Yogi Govt approves 221 mts. tall Lord Ram statue on banks of Saryu

After shortlisting five statues, Chief Minister Yogi Adityanath has approved one, made of bronze.

While ashow of strength is on in Ayodhya Ji, by the VHP for the Ram Mandir, the BJP government in Uttar Pradesh has cleared a 221-metre-tall statue of Lord Ram, to come up on the banks of the Saryu in the temple town.

While the government did not reveal the details of cost, funding, or exact location, it announced the expected size of the statue, which seems to outdo the 182-metre Sardar Patel statue in Gujarat.

The Lord Ram statue would consist of a 151-metre statue, a 20-metre umbrella overhead, and a 50-metre pedestal; the total being 221 metre, a government spokesperson said.

The pedestal would hold a “grand and ultra-modern museum” showcasing history of Ayodhya, legendary Ishvaku dynasty and Raja Manu, and the Ram Janmabhooomi.

After shortlisting five statues, Chief Minister Yogi Adityanath approved one, made of bronze.

The Yogi Adityanath government had last year announced that it would construct a Ram statue in Ayodhya as part of the “Navya Ayodhya” scheme of the UP Tourism Department to develop the town as a tourist hub.

This is not the only Ram statue the BJP government is planning in UP. The government has also announced that it would build a statue of Lord Ram at Shringverpur, a site near Allahabad revered by Nishads. They are a riverine Most-Backward Caste.

Next to that Lord Ram statue would come up a statue of Nishadraj, the caste icon and boatman who, as per Hindu beliefs, helped Lord Ram along with his wife and brother cross the Ganga during exile. Mr. Adityanath had in September said ₹ 34 crore would be allocated for the project.

‘लोकतन्त्र बचाने’ के नाम पर विधान सभाएं भंग होती रहीं हैं


इतिहास के आइने में देखें तो कांग्रेस के केंद्र में रहने के दौरान राज्यों की गैर-कांग्रेसी सरकारों पर गिरती रही है राज्यपाल की गाज, भंग होती रही हैं विधानसभा और बर्खास्त होती रही हैं सरकारें


जम्मू-कश्मीर की घाटी में सियासी बवाल है. राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग कर दी है. ये फैसला उस वक्त लिया गया जब जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने की कवायद चल रही थी. एक दूसरे के विरोधी माने जाने वाले पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने के लिए गठबंधन पर विचार कर रहे थे. पीडीपी ने सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया था. लेकिन राज्यपाल ने विधानसभा भंग करते हुए कहा कि वो अयोग्य गठबंधन को सरकार बनाने का मौका नहीं दे सकते हैं.

राज्यपाल के इस बयान पर बहस छिड़ गई है. सवाल उठ रहे हैं कि विरोधी विचारधारा वालों को सरकार बनाने से रोकने का फैसला कोई राज्यपाल भला कैसे कर सकता है? नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अबदुल्ला ने कहा कि. ‘साल 2015 में भी बीजेपी और पीडीपी ने विपरीत विचारधारा के बावजूद गठबंधन किया था.’

उस गठबंधन को जन्नत में बनी जोड़ी तो नॉर्थ और साउथ पोल का मिलन भी कहा गया था. ऐसे में पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के संभावित गठबंधन पर राज्यपाल का एतराज समझ से परे है. बहरहाल, फैसले से विवाद खड़ा हो गया और सियासी घमासान भी तेज हो गया है. लेकिन ऐसा नहीं है कि जम्मू-कश्मीर के सियासी इतिहास में पहली दफे ऐसा फैसला लिया गया हो. कई दफे देश के तमाम राज्यों में सियासी जरुरतों के मुताबिक सरकारें बर्खास्त तो विधानसभा भंग की गई हैं.

इतिहास के आइने में झांकने पर ऐसे तमाम राज्यपालों की तस्वीरें मिलती हैं. उन राज्यपालों ने सरकार गिराने का फैसला लेकर राजनीतिक तूफान पैदा किया तो विवाद कोर्ट की दहलीज तक भी पहुंचे.

कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल हंसराज भारद्वाज, यूपी के पूर्व राज्यपाल रोमेश भंडारी, बिहार में बूटा सिंह और झारखंड में सिब्ते रज़ी के फैसले हमेशा किसी न किसी बहाने याद किए जाते रहेंगे.

