तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं: अनिल विज

 

 

अम्बाला- जैन मुनि तरुण सागर जी के निधन पर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने व्यक्त किया शोक।

अम्बाला- विज ने कहा समाज को सही दिशा दिखाने में हमेशा याद किया जायेगा तरुण सागर जी का योगदान।

अम्बाला- विज ने कहा- तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं।

Activists had Maoist links, planned to end Modi-raj: Maharashtra police


Activists had Maoist links, planned to end Modi-raj: Maharashtra police


The Maharashtra Police said on Friday there were “clear links” between the five arrested activists and Naxals.

“When we were confident that clear links have been established then only we moved to take action against these people, in different cities. Evidence clearly establishes their roles with Maoists,” ADG (Law and Order), Maharashtra Police, Parambir Singh said at a press conference in Mumbai.

He added that letters exchanged between the activists point to the plotting of a “Rajiv Gandhi-like” incident.

“An email letter, between Rona Wilson and a CPI-Maoist leader, speaks of ending ‘Modi-raj’ with a ‘Rajiv Gandhi-type incident’,” Singh told reporters.

“Case was registered on 8 January about an incident of 31 December 2017 where hate speeches were delivered. Sections were imposed for spreading hatred. Investigation was conducted. Almost all the accused were associated with Kabir Kala Manch,” he was quoted as saying by ANI.

According to the Pune police, speeches made by some arrested activists at the Elgaar Parishad conclave, a day before the bicentennial celebration of the battle of Bhima Koregaon, were one of the triggers for the violence that was gripped Pune on 1 January 2018. The violence left one person dead and ended with Maharashtra shutdown on 3 January called by the Bharipa Bahujan Mahasangh, headed by Prakash Ambedkar, grandson of BR Ambedkar.

The senior police officer added that investigation revealed a big controversy being plotted by Maoist organisations.

“Police has seized “thousands of letters” exchanged between the overground and the underground of Maoists,” the senior police officer said.

“The accused were helping them to take their goals forward,” he said, adding that a terrorist organisation was also involved following which, on 17 May, sections under Unlawful Activities (Prevention) Act were imposed.

According to the police, the letter also sought money for procuring grenade launchers.

The police said that the Central Committee of Maoists never communicates directly with overground workers and instead chooses a network of couriers and password-protected devices to exchange messages.

The ADG said that the Pune police was able to crack the password-protected evidences obtained from the accused containing the messages exchanged between the overground workers and Maoists.

He added that the five activists arrested on Tuesday, 28 August, only after thorough analysis of the evidences over a period of two months.

At the press conference, the ADG also read out passages from the letters obtained from the accused.

House arrest of five activists

The five activists arrested are Varavara Rao (Telangana), Vernon Gonsalves and Arun Pereira (Mumbai), Sudha Bharadwaj (Chhattisgarh), Gautam Navlakha (Delhi).

On Wednesday, 29 August, the Supreme Court issued a notice to the Centre and the Maharashtra government asking them to explain the grounds on which five eminent human rights activists of the country were arrested in a coordinated operation conducted across states.

A three-judge bench comprising Chief Justice Deepak Misra, and Justices AM Khanwilkar and DY Chandrachud, also prevented the police from keeping the five activists into custody but said they can be kept under house arrest.

Hearing a petition filed by historian Romila Thapar, economist Prabhat Patnaik, Satish Deshpande, economist Devaki Jain and human rights activist Maya Daruwala, the apex court observed that “dissent is the safety valve of democracy. If dissent is not allowed then the pressure cooker may burst”.

The petitioners said that the arrests are an attempt “to silence dissent, stop people from helping the downtrodden and marginalised people across the Nation and to instil fear in minds of people”.

“The timing of this action leaves much to be desired and appears to be motivated to deflect people’s attention from real issues,” the petition read.

The apex court has scheduled the next hearing for Thursday, 6 September, by which time both the Centre and the Maharashtra government will have to file their responses.

Who else has been arrested?

The police had also arrested prominent human rights activists like Surendra Gadling, Mahesh Raut, Shoma Sen, Rona Wilson, Sudhir Dhawale besides raiding Harshali Potdar, Jyoti Jagtap, Ramesh Gaychor and Sagar Gorke in June.

The same month Pune police had allegedly recovered a letter mentioning a plan to assassinate Prime Minister Narendra Modi from the house of one of the five persons arrested in connection with the Bhima Koregaon violence.

It also referred to requirement of Rs 8 crore to purchase an M-4 rifle and four lakh rounds to execute the plot. The letter reportedly mentioned Varvara Rao’s name.

ममता-माया पीएम बनने का सपना न देखें, पवार पालिटिक्स ने फंसाया पेंच


क्षेत्रीय दल निजी तौर पर कितनी भी सीटें जीत लें लेकिन लोकसभा चुनाव में सीटों की संख्या की रेस में कांग्रेस को कभी हरा नहीं सकेंगे और ऐसे में क्षेत्रीय दल पीएम पद का दावा करने के लिये संख्याबल कहां से लाएंगे?


साल 2019 के लोकसभा चुनाव आने से पहले इन दिनों दो सवालों का शोर है. पहला ये कि मोदी सरकार को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिये विपक्ष किस गणित और फॉर्मूले पर काम करे? वहीं दूसरा ये कि पीएम कौन बनेगा या बन सकता है या बन सकेगा?

इसी उधेड़बुन की वजह से महागठबंधन अबतक बुना नहीं जा सका. अब एनसीपी यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो ने लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को हराने और विपक्ष में से किसी को पीएम बनाने का नया फॉर्मूला दिया है.

शरद पवार ने कहा है कि पहले लोकसभा चुनाव में सभी बीजेपी विरोधी दल साथ मिल कर बीजेपी को चुनाव में हराएं. उसके बाद जिसके सबसे ज्यादा सांसद चुने जाएं, उसी दल का पीएम बनाया जाए.

फोटो रॉयटर से

शरद पवार का ये बयान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान के बाद आया है. दरअसल, राहुल ने कहा है कि वो प्रधानमंत्री बनने का सपना नहीं देखते हैं और प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में नहीं हैं. जिसके बाद शरद पवार ने कहा कि राहुल के पीएम पद की दौड़ में न होने से अब 2019 के चुनाव में अधिकतम सीटें जीतने वाली पार्टी प्रधानमंत्री पद के लिए दावा कर सकती है.

