4-2 से फ्रांस ने फिफा 2018 अपने नाम किया


फ्रांस ने फाइनल में क्रोएशिया को 4-2 से पराजित किया. वो 1998 में पहली बार विश्व कप में फाइनल खेली थी और जीतने में सफल रही थी


 

रेफरी की अंतिम सीटी बजते ही फ्रांस जश्न में डूब गया. मैच के अंतिम पलों में ही बेंच पर बैठे उसके खिलाड़ी, कोच, सपोर्ट स्टाफ और फैंस जश्न में मूड में आ गए थे. फ्रांस ने रविवार को मास्को के लुज्निकी स्टेडियम में फीफा विश्व कप के 21वें संस्करण में एक बार फिर अपनी बादशाहत साबित कर दी. महत्वपूर्ण मौकों पर स्कोर करने की अपनी काबिलियत और भाग्य के दम पर उसने रोमांचक फाइनल में दमदार क्रोएशिया को 4-2 से हराकर दूसरी बार विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया.

 

फ्रांस ने इससे पहले 1998 में विश्व कप जीता था. तब उसके कप्तान डिडियर डेस्चैम्प्स थे जो अब टीम के कोच हैं. इस तरह से डेस्चैम्प्स खिलाड़ी और कोच के रूप में विश्व कप जीतने वाले तीसरे व्यक्ति बन गए हैं. उनसे पहले ब्राजील के मारियो जगालो और जर्मनी फ्रैंज बेकनबॉर ने यह उपलब्धि हासिल की थी.

फ्रांस ने 18वें मिनट में मारियो मांजुकिच के आत्मघाती गोल से बढ़त बनाई, लेकिन इवान पेरिसिच ने 28वें मिनट में बराबरी का गोल दाग दिया. फ्रांस को हालांकि जल्द ही पेनल्टी मिली जिसे एंटोनी ग्रीजमैन ने 38वें मिनट में गोल में बदला जिससे फ्रांस मध्यांतर तक 2-1 से आगे रहा.

पॉल पोग्बा ने 59वें मिनट में तीसरा गोल दागा, जबकि किलियन एम्बाप्पे ने 65वें मिनट में फ्रांस की बढ़त 4-1 कर दी. जब लग रहा था कि अब क्रोएशिया के हाथ से मौका निकल चुका है तब मांजुकिच ने 69वें मिनट में गोल करके उसकी उम्मीद जगाई. क्रोएशिया पहली बार फाइनल में पहुंचा था. उसने अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किए और अपने कौशल और चपलता से दर्शकों का दिल भी जीता, लेकिन आखिर में ज्लाटको डॉलिच  की टीम को उप विजेता बनकर ही संतोष करना पड़ा. निसंदेह क्रोएशिया ने बेहतर फुटबॉल खेली लेकिन फ्रांस ने अधिक प्रभावी और चतुराईपूर्ण खेल दिखाया. यही उसकी असली ताकत है जिसके दम पर वह 20 साल बाद फिर चैंपियन बनने में सफल रहा.

दोनों टीमें 4-2-3-1 के संयोजन के साथ मैदान पर उतरी. क्रोएशिया ने इंग्लैंड की खिलाफ जीत दर्ज करने वाली शुरुआती एकादश में बदलाव नहीं किया तो फ्रांसीसी कोच डेस्चैम्प्स ने अपनी रक्षापंक्ति को मजबूत करने पर ध्यान दिया. क्रोएशिया ने अच्छी शुरुआत और पहले हाफ में न सिर्फ गेंद पर अधिक कब्जा जमाए रखा, बल्कि इस बीच आक्रामक रणनीति भी अपनाए रखी. उसने दर्शकों में रोमांच भरा, जबकि फ्रांस ने अपने खेल से निराश किया. यह अलग बात है कि भाग्य फ्रांस के साथ था और वह बिना किसी खास प्रयास के दो गोल करने में सफल रहा.

मैच की महत्वपूर्ण बातें

फ्रांस के पास पहला मौका 18वें मिनट में मिला और वह इसी पर बढ़त बनाने में कामयाब रहा. फ्रांस को दायीं तरफ बॉक्स के करीब फ्री किक मिली. ग्रीजमैन का क्रास शॉट गोलकीपर डेनियल सुबासिच की तरफ बढ़ रहा था. लेकिन तभी मांजुकिच ने उस पर हेडर लगा दिया और गेंद गोल में घुस गई. इस तरह से मांजुकिच विश्व कप फाइनल में आत्मघाती गोल करने वाले पहले खिलाड़ी बन गए. यह वर्तमान विश्व कप का रिकॉर्ड 12वां आत्मघाती गोल है.

