऐसी भविष्यवाणी की थी।

17 Scientists from PU among World Top 2% Scientists

Chandigarh October 23, 2021

 As many as 17 faculty scientists from various disciplines from Panjab University out of 2042 Indian Scientists are included in that elite list of world top 2% scientists as per the Stanford University, Stanford, California, USA  which provided an updated analysis that uses citations from Scopus with data freeze as of  Dec 31, 2020, assessing scientists for citation impact during the calendar year 2020 that was published on October 19, 2021 in PLOS Biology, a peer reviewed high impact international journal available at https://elsevier.digitalcommonsdata.com/datasets/btchxktzyw/3. . There was great interest in the databases of standardized citation metrics across all scientists and scientific disciplines, and many scientists urged the authors to provide updates of the databases.

Data include all scientists who are among the top 100,000 across all fields according to the composite citation index. Composite citation index was calculated with a validated formula and machine learning approach was used to extract the data from Scopus programmed with a specific set of rules like citations, h-index, authorship status etc.On the basis of citations and papers, the scientists are classified into 22 scientific fields and 176 sub-fields. Selection of the scientists in the list is based on the c-score criteria or a percentile rank of 2% or above, based upon the various publication metrics, including, Scopus H-index, co-authorship adjusted HM-index, citations to papers in different authorship positions and a composite indicator.

The recognition gives great satisfaction to all scientists working in varied research areas and motivates them to keep moving ahead despite all odds and financial limitations. All faculty members are putting their heart and soul in keeping the prestige of Panjab University as high as possible. Sincerely regular and joint efforts made by all faculty members maintain high research standards across all streams in Panjab University. Research Scholars and non-teaching staff also play key roles in attaining various research and academic goals.

Two lists have been created for the top 2% scientists. The first list which is based upon the Career-long data contains PU’s 17 scientists. Six out of these scientists belong to University Institute of Pharmaceutical Sciences (UIPS), three each are from Departments of Chemistry and Physics, while one each is from departments of Anthropology, Botany, Environmental Studies, Mathematics and UICET.

The second list which is based upon a Single-year impact (year 2020) has 30 scientists from PU. Almost all the scientists from the first list have made it to the second list also.

Prof Raj Kumar, Vice Chancellor, Panjab University said that it is indeed a moment to feel proud for the University that as many as 30 faculty members have made it to the coveted list of Top 2% Scientists of the World.It is a matter of great honour and prestige for the whole scientific fraternity of Panjab University, he added.

Herein, we share the credentials of the 17 scientists who were selected on the basis of career-long performance. 

चीन के उकसावे पर ताइवान का जवाब

1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाले कॉमिंगतांग सरकार का तख्तापलट कर दिया था। जिसके बाद चियांग काई शेक ने ताइवान द्वीप में जाकर अपनी सरकार का गठन किया। उस समय कम्यूनिस्ट पार्टी के पास मजबूत नौसेना नहीं थी। इसलिए उन्होंने समुद्र पार कर इस द्वीप पर अधिकार नहीं किया। तब से ताइवान खुद को रिपब्लिक ऑफ चाइना मानता है।

एशिया डेस्क:

ताइवान से चल रही तनातनी के बीच चीन ने तीसरे विश्व युद्ध की धमकी दी है। चीन ने कहा है कि तीसरा विश्व युद्ध किसी भी समय छिड़ सकता है। ग्लोबल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अमेरिका और ताइवान की मिलीभगत के कारण हालात काफी बिगड़ चुके हैं और बातचीत के रास्ते खत्म हो चुके हैं। यह रिपोर्ट ऐसे समय पर सामने आई है जब चीन ताइवान पर काफी आक्रामक रुख अपनाए हुए है। मंगलवार को चीन ने ताइवान के वायु क्षेत्र में दर्जनों लड़ाकू विमान भेजे थे। बीते एक अक्तूबर से अबतक चीन करीब 150 लड़ाकू विमानों को ताइवान के वायु क्षेत्र में भेज चुका है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन के लोग अमेरिका और ताइवान पर चौतरफा हमला करने के लिए तैयार हैं। 

