Instant triple talaq Bill: Cabinet approves inclusion of provision of bail


Provision of bail to men found guilty of giving instant triple talaq was one of the demands of the Opposition.


The Union Cabinet on August 9 approved the inclusion of provision of granting bail to men found guilty of giving instant triple talaq to their wives in the Muslim Women Protection of Rights on Marriage Bill, sources in the government said.

Giving instant triple talaq will continue to be illegal and void and will attract a jail term of three years for the husband.

The Bill was cleared by Lok Sabha and is pending in the Rajya Sabha where the government lacks numbers.

Provision of bail had been one of the demands of the Opposition.

Under the amendments cleared on August 9, the magistrate would have powers to grant bail, the sources said.

The proposed law would only be applicable to instant triple talaq or ‘talaq-e-biddat’ and it would give power to the victim to approach a magistrate seeking “subsistence allowance” for herself and minor children.

A woman can also seek the custody of her minor children from the magistrate, who will take a final call on the issue.

चालक ही नहीं सवार भी होगा मुआवजे का हकदार, दिलाये 17 लाख : कलकत्ता हाइ कोर्ट

मोटर साइकिल के पीछे बैठने वाले यात्री की दुर्घटना में मौत होने पर मुआवजा नहीं मिलेगा। बीमा कंपनी के इस दावे को कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायधीश दीपंकर दत्त और प्रतीक प्रकाश बंदोपाध्याय की खंडपीठ ने खारिज करते हुए कहा कि यह तर्क मानने पर थर्ड पार्टी इंशोरेंस व्यवस्था को ही नकारा जाएगा। उस यात्री को किसी भी हालत में बीमा कंपनी की ओर से दिए गए तर्क बगैर पैसे के यात्री मानने से अदालत ने इंकार कर दिया। इस मामले में एतिहासिक फैसला सुनाते हुए अदालत ने यात्री की मौत के लिए और 17 लाख रुपए क्षतिपूर्ति देने का निर्देश दिया।

मालूम हो कि मोटरसाइकिल सवार के दुर्घटनाग्रस्त होने और इस दौरान लोगों के मरने का सिलसिला लगातार जारी है। ऐसे माहौल में अदालत का फैसला अभूतपूर्व माना जा रहा है। 01 अक्टूबर 2006 को 24 वर्षीय कुमार संभव बसु हुगली जिले के शेवड़ाफुली के जीटी रोड पर दुर्घटनाग्रस्त हुए थे। एक टाटा 407 ने उनकी मोटर साइकिल को धक्का मार दिया था। श्रीरामपुर के वाल्स अस्पताल में उसे मृत घोषित किया गया। मृतक की मां उमा और पिता सुमन बसु ने मोटर व्हीकल्स क्लेमस ट्राइब्यूनल में कम से कम 15 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति का दावा किया था। लेकिन ट्राइब्यूनल की ओर से सात लाख रुपए से कुछ ज्यादा रकम मंजूर की गई। लेकिन ट्राइब्यूनल और बीमा कंपनी ने अलग-अलग कारणों से इसे हाईकोर्ट में चैलेंज किया।

अदालत में कहा गया कि मरने वाले की मासिक आय 15 हजार रुपए होने पर भी बीमा संस्था के मुताबिक ट्राइब्यूनल ने उसे आठ हजार रुपए माना है। मरने के भविष्य के बारे में किसी तरह का मुल्यांकन नहीं किया गया। तय रकम पर ब्याज नहीं जोड़ा गया। परिवार की ओर से चालक पर लापरवाही से गाड़ी चलाने का आरोप लगाया गया था। लेकिन बीमा संस्था का कहना था कि अभियुक्त की गाड़ी का सही परमिट नहीं था, चालक का ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था, मरने वाले का वेतन कम था, यहां तक कि मरने वाला युवक मोटरसाइकिल का बिना पैसे का यात्री था।