पेरिसिच ने हालांकि जल्द ही बराबरी का गोल करके क्रोएशियाई प्रशंसकों और मांजुकिच में जोश भरा. पेरिसिच का यह गोल दर्शनीय था जिसने लुज्निकी स्टेडियम में बैठे दर्शकों को रोमांचित करने में कसर नहीं छोड़ी. क्रोएशिया को फ्री किक मिली और फ्रांस इसके खतरे को नहीं टाल पाया. मांजुकिच और डोमागोज विडा के प्रयास से गेंद विंगर पेरिसिच को मिली. उन्होंने थोड़ा समय लिया और फिर बाएं पांव से शॉट जमाकर गेंद को गोल के हवाले कर दिया. फ्रांसीसी गोलकीपरी ह्यूगो लॉरिस के पास इसका कोई जवाब नहीं था.

लेकिन इसके तुरंत बाद पेरिसिच की गलती से फ्रांस को पेनल्टी मिल गई. बॉक्स के अंदर गेंद पेरिसिच के हाथ से लग गई. रेफरी ने वीएआर की मदद ली और फ्रांस को पेनल्टी दे दी. अनुभवी ग्रीजमैन ने उस पर गोल करने में कोई गलती नहीं की. यह 1974 के बाद विश्व कप में पहला अवसर है जबकि फाइनल में मध्यांतर से पहले तीन गोल हुए.

क्रोएशिया ने दूसरे हाफ में भी आक्रमण की रणनीति अपनाई और फ्रांस को दबाव में रखा. खेल के 48वें मिनट में लुका मोड्रिच ने एंटे रेबिच का गेंद थमाई, जिन्होंने गोल पर अच्छा शॉट जमाया. लेकिन लॉरिस ने बड़ी खूबसूरती से उसे बचा दिया.

लेकिन गोल करना महत्वपूर्ण होता है और इसमें फ्रांस ने फिर से बाजी मारी. दूसरे हाफ में वैसे भी उसकी टीम बदली हुई लग रही थी. खेल के 59वें मिनट में किलियन एम्बाप्पे ने दाएं छोर से गेंद लेकर आगे बढ़े. उन्होंने पोग्बा तक गेंद पहुंचाई जिनका शॉट विडा ने रोक दिया. रिबाउंड पर गेंद फिर से पोग्बा के पास पहुंची जिन्होंने उस पर गोल दाग दिया.

इसके छह मिनट बाद एम्बाप्पे ने ने स्कोर 4-1 कर दिया. उन्होंने बाएं छोर से लुकास हर्नाडेज से मिली गेंद पर नियंत्रण बनाया और फिर 25 गज की दूरी से शॉट जमाकर गोल दाग दिया जिसका विडा और सुबासिच के पास कोई जवाब नहीं था. एम्बाप्पे ने 19 साल, 207 दिन की उम्र में गोल दागा और वह विश्व कप फाइनल में गोल करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए. पेले ने 1958 में 17 साल की उम्र में गोल दागा था.

क्रोएशिया लेकिन हार मानने वाला नहीं था. तीन गोल से पिछड़ने के बावजूद उसका जज्बा देखने लायक था. लेकिन उसने दूसरा गोल फ्रांसीसी गोलकीपर लॉरिस की गलती से किया. उन्होंने तब गेंद को ड्रिबल किया जबकि मांजुकिच पास में थे. क्रोएशियाई फारवर्ड ने उनसे गेंद छीनकर आसानी से उसे गोल में डाल दिया. इसके बाद भी क्रोएशिया ने हार नहीं मानी. उसने कुछ अच्छे प्रयास किए, लेकिन उसके शॉट बाहर चले गए. इस बीच इंजरी टाइम में पोग्बा को अपना दूसरा गोल करने का मौका मिला, लेकिन वह चूक गए.

हाँ मैंने 2 बच्चे बेचे, मुझे नहीं मालूम वोह कहाँ हैं: नन, अणिमा


राज्य की राजधानी रांची स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी की नन ने स्वीकार किया है कि मैंने दो अन्य शिशुओं को भी बेचा है, नन ने कहा है कि मुझे नहीं पता कि अब वे कहा हैं


झारखंड में नवजात शिशुओं के बेचे जाने के मामले में एक नन के कबूलनामे का एक वीडियो सामने आया है. राज्य की राजधानी रांची स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी की नन ने स्वीकार किया है कि मैंने दो अन्य शिशुओं को भी बेचा है. नन ने अपने कबूलनामे में कहा है कि मुझे नहीं पता कि अब वे कहा हैं.