ताइवान ने कहा- अपनी आजादी और लोकतंत्र के लिए लड़ते रहेंगे 

चीन की ओर से ताइवान की सीमा में लड़ाकू विमान भेजे जाने के बाद वहां की राष्ट्रपति ने शी जिनपिंग से आग्रह किया था वे इस तरह की कार्रवाई पर रोक लगाएं। इसके बाद भी चीन की कार्रवाई न रुकने पर ताइवान ने भी साफ कर दिया है कि अपनी आजादी और लोकतंत्र की रक्षा के लिए वे पीछे नहीं हटेंगे। उधर, चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है। उसने यहां तक कह दिया है कि अगर हथियारों के दम पर ताइवान पर कब्जा करना पड़ा, वह उसके लिए भी तैयार है। 

ग्लोबल टाइम्स के संपादक ने उगला जहर
उसी दिन चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के प्रधान संपादक हू शिजिन ने वॉल स्ट्रीट जर्नल की स्टोरी को रिट्वीट किया। उन्होंने सवाल किया कि अमेरिकी सैनिकों की संख्या इतनी कम क्यों थी और पहले इसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया था। हू शिजिन ने सुझाव दिया कि अमेरिका आधिकारिक वर्दी में 240 सैनिकों को भेजे और ताइवान में उनकी उपस्थिति और स्थान की घोषणा करे। ग्लोबल टाइम्स के संपादक यहीं नहीं रूके। उन्होंने आगे लिखा कि फिर देखें कि क्या चीन की वायु सेना उन अमेरिकी आक्रमणकारियों को खत्म करने के लिए टॉरगेटेड हवाई हमला करेगी। इतना ही नहीं, दो दिन पहले भी हू शिजिन ने ताइवानी रक्षा मंत्री के 2025 तक चीन के हमला करने वाले बयान पर टिप्पणी की थी। उन्होंने वॉल स्ट्रीट जर्नल के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा था कि PLA के पास अब एक झटके में ताइवान को आजाद कराने की क्षमता पहले से ही है, 2025 तक इंतजार क्यों करना?

ताइवानी सेना को ट्रेनिंग दे रहे अमेरिकी सैनिक
गुरुवार को वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से बताया था कि दो दर्जन से अधिक अमेरिकी स्पेशल ऑपरेशन सोल्जर्स और सपोर्ट ट्रूप्स ताइवान में तैनात हैं। वे ताइवानी सेना के जवानों को सैन्य प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। इसके अलावा, यूएस मरीन कमांडो ताइवान के नौसैनिक बलों के साथ स्माल बोट ट्रेनिंग भी कर रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि अमेरिकी सेना ताइवान में एक साल से अधिक समय से है।

ताइवान के रक्षा मंत्री ने कहा चीन कर सकता है हमला 

न की बढ़ती सैन्य क्षमता को देखते हुए ताइवान ने चिंता जाहिर की है। चीन के रक्षा मंत्री चीऊ कुओ-चेंग ने कहा कि चीन 2025 तक पूरी क्षमता के साथ उस पर हमला कर सकता है। बुधवार को संसद में सांसदों के कठिन सवालों का जवाब देते हुए रक्षामंत्री ने कहा कि पिछले 40 सालों में यह सबसे बुरी स्थिति है। जब से वह सेना में भर्ती हुए हैं, ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। उन्होंने कहा कि चीन के पास पहले से इतने हथियार हैं, जिससे वह ताइवान को हथियारों के दम पर कब्जे में ले सकता है।

