शोभन चटर्जी ने दिया मेयर पद से इस्तीफा


मंत्री शोभन चटर्जी ने गुरुवार को कोलकाता के मेयर पद से इस्तीफा दे दिया, कोलकाता नगर निगम की चेयरपर्सन माला राय को उन्होंने अपना इस्तीफा सौंपा है


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मनमुटाव के बाद पश्चिम बंगाल के दमकल व आवासन मामलों के मंत्री शोभन चटर्जी ने गुरुवार को कोलकाता के मेयर पद से इस्तीफा दे दिया. एक खबर के मुताबिक कोलकाता नगर निगम की चेयरपर्सन माला राय को उन्होंने अपना इस्तीफा सौंपा है. इसके बाद ही राज्य के शहरी विकास एवं नगरपालिका मामलों के मंत्री फिरहाद हकीम का कोलकाता के नए मेयर बनने का नाम सामने आ रहा है. वहीं अतिन घोष डिप्टी मेयर बनेंगे. जल्द ही इसका आधिकारिक ऐलान किया जाएगा.

सीएम से मतभेदों के बाद शोभन चटर्जी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया

खबर है कि सीएम से मतभेदों के बाद शोभन चटर्जी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इस पर ममता बनर्जी ने उन्हें मेयर का भी पद छोड़ने के लिए कहा था. चटर्जी ने बुधवार को मंत्री पद से और गुरुवार को मेयर पद से इस्तीफा दे दिया. शोभन चटर्जी के इस्तीफा देने के बाद सूत्रों ने इस बात की पुष्टि कर दी थी कि फिरहाद हकीम कोलकाता के नए मेयर होंगे. हालांकि अभी इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. वहीं कोलकाता नगर निगम में मेयर परिषद के सदस्य अतिन घोष डिप्टी मेयर का पद संभालेंगे.

बैठक में मेयर एवं उपमेयर के नाम पर अंतिम मुहर लगेगी

फिलहाल इकबाल अहमद कोलकाता के डिप्टी मेयर हैं. उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है. गुरुवार की शाम को मुख्यमंत्री ने तृणमूल पार्षदों की बैठक बुलाई है. बैठक में मेयर एवं उपमेयर के नाम पर अंतिम मुहर लगेगी. दूसरी तरफ गुरुवार को ही विधानसभा में कोलकाता नगर निगम संशोधन विधेयक लाया गया. इस विधेयक के अनुसार, बिना पार्षद रहे भी कोई व्यक्ति मेयर बन सकेगा. हालांकि, 6 महीने के अंदर उसे पार्षद का चुनाव लड़ना और जीतना होगा. फिरहाद हकीम फिलहाल विधायक व मंत्री हैं. वह अल्पसंख्यक समुदाय से हैं. संसदीय मामलों और नगरपालिका मामलों का उन्हें अच्छा खासा अनुभव है.

राहुल गांधी ने अमित शाह पर बोला हमला, स्मृति ईरानी ने किया पलटवार


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर हमला बोला और कहा कि शाह सच से नहीं भाग सकते


सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ के संदर्भ में सीबीआई के एक प्रमुख जांच अधिकारी के इकबालिया बयान संबंधी खबर को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर हमला बोला और कहा कि शाह सच से नहीं भाग सकते. इस पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि क्या झूठ की मशीन और बेल धारक को याद नहीं है कि शाह बरी किए जा चुके हैं.

राहुल गांधी ने एक खबर शेयर करते हुए ट्वीट किया, गीता में कहा गया है कि आप सच से कभी नहीं भा सकते और यह हमेशा से रहा है. संदीप तमगादगे ने अपने इकबालिया बयान में अमित शाह को मुख्य षड़यंत्रकारी बताया है. इस तरह के व्यक्ति का अध्यक्ष होना बीजेपी के लिए पूरी तरह अनुचित है. उन्होंने जो खबर शेयर की है उसमें एक सीबीआई जांच अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि प्रजापति की मुठभेड़ में अमित शाह ‘मुख्य षड़यंत्रकारी’ हैं.

राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए स्मृति ईरानी ने कहा, ‘झूठ की मशीन राहुल गांधी फिर से ऐक्शन में आ गए हैं. वह जानते हैं कि अदालत श्री अमित शाह को 2014 में बरी कर चुकी है. अदालत ने यह भी कहा था कि राजनीतिक कारणों से सीबीआई ने अमित शाह को फंसाया था. राहुल बताएंगे कि संप्रग सरकार में किसके आदेश पर यह हुआ था?’