क्या केंद्र में बीजेपी नहीं होती तो बची रह पाती गोवा सरकार

गोवा में बीजेपी की सरकार है. मनोहर पर्रिकर राज्य के मुख्यमंत्री हैं. खराब स्वास्थ की वजह से पर्रिकर गोवा, मुंबई, अमेरिका और दिल्ली के एम्स में इलाज कर वापस गोवा लौटे हैं.  कांग्रेस का आरोप है कि पर्रिकर बीमारी की वजह से सीएम का कार्यभार सुचारु रूप से नहीं संभाल पा रहे हैं. ऐसे में कांग्रेसी विधायकों ने एक पूर्णकालिक सीएम की मांग की है. यहां तक कि बहुमत साबित कर सरकार बनाने की अपील की है. मनोहर पर्रिकर के स्वास्थ्य पर होने वाली राजनीति को अस्सी के दशक में एन टी रामाराव के शासन काल से जोड़कर देखा जा सकता है. बस फर्क इतना है कि गोवा में राज्यपाल ने सरकार गिराने जैसी विवादास्पद और असंवैधानिक कोशिश नहीं की.

साल 1984 में एन टी रामाराव अपनी बीमारी के इलाज के लिए अमेरिका गए हुए थे. वो दिल की बीमारी से ग्रस्त थे और अमेरिका में उनका ऑपरेशन हुआ था. लेकिन जब तक एनटी रामाराव वापस लौटते उनकी सरकार गिर चुकी थी. आंध्र प्रदेश के राज्यपाल ठाकुर रामलाल ने रामाराव की सरकार को बर्खास्त कर दिया था. खास बात ये है कि रामाराव की सरकार पूर्ण बहुमत में थी और उसे जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-कांग्रेस और नेशनल कॉन्फेंस की तरह सदन में बहुमत भी नहीं साबित करना था. इसके बावजूद ठाकुर रामलाल ने करियर की बड़ी रिस्क उठाई और बाद में कुर्सी गंवा कर कीमत भी चुकाई. उनकी जगह फिर शंकर दयाल शर्मा राज्यपाल बने और एन टी रामाराव दोबारा सीएम बने.

दरअसल, संघीय व्यवस्था में राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. संवैधानिक आवरण से तैयार हुआ ये गौरवपूर्ण पद मूल रूप से विशुद्ध सियासी इस्तेमाल के लिए होता है. ऐसे में राज्यपाल के बयान से विपक्ष किसी अदालत के फैसले की सी उम्मीद नहीं कर सकता और न ही वो फैसला पत्थर की लकीर होता है. यही वजह होती है कि असंतोष फूटने पर राज्यपाल के फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है.

जब बहुमत वाली बोम्मई सरकार को किया बर्खास्त

अस्सी के दशक में कर्नाटक में एस आर बोम्मई की सरकार ने भी राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. कर्नाटक में तत्कालीन राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया था. राज्यपाल का कहना था कि बोम्मई सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो चुकी थी. इस फैसले के खिलाफ बोम्मई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और लौटा हुआ साम्राज्य हासिल किया.

पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनाने का दावा पेश करने वाला पत्र सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया था. जिस पर जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि सोशल मीडिया से न तो सरकार चलेगी और न बनेगी. इसी तरह पूर्व में बोम्मई सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बहुमत होने न होने का फैसला विधानसभा में होना चाहिए, कहीं और नहीं.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दावा पेश करने वाली पार्टियों को सरकार बनाने का एक मौका नहीं दिया जाना चाहिए? भले ही वो दो सीटों वाले सज्जाद लोन की पार्टी होती या फिर पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन?

chaudhary devilal

अमूमन राज्यों की गैर कांग्रेसी सरकारों के खिलाफ राज्यपाल के विवादित फैसले ज्यादा सामने आए हैं.

हरियाणा के राज्यपाल जी डी तापसे ने देवीलाल के बहुमत के दावे के बावजूद भजनलाल को सरकार बनाने का न्योता दे दिया था. भजनलाल ने देवीलाल के विधायकों को तोड़कर सरकार बना ली थी. देवीलाल राज्यपाल को विधायकों के हस्ताक्षर का समर्थन वाला पत्र देकर सरकार बनाने के न्योते का इंतजार करते रह गए और राज्यपाल तापसे ने भजनलाल को सीएम पद की शपथ दिला दी.

हिंदुस्तान की सियासत में राज्यपालों की हैसियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो रातों-रात मौजूदा सरकार को बर्खास्त कर नया सीएम  नियुक्त कर देते हैं. बाद में भले ही उस नवनियुक्त सीएम की अवधि सिर्फ दो दिन ही क्यों न हो. जगदंबिका पाल को देश एक दिन के मुख्यमंत्री के तौर पर जानता है. साल 1998 में यूपी के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने ऐसा कारनामा किया कि यूपी के सीएम ऑफिस में दो-दो सीएम नजर आ रहे थे.