फ्रांस ने इस्लामिक कट्टरता के खिलाफ तेज़ की मुहिम, 6 मस्जिदों में लगाया ताला

फ्रांस ने देश में बढ़ रहे इस्लामिक आतंकवाद को खत्म करने के लिए एक नए कानून को मंजूरी दी है। इस कानून के तहत अब पुलिस को अधिकार होगा कि वह फ्रांस के मस्जिदों और मदरसों को जब चाहे तब बंद कर सकती है। इसके अलावा मुस्लिमों के एक से ज्यादा विवाह या फिर जबरन विवाह करने को अपराध घोषित किया जाएगा। इस कानून को फ्रांस की संसद के निचले सदन ने धर्मनिरपेक्ष राज्य में धार्मिक कट्टरवाद को खत्म करने के लिए भारी बहुमत से मंजूरी दी है।

साभार नेट :

फ्रांस सरकार ने शिक्षक की हत्या के बाद करीब 120 लोगों के घरों की तलाशी ली। उस संगठन को खत्‍म कर दिया जिस पर इस्‍लामिक गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा, सरकार अब आतंकियों को मिलने वाली वित्‍तीय सहायता के बारे में जानकारी हासिल कर ली है। फ्रांस साल 2015 से आतंकवाद को झेल रहा है. हालांकि विदेशी मामलों के विश्‍लेषकों की मानें तो इस बार जो भी हो रहा है, वह पहले कभी नहीं हुआ।

वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध जिस एकजुटता का दुनिया भर से आह्वान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार अंतराष्ट्रीय मंचों से किया है, उस पर सकारात्मक रूप से तमाम देशों के साथ फ्रांस ने भी अपने प्रभावी कदम बढ़ा दिए हैं । फ्रांस के आंतरिक मामलों के मंत्री (गृहमंत्री) के अनुसार अब फ्रांस सीधे आतंकवाद की जड़ों पर वार करेगा।

फ्रांसीसी मंत्री ने ये बयान एक स्थानीय अखबार ले फ़िगारो को दिए हैं, जिसने दुनिया भर में इबादतगाहों को ले कर सतर्कता और सन्देह की नई बहस छेड़ दी है। फ्रांसीसी सरकार की आंतरिक जाँच में मज़हबी चरमपंथ को बढ़ावा देने में वहाँ के इबादतगाहों की प्रमुख भूमिका सामने आ रही है।

आंतरिक मामलों के मंत्री गेराल्ड डार्मैनिन (Gerald Darmanin) के अनुसार अब तक 89 इबादतगाहों में से लगभग एक तिहाई की जाँच की जा चुकी है। इन 89 इबादतगाहों में चरमपंथ को बढ़ावा देने की शिकायत मिली थी। फ्रांस सरकार की खुफिया जाँच रिपोर्ट में इन सभी को कट्टरपंथ का केंद्र मान कर चिन्हित किया गया था, जिन पर जल्द ही कड़ी कार्यवाही संभावित है।

इस मामले में तत्काल ही 6 इबादतगाहों (मस्जिदों) को बंद करने के शासकीय आदेश जारी कर दिए गए हैं। इसी के साथ फ्रांस की सुरक्षा व खुफिया एजेंसी इन चरमपंथी केंद्रों से जुड़े अन्य प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कट्टरपंथी तत्वों की तलाश कर रही हैं।

कभी वामपंथी शासकों के प्रभाव में लंबे समय तक शासित रहे फ्रांस ने ईराक-ISIS युद्ध के दौरान तमाम सीरियाई व इराकियों को मानवता के आधार पर शरण दी थी परंतु उसके बाद संसार के सबसे सुंदर व पर्यटन योग्य देशों में शामिल रहे फ्रांस में आतंकी हमलों की अंतहीन श्रृंखला शुरू हो गई ।

इस पूरे मामले में उच्चस्तरीय जाँच कर रहीं फ्रांसीसी जाँच एजेंसियों ने इस्लामिक प्रकाशकों Nawa और LDNA नाम से कुख्यात ब्लैक अफ्रीकन डिफेंस लीग पर भी कठोर कार्रवाई करने के लिए कहा है। यहाँ यह ध्यान रखने योग्य है कि ब्लैक अफ्रीकन डिफेंस लीग ने जून 2020 में फ्रांस की राजधानी पेरिस की सड़कों पर उतर कर अमेरिकी दूतावास के आगे सरकार व पुलिस विरोधी रैली की थी, जिसमें उसने सैकड़ो की संख्या में भीड़ जुटा कर शक्ति प्रदर्शन किया था ।