शरद पवार ने ही सबसे पहले महागठबंधन की व्यावहारिकता पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था कि महागठबंधन में क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने जनाधार होने की वजह से चुनाव पूर्व महागठबंधन व्यावहारिक नहीं लगता है. लेकिन इस बार पवार के फॉर्मूले के मुताबिक बीजेपी को हराने की रणनीति के तहत जिस राज्य में जो दल पहले नंबर पर होगा, वहां उसे दूसरी पार्टियां सहयोग करेंगीं.

ऐसे में सवाल उठता है कि सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्यों में पवार का अंकगणित कैसे फिट बैठेगा?

महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं. यहां कांग्रेस के मुकाबले एनसीपी की स्थिति बेहतर है. एनसीपी की कोशिश रहेगी कि यहां उसे कांग्रेस तरजीह देते हुए ज्यादा सीटों पर समर्थन करे. साल 2014 में एनसीपी को केवल 4 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस को मात्र 2 सीटें मिली थीं. हाल ही में एनसीपी ने भंडारा-गोंदिया सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी से सीट छीन ली. यहां कांग्रेस और शिवसेना ने अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था. इसके बावजूद अपने ही गढ़ में एनसीपी कांग्रेस के समर्थन के बावजूद ज्यादा आश्वस्त नहीं दिखती है.

पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. टीएमसी राज्य में नंबर वन पार्टी है. ऐसे में विपक्षी दलों के रूप में कांग्रेस और वाम दलों को टीएमसी को सहयोग करना होगा और अपनी महत्वाकांक्षाओं पर लगाम कसनी होगी. लेकिन टीएमसी भी सभी 42 सीटें जीतने का अजूबा नहीं कर सकती है. खासतौर से तब जबकि पिछले चार साल में बीजेपी ने खुद को बड़ी रफ्तार के साथ दूसरी स्थिति पर ला खड़ा किया हो.

इसी तरह तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं. अगर कांग्रेस और डीएमके के बीच सबकुछ सामान्य रहता है तो फिर कांग्रेस को डीएमके का ही समर्थन  करना होगा. मोदी विरोध की लहर बनाने के लिये क्षेत्रीय दलों के जनाधार को सम्मान देना होगा. लेकिन तमिलनाडु की सियासत में डीएमके को टक्कर देने के लिये कुदरती तौर पर एआईएडीएमके का गठन हुआ है. ऐसे में डीएमके भी सभी 39 सीटों का ख्वाब नहीं देख सकती है.

 

इसी तरह यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती कितना भी करिश्मा क्यों न दिखाएं लेकिन सवाल उठता है कि क्या वो 80 में से 70 सीटें जीत सकेंगीं? मौजूदा राजनीतिक हालात में  ये सवाल सिर्फ काल्पनिक ही लग सकता है.

हालांकि, इस तरह के फॉर्मूले से शरद पवार ने क्षेत्रीय दलों का मान तो बढ़ा दिया. लेकिन क्षेत्रीय दलों में से किसी के पीएम बनने की संभावना को खारिज़ भी कर दिया. क्षेत्रीय दल निजी तौर पर कितनी भी सीटें जीत लें लेकिन लोकसभा चुनाव में सीटों की संख्या में कांग्रेस को कभी हरा नहीं सकेंगे. ऐसे में पीएम पद का दावा ठोंकने के लिये संख्याबल कहां से लाएंगे?

साल 2014 में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस 44 सीटें जीतने में कामयाब रही. साल 2019 में कांग्रेस ऐसा प्रदर्शन कतई दोहराना नहीं चाहेगी. अगर ऐसा होता है तो फिर वैसे भी विपक्ष के सरकार बनाने की उम्मीदें खारिज हो जाती हैं. कांग्रेस का प्रदर्शन ही क्षेत्रीय दलों की ताकत की भी ताल ठोंकने के काम आएगा. कांग्रेस मजबूत होगी तो क्षेत्रीय दल भी बीजेपी विरोध में संख्या बल में मजबूत होंगे.

वहीं पवार फॉर्मूले का जो सबसे बड़ा पेंच है वो ये कि सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाले दल का लीडर ही पीएम का चेहरा होगा. ऐसे में टीएमसी कितनी भी सीटें जीत ले लेकिन उसकी संख्या 42 से ज्यादा नहीं हो सकती. इसी तरह डीएमके भी 39 सीटों से ज्यादा नहीं जीत सकता. महाराष्ट्र में एनसीपी भी 48 सीटों में बहुत ज्यादा चमत्कार नहीं दिखा सकती.

लेकिन क्षेत्रीय दलों के मुकाबले देश के तमाम राज्यों में बतौर राष्ट्रीय पार्टी  कांग्रेस पार्टी का इतिहास और मौजूदगी ही उसकी सीटों की संख्या बढ़ाने का काम कर सकती है. ऐसे में अगर कांग्रेस को यूपीए के जरिये सरकार बनाने का मौका मिलता है तो राहुल के लिये पीएम पद का दावा पेश करने के लिये पवार फॉर्मूला ही सबसे बड़ा आधार होगा.

भले ही राहुल मना करें कि वो पीएम नहीं बनना चाहते हैं और कांग्रेस बार-बार ये कहे कि उसे ममता बनर्जी या मायावती के पीएम पद के नाम पर कोई एतराज नहीं है, लेकिन कांग्रेस के भीतर पक रही सियासी खिचड़ी से साफ है कि मौका मिलने पर राहुल के नाम का ही दावा किया जाएगा. शायद तभी एनसीपी चीफ शरद पवार पीएम पद के मामले में पूर्व कांग्रेसी होने का कर्ज अदा कर रहे हैं. इससे संदेश भी ये जा रहा है कि अब विपक्ष में पीएम पद को लेकर कोई पेंच या फिर व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं है तो दूसरी तरफ राहुल के लिये खुद पवार ही रास्ता साफ कर रहे हैं.

इसकी एक बड़ी वजह ये भी मानी जा सकती है कि पवार कभी नहीं चाहेंगे कि उनको और उनकी पार्टी के सियासी वजूद को किसी दूसरी क्षेत्रीय पार्टी से चुनौती मिले. वैसे भी राष्ट्रीय राजनीति में शरद पवार का कद दूसरे क्षेत्रीय नेताओं से बहुत बड़ा है. ममता बनर्जी, मायावती और डीएमके के नए चीफ एमके स्टालिन जैसे नेता शरद पवार के सियासी अनुभव और राष्ट्रीय कद के मुकाबले कहीं नहीं माने जा सकते हैं.