उन्होंने पूछा, ‘क्या नेशनल हेराल्ड लूट ‘बेल धारक’ राहुल गांधी को यह याद नहीं है कि उन्होंने अमित भाई को बरी किए जाने को चुनौती देने के लिए (कपिल) सिब्बल को भेजा था और याचिका खारिज हो गई?’ उन्होंने कहा, ‘मुझे पूरा विश्वास है कि अगर राहुल गांधी ने जिंदगी में एक बार भी गीता खोली होती तो वह इस तरह के कोरे झूठ में नहीं पड़ते.’ गौरतलब है कि इस मामले में अमित शाह और कुछ अन्य लोग बरी हो चुके हैं.

काश्मीर के रास्ते आपना फायदा ढूंढती कांग्रेस


कांग्रेस ने सिर्फ कश्मीर का हित नहीं देखा है. बल्कि लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक दाव चला है


जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने का फैसला किया है. इस फैसले की आलोचना हो रही है. पीडीपी, कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस पहली बार एक साथ आ रहे थे. गवर्नर के फैसले के बाद ये सभी दल हतप्रभ हैं. अब ये दल बीजेपी पर आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार के इशारे पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रोका गया है.

PDP का रवैया ज्यादा तल्ख है. राज्यपाल के रवैये से नाराज़ पीडीपी की नेता ने कहा कि बीजेपी के नेता उनकी पार्टी को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे, जब इसमें कामयाबी नहीं मिली तो केंद्रीय एजेंसियों का डर दिखाया गया, अब जब सरकार बनने जा रही थी तो बीजेपी ने राज्यपाल के ज़रिए ये फैसला करा दिया है.

कश्मीर के इस राजनीतिक शह मात में कांग्रेस को कामयाबी मिली है. कांग्रेस ने बीजेपी के बरअक्स ये साबित करने का प्रयास किया है कि वो राज्य में चुनी हुई सरकार को तरजीह दे रही थी. वहीं कांग्रेस ने पीडीपी के साथ जो तल्खी थी वो भी कम कर ली है. एनसी के साथ कांग्रेस के रिश्ते पहले से ही ठीक थे.

अब इस फैसले से कांग्रेस ने एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी दिया है. कर्नाटक के बाद कश्मीर में भी कांग्रेस बीजेपी को रोकने के लिए कुर्बानी दे रही थी. इससे छोटे दलों को लोकसभा चुनाव से पहले एक मैसेज है कि कांग्रेस सब को साथ लेकर चलने के लिए तैयार है.

कई दौर की मंत्रणा के बाद फैसला

जम्मू कश्मीर में बीजेपी के समर्थन वापसी के बाद से ही कांग्रेस में कशमकश चल रही थी. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के यहां कई दौर की बैठक भी हुई, जिसमें राहुल गांधी भी शामिल हुए, कांग्रेस के सूत्रों का दावा है कि राजनीतिक हित की जगह कश्मीर के हित में फैसला लिया गया कि वहां घाटी की सबसे बड़ी पार्टियों के साथ ही जाना चाहिए.

इन बैठकों में कांग्रेस के राज्य के नेताओं के साथ बातचीत की गई, इसके अलावा जो लोग कश्मीर के बारे में जानकार हैं उनसे भी राय मशविरा किया गया था. कांग्रेस पहले भी राज्य में पीडीपी और एनसी को सरकार बनाने के लिए समर्थन दे चुकी है, इसलिए फैसला लेना मुश्किल नहीं था.

 

कांग्रेस का राजनीतिक दाव

कांग्रेस ने सिर्फ कश्मीर का हित नहीं देखा है. बल्कि लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक दाव चला है. कांग्रेस ने ये दिखाने की कोशिश की है कि जब कांग्रेस पीडीपी और एनसी को साथ ला सकती है, तो लोकसभा चुनाव में रीजनल पार्टियों को इकट्ठा कर सकती हैं. जिस तरह से दो दल साथ आए हैं उसको कांग्रेस उदाहरण के तौर पर पेश कर सकती है. जो रीजनल पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ हैं, वो भी कांग्रेस के साथ आ सकती हैं. यही नहीं कांग्रेस ये भी दिखाने का प्रयास कर रही है कि सत्ता पाना महत्वपूर्ण नहीं है जितना बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना है.

बीजेपी बनाम कांग्रेस

बीजेपी 2014 के बाद जिस तरह से मजबूत हुई है. उससे सहयोगी दलों के प्रति बीजेपी का रवैया बदला है. कश्मीर में पीडीपी से अलग होने का फैसला अचानक लिया गया था. इस तरह टीडीपी के साथ बीजेपी ने रिश्ता निभाने का प्रयास नहीं किया है. बल्कि टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस के साथ नज़दीकी बढ़ाई गई. यही हाल बिहार में आरएलएसपी के साथ हो रहा है. शिवसेना भी नाराज़ चल रही है. एआईडीएमके में टूट का आरोप भी बीजेपी पर है, लेकिन इन सब मुद्दों पर बीजेपी बेपरवाह नज़र आ रही है.

