Women must marry in hinduism instead facing triple talaq or halala: Sadhvi Praachi

Mathura: Vishwa Hindu Parishad leader Sadhvi Prachi has asked Muslim women who faced triple talaq to join Hinduism.

In provocative remarks in Mathura on Tuesday, she said if women marry in Islam, they will “definitely” undergo a divorce.

This will be followed by the “horrible halala”, she told reporters in Mathura, referring to the controversial form of marriage.

“So kick the culture which ruins lives and adopt Hinduism,” Sadhvi Prachi, who has been booked for hate speech in the past, said.

She said Hinduism binds a couple for “seven lifetimes”.

“In Hindu society, you will get good values and good sons. Please join, you are welcome,” she said, offering Muslim women a “life in heaven.”

The controversial preacher said she wanted to meet activist Nida Khan who is fighting against practices like triple talaq and halala.

न्यायाइक राजवंश के विरुद्ध लाम बंद सरकार


सवाल है कि क्या अब भी सुप्रीम कोर्ट इस सच को स्वीकार कर समय रहते हुए सुधार का काम शुरू करेगा या नहीं.


मोदी सरकार ने आते ही कार्यकारी व्यवस्था में बदलाव लाने के प्रयास किए जिसमें “न्यायिक राजवंश” को भेदना भी शामिल था। 2016 से सरकार ओर कोलेजियम में इसी बात को ले कर खींच तान चल रह है। हो न हो चार न्यायाधीशों की पत्रकार वार्ता के पीछे यह भी एक वजह हो सकती है। सरकार द्वारा कई नामों को नकारने के बावजूद कोलेजियम अपने कुछ चहेतों के नाम बार बार सर्वोच्च नयायालय के नयायाधीश पद हेतु भेज रहा रहा है। सरकार द्वारा इलाहाबाद उच्च नयायालय की ओर से  भेजे गए नामों को सार्वजनिक करना सरकार के इस राजवंशीय प्रणाली के प्रति उसके पक्षको स्थापित करता है।

2013 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए आठ वकीलों का नाम भेजा था. हाईकोर्ट के उस कॉलेजियम में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (अब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश) ए.के. सिकरी, जस्टिस जसबीर सिंह और जस्टिस एस.के. मित्तल शामिल थे. इसी कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए 8 वकीलों के नाम की सिफारिश की थी.

जिन वकीलों के नाम की अनुशंसा की गई थी, उसमें मनीषा गांधी (भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.एस. आनंद की बेटी), गिरीश अग्निहोत्री (पूर्व न्यायमूर्ति एमआर अग्निहोत्री के पुत्र), विनोद घई, बीएस राणा (न्यायमूर्ति एस.के. मित्तल के पूर्व जूनियर), गुरमिंदर सिंह और राजकरन सिंह बरार (न्यायमूर्ति जसबीर सिंह के पूर्व जूनियर), अरुण पल्ली (पूर्व न्यायमूर्ति पी.के. पल्ली के बेटे) और एच एस सिद्धू (पंजाब के अतिरिक्त महाधिवक्ता) के नाम शामिल थे.

न्यायिक राजवंश

कॉलेजियम से इन नामों को मंजूरी मिलने के तुरंत बाद ही, 1000 वकीलों ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को एक हस्ताक्षरित ज्ञापन भेजा. इसमें कॉलेजियम की सिफारिशों को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए थे.

 

 

ज्ञापन में कहा गया था- ‘पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने जिस तरह न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नति के लिए 8 वकीलों के नामों की सिफारिश की है, वह भारतीय न्यायपालिका की आजादी और अखंडता को खतरे में डालती है. इस तरह के नामों की सिफारिश करने के पीछे जो कारण हैं, वह कॉलेजियम के फैसले पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि नामों का चुनाव करते वक्त उम्मीदवार की योग्यता और सत्यनिष्ठा के अलावा अन्य चीजों पर विचार किया गया. अब ऐसे वकीलों के नामों की सिफारिश करना, जो पूर्व न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीशों के बेटे, बेटियां, रिश्तेदार और जूनियर हैं, एक परंपरा और सुविधा का विषय बन गया है.’

