लोकसभा के साथ 11 राज्‍यों में विधानसभा चुनाव करा सकती है सरकारः सूत्र


इस साल के अंत में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उसे छह महीना और टालकर लोकसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है


केंद्र सरकार अगले साल लोकसभा चुनाव के साथ ही 11 राज्‍यों के विधानसभा चुनाव करा सकती है. बीजेपी सूत्रों ने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र, मिजोरम, छत्‍तीसगढ़ और हरियाणा जैसे राज्‍यों के चुनाव कराए जा सकते हैं. इसके लिए सभी पार्टियों की बैठक बुलाई जा सकती है. इस तरह से चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन कराने की जरूरत भी नहीं है. बता दें कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व वाली केंद्र सरकार एक देश एक चुनाव की पैरवी करती रही है.

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. वहीं ओडिशा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, मिजोरम में विधानसभा चुनाव 2019 के आम चुनावों के साथ होने वाले हैं. ऐसे में मुमकिन है कि सरकार इन सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ ही करा ले. सरकार जल्द ही इस मामले में ऑल पार्टी मीटिंग बुला सकती है.

जम्‍मू कश्‍मीर में अभी किसी की सरकार नहीं है. पीडीपी बीजेपी के अलग होने के बाद से वहां पर राज्‍यपाल का शासन है. ऐसे में वहां पर भी अगले साल चुनाव कराया जा सकता है. वहीं महाराष्‍ट्र, झारखंड और हरियाणा जैसे राज्‍यों में समय से पहले चुनाव कराए जा सकते हैं.

अमित शाह ने विधि आयोग को एक राष्ट्र एक चुनाव पर अपना मत पत्र द्वारा स्पष्ट किया

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने विधि आयोग को एक देश एक चुनाव से संबंधित पत्र भेजा है. सोमवार को शाह ने पत्र लिख कर समकालिक चुनाव पर भारतीय जनता पार्टी का दृष्टिकोण स्पष्ठ किया. शाह ने पत्र में लिखा, ‘हमारे देश में देखा गया है कि पूरे वर्ष, किसी न किसी महीनों किसी न किसी राज्य में चुनाव हो रहे होते हैं.’

शाह ने लिखा, ‘सामान्यतः लोकसभा के एक पांच वर्षीय कार्यकाल में, औसतन, देश में हर साल पांच से सात राज्यों में विधानसभा चुनाव होते हैं और साथ ही साथ बड़ी संख्या में स्थानीय प्राधिकरणों, जो स्थानीय स्व-शासन की महत्वपूर्ण इकाइयां हैं, के चुनाव भी उस दौरान होते हैं.’

सरकारी खजाने पर पड़ता है अतिरिक्त बोझ

बीजेपी अध्यक्ष ने पत्र में लिखा की चुनावों की इस मौजूदा प्रक्रिया के परिणामस्वरूप एक ऐसी स्थिति बन जाती है जिसमें समूचा देश राष्ट्रीय स्तर पर, राज्य स्तर पर या स्थानीय अधिकारियों के स्तर पर, हर समय चुनावी मोड में ही रहता है. जिसके कारण सार्वजनिक खजाने को ऐसे आवधिक चुनावों के संचालन के लिए भारी बोझ उठाना पड़ता है. उन्होने कहा, ‘इस व्यय को पांच साल में एख साथ सभी चुनाव कराकर आसानी से कम किया जा सकता है.’

आचार संहिता से रुक जाते हैं विकास कार्य

शाह ने पत्र में लिखा कि चुनावों के समय कई सरकारी अधिकारियों का समय मूल कार्यों से हटकर चुनावों मे लग जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि चुनावों के पहले इलाके में आचार संहिता लागू हो जाती है इसके कारण विकास कार्य रुक जाता है.

शाह ने कहा कि चुनवों की तारीख लागू होने के बाद से ही तमाम राजनीतिक दल आगामी चुनावों की तैयारियों जुट जाते हैं. ऐसे में चुनावों को ध्यान में रखते हुए वह लघुकालिक और लोकलुभावन निर्णय लेने लगते हैं. जबकि निर्णय लेने का तरीका नीतिगत होना चाहिए.

आयोग और प्रतिनिधिमंडल के बीच बैठक करीब 50 मिनट चली. बैठक के बाद नकवी ने कहा कहा,

‘‘लगातार चुनाव का सिलसिला जारी रहने के चलते आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य प्रभावित होता है. इसके साथ ही चुनाव खर्च में भी बेतहाशा तेजी आती है.’’