इस तरह का रवैया पहले मज़बूत कांग्रेस का रहता था. कांग्रेस पर कभी सहयोगी दलों को ही तोड़ने का आरोप लगाया जाता था. कांग्रेस के बारे में ये कहा जाता था कि जो नज़दीक गया उसका राजनीतिक वजूद खत्म हो जाता था. राजनीतिक बाज़ी उलट गयी है. अब यही आरोप बीजेपी पर लग रहा है. जो काम पहले अटल बिहारी वाजपेयी के समय बीजेपी करती थी वो अब कांग्रेस करने लगी है.

90 के दशक में बीजेपी ने शिवसेना की सरकार का समर्थन किया. ममता बनर्जी और नीतीश कुमार को पूरा सहयोग दिया. नेशनल कॉन्फ्रेंस को भी एनडीए के साथ रखा गया, डीएमके एनडीए की सहयोगी बनी रही, ओडिशा और आन्ध्र में नवीन पटनायक और टीडीपी के काम में कोई दखल नहीं दिया गया. यूपी में मुलायम सिंह की सरकार को बनवाने में बीजेपी की अहम भूमिका थी.

अब ये काम कांग्रेस कर रही है, कर्नाटक में जेडीएस का समर्थन, कश्मीर का फैसला सब यही दर्शाता है कि कांग्रेस गठबंधन को लेकर बीजेपी की नीति पर चल रही है. वही बीजेपी पुराने कांग्रेसी ढर्रे पर चल रही है.

महागठबंधन का एजेंडा

कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने बड़ा गठबंधन खड़ा करने की कोशिश कर रही है. हालांकि अभी कोई खास सफलता नहीं मिल पाई है. लेकिन कश्मीर का फैसला कांग्रेस की राह आसान कर सकता है.

उत्तर भारत में कई राज्यों का चुनाव चल रहा है, इसमें कांग्रेस को महागठबंधन बनाने में कामयाबी नहीं मिली है. कांग्रेस को गंभीरता से इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है. हालांकि कई बड़े दल का साथ मिला है. कर्नाटक में जेडीएस का साथ मिला है जिसका अच्छा नतीजा उपचुनाव में देखने को मिला है.

टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू भी कांग्रेस के साथ हैं, जिसका नतीजा तेलंगाना चुनाव के बाद पता चलेगा. लेकिन टीडीपी के मुखिया कई सरकारों का सहयोग कर चुके हैं. 1996 में जनता दल की सरकार और बाद में एनडीए की सरकार के संयोजक भी थे. बीजेपी से हाल फिलहाल में ही अलग हुए हैं. कांग्रेस को साउथ में साथी मिल गए हैं, आंध्र और तेलंगाना में टीडीपी, कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडु में डीएमके और केरल में यूडीएफ चल रहा है.

महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ सीटों के तालमेल पर बातचीत जारी है. कांग्रेस के नज़रिए से अच्छा हल निकलने की उम्मीद है. लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में है.

 

कांग्रेस की चुनौती

कांग्रेस की बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश में है. जहां से लोकसभा की 80 सीट है. बीजेपी और सहयोगी दल के पास 73 सीट हैं. कांग्रेस के सामने परेशानी है कि एसपी-बीएसपी के प्रस्तावित गठबंधन में शामिल होने के लिए दोनों दलों को मनाए, ऐसा हो जाने पर सम्मानजनक सीट हासिल करने का सिर दर्द है. कांग्रेस के लिए यूपी में अपने सभी बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाने के लिए सीटों की दरकार है.

दिल्ली में कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि आप से कोई तालमेल करना है या अकेले लड़ना है. पार्टी के केंद्रीय नेताओं और राज्य के नेताओं के बीच मतभेद है. राज्य के नेता अकेले लड़ने के पैरोकारी कर रहे हैं. हालांकि बिहार में कांग्रेस का गठबंधन आरजेडी के साथ है, लेकिन इसमें आरएलएसपी या लोक जनशक्ति पार्टी के तड़के की ज़रूरत है.

कांग्रेस की सबसे बड़ा सिरदर्द बंगाल है. जहां टीएमसी और लेफ्ट को एक साथ लेकर चलना आसान नहीं है. हालांकि राज्य में बीजेपी की ताकत बढ़ रही है लेकिन दोनों दल आमने सामने है. ऐसे में टीएमसी की नेता को लेफ्ट के साथ लाना मुश्किल काम है. कश्मीर फॉर्मूला कितना कारगर होगा ये कयास लगाना आसान नहीं है

वहीं असम में बीजेपी मजबूत है. बीजेपी को हराने के लिए एआईयूडीएफ का साथ ज़रूरी है. लेकिन असम में इस गठबंधन को पार लगाने के लिए तरुण गेगोई को बैकसीट पर रखना ज़रूरी है. हालांकि जिस तरह राहुल गांधी तरुण गोगोई के साथ हैं उससे ये फैसला लेना आसान नहीं है.