यह ज्ञापन मनीषा गांधी के नाम चयन में बरती गई गंभीर कोताही की ओर इशारा करता है. इस बारे में ज्ञापन में लिखा है, ‘जिनकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह पूर्व सीजेआई ए.एस. आनंद की बेटी हैं. वह साल 2012 में केवल 36 केसेज (मामलों) में अदालत में उपस्थित हुईं. उसमें दो सीआरएम, आठ सीडब्ल्यूपी और अन्य 26 कंपनी अपील थे. 2013 से वह आज तक केवल सात कंपनी अपील में ही अदालत में उपस्थित हुईं. हाल ही में उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का अतिरिक्त महाधिवक्ता (एडिशनल एडवोकेट-जनरल) नियुक्त किया गया, ताकि कॉलेजियम जज बनाने के लिए उनके नाम पर विचार कर सके.’

गौरतलब है कि न्यायमूर्ति एस.के. मित्तल उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का हिस्सा थे, फिर भी उन्होंने खुद से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े व्यक्तियों की सिफारिश की. जाहिर है, ऐसे निर्णय हितों के टकराव और निर्णय प्रक्रिया में शुचिता की कमी जैसे गंभीर मुद्दे को उठाते हैं.

इस मुद्दे पर शोर मचने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने छह नामों को खारिज कर दिया और पल्ली और सिद्धू के नाम पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिए. यह मामला न्यायिक नियुक्ति की वर्तमान सबसे बड़ी समस्या में से एक को उजागर करता है. सरल शब्द में इसे ‘न्यायिक राजवंश’ कहा जा सकता है. इसे एक ऐसा कॉलेजियम भी कहा जा सकता है, जो सिर्फ अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, पूर्व सहयोगियों और जूनियरों की नियुक्ति करने का काम करता है.

तमाम आलोचनाओं और व्यक्तिगत संबंधों के कारण होने वाली नियुक्तियों के स्पष्ट मामलों के सामने आने के बावजूद, यह परंपरा पिछले कुछ दशकों में बढ़ गई है. क्योंकि अवमानना के डर से लोग भाई-भतीजावाद के उदाहरणों को सामने लाने से हिचकते हैं.

केन्द्र सरकार का सख्त रुख

 

हालांकि, नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली वर्तमान सरकार इस प्रवृत्ति को रोकना चाहती है और इसके लिए प्रयासरत भी है. जून 2016 में पहली बार, केंद्र सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए 44 न्यायाधीशों की नियुक्ति पर रोक लगा दी थी. ये नाम उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजे गए थे. जिन 44 नामों की सिफारिश की गई थी, उनमें से कम से कम सात नाम सेवारत या सेवानिवृत्त पूर्व न्यायाधीशों से संबंधित थे.

बुधवार को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. इसके मुताबिक, फरवरी में इलाहाबाद उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजे गए 33 नामों की उम्मीदवारी का मूल्यांकन करने के बाद, केंद्र सरकार ने पाया है कि इन 33 नामों में से कम से कम 11 नाम सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से संबंधित है. विभिन्न संवैधानिक विशेषज्ञों और कानूनी दिग्गजों ने इस मुद्दे पर बहस करते हुए कहा है कि किसी को भी न्यायिक कार्य में आने से सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उम्मीदवार के परिवार का कोई सदस्य न्यायाधीश है. लेकिन, उन्होंने इस पर भी जोर दिया है कि लोगों के बीच विश्वास सुनिश्चित करने के लिए सिफारिश प्रक्रिया में अधिक से अधिक पारदर्शिता अपनाई जाए.

लेकिन सुधार की सभी बातों और सुझावों के बावजूद, उच्च न्यायपालिका ने इस मोर्चे पर कोई खास काम नहीं किया है. 2016 में फ़र्स्टपोस्ट के साथ एक बातचीत में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील अनुपम गुप्ता ने एक महत्वपूर्ण बिंदु पर बात की थी. उन्होंने बताया कि कैसे 2015 के एनजेएसी फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया. हालांकि, इसने ‘हितों के टकराव’ सिद्धांत (न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका की भागीदारी के संबंध में) की ऐसी व्याख्या कर दी, जो किसी भी ज्ञात न्यायशास्र सीमा से परे है.