देश और महाराष्ट्र की सियासत पर ‘पवार की पावर’ का असर हर दौर की सियासत ने देखा है. पवार चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्र में एक बार रक्षा मंत्री और कृषि मंत्री रह चुके हैं. पांच दशक की राजनीतिक पारी में पवार कभी चुनाव नहीं हारे हैं. देश की सबसे प्रभावशाली राजनैतिक हस्तियों में पवार शुमार करते हैं. पवार की जिंदगी में दो बार ऐसे मौके आए जबकि वो देश के पीएम बन सकते थे. उस वक्त पवार किसी गठबंधन के मोहताज नहीं थे. लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों ने उनके हाथ पीएम पद आने नहीं दिया. ऐसे में पवार भी कभी नहीं चाहेंगे कि उनके सामने राजनीति का ककहरा सीखने वाले पीएम पद की दौड़ में शामिल हों.

उन्होंने नया फॉर्मूला देकर भले ही पीएम पद का पेंच कस दिया हो लेकिन देखा जाए तो रास्ता राहुल के लिये ही आसान हुआ है. भविष्य में महागठबंधन बने या न बने, विपक्ष की तरफ से कांग्रेस ही बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है. भले ही कांग्रेस की तरफ से पीएम पद के लिये अब राहुल उम्मीदवार नहीं हैं लेकिन चुनाव बाद सीटों के खेल में वो बीजेपी विरोधी विपक्षी दलों में तो आगे रह ही सकते हैं. बहरहाल, शरद पवार के इस नए सियासी फॉर्मूले में पवार के सियासी अनुभव का निचोड़ दिखाई देता है. उन्होंने एक तीर से कई निशाने लगाएं हैं.

पीवी सिंधू ने 18वें एशियाई खेलों में रचा इतिहास


रियो ओलंपिक खेलों की रजत विजेता भारत की पीवी सिंधू ने सोमवार को 18वें एशियाई खेलों की बैडमिंटन स्पर्धा के महिला एकल स्वर्ण पदक मुकाबले में पहुंचकर इतिहास रच दिया।


सिंधू भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी बन गयी हैं जिन्होंने एशियन खेलों के फाइनल में प्रवेश पाया है। उन्होंने महिला एकल सेमीफाइनल मुकाबले में भारी उत्साह और भारतीय समर्थकों के सामने दूसरी सीड जापान की अकाने यामागुची के खिलाफ 66 मिनट तक चले रोमांचक मुकाबले को 21-17, 15-21, 21-10 से जीता।

विश्व की तीसरे नंबर की खिलाड़ी सिंधू ने यामागुची की चुनौती को स्वीकारते हुये बराबरी की टक्कर दिखाई। पहला गेम जीतने के बाद दूसरे गेम में हालांकि जापानी खिलाड़ी ने कहीं बेहतर खेल दिखाया और 8-10 से सिंधू से पिछड़ने के बाद लगातार भारतीय खिलाड़ी को गलती करने के लिये मजबूर किया और 11-10 तथा 16-12 से बढ़त बना ली।

सिंधू पर दबाव बढ़ता गया और एक समय यामागुची ने स्कोर 17-14 पहुंचा दिया और फिर 20-15 पर गेम प्वांइट जीतकर 21-15 से गेम जीता और मुकाबला 1-1 से बराबर पहुंचा दिया। निर्णायक गेम और भी रोमांचक रहा जिसमें यामागुची ने आत्मविश्वास के साथ शुरूआत करते हुये 7-3 की बढ़त बनाई।  लेकिन सिंधू लगातार अंक लेती रहीं और 5-10 से पिछड़ने के बाद लंबी रैली जीतकर बढ़त बनाई।

उन्होंने 11 अंकों की सबसे बढ़ी बढ़त ली और 16-10 से यामागुची को पीछे छोड़ा और 20-10 पर मैच प्वाइंट जीतकर निर्णायक गेम और मैच अपने नाम कर लिया। तीसरी वरीय खिलाड़ी के सेमीफाइनल मुकाबला जीतने के साथ ही स्टेडियम में बैठे लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी जीत का स्वागत किया।

सिंधू अब फाइनल में भारत को पहला एशियाड स्वर्ण दिलाने के लिये चीनी ताइपे की ताई जू यिंग के खिलाफ उतरेंगी जिन्होंने दिन के एक अन्य सेमीफाइनल में भारत की सायना नेहवाल को 21-17, 21-14 से पराजित किया।
सायना एशियाई खेलों में महिला एकल का पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं।

स्थिर सरकार, योग्य कार्यपालिका ने बदली बस्तर की तस्वीर, विकास ने यहाँ तो पैर पसार ही दिये


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है.


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है. कुछ समय पहले तक राज्य के बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर सहित लगभग 16 जिलों में नक्सलियों का खुलमखुल्ला तांडव चलता था. केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार भी नक्सलियों के सामने लाचार, विवश और बेसहारा बन कर यह सब देखते रहते थे.सारी मशीनरी नक्सलियों के सामने घुटने टेक देती थी.

30-40 साल बाद एक बार फिर से वही हाथ उठने लगे हैं, एक बार फिर से बंदूकों से गोलियां गरजने लगी हैं, लेकिन अब बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की दिशा बदल गई है. जो आदिवासी पहले कभी नक्सली बन कर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हुआ करते थे, वही नक्सली अब छत्तीसगढ़ पुलिस में भर्ती हो कर दूसरे लोगों की जान की रक्षा करने में लग गए हैं. ये वही लोग हैं जो बाकी बचे-खुचे नक्सलियों के खिलाफ भी अब काल बन कर सामने खड़े हो गए हैं. ये लोग समाज की मुख्यधारा में वापस लौट कर समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना पाले हुए हैं.

जो लोग कुछ साल पहले तक नक्सली जुल्म का शिकार थे वो अब सहकारी समिति के माध्यम से पॉस्चराइजेशन प्लांट में दूध बेच कर पैसे कमा रहे हैं. इसके अलावा परम्परागत जैविक खेती कर चावल पैदा कर रहे हैं और मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े व्यापारिक हब को निर्यात भी कर रहे हैं.

जिन सड़कों पर कभी आदिवासी महिलाएं सिर पर लकड़ी लेकर जाती थीं वही महिलाएं अब बेहतरीन सड़कों पर सार्वजनिक यातायात के जरिए गैस का सिलेंडर लेकर जाते हुए देखी जा सकती हैं. गांव की दुकानों और बाजारों में पहले जो वीरानी छाई रहती थी, उन दुकानों और बाजारों में अब रौनक रहती है.