उन्होंने कहा कि चुनाव का लगातार सिलसिला जारी रहने से वास्तविक मुद्दे पर ध्यान नहीं होता और जनता से जुड़़े विषय प्रभावी ढंग से नहीं उठ पाते. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब से देश में एक देश, एक चुनाव का माहौल बना है, तब से चुनावी प्रक्रिया के सबसे बड़े पक्षकार मतदाताओं ने इसका स्वागत किया है.

कांग्रेस एक देश एक चुनाव के पक्ष में नहीं

कांग्रेस एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव के कॉन्सेट को नकार चुकी है. पार्टी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल और सिंघवी ने हाल ही में लॉ कमीशन से कहा कि एक साथ चुनाव भारतीय संघवाद की भावना के खिलाफ है.

4 राज्यों के चुनाव परिणामों के पश्चात ही कांग्रेस महागठबंधन को गंभीरता से लेगी


कांग्रेस चाह रही है कि महागठबंधन के लिए हाथ तो फैलाया जाए लेकिन डील फाइनल न की जाए. क्योंकि कांग्रेस को फेयरडील मिलने की उम्मीद कम है. इसलिए4  पार्टी एनडीए में और फूट का इंतजार कर रही है


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जयपुर के बाद अब तेलांगना के दौरे पर जा रहे हैं. 2019 में होने वाले आम चुनाव से पहले राहुल गांधी पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं. रविवार को जयपुर में राहुल गांधी के लिए काफी भीड़ उमड़ी, इस दौरान राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जमकर कोसा. हालांकि राहुल का प्रयास एक तरफ चल रहा है. लेकिन गठबंधन की राजनीति के लिए अभी तक सार्थक पहल नहीं हुई है. राज्यसभा में जहां विपक्ष के संख्याबल में अधिक होने के बाद भी सत्ता पक्ष का उपसभापति का चुनाव जीतना विपक्षी एकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.

राहुल गांधी की तरफ से न ही कांग्रेस पार्टी की तरफ से गंभीर प्रयास किया गया. बी के हरिप्रसाद को चुनाव लड़ने के लिए सिर्फ मैदान में उतार दिया गया. इस दौरान आपसी सामंजस्य बैठाने की रणनीति का अभाव साफ दिखाई दिया. आम आदमी पार्टी (आप) के आरोप को अगर अहमियत न भी दिया जाए तो भी ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस वॉक ओवर देने के लिए तैयार बैठी थी.

कैसे होगा विपक्ष का एका

विपक्षी दलों की एकजुटता न होने की वजह है, गिला और शिकवा, सत्ता से कोसों दूर होने के बाद भी अहम की लड़ाई पीछे नहीं छूट रही है. विपक्षी दल इस बात के लिए सहमति नहीं बना पा रहे हैं कि किस बात पर सहमत होना है. कुल मिलाकर मोदी विरोध ही उनके जुड़ाव का केंद्र है. लेकिन इस बात पर भी आपस में मतभेद है.

कांग्रेस के खेमों से बीजेपी नीतीश कुमार को अपने साथ लाने में कामयाब रही. वहीं टीआरएस भी बीजेपी के साथ खड़ी दिख रही है. बीजेपी सबसे बात करने में गुरेज नहीं कर रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को नवीन पटनायक से बात करने में कोई बुराई नहीं दिखाई दी. राजनीति में अमित शाह की चाल का जवाब देना कोई बड़ी बात नहीं है. बशर्ते यदि कोई पहल करे. कांग्रेस में इस पहल की कमी साफ दिखाई दे रही है. राहुल गांधी ने वर्किंग कमेटी की बैठक में कहा कि वो गठबंधन के लिए एक कमेटी का गठन करेंगें, लेकिन अभी तक कमेटी का इंतजार हो रहा है.

कॉरडिनेशन कमेटी की जरूरत

गठबंधन के लिए यूपीए में कॉरडिनेशन कमेटी की मांग उठ रही है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने भी कहा है कि एक कमेटी बनाने की जरूरत है. जाहिर है इसके लिए राहुल गांधी को पहल करनी चाहिए, कि एक ऐसी कमेटी बनाई जाए जिसमें मौजूदा घटक दल के नेता भी हों, जिससे किसी को शिकायत का मौका ना मिल सके. क्योंकि वक्त की कमी है.