रांची पुलिस ने चाइंलड ट्रैफिकिंग के आरोप में 9 जुलाई को दो नन को गिरफ्तार किया था. यह नन भी उसी में शामिल है. पुलिस ने बताया कि बेचे गए 4 शिशुओं में से 3 को बरामद कर लिया गया है.

रांची पुलिस के सामने गुनाह कबूल करते हुए नन ने कहा है कि उसने 50-50 हजार रुपए में दो बच्चों को बेचा है जबकि एक बच्चे को एक लाख बीस हजार रुपए में बेचा था. बेचे गए अन्य बच्चे के बारे में नन को पूरी जानकारी नहीं है.

कैसे हुआ मामले का खुलासा

यह मामला तब खुला जब यूपी के सोनभद्र जिले के ओबरा निवासी सौरभ अग्रवाल और प्रीति अग्रवाल ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडबल्यूसी) के पास शिकायत लेकर पहुंचे कि उन्हें उनका बच्चा वापस नहीं दिया जा रहा है. इस बच्चे को उन्होंने पांच मई को 1.20 लाख में खरीदा था.

एफआईआर में दर्ज जानकारी के मुताबिक गुमला की रहनेवाली एक रेप पीड़िता अविवाहित गर्भवती लड़की यहां रह रही थी. उसने बीते एक मई को रांची सदर अस्पताल में बच्चा को जन्म दिया. इस नवजात को कर्मचारी अनिमा इंदवार ने सिस्टर कोंसिलिया के मिलीभगत से अग्रवाल दंपती को बेच दिया. उस वक्त नवजात चार दिन का ही था. इधर 30 जून को सीडबल्यूसी के सदस्यों ने संस्था का दौरा किया था. इससे डरकर अनिमा ने उसी दिन अग्रवाल दंपति को फोन कर कहा कि बच्चे को अदालत में पेश करना है, उसे लेकर रांची आ जाइए.

इसके बाद बच्चे को दो जुलाई अनिमा को दे दिया. तीन जुलाई को बच्चे की जानकारी लेने वह संस्था पहुंचे, जहां उन्हें बच्चे से नहीं मिलने दिया गया. इसके बाद उसी दिन उन्होंने इसकी शिकायत सीडबल्यूसी से की. सूचना मिलते ही चेयरमैन रूपा कुमारी निर्मल हृदय पहुंची. पूरी छानबीन के बाद जब कड़ाई से पूछताछ की गई तो अनिमा ने स्वीकारा कि उन तीनों ने मिलकर बच्चे को बेच दिया है.

बंगाल मे खस्ता हल कांग्रेस टूटने की कगार पर


समय कम है और राज्य स्तर के नेताओं पर दबाव काफी है, लेकिन ये तो तय है कि राहुल गांधी का जो भी फैसला होगा-उससे कांग्रेस में भगदड़ तो मचेगी.


2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए करो या मरो का चुनाव है. गठबंधन की गाड़ी पर सवार कांग्रेस हर राज्य में अपना साथी तलाश रही है. बड़े-बड़े राज्यों पर खास तौर से कांग्रेस की नजर है. ऐसे ही एक बड़े राज्य पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की गाड़ी अटक रही है. साथी की तलाश में बंगाल में उसके सामने दो विकल्प हैं और यही विकल्प उसके लिए गले की हड्डी बने हुए हैं. कांग्रेस में चुनावी तालमेल के सवाल पर दो गुट आमने-सामने हैं.

इनमें से एक गुट सीपीएम की अगुवाई वाले वाममोर्चा के साथ तालमेल जारी रखने की वकालत कर रहा है तो दूसरा गुट तृणमूल कांग्रेस के साथ एक बार फिर हाथ मिलाने के पक्ष में है. ऐसे में कांग्रेस काफी पसोपेश में है. वामदलों ने 2004 में कांग्रेस की यूपीए सरकार को समर्थन दिया था और यहीं से केंद्र में उनकी दोस्ती शुरू हो गई थी, जबकि राज्य में कांग्रेस और वामदल धुरविरोधी थे. आपातकाल के बाद कांग्रेस का विरोध कर ही वामपंथी दलों ने बंगाल पर जीत हासिल की थी. उस जीत का साइड इफेक्ट इतना भयंकर रहा कि कांग्रेस बंगाल में खत्म सी हो गई है.