दंतेवाड़ा जिले के बोमड़ा पारा ब्लॉक के जावंगा गांव की एक महिला बुड़िया, गांव की खूबसूरत सड़क के किनारे खड़ी होकर टूटी-फूटी हिंदी में बात करते हुए कहती हैं, मैं अब घर पर ही ज्यादा काम करने लगी हूं. अभी पति के साथ साइकिल से गांव से बाजार आई हूं. पति के साथ खेती में सहयोग करती हूं. दो बच्चे हैं, पांच साल का बेटा है और सात साल की बेटी. दोनों बच्चे स्कूल गए हैं, इसलिए हमलोग बाजार में सामान खरीदने आए हैं. पति जैविक खेती करते हैं. पति का भी सहकारी समिति में कुछ काम था इसलिए हमलोग दोनों एक साथ बाजार आए हैं.’

बुड़िया से पत्रकारों  ने सवाल किया कि आपके लिए राज्य के सीएम रमन सिंह ने क्या-क्या काम किया है तो उस पर बुडिया कहती हैं, ‘राशन अब समय पर मिलने लगा है. पहले हमलोग राशन लेने नहीं जाते थे. अपने खेत का उपजा हुआ चावल ही खाते थे. लेकिन, अब हमें सरकार की तरफ से मदद मिलने लगी है. गांव में बिजली भी आ गई है. 20 से 22 घंटे बिजली रहती है. गांव में ही पानी भी पहुंचने वाला है. कलेक्टर साहेब अक्सर गांव आते रहते हैं. पानी लाने के लिए हमें अब दूर नहीं जाना पड़ता है.’

आतंक की त्रासदी में दशकों जीने को मजबूर ये लोग अब अपने दम पर खड़े हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ देश का अकेला ऐसा राज्य है, जिसमें अनाज का उत्पादन ही नहीं, उत्पादकता भी बढ़ी है. यानी लागत कम, अनाज ज्यादा. यहां के युवाओं को बीपीओ के जरिए रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. यहां के युवा किसी भी दूसरे शहर के लड़के-लड़कियों की तरह फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते मिल जाते हैं.

दंतेवाड़ा के एक बीपीओ में काम करने वाली और दंतेवाड़ा के ही पीजी कॉलेज से एमए पास मीना सेनापति कहती हैं, ‘पहले मेरी कम्यूनिकेशन स्किल अच्छी नहीं थी. मैंने 45 दिनों की बीपीओ ट्रेनिंग ली. मेरे बातचीत करने का तरीका बेहतर हुआ है. मुझे 8 हजार की नौकरी भी मिल गई है.’

दंतेवाड़ा के इसी बीपीओ में काम करने वाली नीता देशमुख कहती हैं, ‘मैं ग्रेजुएट हूं. दंतेवाड़ा में गीदम एक जगह है वहां की रहने वाली हूं. सात महीने पहले मैं इस बीपीओ में आई थी, तब मुझे कुछ नहीं आता था. मेरा सपना था कि मैं वेब डिजायनर बनूं, लेकिन पैसे की कमी के कारण मेरा सपना पूरा नहीं हो रहा था. लेकिन अब मुझे आठ हजार रुपए मिलते हैं, जिससे मैं अपना सपना पूरा कर सकती हूं. पापा राजमिस्त्री का काम करते हैं. मैं चार बहनों में दूसरे नंबर पर हूं. दो बहन की शादी हो चुकी है.’

इसी तरह बछेली की रहने वाली कांति नाग, दंतेवाड़ा की रहनेवाली निधि बैरागी और रवि प्रकाश बीपीओ में काम कर अपना सपना पूरा करना चाहते हैं. इन युवाओं को सरकार की तरफ से रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली हिना सिंह, जिनके पिता नौकरी करने सालों पहले कर्नाटक से दंतेवाड़ा आ गए थे, कहती हैं, ‘मैं एक ट्यूटर हूं. पिछले 21 सालों से ट्यूशन पढ़ाती आ रही हूं. इस बीपीओ के जरिए मुझे फिक्स्ड सैलेरी मिल रही है. पति ड्राइवर का काम करते हैं. यहां से छूटने पर मैं 10वीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाती भी हूं.’

दूसरी तरफ दिव्यांग बच्चों के लिए भी दंतेवाड़ा में एक शानदार मुकबधिर स्कूल चलाया जा रहा है. हाल ही में इस स्कूल में देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दौरा किया था. यहां पढ़ने वाली दंतेवाड़ा के कुआकोंडा ब्लॉक के माड़ेंदा गांव की हड्मा हंस कर कहती हैं, ‘बहरेपन का इलाज नहीं होने पर भी वे इशारों में बात कर लेती थीं पर अब सरकारी इलाज के बाद यह फायदा हुआ है कि दूसरे उनके बारे में क्या कह रहे हैं यह सुन सकती हूं. आम लोगों की तरह संवाद कर सकती हूं.’

आज से कुछ साल पहले तक छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सातों जिलों बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर जिले का नाम सुनते ही लोगों के मन में भय तारी हो जाता था. कहा जाता था अगर एक तरफ से कोई हिंसक जानवर हमला करे और दूसरी तरफ से नक्सली तो लोग पहले की तरफ भागना पसंद करते थे. यही सोच कर कि जानवर तो सिर्फ एक झटके में मारेगा. तड़पना तो नहीं पड़ेगा.

सालों बाद आज स्थानीय अखबारों में खबर देखने को मिलती है कि इस अप्रतिमरूप से प्राकृतिक सौन्दर्य समेटे हाथ-से-हाथ न दीखने वाले जंगल से घिरे अमुक गांव मे एक-दो नक्सलियों ने मोबाइल छीन लिया. दरअसल स्थानीय मीडिया भी अब नक्सली और औसत अपराधी को समानार्थी समझने लगा है. यह स्थिति चरम वामपंथ जो पिछले 60 सालों में ‘राज्य-पोषित शोषण को हथियार से खत्म करने’ के नाम पर देश के 10-12 राज्यों में लंपटवादी आतंक का पर्याय बन गया था, अब पता चला कि सड़क-छाप गुंडई के रूप में अंतिम सांसें गिन रहा है.

यह सब कुछ संभव कैसे हुआ !

कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी कुछ प्रचार सामग्री (बुकलेट) छापी, जो बाहर से आने वाले किसी भी स्वतंत्र विश्लेषक को उपलब्ध होती है, लेकिन चूंकि यह सरकारी ज्ञान होता है, जिस पर सहज विश्वास करना मुश्किल होता है, लिहाजा तस्दीक के लिए हमारी टीम हाईवे के पास के गांव में निकल गई. सड़क के पास ही कुछ आदिवासी महिलाएं गैस सिलिंडर के साथ दिखीं. उनके चेहरे पर खुशी देखने को मिली. इन महिलाओं से पूछने की कोशिश की तो टूटी-फूटी हिंदी में कहती हैं, ‘सरकार ने दिया है. जलाना आता है का जवाब हंस कर देती हैं, घर जा कर किसी से पूछेंगे.