कांग्रेस की मजबूरी

कांग्रेस की मजबूरी है कि उत्तर भारत के तकरीबन 175 सीटों पर बीजेपी के मुकाबले रीजनल पार्टियां हैं, कांग्रेस इन्हीं दलों के आसरे पर है. बीजेपी धीरे-धीरे ओडिशा और बंगाल में पैर पसार रही है. रीजनल पार्टियों और कांग्रेस का वोट बैंक एक समान है इसलिए तालमेल में परेशानी हो रही है

ममता के कारण रद्द हुई भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की बैठक


सूत्रों के मुताबिक, ये मीटिंग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वजह से कैंसिल हुई


लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र बीजेपी के खिलाफ सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए 22 नवंबर को प्रस्तावित मीटिंग कैंसिल कर दी गई है. सूत्रों के मुताबिक, ये मीटिंग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वजह से कैंसिल हुई.

दरअसल, आंध्र प्रदेश के सीएम और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी विरोधी दलों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें ममता बनर्जी का साथ काफी अहम बताया जा रहा है. लेकिन, अभी तक ममता ने इस मीटिंग के लिए सहमति नहीं जताई है. सूत्रों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू पहले ममता बनर्जी से मुलाकात करेंगे. इसके बाद मीटिंग की अगली तारीख तय होगी.

कौन-कौन सी पार्टियां हो सकती हैं शामिल?

सूत्रों के अनुसार, बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस, टीडीपी, आम आदमी पार्टी, जेडीएस, एनसीपी और टीएमसी मान गए हैं. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि मायावती ने बैठक में शामिल होने के लिए हामी नहीं भरी है. बैठक में एंटी बीजेपी फ्रंट को मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा.

गहलोत से मिलकर लिया था 22 नवंबर को बैठक का फैसला

सभी दलों को करीब लाने का जिम्मा इस बार तेलुगू देशम पार्टी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने लिया है. इससे पहले उन्होंने अमरावती में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत से भी मुलाकात की थी. इस मुलाकात में यह तय हुआ था कि बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के सभी बड़े दल 22 नवंबर को दिल्ली में बैठक करेंगे. इस बैठक में नोटबंदी, सीबीआई आदि मुद्दों पर भी चर्चा होनी थी.

केवल इतना ही नहीं नायडू विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. यह बैठक ठीक ममता के उस फैसले के बाद आयोजित की गई है, जिसमें उन्होंने आंध्र प्रदेश की तरह ही अपने राज्य में भी मामलों की जांच के लिए सीबीआई के प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी

मोदी को घेरने के लिए होने वाली विपक्ष की बैठक क्यों टली?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश में लगे विपक्षी दलों की तरफ से बुलाई गई बैठक स्थगित कर दी गई है. सीएनएन न्यूज 18 के मुताबिक, विपक्षी कुनबे की एकता दिखाने वाली यह बैठक 22 नवंबर को बुलाई गई थी, जिसे टालना पड़ा है.

सूत्रों के मुताबिक, महागठबंधन की इस बैठक को लेकर एसपी, बीएसपी और टीएमसी बहुत उस्साहित नहीं दिख रहे थे. इन सभी पार्टी को ऐसा लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले ऐसा करना फायदेमंद नहीं है. हो सकता है कि इनकी तरफ से अपनी शक्ति का आकलन भी किया जा रहा हो, या फिर अपने से ज्यादा कांग्रेस की शक्ति का आकलन करने की कोशिश हो रही हो, जिसके बाद कांग्रेस से डील करना ज्यादा आसान होगा.

दरअसल, कांग्रेस की मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सीधी लड़ाई बीजेपी से है. लेकिन, इन राज्यों में एसपी, बीएसपी भी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस और बीजेपी दोनों के खिलाफ चुनाव लड़ रही इन पार्टियों को लग रहा है कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर एक मंच पर आकर लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ रणनीति बनाई गई तो इसका सीधा असर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में दिख सकता है. भले ही एसपी, बीएसपी का इन राज्यों में बड़ा स्टेक नहीं है, फिर भी, कांग्रेस के साथ इस वक्त राष्ट्रीय स्तर पर नजदीकी उनकी प्रदेश चुनाव में संभावनाओं को पूरी तरह खत्म कर सकती है.

अगर बात एसपी की करें तो पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ चुकी एसपी अबकी बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से हाथ मिलाने से पहले फूंक-फूंक कर कदम रखना चाह रही है. दूसरी तरफ, बीएसपी ने मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बजाए अलग से मैदान में ताल ठोंक दी है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती की तरफ से उस वक्त बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस के खिलाफ भी काफी तल्ख तेवर देखा गया था. ऐसे में मायावती नहीं चाहेंगी कि विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ आने का कोई संदेश जनता के बीच जाए. मायावती की कांग्रेस को लेकर तल्खी विपक्षी कुनबे के कांग्रेस के नेतृत्व में आगे बढ़ने की संभावना को फिलहाल खारिज करती दिख रही है.