दरअसल, 21 फरवरी की रात साढ़े दस बजे रोमेश भंडारी ने यूपी में कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया और जगदंबिका पाल को सीएम बना दिया. राज्यपाल के फैसले के खिलाफ कल्याण सिंह इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए. हाईकोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए कल्याण सरकार को बहाल कर दिया.

जब ‘लोकतंत्र की रक्षा’ के नाम पर बूटा सिंह ने विधानसभा भंग की

बिहार में साल 2005 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. जिसकी वजह से तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने विधानसभा भंग कर डाली. उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी जबकि राज्य में एनडीए सरकार बनाना चाहती थी. एनडीए ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सुप्रीम कोर्ट ने बूटा सिंह के फैसले को असंवैधानिक करार दिया और राज्य में नीतीश कुमार की सरकार बनी. राज्यपाल बूटा सिंह की दलील थी कि उन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए आधी रात को विधानसभा भंग कर दी.

इसी तरह साल 2005 में झारखंड में त्रिशंकु विधानसभा के बावजूद शिबू सोरेन को राज्य का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया. झारखंड के तत्काल राज्यपाल सैयद सिब्ते रज़ी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्योता दिया. हालांकि शिबू सोरेन अपना बहुमत साबित नहीं कर सके. 9 दिनों के बाद सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा और अर्जुन मुंडा की दूसरी बार सरकार बनी.

हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. हालांकि बीजेपी 104 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. राज्यपाल वजूभाई वाला ने बीजेपी विधायक दल के नेता बी एस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता भी दिया. लेकिन कांग्रेस ने जेडीएस का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया.  हालांकि कोर्ट ने येदियुरप्पा को सरकार बनाने से रोका नहीं लेकिन येदियुरप्पा सदन में बहुमत साबित नहीं कर सके और अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.  जिसके बाद कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बना ली.

B S Yeduyurappa speaks at a meet the press

इससे पहले कर्नाटक में राज्यपाल की एक दूसरी तस्वीर भी देखने को मिली थी. साल 2009 में केंद्र में यूपीए की सरकार थी और यूपीए सरकार में कानून मंत्री रहे हंसराज भारद्वाज को कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया था. हंसराज भारद्वाज ने बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार को बर्खास्त कर दिया था. बर्खास्ती के पीछे वजह ये बताई गई थी कि येदियुरप्पा ने बहुमत हासिल करने के लिए खरीद-फरोख्त का सहारा लिया था.

अब जम्मू-कश्मीर के मामले में राज्यपाल सत्यपाल मलिक का कहना है कि उन्होंने हॉर्स ट्रेडिंग को रोकने के लिए ही ये फैसला लिया है. दरअसल राजनीति की ये परंपरा है कि केंद्र में सत्तासीन होने के बाद अगर राज्य में दूसरी सरकारों को गिराने का मौका मिले तो चूकना नहीं चाहिए. कांग्रेस सरकार ने जो किया वही जनता पार्टी ने भी 1977 में केंद्र में सरकार बनाने के बाद किया था.

जम्मू-कश्मीर में अबतक आठ बार राज्यपाल शासन लग चुका है. जम्मू-कश्मीर में सरकारों को बर्खास्त करने का आगाज़ भी कांग्रेस के शासन के दौर में हुआ तो इसका सिलसिला भी उस दौर में तेजी से आगे बढ़ा. साल 1953 में शेख अब्दुल्ला की सरकार को सदर-ए-रियासत कहे जाने वाले डॉक्टर कर्ण सिंह ने बर्खास्त कर दिया था. 24 साल बाद 26 मार्च 1977 में एक बार फिर शेख अब्दुल्ला की सरकार को राज्यपाल एलके झा ने गिरा दिया. उस वक्त केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी. इसके बाद साल 1984 में फारूक अबदुल्ला और 1986 में गुलाम मोहम्मद शाह की सरकारें गिराई गईं.

बहरहाल, ये जरूरी नहीं कि राज्यपाल के विवेक पर लिए गए फैसले वाकई लोकतंत्र के हित में हों क्योंकि कुछ राज्यपालों के विवादास्पद फैसलों ने इस पद की गरिमा और विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाने का काम किया है.