कैसे स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है प्रशासन?

इस राज्य में एक व्यक्ति और एक पार्टी का शासन पिछले 15 साल से जारी है. छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों से युवा आईइएस और आईपीएस अधिकारियों में इस बात की होड़ लगी है कि कौन विकास के नए विचार अमल में लाता है या कौन कानून व्यवस्था को ज्यादा दुरुस्त करता है. विकास के 31 पैरामीटर्स पर कौन जिलाधिकारी इस माह किससे आगे या पीछे रह गया है, इसकी समीक्षा की जाती है. साथ ही, अधिकारियों को तबादले की चाबुक से डराने का खेल यहां नहीं चलता.

सौरभ कुमार सिंह

चार साल से भी ज्यादा समय से दंतेवाड़ा में तैनात 2009 बैच के आईएएस अधिकारी और जिले के डीएम सौरभ कुमार सिंह हमसे बात करते हुए कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि एक आईएएस अधिकारी को काम करने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य ही बने हैं. ये ऐसे राज्य हैं, जहां पर काम करने की संभावना सबसे ज्यादा हैं. किसी भी स्तर के अधिकारी को अगर सच में कुछ कर के दिखाना है तो दो चीजें होनी चाहिए, पहली काम करने के लिए ऐसी परिस्थितियां होनी चाहिए, जो आपके काम को प्रमोट करें. जिसके लिए पोलिटिकल स्टेबलिटी होना बहुत ही आवश्यक है. दूसरा, एक ऐसा एनवायरमेंट होना चाहिए जिससे आप एक निश्चित समय-सीमा में काम कर दिखा सकें. हम अगर बात करें साल 2015 या 2016 की तो जिले में संस्थागत प्रसव रेट 38 प्रतिशत था. आज की तारिख में यह 78 प्रतिशत है. अब महिलाएं अस्पताल में जाकर प्रसव करा रही हैं. ये सब तभी संभव हो पाता है जब आपको एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिले. ये सब छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में ही आपको करने को मिलेगा. ’

सौरभ कुमार सिंह आगे कहते हैं, ‘दंतेवाड़ा में प्राइवेट सेक्टर में पिछले छह महीने में रोजगार डबल हो गए हैं. अगर जिले में योजनाओं की बात करें तो यहां पर एससीए या भारत सरकार की होम मिनिस्ट्री के जरिए जो पैसा आता है उससे कहीं अधिक पैसा दंतेवाड़ा जिले को माइनिंग फंड से मिलता है, जिसमें राज्य शासन ने जो नियम बनाए हैं उसमें ज्यादातर अधिकार जिले के कलेक्टर को दिए हैं. उसी के समकक्ष जिले में जो बड़ी इंडस्ट्री चल रही जैसे एनएमडीसी के सीएसआर का पैसा भी आता है. इन पैसों के इस्तेमाल का अधिकार राज्य शासन ने कलेक्टर को दे रखा है. मेरा मानना है कि सबके अंदर कुछ न कुछ कर के दिखाने की चाहत होती है चाहे वह नेता हों या अधिकारी. हम साल में एक हजार युवक और युवतियों को नौकरी देने का काम करते हैं तो इसमें हमें कौन रोक सकता है. हजारों महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि ली कूपर और रेमंड जैसी कंपनियों से उनके पास सिलाई के ऑफर आ रहे हैं तो इसमें कौन रोक सकता है. चाहे नेता हों या जनता हो या फिर कोई और लोग सकारात्मक चीजों के साथ जुड़ना चाहते हैं.’

‘दंतेवाड़ा जिले में हमलोग यही काम कर रहे हैं. जिले में एक जैविक कैफे चल रहा है, जो किसानों की एक कंपनी चला रही है. हमको हरियाणा, पंजाब की तरह उत्पादकता में नहीं जाना है बल्कि अपने उत्पाद को अलग बनाना है. अगर रोजगार की बात करें तो हम गुरुग्राम और नोएडा से कंपेयर नहीं कर सकते हैं, पर अगर यहां के युवाओं को हम 8 हजार रुपए दे कर रोजगार दे रहे हैं तो क्या यह कम है. जिले की 150 महिला समूह ऑटो चला रही हैं. हमने सड़कें तो बना दी लेकिन लोगों के आय का लेवल इतना नहीं है कि वह ऑटो खरीद सकें. उनको हम ऑटो प्रोवाइड कर रहे हैं. 210 महिला समूह एक अलग जाति का कड़कनाथ मुर्गे का प्रजनन कर रहे हैं.’

दंतेवाड़ा के डीएम जहां जिले में विकास के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं वहीं जिले के एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव नक्सलियों के मंसूबे को तहस-नहस कर नक्सलियों को मुख्यधारा में जोड़ने का काम कर रहे हैं. और यह सब तब शायद संभव नहीं होता अगर राज्य सरकार के द्वारा युवा पुलिस अधिकारियों के लिए रणनीतिक परिवर्तन न किया होता.

इस प्रश्न पर कि सड़कों पर इस बीहड़ जंगल में भी पुलिस नहीं दिखाई दे रही है और क्या कहीं यह आत्ममुग्धता तो नहीं है या फिर पुलिस का अभाव है, दंतेवाडा के युवा पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव कहते हैं, ‘नहीं अब पुलिस आप को ही नहीं, नक्सलियों को भी दिखाई नहीं देती बस उन्हें गोली की आवाज सुनाई देती है और उनके समझने के पहले वे इसका शिकार हो चुके होते हैं. आपको बता दें कि सीआरपीएफ छत्तीसगढ़ में 2003-04 में आई. इससे पहले हमलोग यहां की भाषा को नहीं जानते थे. यहां के लोगों के कल्चर के बारे में हमलोगों को पता नहीं रहता था. छत्तीसगढ़ पुलिस में भी जो लोग थे वह छत्तीसगढ़ के दूसरे हिस्सों के थे. स्थानीय भागादारी बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने काफी काम किया है. इसमें एक है सरेंडर और रिहैब पॉलिसी, जिसके अंदर कोई भी ग्रामीण या नक्सली सरेंडर करता है या पुलिस को मदद करता जिससे हम दूसरे नक्सलियों को पकड़ पाते हैं. ऐसे लोगों को एसपी के रिकंमडेशन पर आईजी सिपाही के तौर पर भर्ती कर लेते हैं. धीरे-धीरे काफी नक्सलियों ने सरेंडर किया है. अगर बात सिर्फ दंतेवाड़ा जिले की करें तो यहां पर 70 से 80 सिपाही सरेंडर्ड नक्सली हैं.’