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस

देश के आजादी के बाद पश्चिम बंगाल में 1967 तक कांग्रेस का शासन रहा. उसके बाद राज्य में समस्याओं का दौर शुरू हो गया. 1967 से 1980 के बीच का समय पश्चिम बंगाल के लिए हिंसक नक्सलवादी आंदोलन, बिजली के गंभीर संकट, हड़तालों और चेचक के प्रकोप का समय रहा. इन संकटों के बीच राज्य में आर्थिक गतिविधियां थमी सी रहीं. साथ ही राज्य में राजनीतिक अस्थिरता भी चलती रही. 1947 से 1977 तक राज्य में सात मुख्यमंत्री बदले और तीन बार राष्ट्रपति शासन रहा. आपातकाल के देश में परिवर्तन की लहर चली तो पश्चिम बंगाल में भी सत्ता का परिवर्तन हुआ और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाममोर्चा या लेफ्ट फ्रंट ने सत्ता संभाली.

वाममोर्चे के नीतियों का वहां की जनता पर काफी सकारात्मक असर हुआ और राज्य में कांग्रेस की स्थिति लगातार इतनी कमजोर होती गई कि अगले 34 सालों तक यानी वर्ष 2011 तक राज्य में वामपंथियों को सत्ता से कोई हटा नहीं पाया. हालांकि कांग्रेस के अनुभवी नेता प्रणब मुखर्जी का कांग्रेस में दबदबा कायम रहा लेकिन वे पश्चिम बंगाल में ऐसी जमीन तैयार नहीं कर पाए जहां खड़े होकर वे वाममोर्चे को चुनौती देते.

प्रियरंजन दासमुंशी जैसे लोकप्रिय नेता भी हुए लेकिन उनका क़द कभी इतना बड़ा नहीं हो सका कि वे वामपंथियों के लिए कांग्रेस को चुनौती के रूप में खड़ा करते. अलबत्ता युवा कांग्रेस के जरिए राजनीति में आईं तेज-तर्रार नेता ममता बैनर्जी ने अपनी जमीन जरूर तैयार की और उसका पर्याप्त विस्तार भी किया. पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई और फिर धीरे-धीरे अपनी पार्टी को कांग्रेस से बड़ा कर लिया. अब ममता बनर्जी की पार्टी की स्थिति वही है जो कि अस्सी या नब्बे के दशक में बंगाल में जो स्थिति वामपंथ की थी.

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाला राज्य है पश्चिम बंगाल. यहां पर लोकसभा की 42 सीटें हैं. साल 2014 में तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में मौजूद 42 सीटों में से 34 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था. जबकि कांग्रेस को चार, वामदलों को दो और बीजेपी को दो सीटें मिली थी. साल 2016 में पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बंगाल में अपने धुरविरोधी रहे वामदलों के साथ गठबंधन किया था लेकिन कांग्रेस को खास सफलता नहीं मिली. विधानसभा के कुल 294 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ 44 पर ही जीत मिली.

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) को 26 सीटें मिली थीं. बीजेपी को एक और तृलमूल कांग्रेस ने भारी जीत के साथ 211 सीटों पर कब्जा किया था. अब पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में है और कांग्रेस उसकी छोटी सहयोगी पार्टी के रूप में. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में मिलकर चुनाव लड़ा था. उस वर्ष तृणमूल कांग्रेस को 19 सीटें और कांग्रेस को छह सीटें हासिल हुई थीं. वामदल को 15 और बीजेपी को एक सीट हासिल हुई थी.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का दबाव बना रहे हैं. पार्टी के ज्यादातर नेताओं ने ममता के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की पैरवी की है. पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और विधायक मोइनुल हक सहित लगभग आधा दर्जन विधायक तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन न होने की सूरत में पार्टी छोड़ सकते हैं.

ऐसे में कांग्रेस के सामने पश्चिम बंगाल में पार्टी को टूट से बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है. मोइनुल हक ने बयान दिया था कि अगर हम अकेले भी लड़ते हैं तो कोई फायदा होने वाला नहीं है. अगर हम तृणमूल कांग्रेस के साथ जाएंगे तो कुछ सीटें आ जाएंगी. लेफ्ट के साथ जाने का मतलब खुदकुशी करना है. कांग्रेस को ममता बनर्जी साथ लेगी तो उनको भी फायदा है इनको भी फायदा है.’