अब, इलाहाबाद उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजी गई सूची में न्यायाधीशों के रिश्तेदारों के नामों को सार्वजनिक करके, केंद्र ने ‘एलीफैंट इन रूम’ (एक ऐसी समस्या, जिस पर कोई बात नहीं करना चाहता) वाली कहावत की कलई खोल दी है. सवाल है कि क्या अब भी सुप्रीम कोर्ट इस सच को स्वीकार कर समय रहते हुए सुधार का काम शुरू करेगा या नहीं.

A portion of the Agra-Lucknow Expressway caved in

A portion of the Agra-Lucknow Expressway, former Uttar Pradesh chief minister Akhilesh Yadav’s dream project, caved in on Wednesday causing a vehicle carrying four passengers to fall into a 20-feet ditch in Dauki, 16 kilometres from Agra, media reports said. Heavy rain had caused a portion of the road to cave in. All four passengers were rescued by locals and no major injury was reported.

 

According to NDTV, the four men were on a road trip from Mumbai to their home in Kannauj district after one of the men bought the car in Mumbai. The Uttar Pradesh government has called for a probe asking a third party agency, RITES Ltd, to find out why the road caved in and submit a report within 15 days.

“A third-party probe has been ordered into the caving-in of the side road of the expressway (16 km from Agra towards Lucknow) by RITES Limited. The construction of the damaged road will be done by the construction agency at its cost,” Uttar Pradesh Expressway Industrial Development Authority (UPEIDA) chairman Avanish Awasthi said.

The driver had bought the second-hand vehicle in Mumbai recently and had no idea of the route on which they were travelling, The Times of India reported.

The 302-kilometre-long Agra-Lucknow expressway, which costs nearly Rs 15,000 crore, was completed in record time of 23 months. It was inaugurated in November 2016, by the erstwhile Samajwadi Party (SP) government months ahead of the 2017 Uttar Pradesh Assembly election. It is the country’s longest access-controlled greenfield expressway on which the Indian Air Force (IAF) fighters jets can land and take-off in case of a war-like emergency.

सरकार ने कलेजियम को जजों की भर्ती में भाई भतीजावाद के सबूत दिये


इलाहाबाद हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजी गई 33 वकीलों की सूची को सरकार ने अपनी जुटाई गहन जानकारियों के साथ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजा है. इसमें इन वकीलों की योग्यता, न्याय बिरादरी में उनकी निजी और पेशवर छवि के अलावा उनकी पूरी साख के बारे में बताया गया है


जजों की नियुक्ति के प्रस्ताव में परिवारवाद (नेपोटिज्म) को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को आईना दिखाया है. केंद्र ने पहली बार इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए भेजे गए 33 वकीलों के नामों के अनुशंसा (सिफारिश) में शामिल कम से कम 11 के वर्तमान और रिटायर्ड हाईकोर्ट के जजों और सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ संबंधों (भाई-भतीजावाद) का जिक्र किया है.

एक राष्ट्रीय दैनिक में छपी खबर के अनुसार सरकार ने फरवरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट कॉलेजियम की तरफ से दी गई 33 वकीलों की सूची को अपनी जुटाई गहन जानकारियों के साथ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजा है. इसमें इन वकीलों की योग्यता, न्याय बिरादरी में उनकी निजी और पेशवर छवि के अलावा उनकी पूरी साख जैसे जांच निष्कर्षों के बारे में कोलेजियम को बताया गया है.

हालांकि सरकार ने एक अनूठा कदम उठाते हुए इस बार कई उम्मीदवारों के वर्तमान और रिटायर जजों के साथ संबंधों को भी अपनी जुटाई जानकारी में शामिल किया है. इसके पीछे केंद्र का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के इस बारे में फैसला लेते वक्त ऐसे सभी सिफारिशों को दरकिनार करना है. और काबिल (सक्षम) वकीलों को प्रस्तावना में बराबर का मौका दिलाना है.

दो वर्ष पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से ऐसी ही एक अनुशंसा की गई थी. उस समय हाईकोर्ट कॉलेजियम ने 30 वकीलों के नाम का प्रस्ताव भेजा था. जिसमें से तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) टीएस ठाकुर ने 11 वकीलों के नाम खारिज कर दिए थे, और सरकार से केवल 19 के हाईकोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति की सिफारिश की थी. 2016 की उस लिस्ट में भी जजों और नेताओं के सगे-संबंधी शामिल थे.