अभिषेक पल्लव

अभिषेक पल्लव आगे कहते हैं, ‘राज्य सरकार ने कुछ साल पहले डिस्टिक रिजर्व ग्रुप के नाम से एक लोकल ग्रुप बनाया. इसमें बस्तर निवासियों को अपने जिले में ही पुलिस की नौकरी करने के लिए पद निकाले गए थे. ऐसे 200 पद दंतेवाड़ा जिले में भी रिलिज किए गए थे. ये दो ग्रुप हैं, जिससे लोकल लोग हमलोगों को मिलते हैं. हमारी इस नीति को सीआरपीएफ ने भी हाल ही में आजमाया है. पहली बार सीआरपीएफ ने बस्तरिया बटालियन के लिए 750 बस्तर के ही युवक और युवतियों को नियुक्त किया. हमारे लिए लोकल लोगों का पुलिस में आना काफी फायदेमंद रहा. इन लोगों और उनके परिवार के जरिए हमें काफी सूचनाएं मिलती हैं. इनकी सटीक सूचनाओं और नक्सलियों के काम करने की गतिविधि को उन्हीं के अंदाज में जवाब दे रहे हैं.

दंतेवाड़ा के रहने वाले योगेश मानवी, जो आठवीं पास हैं, 1998 में ही नक्सली बन गए थे. साल 2012 में आत्मसमर्पण के बाद आज 25 हजार की पगार पर छत्तीसगढ़ पुलिस में नौकरी कर रहे हैं. इसी तरह परशुराम आलमी 2007 में नक्सली बन गए थे. साल 2015 में सरेंडर के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस में नक्सलियों को खत्म करने या मुख्यधारा में लौटने में मदद कर रहे हैं. आलमी पढ़े-लिखे नहीं हैं. इसी तरह 5वीं पास पोडिया तेलम 2001 में नक्सली बन गए थे. 2014 में समाज की मुख्यधारा में लौट कर परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं.

सुरक्षा सिद्धांतों में इस रणनीति को अदृष्टिगोचर सिक्योरिटी कहते हैं. पहले जहां जंगल के ऊंचे टीलों से ये जवानों को शिकार बनाते थे. आज पुलिस का उन ठिकानों पर कब्जा है. डरकर नक्सली या तो मौत के डर से मुख्यधारा में जुड़ने लगे हैं या फिर अंदर जंगलों में तिल-तिल कर मर रहे हैं. अब अदिवासियों पर भी उनका खौफ नहीं रहा है और सामूहिक रूप से उन्हें नकारने की क्षमता भी आ गई है. पुलिस अधीक्षक से यह मुलाकात अचानक ही थी लेकिन बड़े भरोसे से उन्होंने कहा ‘आप जहां हैं सिर्फ थोड़ी दूर घने जंगलों में नजर डालें आपको पुलिस की अदृश्य लेकिन सतर्क मुश्तैदी का एहसास हो जाएगा. और यह बात तब सच लगी जब उनके साथ हमारी टीम घने जंगलों से चित्रकोट तक का सफर किया.

कुलमिलाकर कुछ साल पहले तक राज्य के नक्सल प्रभावित 16 से 18 जिलों में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं थी. खासकर बस्तर संभाग के सभी जिलों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन को समझने वाला दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं देता था. इसका कारण था कि यहां पर नक्सलियों के द्वारा एक समानांतर सरकार चलाई जाती थी, लेकिन समय बदला, सरकार बदली और ब्यूरोक्रेसी ने भी अपनी जिम्मेदारी को बखुबी निभाया,जिसका नतीजा आज पूरे देश के सामने है. इन इलाकों में न केवल नक्सली घटनाओं में कमी आई बल्कि इन इलाकों के लोगों के जीवन स्तर से लेकर शिक्षा और स्वरोजगार में भी काफी सुधार देखने को मिल रहा है.

जो लाएगा जायदा सीटें वही होगा पीएम कुर्सी का दावेदार: पवार

 

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार ने सोमवार को कहा कि 2019 के चुनाव में अधिकतम सीटें जीतने वाली पार्टी ही प्रधानमंत्री पद के लिए दावा करेगी. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान पर भी ‘खुशी’ जाहिर की, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह प्रधानमंत्री बनने का सपना नहीं देखते हैं.

पवार ने कहा, ‘चुनाव होने दीजिए, इन लोगों (बीजेपी) को सत्ता से बेदखल होने दीजिए. हम एकसाथ बैठेंगे. अधिक सीट जीतने वाली पार्टी प्रधानमंत्री पद पर दावा कर सकती है.’

उन्होंने मुंबई में पार्टी की बैठक में कहा, ‘मैं इस बात से खुश हूं कि कांग्रेस नेता (राहुल गांधी) ने भी कहा है कि वह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं.’ राहुल गांधी ने रविवार को कहा था कि वह प्रधानमंत्री बनने का सपना नहीं देखते हैं.

राहुल गांधी ने कहा था, ‘मैं इस तरह के सपने नहीं देखता. मैं खुद को एक वैचारिक लड़ाई लड़ने वाले के तौर पर देखता हूं और यह बदलाव मेरे अंदर 2014 के बाद आया. मुझे महसूस हुआ कि जिस तरह की घटनाएं देश में हो रही है उससे भारत और भारतीयता को खतरा है. मुझे इससे देश की रक्षा करनी है.’

दिलाई यूपीए-1 की याद

मुंबई में आयोजित बैठक में पवार ने एनसीपी नेताओं को याद दिलाया कि 2004 के आम चुनाव के बाद गठित यूपीए ने तत्कालीन एनडीए सरकार को सत्ता से बेदखल किया था. उन्होंने कहा कि वह हर राज्य में जाकर ऐसे क्षेत्रीय दलों को विपक्षी गठबंधन के साथ जोड़ने की कोशिश करेंगे जो अभी बीजेपी के साथ नहीं हैं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है. उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश हैं. हर राज्य की स्थिति अलग है. इसलिए हमें हर राज्य में मजबूत लोगों को अपने साथ लेना होगा.’