हालांकि अदालत की ओर से सारे दावे खारिज करते हुए कहा गया कि कहीं भी यह साबित नहीं हुआ है कि मोटरसाइकिल सवार युवक जबरन मोटर साइकिल पर सवार हुआ था या मोटरसाइकिल चालक से जबरन सुविधा हासिल की थी। थर्ड पार्टी इंशोरेंस के मुताबिक पिलियन राइडर्स को किसी भी तरह बिना पैसे का यात्री नहीं माना जा सकता है। इसलिए अदालत की ओर से मृतक के परिवार वालों को 24 लाख 74 हजार 289 रुपए क्षतिपूर्ति के तहत देने का निर्देश दिया गया। इसके साथ ही अदालत की ओर से कहा गया कि पहले जितने रुपए युवक के परिवार वालों को मिल चुके हैं, उसे घटा कर बाकी 17 लाख 66 हजार 289 रुपए का मुआवजा प्रदान किया जाए। इसके साथ ही 15 फरवरी 2007 से बकाया और प्रदान की गई रकम पर 7.5 फीसद की दर से ब्याज भी प्रदान किया जाए।

Nirankari Mata Savinder Hardev ji passes away

Nirankari Mata Savinder Hardev ji passes away after a prolong illness at 5:15 pm in New Delhi. She was 61. Born on 2nd January 1957 to Sh. Manmohan Singh and Smt. Amrit Kaur and later was adopted by Sh. Gurumukh Singh and Mrs Madan Kaur ji.

She got her education at convent of Christian and Mary Mussoorie As a better half of Baba Hardev Singh she supported him in prachar and welfare in india and abroad.

She was the 5th Saduru of nirankari mission

She is survived by three daughters. Samta, Renuka and Sudeeksha

Sadguru Sudiksha ji is the 6th head of Nirankari Mission

The body of Mata ji will be plaed for last ‘darshans’ in Samagam ground no. 8 till 7th of August, 2018, the cremation will be held at Nigam Bodh Ghat on 8th August at 12 noon in electrical crematorium. The mission sources told.

The Shradhaanjli samaroh will take place in samagam ground the same day at 2:00 pm

मुगल सराय जन॰ = दीन दयाल उपाध्याय जन॰


मुगलसराय के नाम को बदलने को ले कर राजी सभा में हुआ हँगामा

अब MGS नहीं DDU होगा कोड


मुरादाबाद:

रेल मंत्री पीयूष गोयल उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में स्थित मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर रखे जाने की आधिकारिक घोषणा  कल करेंगे| इस दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी मौजूद रहेंगे| मुगलसराय के मण्डल रेल प्रबन्धक पंकज सक्सेना ने बताया कि गोयल रेलवे जंक्शन के नये नाम की घोषणा करने के साथ-साथ उसके यार्ड को स्मार्ट यार्ड बनाने, रूट रिले इंटरलाकिंग तथा रेलवे स्टेशन पर अन्य विकास कार्य कराने का एलान भी कर सकते हैं| सक्सेना ने बताया कि वह ‘एकात्म एक्सप्रेस‘ ट्रेन को हरी झंडी भी दिखाएंगे| यह ट्रेन सप्ताह में दो दिन सुलतानपुर के रास्ते चलायी जाएगी|

1968 में मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास ही मृत पाये गये थे दीन दयाल उपाध्याय

इस कार्यक्रम में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अलावा रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा, उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तथा अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता भी मौजूद रहेंगे| इस बीच, सम्पूर्ण रेलवे स्टेशन को केसरिया रंग में रंगा जा रहा है और परिसर में प्रवेश और निकास द्वार के साइनबोर्ड के साथ-साथ प्लेटफार्म के नाम को भी बदला जा रहा है| ‘एकात्म मानववाद‘ का संदेश देने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक दीन दयाल उपाध्याय फरवरी 1968 में मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास ही संदिग्ध अवस्था में मृत पाये गये थे|

महागठबंधन के प्रधानमंत्री पद के बारे में निर्णय चुनाव नतीजे आने के बाद होगा: कांग्रेस


कांग्रेस ने दावा किया कि अगर उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में ‘सही से’ गठबंधन हो गया तो बीजेपी सत्ता में नहीं लौटने वाली है लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना से गठबंधन की संभावना से पर कहा कि विचारधारा अलग होने की वजह से शिवसेना के साथ गठबंधन नहीं हो सकता

‘उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार में सही से गठबंधन हो गया तो बीजेपी की 120 सीटें अपने आप कम हो जाएंगी और उत्तर प्रदेश में तो सत्तारूढ़ पार्टी पांच सीटों पर सिमट जाएगी.’


लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ मजबूत गठबंधन बनाने के विपक्षी दलों के प्रयास के बीच कांग्रेस ने तय किया है कि फिलहाल पूरा ध्यान विपक्षी पार्टियों को एकजुट कर नरेंद्र मोदी को हराने पर लगाया जाएगा और प्रधानमंत्री पद के बारे में निर्णय चुनाव नतीजे आने के बाद होगा.