The huge enthusiasm  at the Chhath festival at Maloya


36 hour fast, the first arghya given to Sun God, the Chhath vrat is specially considered auspicious  for women aspiring son


Chandigarh:
Special arrangements had been made by the Purvanchal Organizing Committee for the Chhath festival on the pond located in Maloya. During the festival, devotees who had fasted started thronging from two o’clock in the afternoon. Most of the women’s  came here singing from their houses singing  the Chathi  Maai and Suraj Dev’s songs. A large crowd gathered by four o’clock in the evening. Meanwhile, almost all the roads in the surrounding areas, including Maloa, remained resonant with Chhath’s songs. Nearly thousands of pilgrims from all corners and villages around Maloa, Dadu Majra, Sector 39, Jujharanagar and villages and people from all corners of the village reached there to give the first half of Chhath. Ram babu, chief secretary of Purvanchal organization committee, general secretary Sanjay Bihari, chairman Kedar Yadav, KP Singh, Rahul Verma, Shivnath, Subhash, Shatbughan, Ranjit and other members congratulated all the fasting women for Chhath Puja. In order to give offering to the sun , people raised Prasad and lamp in the hands and bowed down to Lord Bhaskar and wished for prosperity and worshiped chath  mai with Lord Sun.

भाजपा में शामिल हुए 10 विधायकों के समर्थकों को भी बाहर का रास्ता दिखाएगी कांग्रेस


अभी तक पार्टी विरोधी गतिविधि‍यों में शामि‍ल नेताओं पर ही अनुशासनात्मक कार्रवाई का डंडा चल रहा था, लेकिन हरीश रावत शासन काल में बीजेपी में शामि‍ल होने वाले तत्कालीन दस कांग्रेस विधायकों के सैकड़ों समर्थकों को भी बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है


कांग्रेस की आपसी गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है. अभी तक पार्टी विरोधी गतिविधि‍यों में शामि‍ल नेताओं पर ही अनुशासनात्मक कार्रवाई का डंडा चल रहा था, लेकिन हरीश रावत शासन काल में बीजेपी में शामि‍ल होने वाले तत्कालीन दस कांग्रेस विधायकों के सैकड़ों समर्थकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की रणनीति भी तैयार की जाने लगी है. कांग्रेस के सूत्र कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं.

आपको बता दें कि साल 2016 में कांग्रेस के हाथ का साथ छोड़ बीजेपी का कमल थामने वाले नेताओं के तमाम समर्थक मौजूदा वक्त में कांग्रेस में ही हैं. पूर्व में कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले पार्टी नेताओं के समर्थकों को भले ही कांग्रेस एक कूटनीति के तहत पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने वाली हो, लेकिन बीजेपी इस मसले पर न सिर्फ ऐसे कांग्रेसि‍यों का स्वागत करने के लिए आतुर दिखाई दे रही है, बल्कि मौजूदा कांग्रेस के कुनबे को बीजेपी के प्रदेश महामंत्री नरेश बंसल ने तो पूरी तरह से बिखरा हुआ कुनबा ही करार दे दिया है.

भले ही आपसी गुटबाजी का दंश झेल रही विपक्षी पार्टी कांग्रेस की हालत मजबूत नहीं दिखाई दे रहे हो, लेकिन अब देखना होगा कि वास्तव में कांग्रेस के इस सियासी दांवपेंच का भविष्य में पार्टी को आखिर कितना फायदा मिल पाएगा?

‘देर से आया न्याय, न्याय नहीं होता’: योगी आदित्यनाथ


‘देर से आया न्याय, न्याय नहीं होता’. अगर फैसला समय पर आता है तो इसका स्वागत होगा. लेकिन अगर इसमें देरी होती है तो वो अन्याय के बराबर ही होगा

‘मंदिर का इंतजार जन्म जन्मांतर तक का नहीं हो सकता.’

इस संक्रमण के समय में, पवित्र पुरुषों को देश में शांति और सद्भाव को मजबूत करने के सकारात्मक प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए.’


अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के लिए बीजेपी अध्यादेश का रास्ता भी अपना सकती है. मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाने के विकल्प को नकार नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर इस मुद्दे को सर्वसम्मति से हल नहीं किया जा सकता है, तो फिर दूसरे विकल्पों को भी खंगाला जा सकता है.

कल सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की राम जन्मभूमि मुद्दे पर जल्दी सुनवाई की याचिका को खारिज कर दिया था. इसके दिन बाद ही योगी आदित्यनाथ ने ये बयान दिया है. हालांकि मुख्यमंत्री ने ये जरुर कहा कि वो न्यायपालिका का सम्मान करते हैं. और संवैधानिक दिक्कतों को भी समझते हैं.

योगी ने कहा- ‘इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाया जाना चाहिए. क्योंकि राज्य में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर है. हालांकि सर्वसम्मति सबसे अच्छा समाधान है. लेकिन इसके इतर भी कई अन्य तरीके हैं.’