राहुल की मुश्किल यह है कि पार्टी का एक खेमा वामपंथी दलों के साथ तालमेल करने की बात कर रहे हैं तो वहीं तरफ कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो पार्टी को मजबूत करने के लिए अकेले चुनाव लड़ने पर जो डाल रहे हैं. प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का झुकाव वामपंथ की तरफ है. उनका कहना है कि कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा अगर कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. इससे पार्टी और कमजोर होगी.

तृणमूल कांग्रेस ने वामदल का कैडर तोड़ कर अपनी तरफ कर लिया है. वहीं तरीका वो कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ भी कर रही है. पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि ममता के साथ जाने का मतलब बंगाल से कांग्रेस का नामोनिशान खत्म करना है. वहीं दीपा दासमुंशी जैसे कुछ नेता पार्टी को मजबूत करने की बात कर रहे हैं यानी पार्टी अकेले चुनाव लड़े. इनका मानना है कि हो सकता है पार्टी को कम सीटें मिले लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं को बल मिलेगा और कांग्रेस की जमीन मजबूत होगी.

बंगाल में बीजेपी की बढ़त

कांग्रेस नेताओं की दूसरी परेशानी बीजेपी का राज्य में बढ़त कायम करना है. पंचायत चुनाव में बीजेपी दूसरी बड़ी पार्टी बन कर उभरी है. बंगाल में बीजेपी ने करीब 32000 ग्राम पंचायत सीटों में से 5700 से अधिक में जीत दर्ज की थी. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 17.02 वोट शेयर हासिल करने में सफलता पाई थी जो 2009 की तुलना में करीब 6.4 प्रतिशत अधिक था.

2016 के विधानसभा चुनाव में उसे 10.16 प्रतिशत वोट शेयर प्राप्त हुए थे. पंचायत चुनाव में अच्छा-प्रदर्शन करके बीजेपी ने बता दिया है कि जमीनी स्तर पर भी अब उसने आपको मजबूत कर लिया है. ये स्थिति कांग्रेस के नेताओं को डरा रही है. बीजेपी की बढ़त और हिन्दुत्व की तरफ लोगों का रुझान कांग्रेस के नेताओं के लिए सरदर्द बनता जा रहा है. बंगाल के भद्रलोगों में बीजेपी काफी लोकप्रिय हो रही है.

ममता बनर्जी की चुप्पी

हालांकि ममता बनर्जी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. बताया जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की बांग्लादेश यात्रा में ममता के शामिल होने पर राहुल गांधी ने तंज कसा था- ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री मोदी के बीच सांठ-गांठ का आरोप लगाते हुए कहा था कि जब यूपीए की सरकार थी और तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बांग्लादेश जाना चाहते थे तब ममता बनर्जी ने हमसे कहा, ‘नहीं, एकला चलो रे’. लेकिन जब प्रधानमत्री मोदी गए तो ममता वहां पर चल दी. ममता को ये बयान काफी तीखा लगा था.

फिर उन्हें कांग्रेस और वामदलों की नजदीकी भी पसंद नहीं आई थी. कांग्रेस ने ममता बनर्जी के बजाय वाम दलों को ज्यादा तरजीह देते हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वाम दलों के साथ गठबंधन किया था, जबकि ममता कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को इच्छुक थीं. पश्चिम बंगाल में बड़ी जीत के बाद ममता बनर्जी ने कहा था कि किस तरह वह विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से गठबंधन के लिए दिल्ली में तीन दिनों तक थीं, लेकिन पार्टी के किसी नेता ने बात तक नहीं की.

यही वजह थी कि ममता बनर्जी तीसरे मोर्चे के लिए बेकरार थीं. इसके प्रयास में उन्होंने दिल्ली से हैदराबाद तक नेताओं से मुलाकात की थी. उन्होंने सोनिया गांधी से भी मुलाकात की लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने से बचती रहीं. कहीं ना कहीं वो ये संदेश देना चाह रही थीं कि राहुल गांधी का नेतृत्व उन्हें पसंद नहीं हालांकि खुल कर उन्होंने कुछ नहीं बोला.