उधर टीएमसी का रुख लगभग वैसा ही है. ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों को साथ लाने की पहल काफी पहले शुरू की थी. लेकिन, उनकी पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, ममता भी विधानसभा चुनाव के बाद ही विपक्षी खेमे की बड़ी बैठक बुलाए जाने के पक्ष में हैं. लिहाजा महागठबंधन की 22 नवंबर की प्रस्तावित बैठक को टाला जा रहा है.

हालांकि महागठबंधन की बैठक टलने की खबर उसी दिन सामने आई जिस दिन आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात होनी थी. नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खड़ा करने में लगे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू सोमवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी से मिले.

चंद्रबाबू नायडू से बैठक के बाद ममता बनर्जी ने सकारात्मक लहजे में कहा कि ‘महागठबंधन’ का चेहरा हर व्यक्ति होगा. ममता बनर्जी के कहने का मतलब था कि इस गठबंधन में जो भी दल शामिल होंगे उन सभी के नेता महागठबंधन के चेहरे होंगे. मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने ट्वीट कर चंद्रबाबू नायडू को धन्यवाद भी दिया.

नायडू-ममता की मुलाकात को विपक्ष के नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है. क्योंकि ममता तो पहले से ही ऐसा कर रही हैं, अब नायडू ने एनडीए छोड़कर बाहर निकलने के बाद तो विपक्षी कुनबे की एकता बनाने का बीड़ा उठा लिया है.

दिल्ली से लेकर कोलकाता तक चंद्रबाबू नायडू दौड़ लगा रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले ही नायडू ने दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की. उसके बाद नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से भी मुलाकात की थी.

कभी तीसरे मोर्चे में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके चंद्रबाबू नायडू ने सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों को साध कर अब तीसरा मोर्चा बनाने के बजाए कांग्रेस के साथ विपक्षी एकता की कसरत शुरू कर दी है. लेकिन, महागठबंधन की प्रस्तावित बैठक का टलना यह दिखा रहा है कि सबको साध कर कांग्रेस के साथ एक मंच पर लाना इतना आसान नहीं है.

ऐसा करना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि इन सभी क्षेत्रीय दलों के नेताओं की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी है कि उनकी तरफ से कांग्रेस और राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. इसके अलावा इन सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों की आपस की खींचतान भी महागठबंधन की गांठ को और पेचीदा बना देते हैं. ऐसे में नायडू की हैदराबाद से दिल्ली और कोलकाता तक भी दौड़ के बावजूद सबकुछ विधानसभा चुनाव के परिणाम पर आकर टिक गया है. विधानसभा का चुनाव परिणाम ही लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी रणनीति तय करेगा.

अखिलेश और राहुल के बीच सबकुछ ठीक नहीं


बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती के तेवर दिखाने के बाद अब समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को इशारों-इशारों में बड़ी चेतावनी दे दी है


2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनने से पहले ही खत्म होता दिखाई दे रहा है. बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती के तेवर दिखाने के बाद अब समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को इशारों-इशारों में बड़ी चेतावनी दे दी है. ‘महागठबंधन’ बनने पर अखिलेश यादव ने कहा, ‘अगर साइकिल (एसपी का चुनाव चिन्ह) को रोकोगे तो आपका हाथ (कांग्रेस का चुनाव चिन्ह) हैंडल से हटा दिया जाएगा.’

2019 में कांग्रेस के साथ गठबंधन की राह अब मुश्किल नजर आ रही है

अखिलेश यादव ने बीते शनिवार को छत्तीसगढ़ में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा,” इसलिए हमने भी तय किया है कि साइकिल को रोकोगे तो आपका हाथ हैंडल से हटा दिया जाएगा. कंट्रोल और किसी के हाथ में हो जाएगा”. अखिलेश ने इस बयान के जरिए साफ संकेत दे दिया है कि 2019 में कांग्रेस के साथ गठबंधन की राह अब मुश्किल नजर आ रही है. अगर कांग्रेस ने एसपी की सहमति से अलग कोई फैसला लिया, तो संभव है कि कांग्रेस को पार्टी बड़ा झटका दे सकती है. बता दें बीएसपी-एसपी का पहले से ही गठबंधन हो चुका है.

मायावती ने गठबंधन न करने के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया है

उधर गठबंधन में सीटों को लेकर मायावती कितना गंभीर हैं, इसका अंदाजा 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में उनके कदम से लग जाता है. मायावती ने यहां गठबंधन न करने के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया है. उन्होंने सीट शेयरिंग में बीएसपी को उचित हिस्सा नहीं दिए जाने की बात कहकर ऐलान कर दिया है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होगा. बीएसपी अब इन राज्यों में दूसरे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरने की तैयारी मे है. दूसरी तरफ एसपी मुखिया अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस से विधानसभा चुनावों में गठबंधन नहीं करने का ऐलान किया है.