ब्लैक अफ्रीकन डिफेंस लीग से ही संबन्धित संस्था ब्लैक वीमेन डिफेंस लीग है, जिसने अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप शासन के अंतिम समय में हुए नस्लीय दंगो में पूरे संसार में अमेरिका की छवि गिराने और आखिरकार ट्रम्प की भी हार में एक अहम रोल अदा किया था।

फ्रांसीसी मंत्री ने जिस दूसरे संदिग्ध समूह Nawa को उल्लेखित किया, वो फ्रांस में यहूदियों के प्रति घृणा का भाव फैलाने, उनको देश से निकालने की मुहिम के साथ समलैंगिक लोगों को पत्थर से मार-मार कर जान से मार डालने को बढ़ावा देने का समर्थन करता है। कुल मिला कर दूसरे शब्दों में ये भी कहा जा सकता है कि Nawa वहाँ की सरकार को अस्थिर करने और वहाँ के मूल्यों को समाप्त करने की दिशा में कार्य कर रहा है। इस समूह का मुख्य प्रभाव फ्रांस के दक्षिणी क्षेत्र में अधिक है, जो फिलहाल पूर्ण रूप से शांत नहीं है।

इस समूहों के साथ फ्रांसीसी मंत्री ने आने वाले एक वर्ष में 10 अन्य चरमपंथी व विघटनवादी समूहों पर भी कार्रवाई की बात कही है, जो फ्रांस विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं या रहे हैं। आपको बता दें कि राष्ट्रहित में उठे किसी भी कठोर कदम को इस्लामोफोबिया बताने वालों को गत सप्ताह झटका देते हुए फ्रांस की सर्वोच्च प्रशासनिक अदालत, काउंसिल ऑफ स्टेट ने मज़हबी चरमपंथ के विरुद्ध फ्रांस की सरकार के एक्शन को स्वीकृति प्रदान कर दी थी।

यह कार्रवाई अक्टूबर 2020 में एक शिक्षक सैमुअल पेटी की निर्मम हत्या के बाद शुरू की गई थी, जिन्हें कक्षा के दौरान चार्ली हेब्दो पत्रिका द्वारा प्रकाशित पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाने का बहाना बना कर मार डाला गया था ।

फ्रांस की बहुसंख्यक जनता भी सरकार के कदम के साथ खड़ी होती दिखाई दे रही है। फ्रांस का बड़ा वर्ग शरणार्थी के नाम पर आतंकी स्वरूप में आ चुके घुसपैठियों को देश से बाहर खदेड़ने की भी मुहिम चला रहा है। इसी अभियान के तहत सोशल मीडिया पर No More Refugees कैम्पेन भी चलाया जा रहा है।

Webinar on “AFGHANISTAN: THE TALIBAN TAKEOVER, REGIONAL POWERS AND IMPLICATIONS FOR INDIA” by Dr. Shalini Chawla

Chandigarh September 22, 2021

Webinar on “AFGHANISTAN: THE TALIBAN TAKEOVER, REGIONAL POWERS AND IMPLICATIONS FOR INDIA” by Dr. Shalini Chawla at the Department of Defence and National Security Studies.

The Department of Defence and National Security Studies, Panjab University, Chandigarh organized a special webinar on the topic “AFGHANISTAN: THE TALIBAN TAKEOVER, REGIONAL POWERS AND IMPLICATIONS FOR INDIA” by Dr. Shalini Chawla, a distinguished fellow and heads Pakistan and Afghanistan studies at the Centre for Air Power Studies (CAPS), New Delhi. She was a research scholar at the Institute for Defence Studies and Analyses, 1999-2002. She worked as a free-lance defence analyst from 2003-2005 in Colombo, Sri Lanka. She joined CAPS in 2006 and focus of her studies is Pakistan and Afghanistan.