अभी चुनावों में काफी वक्त बाकी है और कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी का गठबंधन होता है तो ये देखने वाली बात होगी कि वो बंगाल में कांग्रेस के लिए कितनी सीटें छोड़ती हैं. अगर वो अपनी पार्टी के बूते अकेले बंगाल में चुनाव लड़ती हैं तो उनका प्रदर्शन काफी बेहतर होगा. लेकिन अगर कांग्रेस ने 10-12 सीटें मांगीं तो वो नहीं देंगी क्योंकि वो जानती हैं कि कांग्रेस यहां पर कमजोर है.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस राज्य में इतनी ताकतवर हो गई है कि उसे कांग्रेस की जरूरत नहीं है. अलबत्ता कांग्रेस के जिन नेताओं को चुनाव लड़ना है, वो तृणमूल कांग्रेस के साथ तालमेल करना चाहते हैं. बीजेपी की बढ़त के चलते कांग्रेस के लोगों का मानना है कि वामदल से तालमेल में ना कांग्रेस के हाथ कुछ आएगा बल्कि वोट भी बंटेगे. लेकिन तृणमूल कांग्रेस के साथ तालमेल के बाद कांग्रेस बीजेपी को ज्यादा मजबूत चुनौती देगी. इस मुद्दे पर पार्टी के करीब छह विधायक और एक सांसद पार्टी छोड़ने को तैयार बैठे हैं.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस नेतृत्व के कुंआ-खाई वाली स्थिति है. अगर तृणमूल से तालमेल नहीं करेगी तो चुनाव से पहले पार्टी से लोग भांगेंगे वहीं दूसरी तरफ तालमेल के बावजूद कांग्रेस को कुछ लाभ होगा भी ये अंदाजा लगाना मुश्किल है.

तृणमूल अपने में मजबूत पार्टी है लेकिन उसकी मजबूती से कांग्रेस को क्या लाभ होगा इसका अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल है. अब फैसला राहुल गांधी को लेना होगा कि कांग्रेस अपना तालमेल किससे करेगी. इस मुद्दे पर उन्होंने राज्य स्तर के नेताओं के साथ बैठक की है लेकिन अभी तक किसी फैसले पर नहीं पहुंचे. समय कम है और राज्य स्तर के नेताओं पर दबाव काफी है, लेकिन ये तो तय है कि राहुल गांधी का जो भी फैसला होगा-उससे कांग्रेस में भगदड़ तो मचेगी.

एक राष्ट्र एक चुनाव मे दुविधा में कांग्रेस्स


क्षेत्रीय पार्टियों ने आशंका जताई है कि एक साथ चुनाव कराने पर राष्ट्रीय पार्टियां और राष्ट्रीय मुद्दे चुनावी माहौल में ज्यादा हावी हो जाएंगे और इसका नुकसान छोटी पार्टियों को उठाना पड़ेगा


देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर गंभीर विचार-विमर्श जारी है. कई पार्टियों ने इसके समर्थन में हामी भरी है तो कांग्रेस और लेफ्ट जैसी पार्टियों ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव ने एकसाथ चुनाव कराए जाने का समर्थन किया है और इस बाबत विधि आयोग को पत्र भी लिखा है.

समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने भी अपना समर्थन जाहिर करते हुए कहा कि उनकी पार्टी एक देश-एक चुनाव के पक्ष में है लेकिन यह 2019 से शुरू होना चाहिए. यादव ने मांग की कि कोई जनप्रतिनिधि अगर पार्टी बदलता है या खरीद-फरोख्त में लिप्त पाया जाता है तो उसके खिलाफ एक हफ्ते में कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए.

तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई ओर डीएमके ने पुरजोर विरोध जताया है

इस बीच, क्षेत्रीय पार्टियों ने आशंका जताई है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने पर राष्ट्रीय पार्टियां और राष्ट्रीय मुद्दे चुनावी माहौल में ज्यादा हावी हो जाएंगे और इसका नुकसान छोटी पार्टियों को उठाना पड़ेगा. तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई ने विधि आयोग की बैठक में हिस्सा तो लिया लेकिन दोनों पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का जोरदार विरोध किया. दक्षिण की पार्टी डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन भी इसके विरोध में हैं. उनके मुताबिक एकसाथ चुनाव कराया जाना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

उधर, एनडीए की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन करते हुए कहा कि इससे पार्टियों के खर्च में कमी आएगी और विकास कार्यों को रोकने वाली आदर्श आचार संहिता की अवधि कम होगी. एसएडी का प्रतिनिधित्व पार्टी के राज्यसभा सदस्य नरेश गुजराल ने किया. उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने के लिए किसी विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाए जाने की स्थिति में राज्यसभा चुनावों पर पड़ने वाले प्रभाव का मुद्दा उठाया.