दूसरे कांग्रेस की अपनी ताकत भी घटी है. जिससे छोटे दल कांग्रेस को ज्यादा अवसर देने से बच रहे हैं. समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्यक्ष अखिलेश यादव का हाल में दिया गया बयान जाहिर करता है कि वो कांग्रेस को यूपी में ज्यादा सीट देने के मूड में नहीं है. अगर यूपीए की ओर से अधिकारिक कमेटी बना दी जाती है. तो कांग्रेस को भी आसानी रहेगी, क्योंकि इसमें पार्टी का नुमाइंदा रहेगा जो कांग्रेस के हित का ध्यान रख सकता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने भी कहा है कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा. लेकिन इसके लिए पहल कांग्रेस को ही करना पड़ेगा, क्योंकि 2004 में भी पहल सोनिया गांधी ने ही की थी.

सोनिया की टीम में अनुभव

2004 के लोकसभा चुनाव से पहले सोनिया गांधी ने कई बड़े पहल किए थे. रामविलास पासवान से मिलने वो पैदल चलकर उनके घर पहुंचीं थी. सोनिया गांधी के कार्यालय से सिर्फ यह पूछा गया कि पासवान घर पर हैं या नहीं, हालांकि दोनों का घर एक-दूसरे से सटा हुआ है. सोनिया तब मायावती से भी मिलीं थी.

राजीव गांधी के 1989 में हार का कारण बने वी पी सिंह से भी उन्होंने सहयोग लिया था. राजीव गांधी के धुर विरोधी रहे आरिफ मोहम्मद खान से वो मिलीं और उन्हें पार्टी में शामिल होने का न्योता भी दिया. यह बात दीगर है कि आरिफ उसी शाम बीजेपी में शामिल हो गए. शायद वो इंडिया शाइनिंग के विपरीत चल रही हवा के रूख को भांप नहीं पाए. लेकिन रामविलास पासवान ने इसे पहचान लिया था.

तो सार यह है कि सोनिया गांधी की टीम ही पर्दे के पीछे काम कर रही थी. राहुल गांधी भी इस टीम का सही इस्तेमाल कर सकते हैं. राजनीति में सत्ता या अनुभव ही काम आता है. कांग्रेस के पास न अब सत्ता की हनक है और न ही टीम राहुल में धुरंधर दिखाई दे रहे हैं.

नहीं बन पा रही धुरी

विपक्षी एकता का राग सभी अलाप रहें हैं लेकिन उनमें इच्छाशक्ति की कमी साफ दिखाई दे रही है. कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा है जो इस एकता की ध्रुवी बन सके. सभी राजनीतिक दल शह और मात का दांव खेल रहे हैं. किसका दांव लगेगा यह कहना मुश्किल है. लेकिन इस बार ज्यादातर लोगों को लग रहा है कि वो किंग मेकर की जगह किंग बन सकते हैं.

2004 की तरह अब न हरिकिशन सिंह सुरजीत हैं ना ही वी पी सिंह. राहुल गांधी के सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी से मरासिम अच्छे हैं. लेकिन न लेफ्ट में वो ताकत बची है, न ही हरिकिशन सिंह सुरजीत वाला कद उनके पास है. विपक्ष के पास असरदार नेताओं में शरद पवार ही हैं. जिनका मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी से दोस्ताना रिश्ते हैं. उनके शिवसेना से भी संबंध अच्छे हैं. शरद पवार लगातार लोगों से मिल भी रहे हैं, हाल में वो मायावती से भी मिले थे. राहुल गांधी बड़े दल के अध्यक्ष हैं. उनके ऊपर पार्टी की जिम्मेदारी है. ऐसे में उनको किसी पर भरोसा करना पड़ेगा क्योंकि अकेले यह सब करना आसान नहीं है.

3 राज्यों के विधानसभा के चुनाव

जल्द ही 3 महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि इन तीनों राज्यों में उसे सत्ता हासिल हो सकती है. ऐसे में कांग्रेस की कीमत बढ़ेगी और पार्टी की यूपी, बिहार, बंगाल जैसे राज्यों में मोलभाव की क्षमता बढ़ेगी. कांग्रेस चाह रही है कि गठबंधन के लिए हाथ तो फैलाया जाए लेकिन डील फाइनल न की जाए. क्योंकि कांग्रेस को फेयरडील मिलने की उम्मीद कम है. इसलिए पार्टी एनडीए में और फूट का इंतजार कर रही है.

तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट खत्म

राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से पीछे हटने से तीसरे मोर्चे की आवाज दब गई है. राहुल गांधी से कई दल सहज नहीं थे. राहुल के इस फैसले के बाद से कांग्रेस की गोलबंदी का काम आसान हुआ है. लेकिन अधिकृत कमेटी या व्यक्ति न होने से हर पार्टी सीधे राहुल गांधी से बात करना चाहती है. जिससे समस्या खड़ी हो रही है. समय निकलता जा रहा है. बीजेपी जहां चुनाव के लिए तैयार है. वहीं कांग्रेस अभी गठबंधन के पेंच में उलझी है.

 

Heavy to very heavy rain is predicted in 16 states


Heavy to very heavy rains are expected in 16 states, including Kerala, Uttarakhand and West Bengal, in next two days with fishermen are advised not to venture in central Arabian Sea, the NDMA said on Saturday.


Heavy to very heavy rains are expected in 16 states, including Kerala, Uttarakhand and West Bengal, in next two days with fishermen are advised not to venture in central Arabian Sea, the NDMA said on Saturday.

In a statement, the National Disaster Management Authority (NDMA) said heavy rains are also expected in large areas along Bay of Bengal.

Red warning for heavy to very heavy rain at a few places with extremely heavy falls at isolated places very likely over Uttarakhand tomorrow and Monday, theNDMA said quoting a bulletin of the India Meteorological Department.

Rough to very rough sea conditions are likely to prevail over west central Arabian Sea. Fishermen are advised not to venture into this area, it said.

Heavy to very heavy rains are likely at isolated places over Uttarakhand, Sub-Himalayan West Bengal, Sikkim, Himachal Pradesh, Uttar Pradesh, Chhattisgarh, Bihar, Jharkhand, Odisha, Arunachal Pradesh, Assam, Meghalaya, coastal Andhra Pradesh, coastal Karnataka,Tamil Nadu and Kerala.

As many as 718 people have lost their lives in incidents related to floods and rains in seven states during the monsoon season so far.

According to the Home Ministry’s National Emergency Response Centre (NERC), 171 people lost their lives in Uttar Pradesh, 170 people have died in West Bengal, 178 have died in Kerala and 139 have died in Maharashtra.

As many as 52 people lost their lives in Gujarat, 44 died in Assam and eight perished in Nagaland.

A total of 26 people were also missing, Kerala (21) and West Bengal (5), while 244 others received injuries in rain-related incidents in the states, it said.

राष्ट्रीय परियोजनाओं के रूप में सिंचाई परियोजनाओं की घोषणा

नई दिल्ली, 09 अगस्त 2018, डेमोक्रेटिक फ्रंट।

इस योजना के दिशा-निर्देश के अनुसार देश में 16 परियोजनाओं की घोषणा, राष्ट्रीय परियोजनाओं के रूप में की जा चुकी है। इसके अलावा राज्य सरकारें समय-समय पर राष्ट्रीय परियोजनाओं की योजना में परियोजनाओं को शामिल करने के लिए अनुरोध भेजती रहती हैं। यद्यपि इनका समावेशन जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के तकनीकी-आर्थिक दृष्टिकोण, निवेश मंजूरी, राष्ट्रीय परियोजनाओं की योजना के मानदंडों की पूर्ति, धन की उपलब्धता इत्यादि पर सलाहकार समिति द्वारा मूल्यांकन/अनुमोदन पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में राज्य सरकारों द्वारा प्राप्त अनुरोधों की स्थिति निम्नलिखित हैं-

क्रं•स• परियोजना का नाम राज्य स्थिति

11. जामरानी बहुउद्देशीयीय बांध परियोजना उत्तराखंड राष्ट्रीय परियोजना के लिए मानदंड न भरें

22. बार्गी मोड़ परियोजना मध्य प्रदेश

33. परवान बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना राजस्थान निवेश मंजूरी राज्य द्वारा प्राप्त नहीं की गई

44. पूर्वीय राजस्थान नहर परियोजना राजस्थान टीएसी मंजूरी राज्य द्वारा प्राप्त नहीं की गई

55. साबरमती बेसिन से जवाई बांध तक राजस्थान

अधिशेष पानी का विचलन

66. कालेश्वरम सिंचाई परियोजना तेलंगाना • निवेश मंजूरी राज्य द्वारा प्राप्त नहीं की गई

यह सूचना लोकसभा में केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी गई।

राज्य सभा में तीन तलाक को लेकर क्या होगा??