इलाहाबाद HC कॉलेजियम की भेजी लिस्ट में परिवारवाद का था बोलबाला

एक राष्ट्रीय अखबार के हवाले से यह खबर छापी थी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट कॉलेजियम की भेजी गई लिस्ट में सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान जज के साले, एक अन्य जज के कजिन (भाई) के अलावा सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही कई पूर्व जजों के सगे-संबंधी के भी नाम इसमें शामिल थे. तब अखबार ने इन नामों को उजागर नहीं किया था. इसकी वजह थी कि सरकार को इनके इतिहास (बैकग्राउंड) के बारे में पड़ताल करना बाकी था.

कुल मिलाकर कहें तो, 33 वकीलों की इस लिस्ट में कम से कम 11 ऐसे हैं जिनका संबंध वर्तमान या रिटायर्ड जजों से है. इसके अलावा लिस्ट में शामिल एक वरिष्ठ वकील के बारे में कहा जाता है कि वो दिल्ली के एक बड़े नेता की पत्नी के कथित लॉ पार्टनर हैं.

दिलचस्प बात है कि गहन पड़ताल के बाद सरकार ने इन 33 अनुशंसाओं में से केवल 11-12 वकीलों के ही देश के इस सबसे बड़े हाईकोर्ट का जज बनने के लायक पाया. सूत्रों के अनुसार अनुशंसा किए गए हर उम्मीदवार की काबिलियत पर काफी बारीकी से जांच की गई थी.

How BJP became the richest political party in the world in four years: Congress


Anand Sharma advised Modi to talk sensibly and remarked Modi’s DNA


New Delhi:

The Congress continued to target Prime Minister Narendra Modi over his speeches in Lucknow last week, saying he should “stop dramatising” poverty.

Congress leader Anand Sharma told reporters here that speaking was part of Modi’s DNA and if he does not give speeches, “it probably can affect his health”.

Noting Modi shapes his address according to the composition of the audience, he said: “The prime minister should stop this drama of poverty. He should not play with sentiments of the poor. He cheated people with these sentiments in 2014 elections. Now it is time to give an account of his performance.” Sharma said.

He said Indian’s first prime minister Jawaharlal Nehru was from an affluent background but he left everything and adopted khadi, while Modi was the first prime minister who wears “such good clothes” and changes his dress often.

Sharma said former prime minister Lal Bahadur Shastri was from a humble background but never mentioned about the poverty he faced while occupying the high post, while all the others from Indira Gandhi to Manmohan Singh life with simplicity.

Modi had said in a speech on Saturday in Lucknow that poverty had given him honesty and courage.

Sharma also referred to Modi’s remarks in Lucknow that he was “not afraid of” publicly standing beside industrialists because his intentions were “noble” and accused him of making baseless allegations against the Congress, which has never insulted the captains of Indian industry nor used abusive words.

“He (Modi) should talk responsibly. Congress Party has always encouraged industrialisation, investment, capital formation and redistribution of the capital for the common good. That has been the governing philosophy and the ideology of the Congress and the successive governments and that is why this country had seen unprecedented growth during our time,” he said.

He also said Modi should answer how BJP became “the richest political party in the world in four years”.


walk talk : It is the party not the leaders alike others who became the richest without any business.

Be wise enough to differentiate between Nation Builders & Thieves


His theme: They were nation builders and not thieves. “Hum unko apmanit karenge, chor lootere kahenge. Ye kaun sa tareeka hai

“The middle class plays an important and challenging role in social and economic transformation of society. Its role has to be recognised. The emergence of the neo middle class has to be redefined”

Modi said he took pride in being the ‘bhagidar’ in the problems faced by all sections of society and in finding the solution to those problems.


By the end of 2012, the “middle class” had become a kind of bad word in the political narrative. No political party talked of its concerns or its aspirations. In fact, on various occasions, the ruling class even blamed it for consumerism and said that it led to a price rise. The Congress-led United Progressive Alliance (UPA), which was at nearly the end of its second term at the Centre, thought the poorer section of voters would bring them back to power on the promise of a law on the right to food and Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act wages.

The Bharatiya Janata Party, which otherwise was perceived to be champions of the middle class, after losing badly in the metros—Delhi and Mumbai in 2004 and 2009 elections—also quietly dropped this word from their political vocabulary.