लखनऊ के सत्ता के गलियारे में महागठबंधन को लेकर चर्चाएं तेज हैं

इन बयानों से कांग्रेस की यूपी में महागठबंधन की स्थिति कमजोर होती दिखाई दे रही है. वहीं दूसरी तरफ बीएसपी के कड़े रुख से समाजवादी पार्टी पर भी दबाव बढ़ता दिख रहा है. लखनऊ के सत्ता के गलियारे में महागठबंधन को लेकर चर्चाएं तेज हैं कि बीएसपी तो सीटों को लेकर समझौता करने वाली नहीं, लिहाजा देखना ये होगा कि अखिलेश यादव कितनी सीटों पर राजी होते हैं?

जेडीयू ने कहा कि मोदी को सिर्फ नीतीश ही टक्कर दे सकते हैं

दरअसल, यूपी चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत के तुरंत बाद महागठबंधन बनाने को लेकर कांग्रेस और जेडीयू के बयान आए थे. लेकिन साथ ही नेता कौन होगा इस पर भी बयानबाजी शुरू हो गई है. कांग्रेस ने कहा कि राहुल गांधी के अलावा और कोई नेता नहीं हो सकता तो जेडीयू ने कहा कि मोदी को सिर्फ नीतीश ही टक्कर दे सकते हैं. बाद में नीतीश का भी बयान आया कि अगर यूपी में कांग्रेस-बीएसपी और एसपी मिलकर लड़े होते तो बीजेपी से 10 प्रतिशत ज्यादा वोट पाते.

बिहार में बीजेपी हारी क्योंकि यहां विपक्ष एकजुट था

बिहार में बीजेपी इसलिए हारी क्योंकि यहां विपक्ष एकजुट था. अब यही एकजुटता पूरे देश में दिखानी होगी. तभी बेड़ा पार होगा लेकिन यहां सवाल ये है कि मोदी के खिलाफ एक नेता पर क्या राय बनेगी. राहुल गांधी, नीतीश, मुलायम, ममता, लालू, मायावती, नवीन पटनायक में पीएम फेस को लेकर किस हद तक सहमति बन पाएगी इस पर सबकी निगाहें रहेंगी.

कई उम्मीदवारों ने एक-दूसरे पर भितरघात का आरोप लगाया

महागठबंधन के नाम पर अगर ये दो दर्जन से ज्यादा पार्टियां एक हो भी जाती हैं तो इनके कार्यकर्ता कितने साथ आएंगे ये फैक्टर भी अहम होगा. यूपी में एसपी-कांग्रेस ने मिलकर चुनाव तो लड़ा लेकिन कई सीटों पर दोनों दलों के उम्मीदवार मैदान में उतर गए. चुनाव में हार के तुरंत बाद कई उम्मीदवारों ने एक-दूसरे की पार्टियों पर भितरघात का आरोप लगाना शुरू कर दिया. ऐसा हाल ही अन्य राज्यों में भी होगा.

The huge enthusiasm  at the Chhath festival at Maloya


36 hour fast, the first arghya given to Sun God, the Chhath vrat is specially considered auspicious  for women aspiring son


Chandigarh:
Special arrangements had been made by the Purvanchal Organizing Committee for the Chhath festival on the pond located in Maloya. During the festival, devotees who had fasted started thronging from two o’clock in the afternoon. Most of the women’s  came here singing from their houses singing  the Chathi  Maai and Suraj Dev’s songs. A large crowd gathered by four o’clock in the evening. Meanwhile, almost all the roads in the surrounding areas, including Maloa, remained resonant with Chhath’s songs. Nearly thousands of pilgrims from all corners and villages around Maloa, Dadu Majra, Sector 39, Jujharanagar and villages and people from all corners of the village reached there to give the first half of Chhath. Ram babu, chief secretary of Purvanchal organization committee, general secretary Sanjay Bihari, chairman Kedar Yadav, KP Singh, Rahul Verma, Shivnath, Subhash, Shatbughan, Ranjit and other members congratulated all the fasting women for Chhath Puja. In order to give offering to the sun , people raised Prasad and lamp in the hands and bowed down to Lord Bhaskar and wished for prosperity and worshiped chath  mai with Lord Sun.

Gaja Cyclone to intensify into severe cyclonic storm by November 12


Coastal areas of north Tamil Nadu would experience moderate rainfall and heavy rainfall in isolated places from the night of November 14, the Met office said.


A deep depression in the Bay of Bengal has intensified into a cyclonic storm and is likely to cross the North Tamil Nadu and South Andhra Pradesh coast between Cuddalore and Sriharikota on November 15, regional weather office in Chennai said on November 11.