सरकार के एजेंडे में मॉनसून सत्र में तीन तलाक बिल को पास कराना था लेकिन सत्र में कई और दूसरे जरूरी मुद्दे थे जिसको लेकर सरकार ज्यादा जोर दे रही थी


तीन तलाक विधेयक शुक्रवार को राज्यसभा में पेश होने वाला है. मॉनसून सत्र के अाखिरी दिन इस विधेयक के पारित होने पर सस्पेंस बना हुआ है. हालांकि सरकार की पूरी कोशिश है इसे पारित करा लिया जाए लेकिन विपक्ष के विरोधी तेवर को देखते हुए इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है, लिहाजा कांग्रेस या फिर दूसरे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की उसे दरकार होगी. इसे देखते हुए सरकार ने बिल में कुछ अहम संशोधन भी किए हैं.

संशोधन से क्या विपक्ष को राहत?

कैबिनेट ने तीन तलाक से जुड़े बिल में तीन संशोधन कर उसमें थोड़ी राहत जरूर दी है. अब नए संशोधन के मुताबिक, पहले के बिल के प्रावधानों में से पहले संशोधन के बाद, तीन तलाक में आरोपी पति मुकदमे पर सुनवाई से पहले जमानत की अपील कर सकेगा जिस पर पीड़ित पत्नी का पक्ष लेने के बाद मजिस्ट्रेट जमानत दे सकते हैं लेकिन आरोपी पति को जमानत तभी दी जाएगी, जब पति मजिस्ट्रेट की तरफ से तय किया गया मुआवजा पत्नी को दे दे.

बिल के दूसरे संशोधन के मुताबिक, तीन तलाक के मुद्दे पर एफआईआर तभी दर्ज की जाएगी, जब पीड़ित महिला या उसके किसी रिश्तेदार की तरफ से इस मामले में पुलिस के सामने अपनी तरफ से शिकायत की जाए. पहले बिल में यह प्रावधान था कि अगर पड़ोसी भी इस मामले में पुलिस में शिकायत करे तो पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है. इसे पीड़ित पक्ष के लिए राहत के तौर पर देखा जा रहा है.

बिल के तीसरे प्रावधान के मुताबिक, तीन तलाक का मामला कंपाउंडेबल होगा. इसका मतलब यह हुआ कि मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद पति-पत्नी यानी दोनों ही पक्ष में से कोई भी पक्ष अपना केस वापस ले सकता है. इससे पति-पत्नी के बीच तीन तलाक के मामले को लेकर विवाद का निपटारा मजिस्ट्रेट के स्तर पर भी हो सकता है.

राज्यसभा में विपक्ष का रोड़ा बनी मुसीबत

तीन तलाक बिल पहले ही लोकसभा से पारित हो चुका है. पिछले साल शीतकालीन सत्र में इस बिल को लोकसभा से मंजूरी मिल गई थी लेकिन इस मुद्दे पर कुछ प्रावधानों पर विपक्षी दलों के विरोध के चलते राज्यसभा में यह बिल पारित नहीं हो सका था. कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने तीन तलाक के मामले में सजा के प्रावधान को लेकर अपनी असहमति जताई थी. अभी भी इस मुद्दे पर उनका विरोध जारी है.

हालाकि, सरकार लोकसभा से पारित बिल में संशोधन कर अपने रुख में थोड़ी नरमी दिखाने का संकेत दे रही है लेकिन सजा के प्रावधान को अभी भी बरकरार रखा गया है. यानी सरकार के एक कदम पीछे खींचने के बावजूद इस मुद्दे पर रार होने की पूरी संभावना अभी भी बरकरार है.

लोकसभा से बिल पारित होने के बाद से ही कांग्रेस लगातार इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी में भेजे जाने की मांग करती आई है लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. इसके चलते यह बिल अभी तक अटका पड़ा है.

डिप्टी चेयरमैन पद पर जीत से बमबम सरकार

राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है, लिहाजा कांग्रेस या फिर दूसरे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की उसे दरकार होगी. हालाकि राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के पद के लिए हुए चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार हरिवंश की जीत ने ऊपरी सदन में भी सरकार के पक्ष में नए समीकरण और बढ़त का संकेत दिया है. फिर भी, सरकार के लिए तीन तलाक बिल को पास कराना आसान नहीं होगा क्योंकि डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में साथ आए बीजेडी और टीआरएस जैसे दल तीन तलाक बिल के मुद्दे पर भी सरकार का साथ देंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है.