In December 2012, Narendra Modi, then chief minister of Gujarat, surprised many inside and outside politics by eloquently speaking of the concerns of the middle class, its aspirations and its contribution to nation-building. The BJP’s election manifesto went on at length to make promises for ‘navodit’ or neo middle class, his new social and political constituency.

At the time, it was considered a bold move for Modi to have openly sided with the middle classes’ aspirations. “The middle class plays an important and challenging role in social and economic transformation of society. Its role has to be recognised. The emergence of the neo middle class has to be redefined”, Modi said at a speech in Ahmedabad. By that time, it was clear that after his victory in Gujarat, Modi would be a natural prime ministerial candidate for the BJP. The rest is history.

On Sunday, when Modi talked eloquently of contributions of business and industry in the development of the nation, he was, yet again, breaking ranks from the rest of his rivals.

When political parties are in power, they talk of public-private sector partnerships, private sector investments in states under their command, seek donations and other favours. However, over the years, Congress president Rahul Gandhi and Aam Aadmi Party chief Arvind Kejriwal in particular, through their actions and speeches make one feel as if those engaged in business and industry were a curse on the nation. Rahul Gandhi’s “suit-boot ki sarkar” jibe to Modi was one such manifestation of his disdain for industry.

When Modi came to power at the Centre in May 2014, he was perceived to be a business-friendly prime minister. But over the next four years, many of his actions were in the socialist mold: More socialist and centrist than many so-called socialists and centrists. Modi would not do anything that could be seen to be overtly business and industry friendly. A series of reforms undertaken by his government pinched the business community. Modi also invited criticism that his priorities had changed. His political rivals, of course, continued to fling against him the charge of crony capitalism.

But Sunday was different. While laying the foundation stone for 81 projects worth around Rs 60,000 crore in Lucknow at a packed auditorium made up of business and industry representatives including some honchos, Modi explained the importance of their role in the nation’s progress. His theme: They were nation builders and not thieves. “Hum unko apmanit karenge, chor lootere kahenge. Ye kaun sa tareeka hai (we humiliate them, call them thieves and robbers. This can’t be the way).

He added that they have had a clear role in making India a better country, just like farmers, artisans, bankers and workers. Modi’s punch line: Since his intentions was clear, unlike other political leaders, he was not afraid of getting his picture taken with industry leaders. For the titans of industry that had gathered, Modi’s words must have been very soothing. The live telecast and informal chat would have ensured that Modi’s message travelled far and wide.

And by doing so, Modi not only answered his political opponents— in particular Rahul—but also addressed the concerns of industry and criticism of some dispassionate economic analysts. In the past week, Modi has spoken at length twice about Rahul ‘bhagidar’ (partner) charge. Modi said he took pride in being the ‘bhagidar’ in the problems faced by all sections of society and in finding the solution to those problems.

Modi knows that in his last year in power, with three months to go for Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh and Mizoram elections and parliamentary elections only eight months away, he can’t let the narrative slip away. The choice of Lucknow as a venue to vent his feelings or launch a counter-narrative is also significant. Last time, Uttar Pradesh gave 73 out of 80 parliamentary seats to BJP and its ally and Modi is obviously looking for a repeat performance. Private sector investments and industrial development across the state bring jobs and consequently a change in social and economic status. That’s the key to keep alive the popular faith in Modi.

पीएम लखनऊ दौरे के दूसरे दिन देंगे 60,000 करोड़ के प्रोजेक्ट्स की सौगात


ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में पेटीएम, गेल, एचपीसीएल, टीसीएस, बीएल एग्रो, कनोडिया ग्रुप, एसीसी सीमेंट, मेट्रो कैश एंड कैरी, पीटीसी इंडस्ट्रीज, गोल्डी मसाले, डीसीएम श्रीराम समेत कई उद्योग घरानों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लखनऊ दौरे का आज यानी रविवार को दूसरा दिन है. पीएम यहां ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में हिस्सा लेंगे. इस दौरान वो लगभग 60 हजार करोड़ रुपए के विकास योजनाओं की नींव रखेंगे.