पार्टी के शीर्ष सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है. सूत्रों ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन के लिए एसपी, बीएसपी और अन्य बीजेपी विरोधी दलों के बीच भी ‘रणनीतिक समझ’ बन गई है.

उन्होंने दावा किया कि अगर उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में ‘सही से’ गठबंधन हो गया तो बीजेपी सत्ता में नहीं लौटने वाली है.

लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरा पेश करने के सवाल पर सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस फिलहाल दो चरणों में काम कर रही है. पहला चरण सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाकर बीजेपी और नरेंद्र मोदी को हराने का है. दूसरा चरण चुनाव परिणाम का है जिसके बाद दूसरे बिंदुओं पर बात होगी.

सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री पद को लेकर चुनाव से पहले बातचीत करना ‘विभाजनकारी’ होगा.

उन्होंने कहा कि सारे विपक्षी दलों में यह व्यापक सहमति बन चुकी है कि सभी को मिलकर बीजेपी और आरएसएस को हराना है.

उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के सवाल पर कांग्रेस के सूत्रों ने कहा, ‘बातचीत चल रही है, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि गठबंधन को लेकर रणनीतिक सहमति बन गई है.’

क्या है कांग्रेस का दावा?

उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार में सही से गठबंधन हो गया तो बीजेपी की 120 सीटें अपने आप कम हो जाएंगी और उत्तर प्रदेश में तो सत्तारूढ़ पार्टी पांच सीटों पर सिमट जाएगी.’

कांग्रेस सूत्रों ने यह भी दावा कि आगामी लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और कई अन्य राज्यों में पार्टी की लोकसभा सीटों में काफी इजाफा होगा.

शिवसेना के साथ तालमेल की संभावना के सवाल पर कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि हमारा गठबंधन समान विचाराधारा वाले दलों के साथ हो सकता है और शिवसेना और कांग्रेस की विचाराधारा अलग है, इसलिए उसके साथ गठबंधन नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के बीच पुराना गठबंधन है और वह आगे भी जारी रहेगा.

Seventeen Opposition parties demanding use of ballot papers in 2019 Loksabha elections

New Delhi: Seventeen Opposition parties, including the Trinamool Congress, are planning to approach the Election Commission, demanding that ballot papers be used to conduct the 2019 Lok Sabha election.

The 17 parties would meet next week to discuss the plan.

“This is a matter on which all Opposition parties agreed. We are planning to meet next week. We plan to go to Election Commission and demand that the EC conduct the coming Lok Sabha elections using ballot papers,” TMC leader Derek O’Brien told reporters.

The initiative to solicit the support of all Opposition parties on the matter was taken by TMC chief Mamata Banerjee on Wednesday, when she visited Parliament to meet Opposition leaders and invite them for her planned rally in Kolkata on 19 January.

Banerjee was heard appealing to opposition party leaders who visited her in the TMC office in Parliament, to send a joint delegation to the Election Commission over reports of EVM tampering and to demand that the 2019 general election be held on ballots.

“All opposition parties should go to EC on this matter. There should be a joint delegation of opposition parties to EC,” Banerjee was heard telling opposition party leaders, including from the Congress.

The TMC had staged protests outside Parliament, questioning the neutrality of electronic voting machines, and demanded that ballot papers be brought back for the 2019 Lok Sabha election. The ruling party in West Bengal said it is a “common programme” that will unite all opposition parties.

Interestingly, Banerjee had also urged the Shiv Sena, a BJP ally, to be a part of the delegation.

Sena chief Uddhav Thackeray previously demanded that the 2019 Lok Sabha election be conducted using ballot papers instead of EVMs.