मॉनसून सत्र के आखिरी दिन क्यों लाया बिल ?

दरअसल, सरकार के एजेंडे में मॉनसून सत्र में तीन तलाक बिल को पास कराना था लेकिन सत्र में कई और दूसरे जरूरी मुद्दे थे जिसको लेकर सरकार ज्यादा जोर दे रही थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एससी-एसटी एक्ट में संशोधन को लेकर भी सरकार काफी संजीदा थी. अब दोनों सदनों से यह बिल पारित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया गया है, जिसमें एससी-एसटी एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दायर करने के बाद तुरंत गिरफ्तारी से रोक हटा दी गई थी. अब फिर से पहले की तरह तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान को लागू कर दिया गया है.

इसके अलावा पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले बिल को भी सरकार ने मौजूदा सत्र में पास करा लिया है. सरकार की इन दो बड़ी कोशिशों को बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है. इन दोनों बिल को पास कराने के बाद मौजूदा सत्र में सरकार एससी-एसटी के साथ ओबीसी तबके को भी अपने साथ लाने और उनमें यह संदेश देने में सफल रही है कि सरकार उनके हितों के लिए काम करती है.

क्या कोर वोटर्स को लुभाने की रणनीति?

उधर, राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में भी सरकार को एआईएडीएमके, टीआरएस और बीजेडी को साथ लेना था. सरकार नहीं चाहती थी कि डिप्टी चेयरमैन के चुनाव से पहले किसी तरह का कोई बवाल हो, लिहाजा पहले उस चुनाव में सबको साथ लेकर अपनी जीत तय कर ली गई. उसके बाद सत्र के आखिरी दिन इस मुद्दे को समझदारी से उठा दिया गया. यहां तक कि तीन तलाक बिल में संशोधन का फैसला भी डिप्टी चेयरमैन का चुनाव होने के बाद उसी दिन हुई कैबिनेट की बैठक में तय किया गया.

सरकार की तरफ से भले ही नरमी दिखाई जा रही हो लेकिन इस मुद्दे पर अभी भी आगे बढ़ना आसान नहीं दिख रहा है. हंगामे के आसार भी हैं. मॉनसून सत्र के आखिरी दिन विपक्ष भी सरकार को घेरने की पूरी कोशिश करेगा. ऐसे में तीन तलाक बिल एक बार फिर से सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए अपने-अपने कोर वोटर्स के बीच जगह बनाने की कोशिश भर रह जाएगा. हालात तो ऐसे ही नजर आ रहे हैं.

कभी हम जीतते हैं तो कभी हमारी हार होती है: सोनिया Gandhi


गुरुवार को राज्यसभा के उपसभापति के लिए हुए उपचुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद, एनडीए प्रत्याशी हरिवंश से हार गए


राज्यसभा के उपसभापति के लिए हुए चुनाव में एक बार फिर विपक्ष को हार का मुंह देखना पड़ा है. इस हार के बाद सोनिया गांधी ने कहा कि कभी हम जीतते हैं और कभी हार होती है. कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ चुकी सोनिया फिलहाल यूपीए चेयरपर्सन हैं.

एनडीए की तरफ से जेडीयू के राज्यसभा सदस्य हरिवंश उपसभापति पद के लिए उम्मीदवार थे. गुरुवार को उन्हें इस पद के लिए चुना गया. उन्हें विपक्ष की ओर से कांग्रेस के उम्मीदवार बी के हरिप्रसाद को मिले 105 मतों के मुकाबले 125 मत मिले.

हरिवंश के पक्ष में जेडीयू के आरसीपी सिंह, बीजेपी के अमित शाह, शिव सेना के संजय राउत और अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींढसा ने प्रस्ताव किया. वहीं हरिप्रसाद के लिए बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्रा, आरजेडी की मीसा भारती, कांग्रेस के भुवनेश्वर कालिता, एसपी के रामगोपाल यादव और एनसीपी की वंदना चव्हाण ने प्रस्ताव पेश किया.

नेता सदन अरुण जेटली, नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार और संसदीय कार्य राज्यमंत्री विजय गोयल ने हरिवंश को बधाई देते हुए उन्हें उपसभापति के निर्धारित स्थान पर बिठाया. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरिवंश को शुभकामनाएं देते हुए उनके अनुभव के हवाले से उनके निर्वाचन को सदन के लिए गौरव का विषय बताया.

सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि हरिवंश को बीजेपी गठबंधन पार्टियों के 91 सदस्यों के अलावा तीन नामित सदस्यों और निर्दलीय अमर सिंह का वोट मिला. इसके अलावा उन्हें गैर एनडीए दलों-एआईएडीएमके के 13, टीआरएस के छह, इनेलो के एक सदस्य का समर्थन मिला. बीजेडी के 9 सांसदों ने भी हरिवंश को वोट किया. कुल मत 123 हुए लेकिन कहा जा रहा है कि दो निर्दलीय सांसदों ने भी एनडीए के पक्ष में वोट किया जिससे कुल आंकड़ा 125 बैठता है. वाईएसआर कांग्रेस के दो सदस्य वोटिंग से गैर-हाजिर रहे.

‘2022 एजेंडे’ के अनुसार भारत वर्ष 2022 से पहले भी स्वच्छ ऊर्जा के अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है: राजकुमार सिंह

भारत सरकार के विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राज कुमार सिंह ने कहा कि भारत के सतत विकास के लिए उद्योग जगत और सरकार को निश्चित रूप से आपस में भागीदारी करनी चाहिए। राज कुमार सिंह नीति आयोग, भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा 8 अगस्त को नई दिल्ली में आयोजित सरकार-उद्योग जगत साझेदारी सम्मेलन के दौरान सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर नीति आयोग और सीआईआई की साझेदारी के शुभारंभ के अवसर पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि सतत विकास के लिए तीन चीजों की सबसे अधिक अहमियत है, जिनमें ऊर्जा, जल और पुनरुत्पादक (सर्कुलर) अर्थव्यवस्था/हरित उद्योग शामिल हैं। ‘2022 एजेंडे’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने विश्वास जताया कि भारत वर्ष 2022 से पहले भी स्वच्छ ऊर्जा के अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने सभी से अनुरोध किया कि वे पर्यावरण के प्रति सजग एवं जवाबदेह बनें।

नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने अपने संबोधन में ऐसे समय में भारत में तेज गति से हो रहे शहरीकरण पर प्रकाश डाला, जब कई देश जैसे कि अमेरिका और यूरोप पहले ही इस प्रक्रिया से लगभग पूरी तरह गुजर चुके है। अमिताभ कांत ने देश की आबादी का उल्लेख करते हुए कहा कि सतत रूप से विकास करने का एकमात्र तरीका यही है कि प्रौद्योगिकी का समुचित उपयोग किया जाए। इसके तहत नवीन एवं नवीनकरणीय ऊर्जा का उपयोग करने, अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) को बढ़ावा देने, इलेक्ट्रिक वाहनों, हाइड्रोजन कारों, इत्यादि की मांग बढ़ाने के लिए नवाचार करने और विश्व भर के लोगों के लिए विभिन्न समस्याओँ का स्थानीय समाधान ढूंढ़ने पर विशेष जोर दिया गया।

इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र के स्थानीय समन्वयक यूरी अफानासीव ने कहा कि भारत की प्रकृति, इतिहास एवं आबादी के स्वरूप को देखते हुए यहां की परिस्थितियां टिकाऊ एवं पुनरुत्पादक अर्थव्यवस्था के लिए ऐसे ठोस समाधान ढूंढ़ने की दृष्टि से अनुकूल हैं जिनकी पुनरावृत्ति पूरी दुनिया कर सकती है।

सीआईआई के अध्यक्ष एवं भारती एंटरप्राइजेज लिमिटेड के उपाध्यक्ष राकेश भारती मित्तल ने विशेष जोर देते हुए कहा कि सीआईआई 2018-19 की वर्तमान थीम ‘भारत का अभ्युदयः उत्तरदायी, समावेशी, सतत’ वास्तव में सतत विकास एजेंडे के अनुरूप है।

भारतीय उद्योग परिसंघ के महानिदेशक चन्द्रजीत बनर्जी ने कहा कि सीआईआई के 9 उत्कृष्ट केन्द्र काफी हद तक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुरूप हैं।

सीआईआई और नीति आयोग ने आपस में तीन वर्षों के लिए साझेदारी की है और इस संबंध में एक सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं। इस साझेदारी के तहत विशिष्ट गतिविधियों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है जिनका उद्देश्य इन्हें विकसित करना है-

1. एसडीजी में योगदान हेतु कारोबारियों और उद्योगों के लिए विजन एवं कार्यकलाप एजेंडा