‘मन की बात’ का 47वां संस्करण

 

मोदी ने रविवार को आकाशवाणी अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 47वें संस्करण में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि सुशासन को मुख्य धारा में लाने के लिए देश सदा वाजपेयी का आभारी रहेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वाजपेयी ने भारत को नई राजनीतिक संस्कृति दी और बदलाव लाने का प्रयास किया। इस बदलाव को उन्होंने व्यवस्था के ढांचे में ढालने की कोशिश की जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला सुनिश्चित है।

उन्होेंने कहा कि भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम 2003 के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। पहला यह कि राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार कुल विधानसभा सीटों के 15 प्रतिशत तक सीमित किया गया। दूसरा यह कि दल-बदल विरोधी कानून के तहत तय सीमा एक-तिहाई से बढ़ाकर दो-तिहाई कर दी गयी। इसके साथ ही दल-बदल करने वालों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी निर्धारित किए गए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कई वर्षों तक भारी भरकम मंत्रिमंडल गठित करने की राजनीतिक संस्कृति ने ही बड़े-बड़े “जम्बो” मंत्रिमंडल कार्य के बंटवारे के लिए नहीं बल्कि राजनेताओं को खुश करने के लिए बनाए जाते थे। वाजपेयी ने इसे बदल दिया। इससे पैसों और संसाधनों की बचत हुई। इसके साथ ही कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी हुई।

मोदी ने कहा कि यह अटल जी दीर्घदृष्टा ही थे, जिन्होंने स्थिति को बदला और हमारी राजनीतिक संस्कृति में स्वस्थ परम्पराएं पनपी। अटल जी एक सच्चे देशभक्त थे। उनके कार्यकाल में ही बजट पेश करने के समय में परिवर्तन हुआ। पहले अंग्रेजों की परम्परा के अनुसार शाम को पांच बजे बजट प्रस्तुत किया जाता था क्योंकि उस समय लन्दन में संसद शुरू होने का समय होता था। वर्ष 2001 में अटल जी ने बजट पेश करने का समय शाम पांच बजे से बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया।

मोदी ने कहा कि वाजपेयी के कारण ही देशवासियों को ‘एक और आज़ादी’ मिली। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई और 2002 में इसे अधिसूचित कर दिया गया। इस संहिता में कई ऐसे नियम बनाए गए जिससे सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराना संभव हुआ। इसी के कारण अधिक से अधिक भारतीयों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मिल पाया। इस तरह से उन्होंने प्राण प्रिय तिरंगे को जनसामान्य के क़रीब कर दिया। उन्होेंने कहा कि वाजपेयी ने चुनाव प्रक्रिया और जनप्रतिनिधियों से संबंधित प्रावधानों में साहसिक कदम उठाकर बुनियादी सुधार किए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह आजकल आप देख रहे हैं कि देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। इस विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। ये अच्छी बात है और लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत भी। मैं जरुर कहूंगा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, उत्तम लोकतंत्र के लिए अच्छी परम्पराएं विकसित करना, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करना, चर्चाओं को खुले मन से आगे बढ़ाना, यह भी अटल जी को एक उत्तम श्रद्धांजलि होगी।

वाजपेयी के योगदान का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने गाज़ियाबाद से कीर्ति, सोनीपत से स्वाति वत्स, केरल से भाई प्रवीण, पश्चिम बंगाल से डॉक्टर स्वप्न बनर्जी और बिहार के कटिहार से अखिलेश पाण्डे के सुझावाें का जिक्र किया।

श्रावण पूर्णिमा एवं रक्षाबंधन की कोटी कोटी बधाई

श्रावण माह की पूर्णिमा: ओणम एवं रक्षाबंधन

 

श्रावण माह की पूर्णिमा बहुत ही शुभ व पवित्र दिन माना जाता है. ग्रंथों में इन दिनों किए गए तप और दान का महत्व उल्लेखित है. इस दिन रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है इसके साथ ही साथ श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता है. श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व है इस दिनयज्ञोपवीत के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है.

ब्राह्मण वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं. हिन्दू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा बहुत ही पवित्र व शुभ दिन माना जाता है सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्व रखती है. सावन माह भगवान शिव की पूजा उपासना का महीना माना जाता है. सावन में हर दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है.

इस प्रकार की गई पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. इस माह की पूर्णिमा तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है  अत: इस दिन शिव पूजा व जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है.

कजरी पूर्णिमा | Kajari Purnima

कजरी पूर्णिमा का पर्व भी श्रावण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है यह पर्व विशेषत: मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों में मनाया जाता है. श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन से इस उत्सव तैयारीयां आरंभ हो जाती हैं. कजरी नवमी के दिन महिलाएँ पेड़ के पत्तों के पात्रों में मिट्टी भरकर लाती हैं जिसमें जौ बोया जाता है.

कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएँ इन जौ पात्रों को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाती हैं .इस नवमी की पूजा करके स्त्रीयाँ कजरी बोती है. गीत गाती है तथा कथा कहती है. महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं.

श्रावण पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है जैसे उत्तर भारत में रक्षा बंधन के पर्व रुप में, दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम तथा गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है.

रक्षाबंधन | Rakshabandhan

रक्षाबंधन का त्यौहार भी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं. रक्षाबंधन, राखी या रक्षासूत्र का रूप है राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं उनकी आरती उतारती हैं तथा इसके बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और उपहार स्वरूप उसे भेंट भी देता है.

इसके अतिरिक्त ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा संबंधियों को जैसे पुत्री द्वारा पिता को भी रक्षासूत्र या राखी बांधी जाती है. इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीनयज्ञोपवीत धारण किया जाता है. वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं.

श्रावणी पूर्णिमा पर अमरनाथ यात्रा का समापन

पुराणों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री अमरनाथ की पवित्र छडी यात्रा का शुभारंभ होता है और यह यात्रा श्रावण पूर्णिमा को संपन्न होती है. कांवडियों द्वारा श्रावण पूर्णिमा के दिन ही शिवलिंग पर जल चढया जाता है और उनकी कांवड़ यात्रा संपन्न होती है. इस दिन शिव जी का पूजन होता है पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचग्वया में डुबाकर भगवान शिव को अर्पित की जाती हैं.

श्रावण पूर्णिमा महत्व

श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है अत: इस दिन पूजा उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है, श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्वपूर्ण होता है अत: इस दिन स्नान के बाद गाय आदि को चारा खिलाना, चिंटियों, मछलियों आदि को दाना खिलाना चाहिए इस दिन गोदान का बहुत महत्व होता है.

श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दे और भोजन कराया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है. विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि प्राप्ति होती है. इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मीव हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए.