एनआरसी मुद्दा ममता के विरोध में टीएमसी अध्यक्ष ओर 2 नेताओं ने दिया इस्तीफा


इस्तीफा देने वाले तीन नेताओं में से एक गोलाघाट से पार्टी के नेता दिगंता सैकिया ने असमी विरोधी रुख अपनाने को लेकर बनर्जी के खिलाफ मामला दर्ज कराने की भी धमकी दी


तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)  की असम इकाई के अध्यक्ष द्विपेन पाठक और दो अन्य प्रमुख नेताओं ने एनआरसी के अंतिम मसौदे के प्रति पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी के रुख के खिलाफ गुरुवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. तृणमूल कांग्रेस के रुख पर असम के कई दलों और संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

पाठक का इस्तीफा बंगाली बहुल बराक घाटी में सिलचर हवाई अड्डे पर तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल के पहुंचने और पुलिस द्वारा उन्हें बाहर निकलने से रोके जाने के कुछ ही घंटे के अंदर आया. बनर्जी के निर्देश पर प्रतिनिधिमंडल असम गया था.

ANI


इस्तीफा देने वाले तीन नेताओं में से एक गोलाघाट से पार्टी के नेता दिगंता सैकिया ने असमी विरोधी रुख अपनाने को लेकर बनर्जी के खिलाफ मामला दर्ज कराने की भी धमकी दी. असम में सत्तारूढ़ बीजेपी और अन्य दलों ने कहा है कि बराक घाटी में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं है.

पूर्व विधायक पाठक ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के प्रकाशन के बाद उन्होंने पार्टी नेताओं को असम की जमीनी हकीकत से अवगत कराया था और बनर्जी से राज्य में प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजने की अपील की थी.

असम में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं

2011-2016 तक तृणमूल के विधायक रहे पाठक ने कहा, ‘पार्टी ने मेरे सुझाव पर ध्यान नहीं दिया और यहां की जमीनी स्थिति समझने से इनकार कर दिया. इस पृष्ठभूमि में मेरे लिए उस पार्टी में बने रहना संभव नहीं है जो असमी भावना को महत्व नहीं देती.’ उन्होंने कहा, ‘असम में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं है.’

पार्टी के दो नेताओं- प्रदीप पचानी और दिगंता सैकिया ने भी यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी कि वे उस पार्टी में नहीं बने रहना चाहते हैं जो मूल असमी लोगों की पहचान से समझौता करना चाहती है.

ब्रह्मपुत्र घाटी के चारैदेव और सोनितपुर जिलों में छात्र संगठनों ने बनर्जी के पुतले फूंके. उन्होंने तृणमूल और पार्टी सुप्रीमो बनर्जी को असम के मामले में दखल नहीं देने की चेतावनी दी.

इस बीच बराक घाटी के करीमगंज उत्तरी के विधायक कमलख्या डि पुरकायस्थ ने कहा, ‘तृणमूल की एनआरसी के बारे में कई गलत धारणाएं हैं और उन्हें (प्रतिनिधिमंडल को) आने देना चाहिए था ताकि मसौदे के बारे में उनकी गलतफहमियां दूर होती.’

अमित शाह का बंगाल दौरा, आखिर राज़ क्या है?


अमित शाह हर हाल में ममता के मजबूत किले को ध्वस्त करना चाहते हैं, लोकसभा चुनाव के लिए राज्य की कुल 42 में से 22 से ज्यादा सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चलने वाले बीजेपी अध्यक्ष के लिए बार-बार दौरा करना जरूरी भी है


बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 11 अगस्त को पश्चिम बंगाल जाने की तैयारी में हैं. शाह को रैली की इजाजत मिल गई है. टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ट्वीट कर इस बारे में जानकारी भी दी. उनकी तरफ से शाह के बंगाल में स्वगात किया गया, लेकिन, कटाक्ष के साथ.

टीएमसी सांसद ने ट्वीट कर कहा ‘बीजेपी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह नर्वस हैं. तीन अगस्त को होने वाले उनके कार्यक्रम को फौरन इजाजत दे दी गई थी. अब 11 अगस्त के कार्यक्रम के लिए सिर्फ एक खत भेजा गया और अनुमति दे दी गई. शांति और सौहार्द की धरती पर यात्रा मंगलमय हो. बंगला प्रेम…..आपका पड़ोसी.’


Derek O’Brien


टीएमसी सांसद के इस कटाक्ष से बीजेपी और टीएमसी के बीच जारी तकरार की झलक मिल जाती है. पलटवार तो बीजेपी की तरफ से भी हुआ है. लेकिन, अमित शाह के कार्यक्रम को लेकर जिस तरह से बवाल मचा हुआ है, उससे साफ है कि पश्चिम बंगाल बीजेपी और टीएमसी के बीच अखाड़े में तब्दील हो गया है.