2. वार्षिक स्थिति रिपोर्ट

3. क्षेत्र विशिष्ट सर्वोत्तम प्रथाओं से जुड़े दस्तावेज।

इस अवसर पर नीति आयोग के सलाहकार डॉ• अशोक कुमार जैन ने इस साझेदारी के बारे में विस्तार से बताया और अभिनव पहलों के लिए सीआईआई की सराहना की।

सीआईआई ने ‘एसडीजी की प्राप्ति हेतु पूरी दुनिया के लिए भारतीय समाधान’ नामक रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में प्रत्येक एसडीजी और कारोबारी निहितार्थों के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस रिपोर्ट में उदाहरण देते हुए यह बताया गया है कि किस तरह से कंपनियों ने अपनी कारोबारी रणनीति में एसडीजी से जुड़ी रूपरेखा को शामिल किया है और इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कंपनियों ने किस तरह से ठोस प्रयास किए हैं।

सम्मेलन में अनेक प्रतिष्ठित प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय, विद्युत मंत्रालय, नवीन एवं नवीनकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारीगण तथा तेलंगाना, आंध्र प्रदेश एवं गुजरात जैसे अनेक राज्यों के सरकारी प्रतिनिधि शामिल हैं।

Nirankari Mata Savinder Hardev ji passes away

Nirankari Mata Savinder Hardev ji passes away after a prolong illness at 5:15 pm in New Delhi. She was 61. Born on 2nd January 1957 to Sh. Manmohan Singh and Smt. Amrit Kaur and later was adopted by Sh. Gurumukh Singh and Mrs Madan Kaur ji.

She got her education at convent of Christian and Mary Mussoorie As a better half of Baba Hardev Singh she supported him in prachar and welfare in india and abroad.

She was the 5th Saduru of nirankari mission

She is survived by three daughters. Samta, Renuka and Sudeeksha

Sadguru Sudiksha ji is the 6th head of Nirankari Mission

The body of Mata ji will be plaed for last ‘darshans’ in Samagam ground no. 8 till 7th of August, 2018, the cremation will be held at Nigam Bodh Ghat on 8th August at 12 noon in electrical crematorium. The mission sources told.

The Shradhaanjli samaroh will take place in samagam ground the same day at 2:00 pm

कांग्रेस हताश, किसी को भी पीएम उम्मीदवार बनाने को तैयारः अनंत कुमार

 

प्रधानमंत्री पद के लिए मायावती और ममता बनर्जी के नाम पर कांग्रेस की सहमति पर संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार का कहना है, ‘ये कांग्रेस की हताशा को दर्शाता है. जिस दिन वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर चयनित किया था. हमने उसी दिन कहा उनकी उम्मीदवारी  के लिए कोई सहमति नहीं होगी.’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस की साथी पार्टियों में इस कारण विकट परिस्थिति शुरू हो गई है. जब ऐसी स्थिति पैदा होती है तो निराश होकर कोई भी प्रधानमंत्री बने, कैसे भी बने तो हम उसका समर्थन करेंगे. यही स्थिति कांग्रेस की हो गई है.’

वहीं राफेल डील को लेकर प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री के खिलाफ कांग्रेस पार्टी द्वारा विशेषाधिकार हनन लाए जाने के नोटिस पर संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार का कहना है कि विशेषाधिकार हनन का नोटिस संसद के नियमों के हिसाब से होता है.

अगर कांग्रेस विशेषाधिकार हनन लाती है तो उसका कोई स्टैंड नहीं करेगा. प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के खिलाफ जो विशेषाधिकार हनन लाने की बात कर रहे हैं, उसमें कोई दम नहीं है. इससे कांग्रेस के लिए अजीब सी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी.

संसद में जब विशेषाधिकार हनन का नोटिस आता है वो संसद की नियमावली के सूझ-बूझ और ज्ञान, विवेक के हिसाब से देते हैं. हर बार इस तरीके से विशेषाधिकार हनन का नोटिस इस्तेमाल करने का प्रावधान नहीं है. लेकिन बिना सूझ-बूझ और बिना विवेक के कांग्रेस जहां कोई विशेषाधिकार का हनन नहीं है, कोई विशेषाधिकार हनन का कोई मुद्दा ही नहीं बनता है, वहां पर नोटिस दे रही है. तो एक और बार खुलासा होगा कि जो संसदीय प्रक्रिया है उसकी कमी कांग्रेस में.