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अयोध्या मुद्दे की सुनवाई जनवरी 2019 के पहले सप्ताह करने का आदेश जारी किया था. कोर्ट ने बेंच द्वारा सुनवाई की तारीख तय करने के पहले अपील की सूची तैयार करने का आदेश दिया. साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि ‘हमारी अपनी प्राथमिकताएं हैं.’

मुख्यमंत्री ने कहा- ‘संतों को पूरे धैर्य के साथ श्रीराम जन्मभूमि के समाधान की दिशा में होने वाले उन सभी सार्थक प्रयासों में सहभागी बनना चाहिए, जिससे देश में शांति और सौहार्द की स्थापना हो तथा भारत के सभी संवैधानिक संस्थाओं के प्रति सम्मान का भाव सुदृढ हो.’

आदित्यनाथ ने कहा कि जनता राम जन्मभूमि में जल्दी निर्णय की अपेक्षा कर रहे थे. साथ ही उन्होंने कहा ‘देर से आया न्याय, न्याय नहीं होता’. अगर फैसला समय पर आता है तो इसका स्वागत होगा. लेकिन अगर इसमें देरी होती है तो वो अन्याय के बराबर ही होगा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे हिंदूवादी संगठनों द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार से इस अध्यादेश के रास्ते पूरा करने की मांग ने जोर पकड़ लिया है. उधर आरएसएस ने कहा है कि मंदिर ‘तुरंत बनाया जाना चाहिए’ और केंद्र ‘बाधाओं को दूर करने के लिए कानून लाए’. वीएचपी ने कहा कि ‘मंदिर का इंतजार जन्म जन्मांतर तक का नहीं हो सकता.’

सीएम ने लोगों से धैर्य बनाए रखने और सकारात्मक प्रयासों में हाथ बढ़ाने का आग्रह किया. साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हम सभी साधु संतों का सम्मान करते हैं और उनकी चिंताओं का सम्मान करते हैं. इस संक्रमण के समय में, पवित्र पुरुषों को देश में शांति और सद्भाव को मजबूत करने के सकारात्मक प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए.’

Supreme Court adjourns Ayodhya dispute matter, 3-judge bench led by CJI Gogoi says date of hearing will be fixed in January


70 years, 2 minutes, indefinite date of January 2019

Why if one sees Congress Connection in SC

Sibal is obeyed today

When parties indicate urgency and an early hearing, CJI-led Bench clarifies that it cannot really say when hearing will begin.


A three-judge Bench of the Supreme Court, led by Chief Justice of India (CJI) Ranjan Gogoi, on Monday posted the Ayodhya title suit appeals in January before an appropriate Bench to fix a date for hearing the case.

When parties indicated urgency and an early hearing, the CJI-led Bench clarified that it cannot really say when hearing would begin. It left it to the discretion of the “appropriate Bench” before which the matter would come up on January.

“We have our own priorities… whether hearing would take place in January, March or April would be decided by an appropriate Bench,” the CJI said.

The CJI repeated that all the court was ordering was that the appeals would come up in January first week before a Bench “not for hearing but for fixing the date of hearing”.

On September 27, a three-judge Bench of the court led by then Chief Justice Dipak Misra, in a majority opinion, decided against referring the question ‘whether offering prayers in a mosque is an essential part of Islam’ to a seven-judge Constitution Bench.

With this, the court had signalled that it would decide the appeals like any other civil suit, based on evidence, and pay little heed to arguments about the “religious significance” of the Ayodhya issue and the communal strife it has led to over the past many years.

The Misra Bench’s judgment, authored by Justice Ashok Bhushan on the Bench, directed the hearing in the appeals to start from October 29. This last paragraph in the September 27 judgment led to questions whether the court would deliver a judgment in the appeals before the May 2019 general election.

These appeals are against the September 30, 2010 verdict of the Allahabad High Court to divide the disputed 2.77 acre area among the Sunni Waqf Board, the Nirmohi Akhara and Ram Lalla. The Bench had relied on Hindu faith, belief and folklore.

Lord Ram’s birthplace

The High Court concluded that Lord Ram, son of King Dashrath, was born within the 1,482.5 square yards of the disputed Ramjanmabhoomi-Babri Masjid premises over 900,000 years ago during the Treta Yuga. One of the judges said the “world knows” where Ram’s birthplace was while another said his finding was an “informed guess” based on “oral evidences of several Hindus and some Muslims” that the precise birthplace of Ram was under the central dome.

The final hearings in the Ayodhya appeals began before the Misra Bench, also comprising Justice S. Abdul Nazeer, on December 5 last.