The cyclone, named Gaja, which lay around 860 km northeast of Chennai and moving at a speed of 12 kmph is likely to intensify into a severe cyclonic storm within the next 24 hours, a bulletin issued at 4 p.m. said.

Gales reaching 80-90 km per hour was likely over Tamil Nadu, Pudducherry and Andhra Pradesh.

Speaking to reporters, Area Cyclone Warning Centre Director S. Balachandran said coastal areas of north Tamil Nadu would experience moderate rainfall and heavy rainfall in isolated places from the night of November 14. “On November 15, many places will receive moderate rainfall and isolated places will get heavy rainfall.”

Fishermen have been advised not to venture into the sea from November 12 and those already in deep sea have been asked to return.

The India Meteorological Department however said the storm is likely to weaken gradually while crossing towards North Tamil Nadu and South Andhra Pradesh coasts as a cyclonic storm during forenoon of November 15.

Listing out measures taken to face the cyclone, Revenue Administration Commissioner K. Satyagopal told reporters in Tirunelveli that medical teams were on stand by in all districts.

India moves up to 77th rank in Ease of Doing Business Index


It was ranked 100 last year and 130 in 2016 and 2015. When Modi government took over in 2014, it was ranked 142 among 190 nations.


Curtsy “The Hindu”

India jumped 23 ranks in the World Bank’s Ease of Doing Business Index 2018 to 77. It ranked 100 in the 2017 report.

The Index ranks 190 countries across 10 indicators ranged across the life cycle of a business from ‘starting a business’ to ‘resolving insolvency’.

“India’s strong reform agenda to improve the business climate for small and medium enterprises is bearing fruit. It is also reflected in the government’s strong commitment to broaden the business reforms agenda at the state and now even at the district level,” said Junaid Ahmad, World Bank Country Director in India in a press release. “Going forward, a continuation of this effort will help India maintain its goal of strong and sustained economic growth and we look forward to recording these successes in the years ahead.”

Source: Indian Govt

“The improvement in rankings is excellent news for India, and good news for the business community,” Commerce Minister Suresh Prabhu said at a press conference. “I’m sure we will continue to improve it more and more.”

Mr. Prabhu said that there were several initiatives by the government in the works that would further ease doing business, such as enabling export and import using only a mobile phone.

“The government will get out of business and allow people to conduct their business,” the Commerce Minister added.

Finance Minister Arun Jaitley pointed out that, since the World Bank sets May 1 as the deadline for measurement, there are several initiatives taken by the government that will only reflect in next year’s rankings including the effects of the Insolvency and Bankruptcy Code and the full effect of the Goods and Services Tax.

He noted that, despite the sharp improvement India has made in several of the categories in the Index, there were others such as registering a property, starting a business, taxation, insolvency, and enforcing a contract where a lot of work still needs to be done.

Photo: Twitter/@wb_research

“During the past year, India made Starting a Business easier by fully integrating multiple application forms into a general incorporation form,” the World Bank said in a release. “India also replaced the value added tax with the Goods and Services Tax (GST) for which the registration process is faster in both Delhi and Mumbai, the two cities measured by the Doing Business report. In addition, Mumbai abolished the practice of site inspections for registering companies under the Shops and Establishments Act. As a result, the time to start a business has been halved to 16 days, from 30 days.”

India moved from rank 184 in 2014 to 52 in 2018 in the construction permits category, 137 to 24 in getting electricity, 126 to 80 in trading across borders, 156 to 121 in paying taxes, 137 to 108 in resolving Insolvency, 186 to 163 in enforcing contracts, 158 to 137 in starting a business, and 36 to 22 in getting credit.

“The upward movement in India’s ranking is as expected,” Vishwas Udgirkar, Partner, Deloitte India said in a note. “This has been on back of overall reforms driven by the government, and to a large extent, use of digital and technology leading to process improvement. The country is on the right track in adopting technology and innovations in business processes. Government efforts to this end are laudable. Government’s thrust on infrastructure development to promote trade and business, especially logistics and supply chain centred initiatives, as also overall fiscal reforms including bankruptcy code, are showing results.”

तय कीजिये कि लम्बित मुकदमो के लिये जिम्मेदार कौन

दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

कल सुप्रीम कोर्ट ने देश के सामने साबित कर दिया कि न्यायलयो मे लम्बित केसों के लिये देश मुख्य न्यायधीश चाहे वो कोई भी हो सिर्फ भाषण देता है या ज्ञान बांटता है या वकीलो को जिम्मेदार ठहराता या सरकार को जबकि असली जिम्मेदार स्वयं न्यायपालिका है क्योकि 150 साल पुराना केस जो सुप्रीम कोर्ट मे ही विगत आठ बर्षों से लम्बित है ,वो अर्जेंट नही लगा !