एनआरसी के मुद्दे पर टीएमसी और बीजेपी के बीच तकरार के बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के कोलकाता दौरे का जैसे ही ऐलान हुआ वैसे ही सियासी बवाल मच गया था. कोलकाता की रैली को सफल बनाने के लिए बीजेपी युवा मोर्चा लगा हुआ है. लेकिन, इस रैली को लेकर पहले प्रशासन की तरफ से इजाजत नहीं दी गई थी. लेकिन, जैसे ही अमित शाह की तरफ से कहा गया कि भले ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए लेकिन, वो पश्चिम बंगाल के दौरे पर जाएंगे, वैसे ही राज्य प्रशासन की तरफ से रैली की इजाजत दे दी गई.

क्यों बार-बार पश्चिम बंगाल का दौरा कर रहे हैं अमित शाह

लेकिन, सवाल है कि आखिरकार बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का पश्चिम बंगाल दौरा इतना ज्यादा क्यों हो रहा है. इसके पीछे उत्तर एक ही है शाह की नजर पश्चिम बंगाल पर है. हर हाल में वो ममता बनर्जी के मजबूत किले को ध्वस्त करना चाहते हैं. लोकसभा चुनाव के लिए राज्य की कुल 42 में से 22 से ज्यादा सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चलने वाले बीजेपी अध्यक्ष के लिए ऐसा करना जरूरी भी है.

उन्हें भी पता है कि काफी मेहनत के बाद राज्य में उन्होंने लेफ्ट और कांग्रेस को पछाड़कर बीजेपी को नंबर दो की हैसियत में ला खड़ा किया है, लेकिन, टीएमसी को मात देकर नंबर वन की हैसियत में आने के लिए उन्हें काफी मेहनत करने की जरूरत है. लिहाजा वो बार-बार पश्चिम बंगाल पहुंचकर राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित भी कर रहे हैं. नेताओं के साथ बैठकर रणनीति को अंजाम भी दे रहे हैं.

11 अगस्त को उनकी रैली से पहले पिछले 27 और 28 जून को भी शाह का पश्चिम बंगाल का दौरा हुआ था. उस दौरान भी उन्होंने राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रणनीति पर चर्चा की थी, उन्हें जीत का गुरु-मंत्र भी दिया था. इस दौरे में 28 जून को पुरुलिया में उनकी रैली और उसमें उमड़ी भीड़ चर्चा का कारण रही. पुरुलिया की रैली से पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव को लेकर अमित शाह ने परोक्ष रूप से शंखनाद भी कर दिया है.

अमित शाह के पिछले साल के दौरे पर भी हुई थी जमकर राजनीति

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पिछले साल सितंबर में भी पश्चिम बंगाल के दौरे पर थे. अमित शाह का यह दौरा तीन दिनों तक चला था. उस वक्त 11,12 और 13  सितंबर तक अमित शाह का दौरा चला था. इस दौरान अमित शाह ने बुद्धिजीवियों और उद्योगपतियों के साथ बैठक की थी. इसके अलावा पार्टी कार्यकर्ताओं को भी संबोधित किया था. शाह की रैली को लेकर भी उस वक्त राजनीति जमकर हुई थी. नेताजी इंडोर स्टेडियम में अमित शाह को बैठक करने की अनुमति नहीं मिली थी. जिसके चलते कई दूसरे जगहों पर उन्हें कार्यक्रम करना पडा था.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इसके पहले अप्रैल 2017 में भी पश्चिम बंगाल का दौरा किया था. इस दौरान शाह ने तीन दिन का दौरा किया था, जिसमें मुख्य फोकस उत्तरी बंगाल था. उस वक्त उत्तरी बंगाल के आठ जिलों के पदाधिकारियों के साथ उन्होंने बैठक कर राज्य में पार्टी को मजबूत करने की रणनीति पर चर्चा की थी.

बीजेपी के एजेंडे में टॉप पर पश्चिम बंगाल

दरअसल, बीजेपी के 2019 के एजेंडे में पश्चिम बंगाल काफी उपर है. पार्टी ने इसके लिए जमीनी स्तर पर तैयारी भी काफी हद तक कर ली है. ममता बनर्जी के खासमखास रहे मुकुल रॉय को बीजेपी ने अपने पाले में पहले ही ला दिया है. उनके आने के बाद जमीनी स्तर पर पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं की टीम तैयार करने में बीजेपी को काफी मदद मिल रही है. बीजेपी को इसका फायदा भी मिला है. खासतौर से पंचायत चुनाव में पार्टी की सफलता ने लोकसभा चुनाव को लेकर उम्मीदें बढ़ा दी हैं.