The day happened to be the eve of the 25th anniversary of the demolition of the 15th century Babri Masjid by kar sevaks on December 6, 1992. The appeals were taken up after a delay of almost eight years. They remained shelved through the tenures of eight Chief Justices of India from 2010.

However, the Muslim appellants, a cross-section of Islamic bodies like the Sunni Wakf Board and individuals, had drawn the Bench’s attention to certain paragraphs in a 1994 five-judge Constitution Bench judgment in the Dr Ismail Faruqui case. One of these paragraphs stated that “a mosque is not an essential part of the practice of the religion of Islam and namaz [prayer] by Muslims can be offered anywhere, even in open”.

Mosque and Islam

“So is the mosque not an essential part of Islam? Muslims cannot go to the garden and pray,” their lawyer and senior advocate Rajeev Dhavan had asked the court. He asked the Bench to freeze the Ayodhya appeals’ hearing till this question is referred and decided by a seven-judge Bench.

In their majority view, Chief Justice (retired) Misra and Justice Bhushan refused to send the question to a seven-judge Bench. Their opinion said the observations were made in the context of the Faruqui case which was about public acquisition of places of religious worship. It should not be dragged into the Ayodhya appeals. The minority decision authored by Justice Nazeer dissented with the majority on the Bench, and said this observation about offering prayer in a mosque influenced the Allahabad High Court in 2010. He questioned the haste of the court.

During the maiden Supreme Court hearing of the Ayodhya appeals last year, senior advocate Kapil Sibal suggested to the court to post the Ayodhya hearings after July 15, 2019.

Along with Mr. Sibal, senior advocate Dushyant Dave and Mr. Dhavan argued that the Ayodhya dispute was not just another civil suit. The case covered religion and faith and dates back to the era of King Vikramaditya. It is probably the most important case in the history of India which would “decide the future of the polity”. The appeals would have the court decide “whether this is a country where a mosque can be destroyed”.

“These appeals go to the very heart of our secular and democratic fabric,” Mr. Dhavan had submitted.

Mr. Sibal had alleged the government was using the judiciary to realise its agenda for a Ram mandir assured in the ruling BJP’s 2014 election manifesto.

स्वामी सानंद (जी डी अग्रवाल) के बलिदान की स्मृति में और संत गोपाल दास के तप के लिए सामूहिक प्रार्थना

गंगा-भक्त स्वामी सानंद (जी डी अग्रवाल)

गंगा की आस्था-पवित्रता बनाए रखने के लिए गंगा-भक्त स्वामी सानंद (जी डी अग्रवाल) ने 111 दिन अनशन के बाद शरीर का त्याग कर दिया. गंगा भक्त के इस बलिदान के स्मृति में और संत गोपाल दास (121वां दिन अनशन) के तप के लिए 21 अक्टूबर दिन रविवार को उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में सामूहिक प्रार्थना, यज्ञ-हवन, आरती, सभा इत्यादि का आयोजन हो रहा है. लखनऊ में भी गांधी प्रतिमा हज़रतगंज पर शाम 4 से 6 सामूहिक प्रार्थना किया गया. इसमें शहर के दर्जनों गणमान्य नागरिक शामिल हुए.

आलोक ने कहा कि गंगा केवल नदी नहीं है यह भारतीय सभ्यता संस्कृति का तप है, मूल है जो आस्था पर टिकी है. गंगा पर संकट का मतलब पूरी भारतीय सभ्यता संस्कृति पर संकट से है. अतहर ने गंगा पर जी डी अग्रवाल का बलिदान बेकार नहीं जाएगा. पूरा समाज एकजुट होकर जी डी अग्रवाल की इच्छा को पूरा करेगा. संतोष परिवर्तक ने गंगा और उसके लिए हो रहे बलिदानों पर स्वलिखित कविता सुनाई. कार्यक्रम में लाल बहादुर राय, इमरान, नायब इमाम टीले वाली मस्जिद, उषा विश्वकर्मा, आफरीन, मोहित, प्रदीप पाण्डेय, हरिभान यादव इत्यादि लोग शामिल हुए.