Through this lecture, Dr. Chawla mainly wanted to draw attention to the challenges that India is going to face due to the Afghan crisis. She said that the agreement reached between the United States and the Taliban organization has many flaws and there is no concept of peace in it. The withdrawal of US troops from Afghanistan has posed many challenges and opportunities for regional powers such as Pakistan, Iran, China, Russia, and India. Talking about the implications for India, she said that at present the situation in the case of India is very unfavorable and it may face many more challenges in the near future. New Delhi does not recognize the Taliban as a governing authority in Afghanistan. As a friendly neighbor, India has always been concerned about peace and security in and around Afghanistan. That is why the Government of India supports all peace initiatives and engages with many stakeholders, including regional countries.

She further said that India is historically linked to Afghanistan, and it is its gateway to Central Asia. It has always wanted to protect the Afghan territory from Pakistan so that they cannot use it for any anti-India activities. But after the Taliban occupation of Afghanistan, India is now concerned about its commitment to the Afghan people. She is also apprehensive about the China-Pakistan alliance in Afghanistan. It fears that the soil of Afghanistan may be used by Pakistan for its anti-India terrorist activities.

She further said that regional powers like Pakistan and China are supporting the Taliban government for their strategic interests. Pakistan has already said that they will support an independent, democratic and sovereign Afghanistan, which they mean by a Taliban government ruling the Afghan people. Dr. Chawla stressed that Pakistani leaders always think that the Taliban will help them in the acquisition of Kashmir from India. That’s why they are providing the Taliban with equipment training and money to the best of their ability. Another hidden aim of Pakistan is that it wants to form a pro-Pakistan government in Afghanistan, which will help them resolve the border issues with Afghanistan and it will prevent the Pashtuns from demanding a separate Pashtunistan. She further said that since Pakistan’s own economy is in trouble, it is difficult to say how long Pakistan will support the Taliban with money and equipment. She said Pakistan would face international repercussions for its actions in Afghanistan.

While explaining China’s position in Afghanistan, Dr. Shalini highlighted that China always acts according to its security and strategic interests. Diplomatically, China has said that it is always ready to develop friendly and cooperative relations with Afghanistan and play a constructive role in Afghanistan’s peace and reconstruction. But its main objectives are: defending its borders and controlling the spread of extremism in Xinjiang, exploration of minerals in Afghanistan, and controlling regional expansionism. Apart from these, China’s main multilateral approach is to build three main alliances: Afghanistan-China-Pakistan, Afghanistan-Pakistan-Iran-China, and third is China-Pakistan-Afghanistan-Nepal. Like India, China also sees Afghanistan as a route to Central Asia. Dr. Chawla also focused on Russian and Iranian interests in the Afghan region. She said that with the Taliban’s takeover of Afghanistan, Russia is also concerned about its border security and influence in the region. Keeping its security interests in mind, Russia hosted a peace conference between the Afghan government and the Taliban in March 2021. But later when the Taliban controlled Afghan territory, Russian leaders also became concerned about the security challenges they would face in Central Asia and the Afghan region. Talking about Iranian interest in Afghanistan, Dr. Shalini said that Iran is portraying diplomatically that it is very concerned for the peace and security of Afghanistan but in reality, it is more concerned about the security of Afghan Shias. Decades of conflict have driven hundreds of thousands of Afghan refugees into Iran. Iran expects peace and stability there from the Taliban regime in Afghanistan and is looking for friendly relations with Afghanistan. Concluding her lecture, Dr. Chawla said that everything looks very pessimistic right now. Every state is looking after Afghanistan and acting according to its interest. Presently, the situation for India is not in its favor and the Pakistan-Afghanistan alliance is a big challenge, but India is still committed to help the Afghan people.

The lecture was attended by members of various faculty members, serving and retired armed officers pursuing various courses in the department, research scholars and students. The lecture was followed by a question answer session with the audience.