राज्य की राजनीति के हिसाब से बीजेपी को भी ध्रुवीकरण की राजनीति काफी हद तक रास आ रही है. टीएमसी को भी लगता है कि ध्रुवीकरण की राजनीति से उसे अल्पसंख्यक मतों का फायदा होगा. तभी तो एनआरसी के मुद्दे पर ममता बनर्जी और बीजेपी दोनों आमने-सामने हैं. ऐसे वक्त में अमित शाह का कोलकाता का दौरा माहौल को और गरमाने वाला है. क्योंकि बीजेपी के कई नेता इस मुद्दे पर बंगाल में भी असम की ही तरह एनआरसी को लेकर चर्चा छेड़ चुके हैं.

“She is nothing but a ‘chameleon’ who is changing her colours”: Adhir Ranjan

New Delhi:

A day after Mamata Banerjee met Sonia Gandhi and Rahul Gandhi, West Bengal Congress chief Adhir Ranjan Chowdhury called the TMC supremo a “chameleon” and accused her of hankering after the prime minister’s post.

In a no-holds-barred attack on the West Bengal chief minister, Chowdhury alleged that Banerjee is acting like a “Trojan Horse” and trying to divide a “united opposition” by floating the idea of a federal front, and urged leaders of various parties not to trust her.

“Her single objective is to be the prime minister of India. She is hankering after the post of prime minister. She is having a ‘Deve Gowda-syndrome and Gujral-syndrome’,” he said.

File image of Congress MLA Adhir Ranjan Chowdhary

Chowdhury also accused Banerjee of trying to “finish” and “eliminate” the Congress in West Bengal on one hand and seeking the party’s support for the 2019 Lok Sabha elections on the other.

“She is nothing but a ‘chameleon’ who is changing her colours. She is an unreliable, unpredictable politician and Congress and other leaders should not trust her at all,” he told PTI.

“Mamata Banerjee is a dictator and is now trying to project herself as a ‘female monk’. She is trying to eliminate the Congress in West Bengal by not allowing us to either vote or stand in elections and our leaders are put behind bars. It seems that doing politics in Bengal is a crime,” he said adding “we are the victims of politics of elimination in the state”.

The PCC chief, who has been a staunch Mamata-baiter, said she is trying to extract as many seats as possible in Bengal so that she can stake her claim for the prime minister’s post in the 2019 Lok Sabha elections.

Chowdhury said Banerjee is thinking that she will become the prime minister with the support of the other opposition parties and that is why she is declining to offer the Congress any seats in Bengal.

He said at a time when Rahul Gandhi is talking of uniting the entire opposition, “Mamata Banerjee is trying to create a divide in the opposition ranks” by talking of a third front.

“She is only trying to suit herself,” he said. Accusing Banerjee of adopting “double standards”, the Congress leader said on one hand she is talking of 40 lakh people who were left out in Assam NRC, on the other she is putting up barricades on the state borders.

He also recalled how Mamata Banerjee moved an adjournment motion in Parliament in 2005 against illegal immigrants in Bengal and demanded she clarify her stand on the issue.

Banerjee Wednesday met leaders of various parties in the national capital including UPA chairperson Sonia Gandhi and Congress president Rahul Gandhi as part of efforts to forge an anti-BJP front .

“We discussed the political situation. We discussed how the opposition can together take on the BJP because it knows that it will not come back to power,” she had said after the nearly 30-minute meeting with the Gandhis.

Banerjee said she also discussed the NRC issue as 40 lakh people have not been included in it and “genuine voters have been kept out”.

Mamta sees an opportunity in NRC row

 

Mamata Banerjee is playing with fire. As a serving chief minister and a senior political leader with a rising national profile, her words carry weight. And also consequences. In the political controversy over publishing of the second National Register of Citizens (NRC) draft, she finds an opportunity to strengthen TMC’s foothold beyond West Bengal into Assam. She should be careful.

Her repeated inflammatory and irresponsible remarks may destabilise a sensitive issue that lies at the crossroads of a long-standing socio-economic and ethno-cultural tension between India’s smaller indigenous communities in the North East and illegal migrants from Bangladesh who have trooped into the country on a massive scale for over a half a century.