कल पूर्व निर्धारित तारीख राममन्दिर विवाद से सम्बन्धित थी जो स्वयं न्यायालय ने तय कर रखी थी कि इस मामले की सुनवाई नियमित रूप से 29 अक्टूबर से होगी जिसका विरोध कांग्रेस नेता और मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने यह कहते हुआ किया कि राममन्दिर की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नही होनी चाहिये चूंकि कपिल सिब्बल ये जानता है कि इसका निर्णय किस पक्ष मे आने वाला है, क्योकि सारे सबूत राममन्दिर के पक्ष मे है और यदि निर्णय लोकसभा चुनाव से पहले आया तो पूरा फायदा बीजेपी को मिलेगा ! चुंकि तत्कालीन बेंच ने सिब्बल की मांग ठुकरा दी और 29 अक्टूबर से नियमित सुनवाई तय की !

जैसे ही 29 अक्टूबर को 150 साल पुराना केस न्यायालय के सामने सूचिबद्ध हुआ पहले तो तत्कालीन बेंच के सदस्यो को जो कि पूर्व मे सुनवाई कर रहे थे सुनवाई से अलग किया नयी बेंच का गठन किया और पल भर मे ही सिब्बल की मांग की ओर कदम बढाते हुये राममन्दिर केस को यह कहते हुये जनवरी तक सुनवाई टाल दी कि यह मामला अर्जेंट नही है ! जबकि राम लला के वकील वै्धनाथ और उत्तर प्रदेश सरकार के वकील और सोलिसीटर जनरल तुषार मेहता शीघ्र सुनवाई की गुहार लगाते रहे पर न्यायलय ने पूर्व मे सिब्बल द्वारा उठाई मांग की तरफ ध्यान दिया और जनवरी तक सुनवाई टाल दी ! अब पहले जनवरी मे यह तय होगा कि कौनसी बेंच इस केस की सुनवाई करे और कब करे तब तक लोकसभा चुनाव आ चुके होंगे और कपिल सिब्बल का एजेंडा पूरा हो चुका !

बिडम्बना यह है कि देशका हर मुख्यन्यायधीश शपथ लेते ही लम्बित मुकदमो के निपटारे के लिये प्रवचन देता है तो कभी सरकार को दोषी ठहराता है तो कभी वकील को कभी पिडित को लेकिन आज वकील भी तैयार थे मुवक्किल भी और सरकार भी लेकिन न्यायलय तैयार नही था आखिर क्यों ?

राममन्दिर का विषय देश के 100 करोड हिन्दुओं की आस्था का सवाल है देश के लोगो को उम्मीद थी कि न्यायलय हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक राममन्दिर विवाद जो 150 साल से कोर्ट कचहरी मे अटका है अब तय हो जायेगा लेकिन न्यायलय ने पलक झपकते ही उनकी उम्मीदो को यह कहकर ‌चकनाचूरकर दिया कि यह मामला अर्जेंट नही है! क्या देश के 100 करोड लोगो की आस्था अर्जेंट नही है ? क्या 150 साल पुराना केस अर्जेंट नही है जो स्वयं सुप्रीम कोर्ट मे पिछले आठ बर्ष से लम्बित है अर्जेंट नही है? तो न्यायलय की नजर मे अर्जेंट सबरीमाला मन्दिर का केस था जिसमे याचिकाकर्ता भी वो थे जिनका भगवान अयप्पा मे कोई आस्था नही थी सिर्फ एक साजिश थी विधर्मी थे जिनका हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नही था लेकिन सुप्रीम कोर्ट को मामला अर्जेंट लगा वही भगवान अयप्पा के वासतविक भक्त जब रिव्यू लगाने पहंचे तो उसी न्यायलय को अर्जेंट नही लगी और सुनवाई टाल दी!

दूसरी तरफ उसी राममन्दिर से सम्बन्धित विवाद मे बम विस्फोट के आरोप मे फांसी की सजा को रोकने के लिये न्यायलय को रात दो बजे खोलना अर्जेंट लगा वो भी एक आतंकवादी के लिये ? कुछ दिन अर्बन नक्सली के हाऊस अरेस्ट मे न्यायलय को इतना अरजेंट मामला लगा कि देश की आखे खुलने से पहले कोर्ट खुल गया !

पर देश के 100 करोड लोगो की आस्था से जुडा मामला अर्जेंट नही 150 साल पुराने केस की सुनवाई अर्जेंट नही
आज देश का हिन्दू समाज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है ! अब गेंद केन्द्र सरकार के पाले मे है अब सरकार को संसद मे कानून बनाकर देश के 100 करोड लोगो की आस्था कितनी अरजेंट है ये साबित करना है और संसद मे विधेयक लाकर सारे राजनितिक दलो का चेहरा बेनकाब करे कि कौनसा दल क्या राजनीति राममन्दिर के मुद्दे पर कर रहा है !