ऐसा लगता है कि सरकार ने तय कर लिया है कि वह प्रत्यक्ष उदाहरण से अंग्रेजी राज के जुल्मों की याद दिलाएगी। चंडीगढ़ पीजीआई में भी संथारा की घोषणा कर चुके संत गोपाल दास जी पर प्रशासन के अत्यचार जारी हैं। 18 अक्टूबर की आधी रात में पीजीआई पहुंचाए गए संत गोपालदास जी ने फिर से एलोपैथिक ट्रीटमेंट न लेने का अपना प्रण दोहराया साथ ही कहा कि यदि सरकार को बहुत जरूरी लगे तो यूनानी या आयुर्वेद चिकित्सा कर सकती है। उनकी देखभाल के लिए बनी पीजीआई मेडिकल टीम ने इस सब पर अपनी रिर्पोट बनाते हुए सन्त जी को दिल्ली एम्स रेफर करने की सलाह दी। लेकिन पीजीआई के निदेशक ने इसकी अनुमति नहीं दी। इसके बाद चंडीगढ़ प्रशासन एक बड़े अमले के साथ पीजीआई पहुंचा, सन्त जी के सहयोगियों को बाहर किया और फोर्स फीडिंग शुरू कर दी। सन्त जी ने यथाशक्ति इसका विरोध करते हुए अपनी नाक में ठूंसी गई नली निकाल कर बाहर फेंक दी। इसके बाद प्रशासन ने उनके दोनों हाथ ही बांध दिये। अस्पताल में उपस्थित सूत्रों के अनुसार सन्त जी के साथ पहले से ही हरिद्वार से चार पुलिस कर्मियों की ड्यूटी थी अब चंडीगढ़ पुलिसकर्मियों की ड्यूटी भी लगा दी है। एक 40 किलो वजनी कृशकाय हो चुके सन्त के साथ यह व्यवहार सरकार के डर की गहराई ही दर्शाता है। -राजेश बहुगुणा

Promoting Hindi language is my duty: Pankaj Tripathi

Pankaj-Tripathi


Generally, I don’t use common Hindi words while communicating. I use a bit difficult Hindi words on set.


Pankaj Tripathi says he is a Hindi cinema actor so, promoting the Hindi language is his duty.

“Being a responsible citizen of India and coming from a Hindi medium school, I believe it’s my responsibility and duty to teach and correct Hindi. While shooting for Shakeela biopic, my director Indrajit Lankesh used to tell me to speak in Hindi with him so that his Hindi could improve,” Pankaj said in a statement.

“Generally, I don’t use common Hindi words while communicating. I use a bit difficult Hindi words on set. Crew members often used to ask me the meaning of those Hindi words. They were excited to learn meaning of new Hindi words. It wasn’t difficult communicating with Bengaluru crew members on sets of Shakeela biopic. I am a Hindi cinema actor, promoting Hindi language is my duty,” he added.

The film is based on South Indian glamour actress Shakeela.

नवरात्री पूजन क्या क्या करें और क्या क्या नहीं

माँ दुर्गा पूजा दिनांक10/10/2018 से शुरू हो रहा है।

◆ कलश पर नारियल रखने में त्रुटि न करे,◆
◆ दुर्गा पाठ में फूल माँ को प्रिय है एवं जरूरी बात◆

★★ प्रतिदिन पढ़े, पूजा पाठ विधि, क्या करना चाहिये, क्या नही करना चाहिये, पाठ शास्त्रोक्त विधि से, या तांत्रिक विधि से, इत्यादि पर पोस्ट करेंगे लाभ उठायें। ★★
【नोट- यह पोस्ट मानो या ना मानो यह आपकी इच्छा पर निर्भर है, मुझे लगता है कि जानकारी शेयर करना चाहिये, इसी उद्देश्य से पोस्ट कर रहे है।】

◆ ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ।। ◆

माँ के महा मंत्र-

1-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्यै ।
2- ॐ महिषमर्दिनी नमः।
इस महा मंत्र एक-एक माला जप करना चाहिये, रुद्राक्ष की माला से।
3- नारियल की स्थापना इसप्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक यानि पाठ करने वाले कि तरफ रहे।नारियल का मुख उस सिरे से होता है जिस तरफ से पेड़ की टहनी से जुड़ा रहता है।
इसलिये नारियल का मुख अपनी तरफ रख कर ही स्थापना करें।