इतिहास में वर्णित कुछ प्रसंग:

श्रावण मास पूर्णिमा को मनाए जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है। इस बार 26 अगस्त रविवार को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है। इस त्योहार का प्रचलन सदियों पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार इस त्योहार की परंपरा उन बहनों ने रखी जो सगी बहनें नहीं थी। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों मनाया जाता हैं रक्षाबंधन का त्योहार।

राजा बलि और देवी-लक्ष्मी ने शुरू की भाई बहनों की राखी

राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान, वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। भगवान ने तीन पग में आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। तब राजा बलि ने अपनी भक्ति से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया और भेंट में अपने पति को साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।

द्रौपदी और कृष्ण का रक्षाबंधन

राखी या रक्षा बंधन या रक्षा सूत्र बांधने की सबसे पहली चर्चा महाभारत में आती है, जहां भगवान कृष्ण को द्रौपदी द्वारा राखी बांधने की कहानी है। दरअसल, भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से चेदि नरेश शिशुपाल का वध कर दिया था। इस कारण उनकी अंगुली कट गई और उससे खून बहने लगा। यह देखकर विचलित हुई रानी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर कृष्ण की कटी अंगुली पर बांध दी। कृष्ण ने इस पर द्रौपदी से वादा किया कि वे भी मुश्किल वक्त में द्रौपदी के काम आएंगे। पौराणिक विद्वान, भगवान कृष्ण और द्रौपदी के बीच घटित इसी प्रसंग से रक्षा बंधन के त्योहार की शुरुआत मानते हैं। कहा जाता है कि कुरुसभा में जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था, उस समय कृष्ण ने अपना वादा निभाया और द्रौपदी की लाज बचाने में मदद की।

कर्णावती-हुमायूं

मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा की मृत्यु के बाद बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। इससे चिंतित रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को एक चिट्टी भेजी। इस चिट्ठी के साथ कर्णावती ने हुमायूं को भाई मानते हुए एक राखी भी भेजी और उनसे सहायता मांगी। हालांकि मुगल बादशाह हुमायूं बहन कर्णावती की रक्षा के लिए समय पर नहीं पहुंच पाया, लेकिन उसने कर्णावती के बेटे विक्रमजीत को मेवाड़ की रियासत लौटाने में मदद की।

रुक्साना-पोरस

रक्षा बंधन को लेकर इतिहास में राजा पुरु (पोरस) और सिकंदर की पत्नी रुक्साना के बीच राखी भेजने की एक कहानी भी खूब प्रसिद्ध है। दरअसल, यूनान का बादशाह सिकंदर जब अपने विश्व विजय अभियान के तहत भारत पहुंचा तो उसकी पत्नी रुक्साना ने राजा पोरस को एक पवित्र धागे के साथ संदेश भेजा। इस संदेश में रुक्साना ने पोरस से निवेदन किया कि वह युद्ध में सिकंदर को जान की हानि न पहुंचाए।

कहा जाता है कि राजा पोरस ने जंग के मैदान में इसका मान रखा और युद्ध के दौरान जब एक बार सिकंदर पर उसका धावा मजबूत हुआ तो उसने यूनानी बादशाह की जान बख्श दी। इतिहासकार रुक्साना और पोरस के बीच धागा भेजने की घटना से भी राखी के त्योहार की शुरुआत मानते हैं।

जब युद्धिष्ठिर ने अपने सैनिको को बांधी राखी

राखी की एक अन्य कथा यह भी हैं कि पांडवो को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युद्धिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं कैसे सभी संकटो से पार पा सकता हूं। इस पर श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिको को रक्षासूत्र बांधे। इससे उसकी विजय सुनिश्चिच होगी। तब जाकर युद्धिष्ठिर ने ऐसा किया और विजयी बने। तब से यह त्योहार मनाया जाता है।

जब पत्नी सचि ने इन्द्रदेव को बांधी राखी

भविष्य पुराण में एक कथा हैं कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षासूत्र ने देवराज की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। यह घटना भी सतयुग में ही हुई थी

Bimal – Rajnath to talk ‘other issues’

Darjeeling MP SS Ahluwalia with GTA chief Bimal Gurung a file photo


Ahluwalia hopes for tribal status for 11 Hill communities during House winter session


Darjeeling Member of Parliament SS Ahluwalia on Wednesday said Home Minister Rajnath Singh and leaders of the Gorkha Jan Mukti Morcha (GJMM), Bimal Gurung camp, will talk “other issues” pertaining to the Hills in an “official-level” meeting to be held in September. Mr Ahluwalia also expressed hope that the winter session of Parliament will do the needful, like amending the constitution, about granting tribal status to 11 Gorkha communities in the Hills.

Asked if the demand for a separate state of Gorkhaland will be discussed in the meeting with the Home Minister, Mr Ahluwalia, who is on a two-day visit here, said there are “other issues” that can be discussed, like the tribal status for the 11 communities.

“In a meeting with the Home Minister on Tuesday, the Morcha leaders apprised him of the deceit and onesided decisions being taken in the Hills, like the names of leaders and their families being struck off the voter rolls…,” the MP, who is also the union minister of state for Electronics and Information Technology, said.

According to him, the Morcha delegation also talked about the Home Minister’s plea on 26 September last year to withdraw the protracted Hill shutdown and his offer to hold talks within a fortnight then.

“However, when the Centre asked the state government to communicate as to who would represent the state in the tripartite talks to be held then, the state refused to attend such talks and asked us not to hold the talks too,” the MP clarified.

On the demand for tribal status for the Gorkha communities, Mr Ahluwalia said that Union Tribal Minister Jual Oram has assured he would have a full report, with recommendations, from the committee studying the same in six weeks’ time.

He also slammed chief minister Mamata Banerjee for her Hill policies and said that peace cannot be restored by “picking lame horses (a veiled reference to Morcha leader Binoy Tamang and his group of leaders) breaking houses, breaking political parties and creating a divide in society.”

He further expressed concern about the alleged Rohingya Muslims settling down in Bengal, including in Kalimpong areas. “An effort to make a demographic change in the Hills is a dangerous trend, and not good for national security,” he said. On the issue of minimum wages for tea workers, Mr Ahluwalia said he is for implementing the Minimum Wages Act in tea plantations.

“The salary is rising in every sector and the prices of commodities are ever rising, but nothing is happening in the gardens,” he said, adding that he also demands Hindi or English schools for children of tea workers so that they can learn the “language of opportunity.” He further demanded retirement benefits and provident funds for workers.

Alleging that massive corruption was happening in West Bengal in the Prime Minister’s Aawas Yojana (housing scheme), he sought investigations into it. He also came down on the land mafia that is active in Bengal and which has been grabbing plots of land.

“There was action on some persons regarding this, but the mafia is still there,” he said. Asked where fugitive Morcha leader Bimal Gurung was, he said he is very much in India and “in Darjeeing and Dooars.”