पीएम मोदी जो प्रोजेक्ट लॉन्च करेंगे उनमें टीसीएस नोएडा में आईटी/आईटीईएस सेंटर की स्थापना भी शामिल है. पूरा प्रोजेक्ट 2300 करोड़ का होगा. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इससे लगभग 30 हजार लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है. इसके अलावा बिजनौर में सीमेंट प्लांट, बरेली में प्रोसेसिंग यूनिट और गोरखपुर में इंटिग्रेटेड स्टील प्लांट और हरदोई में इंटीग्रेटेड पेंट प्लांट का शिलान्यास करेंगे.

ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में पेटीएम, गेल, एचपीसीएल, टीसीएस, बीएल एग्रो, कनोडिया ग्रुप, एसीसी सीमेंट, मेट्रो कैश एंड कैरी, पीटीसी इंडस्ट्रीज, गोल्डी मसाले, डीसीएम श्रीराम समेत कई उद्योग घरानों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं.

इससे पहले शनिवार को पीएम मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ‘भागीदार‘ वाली हाल की टिप्पणी पर पलटवार करते हुए कहा कि वह इस इल्जाम को ‘इनाम‘ मानते हैं.

इसी के साथ प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें देश के गरीबों के दुख का भागीदार होने पर गर्व है. दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष ने पिछले दिनों संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान प्रधानमंत्री पर भागीदार होने का आरोप लगाया था.

शनिवार को लखनऊ में इस आरोप का जवाब देते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘इन दिनों मुझ पर एक इल्जाम लगाया गया है कि मैं चौकीदार नहीं, भागीदार हूं लेकिन देशवासियों मैं इस इल्जाम को इनाम मानता हूं.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे गर्व है कि मैं भागीदार हूं. मैं देश के गरीबों के दुखों का भागीदार हूं. मेहनतकश मजदूरों के दुखों और हर दुखियारी मां की तकलीफों का भागीदार हूं. मैं उस हर मां के दर्द का भागीदार हूं जो लकड़ियां बीनकर घर का चूल्हा जलाती हैं. मैं उस किसान के दर्द का भागीदार हूं जिसकी फसल सूखे या पानी में बर्बाद हो जाती है. मैं भागीदार हूं, उन जवानों के जुनून का, जो हड्डी गलाने वाली सर्दी और झुलसाने वाली गर्मी में देश की रक्षा करते हैं.’

जिसके पांव फटे ना बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई : मोदी


राहुल ने लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री पर इल्जाम लगाते हुए भ्रष्टाचार में ‘भागीदार‘ होने का आरोप लगाया था


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ‘भागीदार‘ वाली हाल की टिप्पणी पर पलटवार करते हुए कहा कि वह इस इल्जाम को ‘इनाम‘ मानते हैं. इसी के साथ प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें देश के गरीबों के दुख का भागीदार होने पर गर्व है. दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष ने पिछले दिनों संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान प्रधानमंत्री पर भागीदार होने का आरोप लगाया था.

शनिवार को लखनऊ में इस आरोप का जवाब देते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘इन दिनों मुझ पर एक इल्जाम लगाया गया है कि मैं चौकीदार नहीं, भागीदार हूं. लेकिन देशवासियों मैं इस इल्जाम को इनाम मानता हूं.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे गर्व है कि मैं भागीदार हूं. मैं देश के गरीबों के दुखों का भागीदार हूं. मेहनतकश मजदूरों के दुखों और हर दुखियारी मां की तकलीफों का भागीदार हूं. मैं उस हर मां के दर्द का भागीदार हूं जो लकड़ियां बीनकर घर का चूल्हा जलाती है. मैं उस किसान के दर्द का भागीदार हूं जिसकी फसल सूखे या पानी में बर्बाद हो जाती है. मैं भागीदार हूं, उन जवानों के जुनून का, जो हड्डी गलाने वाली सर्दी और झुलसाने वाली गर्मी में देश की रक्षा करते हैं.’

मोदी ने कहा कि वह गरीबों के सिर पर छत दिलाने, बच्चों को शिक्षा दिलाने, युवाओं को रोजगार दिलाने, हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई यात्रा कराने की हर कोशिश के भागीदार हैं.

उन्होंने राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा, ‘गरीबी की मार ने मुझे जीना सिखाया है. गरीबी का दर्द मैंने करीब से देखा है. मगर जिसके पांव फटे ना बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई.’

उल्लेखनीय है कि राहुल ने गत 20 जुलाई को लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री पर कुछ उद्योगपतियों के लिए काम करने का इल्जाम लगाते हुए भ्रष्टाचार में ‘भागीदार‘ होने का आरोप लगाया था.