Unchecked and sustained infiltration has raised both demographic and national security challenges. Scholars have pointed out that insurgency movements in North East, especially Assam, ‘rose on a response to illegal immigration’ and the large-scale infiltration of chiefly Muslim immigrants has given rise to Pakistan’s ISI-sponsored Islamist militancy in the state (The Contours of Assam Insurgency by Dinesh Kotwal, Research Fellow, Institute for Defence Studies and Analysis).

File image of West Bengal chief minister Mamata Banerjee.

In their March 2016 paper, ‘Socio-Economic and Political Consequence of Illegal Migration into Assam from Bangladesh‘, professors J Das and D Talukdar wrote: “The flow of immigrants started during the rule of the British and continues till today due to the pull and push factors. The deportation of illegal migrants becomes difficult due to the lack of strong law and political will, as illegal migrants are used as a vote bank by different political parties. The data provided in the study indicates that if necessary steps are not taken immediately, Assam, the elder sister of North East India would lose its identity from the map of India very soon.”

Sanjay Bhardwaj, Assistant Professor, Centre for South Asian Studies, JNU, points out in his paper for CLAWS Journal citing various sources that “the growth rates of the Muslim population, according to the 2001 census, are the highest precisely in the districts that share a border with, or lie close to the border with Bangladesh, for example, in Assam, this is particularly in Dhubri, Barpeta, Karimganj, and Hailakandi.”

The 1998 report on ‘Illegal Migration in Assam’ submitted to the President of India by the then Assam Governor Lt Gen SK Sinha pointed out that the “Muslim population of Assam has shown a rise of 77.42 percent in 1991 from what it was in 1971. The Hindu population has risen by nearly 41.89 percent in this period… As per the 1991 census, four districts (Dhubri, Goalpara, Barpeta and Hailakandi) have become Muslim-majority districts. Two more districts (Nowgaon and Karimganj) should have become so by 1998 and one district (Morigaon) is fast approaching this population.”

The Assam Governor report also shed light on the historical background of infiltration, mentioned the case for ‘lebensraum‘ (living space) made by Bangladesh politicians and intellectuals, and held as contributing factors the action of some political parties ‘(who) have been encouraging and even helping illegal migration, with a view to building vote banks.’

The prolonged infiltration and subsequent demographic changes sparked an existential fear among Assam’s Ahoms, Bodos, Koch Rajbonshis, Santhalas, Kukis and many other smaller tribes and communities, and in the 1970s, a prolonged, grassroot-level student agitation in Assam took shape that resulted in the loss of over a hundred lives. It eventually led to the signing of the Assam Accord between the Rajiv Gandhi-led Congress government in 1985 and leaders of the Assam movement.

The Accord holds that all illegal aliens who entered the state between January 1966 and March 1971 would be disenfranchised for ten years, and those who came after March 1971 would be deported.

In the Sarbananda Sonowal versus Union of India case in 2005, a three-judge Supreme Court bench of Justices RC Lahoti, GP Mathur and PK Balasubramanyan had observed that:

“22. The dangerous consequences of large scale illegal migration from Bangladesh, both for the people of Assam and more for the nation as a whole, need to be emphatically stressed. No misconceived and mistaken notions of secularism should be allowed to come in the way of doing so.
23. As a result of population movement from Bangladesh, the spectre looms large of the indigenous people of Assam being reduced to a minority in their home State. Their cultural survival will be in jeopardy, their political control will be a weakened and their employment opportunities will be undermined….”

Further, the Supreme Court also observed that: “(5.8) Foreigners who came to Assam on or after 25 March, 1971 shall continue to be detected, deleted and expelled in accordance with law. Immediate and practical steps shall be taken to expel such foreigners.” 

In his seminal book ‘Sons of the Soil: Migration and Ethnic Conflict in India (Princeton University Press, 08-Mar-2015)’, American scholar Myron Weiner — whose area of expertise included internal and international migration, ethnic conflict, political demography, among others — pointed out that “if we accept the 1891 census estimate that one-fourth of the population of the Brahmaputra Valley was then of migrant origin, we can estimate that the migrant population (and its descendants) in 1971 was more like 8.5 million, as against an ‘indigenous’ population of 6.5 million.”