माँ के रूप के अनुसार फूल अर्पित करके उनकी पूजा करने से माता की अनुकंपा जल्दी मिलती है।
1- माँ काली या कालरात्रि हो या माँ तारा हो या माँ छिन्मस्तिका हो सभी के लिये, अड़हुल लाल का फूल और माँ को अपराजिता का फूल अधिक प्रिय है।जो नीला रंग का होता है।
108 अड़हुल लाल फूल माँ को अर्पित करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
2- माँ शेरावाली को लाल फूल अधिक प्रिय है, माँ को प्रसन्न करने के लिए लाल गुलाब या लाल अड़हुल के फूल की माला पहनाये तो आर्थिक परेशानी दूर होती है।
3- माँ वीणा वाली शारदा मैया यानी माँ सरस्वती को सफेद फूल और पीले रंग का फूल चढ़ाने से माँ ज्ञान की देवी अतिप्रसन्न होती है।माँ वीणा वाली भगवती शांत एवं सौम्य की मूर्ति है।
4- माँ धन-धान्य की देवी माँ भगवती लक्ष्मी इन्हें भी लाल ही फूल प्रिय है, माँ सौभाग्य और संपदा की देवी को कमल का फूल या गुलाब का फूल लेकिन माँ को कमल का फूल ही ज्यादा पसंद है,फूल अर्पित करना चाहिए।
माँ श्री तो है ही लेकिन श्री हरि की होने के कारण, यानी भगवान् विष्णु की अर्धांगनी होने से माँ लक्ष्मी को पीले फूल भी पसंदीदा है।और कमल का फूल ज्यादा प्रिय इस लिए है कि माँ लक्ष्मी स्वयं सागर से प्रकट हुई है।
5- अब बारी आ गई माँ भगवती गौरी की साथ माँ शैल पुत्री की तो इन्हें सफेद फूल और लाल फूल पसंद है,
पतिव्रता स्त्री या सुहागन स्त्रियों को लाल फूल से माँ भगवती की पूजा करनी चाहिये, जिससे सुहाग की उम्र बढ़ती है।
जो भी कुमारी कन्याओं हो, मन पसंद वर के लिये भी लाल रंग की फूल से माँ की पूजा करनी चाहिये।
6- नवरात्रि में बहुत ही शुभ होता है नवनाग स्त्रोत का पाठ, इसका पाठ कहते है कि किसी नागदोष या सर्प दोष दूर होते है, बहुत से लोग इस दोष नही मानते है, फिर भी महादेव हो या श्री हरि हो इनकी सोभा तो नागदेवता ही बढ़ाते है, इस बात को तो जरूर मानेंगे।चलिये इसी बहाने नवरात्रि में नौ नाग की पूजा का फल प्राप्त करने के लिये इनका स्त्रोत का जप करना चाहिये।
-: नव नाग स्त्रोत:-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं

शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा

एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं

सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः

तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत

ll इति श्री नवनागस्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll
कहते है कि नौ नागों के नामो का स्मरण सायंकाल और प्रातः काल करता है, सर्वत्र विजयी होता है, और किसी प्रकार का भय नही रहता है।

Justice Ranjan Gogoi is 46th CJ India.


President Ram Nath Kovind administered the oath to Justice Gogoi at a ceremony which took place in Rashtrapati Bhavan’s Darbar Hall.

Justice Gogoi’s father Sh. Keshab Chandra Gogoi was a Chief minister under the Indian National Congress regime in the state of Assam in the year 1982.


Justice Ranjan Gogoi took oath as the as the 46th Chief Justice of India on Wednesday as he succeeded Justice Dipak Misra.

President Ram Nath Kovind administered the oath to the 63-year-old Justice Gogoi at a ceremony which took place in Rashtrapati Bhavan’s Darbar Hall.

Justice Gogoi’s father Sh. Keshab Chandra Gogoi was a Chief minister under the Indian National Congress regime in the state of Assam in the year 1982.

Justice Gogoi will have a tenure of a little over 13 months and would retire on November 17, 2019.

He was appointed as a judge of the Supreme Court on April 23, 2012.

Born on November 18, 1954, Justice Gogoi was enrolled as an advocate in 1978. He practised in the Gauhati High Court on constitutional, taxation and company matters.

He was appointed as a permanent judge of the Gauhati High Court on February 28, 2001. On September 9, 2010, he was transferred to the Punjab and Haryana High Court.

He was appointed as Chief Justice of Punjab and Haryana High Court on February 12, 2011.

Justice Gogoi was one of the four Supreme Court judges who had revolted against CJI Misra earlier this year. The other three were Justice J. Chelameswar, Justice Madan B. Lokur and Justice Kurian Joseph.

In an unprecedented move, the four senior-most judges of the apex court had held a press conference in January this year raising, among other things, questions over assigning cases to different judges by the CJI.

Earlier in September, CJI Misra had recommended Justice Gogoi as his successor as per the established practice of naming for the post the senior-most judge after the CJI.

The appointment of members of the higher judiciary is governed by the Memorandum of Procedure, which says “appointment to the office of the Chief Justice of India should be of the senior-most judge of the Supreme Court considered fit to hold the office”.

The protocol stipulates that the law minister will, at an appropriate time, seek recommendation of the outgoing CJI for the appointment of a successor. Once the CJI makes the recommendation, the law minister puts it before the Prime Minister who then advises the President on the matter.

After President Ramnath Kovind signed warrants of Justice Gogoi’s appointment , a notification was issued announcing his appointment.