प्रधान मंत्री का लखनऊ दौरा आज से

चित्र केवल संदर्भ हेतु

 

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 28 और 29 जुलाई को लखनऊ का दौरा करेंगे। 28 तारीख को वे शहरी भूपरिदृश्‍य में बदलाव विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्‍सा लेंगे। यह कार्यक्रम भारत सरकार की शहरी विकास योजना पहल की तीसरी वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया जा रहा है। शहरी विकास के तहत प्रधानमंत्री आवास योजना, अमृत और स्‍मार्ट सिटी योजनाएं शामिल हैं।

प्रधानमंत्री इस अवसर पर शहरी विकास मिशन पर आयोजित एक प्रदर्शनी भी देखने जाएंगे और राज्‍यों तथा संघ शासित प्रदेशों से आए प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के 35 लाभार्थियों से मिलेंगे। वह इस अवसर पर उत्‍तर प्रदेश के विभिन्‍न शहरों में रहने वाले इस योजना के लाभार्थियों से वीडियो लिंक के जरिए उनके अनुभव भी जानेंगे।

प्रधानमंत्री इस अवसर पर शहरी विकास योजना के तहत उत्‍तर प्रदेश में कई परियोजनाओं की आधारशिला रखेंगे और उपस्थित लोगों को संबोधित करेंगे।

राज्‍य में निवेश आकर्षित करने और औद्योगिकरण प्रोत्‍साहित करने के लिए उत्‍तर प्रदेश सरकार ने फरवरी 2018 में उत्‍तर प्रदेश निवेशक सम्‍मेलन आयोजित किया था। इससे राज्‍य में नवीकरणीय ऊर्जा, आधारभूत संरचना, बिजली सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्‍ट्रॉनिक विनिर्माण और पर्यटन आदि के क्षेत्र में 4.28 लाख करोड़ रूपये से ज्‍यादा का निवेश हुआ।

पिछले कुछ महीनों के भीतर राज्‍य में शहरी विकास से जुड़ी 81 परियोजनाओं के लिए करीब 60,000 करोड़ रूपये के निवेश प्रस्‍ताव प्राप्‍त हो चुके हैं। प्रधानमंत्री 29 जुलाई को लखनऊ में इन परियोजनाओं के लिए होने वाले भूमि पूजन समारोह में शामिल होंगे।

Khaki kneels down Peethaadheesh and take blessings

Police officer Pravin Singh kneels down and takes blessings from Uttar Pradesh Chief Minister Adtiyanath on the occasion of Guru Purnima at the Gorakhnath temple on July 27, 2018. Adityanath is also ‘Peethadishwar’ and ‘Mahant’ (head priest) of the Gorakhnath Math. Photo courtesty: Twitter/@swamv39


It was on the occasion of Guru Purnima at the Gorakhnath temple; Adityanath is also the ‘Peethadishwar’ and ‘Mahant’ (head priest) of the Gorakhnath Math.


A photograph of a police officer in uniform kneeling down and getting blessings from Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath on the occasion of Guru Purnima at the Gorakhnath temple in Gorakhpur has gone viral on the social media.

Mr. Adityanath is also ‘Peethadishwar’ and ‘Mahant’ (head priest) of the Gorakhnath Math.

Police officer’s stand

The police officer, Pravin Singh, however, came out with a clarification, saying, “I was deployed at the temple for security duty and I went there after completing my work with full dedication, when most of the disciples were seeking blessings. Out of my devotion and after removing my belt, cap and other accessories and covering my head with a handkerchief, I took the blessings of Peethadishwar Mahant Yogi Adityanath.”

He further said, “My shirt was wet with sweat and I had not ignored my work. Mahant Yogi sits in the position of a guru on two occasions in the temple — one at the time of Dussehra and other on Guru Purnima. I always pray at the temple for serving the country honestly and with dedication. It was just out of my devotion towards Baba Gorakhnath and nothing else.”

Mr. Singh is posted as Circle Officer, Gorakhnath in Gorakhpur.

IG, Civil Defence, Amitabh Thakur (IPS) said the police manual was not very clear on this count. “This is a grey area and can be interpreted either way. But a police officer needs to uphold the dignity of his uniform,” he pointed out.