It is in this context that the Supreme Court in 2013 ordered an upgradation of National Register of Citizens (NRC) to detect cases of illegal immigration from Bangladesh. The process of verification was held between May 2015 and 31 August, 2015, involving 3.29 crore people and included “house-to-house field verification, determination of authenticity of documents, family tree investigations in order to rule out bogus claims of parenthood and linkages and separate hearings for married women.”

Such an elaborate, painstaking arrangement to scrutinise and quantify the alien population in Assam, that carries judicial sanction, was preceded by a sustained, organic mass movement. The exercise is necessary for national security and preserving the identity and social fabric of a multi-cultural, multi-ethnic state that has fallen prey to a campaign of petty politics, obfuscation and deliberate misinformation.

Speaking to the media outside the Parliament building on Wednesday, the West Bengal chief minister claimed the “NRC will destroy relationship between India and Bangladesh. Out of 40 lakh people whose names are not in the list of NRC, only 1 percent could be illegal infiltrators.”

Mamata had earlier warned of a ‘bloodbath’ and “civil war in the country” over NRC and conflated an issue of illegal migration of aliens with free movement of Indian citizens across India.



Mamata also claimed that ‘people are being isolated through a game plan… It’s a plan to throw out Bengali speaking people and Biharis.’

BSP chief Mayawati has joined in. She claimed that the publication of NRC — that vetted 1.9 crore citizens in the first draft and 2.89 crore in the second (out of 3.29 crore applicants) — is ‘anarth‘, and “a catastrophe that would bring more grief to the minorities and the disadvantaged in an election year.”

The debate over NRC is spurious. Nobody has said that this is the final draft, and no one has said that those whose names have not found mention in the second draft will be ‘forcefully evicted’. The BJP has clarified its stand. Party president Amit Shah has said that the second draft isn’t final, there will be enough opportunities for objections and cross-verifications. Names of only those who have not been able to prove their citizenship have been kept out. It is to be noted that under the Foreigners Act, the burden of proof for citizenship lies on the persons claiming to be a citizen.

Union home minister Rajnath Singh has said that it isn’t a “final draft”. Assam chief minister Sonowal and the state home ministry has clarified that ‘based on this draft, no reference case will be sent to the foreigners’ tribunal or put in a detention centre.”

An NRC Seva Kendra in Assam. File image. 

Finally, the Supreme Court has said that those excluded from the list ‘must get a fair chance’ and the draft cannot form the basis of coercive action.An NRC co-ordinator has told The Indian Expressin an interview that “people will get another chance to prove their credentials. Then we will come out with a final NRC. The NRC process will be over then. Even after that, whether a person is an illegal migrant or not is something that can be decided only by judicial scrutiny and that is through a certain set of codes, which has been established in Assam… called the Foreigners Tribunal.”

What, then, is the fuss all about?

The political storm created by some cynical leaders is an attempt to muddy the waters where fishing for minority votes becomes easier. Take Mamata’s revolving stance. In 2005, as TMC chief, she led the charge against Bangladeshi immigrants entering the state of West Bengal and accused the Left Front government of making them part of the voter’s list. To mark her protest, she had thrown a sheaf of papers at the deputy Speaker, and later sent her resignation through an officer of the House.

The Congress has been caught on a sticky wicket, unable to extricate its name from the authorship of the Assam Accord or NRC draft. It has resorted to technicalities to create obstructions in the process and appears to be walking a tightrope. Its difficulties won’t cease with the news that a Wikileaks cable caught Sonia Gandhi vowing to amend the Foreigners Act to create a backdoor entry for illegal aliens.

As reported by Yatish Yadav in Firstpost, the cable, ‘dated 16 February 2006, authored by a US consulate officer in Kolkata had alleged that then Congress president Sonia Gandhi, campaigning for the May 2006 state Assembly election in Assam, in a brazen appeal to the Muslims, offered to amend the Foreigners Act to prevent deportation of illegal Bangladeshi immigrants.’

These positions are unfortunate but not inexplicable. The political process in India is now a perfection of the art of subverting democracy, and not even national security or sovereignty are off the table in exchange for votes. The TMC, BSP, or Congress, for instance, sense in the struggle for Assam’s identity an opportunity to consolidate their minority vote banks. For Mamata, there is the added incentive of extending TMC’s reach in Assam by tapping into the Muslim vote bank and squeezing Congress or AIUDF’s space. Her ambition arises out the sense of security that she feels about her position in Bengal. 2019 isn’t far away and her eyes are fixed firmly on the prime minister’s chair.