बीजेपी नेता सुब्रह्मणियम स्वामी ने एक साथ चुनाव कराए जाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है और कहा है कि यह विपक्षी पार्टियों के ऊपर है कि वे इसका समर्थन करते हैं विरोध.स्वामी ने कहा, यह कांग्रेस और सीपीएम पर निर्भर करता है कि वे इसका समर्थन करते हैं या नहीं. उन्होंने कहा, बार-बार चुनावों पर इतना ज्यादा पैसा खर्च करने का क्या मतलब.

टीएमसी और सीपीआई ने इस प्रस्ताव को ‘अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक’ बताया है

तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके ने कहा कि यदि जरूरी ही है तो एक साथ चुनाव 2024 में कराए जाएं और उससे पहले कतई नहीं. सूत्रों ने बताया कि पार्टी का यह भी मानना है कि तमिलनाडु विधानसभा को अपना कार्यकाल पूरा करने की इजाजत दी जानी चाहिए और लोकसभा चुनाव अपने कार्यक्रम के अनुसार कराए जाने चाहिए.

टीएमसी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को ‘अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक’ बताया है. सीपीआई, एआईडीयूएफ और गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने भी ऐसी ही राय जाहिर की है.

कांग्रेस ने कहा कि वह इस बाबत अपने कदम पर फैसला करने से पहले अन्य विपक्षी पार्टियों से विचार-विमर्श करेगी.

विधि आयोग का क्या है प्रस्ताव?

विधि आयोग के एक प्रस्ताव में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ कराने की सिफारिश की गई है लेकिन कहा गया है कि यह चुनाव दो चरणों में कराए जाएं और इसकी शुरुआत 2019 से हो. आयोग के दस्तावेज के मुताबिक, एक साथ चुनाव का दूसरा चरण 2024 में होना चाहिए. इस दस्तावेज में संविधान और जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि इस कदम को प्रभावी बनाने के लिए विधानसभाओं के कार्यकाल में विस्तार किया जाए या कमी की जाए.

पहले चरण में उन राज्यों को शामिल किया जाएगा जहां 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं. उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्य दूसरे चरण में शामिल होंगे. इन राज्यों में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने के लिए इनकी विधानसभाओं के कार्यकाल बढ़ाने होंगे.

किसी के साथ भी काम करने में तब तक कोई समस्या नहीं, राहुल गांधी काफी जूनियर: ममता बनर्जी


ममता बनर्जी ने कहा कि उनके पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बहुत अच्छे संबंध हैं लेकिन राहुल गांधी के साथ उन्होंने कभी काम नहीं किया.


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह केंद्रीय सत्ता से बीजेपी को बाहर करने के लिए कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने के खिलाफ नहीं हैं, उनके पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बहुत अच्छे संबंध हैं लेकिन राहुल गांधी के साथ उन्होंने कभी काम नहीं किया. ममता ने कहा कि राहुल अभी बहुत जूनियर हैं.

ममता ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र सरकार सौ हिटलर की तरह बर्ताव कर रही है. पीएम बनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उनकी ऐसी कोई इच्छा नहीं है. लेकिन उन्हें किसी के साथ भी काम करने में तब तक कोई समस्या नहीं है जब तक कि सामने वाली की मंशा साफ हो.

ममता ने कहा कि कुछ पार्टियां कांग्रेस का समर्थन नहीं करती हैं क्योंकि उनकी अपनी मजबूरियां हैं लेकिन वह बीजेपी के खिलाफ काम करने के पक्ष में हैं. बता दें कि राहुल गांधी ने दिल्ली में पश्चिम बंगाल के कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की थी.

कांग्रेस नेताओं के एक हिस्से ने तृणमूल कांग्रेस के साथ गठजोड़ के लिए अपना झुकाव दिखाया है. वहीं पीसीसी प्रमुख अधीर रंजन चौधरी तृणमूल के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं. हालांकि तृणमूल प्रमुख का मानना है कि विपक्षी पार्टियों का महागठबंधन हो जाएगा. वह खुद बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का गठबंधन तैयार करने के लिए कई प्रभावशाली नेताओं से मिल रही हैं.